जबरन यौन संबंध पति का विशेषाधिकार नहीं

विवाह बाद पत्नी से जबरन सैक्स करने को बलात्कार कहा जाने वाला कानून बनाए जाने के खिलाफ जो बातें कही जा रही हैं वे सब धार्मिक नजरिए से कही जा रही हैं. इन का मकसद यह कहना है कि चूंकि हिंदू धर्म में विवाह एक पवित्र बंधन है, इसलिए वैवाहिक बलात्कार जैसी किसी बात के लिए यहां कोई जगह नहीं. जब से विवाहितों के बीच बलात्कार को ले कर चर्चा शुरू हुई तब से यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि रोजमर्रा की इस बहुत ही सहज, सरल व सामान्य बात को ले कर इतना शोर मचाने का कोई औचित्य नहीं है.

कभी न कभी हर महिला अपने सुख के लिए नहीं, मात्र पति की यौन संतुष्टि के लिए बिस्तर पर बिछती है. शादी को ले कर उस ने जो सपना बुना होता है वह चूरचूर हो जाता है. कई नवविवाहित युवतियों का पहली रात का अनुभव बड़ा दर्दनाक होता है. इतना कि सैक्स उन के लिए आनंद का नहीं, बल्कि डर का विषय बन कर रह जाता है. कुछ इस डर को रोज झेलती हैं और फिर यह उन की आदत में शुमार हो जाता है.

दरअसल, इस तरह का मामला तब तकलीफदेह हो जाता है जब किसी महिला के पति का संभोग हिंसक यौन हमले का रूप ले लेता है और वह महिला महज यौन सामग्री के रूप में तबदील हो जाती है. वह असहाय हो जाती है. तब जाहिर है, आपसी परिचय और भरोसे की नींव हिल जाती है. कुछ मामलों में वजूद का आपसी टकराव ही ऐसे संबंध की सचाई बन कर रह जाता है. कुछ ज्यादा ही सोचता है. एक लड़की का बदन किस हद तक खुला रहना शोभनीय या अशोभनीय है या फिर किसी बच्ची के लड़की से युवती बनने के रास्ते में कौन से शारीरिक संबंध सामाजिक रूप से स्वीकृत हैं, इस सब के बारे में सामाजिक व धार्मिक फतवे जारी किए जाते हैं. जबकि इसी समाज में चाचा, मामा और यहां तक कि पिता और भाइयों द्वारा भी लड़कियां बलात्कार की शिकार हो रही हैं. तो क्या यह भी धर्म और संस्कृति का हिस्सा है? बहरहाल, अब एक और सांस्कृतिकसामाजिक फतवे को सरकारी स्वीकृति दिलाने की कोशिश की जा रही है और यह स्वीकृति है वैवाहिक संबंध में बलात्कार को ले कर. कहा जा रहा है कि धर्म के अनुसार हुए विवाह में बलात्कार की गुंजाइश नहीं है.

गौरतलब है कि निर्भया कांड के बाद वर्मा कमीशन द्वारा वैवाहिक बलात्कार को बलात्काररोधी कानून में शामिल करने की सिफारिश से हड़कंप मच गया. मोदी सरकार में मंत्री रहे हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने साफसाफ शब्दों में कहा है कि वैवाहिक रिश्ते में बलात्कार जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती. इस के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ किया कि विधि आयोग ने बलात्कार संबंधी कानून में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की सूची में शामिल नहीं किया है और न ही सरकार ऐसा करने की सोच रही है.

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अंदेशा यह है कि इस से परिवारों के टूटने का खतरा बढ़ जाएगा. इस खतरे को टालने के लिए हमारा समाज पत्नियों की बलि लेने को तैयार है. तर्क यह भी कि भारतीय समाज में केवल विवाहित यौन संबंध को ही सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है और इस पर पत्नी और पति दोनों का ही समान अधिकार है. अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा भी तो भारत की धार्मिक संस्कृति का हिस्सा है. लेकिन ऐसा होता कहां है? ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यौन संबंध बनाने में पत्नी की इच्छा न होने की स्थिति में क्या ऐसा करने का अधिकार अकेले पति को मिल जाता है? जबरन संबंध बनाने का अधिकार अकेले पति  का कैसे हो सकता है? पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने को आखिर क्यों बलात्कार नहीं माना जाना चाहिए?

