लेखक- धर्मेंद्र राजमंगल
शहर के किनारे काली माता का मंदिर बना हुआ था. सालों से वहां कोई पुजारी नहीं रहता था. लोग मंदिर में पूजा तो करने जाते थे, लेकिन उस तरह से नहीं, जिस तरह से पुजारी वाले मंदिर में पूजा की जाती है. एक दिन एक ब्राह्मण पुजारी काली माता के मंदिर में आए और अपना डेरा वहीं जमा लिया. लोगों ने भी पुजारीजी की जम कर सेवा की. मंदिर में उन की सुखसुविधा का हर सामान ला कर रख दिया.
पहले तो पुजारीजी बहुत नियमधर्म से रहते थे, सत्यअसत्य और धर्मअधर्म का विचार करते थे, लेकिन लोगों द्वारा की गई खातिरदारी ने उन का दिमाग बदल दिया. अब वे लोगों को तरहतरह की बातें बताते, अपनी हर सुखसुविधा की चीजों को खत्म होने से पहले ही मंगवा लेते.
काली माता की पूजा का तरीका भी बदल दिया. पहले पुजारीजी काली माता की सामान्य पूजा कराते थे, लेकिन अब उन्होंने इस तरह की पूजा करानी शुरू कर दी, जिस से उन्हें ज्यादा से ज्यादा चढ़ावा मिल सके.
धीरेधीरे पुजारीजी ने काली माता पर भेंट चढ़ाने की प्रथा शुरू कर दी. वे पशुओं की बलि काली माता को भेंट करने के नाम पर लोगों से बहुत सारा पैसा ऐंठने लगे. जब कोई किसी काम के लिए काली माता की भेंट बोलता, तो पुजारीजी उस से बकरे की बलि चढ़ाने के नाम पर 5 हजार रुपए ले लेते और बाद में कसाई से बकरे का खून लाते और काली माता को चढ़ा देते.
बकरे के नाम पर लिए हुए 5 हजार रुपए पुजारीजी को बच जाते थे, जबकि बकरे का मुफ्त में मिला खून काली माता की भेंट के रूप में चढ़ जाता था. धीरेधीरे दूरदूर के लोग भी काली माता के मंदिर में आने शुरू हो गए. पुजारीजी दिनोंदिन पैसों से अपनी जेब भर रहे थे. लोग सब तरह के झंझटों से बचने के लिए पुजारीजी को रुपए देने में ही अपनी भलाई समझते थे.
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लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जो पुजारीजी की इस प्रथा का विरोध करते थे. लेकिन पुजारीजी के समर्थकों की तुलना में ये लोग बहुत कम थे, इसलिए उन्हें ऐसा काम करने से रोक न सके.
जब पुजारीजी के ढोंग की हद बढ़ गई, तो कुछ लोगों ने पुजारी की अक्ल ठिकाने लगाने की ठान ली. शहर में रहने वाले घनश्याम ने इस का बीड़ा उठाया.
घनश्याम सब से पहले पुजारीजी के भक्त बने और 2-4 झूठी समस्याएं उन्हें सुना डालीं. साथ ही बताया कि उन के पास पैसों की कमी नहीं है, लेकिन इतना पैसा होने के बावजूद भी उन्हें शांति नहीं मिलती. अगर किसी तरह उन्हें शांति मिल जाए, तो वे किसी के कहने पर एक लाख रुपए भी खर्च कर सकते हैं.
एक लाख रुपए की बात सुन कर पुजारीजी की लार टपक गई. उन्होंने तुरंत घनश्याम को अपनी बातों के जाल में फंसाना शुरू कर दिया.
पुजारी बोला, ‘‘देखो जजमान, अगर तुम इतने ही परेशान हो, तो मैं तुम्हें कुछ उपाय बता सकता हूं.
‘‘अगर तुम ने ये उपाय कर दिए, तो समझो तुम्हें मुंहमांगी मुराद मिल जाएगी. लेकिन इस सब में खर्चा बहुत होगा.’’
घनश्याम ने पुजारीजी को अपनी बातों में फंसते देखा, तो झट से बोल पड़े, ‘‘पुजारीजी, मुझे खर्च की चिंता नहीं है. बस, आप उपाय बताइए.’’
पुजारीजी ने काली माता की पूजा के लिए एक लंबी लिस्ट तैयार कर दी.
घनश्याम पुजारीजी की कही हर बात मानता गया. पुजारीजी ने काली माता की भेंट के लिए 2 बकरों का पैसा भी घनश्याम से ले लिया. साथ ही, उन्हें घर में एक पूजा कराने को कह दिया.
पुजारीजी की इस बात पर घनश्याम तुरंत तैयार हो गए. तीसरे दिन घनश्याम के घर पर पूजा की तारीख तय हुई, जबकि भेंट चढ़ाने के लिए पैसे तो पुजारीजी उन से पहले ही ले चुके थे.
तीसरे दिन पुजारीजी घनश्याम के घर जा पहुंचे. पुजारीजी ने अमीर जजमान को देख हर बात में पैसा वसूला और घनश्याम अपनी योजना को कामयाब करने के लिए पुजारी द्वारा की गई हर विधि को मानते गए.
जोरदार पूजा के बाद घनश्याम ने पुजारीजी के लिए स्वादिष्ठ पकवान बनवाए, बाजार से भी बहुत सी स्वादिष्ठ चीजें मंगवाई गईं. पुजारीजी ने जम कर खाना खाया. उन्होंने आज तक इतना लजीज खाना नहीं खाया था.
