मां को छोड़ कर अलग रहना क्या उचित होगा?

सवाल-

मैं 34 वर्षीय युवक हूं. मेरी विधवा मां ने काफी कष्ट सह कर मेरी और मेरी बहन की परवरिश की. बहन की शादी के बाद मैं ने शादी की. मेरे विवाह को 8 वर्ष हो चुके हैं और 2 बच्चे भी हैं. मेरी समस्या यह है कि मेरी मां और पत्नी में हर समय खटपट रहती है. दोनों को समझातेसमझाते मैं आजिज आ चुका हूं. मेरी मां हमारे लिए जितनी ममतामयी रही हैं बहू को ले कर उतनी ही खड़ूस हैं. उन की पढ़ाईलिखाई (उच्च शिक्षिता हैं) और बड़प्पन कहीं नहीं दिखता. दूसरी ओर पत्नी भी कमतर नहीं है. आजकल मां रातदिन एक ही रट लगाए है कि मैं उसे ले कर अलग हो जाऊं. मैं कोई निर्णय नहीं कर पा रहा. मां पूरी तरह से स्वस्थ और सक्षम हैं. अपनी देखभाल स्वयं कर सकती हैं पर फिर भी मां को छोड़ कर अलग रहना क्या उचित होगा? लोग क्या कहेंगे? बताएं, क्या करूं?

जवाब-

सासबहू के रिश्ते में मधुरता प्राय: कम ही देखने को मिलती है. इसलिए आप के घर में यदि आप की मां और पत्नी के बीच 36 का आंकड़ा है, तो कोई अनहोनी बात नहीं है. आप के भरसक प्रयास के बावजूद यदि दोनों में तालमेल नहीं बैठ रहा तो रोजरोज की कलह से नजात पाने के लिए आप मां से अलग हो जाएं. अपने लिए घर थोड़े फासले पर ले लें. दूर रहने पर अमूमन रिश्तों में मिठास लौट आती है. दूर रह कर भी आप बीचबीच में आ कर और दिन में 1-2 बार फोन कर के उन का हालचाल पूछ सकते हैं. जहां तक लोगों की बात है तो लोग तभी तक बोलते हैं जब तक हम उन की परवाह करते हैं. अत: उन की बातों पर कान न दें.

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तीज 2022: सफल शादी के राज, सूरत नहीं सीरत

“निधि दयानन्द जी की इकलौती लड़की थी.वो खूबसूरत होने के साथ-साथ बहुत ही गुणवान भी थी . निधि अब 25  साल की हो चुकी थी और उसके माता- पिता को उसकी शादी की चिंता सताने लगी थी.एक दिन दयानन्द जी अपने दोस्त कमलाकांत के घर गए. वहाँ उनके दोस्त का लड़का छुट्टियों में घर आया हुआ था. उसका नाम ऋषभ था . ऋषभ एक सॉफ्टवेर इंजिनियर था.दयानन्द जी ने ऋषभ से बातचीत की उनको ऋषभ बहुत ही अच्छा लगा. उन्होने अपने दोस्त कमलाकांत-जी  से ऋषभ और निधि की शादी की बात की. उनके दोस्त ने कहा की आपने तो मेरे मुंह  की बात छीन ली. मै तो कबसे निधि को अपने घर की बहु बनाना चाहता हूँ. पर एक बात है ऋषभ की हाइट  निधि से थोड़ी कम है. इस पर निधि के पापा ने कहा की इतना अच्छा लड़का है ,संस्कारी है,थोड़ी बहुत ऊँच-नीच तो चलती  रहती है. निधि के पापा बोले मैं  एक बार निधि से बात कर लूँ आप भी ऋषभ से पूछ लीजिये. निधि के पापा खुशी मन से घर आए .

जब कमलाकांत जी ने ऋषभ से बात की और निधि को फोटो दिखाई तो ऋषभ को निधि पसंद तो आई लेकिन अपनी हाइट को लेकर उसे कॉम्प्लेक्स हो गया. उसने अपने पापा से कहा  कि मेरी हाइट उससे कम है, हमारी जोड़ी सही नहीं होगी. लेकिन पापा के कहने पर ऋषभ निधि से मिलने को तैयार हो गया.

घर आकर दयानन्द जी ने भी ऋषभ की  फोटो घरवालों को दिखाई और  शादी की बात की. दयानन्द जी ने ऋषभ की इतनी तारीफ की कि घर के सभी लोग शादी के लिए तैयार हो गए लेकिन निधि ऋषभ की हाइट की वजह से शादी को लेकर अनमनी सी  थी. दयानंद जी निधि के मन की बात समझ गए. उन्होंने निधि से कहा ,एक बार तुम ऋषभ से मिल लो अगर न पसंद आए तो मत करना शादी. अब जाकर निधि के चेहरे पर मुस्कान आ  गयी.

कुछ दिनों बाद ऋषभ का परिवार निधि से मिलने उसके  घर आया. उन सबको निधि बहुत पसंद आई . ऋषभ ने निधि को पहली निगाह में ही पसंद कर लिया. निधि को भी ऋषभ की सादगी और उसका बातचीत करने का तरीका बहुत पसंद आया . निधि ने शादी के लिए खुशी मन से हाँ कह दिया. 3 महीने के अंदर दोनों की शादी हो गयी.

शादी के कुछ दिनों के बाद निधि भी ऋषभ के साथ पूना  आ गयी. दोनों एक सुखी  जीवन बिता रहे थे. एक दिन निधि की फ्रेंड का फोन आया जो पूना में रहती थी.उसने ऋषभ और निधि को पार्टी में इनवाईट  किया . निधि ने भी आने के लिए हाँ कर दिया. शाम के समय निधि ऋषभ के साथ अपनी फ्रेंड के यहाँ पार्टी में गयी.निधि मन ही मन बहुत उत्सुक थी क्योंकि शादी के बाद उसकी सारी फ्रेंड्स ऋषभ से पहली बार मिलने वाली थी. पार्टी में पहुँच कर उसने ऋषभ को उन सबसे मिलवाया .ऋषभ ने भी उन सबसे बहुत अच्छे से बातचीत की.निधि ने बड़ी उत्सुकता से अपनी दोस्तों से पूंछा की कैसा लगा ऋषभ ?

उन्होंने उससे कहा की आज हमें सही मायने में बहुत पछतावा हो रहा है की हम तुम्हारी शादी में नहीं आ पाए. क्या तुम्हे पहले किसी ने ये नहीं बताया ही तुम्हारी जोड़ी कितनी अजीब लगती है? कहाँ तुम और कहाँ वो? कम से कम अपनी बराबर हाइट के लड़के से ही शादी की होती.लड़के की हाइट हमेशा लड़की से ज्यादा होनी चाहिए तभी जोड़ी अच्छी लगती है.

निधि अपनी दोस्तों की ये सब बातें सुन कर बहुत निराश हो गयी. निधि ऋषभ को लेकर पार्टी से घर आ गयी. उसने पूरे रास्ते ऋषभ से बात नहीं की. ऋषभ निधि की टेंशन की वजह नहीं समझ पा रहा था.उसने निधि से भी पूछा पर निधि ने सिर दर्द का बहाना करके टाल दिया. उसके बाद से अक्सर निधि कि फ़्रेंड्स ऋषभ कि हाइट पर कमेंट करने लगे.

धीरे धीरे निधि के  मन में एक कुंठा घर कर गयी. जब भी निधि ऋषभ के साथ बाहर जाती, वह सभी को देखकर सोचती कि सब उसका मज़ाक उड़ा रहे है. वह ऋषभ के साथ बाहर जाने में शर्माने लगी. ऋषभ भी निधि को समझ चुका था इसलिए कभी फोर्स नहीं किया. अब दोनों के बीच एक  दूरी सी बनने लगी. निधि को ऋषभ की सारी खूबियों में कमियाँ नज़र आने लगी. ऋषभ भी निधि के नेचर को लेकर डिप्रेस होने लगा . ऋषभ ने निधि को समझाने कि बहुत कोशिश की लेकिन निधि को अब अपनी शादी से पछतावा होने लगा. एक दिन ऋषभ ने निधि से कहा की जब मुझमे इतनी ही कमियाँ थी तो मुझसे शादी क्यूँ की. निधि तपाक से बोली वो मेरी गलती थी. अब तुम्हारे साथ रहकर मैं दूसरी गलती नहीं करना चाहती. यह सुनकर ऋषभ शांत हो गया उसने आगे कभी कुछ नही बोला. दोनों ही डिप्रेशन के शिकार हो गए. कुछ दिनों बाद निधि अपने घर चली गयी. कुछ समय बाद ऋषभ गंभीर रूप से बीमार हुआ और वो भी सबकुछ छोड़कर अपने घर चला गया….”

लड़के की हाइट कितनी है? कम तो नहीं है. हमें तो अच्छी हाइट का लड़का चाहिए. रिश्ता आने के बाद सबसे पहले पूछा जाने वाला प्रश्न . आखिर हमारा समाज हमेशा ही ऐसा क्यों मानता है कि लड़के को  हमेशा ही लड़की से हाइट में लंबा होना चाहिए .अगर लड़का लंबा और लड़की उससे कम हाइट की हो  तब ही उनकी जोड़ी अच्छी क्यों लगती है? क्या इसके पीछे कोई ठोस कारण है या फिर यह महज़ हमारा  एक मानसिक विकार है.

ऐसा क्यों हैं ? क्या यह कोई सामाजिक ठप्पा है जो शादी के सर्टिफिकेट पर लगना ही चाहिए?

दोस्तों आजकल हमारे समाज में यह अजीब सा प्रचलन हो चला है कि हम अपने जीवन साथी को अपनी निगाह से ज्यादा दूसरों की निगाहों से देखना पसंद करते हैं. अगर दूसरे बोलते हैं कि आपका साथी अच्छा है तो आप खुश होते हैं और  अगर वही लोग आपके साथी में कमियाँ निकालते हैं तो हमें भी अपने साथी में हजारों कमियां नज़र आने लगती है. यह गलत है क्योंकि केवल आप ही अपने जीवनसाथी की आंतरिक सुंदरता को पहचानते हैं.