आइए, जानें कि भारतीय कानून इस बारे में क्या कहता है. कोलकाता हाई कोर्ट के वकील भास्कर वैश्य का कहना है कि भारतीय कानून के तहत पति को केवल 2 तरह के मामलों में बलात्कारी कहा जा सकता है- पहला अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो और पति उस के साथ जबरन यौन संबंध बनाए तो कानून की नजर में यह बलात्कार है और दूसरा, पतिपत्नी के बीच तलाक का मामला चल रहा हो, कानूनी तौर पर पतिपत्नी के बीच विच्छेद यानी सैपरेशन चल रहा हो और पति पत्नी की रजामंदी के बगैर जबरन यौन संबंध बनाता है तो इसे भारतीय कानून में बलात्कार कहा गया है. इस के लिए सजा का प्रावधान भी है. हालांकि इन दोनों ही मामलों में पति को जो सजा सुनाई जा सकती है वह बलात्कार के लिए तय की गई सजा की तुलना में कम ही होती है.

विवाह की पवित्रता पर सवाल

सुनने में यह भी बड़ा अजीब लगता है कि विवाहित महिला कानून यौन संबंध के लिए पति को अपनी सहमति देने को बाध्य है यानी पत्नी यौन संबंध के लिए पति को मना नहीं कर सकती. कुल मिला कर यहां यही मानसिकता काम करती है कि चूंकि हमारे यहां विवाह को पवित्र रिश्ते की मान्यता प्राप्त है और इस का निहितार्थ संतान पैदा करना है, इसलिए पतिपत्नी के बीच यौन संबंध बलात्कार की सीमा से बाहर की चीज है. तब तो इस का अर्थ यही निकलता है कि यौन संबंध बनाने की पति की इच्छा के आगे पत्नी की अनिच्छा या उस की असहमति कानून की नजर में गौण है.

ऐसे में यह कहावत याद आती है कि मैरिज इज ए लीगल प्रौस्टिट्यूशन यानी पत्नी का शरीर रिस्पौंस करे या न करे पति के स्पर्श में प्रेम की छुअन का उसे एहसास मिले या न मिले पति की जैविक भूख ही सब से बड़ी चीज है. यह बात दीगर है कि जब प्रेमपूर्ण स्पर्श पर पति की जैविक भूख हावी हो जाती है तब यह स्थिति किसी भी पत्नी के लिए किसी अपमान से कम नहीं होती. जाहिर है, सभी विवाह पवित्र नहीं होते. हमारे समाज में बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं, जिन के मन में कभी न कभी यह सवाल उठाता है कि क्या वाकई सैक्स पत्नियों के लिए भी सुख का सबब हो सकता है? जिन के भी मन में यह सवाल आया, उन के लिए शादी कतई पवित्र रिश्ता नहीं हो सकता. रवींद्रनाथ ठाकुर ने भी अपने एक अधूरे उपन्यास ‘योगायोग’ में वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा उठाया है. उन्होंने उपन्यास की नायिका कुमुदिनी के जरीए यही बताने की कोशिश की है कि सभी विवाह पवित्र नहीं होते. शादी के बाद पति मधुसूदन के साथ बिताई गई रात के बाद कुमुदिनी ने आखिर अपनी करीबी बुजुर्ग महिला से पूछ ही लिया कि क्या सभी पत्नियां अपने पति को प्यार करती हैं?

गौरतलब है कि यह उपन्यास 1927 में लिखा गया था. जाहिर है, वैवाहिक बलात्कार इस से पहले एक सामाजिक समस्या रही होगी और नारीवादी रवींद्रनाथ ठाकुर ने इस समस्या को अपने इस उपन्यास में बड़ी शिद्दत से उठाया है.

