मान्या सिंह
रनर अप, मिस इंडिया 2020
ज ब आप के सपने हकीकत में बदल जाते हैं, तो जिंदगी खूबसूरत लगने लगती है. कुछ ऐसा ही अनुभव किया है उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के देवरिया जिले की मिस इंडिया 2020 रनर अप मान्या सिंह ने, जो इस ताज को पहन कर बहुत उत्साहित हैं. उन के हिसाब से हर लड़की के सिर के ऊपर एक ताज होता है, जिसे मेहनत और लगन से ही पाया जा सकता है. मान्या अभी मुंबई में रहती हैं. उन के पिता ओमप्रकाश सिंह मुंबई में औटोरिकशा चलाते हैं और मां मनोरमा देवी पार्लर में काम करती हैं.
हंसमुख स्वभाव की मान्या इस लंबी जर्नी के बारे में बताते हुए भावविभोर हुईं और आंखों से आंसू भी छलके, लेकिन जीत की चमक उन के चेहरे पर थी. बातचीत के कुछ खास अंश इस प्रकार हैं:
जब आप का नाम ले कर अवार्ड की घोषणा की गई, तब आप को कैसा लगा?
यह मेरे जीवन का सब से सुंदर तोहफा है, जिसे मैं ने काफी सालों की कोशिश के बाद पाया है. इस के द्वारा मैं यह सिद्ध करना चाहती हूं कि कोई भी व्यक्ति रंगरूप, नैननक्श, अमीरगरीब आदि से नहीं आंका जाता, बल्कि उस की मेहनत और लगन ही उसे मंजिल तक पहुंचाने में मदद करती है.
जब मेरे नाम की घोषणा की गई, तो मुझे थोड़ी दूर स्टेज तक जाने में मुश्किल हो रही थी और इतने समय में मेरे जीवन का पूरा संघर्ष मेरी आंखों के आगे घूम गया. मुझे लगा कि अंत में मैं ने बाजी जीत ली है. फिर मैं ने क्राउन को अपने हाथों से पकड़ा, एक सुंदर एहसास था.
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क्राउन पहनने के बाद अब आप ने आगे क्याक्या करने के बारे में सोचा है?
जितना मैं ने सोचा था, उस से कहीं अधिक मुझे मिला और मेरा सबकुछ पूरा हो गया है. यह क्राउन मुझे मेरे पक्के इरादे की वजह से मिला है, इसलिए आने वाले समय में जो भी मुझे मिलेगा, उस का मैं दोनों हाथों से वैलकम करूंगी. मेरी इस जीत के बाद हर लड़का, हर लड़की यह सोच पाएगी कि अगर मान्या को सफलता मिल सकती है, तो मुझे भी मिलेगी.
क्या आप को स्टेज पर जाने से पहले इस जीत का अंदाजा था?
बिलकुल भी नहीं था, लेकिन जब मैं स्टेज पर गई, तो रिजल्ट कुछ भी हो, पता था कि मैं अपना बैस्ट ही दूंगी.
गांव से शहर कैसे आना हुआ? शहर में कैसे सर्वाइब किया?
पैसे के अभाव में मैं ने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और बूआ के घर जा कर रहने लगी थी. वहां मैं दिन में काम करती और रात में तेल की ढिबरी के आगे पढ़ती, पर बूआ को मिट्टी के तेल की गंध पसंद नहीं थी, इसलिए मैं बाहर लैंप पोस्ट के नीचे बैठ कर पढ़ने लगी. कुछ दिनों बाद मैं वापस गांव आ गई और मेरी मां ने स्कूल अथौरिटी से बात कर मुझे बिना एडमिशन के क्लास में जाने की अनुमति मांगी, जो मुझे मिल गई. मैं केवल परीक्षा की फीस दे कर ऐग्जाम देती थी.
ऐसा करतेकरते मैं ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की. उस दौरान घर में कुछ कहासुनी होने की वजह से मैं 14 साल की उम्र में महिला जनरल बोगी ट्रेन में बैठ कर मुंबई आ गई. मैं ने उस दिन मन में सोच लिया कि अगर मैं आज घर से निकलने का यह निर्णय नहीं ले सकी, तो आगे कभी भी लेना संभव नहीं हो सकेगा. इसी सोच के साथ बिना टिकट 3 दिन बिना खाए मुंबई आ गई. हालांकि मातापिता और भाई भी मेरे पीछेपीछे आ गए थे, क्योंकि उन्हें पता था कि मैं मुंबई में ही मिलूंगी.
यहां आने पर पिता औटोरिकशा चलाने लगे, जिस से घर का खर्च पूरा नहीं हो पा रहा था, इसलिए मैं ने पिज्जा हट में काम करना शुरू किया. वहां भी पहले दिन एक बौक्स भर नीबू निचोड़ने को कहा गया.
उस दिन मेरे हाथ में छाले पड़ गए. इस के बाद मैं ने कौलसैंटर में काम किया, साथ में पढ़ाई भी चलती रही. ब्यूटी पेजैंट में जाना मेरा सपना था, इसलिए मुझे उस के लिए खुद को ग्रूम करना जरूरी था. कौलसैंटर ने इस में बहुत सहयोग दिया.
वहां मैं ने लोगों से बातें करना, कंप्यूटर चलाना, भाषा को ठीक करना आदि छोटीछोटी चीजों को सीखा. मेरा अलगअलग जगह पर काम करने का मतलब खुद को ग्रूम करना ही प्रमुख था. इतना ही नहीं मैं ने कई जगह ब्यूटी पेजैंट में अपना नाम दिया, वहां कुछ में मैं जीती, तो कुछ ने मेरे चेहरे, रंग और बोलचाल को ले कर मजाक बनाया. इस सब के बावजूद मैं कभी टूटी नहीं.
परिवार का सहयोग कितना रहा?
मेरे परिवार ने हमेशा मेरा साथ केवल परिवार बन कर नहीं वरन एक दोस्त बन कर दिया. मेरी मां हमेशा कहती रहीं कि जो मेहनत अधिक करते हैं, उन्हें ही समस्या आती है. उन्होंने भरोसा दिलाया कि मुझ से बढ़ कर उन के जीवन में कोई नहीं है. मेरी यह कोशिश मुझे मंजिल तक अवश्य पहुंचाएगी. आज मेरी कामयाबी ने मातापिता को खुशी के आंसू दिए हैं और वे गर्वित भी हैं.
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आप की इस जीत से यूथ को कितना प्रोत्साहन मिलेगा?
वे यह सोचने पर मजबूर होंगे कि वे जिस किसी भी बैकग्राउंड या स्थान से आए हों, अपने सपने को पूरा कर सकते हैं. उन्हें कोई नहीं रोक सकता. ड्रीम बियौंड योर इमैजिनेशन होता है. उसे प्राप्त करने की कोशिश करें और खुद पर विश्वास रखें.
गृहशोभा के जरीए क्या मैसेज देना चाहती हैं?
‘‘तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है, तू चल, तेरे वजूद को समय की भी तलाश है.’’ इन पंक्तियों को आप याद रखें
और जो भी सपना है, उसे पूरा करने की कोशिश करें.