यदि आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो “लोग क्या कहेंगे” के बारे में बहुत सोचता है, तो मेरा विश्वास करो कि लोग हमेशा कुछ कहेंगे.हाइट तो सिर्फ संख्या है.अगर आप समाज और दूसरे लोगों की इतनी परवाह करेंगे और यह सोचेंगे की दूसरे लोग आपके बारे में क्या सोचते है तो यकीन मानिए आप कभी खुश नहीं रह पाएंगे.यह सोच  आपको हमेशा परेशान करती रहेगी.

अगर आपके पार्टनर में कोई कमी है तो यकीन मानिए कि आप से ज्यादा उसे यह चीज परेशान करती है और अगर आप भी उस पर कमेंट करेंगे तो वह अपना आत्म विश्वास  खो देगा. कमेंट करने की जगह उसका सहारा बनिए. उसे महसूस कराइए कि उसमे कोई कमी नहीं है और वह आपके लिए एकदम परफेक्ट है.

आपको यह दिखावा करने की ज़रूरत नहीं है कि वह लंबा है.बिना किसी वजह उसकी इस कमी पर ध्यान न देने की कोशिश करें. यदि आप उसके दोस्तों या अन्य लोगों को उसकी ऊंचाई के बारे में मजाक करते हुए नोटिस करते हैं, तो आपको निश्चित रूप से कभी भी इसमें शामिल नहीं होना चाहिए. आपकी यह प्रतिक्रिया उसे बहुत बेहतर महसूस कराएगी. आपका साथी इस बात की थोड़ी परवाह कर सकता है कि दूसरे क्या सोचते हैं, लेकिन वह इस बात को ज्यादा तवज्जो देगा कि आप क्या सोचते हैं.उसके साथ ईमानदार रहें और  उसे समय- समय पर महसूस कराते रहें कि वो अभी भी आपके लिए आकर्षक हैं इससे उसे पता चल जाएगा कि आप उसे कितना चाहते हैं  और उसकी हाइट आपके लिए कोई मायने नहीं रखती. अगर आप उसकी इस एक कमी को नज़रंदाज़ करेंगे तो यकीन मानिये वो भी आपकी हजारों कमियों को नज़रंदाज़ करेगा. आप अपने जीवनसाथी से  दिल और आत्मा से प्यार करना सीखें क्योंकि वे ही कीमती  चीजें हैं बाकि तो सब दिखावा है.

मैं ये नहीं कहती की शादी के लिए आप अपने जीवनसाथी की शारीरिक विशेषताओं पर ध्यान न दें लेकिन शारीरिक विशेषताओं के साथ -साथ आंतरिक सुन्दरता भी बहुत जरूरी है.

हममें से ज्यादातर लोग रिश्तों में धोखा खाते है और अंत तक कभी भी सही व्यक्ति को नहीं पा पाते, क्योंकि हमारी पहली प्रमुखता ही रूप और कद काठी होती है हमें कभी लोगों के चरित्र और आत्मा की परवाह होती ही नहीं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए, अगर दिल या आत्मा खोखली है, तो किसी भी तरह का अच्छा लुक किसी को खूबसूरत नहीं बनाता . हमें लोगों को  उनकी शारीरिक बनावट पर निर्णय लेने के बजाय, उनकी आंतरिक सुंदरता को समझना महत्वपूर्ण है.

यदि आप अपने जीवन-साथी के रूप में सिर्फ उसके शारीरिक सौंदर्य की तलाश कर रहें है तो यकीन मानिये की आप अभी शादी करने के लिए पूरी तरह  परिपक्व नहीं हैं.

शादी दो दिलों और आत्माओं का मिलन है और एक दूसरे से जीवन भर प्यार करने का वादा है. आसमां में जोड़ियाँ वो सबकी बनाता है,जिसपे जिसका नाम लिखा वो उसे मिल जाता है.

शादी के लिए मेरे घरवाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 27 साल की हूं शादी को ले कर मेरे घर वाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं. कई लड़कों से मिली, लेकिन बात नहीं बनी. भविष्य को ले कर काफी टैंशन में हो जाती हूं और अपना वर्तमान समय उस से खराब कर लेती हूं. जब ऐसे विचार आते हैं तब ऐसा लगता जैसे भविष्य एकदम अंधकारमय है. मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

कभीकभार फैमिली का प्रैशर हमें कुछ निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है. मगर शादी एक बहुत ही अहम निर्णय है. इसे किसी के दबाव में आ कर न लिया जाए. जब आप को लगे कि आप इमोशनली, मैंटली और फाइनैंशली तैयार हैं तभी शादी करने का निर्णय लें.

फैमिली मैंबर्स से बात कर उन्हें समझाएं कि आप फिलहाल शादी के लिए तैयार नहीं हैं. जब हो जाएंगी तब खुद उन्हें बता देंगी. आप के ऐसा करने से वे रिलैक्स फील करेंगे.

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सोनिया 20 साल की हुई नहीं कि उस की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगी. लेकिन सोनिया ने तो ठान लिया है कि वह पहले पढ़ाई पूरी करेगी, फिर नौकरी करेगी और तब महसूस हुआ तो शादी करेगी वरना नहीं. सोनिया की इस घोषणा की जानकारी मिलते ही परिवार में हलचल मच गई. सभी सोनिया से प्रश्न पर प्रश्न पूछने लगे तो वह फट पड़ी, ‘‘बताओ भला, शादी में रखा ही क्या है? एक तो अपना घर छोड़ो, दूसरे पराए घर जा कर सब की जीहुजूरी करो. अरे, शादी से पतियों को होता आराम, लेकिन हमारा तो होता है जीना हराम. पति तो बस बैठेबैठे पत्नियों पर हुक्म चलाते हैं. खटना तो बेचारी पत्नियों को पड़ता है. कुदरत ने भी पत्नियों के सिर मां बनने का बोझ डाल कर नाइंसाफी की है. उस के बाद बच्चे के जन्म से ले कर खानेपीने, पढ़ानेलिखाने की जिम्मेदारी भी पत्नी की ही होती है. पतियों का क्या? शाम को दफ्तर से लौट कर बच्चों को मन हुआ पुचकार लिया वरना डांटडपट कर दूसरे कमरे में भेज आराम फरमा लिया.’’

यह बात नहीं है कि ऐसा सिर्फ सोनिया का ही कहना है. पिछले दिनों अंजु, रचना, मधु, स्मृति से मिलना हुआ तो पता लगा अंजु इसलिए शादी नहीं करना चाहती, क्योंकि उस की बहन को उस के पति ने दहेज के लिए बेहद तंग कर के वापस घर भेज दिया. रचना को लगता है कि शादी एक सुनहरा पिंजरा है, जिस की रचना लड़कियों की आजादी को छीनने के लिए की गई है. स्मृति को शादीशुदा जीवन के नाम से ही डर लगता है. उस का कहना है कि यह क्या बात हुई. जिस इज्जत को ले कर मांबाप 20 साल तक बेहद चिंतित रहते हैं, उसे पराए लड़के के हाथों निस्संकोच सौंप देते हैं. उन की बातें सुन कर मन में यही खयाल आया कि क्या शादी करना जरूरी है. उत्तर मिला, हां, जरूरी है, क्योंकि पति और पत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं. दोनों को एकदूसरे के साथ की जरूरत होती है. शादी करने से घर और जिंदगी को संभालने वाला विश्वसनीय साथी मिल जाता है. व्यावहारिकता में शादी निजी जरूरत है, क्योंकि पति/पत्नी जैसा दोस्त मिल ही नहीं सकता.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्या जरूरी है शादी करना

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शादी से डर कैसा

आप खूबसूरत हैं, शादी की उम्र भी है, संस्कारी भी हैं और अच्छा कमा भी रहे हैं यानी सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन हैं, तो आप के चर्चे आसपास होने लगते हैं. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आप सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन हैं, लेकिन शादी से कतराते हैं. सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन की शादी के बारे में उन से ज्यादा उन के दोस्त, परिवार वाले और पासपड़ोस के लोग बातें करते हैं. ऐसा सिर्फ छोटे या मैट्रो शहरों में ही नहीं होता, बल्कि देशविदेश सभी जगह यही हाल है.

मुंबई के मलाड में रहने वाली दीपा 30 साल की लड़की है. बेहद खूबसूरत है और अच्छा कमा भी रही है. अपने पैसे से देशविदेश हर जगह घूमती है. उस की बड़ी बहन और भाई की शादी 24-25 साल की उम्र में ही हो चुकी है, लेकिन दीपा अभी शादी नहीं करना चाहती. उस की मां जया शर्मा ने उस पर बहुत जोर डाला, लेकिन अंतत: हार मान ली. भाई की शादी और बच्चे होने पर छोटे घर में रहने की दिक्कत को देखते हुए दीपा ने अपनी मां को राजी कर लिया कि वह अलग घर ले कर अकेले रहेगी और शनिवारइतवार उन से मिलने आ जाया करेगी. लेकिन जब भी दीपा से उस की शादी की बात करो, वह शादी को जिंदगी का एक बहुत ही बड़ा निर्णय मानती है. यह निर्णय गलत न हो जाए, इसलिए फूंकफूंक कर कदम रखने के चक्कर में इस रास्ते पर आगे बढ़ ही नहीं पा रही. ऐसा नहीं है कि वह कभी शादी नहीं करना चाहती, लेकिन निर्णय नहीं ले पाती. अब तक उस की जिंदगी में 2 लड़के आ भी चुके हैं. एक रिश्तों के मामलों में बहुत गंभीर था. शादी भी जल्दी करना चाहता था तो दूसरे से दीपा की बनी नहीं, इसलिए दूरियां आ गईं.