वैवाहिक बलात्कार और राजनेता

वैवाहिक बलात्कार पर यूनाइटेड नेशंस पौप्यूलेशन फंड का एक आंकड़ा कहता है कि भारत में विवाहित महिलाओं की कुल आबादी की तीनचौथाई यानी 75% महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में अकसर बलात्कार का शिकार होती हैं. मजेदार तथ्य यह है कि आज भी वैवाहिक बलात्कार के आंकड़े पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हैं. अगर इस से संबंधित आंकड़े उपलब्ध होते तो समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाना और भी सहज होता, कभीकभार ही कोई मामला दर्ज होता है. विश्व के ज्यादातर देशों में वैवाहिक बलात्कार की गिनती दंडनीय अपराधों में होती है. यूनाइटेड नेशंस पौप्यूलेशन फंड के इस आंकड़े के आधार पर ही डीएमके सांसद कनीमोझी ने भी बलात्कार विरोधी कानून में बदलाव की मांग की थी. इसी मांग के जवाब में मोदी सरकार में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री हरिभाई पारथी ने बयान दिया कि वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारतीय संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था, मूल्यबोध और धार्मिक आस्था के अनुरूप नहीं है. जाहिर है, 16 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में निर्भया कांड की जांच के लिए गठित किए गए वर्मा कमीशन की रिपोर्ट की हरिभाई पारथी ने अनदेखी कर के बयान दिया था. गौरतलब है कि वर्मा कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में वैवाहिक बलात्कार को भी बलात्कार विरोधी कानून में शामिल करने की सिफारिश की थी. हालांकि हमारा बलात्कार संबंधी कानून तो यही कहता है कि यौन संबंध बनाने में महिला की सहमति न हो तो उस की गिनती बलात्कार में होगी. लेकिन पति द्वारा बलात्कार को इस से जोड़ कर देखने में सरकार को भी गुरेज है.

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शादी एकतरफा यौन संबंध की छूट नहीं

इस विषय पर आम चर्चा के दौरान मध्य कोलकाता में एक डाकघर में कार्यरत संचिता चक्रवर्ती बड़ी ही बेबाकी के साथ कहती हैं कि कानून की बात दरकिनार कर दें. जहां तक यौन संबंध में महिला की सहमति का सवाल है तो उस का निश्चित तौर पर अपना महत्त्व है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता. विवाह का प्रमाणपत्र इस महत्त्व को कतई कम नहीं कर सकता. यौन संबंध में पतिपत्नी दोनों अगर बराबर के साझेदार हों तो वह सुख दोनों के लिए अवर्णनीय होगा. विवाह बंधन जबरन यौन संबंध का लाइसैंस किसी भी कीमत पर नहीं हो सकता.

संचिता कहती हैं कि मोदी सरकार में मंत्री के बयान की बात करें तो उस से तो यही लगता है कि उन के हिसाब से भारतीय संस्कृति में पत्नी की सहमति के बगैर यौन संबंध बनाने की पति को छूट है. भारत में विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का वास है. तथाकथित भारतीय संस्कृति में विवाहित महिला पुरुष की बांदी है, भोग की वस्तु है. इसीलिए वैवाहिक बलात्कार उन की तथाकथित भारतीय संस्कृति में लागू नहीं होता. अमेरिका के शिकागो में एक अस्पताल में कार्यरत भारतीय मूल की सुष्मिता साहा का कहना है कि इस विषय को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और वैवाहिक बलात्कार पर सख्त कानून होना ही चाहिए. आज भारत में जिस संस्कृति की दुहाई दी जा रही है, वही स्थिति कभी ब्रिटेन या न्यूयौर्क में थी. पर अब वहां वैवाहिक बलात्कार के बढ़ते मामलों को देखते हुए कड़े कानून बनाए गए हैं. फिर भारत में यह क्यों नहीं संभव हो सकता?

सुष्मिता कहती हैं, ‘‘जबरन यौन संबंध पति का विशेषाधिकार उसी तरह नहीं हो सकता, जिस तरह विवाह का प्रमाणपत्र यौन हिंसा की छूट नहीं देता. इसलिए वैवाहिक बलात्कार भी दरअसल दूसरे बलात्कार की ही तरह यौन हिंसा का ही एक मामला है, ऐसा न्यूयौर्क के अपील कोर्ट ने अपने बयान में कहा था. लेकिन अगर एक पत्नी के नजरिए से देखें तो वैवाहिक बलात्कार अन्य बलात्कार से इस माने में अलग है कि यहां यौन हिंसा को महिला का सब से करीबी व्यक्ति अंजाम देता है. यही बात किसी पत्नी को जीवन भर के लिए झकझोर देती है.

