लेखक- विरेंद्र अरुण
कजरी के खिलखिलाने की आवाज शकुंतला देवी के कानों में पड़ी, तो उन की भौंहों पर बल पड़ गए और वे यों ही बड़बड़ाने लगीं, ‘‘लगता है, फिर किसी आतेजाते के साथ बात करने में मशगूल हो गई है. कितनी बार समझाया है कमबख्त को कि हर किसी से बातें मत किया कर. लोग एक बात के सौ मतलब निकालते हैं.’’
लेकिन कजरी शकुंतला देवी की बातों पर ध्यान नहीं देती थी. समझाने पर वह यही कहती थी कि जिंदगी में हंसने और बोलने का समय ही कहां मिलता है, इसलिए जब भी मौका मिले तो थोड़ा खुश हो लेना चाहिए.
कजरी की बातें सुन कर शकुंतला देवी को डर लगता था. मर्दों की इस दुनिया में अकेली और कुंआरी लड़की की हंसी के कितने मतलब निकाले जाते हैं, उन्हें सब पता था.
शकुंतला देवी अकसर ही कजरी को समझाने की कोशिश करते हुए कहतीं, ‘‘कजरी, मैं यह तो नहीं कहती कि हंसनाबोलना बुरी बात है, पर हर ऐरेगैरे से यों हंस कर बातें करना लोगों को तेरे बारे में कुछ उलटासीधा कहने का मौका दे सकता है.’’
शकुंतला देवी की ऐसी बातों पर कजरी कहती, ‘‘बीबीजी, लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं और क्या सोचते हैं, इस की मुझे परवाह नहीं है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि मैं सही हूं.
‘‘मैं ने कभी किसी के साथ खास मकसद से हंसीमजाक नहीं किया. मैं मन से साफ हूं और मेरा मन मुझे कभी गलत नहीं कहता.
‘‘अगर आप मेरे बोलनेबतियाने को शक की निगाहों से देखती हैं तो मैं जरूर दूसरों से बोलना छोड़ दूंगी. एक आप ही तो हैं जिन की नजरों में मुझे अपनापन मिला है, वरना यहां किस की नजरों में क्या है, मैं खूब समझती हूं.’’
कजरी की बातें सुन कर शकुंतला देवी चुप हो जातीं. वे उसे जमाने की ऊंचनीच समझाने की कोशिश भर कर सकती थीं, लेकिन कजरी पर इस का कोई असर नहीं पड़ता था. वह हर समय हंसतीखिलखिलाती रहती थी.
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5 साल पहले शकुंतला देवी इस महल्ले में आई थीं. उन के पति सिंचाई महकमे में अफसर थे. उन के 2 बेटे थे. दोनों लखनऊ में रह कर पढ़ रहे थे. कजरी को उन्होंने पहली बार तब देखा था, जब वह उन के पास काम मांगने के लिए आई थी.
शकुंतला देवी को एक चौकाबरतन करने वाली की जरूरत थी, सो महल्ले वालों ने कजरी को उन के पास भेज दिया. तब कजरी की उम्र 15-16 साल की रही होगी.
शकुंतला देवी ने जब पहली बार उसे देखा, तो देखती रह गईं. काला आबनूसी रंग, भराभरा जिस्म और ऊपर से बड़ीबड़ी कजरारी आंखें. कजरी रंग से काली जरूर थी, पर दिल की साफ थी.
कजरी शकुंतला देवी के यहां काम करने आने लगी. धीरेधीरे वह शकुंतला देवी से घुलमिल गई. शकुंतला देवी भी कजरी को पसंद करने लगीं. कजरी का अल्हड़पन और मासूमियत देख कर वे उसे ले कर परेशान रहती थीं.
एक दिन सुबह शकुंतला देवी हमेशा की तरह सैर के लिए घर से निकलीं. अभी वे कुछ कदम ही चली थीं कि उन की पड़ोसन ने उन्हें बताया कि कजरी को रात में पुलिस पकड़ कर थाने ले
गई है.
यह सुन कर शकुंतला देवी हैरान रह गईं. पड़ोसन ने बताया कि जिस घर में कजरी काम करती है, उस के मालिक अनिरुद्ध शर्मा रात 11 बजे के आसपास घर आए थे, तो उन्होंने मेज की दराज खुली पाई. उन्होंने सुबह ही दराज में 20,000 रुपए रखे थे, जो अब गायब थे. उन का शक फौरन कजरी पर गया.
अनिरुद्ध शर्मा ने अकेले रहने और घर देर से लौटने की वजह से घर की एक चाबी कजरी को दे दी थी, ताकि उन की गैरहाजिरी में भी वह आ कर घर का चौकाबरतन कर जाए. उन्होंने कजरी को घर बुला कर पूछा और समझाया कि वह पैसे दे दे. जब कजरी नहीं मानी तो उन्होंने पुलिस को बुला कर रिपोर्ट दर्ज करा दी.