ऐसा सिर्फ मुंबई में रहने वाली दीपा के साथ ही नहीं, कई लड़केलड़कियों के साथ होता है. वे शादी करना तो चाहते हैं, लेकिन शादी की उम्र और वक्त को पहचान नहीं पा रहे होते या कहें कि शादी के बाद के जिस डर से वे बच रहे होते हैं, दरअसल वह सब कुछ वे बिना शादी के भी झेल रहे होते हैं. इस संबंध में मुंबई के एस.एल. रहेजा (फोर्टिस एसोसिएट) के क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट डा. भूपेश शाह बताते हैं कि आजकल की लड़कियां बहुत नाजुक मिजाज हैं, क्योंकि वे स्वावलंबी हैं. वे अपनी जिंदगी में कोई भी समझौता नहीं करना चाहतीं, इसलिए ऐसा घर ढूंढ़ती हैं, जहां पति सुंदर हो, उस के मातापिता साथ न रहते हों, अकेला बेटा हो, अच्छे पद पर हो, तनख्वाह भी अच्छी हो और उन्हें समझ भी सके. लेकिन सारी खूबियां एक शख्स में मिलना आसान नहीं होता, इसलिए लड़कियों का इंतजार लंबा होता जाता है.

31 साल की तान्या मूलत: लखनऊ से है, दिल्ली की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती है और पिछले कई सालों से मातापिता के साथ दिल्ली में ही रह रही है, लेकिन शादी से डरती है. वह बताती है कि करीब 4-5 साल पहले उस के इर्दगिर्द दोस्तों की लाइन लगी रहती थी. जैसे ही आफिस में अपनी सीट से उठती, दोस्त आ जाते और फिर कहीं न कहीं खानेपीने जाने का प्रोग्राम बन जाता. इन में ज्यादातर लड़के थे और उसे शादी के लिए प्रपोज भी कर रहे थे. वे चाहते थे कि वह हां कर दे. लेकिन हर बार तान्या किसी न किसी बात को ले कर डर जाती. किसी लड़के के बातचीत के ढंग में अतिविश्वास झलकता था, तो किसी का परिवार रूढिवादी होता. कोई उस से जूनियर था, कमाता भी अच्छा नहीं था. राजीव नाम के एक लड़के से तो उस ने अपने मातापिता को भी मिलवाया था, लेकिन बाद में उसे राजीव बहुत ही भावुक और बेमतलब की बातें करने वाला बोरिंग लगने लगा. ऐसे ही समय निकल गया. आज उन सभी लड़कों की शादियां हो चुकी हैं, लेकिन अब भी तान्या का बहुत मन होता है, दोस्तों के साथ जाए, खाएपीए, घूमेफिरे. पहले की तरह उस का ग्रुप हो, लेकिन आज दोस्त अपनीअपनी जिंदगी में मसरूफ हैं. कभीकभी मिलने का कार्यक्रम बना कर रद्द तक कर देते हैं. तान्या की सुयोग्यतम भावी दुलहन वाली उम्र निकल गई. अब जब कभी दोस्तों के साथ कहीं घूमने जाती है तो वही पैसे खर्च करती है, जबकि यही दोस्त महज कुछ साल पहले तक उस पर खर्च करने के लिए एक पांव पर खड़े रहते थे.

सुयोग्यतम दूल्हा/दुलहन होने में मजा

जो कैरियर में अच्छा कर रहे हों, होशियार हों, खूबसूरत हों और अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते हों, तमाम लोग उन की तरक्की और उन की शादी के बारे में ही बातें करते हों, उन के यारदोस्त उन के जैसा बनने की कोशिश करते हैं, कुछ उन से जलते भी हैं. अगर ऐसे लड़केलड़की अपनी सारी खूबियों को खुद जानते हैं तो वे शादी करने से और भी ज्यादा डरने लगते हैं. उन्हें हमेशा इस बात का डर लगता है कि उन के बराबर का मैच नहीं मिला तो क्या होगा? डा. भूपेश शाह बताते हैं कि ऐसे लड़केलड़कियां बराबर का वर/वधू चाहने लगे हैं. वे अपने से थोड़ा ऊपर और नीचे के वर/वधू से सामंजस्य नहीं बैठाना चाहते.

यहां बात सिर्फ सेलिब्रिटी की नहीं है. आम जिंदगी में भी हमारे आसपास सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन होते ही हैं. जब लड़के या लड़की को यह एहसास होता है कि वह तो सुयोग्यतम भावी दूल्हा/दुलहन है उस के व्यवहार या स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है. ऐसे युवा ऐसे वक्त का वे आनंद उठाने लगते हैं. उन के आसपास सब लोग उन के साथ खूब फ्लर्ट करते हैं. उन्हें खासी एहमियत मिलती है. ऐसे में उन के परिवार या दोस्तों की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें सच से वाकिफ कराएं. आगे आने वाले वक्त के बारे में सोचने को कहें. डा. भूपेश शाह के मुताबिक, ऐसे संबंधों में रहते हुए भी मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से आप उतने ही तालमेल बैठा रहे होते हैं, जितना शादी के बाद बैठाना होता है.

शादी न करने के पीछे का डर

जब आप की जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा हो तो निम्न डर भी होते हैं, जो आप को शादी से रोकते हैं:

सामने वाला जो आप को प्रपोज कर रहा है, कहीं वह आप के पैसे और ओहदे के कारण तो आकर्षित नहीं है. हालांकि यह भय लड़कियों के मन में ज्यादा होता है. लेकिन लड़के भी चाहते हैं कि उन्हें पसंद किया जाए तो उन के स्वभाव या व्यक्तित्व को पसंद किया जाए न कि उन के ओहदे और कमाई को देख कर आप उन्हें पसंद करें. हालांकि वे आप को रिझाने के लिए अपने पैसे और ओहदे का इस्तेमाल कर रहे होते हैं.

अपने जैसी सोच वाले या अपने बराबर होशियार लड़कालड़की न मिलने का डर. यह भी लगता है कि कहीं गलती न हो जाए, सही व्यक्ति चुनने में, वह हमारे

सोचता है या नहीं, हमारी तरह होशियार है या नहीं. प्रोफैशन क्या है. कैरियर में आगे बढ़ने की इच्छा और काबिलीयत है या नहीं. यानी पहले की तरह अब हम सिर्फ एक घरेलू सीधीसादी लड़की या फिर एक बढि़या संस्कारी लड़का नहीं ढूंढ़ रहे होते, बल्कि एक पूरा पैकेज चाहिए और यह पैकेज जिस के पास है, वह खास हो जाता है.

कई बार मातापिता या किसी दोस्त की शादी में दूरियां देखी हों या असफल शादी देखी हो तो अपनी शादी के प्रति ज्यादा सतर्क हो जाते हैं. इसलिए इस शादी नाम के बंधन में बंधने से घबराहट होती है.

कुछ युवा खुद को किसी भी बंधन से आजाद रखना चाहते हैं. शादी कहीं उन के कैरियर में आगे बढ़ने के रास्ते न बंद कर दे. जिम्मेदारियों का बोझ उन की तरक्की में रुकावट होगा. शादी उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी या जवाबदेही लग रही होती है. डर होता है कि कहीं प्यार का रिश्ता, जबरदस्ती के रिश्ते में न बदल जाए.

जो जैसा चल रहा है बढि़या है. आप को पता ही नहीं है कि आप को शादी से किस तरह का डर है. बस, आप शादी करने के पीछे नहीं पड़ना चाहते, जब होनी होगी हो जाएगी. उस के लिए कोशिश करने का न तो वक्त न ही मन है.

शादी को ले कर आया लोगों की सोच में बदलाव

आज लड़का या लड़की ढूंढ़ने के मामले में सब से बड़ा आधार धर्म या जाति न हो कर प्रोफैशन और शिक्षा बन रही है. शादी डौटकौम के बिजनैस हैड गौरव रक्षित के मुताबिक, प्रोफैशन में भी कई श्रेणियां हैं. जैसे, अकसर कई गुजराती लोग बिजनैसमैन दामाद ही ढूंढ़ते हैं. उन्हें नौकरीपेशा लड़के पसंद नहीं आते. हालांकि जीवनसाथी चुनने के मामले में लोगों की पसंद में समयसमय पर बदलाव भी आते रहते हैं. जैसे आर्थिक मंदी के दौर के पहले तक भारत में सब से ज्यादा सौफ्टवेयर इंजीनियर्स की डिमांड थी, लेकिन मंदी के समय में जब विदेशों में कमा रहे बहुत से सौफ्टवेयर इंजीनियर भारत लौटे, तब से शादी के मामलों में उन की मांग घटी है. लड़कियों के मातापिता दूसरे व्यवसाय के लड़के ढूंढ़ने लगे. समय के साथ यह भी बदलाव आया है कि आज ज्यादातर लोग नौकरीपेशा बहू या बीवी ही ढूंढ़ रहे हैं.

गौरव कहते हैं कि यों तो शादी के लिए रजिस्टर करने वाले अधिकतर लोगों की उम्र 18 से 40 के बीच होती है, लेकिन सब से ज्यादा 24 से 30 साल के लोग इस में आते हैं और ज्यादातर लोग 30 से कम उम्र की लड़कियां ही ढूंढ़ते हैं. देर से शादी करने के बारे में डा. भूपेश शाह कहते हैं कि अधिक उम्र में शादी करने पर सब से ज्यादा मुश्किल लड़कियों को ही होती है, क्योंकि आज के जमाने में सचिन तेंदुलकर की तरह अधिक उम्र की लड़की से शादी करने के मामले अपवाद ही हैं.