विवाह और यौन स्वायत्तता

भारतीय संस्कृति में पारंपरिक विवाह के तहत लड़कालड़की की पारिवारिकसामाजिक हैसियत को देखपरख कर वैवाहिक रिश्ते तय होते हैं. ऐसे रिश्ते में जाहिर है परस्पर प्रेम व मित्रता शुरुआत में नहीं होती है. हालांकि कुछ समय के बाद पतिपत्नी के बीच प्रेम का रिश्ता बन जाता है. पर ऐसे ज्यादातर विवाह एकतरफा यौन स्वायत्तता का मामला ही होते हैं. मोदी सरकार के मंत्री ने जिस भारतीय संस्कृति की बात की है उस में नारीजीवन की इसी सार्थकता का प्रचार सदियों से किया जाता रहा है और इस संस्कृति में औरत पुरुष के खानदान के लिए बच्चे पैदा करने का जरीया और पुरुष के लिए यौन उत्तेजना पैदा करने की खुराक मान ली गई है.हमारी परंपरा में लड़कियां अपने मातापिता को खुल कर सब कुछ कहां बता पाती हैं? खासतौर पर नई शादी का ‘लव बाइट’ आगे चल कर पति का ‘वायलैंट बाइट’ बन जाए तो शादी के नाम पर लड़की अकसर अपने भीतर ही भीतर घुट कर रह जाती है. माना ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता है.

2013 में दिल्ली में पारंपरिक विवाह के बाद नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए बैंकौक पहुंचा. हनीमून के दौरान लड़की के साथ उस के पति पुनीत ने क्रूरता की तमाम हदें पार कर के बलात्कार किया. लौट कर लड़की ने पुलिस में शिकायत दर्ज की. पुलिस ने दीनदयाल अस्पताल में लड़की की जांच करवाई तो बलात्कार की पुष्टि हुई. इस के बाद भारतीय दंड विधान की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दायर किया. साफ है कि वैवाहिक बलात्कार पर हमारा कानून एकदम से खामोश भी नहीं है. इस के लिए भी हमारे यहां प्रावधान है. भारतीय दंड विधान की घरेलू हिंसा की धारा 498ए के तहत शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न और क्रूरता के लिए सजा का प्रावधान है. इसी धारा के तहत वैवाहिक बलात्कार का निदान महिलाएं ढूंढ़ सकती हैं.

अन्य देशों की स्थिति

चूंकि विकास और सभ्यता एक निरंतर प्रक्रिया है, इसीलिए दुनिया के बहुत सारे देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए कोई कानून नहीं था. लेकिन विमन लिबरेशन ने महिलाओं को अपने अधिकार के लिए आवाज बुलंद करना सिखाया. लंबी लड़ाई के बाद सफलता भी मिली. दोयमदर्जे की स्थिति में बदलाव आया. कहा जाता है कि आज दुनिया के 80 देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए कानूनी प्रावधान हैं. बहरहाल, दुनिया में वैवाहिक बलात्कार को ले कर चर्चा ने तब पूरा जोर पकड़ा जब 1990 में डायना रसेल की एक किताब ‘रेप इन मैरिज’ प्रकाशित हुई. इस किताब में डायना रसेल ने समाज को अगाह करने की कोशिश की है कि वैवाहिक जीवन में बलात्कार को पति के विशेषाधिकार के रूप में देखा जाना पत्नी के लिए न केवल अपमानजनक है, बल्कि महिलाओं के लिए एक बड़ा खतरा भी है.

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2012 में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की आयुक्त भारतीय मूल की नवी पिल्लई ने कहा कि जब तक महिलाओं को उन के शरीर और मन पर पूरा अधिकार नहीं मिल जाता, जब तक पुरुष और महिला के बीच गैरबराबरी की खाई को पाटा नहीं जा सकता. महिला अधिकारों का उल्लंघन ज्यादातर उस के यौन संबंध और गर्भधारण से जुड़ा हुआ होता है. ये दोनों ही महिलाओं का निजी मामला है. कब, कैसे और किस के साथ वह यौन संबंध बनाए या कब, कैसे और किस से वह बच्चा पैदा करे, यह पूरी तरह से महिलाओं का अधिकार होना चाहिए. यह अधिकार हासिल कर के ही कोई महिला सम्मानित जीवन जी सकती है. 1991 में ब्रिटेन की संसद में वैवाहिक संबंध में बलात्कार का मामला उठाया गया था, जो आर बनाम आर के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है. ब्रिटेन संसद के हाउस औफ लौर्ड्स में कहा गया कि चूंकि शादी के बाद पति और पत्नी दोनों समानरूप से जिम्मेदारियों का वहन करते हैं, इसलिए पति अगर पत्नी की सहमति के बिना यौन संबंध बनाता है तो अपराधी करार दिया जा सकता है. इस से पहले 1736 में ब्रिटेन की अदालत के न्यायाधीश हेल ने एक मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया था कि शादी के बाद सभी परिस्थितियों में पत्नी पति से यौन संबंध बनाने को बाध्य है. उस की शारीरिक स्थिति कैसी है या यौन संबंध बनाने के दौरान वह क्या और कैसा महसूस कर रही है, इन बातों के इसलिए कोई माने नहीं हैं, क्योंकि शादी का अर्थ ही यौन संबंध के लिए मौन सहमति है. हेल के इस फैसले को ब्रिटेन में 1949 से पहले कभी किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन 1949 में एक पति को पहली बार पत्नी के साथ बलात्कार का दोषी ठहराया गया.

