- रेटिंग: पांच में से साढ़े तीन स्टार
- निर्माता: विनोद भानुषाली
- लेखकः दीपक किंगरानी
- निर्देशक: अपूर्व सिंह कार्की
- कलाकार: मनोज बाजपेयी,सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ,विपिन शर्मा, अड्जिा,दुर्गा शर्मा,प्रियंका सेटिया, जयहिंद कुमार, व अन्य
- अवधिः दो घंटे 12 मिनट
- ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5, 23 मई से
हमारा देश हमेषा से एक धर्म भीरू देश रहा है.धर्म के नाम पर आम जनता को ठगने की हजारों कहानियां मौजूद हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान छद्म वेश धारी साधु संत व बाबाओं ने न सिर्फ जनता को लूटा बल्कि नाबालिग लड़कियों का यौन षोशण करने से पीछे नहीं रहे. कुछ तो अब जेल की सलाखों के पीछे हैं.ऐसे ही सत्य घटनाक्रमों पर फिल्मसर्जक अपूर्व सिंह कार्की फिल्म ‘‘सिर्फ एक बंदा काफी है’’ लेकर आए हैं,जो कि 23 मई से ओटीटी प्लेटफार्म ‘जी 5’ पर स्ट्रीम होगी. लेकिन फिल्मकार ने जमकर अंधविष्वास भी परोसा है. बलात्कार के आरोपी बाबा के खिलाफ अदालत में मुकदमा लड़ने वाले वकील पी सी सोलंकी को भगवान षिव का बहुत बड़ा भक्त दिखाया है. तो वहीं रामायण से एक कहानी सुनायी गयी है,जिसे कम लोगों ने सुनी होगी.फिल्म देखते समय लोगों को आसाराम बापू व उनके बेटे की याद आ जाए तो आष्चर्य नही होना चाहिए. फिल्म ‘‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ मूलतः एक छोटे शहर के वकील पूनमचंद सोलकी के जीवन पर आधारित कहानी है.यह उन पूनमचंद सोलंकी के साहस की दास्तान है,जिन्होंने देश के सबसे चर्चित मामलों में से एक में एक नाबालिग लड़की की तरफ से पैरवी कर लाखों अनुयायियों वाले बाबा को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया था.एक साधारण सा सेशंस कोर्ट (सत्र न्यायालय) का वकील जो इन दिग्गज वकीलों की नजीरें पढ़ पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ाता रहा है, इनके साथ फोटो खिंचाने, इनके साथ बैठने तक को एक उपलब्धि मानता है. वही वकील जब अपनी मुवक्किल के लिए इनके सामने अकाट्य तर्क रखता है तो यह हिंदी सिनेमा का एक ऐसा कोर्ट रूम ड्रामा बनता है,जिसे देखना हर किसी के लिए जरुरी है.
कहानीः
फिल्म की कहानी 2013 को कमला नगर पुलिस थाना,दिल्ली से षुरू होती है,जहां सोलह साल की लड़की अपने माता (दुर्गा शर्मा) व पिता (जयहिंद कुमार) के साथ शक्तिषाली बाबा के खिलाफ बलात्कार की षिकायत लिखाने जाती है.पुलिस हकरत में आ जाती है.एफआईआर दर्ज कर नू का मेडिकल जांच भी करा दी जाती है और अंततः बाबा को उनके जोधपुर आश्रम से गिरफ्तार जेल भेज दिया जाता है.मामला अदालत पहुॅचता है.अदालत से बाबा को जमानत नही मिलती.लेकिन उसके बाद नू के वकील,बाबा के आदमी से दस करोड़ रूपए की मांग करते हैं,जिसे नू के पिता सुन लेते हैं.वह पुलिस इंस्पेक्टर को खबर करते हैं,वह पुलिस इंस्पेक्टर नू के माता पिता को अन्य वकील पी सी सोलंकी (मनोज बाजपेयी ) से मिलवाता है.सोलंकी नू को समझाते है कि उसे ताकत से खड़े रहना होगा.यह मुकदमा लड़ना आसान नही होगा.अदालत में मुकदमा षुरू होता है.बाबा का मुकदमा उनके वकील शर्मा (विपिन शर्मा ) लड़ते हैं.कानूनी दांव पेच खेले जाते हैं.बाबा के बेटे को भी बलात्कार के आरोप में सूरत से गिरफ्तार कर लिया जाता है.बाबा के इषारे पर चार गवाहों की हत्या हो जाती है.पुलिस नू व उसके परिवार तथा वकील पी सी सोलंकी को सुरक्षा प्रदान करती है.अदालत में बाबा के वकील आस्था का सवाल उठाते हुए कहते है-‘‘मेरे क्लाइंट देश कीआस्था के प्रतीक है.’पांच साल के कानूनी दांव पेच के बाद 2018 में अदालत अपना फैसला सुनाते हुए बाबा को सजा सुना देती है.