वो गुजर रहे हैं उन्हीं परिस्थितियों से, जिन से शादी के बाद गुजरते

जिस तरह के जीवनसाथी की आप ने कल्पना की है, वैसा आप के इर्दगिर्द नहीं या फिर जो आप को पसंद आता है, उसे आप पसंद नहीं और जिन्हें आप पसंद हों, वे आप को पसंद नहीं. इसी कशमकश में जिंदगी के साल गुजर रहे हैं. लेकिन आप अड़े बैठे हैं कि जैसा जीवनसाथी आप चाहते हैं, उसी से शादी करेंगे नहीं तो शादी ही नहीं करेंगे. लेकिन इस दौरान अगर आप का बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड है तो क्या आप वैसे ही पूरी जिम्मेदारी उठा रहे हैं जैसे शादी के बाद उठाते? रीना उदय से शादी नहीं करना चाहती. अभी नहीं या कभी नहीं, यह तो वह भी नहीं जानती, लेकिन दोनों पिछले 3 सालों से गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड हैं. दोनों ने अलगअलग घर लिया लेकिन दोनों का ज्यादातर समय एकदूसरे के घर पर ही बीतता है. उदय और रोज शाम रीना को आफिस से घर छोड़ता है. दोनों ज्यादातर बाजार में खाते हैं या फिर रीना पका कर खिलाती है.

रीना की मां की तबीयत बिगड़ी तो उदय उस के साथ मेरठ गया और सारा खर्च उस ने उठाया. यानी जितनी जिम्मेदारी एक पति की उठाई जाती उतनी रीना उठा रही है और जितने नाजनखरे बीवियों के सहने पड़ते हैं वे सब उदय सह रहा है. बीच में करीब 8 महीने तक दोनों में बातचीत बंद थी. उस दौरान रीना के जीवन में एक लड़का भी आया, लेकिन उस के साथ भी बात आगे बनी नहीं. 8 महीने बाद रीना और उदय में फिर से सुलह हो गई. अब 2 साल से दोनों साथ हैं, लेकिन शादी के लिए रीना अभी भी तैयार नहीं. जीवन में जितने भी समझौते करने हैं वे तो आप कर ही रहे हैं तो फिर शादी से डर कैसा? यह तालमेल आप अपनी शर्तों पर भी कर सकते हैं, जैसे कि बौलीवुड एक्टर इमरान खान और उन की पत्नी अवंतिका ने किया. हाल ही में दोनों ने अपनी शादी पर थाईलैंड में अपनी लिखी शर्तें या कहें वादे पढे़. ऐसा कुछ आप भी सोच सकते हैं.

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अकेले हैं तो क्या गम है

महिलाएं अब शादी करने की सामाजिक बाध्यता से आजाद हो रही हैं. वे अपनी जिंदगी की कहानी अपने हिसाब से लिखना चाहती हैं और ऐसा करने वाली महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है. पहले दहेज के कारण ही शादी न होना एक बड़ा कारण होता था.

2015 में डी पाउलो ने औनलाइन ऐसे लोगों को अपने अनुभव शेयर करने को आमंत्रित किया जो अपनी इच्छा से सिंगल थे और इस स्टेटस से खुश थे. ‘कम्युनिटी औफ सिंगल पीपुल’ नाम के इस गु्रप में 5 महीनों के अंदर अलगअलग देशों से 600 से ज्यादा लोग शामिल हो गए और मई 2016 तक यानी 1 साल बाद यह संख्या बढ़ कर 1170 तक पहुंच गई.

इस औनलाइन ग्रुप में सिंगल लाइफ से जुड़े हर तरह के मसले व अच्छे अनुभवों पर चर्चा की जाती है न कि किसी संभावित हमसफर को आकर्षित करने के तरीके बताए जाते हैं.

बदलती सोच

पिछले दशक से जनगणना करने वाले अमेरिकी ‘यू. एस. सैंसस ब्यूरो’ द्वारा सितंबर के तीसरे सप्ताह को अनमैरिड और सिंगल अमेरिकन वीक के रूप में मनाया जा रहा है. पिछले 10 सालों से स्थिति यह है कि तलाकशुदों, अविवाहितों या विधवा/विधुरों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है.

दरअसल, अब विवाह को खुशियों की गोली नहीं माना जाता. जरूरी नहीं कि हर शख्स विवाह कर परिवार के दायरे में स्वयं को सीमित करे. पुरुष हो या स्त्री, सभी को अपनी मंजिल तय करने का हक है. इस दिशा में कुछ हद तक सामाजिक सोच भी बदल रही है.

लोग मानने लगे हैं कि सिंगल एक स्टेटस नहीं वरन एक शब्द है, जो यह बताता है कि यह शख्स मजबूत और दृढ़ संकल्प वाला है और किसी पर निर्भर हुए बगैर अपनी जिंदगी जी सकता है.

सामाजिक दबाव

ऐसा नहीं है कि हर जगह सिंगल्स की भावनाओं को समझा जाता है. ‘यूनिवर्सिटी औफ मिसौरी’ के शोधकर्ताओं के नए अध्ययन के मुताबिक भले ही मिड 30 की सिंगल महिलाओं की संख्या बढ़ी हो, मगर सामाजिक अकेलेपन से जुड़ा खौफ कम नहीं हुआ है. अविवाहित महिलाओं पर सामाजिक परंपरा को निभाने का सामाजिक दबाव कायम है.

टैक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा मध्यवर्ग की 32 अविवाहित महिलाओं का इंटरव्यू लिया गया. इन महिलाओं ने स्वीकार किया कि विवाह या दूसरे इस तरह के मौकों पर उन के सिंगल स्टेटस को ले कर बेवजह भेदते हुए से सवाल पूछे जाते हैं, तो वहीं बहुत से लोग यह कल्पना भी करने लगते हैं कि जरूर वह झूठ बोल रही है और उस की शादी हो चुकी होगी. पति से नहीं बनती होगी या वह तलाकशुदा होगी. कई लोग मुंह पर यह कह भी देते हैं कि शादी नहीं हुई तो जीवन बेकार है.

हाल के एक शोध के मुताबिक अविवाहित महिलाओं को दुख इस बात का नहीं होता कि वे सिंगल हैं बल्कि तकलीफ  यह रहती है कि समाज उन के सिंगल स्टेटस को स्वीकार नहीं करता और उन पर लगातार किसी से भी शादी कर लेने का दबाव बनाया जाता है.

‘ब्रिटिश सोशियोलौजिकल ऐसोसिएशन कौंन्फ्रैंस’ में किए गए एक अध्ययन में पूरे विश्व से 22,000 विवाहित और अविवाहित लोगों के प्रसन्नता के स्तर को मापा गया और पाया गया कि वैसे देश जहां विवाह से जुड़ी पारंपरिक सोच अधिक मजबूत है वहां अविवाहितों में अधिक अप्रसन्नता पाई गई क्योंकि वहां शादी न करने वाली महिलाओं को दया वाली या नीच निगाहों से देखा जाता है.

पाया गया है कि 35 साल से ऊपर की सिंगल महिलाएं फिर भी अपनी स्थिति से संतुष्ट रहती हैं, जबकि यंग वूमन खासकर 25 से 35 साल की जमाने से सब से ज्यादा खौफजदा होती हैं क्योंकि उन से सब से ज्यादा सवाल पूछे जाते हैं. 25 साल से पहले इस संदर्भ में ज्यादा चर्चा नहीं होती.

कुछ तो लोग कहेंगे

सिंगल महिलाओं के लिए जरूरी है कि मुफ्त की सलाह देने वालों की बातों से दिलोदिमाग पर दबाव न बनने दें. आप जरा अपनी निगाहें घुमा कर देखिए, जो शादीशुदा हैं, क्या उन्हें हर खुशी मिल रही है? क्या उन की जिंदगी में नई परेशानियों ने धावा नहीं बोल दिया? कोई भी काम करने से पहले घर वालों को सूचित करना, पैसों के लिए दूसरों का मुंह देखना, एकएक पैसे का हिसाब देना, अपने वजूद को भूल कर हर तरह के कंप्रोमाइज के लिए तैयार रहना, घर संभालना ये सब आसान नहीं होता. बहुत से तालमेल बैठाने पड़ते हैं, जिन से जुड़े तनाव से सिंगल वूमन आजाद रहती है.

जो महिलाएं आप पर शादी करने का दबाव डाल रही हैं, वे दरअसल आप की स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और झंझटों से मुक्त जिंदगी से जलती हैं.

आप अपने दिल की सुनिए. यदि आप किसी ऐसे शख्स का इंतजार कर रही हैं, जो आप की सोच और नजरिए वाला हो तो इस में कुछ भी गलत नहीं. बस शादी करनी जरूरी है, इसलिए किसी से भी कर लो, भले ही वह आप के योग्य नहीं, इस बात का कोई औचित्य नहीं.

कुछ कर के दिखाना है

बहुत सी लड़कियों/महिलाओं के दिलों में कुछ करने का जज्बा होता है, मगर शादी के बाद आमतौर पर वे ऐसा कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाती हैं. एक तरफ  घरपरिवार की जिम्मेदारियां, तो दूसरी तरफ बच्चे. ऐसे में वे चाह कर भी अपने सपनों को जी नहीं पातीं. जिन लड़कियों की प्राथमिकता अपना पैशन होता है, शादी नहीं वे सहजता से शादी न करने का फैसला ले पाती हैं या फिर शादी करती भी हैं तो अपने ही जैसे पैशन या हौबी रखने वाले से.

गलत से बेहतर है न हो जीवनसाथी

पेशे से पत्रकार 32 वर्षीय अनिंदिता कहती हैं, ‘‘गलत व्यक्ति के साथ आप जुड़ जाती हैं तो आप को धोखा मिलता है या फिर आप का जीवनसाथी गालीगलौज और मारपीट करता है तो क्या इस कदर अपने सम्मान को दांव पर लगा कर भी विवाह बंधन में बंधना जरूरी है?’’

