कोरोना के चक्रव्यूह में ऐसे फंसे फलों के राजा आम

भारत में आम को फलों का राजा कहा जाता है. हम आम के दुनिया में सबसे बड़े उत्पादक देश तो हैं ही, इस राजसी फल के सबसे बडे़ निर्यातक भी हम ही हैं. पिछले साल 25 मई तक भारत करीब 20 हजार टन आमों का निर्यात कर चुका था. इस बार अभी तक आमों का निर्यात 200 टन भी नहीं हुआ और संभव है कि इस साल आम का सीजन चला जाए और दूसरे देशों तक आम पहुंच ही न पाये. क्योंकि फलों के राजा आम कोरोना वायरस के चक्रव्यूह में फंस गये हैं. भारत सरकार के कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि इस साल भारत में 2.128 करोड़ टन आमों का उत्पादन होगा, जो हालांकि पिछले साल से थोड़ा कम है. क्योंकि पिछले साल देशभर में 2.137 करोड़ टन आम का उत्पादन हुआ था. देश में करीब 23.09 लाख हेक्टेयर जमीन पर आम की लगभग 1,500 किस्में उगती हैं और सालाना लगभग 50,000 टन आमों का निर्यात होता है.

आजम-यू-समर जैसी आम की दुर्लभ किस्में हर साल हैदराबाद में निजाम के परिवार से इंग्लैंड में क्वीन एलिजाबेथ के लिए भेजी जाती हैं. लेकिन वीआईपी कैटेगिरी का आम सिर्फ आजम-यू-समर ही नहीं है. देश में करीब दो दर्जन ऐसी आम की किस्में हैं, जिनका मुकाबला आम उत्पादन करने वाला कोई दूसरा देश नहीं कर पाता. इनमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की एक वीआईपी किस्म मल्लिका, रत्नागिरी का हापुस, तमिलनाडु में नीलम और लखनऊ और उसके आसपास दशहरी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रटौल जैसी आम की किस्में यूरोप और अमरीका से लेकर जापान और दक्षिण कोरिया तक प्रसिद्ध हैं.

ये  भी पढ़ें- #coronavirus: अमेरिका की चौधराहट में कंपन

भारत में आम फलों का राजा है. इसकी बादशाहत पर न किसी को शक है और न ही आश्चर्य. आम के लजीज स्वाद के बारे में तमाम विदेशियों ने भी बहुत कुछ कहा है, किसी ने इसे जन्नत का फल, तो किसी ने साक्षात जन्नत की कह दिया है. लेकिन आम के इस तरह बेताज बादशाह होने के बाद भी एक सच्चाई यह भी है कि दुनिया के ग्लोबल विलेज में तब्दील होने के बाद इस बादशाहत को कायम रखना आसान नहीं रहा. क्योंकि 20वीं शताब्दी के मध्यार्ध के बाद फलों की दुनिया में सबसे ज्यादा उन्नति सेब ने की थी. विशेषकर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सेब की किस्मों में जबरदस्त बेहतरी और उत्पादन में भारी इजाफा हुआ था. लेकिन हम इस सबसे अनभिज्ञ हिंदुस्तान में आम को ही फलों का राजा कहते रहे. मगर 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिंदुस्तान के तमाम जुनूनी किसानों ने आम को वाकई फलों का राजा बना दिया. 2016 में आम 176 देशों में निर्यात होने लगा तो यह वास्तव में सबसे ज्यादा देशों को निर्यात होने वाला फल बन गया. आज यह करीब 180 देशों को निर्यात होता है.

वास्तव में आम अकेला वह फल है,जिसकी मुरीद पूरी दुनिया है. क्या उत्तरी गोलार्ध क्या दक्षिणी गोलार्ध. क्या विकसित देश, क्या विकासशील देश. लेकिन आम की जड़ें विशुद्ध भारतीय हैं. अंग्रेजी में आम का नाम मैंगो मलयालम से पड़ा है. मलयालम में आम को मंगा कहा जाता है. गौरतलब है कि वास्कोडिगामा सबसे पहले वर्ष 1498 में केरल के मालाबार तट पर ही पहुंचा था. यहीं पर उसका और उसके जरिये यूरोपीय दुनिया का आम से परिचय हुआ था. इसके बाद ही यूरोप के एक बड़े हिस्से तक आम पहुंचा और मलयाली मंगा, मैंगो बन गया. हालंाकि करीब एक दशक पहले आम की बाजारी ख्याति के लिए काफी खराब साल आये, जब यूरोपीय संघ ने अपने यहां भारतीय आमों पर प्रतिबंध लगा दिया.