ब्रिटेन के अलावा यूरोप के कई देशों में वैवाहिक बलात्कार दंडनीय अपराध है. अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों में भी इस के लिए कानून बना कर इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी पत्नी की रजामंदी के बगैर संभोग को बलात्कार करार दिया है. कोर्ट ने अपनी इस घोषणा का आधार हिंदू धर्म को ही बताते हुए कहा है कि हिंदू धर्म में पति और पत्नी की आपसी समझ को ही महत्त्व दिया गया है. इसलिए यौन संबंध बनाने में पति पत्नी की मरजी की अनदेखी नहीं कर सकता. अब जब गरीब राष्ट्र नेपाल घोषित रूप से भी हिंदू राष्ट्र है, वैवाहिक बलात्कार के लिए महिलाओं के पक्ष में कानून बना सकता है तो भारत में क्या दिक्कत है?

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क्यों सहें दर्द चुपचाप

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियां सुनी और सुलझई जाती हैं. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया है, इसलिए वह संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया. दरअसल, आयोग अध्यक्षा टीवी पर लाइव महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं. इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला आयोग की अध्यक्षा को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उस के पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं.

अध्यक्षा को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उस की शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा कि अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो भुगतो. उन का पीडि़ता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

मगर जातेजाते वे यह कहना नहीं भूलीं कि औरतें फोन कर के शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया काररवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इस के बाद से आयोग अध्यक्षा घेरे में आ गईं कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है. बात भले ही आ कर अध्यक्षा की रुखाई पर सिमट गई, लेकिन गौर करें तो मामला कुछ और ही है.

दरअसल, मारपीट की शिकायत ले कर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उस के पति को बुला कर समझए या सास पर रोब जमा कर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया तो तुम्हारी खैर नहीं वरना क्या वजह है कि औरतें शिकायत ले कर आती तो हैं, लेकिन पुलिस के दखल की बात सुनते ही लौट जाती हैं.

जुल्म सहने को मजबूर

ममता बदला हुआ नाम के पति और सास उस पर जुल्म करते हैं. रोतीकलपती वह अपने मायके पहुंच जाती है. पर उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि उन की शिकायत ले कर पुलिस में जाए. कारण, एक डर कि अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गई और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात यह भी कि पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहां जाएगी? ममता 2 बच्चों की मां है और उस का मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अकसर पति, ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत ले कर नहीं जाती है यह सोच कर कि घर की बात घर में ही रहनी चाहिए और फिर अगर पति का घर छूट गया तो वह कहां जाएगी? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.

वूमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इस में रेप छोड़ कर बाकी सारी बातें शामिल हैं. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बातबात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई जिम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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यौन हिंसा

भारत में महिलाओं पर सब से ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे ने 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवालजवाब हुए थे, जिन से पता चला कि शादीशुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा ?ोलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झरखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा पढ़ाईलिखाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते ?िझकती है.

देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती है लेकिन इन में से केवल 0.1% महिलाओं ने ही इस के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है.

हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आ कर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उन्हें बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अकसर मांबाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी? जमाना देख रही हो? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है.

ज्यादा पढ़लिख गई तो फिर लड़का ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा. वगैरहवगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ीलिखी, ऊंचे ओहदे पर चली जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उस के जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है. बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न सम?ो, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुखतकलीफ अगर मां से कहे तो नसीहतें मिलती है कि जहां 4 बरतन होते हैं खटकते ही हैं. यहां तक कि गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपनी ससुराल में टिकी रहे. लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उस के लिए सच में पराया बन गया और जब अपने ही उस की बात नहीं सुन रहे हैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा? और रिश्ता ही बिगड़ेगा, यह सोच कर लड़की चुप रहती है.