सिंगल्स होते हैं ज्यादा जिम्मेदार

अकसर माना जाता है कि सिंगल व्यक्ति सैल्फ सैंटर्ड होता है, पर ऐसा नहीं है. सिंगल अपनी जिंदगी की स्क्रिप्ट स्वयं लिखता है. जब व्यक्ति शादी करता है तो उस का फोकस अपने परिवार और बच्चों तक सिमट कर रह जाता है. मगर सिंगल व्यक्ति दिल से मांबाप, दोस्तों, रिश्तेदारों व सभी करीबी व्यक्तियों के करीब होता है. सही अर्थों में वह स्वार्थरहित और सभी के लिए स्नेहपूर्ण व्यवहार कर पाता है.

शोधों के मुताबिक  हम सभी के पास खुशी की एक बेसलाइन होती है और शादी साधारणगत इसे बदलती नहीं, उस अल्पकालीन खुशी के सिवा.

ऐक्सपर्ट्स के विचार

विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में शादी या जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं के बारे में सामाजिक अपेक्षाएं बनी रहती हैं और इन अपेक्षाओं को पूरा न करने पर चुनौतीपूर्ण एहसास का सामना करना पड़ता है. हालांकि यह ध्यान देना आवश्यक है कि हम में से प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को स्वयं स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होता है. हालांकि इस तरह के दबाव से निबटना दुखदाई हो सकता है.

यदि इस से आप को असहज लगता है तो इस बारे में अपनी राय जोर दे कर रखनी होगी. याद रखें कि किसी भी प्रकार का दबाव मन पर न डालें क्योंकि शादी अपने व्यक्तिगत जीवन का विकल्प है और आप को इस के लिए निर्णय लेने से पहले मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है.

समीर पारीख, मनोचिकित्सक 

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शादी की 7 नई परिभाषाएं

शादी जिंदगी का सब से महत्त्वपूर्ण रिश्ता है. हर रिश्ते में कुछ उसूल, सिद्धांत और नियम होते हैं. मगर यह जरूरी नहीं कि जो नियम एक रिश्ते पर सही साबित हों वे दूसरे पर भी लागू हो जाएं. समय के साथ हर चीज बदलती है तो फिर पतिपत्नी के रिश्ते में भी बदलाव लाजिम है. कुछ वर्षों से दांपत्य के रिश्ते में भी बदलाव आए हैं. कुछ मान्यताएं पुरानी मानी जाने लगी हैं और उन की जगह नई मान्यताएं लेने लगी हैं. वे अच्छी हैं या बुरी इस का फैसला हर दंपती अपने हिसाब से करता है.

जानिए, किस तरह बदल रहे हैं आज के दंपती शादी की पुरानी परिभाषाओं को:

1. पार्टनर की इच्छा

पुरानी परिभाषा: शादी में पार्टनर की इच्छा को महत्त्व देना जरूरी है.

नई परिभाषा: वैसे तो नया नियम इस पुराने नियम को खारिज नहीं करता, पर यह जरूर कहता है कि शादी में इतना समर्पित होना भी अच्छा नहीं कि अपना वजूद ही खत्म हो जाए. अपनी इच्छाओं और जरूरतों को समझना जरूरी है. तभी रिश्ते खुश रह सकेंगे. अगर रिश्ते खुश नहीं रहेंगे तो जीवन में किसी मोड़ पर शिकायतें जन्म लेने लगेंगी. इसलिए अपनी इच्छाओं व जरूरतों में फर्क करना और उन्हें समझना जरूरी है. खुद की खुशी नहीं चाहेंगे तो दूसरे को भी खुश नहीं रख सकेंगे.

2. संबंधों में पहल

पुरानी परिभाषा: सैक्स संबंधों में पहल पुरुष को करनी चाहिए.

नई परिभाषा: नए दंपती मानते हैं कि सैक्स संबंधों में पहल कोई भी कर सकता है. स्त्रियां भी अब ऐक्टिव पार्टनर हैं. वे अपनी सैक्सुअल संतुष्टि को ले कर खुल कर बात करती हैं. पुरुष भी फीमेल पार्टनर की इच्छा, पसंदनापसंद का खयाल रखते हैं. सैक्स पर खुल कर बात करना अब टैबू नहीं रहा. ये कपल्स फैमिली प्लानिंग, सैक्सुअल हैल्थ पर कोर्टशिप के दौरान ही बात करना ठीक समझते हैं. नई व्यस्त दिनचर्या में तो वे डेट प्लानिंग भी करने लगे हैं. सैक्स संबंधों को वे ऐंजौय करते हैं. साथ ही लंबे समय तक सैक्सुअली ऐक्टिव रहने के लिए अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने लगे हैं. पतिपत्नी के रिश्ते में सबकुछ अच्छा चले, इस के लिए प्यार ही नहीं, सैक्सुअल कंपैटिबिलिटी भी जरूरी है. इस सैक्सुअल कैमिस्ट्री में कई पहलू शामिल हैं जैसे चाह, अभिव्यक्ति का तरीका, सैक्स वैल्यूज और सैक्सुअल पर्सनैलिटी.

कई कपल्स के बीच मानसिक, भावनात्मक अनुकूलता तो होती है, लेकिन सैक्सुअल स्तर पर सोच एकजैसी नहीं होती. इस से रिश्ते का एक पहलू उपेक्षित होता है. नतीजा होता है असंतुष्टि, सैक्सुअल कुंठाएं, अवसाद, बेचैनी, भावनात्मक दूरी, गुस्सा और कई बार नपुंसकता भी. दोनों पार्टनर्स को सैक्स में संतुष्टि नहीं मिलती तो धीरेधीरे एक पार्टनर सैक्स से भागने लगता है. इस से कम कामेच्छा (लो लिबिडो) की भावना पनपने लगती है, जो समय के साथ जीरो लिबिडो में बदल सकती है. इस से रिश्ते के बाकी पहलू भी प्रभावित होने लगते हैं.

रश्मि और मानस शादी के 3 साल बाद काउंसलर से मिलने पहुंचे. पत्नी की लो डिजायर्स और पति की अधिक इच्छा के बीच तालमेल नहीं बैठ पा रहा था. बातचीत में दोनों ने माना कि उन्होंने कभी एकदूसरे से अपनी सैक्स डिजायर्स नहीं बांटीं. सैक्स सिर्फ शारीरिक ही नहीं भावनात्मक क्रिया भी है. हर कपल के लिए जरूरी है कि वे इस पर बात करें. इंटरकोर्स के बाद उन्हें कैसा महसूस होता है? वे अंतरंग रिश्ते से क्या चाहते हैं? इसे वे करीब आने का जरीया मानते हैं या शारीरिक रसायनों को रिलीज करने का माध्यम? उन्हें सैक्स में ऐक्स्प्लोर करना अच्छा लगता है या वे सिर्फ इसे निभाते हैं? यदि एक के लिए सैक्स का अर्थ प्यार और इंटीमेसी है और दूसरे के लिए केवल रिलैक्स होने का तरीका तो उन के बीच सैक्सुअल कैमिस्ट्री मुश्किल हो सकती है.

3. झगड़ा और दांपत्य

पुरानी परिभाषा: झगड़ों से रिश्तों में दरार पड़ती है.

नई परिभाषा: झगड़ों से रिश्ते में प्यार बढ़ता है. बशर्ते उन्हें सही समय पर सुलझा लिया जाए और तार्किक ढंग से उन पर सोचा जाए. नए जोडे़ मानते हैं कि पतिपत्नी होने का अर्थ यह नहीं कि हर बात पर समान ढंग से सोचा जाए. मतभिन्नता हो सकती है और कई बार छोटीछोटी बातों पर बहस हो सकती है. बहस हो भी क्यों नहीं. आखिर अपनी बात रखने का यह सब से प्रभावशाली तरीका है.

4. अलगाव

पुरानी परिभाषा: शादी 7 जन्मों का बंधन है. इस में तलाक की बात नहीं करनी चाहिए.

नई परिभाषा: शादी इसी जन्म में निभाया जाने वाला रिश्ता है. यह बंधन नहीं. कई बार ऐसी स्थितियां आ जाती हैं जब पतिपत्नी का साथ चलना असंभव हो जाता है. पुरजोर कोशिशों के बावजूद यदि मुद्दे नहीं सुलझते तो रिश्तों को ढोते रहने के बजाय नए कपल समझदारी से अलग हो जाते हैं. कई कपल्स ऐसे भी हैं जिन के बच्चे हैं और अलग होने के बावजूद वे परवरिश से जुड़ी जिम्मेदारियां मिलजुल कर निभा रहे हैं.

5. जब न सुलझे विवाद

पुरानी परिभाषा: घर की बात घर में रहे, बाहर न जाए.

नई परिभाषा: पतिपत्नी को आपसी मामले खुद सुलझाने चाहिए. उन्हें किसी से शेयर नहीं किया जाना चाहिए. इस पुरानी धारणा को नए दंपती एक सीमा के भीतर ही स्वीकार करते हैं. जब तक उन्हें लगता है कि वे खुद समस्या को सुलझा सकते हैं, तब तक वे मुद्दों को तीसरे तक नहीं पहुंचने देते. लेकिन जैसे ही उन्हें लगने लगता है कि कुछ बातें ऐसी हैं, जिन्हें दोनों मिल कर नहीं सुलझा पा रहे हैं तो वे किसी तीसरे की मदद लेने से नहीं हिचकिचाते.

6. किस का ज्यादा महत्त्व

पुरानी परिभाषा: घर में मेल (पति) मैंबर का महत्त्व ज्यादा है. वह जो कहे उसे मानना होगा.

नई परिभाषा: शादी एक कंपैनियनशिप है, जिस में दोनों की बातों, राय या विचारों का बराबर महत्त्व है. इसीलिए दूसरे को सुनना और उदारता से प्रतिक्रिया करना जरूरी है. नए दंपती पार्टनर की बातों को सुनना, स्वीकारना जानते हैं, मगर उन्हें आदेशमान कर उन का अनुकरण नहीं करते. पार्टनर से सहमत नहीं हैं तो गुस्सा या तुरंत प्रतिक्रिया करने के बजाय वे शांति से अपनी राय व्यक्त करना जानते हैं.