लेखन व निर्देशनः
फिल्म के पटकथा लेखक दीपक किंगरानी ने अंग्रेजी शब्दांे का उपयोग किए बगैर हिंदी में ही काफी कसी हुई पटकथा लिखी है.कुछ संवाद अच्छे बन पड़े हैं.फिल्म की गति कुछ धीमी है.फिल्म की खासियत यह है कि यह आम बौलीवुड फिल्मांे से कोसों दूर हैं.फिल्म की विशयवस्तु की संजीदगी को देखते हुए अदालत के अंदर जोरदार चिल्लाने वाली बहस या मेलोड्ामैटिक दृष्य नही है.पीड़िता लडकी से भी आम फिल्मों की तरह सवाल नही किए गए हैं.पर यह फिल्म पाॅक्सो और बलात्कार के जुर्म से जुड़े हर बारीक कानून की जाने अनजाने दर्षक को जानकारी भी देती है.कोर्ट रूम ड्ामा वाली फिल्म कहीं भी विशय से भटकती नही है.इसीलिए इसमें नाच गाने का भी अभाव है.षुरू से अंत तक वास्तविकता के करीब रहने, विशय की संजीदगी और नाजुकता पर लेखक दीपक किंगरानी और निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की ने कहीं कोई समझौता नही किया है.कहानी के केंद्र में बलात्कार है,मगर फिल्मकार ने इसे भुनाने के लिए यौन हमले को स्पष्ट रूप से चित्रित नहीं किया है.फिल्म में कहीं कोई असंवेदनशील तरीके के संवाद नही है.षायद विवादों से बचने के लिए लेखक व निर्देशक ने वकील पी सी सोलंकी को न सिर्फ भगवान षिव का भक्त दिखाया, बल्कि भगवान षंकर व पार्वती के बीच रावण को माफ करने बातचीत वाली कहानी भी सोलंकी के मुंह से सुनवायी है.पर ऐसा करके फिल्म कहंी न कहीं अंधविष्वास को भी बढ़ावा देने का काम करती है.मगर अदालत के अंदर कुछ दृष्य खलते हैं,जब पी सी सोलंकी के किरदार में मनोज बाजपेयी लोगों को हंसाने के लिए अभिनय करते हैं. इसे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी.
अभिनयः
मनोज बाजपेयी की खूबी है कि वह हर किरदार में डूब जाते हैं और किरदार के अनुरूप ही अपनी षारीरिक बनावट व लुक भी गढ़ते हैं.जोधपुर के छोटे शहर के वकील पी सी सोलंकी के किरदार में भी मनेाज बाजपेयी पूरी तरह से डूबे हुए हैं.उन्होने वहां की भाषा भी पकड़ी है.वह सोलंकी के अंतर्द्वंद्वों और शुष्क हास्य को अपनी ट्रेडमार्क शैली में बड़ी कुशलता से सामने लाते हैं. नू के किरदार में अद्रीजा का अभिनय भी कमाल का है.उसने 16 वर्ष की बलात्कार पीड़िता लड़की के दर्द को बाखूबी पेश किया है.जब अदालत में नू कहती है, ‘मेरे साथ यह उस इंसान ने किया,जिसे मैंने भगवान माना.’ तो पूरी कहानी का सार बस अद्रिजा की आंखों में इस दौरान आए आंसुओं में सिमट आता है.बचाव पक्ष के वकील के बचाव पक्ष के वकील शर्मा के किरदार में अभिनेता विपिन शर्मा ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि अभिनय में वह किसी से कम नही है.बाबा के किरदार में सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ की प्रतिभा को जाया किया गया है.नू की मां के किरदार में दुर्गा शर्मा और पिता के किरदार में जय हिंद कुमार का अभिनय ठीक ठाक है.