आर्थिक निर्भरता नहीं

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहां जाएंगी? बच्चे कैसे पलेंगे? बच्चों व पति के बीच महिलाएं अपनी पढ़ाईलिखाई को भी भूल जाती हैं. उन के पास भी कोई डिगरी है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलीयत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. मगर पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है?

कहने को तो लगभग हर साल औरतमर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होते हैं, रिसर्च होती हैं, कुछ कमेटियां बैठती हैं. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सूराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में जहां शादियों को पवित्र रिश्ते का नाम दिया गया है. वहां एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता. मुंबई की एक महिला ने सैशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उस के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए और जिस के चलते उसे कमर तक लकवा मार गया. इस के साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं.

+???साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना कुदरती बताया और यह भी कहा कि इस के लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. 2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

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मैरिटल रेप क्या है

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उस के साथ सैक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

भारत में क्या है कानून

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता. आईपीसी की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है. यह कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इस में कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सैक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही यह इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबरदस्ती या पत्नी की मरजी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलगअलग अदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सैशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के 4 केस कोर्ट तक पहुंचे, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया. सोशल मीडिया पर इस फैसले को ले कर बहस छिड़ गई.

जैंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी? उन के ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी? तो दूसरे ने कहा उस के चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का यह कानून भारत में 1860 से लागू है. इस के सैक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिस के अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सैक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सैक्स की सहमति छिपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

यह कैसा कानून

मगर दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी 1991 में मैरिटल रेप को यह कहते हुए अपराध की श्रेणी में रख दिया कि छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है. भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता और इसी वजह से कई महिलाएं शादीशुदा जिंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी, 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक एमएनसी ऐग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया कि मैं हर रात उन के लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी, जिसे वे अलगअलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे. जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सैक्स के दौरान मु?ो टौर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैं ने मना किया तो उन्हें यह बात बरदाश्त नहीं होती थी. 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है?

सीनियर ऐडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सैक्शन 498 के तहत सैक्सुअल असौल्ट का केस दर्ज करा सकती है. इस के साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सैक्सुअल असौल्ट का केस कर सकती हैं.

इस के साथ ही अगर आप को चोट लगी है तो आप आईपीसी की धाराओं में भी केस कर सकती हैं. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सुबूत दिखाना मुश्किल होगा. वे कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहां यह कितना सफल रहा है, इस से कितना गुनाह रुका है यह कोई नहीं जानता.

चौकाने वाला सच

1980 में प्रोफैसर बख्शी उन जानेमाने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े कानूनों में संशोधन को ले कर कई सुझव भेजे थे. उन का कहना था कि समिति ने उन के सभी सुझव स्वीकार कर लिए थे सिवा मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझव के. उन का मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सैक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

मगर सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इस का इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियां और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर कर इस अपमानजनक कानून को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वाच और एमनेस्टी इंटरनैशनल ने भी भारत के इस रवैए पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उन का यह भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि यह कानून महिलाओं के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इस में पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी अस्वभाविक है. इसी वजह से इस से संबंधित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खरोचें तो असली चेहरा दिखता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है क्योंकि यहां दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं हैं. पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न कर सकता है.

वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है. बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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एकतिहाई पुरुष मानते हैं कि वे जबरन संबंध बनाते हैं:

द्य इंटरनैशनल सैंटर फार वूमेन और यूनाइटेड नेशंस पौपूलेशन फंड की ओर से 2014 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार एकतिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नी के साथ जबरन सैक्स करते हैं.

द्य नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे: 3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उन के पति जबरन उन के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.

द्य एक सरकारी सर्वे के मुताबिक 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उन के पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं. यूनिवर्सिटी औफ वारविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफैसर रहे उपेंद्र बख्शी का कहना है कि मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वे कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.

हमारे देश की महिलाएं पुरुषों की कितनी हमकदम?