7. औपचारिकता की सीमा

पुरानी परिभाषा: औपचारिकता की क्या जरूरत है? पतिपत्नी प्रेमीप्रेमिका नहीं.

नई परिभाषा: दांपत्य जीवन के शुरुआती दिनों में पतिपत्नी एकदूसरे के लिए नई किताब की तरह होते हैं, जिस का हर चैप्टर अपने में रहस्य और रोमांच समेटे होता है. लेकिन पूरी किताब पढ़ लेने के बाद उन में यह सोच पैदा हो जाती है कि अब तो वे एकदूसरे को अच्छी तरह जान चुके हैं. अब उन्हें एकदूसरे से किसी भी तरह की औपचारिकता की जरूरत क्यों? इसी के चलते वे एकदूसरे को कई बातें बताना या पूछना जरूरी नहीं समझते. यह विचार उन के रिश्ते को प्रभावित करना शुरू कर देता है. कोई भी काम करने से पहले एकदूसरे को उस की जानकारी देने, गलती हो जाने पर माफी मांगने और कुछ खास मौकों पर एकदूसरे की तारीफ करने जैसी औपचारिकताएं इस रिश्ते की गरमाहट को बरकरार रखने के लिए जरूरी होती हैं. भागदौड़ भरी जिंदगी और घरपरिवार की बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच पतिपत्नी भूल जाते हैं कि उन का एकदूसरे के प्रति भी कुछ दायित्व बनता है.

लंबा समय साथ बिताने के बाद कई बार पतिपत्नी एकदूसरे को फौर ग्रांटेड लेने लगते हैं. लेकिन नए कपल्स पुरानी पीढ़ी की इस धारणा को खारिज करते हैं. रिश्तों का नया फौर्मूला कहता है कि शादी में भी थोड़ी औपचारिकता जरूरी है. खास मौकों पर गिफ्ट्स का आदानप्रदान, नाइट आउट, डिनर प्लान करना और कभीकभी प्रेमीप्रेमिका की तरह अपने लिए कुछ क्षण चुराना जरूरी है. यों भी महानगरीय नौकरीपेशा दंपती बहुत कम समय साथ बिता पाते हैं. ऐसे में एकदूसरे को यह एहसास कराना जरूरी है कि उन्हें पार्टनर का खयाल है और व्यस्त दिनचर्या में भी वे पार्टनर को कभी नहीं भूलते. शादी एक लौंगटर्म इन्वैस्टमैंट की तरह है. जितना प्यार डालेंगे, भविष्य में दोगुना वापस मिलेगा. ज्यादातर झगड़ों का तार्किक आधार नहीं होता. वे किसी भी बात पर हो सकते हैं, लेकिन उन्हें सुलझाने के लिए तार्किक होने की जरूरत पड़ती है. शादी को निभाने के लिए त्याग, समर्पण, परस्पर भरोसा, समझौता, तालमेल आदि जरूरी है. मगर इन में से किसी भी एक पर अति से रिश्ते में खटास पैदा हो सकती है.

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दूसरी शादी को अपनाएं ऐसे

जैसे जैसे स्नेहा के विवाह के दिन नजदीक आते जा रहे थे, वैसेवैसे उस की परेशानियां बढ़ती जा रही थीं. अतीत के भोगे सुनहरे पल उसे बारबार कचोट रहे थे. विवाह के दिन तक वह उन पलों से छुटकारा पा लेना चाहती थी, लेकिन सौरभ की यादें थीं कि विस्मृत होने के बजाय दिनबदिन और गहराती जा रही थीं. बीते सुनहरे पल अब नुकीले कांटों की तरह उस के दिलदिमाग में चुभ रहे थे. मातापिता भी स्नेहा के मन के दर्द को समझ रहे थे, लेकिन उन के सामने स्नेहा के दूसरे विवाह के अलावा कोई और रास्ता भी तो नहीं था. स्नेहा की उम्र भी अभी महज 23 साल थी. उसे अभी जिंदगी का लंबा सफर तय करना था. ऐसे में उस के मातापिता अपने जीतेजी उसे तनहाई से उबार देना चाहते थे. यही सोच कर उन्होंने स्नेहा की ही तरह अपने पूर्व जीवनसाथी के बिछुड़ जाने की वेदना झेल रहे एक विधुर व्यक्ति से उस का विवाह तय कर दिया.

शादी जो असफल रही

कई मामलों में औरत दूसरा विवाह करने के बावजूद अपने पहले पति से पूरी तरह से नाता नहीं तोड़ पाती है. दूसरी बार तलाक की शिकार 32 साल की देवयानी बताती हैं, ‘‘दूसरा विवाह मेरे लिए यौनशोषण के अलावा कुछ नहीं रहा. मेरा पहला विवाह महज इसलिए असफल रहा था, क्योंकि मेरे पूर्व पति नपुंसक थे और संतान पैदा करने में नाकाबिल. विवाह के बाद मेरे दूसरे पति ने पता नहीं कैसे यह समझ लिया था कि सैक्स मेरी कमजोरी है. इसीलिए अपना पुरुषोचित अहं दिखाने के लिए वे मेरा यौनशोषण करने लगे. इस से उन के अहं की तो संतुष्टि होती थी, लेकिन वे मेरे लिए मानसिक रूप से बहुत ही पीड़ादायक सिद्ध होते थे.

‘‘मुझे लगा कि उन से तो मेरा पहला पति ही बेहतर था, जो संवेदनशील तो था. मेरे मन के दर्द और प्यार को समझता तो था. पहले पति से तलाक और दूसरे से विवाह का मुझे काफी पछतावा होता था, लेकिन अब मैं कुछ कर नहीं सकती थी. इसी बीच एक दिन शौपिंग के दौरान मेरी मुलाकात अपने पहले पति से हुई. तलाक की वजह से वे काफी टूटे से लग रहे थे. चूंकि उन की इस हालत के लिए मैं खुद को कुसूरवार समझती थी, इसलिए उन से मिलने लगी. मेरे दूसरे पति चूंकि शुरू से शक्की थे, इसलिए मेरा पीछा करते या निगरानी कराते. मेरे दूसरे पति का व्यवहार इस हद तक निर्मम हो गया कि मुझे एक बार फिर अदालत में तलाक के लिए हाजिर होना पड़ा. अब मैं ने दृढ़संकल्प कर लिया है कि तीसरा विवाह कभी नहीं करूंगी. सारी जिंदगी अकेले ही काट दूंगी.’’

नमिता बताती है, ‘‘जब मुझे शादी का जोड़ा पहनाया गया तथा विवाह मंडप में 7 फेरों के लिए खड़ा किया गया, तो मेरे मन में दूसरे विवाह का उत्साह कतई नहीं था. फूलों से सजे पलंग पर बैठी मैं जैसे एकदम बेजान थी. इन्होंने जब पहली बार मेरा स्पर्श किया तो शुभम की यादों से चाह कर भी मुक्त नहीं हो पाई. इसलिए दूसरे पति को अंगीकार करने में मुझे काफी समय लगा.’’

यह समस्या बहुत सी महिलाओं की यह समस्या सिर्फ स्नेहा, देवयानी व नमिता की ही नहीं है, बल्कि उन सैकड़ोंहजारों महिलाओं की है, जो वैधव्य या तलाक अथवा पति द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद दोबारा विवाह करती हैं. पहला विवाह उन की जिंदगी में एक रोमांच पैदा करता है. किशोरावस्था से ही मन में पलने वाले विवाह की कल्पना के साकार होने की वे सालों प्रतीक्षा करती हैं. पति, ससुराल और नए घर के बारे में वे न जाने कितने सपने देखती हैं. लेकिन वैधव्य या तलाक से उन के कोमल मन को गहरा आघात पहुंचता है. दूसरा विवाह उन के लिए तो लंबी तनहा जिंदगी को एक नए हमसफर के साथ काटने की विवशता में किया गया समझौता होता है. इसलिए दूसरे पति, उस के घर और परिवार के साथ तालमेल बैठाने में विधवा या तलाकशुदा औरत को बड़ी कठिनाई होती है.

जयपुर के एक सरकारी विभाग में नौकरी करने वाली स्मृति को यह नौकरी उन के पति की मौत के बाद उन की जगह मिली थी. स्मृति ने बताया, ‘‘यह विवाह मेरी मजबूरी थी. चूंकि पति के दफ्तर वाले मुझे बहुत परेशान करते थे. वे कटाक्ष कर इसे सरकार द्वारा दान में दी गई बख्शीश कह कर मेरी और मेरे दिवंगत पति की खिल्ली उड़ाते थे. मेरे वैधव्य और अकेलेपन के कारण वे मुझे अवेलेबल मान कर लिफ्ट लेने की कोशिश करते, लेकिन जब मैं ने उन्हें किसी तरह की लिफ्ट नहीं दी, तो वे अपने या किसी और के साथ मेरे झूठे संबंधों की कहानियां गढ़ते. वे दफ्तर में अपने काम किसी न किसी बहाने मेरे सिर मढ़ देते और बौस से मेरी शिकायत करते कि मैं दफ्तर में अपना काम ठीक से नहीं करती हूं. बौस भी उन्हीं की बात पर ध्यान देते. ऐसे में मुझे लगा दूसरा विवाह कर के ही इन परेशानियों से बचा जा सकता है.

‘‘संयोगवश मुझे एक भला आदमी मिला, जो मेरा अतीत जानते हुए भी मुझे सहर्ष स्वीकारने को राजी हो गया. हम दोनों अदालत में गए, जरूरी खानापूर्ति की और जब विवाह का प्रमाणपत्र ले कर बाहर निकले, तो एहसास हुआ कि मैं अब विधवा नहीं, सुहागिन हूं. पर सुहागरात का कोई रोमांच नहीं हुआ. वह दिन आम रहा और रात भी वैसी ही रही जैसी आमतौर पर विवाहित दंपतियों की रहती है. बस, खुशी इस बात की थी कि अब मैं अकेली नहीं हूं. घर में ऐसा मर्द है जो पति है. इस के बाद दफ्तर वालों ने परेशान करने की कोशिश करना खुद छोड़ दिया.’’