जब पुजारीजी खाना खा चुके, तो उन्होंने घनश्याम से पूछा, ‘‘घनश्याम, तुम ने हमें इतना स्वादिष्ठ खाना खिला कर खुश कर दिया. ये कौन सा खाना है और किस ने बनाया है?
पुजारी के पूछने पर घनश्याम ने जवाब दिया, ‘‘पुजारीजी, कुछ खाना तो बाजार से मंगवाया था और कुछ यहीं पकाया था. सारा खाना ही बकरे के मांस से बना हुआ था.’’
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घनश्याम ने बकरे के मांस का नाम लिया, तो पुजारीजी की सांसें अटक गईं, लेकिन उन्होंने सोचा कि शायद घनश्याम मजाक कर रहे हैं. वे बोले, ‘‘जजमान, आप मजाक बहुत कर लेते हैं, लेकिन हमारे सामने मांसाहारी चीज का नाम मत लो. हम तो मांसमदिरा को छूते भी नहीं, खाना तो बहुत दूर की बात है.’’
घनश्याम ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं पुजारीजी. आप चाहें तो जिस बावर्ची ने खाना बनाया है, उस से पूछ लें.’’
घनश्याम की बात सुन पुजारीजी का दिल बैठ गया. मन किया कि उलटी कर दें. नफरत से भरे मन में घनश्याम के लिए गुस्सा भी बहुत था.
घनश्याम ने आवाज दे कर बावर्ची को बुला कर कहा, ‘‘जरा पुजारीजी को बताओ तो कि तुम ने क्या बनाया था.’’
बावर्ची अपने बनाए हुए खाने को बताने लग गया. सारा खाना बकरे के मांस से बनाया गया था.
पुजारीजी पैर पटकते हुए गुस्से से भरे घनश्याम के घर से चले गए. घर के बाहर आ कर उन्होंने गले में उंगली डाली और खाए हुए खाने को अपने पेट से खाली कर दिया, लेकिन मन की नफरत इतने से ही शांत नहीं हुई.
पुजारीजी ने बस्ती में हंगामा कर लोगों को जमा कर लिया, जिन में ज्यादातर उन के भक्त थे. उन्होंने घनश्याम द्वारा की गई हरकत सब लोगों को बताई, तो हर आदमी घनश्याम की इस हरकत पर गुस्सा हो उठा.
अब लोग पुजारीजी समेत घनश्याम के घर जा पहुंचे. सब ने घनश्याम को भलाबुरा कहा.
घनश्याम ने सब लोगों की बातें चुपचाप सुनीं, फिर अपना जवाब दिया, ‘‘भाइयो, मैं किसी भी गलती के लिए माफी मांगने के लिए तैयार हूं, लेकिन आप पहले मेरी बात ध्यान से सुनें,
उस के बाद जो आप कहेंगे, वह मैं करूंगा.’’
सब लोग शांत हो कर घनश्याम की बात सुनने लगे. घनश्याम ने बोलना शुरू किया, ‘‘देखो भाइयो, जब मैं पुजारीजी के पास गया और अपनी परेशानी बताई, तो इन्होंने मुझ से 2 बकरों की भेंट काली माता पर चढ़ाने के लिए रुपए लिए थे. साथ ही, मुझ से यह भी कहा था कि मैं घर में पूजा कराऊं.’’
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‘‘मैं ने पुजारीजी के कहे मुताबिक ही पूजा कराई और घर में बकरे के मांस से बना खाना परोसा. पुजारीजी ने मुझ से पूछा नहीं और मैं ने बताया नहीं.’’
भीड़ में से एक आदमी ने लानत भेजते हुए कहा, ‘‘तो भले आदमी, तुम को तो सोचना चाहिए कि पुजारी को मांस खिलाना कितना अधर्म का काम है. क्या तुम यह नहीं जानते थे?’’
घनश्याम ने शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘भाइयो, मुझे नहीं लगता कि यह कोई अधर्म का काम है. जब ब्राह्मण पुजारी अपनी आराध्य काली माता पर बकरे की बलि चढ़ा सकता है, तो उस बकरे के मांस को खुद क्यों नहीं खा सकता? क्या पुजारी की हैसियत भगवान से भी ज्यादा है या भगवान ब्राह्मण से छोटी जाति के होते हैं?’’
लोगों में सन्नाटा छा गया. घनश्याम की बात पर किसी से कोई जवाब न मिल सका.
पुजारीजी का सिर शर्म से झुक गया. उन्होंने यह बात तो कभी सोची ही नहीं थी. लोग खुद इस बात को सोचे ही बिना काली माता के लिए बकरे की बलि देते रहे थे.
आज पंडितजी की समझ में आया कि भला भगवान किसी जानवर का मांस क्यों खाने लगे? वे तो किसी भी जीव की हत्या को बुरा मानते हैं, वहां मौजूद सभी लोग घनश्याम की बात का समर्थन करने लगे.
भीड़ के लोगों ने पुजारीजी को ही फटकार कर काली माता का मंदिर छोड़ देने की चेतावनी दे दी. उस दिन से काली माता के मंदिर पर पशु बलि की प्रथा बंद हो गई.
पुजारीजी का धर्म भ्रष्ट हो चुका था, ऊपर से लोगों की नजरों में उन की इज्जत न के बराबर हो गई थी. उन्होंने वहां से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी. अब मंदिर वीरान हो गया था. अब वहां जानवर बंधने लगे थे.