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियाँ सुनी और सुलझाई जाती है. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया इसलिए ये संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया.दरअसल, आयोग अध्यक्ष टीवी पर लाइव में महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं, इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला, आयोग की अध्यक्ष को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उसके पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं. अध्यक्ष को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उसकी शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा ,‘अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो ‘भुगतो’ उनका पीड़िता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

लेकिन जाते-जाते वे कहना न भूलीं कि औरतें फोन करके शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया कार्यवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इसके बाद से आयोग अध्यक्ष घेरे में आ गई कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है ! बात भले ही आकर अध्यक्ष की रुखाई पर सिमट गयी. लेकिन गौर करें तो मसाला कुछ और ही है. दरअसल मारपीट की शिकायत लेकर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उसके पति को बुलाकर समझाए या सास पर रौब जमाकर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया न, तो तुम्हारी खैर नहीं. वरना, क्या वजह है कि औरतें शिकायत लेकर आती तो हैं लेकिन पुलिस की दखल की बात सुनते ही वापस लौट जाती हैं.

ममता, बदला हुआ नाम’ के पति और सास उसपर जुल्म करते हैं. रोती-कलपती वह अपने मायके पहुँच जाती है. पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उनकी शिकायत लेकर पुलिस में जाए. कारण, एक डर की अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गयी और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात ये भी की, पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहाँ जाएगी ?ममता दो बच्चों की माँ है और उसका मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अक्सर पति ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत लेकर नहीं जाती है यह सोचकर की घर की बात घर में ही रहनी चाहिए. और अगर पति का घर छूट गया तो वह कहाँ जाएगी ? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.UN वीमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इसमें रेप छोड़कर बाकी सारी बातें शामिल है. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बात-बात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई ज़िम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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भारत में महिलाओं पर सबसे ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने साल 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवाल-जवाब हुए थे, जिससे पता चला कि शादी-शुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा झेलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा लिखाई-पढ़ाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते झिझकती है.देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं लेकिन इनमें से केवल 0.1 प्रतिशत महिलाओं ने ही इसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराई है.

लेकिन हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आकर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं ?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है ?

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उसे बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना, जैसे लड़कों में पोषण, घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अक्सर माँ-बाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी ? जमाना देख रही हो ? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है. ज्यादा पढ़ लिख गई, तो फिर लड़का ढूँढना मुश्किल हो जाएगा. राजनीतिक में जाओगी तो अपना ही घर बर्बाद करोगी, वगैरह वगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ी लिखी, ऊंचे ओहदे पर चली  जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उसके जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है.  बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन  की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न समझे, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुख तकलीफ अगर माँ से कहे तो, नसीहतें मिलती है कि जहां चार बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं.यहाँ तक की गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है कि ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपने ससुराल में टिकी रहे.लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उसके लिए सच में पराया बन गया. और जब अपने ही उसकी बात नहीं सुन रहेहैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा ? और रिश्ता ही बिगड़ेगा. यह सोचकर लड़की उसे ही अपनी किस्मत मान लेती है.

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहाँ जाएंगी ? बच्चे कैसे पलेंगे ? बच्चे-पति के बीच महिला अपनी पढ़ाई-लिखाई को भी भूल जाती है.  उनके पास भी कोई डिग्री है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलियत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. तो औरतें सहना ही अपना नसीब मान लेती हैं. लेकिन पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है ?

कहने को तो लगभग हर साल औरत-मर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होता है, रिसर्च होती है, कुछ कमेटियां बैठती है. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सुराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में, जहां शादियों को पवित्र रिश्ता का नाम दिया गया है, वहाँ एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता.मुंबई की एक महिला ने सेशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उसके साथ जबर्दस्ती संबंध बनाए और जिसके चलते उसे कमर तक लकवा मार गया, इसके साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं. साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना दुर्भाग्यपूर्ण भी बताया. लेकिन यह भी कहा कि इसके लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

मैरिटल रेप क्या है ?

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

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मैरिटल रेप को लेकर भारत का क्या है कानून?

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.IPC की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, ये कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इसमें कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही ये इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबर्दस्ती या पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलग-अलगअदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सेशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है. और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के चार केस कोर्ट तक पहुंचे लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया.सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर बहस छिड़ गयी. जेंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी ?’उनके ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि ‘किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी ? तो दूसरे ने कहा उसके चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का ये कानून भारत में साल 1860 से लागू है. इसके सेक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिसके अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सेक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सेक्स की सहमति छुपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

लेकिन दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी साल 1991 में मैरिटल रेप को ये कहते हुए अपराध की श्रेणी  में रख दिया कि ‘छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है.भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.और इसी वजह से कई महिलाएं शादी-शुदा ज़िंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक MNC एग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया,‘ मैं हर रात उनके लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी. जिसे वो अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे.जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सेक्स के दौरान मुझे टोर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैंने मना किया तो उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं होती थी’ 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है ?