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

मनोचिकित्सक डा. शिव गौतम कहते हैं, ‘‘दरअसल, दूसरे विवाह की मानसिक तौर पर न तो पुरुष तैयारी करते हैं और न ही महिलाएं. दोनों ही उसे सिर्फ नए सिरे से अपना टूटा परिवार बसाने की एक औपचारिकता भर मानते हैं, जिस का खमियाजा दोनों को ही ताजिंदगी भुगतना पड़ता है.

‘‘दूसरे पति को हमेशा यह बात कचोटती है कि उस की पत्नी के शरीर को एक व्यक्ति यानी उस का पहला पति भोग चुका है, उस के तन और मन पर राज कर चुका है. उस की पत्नी का शरीर बासी खाने की तरह उस के सामने परोस दिया गया है. इसलिए ऐसे बहुत से पति दूसरा विवाह करने वाली पत्नी के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते हैं.’’

महिलाओं की मानसिक समस्याओं का निदान करने वाली मनोचिकित्सक डा. मधुलता शर्मा ने बताया, ‘‘मेरे पास इस तरह के काफी मामले आते हैं. पति दूसरा विवाह करने वाली पत्नी को मन से स्वीकार नहीं कर पाता. उसे हमेशा अपनी पत्नी के बारे में शक बना रहता है खासकर तब जब उस की पत्नी तलाकशुदा हो. उसे लगता है कि उस के साथ विवाह के बावजूद उस की पत्नी का गुप्त संबंध अपने पूर्व पति से बना हुआ है. उस की गैरमौजूदगी में पत्नी अपने पूर्व पति से मिलतीजुलती है. उस का शक इस हद तक पहुंच जाता है कि उस की निगरानी करना शुरू कर देता है.’’

खुद को विवाह के लिए तैयार करें

डा. मधुलता के यहां एक काफी मौडर्न महिला सुनैना से मुलाकात हुई. उस ने अब तक 4 शादियां कीं और अब 5वीं शादी की तैयारी में थी. सुनैना ने हंसते हुए बताया, ‘‘जब मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी, तब मातापिता ने शादी कर दी. लेकिन डेढ़ साल बाद हमारा तलाक हो गया. दूसरे पति की सड़क हादसे में मौत हो गई. तीसरे व चौथे पति से भी तलाक हो गया. लेकिन चारों पतियों के साथ मैं ने यादगार समय बिताया. जिन तीनों पतियों ने मुझे तलाक दिए, आज भी मेरी उन से अच्छी दोस्ती है. अकसर हम लोग मिलते रहते हैं. अब मैं ने 5वां पति तलाश लिया है. मेरे मन में इस विवाह के प्रति वही उत्साह, रोमांच और उत्सुकता है, जो पहले विवाह के समय थी. इस बार हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड जाएंगे.’’ सुनैना ने पुनर्विवाह के बारे में अपना मत कुछ इस तरह व्यक्त किया, ‘‘शादी दूसरी हो या तीसरी या फिर चौथी या 5वीं, खास बात यह है कि आप खुद को विवाह के लिए इस तरह तैयार कीजिए जैसे आप पहली बार विवाह करने जा रही हैं. आप के नए पति को भी इस से मतलब नहीं होना चाहिए कि आप विवाह के अनुभवों से गुजर चुकी हैं. दरअसल, वह तो बस इतना चाहता है कि आप उस के साथ बिलकुल नईनवेली दुलहन की तरह पेश आएं.’’

गौरतलब है कि कम उम्र से ही लड़कियां अपने पति, ससुराल और सुहागरात की जो कल्पनाएं और सपने संजोए रहती हैं, वे बड़े ही रोमांचक होते हैं. लेकिन विवाह के बाद तलाक व वैधव्य के हादसे से गुजर कर उसे जब दोबारा विवाह करना पड़ता है, तो उस में पहले विवाह का सा न तो खास उत्साह रहता है, न रोमांच.

ऐसा क्यों होता है

एक ट्रैवेल ऐजैंसी में कार्यरत महिला प्रमिला ने बताया, ‘‘15-16 साल की उम्र से ही लड़कियां अपने पति और घर के बारे में सपने देखना शुरू कर देती हैं. वे सुहागरात के दौरान अपना अक्षत कौमार्य अपने पति को बतौर उपहार प्रदान करने की इच्छा रखती हैं. इसलिए अधिकतर लड़कियां अपने बौयफ्रैंड या प्रेमी को चुंबन की हद तक तो अपने शरीर के अंगों का स्पर्श करने की इजाजत देती हैं, लेकिन कौमार्य भंग करने की इजाजत नहीं देतीं. साफ शब्दों में कह देती हैं कि यह सब तुम्हारा ही है, लेकिन इसे तुम्हें विवाह के बाद सुहागरात को ही सौंपूंगी.

‘‘लेकिन दूसरी बार विवाह करने वाली औरत के पास अपने दूसरे पति को देने के लिए ऐसा उपहार नहीं होता. अगर दूसरा पति समझदार हुआ, तो उस के मन में यह आत्मविश्वास पैदा कर सकता है कि तुम्हारा पिछला जीवन जैसा भी रहा हो, लेकिन मेरे लिए तुम्हारा प्रेम ही कुंआरी लड़की है. मेरे दूसरे पति मनोज ने यही किया था. उस ने विवाह को जानबूझ कर 6 महीने के लिए टाला और इस दौरान मेरे प्रति अपना प्रेम प्रगाढ़ करता रहा. हम लोग अकसर डेटिंग पर जाते. वह मेरे साथ प्रेमी का सा व्यवहार तो करता, लेकिन शारीरिक संबंध की बात न करता. इसीलिए कभीकभी तो मुझे उस के पुरुषत्व पर शक होने लगता.

‘‘संभवतया उस ने मेरे शक को भांप लिया था, इसलिए एक दिन वह मुझे गोवा ले गया. समुद्र के किनारे हम प्रेमियों की तरह एकदूसरे के साथ प्रेम करते रहे. वह बोला कि प्रमिला, मैं इस समय चाहूं तो तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता हूं और तुम मना भी नहीं कर सकतीं, लेकिन मैं चाहता हूं कि विवाह के पहले तुम से उसी स्थिति में आ जाऊं, जिस में तुम अपने पहले विवाह के समय थीं.

‘‘मनोज की इस बात ने मेरे आत्मविश्वास को काफी बल दिया. उस का मानना था कि औरत हमेशा तनमन से अपने पति के प्रति समर्पित रहती है, क्योंकि विवाह के बाद उस का संबंध सिर्फ अपने पति से रहता है. और सचमुच मनोज ने 6 माह के दौरान मेरे मन को तलाकशुदा के बजाय कुंआरी लड़की बना दिया था. सुहागरात के समय मैं अपना कौमार्य किसी और को उपहारस्वरूप दे चुकी थी, लेकिन मनोज के साथ सब कुछ नयानया तथा रोमांचकारी लग रहा था.’’

फर्ज मातापिता का

मनोवैज्ञानिक डा. मधुलता बताती हैं, ‘‘औरत 2 बार विवाह करे या 3 बार, असली बात उस माहौल की है, जिस में उसे दूसरी या तीसरी बार विवाह के बाद जिंदगी गुजारनी होती है. यह बात सही है कि पहले पति की मीठीकड़वी यादों से वह दूसरे विवाह के समय खुद को आजाद नहीं कर पाती. ऐसे में उस के मातापिता का फर्ज बनता है कि दूसरे विवाह के पहले ही वे उसे मानसिक रूप से तैयार करें, विवाह के प्रति उस के मन में उत्साह पैदा करें. लेकिन ऐसे मामलों में अकसर मातापिता तथा परिवार के अन्य लोग पहले से ही ऐसा माहौल तैयार कर देते हैं गोया लड़की का विवाह वे महज इसलिए कर रहे हैं ताकि उस का घर बस जाए और उसे जिंदगी अकेले न काटनी पड़े. यह व्यवहार उस के मन में निराशा पैदा करता है.’’

दूसरेतीसरे विवाह की स्थिति वैधव्य की वजह से उपजी हो या तलाक के कारण, परिवार वालों को चाहिए कि बेटी के पुनर्विवाह से पूर्व, विवाह के बाद में भी उस के साथ ऐसा ही स्नेहपूर्ण व्यवहार करें, गोया वे अपना या बेटी का बोझ हलका नहीं कर रहे, बल्कि समाज की इकाई को एक परिवार को प्रतिष्ठित सदस्य दे रहे हैं.

ऐसे मामलों में सगेसंबंधियों और परिचितों का भी कर्तव्य बनता है कि वे पुनर्विवाह के जरीए जुड़ने वाले पतिपत्नी के प्रति उपेक्षा का भाव न रख कर जहां तक हो सके अपनी रचनात्मक भूमिका निभाएं. विधवा या तलाकशुदा महिला का पुनर्विवाह मौजूदा वक्त की जरूरत है. इस से औरत को सामाजिक व माली हिफाजत तो मिलती ही है, साथ ही वह चाहे तो अतीत को भुला कर खुद में वसंत के भाव पैदा कर के दूसरे विवाह को भी प्रथम विवाह जैसा ही उमंगों से भर सकती है.

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शादी में न करें जल्दबाजी

शादी को ले कर हमारे समाज में 2 बातें प्रचलित हैं- छोटी उम्र में शादी और चट मंगनी पट ब्याह. लेकिन इन्हीं 2 कारणों से कई बार शादीशुदा जीवन में परेशानियां झेलनी पड़ जाती हैं. आखिर शादी जैसा अहम निर्णय, जिस से हमारा पूरा जीवन बदल जाता है, उसे लेने में जल्दबाजी क्यों?

