निर्देशक और एडिटर मनोज शर्मा से जानें उनके संघर्ष की कहानी

मैं आया तो था हीरो बनने, लेकिन 6 महीने में पता चल गया कि मुझे हीरो नहीं निर्देशक बनने की जरुरत है, इसलिए मेरे संघर्ष का दौर कम समय तक चला और आज मैने एक फिल्म डायरेक्ट की है, हँसते हुए कहते है निर्देशक, पटकथा लेखक, एडिटर मनोज शर्मा, उन्होंने एक फिल्म ‘देहाती डिस्को’ का निर्माण किया है, जिसे वे अब थिएटर में रिलीज किया जाएगा, आइये जाने उनके संघर्ष की कहानी उनकी जुबानी.

मिली प्रेरणा

बचपन से ही फिल्मों में काम करने की इच्छा रखने वाले मनोज शर्मा उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के खुर्जा से है. खुर्जा में परिवारवाले क्रोकरी का व्यवसाय करते है, लेकिन मनोज को इस व्यवसाय में काम करना पसंद नहीं था,घर में सबसे छोटे होने की वजह से वे चंचल स्वभाव के थे, किसी का ध्यान उन पर अधिक नहीं था, इसलिए बी.कॉम. की फर्स्ट इयर पूरा करने के बाद वे मुंबई आ गए. मनोज को फिल्में देखने का बहुत शौक था,वे अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, धर्मेन्द्र आदि प्रसिद्ध कलाकारों की हर फिल्म देखा करते थे और फिल्म ने ही उन्हें इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी है.उनके परिवार वालों ने पहले उन्हें मुंबई आने से मना किया था, लेकिन बाद में उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने के लिए सहयोग भी दिया

कला को दी अहमियत

मनोज ने कई फिल्मों में निर्देशक का काम किये है, लेकिन उनकी ये फिल्म बहुत खास है, जिसमे उन्होंने भारतीय कला को आगे बढाने वाली एक इमोशनल ड्रामा फिल्म, जो पिता और बेटे की है. मनोज कहते है कि इसकी कहानी से मैं बहुत प्रभावित हुआ और इसे बनायीं. मैं अधिकतर कॉमेडी फिल्में बनाता हूं.

संघर्ष कैरियर की

मनोज अपने संघर्ष के बारें में कहते है कि मैं एक छोटे शहर से आया हूं. जैसा सभी जानते है कि छोटे शहरों में रहने वालों को बहुत कम फ़िल्मी दुनिया के बारें में पता होता है. सभी यहाँ हीरों बनने ही आते है, मैं भी हीरों बनने ही आया था, लेकिन 6 महीने के अंदर पता चल गया कि मैं हीरों नहीं बन सकता, क्योंकि ऑडिशन दिया, पर किसी ने मुझे हीरो बनने का मौका नहीं दिया. फिर मैंने मेरे एक परिचित की सहायता से फिल्म तहलका के लिए एडिटिंग का काम करने लगा. इस तरह से मैं एडिटिंग और निर्देशन में जुड़ गया और कई फिल्में बनायी. इससे मुझे प्रैक्टिकल ज्ञान अधिक मिला. इसके बाद पुलिस वाला गुंडा, माँ, आदि कई फिल्मों में निर्देशक और एडिटिंग का काम करने लगा. मुझे पहले लगता था कि फिल्मों में हीरो की अधिक क़द्र होती है, लेकिन बाद में पता चला कि एक निर्देशक, एडिटर और कैमरामैन को भी बहुत सम्मान मिलता है. इस क्षेत्र में पहले लर्निंग एसिस्टंट के आधार पर रखा जाता है, जो निर्देशक के साथ जरुरी काम करता है और फिल्म डायरेक्शन भी सीखता रहता है. इसके अलावा लोगों से परिचय बढती है और नया काम मिलने में आसानी होती है.

की मेहनत

पहले जब मनोज काम की तलाश कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात निर्देशक अनिल शर्मा से हुई और उन्हें काम मिला. वे कहते है कि मैं उनका 10वीं नंबर का निर्देशक था, जिसका काम भागा-दौड़ी के अलावा कुछ नहीं था. इस काम में किसी को कुर्सी ला देना,पानी देना, ड्रेस को आर्टिस्ट तक पहुँचाना आदि करता था और समय मिलने पर डायरेक्शन को देखता था. एडिटिंग में होने की वजह से मैं अधिकतर डायरेक्टर के साथ रहता था. इससे मुझे काम मिलना आसान हुआ.

इंडस्ट्री में काम करना नहीं आसान

वे आगे कहते है कि कड़े अनुभव मुझे शुरू में मिले, जब मैं एक्टर बनने की कोशिश कर रहा था और सभी प्रोडक्शन हाउस में घूम रहा था, लेकिन किसी ने अभिनय में नहीं लिया. करीब 6 महीने में ही मुझे पता चल गया था की मैं हीरों नहीं बन सकता. दरअसल जब मैं अपने शहर में था, तब इंडस्ट्री की कोई जानकारी नहीं थी, लगता था, सबकुछ आसानी से हो जायेगा, लेकिन मुबई आने के बाद ही पता चला कि यहाँ कुछ भी आसान नहीं है. जब सभी ने एक्टिंग देने से मना किया, तो मैं एक वीडियो लाइब्रेरी में गया और खुद संवाद लिखकर शूट करने को कहा और जब क्लिपिंग देखी तो मुझे समझ आ गया कि एक्टिंग मुझे नहीं आती. मुझे कुछ दूसरा काम करने की जरुरत है.

नहीं भूलता बीतें दिन

मनोज अपनी जर्नी में पीछे मुड़कर उन लोगों को देखते है, जिन लोगों ने उन्हें मुसीबत के समय काम किया.  ड्रीम एक्टर आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव के जैसे नए कलाकार है,जो बहुत अच्छा अभिनय करते है. इसके अलावा मेरी इच्छा राजकुमार हिरानी के जैसे फिल्में डायरेक्ट करने की है. एक अच्छी कहानी, प्रतिभावान कलाकारों के साथ करने की इच्छा रखता है.

है गोल्डन पीरियड

मनोज इस दौर को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का गोल्डन पीरियड कहते है, जो बहुत ही अच्छा है, जिसमें सभी नए कलाकारों को काम करने का अवसर मिल रहा है. कम बजट में फिल्में बन रही है, इसमें किसी को भी घाटा नहीं हो रहा है. यू-ट्यूब पर बनी एक आकर्षक क्लिप भी उस व्यक्ति के लिए लाभदायी हो सकता है अगर उसे लोग पसंद करें. इस समय सारे निर्देशक, टेक्नीशियन, सारे कलाकार सभी के लिए काम है. बड़ी फिल्में न मिलने पर, इन नए कलाकारों को लेकर वेब सीरीज बनाया जा सकता है.मैंने धर्मेन्द्र और मधु को लेकर फिल्म खली-बली बनाई है. निर्माता के अनुसार कलाकारों का चयन करना पड़ता है, ताकि फिल्म बजट के अंदर बने. इसके अलावा मैंने कोविड पर एक फिल्म ओंटू बनाई है, जो ओटीटी पर आने वाली है. मैं किसी भी फिल्म को उत्तेजित करने वाली नहीं बनाता, बैर और दुश्मनी को फिल्म में नहीं आने देना चाहिए.

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