सीनियर एडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सेक्शन 498A के तहत सेक्सुअल असोल्ट का केस दर्ज करा सकती हैं.इसके साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सेक्सुअल असोल्ट का केस कर सकती हैं . इसके साथ ही अगर आपको चोट लगी है तो आप IPC की धाराओं में भी केस कर सकती हैं.लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सबूत दिखाना मुश्किल होगा.वो कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहाँ ये कितना सफल रहा है इससे कितना गुनाह रुका है ये कोई नहीं जानता .

एक तिहाई पुरुष मानते हैं कि वो जबरन संबंध बनाते हैं—–

  • इन्टरनेशनल सेंटर फॉर वुमेन और यूनाइटेड नेशन्स पॉपूलेशन फंड की ओर से साल 2014 में कराये गए एक सर्वे के अनुसार एक-तिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नियों के साथ जबरन सेक्स करते हैं.
  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उनके पति जबरन उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.
  • एक सरकारी सर्वे के मुताबिक, 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उनके पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं.यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे उपेंद्र बख़्शी का कहना है कि ‘मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वो कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. साल 1980 में प्रोफेसर बख़्शी उन जाने-माने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े क़ानूनों में संशोधन को लेकर कई सुझाव भेजे थे. उनका कहना था कि समिति ने उनके सभी सुझाव स्वीकार कर लिए थे, सिवाय मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझाव को. उनका मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सेक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

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लेकिन सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इसका इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियाँ और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर के इस ‘अपमानजनक कानून’ को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी भारत के इस रवैये पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उनका ये भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि ये कानून महिलाओं के अधिकारों का ‘स्पष्ट उल्लंघन है और इसमें पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी ‘अस्वभाविक है. इसी वजह से इससे संबन्धित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. वो कहती है कि भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खंरोचें तो असली चेहरा दिखाता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

नीलिमा कहती हैं कि इसमें हस्तक्षेप की जरूरत है और इसे हमारे जीवनकाल में बदलना चाहिए. बात जब वैवाहिक बलात्कार की आती है तो बाधाएं अधिक ऊंची होती हैं. ये मामला पहले ही सुलझ जाना चाहिए था. हम आने वाली पीढ़ियों के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हम अभी भी इतिहास की गलतियों से लड़ रहे हैं और यह लड़ाई महत्वपूर्ण है.

इस वक़्त दुनिया के कितने देशों में मैरिटल रेप अपराध है ?

19वीं सदी में फेमिनिस्ट प्रोटेस्ट के बाद भी शादी-शुदा पुरुषों को पत्नी के साथ सेक्स का कानूनी अधिकार था.साल 1932 में पोलेंड दुनिया का पहला देश बना जिसने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया.1970 तक स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क, सोवियत संघ जैसे देशों ने भी मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था. 1976 में ऑस्ट्रेलिया और 80 के दशक में साउथ अफ्रीका, आयरलैंड, कनाडा, अमेरिका, न्यूजीलैंड, मलेशिया, घाना और इज़राइल ने भी इसे अपराध की लिस्ट में डाल दिया.

संयुक्त राष्ट्र यानि UN की प्रोग्रेस ऑफ वर्ल्ड वुमन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, दुनिया के 185 देशों में 77 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को अपराध बताने वाले स्पष्ट कानून हैं. जबकि 74 ऐसे हैं जहां पत्नी को पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है. भारत के पड़ोसी देश भूटान में भी मैरिटल रेप अपराध है.

लेकिन सिर्फ 34 देश ही ऐसे हैं जहां न तो मैरिटल रेप अपराध है और न ही पत्नी अपने पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है. इनमें चीन, बांगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब और भारत देश है. इसके अलावा दुनिया के 12 देशों में इस तरह के प्रावधान हैं जिसमें बलात्कार का आरोपी अगर महिला से शादी कर लेता है तो उसे आरोपों से बरी कर दिया जाता है. यूएन इसे बेहद भेदभाव मानवाधिकारोंके खिलाफ मानता है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है, क्योंकि यहाँ दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़,द्र्श्यरतिकता और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं है.पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थय प्रभाव उत्पन्न कर सकता है. वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक  माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है.बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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