ऐसा नहीं है कि दुनिया में आम सिर्फ भारत में ही होता है. लेकिन आम फल कि जो लज्जत है, जिस कारण आम फलों की दुनिया का सिरमौर बना है,उस गुणवत्ता वाला आम सिर्फ भारत में पाया जाता है. इसीलिये दुनिया के बाजार में ब्राजील या दक्षिण अफ्रीका के आम भारतीय आमों के सामने फीके साबित होते है. अमेरिका में जो छिले और कटे हुए आम बिकते हैं वो मैक्सिकन आम होते हैं. लेकिन जो जनरल स्टोर से बड़ी नजाकत से खरीदकर घर लाये जाते हैं, वे भारतीय आम होते हैं. हालांकि यह भी सही है कि कोई आम चाहे मैक्सिको का हो या हैती का उसकी जड़ें तो भारत में ही हैं. इन तमाम देशों तक आम भारत से ही पंहुचा है. लेकिन व्यावसायिक जरूरतों और फायदों के मद्देनजर इन देशों में आम की नस्ल के साथ इतनी छेड़छाड़ हुई है कि अब इनमें उस ओरिजनल आम का स्वाद ही नहीं बचा जो भारतीय आमों में है. इसलिए भारतीय आमों की पूरी दुनिया में कीमत है.

ये भी पढ़ें- आत्मनिर्भरता की निर्भरता

भारत में पूरे विश्व की कुल पैदावार का तकरीबन 50 से 52 प्रतिशत आम पैदा होता है. लेकिन बीते सालों में कई मौकों पर अमेरिका से लेकर यूरोप और ऑस्ट्रेलिया तक ने भारतीय आमों पर अलग अलग समय पर अपने यहां प्रतिबंध भी लगाया है. तब इन देशों का कहना था कि भारतीय आमों पर कीटनाशकों का छिड़काव बहुत ज्यादा होता है. लेकिन पिछले कुछ साल भारत के आम उत्पादकों के लिए अच्छी खबर लाये थे क्योंकि अब फिर से सभी देशों में भारतीय आम की धाक जम गयी थी, खासकर साल 2017 के बाद. लेकिन इस साल कोरोना ने इस बाजार को एक झटके में खत्म कर दिया. याद रखें दुनिया में भारत को जिन जिन वजहों से जाना जाता है, उनमें- महात्मा गांधी, साधुओं और हाथियों के साथ-साथ आम भी शामिल है.
आम भारत का राष्ट्रीय फल है. हालांकि आम का उत्पादन पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, अमरीका, फिलीपींस, सयुक्त अरब, अमीरात, दक्षिण अफ्रीका, जांबिया, माले, ब्राजील, पेरू, केन्या, जमैका, तंजानिया, मेडागास्कर, हैती, आइवरी कोस्ट, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, सहित और भी कई देशों में होता है. लेकिन इन सब देशों के आमों में वो बात नहीं है जो हमारे आम में होती है. जहां तक भारत में आम उगाने वाले प्रांतों का सवाल है तो सबसे ज्यादा आम की खेती उत्तर प्रदेश में होती है. लेकिन कुछ सालों पहले तक उत्पादन सबसे ज्यादा पूर्व आन्ध्र प्रदेश में होता था, जिसमें आज का तेलंगाना भी शामिल था. लेकिन इस समय फिर से उत्पादन की बादशाहत यूपी के पास लौट आयी है.
आम को अगर फलों के राजा होने का मान मिला है तो यूं ही नहीं मिला. आम एक ऐसा फल है जो शायद ही किसी को नापसंद हो. वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा गया है, तो इसका कारण इसका अद्भुत स्वाद है. आम पर हजारों कवितायें लिखी गयी हैं. हजारो कलाकारों ने अलग-अलग ढंग से आम को अपने कैनवास पर उतारा है. देश में आम को लेकर लाखों लोकगीत-लोक कहानियां मौजूद हैं. हिन्दुओं का शायद ही कोई धार्मिक संस्कार हो जिसमें आम की उपस्थिति न हो. शादी-ब्याह, हवन, यज्ञ, पूजा, कथा, त्योहार तथा सभी मंगलकार्यों में आम की लकड़ी, पत्ती, फूल, फल या कोई न कोई हिस्सा इस्तेमाल ही होता है.

आम के कच्चे फल से चटनी, खटाई, अचार, मुरब्बा आदि बनाये जाते हैं तो वहीं पके आमों से आम्र रस के साथ साथ आम का जूस व दर्जनों दूसरे उत्पाद बनाये जाते हैं. इन सबके साथ ही पके आम खाना सबसे सुखदायक तो है ही. आम पाचक, रेचक और बलप्रद होता है. पके आम के गूदे को तरह-तरह से सुरक्षित करके भी रखते हैं. भारतीय प्रायद्वीप में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है. ईसा पूर्व चैथी या पांचवीं सदी में यह पूर्वी एशिया पहुंचा. जबकि पूर्वी अफ्रीका दसवीं शताब्दी के बाद पहुंचा. आम की प्रजातियों का निर्धारण मूलतः उनकी अपनी एक विशिष्ट महक और स्वाद से तय होती है. प्रजातियों के हिसाब से हापुस या अलफांसो देश का सबसे सुंदर और स्वादिष्ट आम है. इसकी विदेशों में बहुत मांग है इस कारण भी यह बहुत महंगा होता है. मार्च में आ जाने वाला हापुस शुरू में 600 से 1000 रूपये दर्जन तक बिकता है. इसके अलावा देश की और कई मशहूर आम प्रजातियों में से नीलम, बादाम, तोतापरी, लंगड़ा, सिंदूरी, दशहरी, रत्नागिरी, केसरिया, लालपत्ता आदि हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें