माहिरा एक मध्यमवर्गीय परिवार की पढ़ीलिखी और समझदार लड़की थी. पढ़ाई खत्म होते ही उस के मांबाप ने एक संपन्न घराने के इकलौते वारिस से उस की शादी करा दी. मांबाप ने अपनी तरफ से बेटी के लिए अच्छा घरबार और कमाऊ पति की तलाश की थी. वे निश्चिंत थे कि अब उन की बेटी का जीवन सुखमय बीतेगा मगर ऐसा हो न सका. शादी के कुछ समय बाद ही माहिरा को पता चल गया कि उस के पति का संबंध किसी दूसरी औरत से भी है.
माहिरा ने जब सवाल किया तो उस के पति ने दो टूक शब्दों में जवाब दिया,” मैं सिर्फ तुम्हारा नहीं हो सकता. मेरे जीवन में कोई और है जो तुम से बहुत ज्यादा अहमियत रखती है. उस के बिना मैं जी ही नहीं सकता.”
“तो फिर शादी भी उसी से करते,” चिढ़े हुए स्वर में माहिरा ने कहा.
“मेरे मॉमडैड ने करने नहीं दिया. सो टेक इट इजी और जैसा चल रहा है वैसा चलने दो. वरना जो है उस से भी हाथ धो बैठोगी,” बेशर्मी से उस के पति ने कहा.
अपने पति का जवाब सुन कर माहिरा के पास कहने को कुछ भी नहीं रह गया. उसे एक शादीशुदा जिंदगी का सुख मिल कर भी नहीं मिला था. कहने को वह एक बहुत बड़े घर की बहू बन कर आई थी मगर उस की जिंदगी से सुख और सुकून हमेशा के लिए जा चुके थे. वह खुद को कितना भी समझाने की कोशिश करती पर पति की अवहेलना उस के दिल को कचोटती रहती. वह छिपछिप कर रोती पर मांबाप से कुछ भी कह नहीं पाती. आखिर उन्हें बुढ़ापे में तकलीफ कैसे दे सकती थी.
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कई महीने ऐसे ही बीत गए पर हालात नहीं बदले तो माहिरा ने एक फैसला लिया. वह ऑनलाइन जौब सर्च करने लगी. जैसे ही उसे जौब कंफर्म हुई उस ने ससुराल छोड़ने और किराए का घर ले कर अलग रहने का फैसला किया. हिम्मत कर के उस ने अपना यह फैसला अपने पैरेंट्स को बताया. पहले तो उन्होंने उसी को एडजस्ट करने की सलाह दी पर माहिरा के इनकार करने पर वे उसे अपने पास बुलाने लगे.
माहिरा ने उन्हें समझाया, “आप लोग मेरी चिंता न करें. मैं पढ़ीलिखी हूं, जॉब कर के आत्मनिर्भर जीवन जीना चाहती हूं. आप के ऊपर बोझ बन कर नहीं रह सकती. प्लीज मुझे मेरी खुशियां चुनने का अधिकार दें. ”
मांबाप ने फिर कुछ नहीं कहा. माहिरा अपनी खुशियों की तलाश में निकल पड़ी. शादी के बाद माहिरा जैसी परिस्थितियां किसी के साथ भी आ सकती हैं. जिस तरह माहिरा ने इस अप्रत्याशित स्थिति से निकलने का सम्मानजनक रास्ता चुना वैसा ही हर स्त्री को करना चाहिए. खुद को हर परिस्थिति के लिए तैयार रखना चाहिए.
शादी ख़ुशी का सर्टिफ़िकेट नहीं
लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर( जो एक हैप्पीनेस एक्सपर्ट भी हैं ) पॉल डोलन के शब्दों में ‘शादी पुरुषों के लिए तो फायदेमंद है लेकिन महिलाओं के लिए नहीं. इसलिए महिलाओं को शादी के लिए परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि वे बिना पति के ज्यादा खुश रह सकती हैं. खासकर मध्यम आयु वर्ग की विवाहित महिलाओं में अपनी हमउम्र अविवाहित महिलाओं की तुलना में शारीरिक और मानसिक परेशानियां होने का ज्यादा खतरा होता है. इस से वे जल्दी मर भी सकती हैं.’
विवाहित महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं ज्यादा खुश रहती हैं
शादीशुदा, कंवारे, तलाक़शुदा, विधवा और अलग रहने वाले लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर पॉल डोलन का कहना है कि आबादी में जो हिस्सा सब से स्वस्थ और खुशहाल रहता है वह उन महिलाओं का है जिन्होंने कभी शादी नहीं की और जिन के बच्चे नहीं हैं. उन के मुताबिक़ जब पतिपत्नी एक साथ होते हैं और उन से पूछा जाए कि वे कितने खुश हैं तो उन का कहना होता है कि वे बहुत खुश हैं. लेकिन जब पति या पत्नी साथ में नहीं हो तो वे स्वाभाविक रूप से यह कहते सुने जा सकते हैं कि जिंदगी हराम हो गई है.
कहीं भी अगर शादी की बात पर बहस होती है तो शादी की जरुरत के कई कारण बताए जाते हैं, जैसे नई सृष्टि की रचना, भावनात्मक सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, औरत मां बन कर ही पूरी होती हैं, नारी पुरूष एकदूसरे के पूरक हैं, समाज में अराजकता रोकने मे सहायक आदि. ये सारे कारण शादी को महज एक जरुरत का दर्जा देते हैं मगर कोई यह नहीं कहता कि हम ने शादी अपनी खुशी के लिये की है.
ज्यादातर घरों में लड़कियों को बचपन से शादी कर के खुशीखुशी घर बसाने के सपने दिखाए जाते हैं. हर बात पीछे उन्हें समझाया जाता है कि शादी के बाद वह अपने मन का कर सकेगी, शादी के बाद उसे बहुत प्यार मिलेगा, शादी के बाद वह अपने घर जाएगी या फिर शादी के बाद ही उस का जीवन सार्थक होगा वगैरहवगैरह. मगर सच तो यह है कि शादी के बाद भी बहुत सी लड़कियों के सपने हकीक़त के आईने में बेरंग ही नजर आते हैं ——
अपना घर
घर की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा लड़कियों के मन में बचपन से यह बात भरी जाती है कि मां का घर उस का अपना नहीं है. उसे मायका छोड़ कर ससुराल जाना पड़ेगा और वही उस का अपना घर कहलाएगा. ससुराल पहुंच कर लड़की को पता चलता है कि वह इस घर में बाहर से आई है और कभी सगी नहीं कहलाएगी. वह बहू ही रहेगी कभी बेटी नहीं हो सकती. मायके में जब उसे किसी चीज की कमी होती है या वह कुछ जिद करती है तो मांबाप समझाते हैं कि ससुराल में हर ख्वाहिश पूरी कर लेना. मायके के पास पैसों की कितनी भी कमी हो पर लड़की को कभी महसूस नहीं होने देते. जबकि ससुराल कितना भी धनदौलत से पूर्ण हो पर लड़की को अपनी सीमा में रहना होता है. शुरुआत में कई साल उसे घरपरिवार के किसी भी मसले में बोलने का हक नहीं दिया जाता. ससुराल वाले कितने भी एडवांस हों मगर बहू तो बहू ही होती है. वह बेटे या बेटी की बराबरी नहीं कर सकती.
अकेलापन
लड़कियों को बचपन से शादी के सपने दिखाए जाते हैं. जिस लड़की की किसी कारणवश शादी नहीं हो पाती या फिर वह स्वयं शादी करना नहीं चाहती तो मांबाप या रिश्तेदारों के साथसाथ सारा समाज उसे सिखाता है कि शादी के बाद ही लाइफ सेटल हो पाती है. शादी के बिना जीवन में कुछ भी नहीं रखा. भले ही वह लड़की सेल्फ डिपेंडेंट हो, अच्छा कमा रही हो मगर उसे बुढ़ापे का डर जरूर दिखाया जाता है. उसे बताया जाता है कि जब घर में सब खुद के परिवारों में व्यस्त हो जाएंगे तो वह अकेली रह जाएगी. यह सोच काफी हद तक सही है क्योंकि समय के साथ जब मांबाप चले जाते हैं और भाईबहन अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं तब अविवाहित लड़की खुद को अकेला महसूस करती है. मगर इस का समाधान कठिन नहीं. वह यदि अपने काम में व्यस्त रहे और रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखे तो इस तरह की समस्या नहीं आती. दूसरी तरफ शादी करने के बावजूद यदि वह पति और ससुराल वालों के साथ बना कर नहीं रख पाती या वह विधवा हो जाती है या उस का तलाक हो जाता है तब क्या वह अकेली नहीं हो जाती? इसी तरह मान लीजिये कि उस के बच्चे नहीं होते और बुढ़ापे में पतिपत्नी ही रह जाते हैं. बाद में पति के जाने के बाद भी उसे अकेले ही जीवन गुजारना होता है. कहने का मतलब है कि आप ऐसा नहीं कह सकते कि शादी कर के उसे कभी अकेला नहीं रहना पड़ेगा. जीवन में कुछ भी अप्रत्याशित हो सकता है.
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महत्वपूर्ण यह नहीं होता कि अविवाहित लड़की अकेली रह जाएगी या शादीशुदा. महत्वपूर्ण यह है कि वह उस परिस्थिति को हैंडल कैसे करती है. यदि वह किसी भी हालत में पॉजिटिव रह सकती हैं, सेल्फ डिपेंडेंट है और आत्मविश्वास बनाए रखती है तो फिर उसे घबराने की जरूरत नहीं.
मां बनना जरूरी
लड़कियों को बचपन से यह भी सिखाया जाता है कि एक औरत मां बनने के बाद ही पूर्ण होती है. लड़कियों पर कम उम्र में ही शादी के लिए दवाब डाला जाता है ताकि वह सही उम्र में मां बन जाए. मां बनना जीवन की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. मगर जरा सोचिए इस के कारण लड़की को सब से पहले तो अपनी पढ़ाई और करियर बीच में छोड़ना पड़ता है. फिर वह शादी कर दूसरे घर आ जाती है और वहां एडजस्टमेंट कर ही रही होती है कि हर तरफ से बच्चे के लिए दबाव पड़ने लगते हैं. सही समय पर बच्चे हो गए तो सब अच्छा है पर मान लीजिए किसी कारण से बेबी नहीं हुए तब क्या होता है? दबी आवाज़ में उस पर ही इल्जाम लगाए जाते हैं. उसे भाग्यहीना और बांझ कह कर पुकारा जाता है. सालों साल बच्चे की चाह में घरवाले उसे पंडेपुजारियों और झाड़फूंक वालों के पास ले जाते हैं. इन सब के बीच उस महिला को कितना मेंटल स्ट्रेस होता होगा यह बात समझनी भी जरूरी है.
पति गलत आदतों का शिकार निकल जाए
शादी के बाद जरूरी नहीं कि आप की जिंदगी खुशहाल ही रहेगी. शादी के समय आप को यह पता नहीं होता कि आप का पति कैसा है ? पति अच्छा निकला तो लड़की सुकून भरी जिंदगी जीती है मगर जरूरी नहीं कि हमेशा ऐसा ही हो. कितनी ही लड़कियां शादी के बाद अपने शराबी पति के अत्याचारों का शिकार बन जाती हैं तो कुछ पति की बेवफ़ाई से परेशान रहती हैं. कुछ के पति बिज़नेस डुबो देते हैं तो कुछ दोस्तबाजी के चक्कर में बीवी को रुलाते रहते हैं. बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो पत्नी के साथ मारपीट करते हैं और उन्हें अपने पैरों की जूती से ज्यादा नहीं समझते. ऐसे में आप यह कैसे कह सकते हैं कि शादी के बाद लड़की को सुख ही मिलेगा और उस का जीवन संवर जाएगा. संभव तो यह भी है न कि उस की जिंदगी बर्बाद ही हो जाए और उसे उम्र भर घुटघुट कर जीना पड़े.
ससुराल वालों के सितम
कई बार ऐसा भी होता है कि मांबाप तो अच्छा घर देख कर बेटी की शादी करते हैं मगर नतीजा उल्टा निकलता है. बहुत से मामलों में ससुराल वाले लड़की पर जुल्म करते हैं. कभी दहेज के लिए धमकाते हैं तो कभी घरेलू हिंसा करते हैं. बहुत सी लड़कियों को ससुराल में जिंदा जला दिया जाता है. कुछ घरों में ऊपरी तौर पर भले ही कुछ न किया जाए पर दिनरात ताने दिए जाते हैं, बुराभला कहा जाता है. अक्सर सास बहू के खिलाफ बेटे के कान भरती पाई जाती है. ऐसे हालातों में लड़की को शादी के बाद घुटघुट कर जीना पड़ता है और उन की जिंदगी खुशहाल होने के बजाय और भी बर्बाद हो जाती है.
मांबाप का कर्तव्य है कि वे अपनी बेटियों को हमेशा अप्रत्याशित के लिए तैयार रहने के काबिल बनाएं. शादी के बाद भी ऐसा बहुत कुछ हो सकता है जिस का मुकाबला करने के लिए खुद को मजबूत बनाना पड़ता है, दिमाग से ही नहीं, मन से और तन से भी . बेहतर होगा कि लोग बेटियों पर शादी के लिए दबाव डालने के बजाय उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएं.
लड़कियों को भी खुद को इस लायक बना कर रखना चाहिए कि वे ऐसे हालातों में भी सहजता से अपना जीवनयापन कर सकें. कोई कठिन परिस्थिति आए तो उस से निबट सकें. खुद को फाइनेंशली स्ट्रौंग बना कर रखें. पढ़ाई पूरी नहीं की है तो कोई हुनर सीखें ताकि जरूरत पड़ने पर खुद को आत्मनिर्भर बना सकें. हमेशा बचत करने की आदत रखें. दिमाग से भी इतने स्ट्रौंग बन कर रहें कि छोटी सी बात पर घबड़ाने या हिम्मत हारने के बजाए नए रास्ते खोज सकें.