पड़ोसन की बातें सुन कर शकुंतला देवी का सिर चकराने लगा. अपनों से ठगे जाने के बाद जो एहसास दिल में होता है, वही शकुंतला देवी को हो रहा था. उन को लग रहा था कि कजरी ने अनिरुद्ध शर्मा के यहां चोरी नहीं की, बल्कि उन का विश्वास चुराया है.
सैर कर के घर आने के बाद भी शकुंतला देवी का मन बेचैन ही रहा. पड़ोसन से हुई बातों के आधार पर उन का दिमाग कजरी को अपराधी मान रहा था, लेकिन कजरी का बरताव याद आते ही दिल उस के बेगुनाह होने की दुहाई देने लगता था. आखिरकार उन्होंने कजरी से मिलने का फैसला किया.
पति के औफिस चले जाने के बाद शकुंतला देवी थाने पहुंच गईं. वहां उन्होंने देखा कि हवालात में बंद कजरी घुटनों के बल बैठी चुपचाप सूनी आंखों से बाहर देख रही थी.
शकुंतला देवी ने थानेदार से कजरी से मिलने की इजाजत मांगी. उन्हें देखते ही कजरी रो पड़ी.
कजरी रोते हुए बोली, ‘‘बीबीजी, मैं बेकुसूर हूं. मैं ने कोई चोरी नहीं की. शर्माजी ने मुझे जानबूझ कर फंसाया है.’’
शकुंतला देवी कजरी को चुप कराने लगीं, ‘‘रोओ मत कजरी, चुप हो जाओ. मुझे पूरी बात बताओ कि आखिर माजरा क्या है?’’
कजरी ने शकुंतला देवी को बताया, ‘‘बीबीजी, शर्माजी मुझ पर बुरी निगाह रखते हैं. कल रात वे मेरे पास आए और कहा कि उन के घर थोड़ी देर में मेहमान आने वाले हैं, इसलिए मैं चल कर नाश्ता तैयार कर दूं.
‘‘रात का समय होने से मैं जाने में हिचकिचा रही थी, लेकिन उन की मजबूरी का खयाल कर के चली गई.
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‘‘नाश्ता तैयार करने के बाद जब मैं वापस आने लगी तो उन्होंने मुझे पकड़ लिया और कहने लगे कि मेहमानों के आने की बात तो बहाना था. सच तो यह है कि मैं तुम्हें चाहने लगा हूं.
‘‘यह सुन कर मैं ने कहा कि मैं आप की बेटी जैसी हूं. आप को ऐसी बातें करते हुए शर्म आनी चाहिए.
‘‘इस पर शर्माजी ने कहा कि बेटी जैसी हो, बेटी तो नहीं हो न. बस, एक बार तुम मेरी प्यास बुझा दो, तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा.
‘‘यह सुन कर मैं गुस्से में वहां से जाने लगी तो उन्होंने मुझे दबोच लिया और जबरदस्ती करने लगे.
‘‘अपनेआप को छुड़ाने के लिए दांतों से मैं ने उन के हाथ को काट लिया और वहां से भाग आई.
‘‘अभी घर आए मुझे थोड़ी ही देर हुई थी कि पुलिस घर पर आई और मुझे पकड़ कर यहां ले आई. मैं ने यहां सारी बात बताई, पर कोई सुनता ही नहीं है. सभी यही समझ रहे हैं कि मैं ने चोरी की है. बीबीजी, मैं ने कोई चोरी नहीं की है,’’ इतना कह कर कजरी फिर फफक पड़ी.
कजरी के मुंह से सारी बातें सुन कर शकुंतला देवी समझ गईं कि क्या हुआ होगा. कमजोर और गरीब लड़की की मजबूरियों का फायदा उठाने वाले भेडि़यों की कमी नहीं थी. शर्मा जैसे भेडि़ए ने कजरी को शिकार बनाना चाहा होगा और नाकाम रहने पर तिलमिलाते हुए उस ने कजरी को झूठे केस में फंसा दिया.
शकुंतला देवी को कजरी पर गर्व हुआ कि उस ने उन के यकीन को ठेस नहीं पहुंचाई है.
कजरी को चुप कराते हुए शकुंतला देवी ने कहा, ‘‘रोओ मत कजरी, मर्दों की इस दुनिया में रोने से कुछ हासिल नहीं होने वाला. अगर औरत गरीब हो तो उस की गरीबी और बेबसी उस के खिलाफ वासना के भूखे भेडि़यों के हथियार बन जाते हैं इसलिए रोने और अपनेआप को कमजोर समझने से कुछ नहीं होगा.
‘‘तुम्हें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. अनिरुद्ध शर्मा को उस के किए की सजा मिलनी चाहिए. मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’
शकुंतला देवी ने थानेदार से बात कर के कजरी को जमानत पर छुड़ा लिया.
कजरी ने शकुंतला देवी की सलाह पर अनिरुद्ध शर्मा के खिलाफ बलात्कार करने की कोशिश की रिपोर्ट दर्ज कराई.
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कजरी की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस अनिरुद्ध शर्मा को पकड़ने के लिए निकल पड़ी.