शादी करनी मजबूरी क्यों
एक शादीशुदा महिला ही जानती है कि असल में उसे क्याक्या झेलना पड़ता है. यही वजह है कि आज बहुत सी लड़कियां शादी करना नहीं चाहतीं. उन का मानना है कि जब वे खुद कमा रही हैं और शांति से जी रही हैं तो फिर शादी कर के अपनी परेशानियां क्यों बढ़ाएं. दरअसल हमारा सामाजिक तानाबाना ही इस तरह का रहा है जहां यह माना जाता है कि महिलाओं का काम घर संभालना और बच्चे पैदा करना होता है जबकि पुरुषों का काम कमाना और महिलाओं को संरक्षण देना है. लेकिन वक्त के साथ महिलाओं और पुरुषों के रोल बदल रहे हैं ऐसे में सोच बदलना भी लाज़िमी है. यह सही है कि अविवाहित जीवन में महिलाओं को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. मगर शादी भी इंसान को अनेक सामाजिक व पारिवारिक झंझटों में फंसाती है. तो फिर अविवाहित जीवन को गलत या हेय क्यों माना जाए? क्यों न लड़कियों को खुद तय करने दिया जाए कि उसे क्या करना है.
30 – 35 साल से ऊपर की अविवाहित महिला अब भी लोगों की आंखों में खटकती है. लड़की भले ही कितना भी पढ़लिख ले और ऊँचे पद पर पहुँच जाए लेकिन उसे ससुराल भेज कर ही मातापिता के सिर से बोझ उतरता है. ज्यादातर लोगों की सोच यह होती है कि 30 साल से ऊपर की अविवाहित लड़की सुखी हो ही नहीं सकती. सुख का सीधा संबंध शादी से है. मगर सच तो यह है कि सुखी या दुखी और खुश या नाखुश होने की परिभाषा सब के लिये अलग अलग होती है. ऐसी बहुत सी अविवाहित महिलाएं हैं जो तीस के ऊपर हैं और अपनेआप मे पूर्ण हैं . आप मदर टेरेसा, लता मंगेशकर, पीनाज़ मसानी, बरखा दत्त, सोनल मान सिंह जैसी बहुत सी महिलाओं का नाम ले सकते हैं. हम यदि कहीं भी अचीवर्स लिस्ट ढूंढते हैं तो कभी भी शादी क्राइटेरिया नहीं होता. यानी जीवन में आप की ख़ुशी शादी पर निर्भर नहीं करती.
यह सच है कि पुराने समय से भारत में नारी को केवल माँ /बहन /बेटी और पत्नी के रूप मे देखा जाता रहा है लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि जिस ने इस परंपरा को नहीं अपनाया वह ग़लत है. शादी किसी भी तरीके से समाज मे अपना स्थान बनाने का कोई मापदंड नहीं हैं. शादी करना या न करना अपना व्यकिगत निर्णय होना चाहिये. इसे सामाजिक व्यवस्था का निर्णय मान कर या व्यक्तिगत सुख की गारंटी मान कर नहीं चला जा सकता. मातापिता का कर्तव्य हैं की बच्चों को शिक्षित करें, आत्म निर्भर बनाए और उस के बाद अपने जीवन के निर्णय ख़ुद लेने दें. सब के सुख अलगअलग होते हैं. सुख को अगर परिभाषित करे तो कोई भी इंसान जब अपने मन की करता है या कर पाता है शायद तभी वह सब से सुखद स्थिति में होता है.
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विवाह तभी करना चाहिए जब आप किसी को इतना चाहें कि उस के साथ जीवन बिताना चाहें. मगर जिसे शादी में रुचि न हो उसे कभी भी नहीं करना चाहिए. प्रेम हो तो शादी करें मगर उस में भी खुशी मिलेगी ही यह कहा नहीं जा सकता. जीवन में ख़ुशियाँ चुननी पड़ती हैं. कोई हाथ में रख कर नहीं देता. खुशियाँ पाने का यत्न हम सभी करते हैं. कभी सफल होते हैं तो कभी असफल. विवाह करना या न करना व्यक्ति का निजी मामला है. इस में कोई कुछ नहीं कह सकता. हमारे समाज में शादीशुदा, अविवाहित और समलैगिक के लिये व्यक्ति के स्तर पर समान इज़्ज़त होनी चाहिये. कोई क्या चुनता है यह व्यक्तिगत मसला है.