कच्ची उम्र की कम समझदारी और कम तजरबा हमारे आने वाले जीवन में ऐसा विष घोलने की क्षमता रखता है, जिस से मीठे के बजाय कड़वे अनुभव हमारी यादों में जुड़ते जा सकते हैं. शादी सिर्फ 2 प्यार करने वालों का मिलन नहीं, अपितु यह ऐसे 2 इंसानों को एक बंधन में बांधती है जिन की परवरिश, शख्सीयत, भावनाएं, शिक्षा और कई बार भाषा भी भिन्न होती है. कभीकभी तो शादी के जरीए 2 अलग संस्कृतियों का भी मेल होता है.

ऐसे बंधन को बांधने से पहले समझदारी इसी में है कि एकदूसरे की पसंदनापसंद, जिंदगी के लक्ष्यों, एकदूसरे के परिवारों के बारे में जानने के लिए ज्यादा वक्त दिया जाए. धैर्य के साथ अपने होने वाले साथी को अच्छी तरह जानने में ही अक्लमंदी है. टैक्सास विश्वविद्यालय के प्रोफैसर टेड हस्टन के अनुसार विवाह के धागे को जोड़ने से पहले अपनी आंखें खोल कर अपने साथी की अच्छाइयां तथा कमियां भली प्रकार तोल लेनी चाहिए.

सही कारणों के लिए ही करें शादी

हां करने से पहले जांच लें कि आप हां क्यों करना चाहती हैं. कहीं इसलिए तो नहीं कि परिवार वाले कह रहे हैं या फिर उम्र हो रही है अथवा आप की सहेलियों की शादियां हो रही हैं? ध्यान रहे कि इस नए रिश्ते को निभाना आप को है. इसलिए अच्छी तरह विचार कर के निर्णय लें.

उर्मिला आज भी पछताती है कि क्यों उस ने कालेज में चूड़े पहनने के चाव में शादी की इतनी जल्दी मचाई. चूड़े तो पहन लिए पर जल्द ही गलत आदमी से शादी करने का दंड उसे भुगतना पड़ा. जिस उम्र में उसे अपनी शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए था, उस उम्र में उठाए गलत कदम के कारण वह स्वावलंबी नहीं बन पाई और अब गलत पति को सहने के सिवा उस के पास कोई और चारा नहीं.

आर्थिक मजबूती परख लें: 18 की होते ही रचना ने अपने ही संगीत शिक्षक से भाग कर शादी कर ली. किंतु तोतामैना का यह रोमांस अल्पायु निकला. कारण? उस का पति केवल उसे ही संगीत सिखाता था. उस के पास और कोई विद्यार्थी नहीं था. जल्द ही पैसे की तंगी ने शादी के रिश्ते से संगीत गायब कर दिया. जब गृहस्थी का भार पड़ा तो दोनों ही अपने निर्णय पर पछताए.

यदि आप का होने वाला पति घरगृहस्थी के खर्च उठाने में असमर्थ है तो शादी का डूबना तय समझिए.

स्वभाव जांचना बेहद जरूरी: अकसर लड़कियां सुनहरे ख्वाब संजोते समय अपने प्रेमी या मंगेतर का स्वभाव जांचना दरकिनार कर बैठती हैं. कुछ ये सोचती हैं कि अभी उन का रिश्ता मजबूत नहीं है. इसीलिए वह उन से इस प्रकार बात कर रहा है तो कुछ सोचती हैं कि शादी के बाद वे अपने हिसाब से अपने पति का स्वभाव बदल लेंगी. दोनों स्थितियों में नुकसान लड़की का होता है. यह बात तय है कि शादी के बाद कोई किसी का स्वभाव नहीं बदल सकता. जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करना आवश्यक है. यदि आप का प्रेमी या मंगेतर गुस्सैल है तो शादी के बाद उस के गुस्से का निशाना अकसर आप को ही बनना पड़ेगा. इसलिए ऐसे इंसान से शादी न करें, जिस का अपने गुस्से पर काबू न हो.

एकदूसरे का प्यार आंकना: जब भी मिलें या बातचीत करें तब यह अवश्य परखें कि क्या आप के होने वाले पति का प्यार आप के लिए सच्चा है? क्या उसे आप की भावनाओं की कदर है? क्या वह आप की खुशी के लिए कदम उठाता है? क्या वह अपने मन की बात आप से करता है? और जो बातें आप उस से करती हैं, क्या वह उन्हें अपने तक रख पाता है?

इसी प्रकार अपनी भावनाएं भी परखनी जरूरी हैं. क्या आप उसे प्यार करती हैं? यदि नहीं तो अभी शादी के लिए आगे बढ़ना गलत रहेगा. गृहस्थ जीवन के सागर में बहुत ऊंचीनीची लहरें आती हैं. ऐसे समय में एकदूसरे के प्रति प्रेम ही गृहस्थी की नैया को डूबने से बचाता है.

जबान संभाल कर:

पहली स्थिति:

पत्नी: मेरे दफ्तर में आजकल कुछ टैंशन चल रही है. लगता है कुछ लोगों को निकाला जाएगा.

पति (मखौल उड़ाते हुए): तब तो तुम्हारा नंबर जरूर लगेगा.

दूसरी स्थिति:

पत्नी: मेरे दफ्तर में आजकल कुछ टैंशन चल रही है. लगता है कुछ लोगों को निकाला जाएगा.

पति: अच्छा? तुम किसी बात की चिंता मत करना. हम दोनों मिल कर इस गृहस्थी को सुचारु रूप से चला लेंगे. मैं तुम्हें कुछ अच्छे कैरियर कंसल्टैंट के नंबर दूंगा, तुम उन से बात करना. यदि तुम्हारी नौकरी चली भी जाती है, तो वे नई नौकरी पाने में तुम्हारी मदद करेंगे.

शादी 2 ऐसे लोगों को जोड़ती है जो एकदूसरे से अलहदा हैं. वे जिस तरह अपनी बात रखते हैं उस का असर काफी हद तक उन के शादीशुदा जीवन पर पड़ता है. वे या तो बातबात पर नुक्स निकाल सकते हैं और शिकायत कर सकते हैं या फिर प्यार से एकदूसरे का हौसला बढ़ा सकते हैं. जी हां, अपनी बातों से हम या तो अपने जीवनसाथी को चोट पहुंचा सकते हैं या उस के जख्मों पर मरहम लगा सकते हैं. अपनी जबान पर लगाम न लगाने से शादीशुदा जीवन में भारी तनाव पैदा हो सकता है.

मातापिता बनने से पहले: शादी के बाद अगला पड़ाव होता है संतान. एक संतान का आगमन पतिपत्नी के रिश्ते को पूरी तरह बदल देता है. एक ओर जहां पत्नी मां बनते ही अपना पूरा ध्यान बच्चे पर केंद्रित कर देती है, वहीं पति अकसर पत्नी के जीवन में आए इस बदलाव में अपना पुराना स्थान खोजता रहता है. मातापिता बनने से पूर्व यह जरूरी है कि पतिपत्नी के आपसी रिश्ते का गठबंधन मजबूत हो चुका हो ताकि जब नए रोल को निभाने का समय आए तो एकदूसरे के प्रति किसी गलतफहमी की गुंजाइश न रहे.

एक बैंक की मैनेजर ऋतु गोयल कहती हैं, ‘‘जब मेरी बेटी ने अपनी पसंद से शादी करने की इच्छा जताते हुए मुझे अपने बौयफ्रैंड के बारे में बताया तो मैं ने उस से पूछा कि सब से पहले 10 जरूरी गुणों के बारे में सोचो जो तुम अपने जीवनसाथी में देखना चाहोगी. अगर तुम्हारे बौयफ्रैंड में सिर्फ 7 गुण दिखते हैं तो खुद से पूछो कि क्या तुम रोजाना उन 3 कमियों को बरदाश्त कर पाओगी? अगर तुम्हारे मन में जरा भी शक है, तो कोई भी कदम उठाने से पहले अच्छी तरह सोच लेना.’’

यह सच है कि आप को हद से ज्यादा की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. अगर आप शादी करना चाहते हैं, तो यह सचाई ध्यान में रखें कि आप को ऐसा साथी कभी नहीं मिलेगा, जिस में कोई खोट न हो और जो आप से शादी करेगा उसे भी ऐसा साथी नहीं मिलेगा, जिस में कोई खोट न हो. ‘जल्दबाजी में शादी करो और इत्मीनान से पछताओ’ कहावत को चरितार्थ करने में समझदारी नहीं है.

कंपैटिबिलिटी क्विज

कंपैटिबिलिटी में 3 बातें खास होती हैं- आपसी मित्रता व समझौता करने की क्षमता, एकदूसरे के प्रति सहानुभूति व एकदूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ती करने का माद्दा. इस क्विज को सुलझाएं. इस से आप जान पाएंगी कि आप दोनों शादी के लिए कितने तैयार हैं:

(1) आप दोनों को ले कर विचारविमर्श करते हैं:

क. कभीकभी

ख. आएदिन

ग. कभी नहीं

घ. हमेशा.

सही जवाब है हमेशा. यदि आप दोनों शादी को ले कर गंभीर हैं तो विवाह संबंधी विचारविमर्श आप दोनों की सूची में होना चाहिए.

(2) साथी का मुझे छोड़ कर चले जाने का विचार मात्र ही मुझे:

क. उदास कर देता है

ख. चैन देता है

ग. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता

घ. मैं बुरी तरह टूट कर बिखर जाऊंगी.

सही जवाब है उदास कर देता है. यदि आप का रिश्ता स्वस्थ है तो आप का पूरा वजूद केवल अपने साथी के इर्दगिर्द नहीं घूमेगा. आप के रिश्ते में एक संतुलन होगा. आप अपने साथी को चाहेंगी अवश्य, किंतु चाहने और आवश्यकता होने में फर्क होता है.

(3) शादी मेरे लिए:

क. फिल्मों की तरह रोमानी है

ख. बेहद कठिन राह है

ग. इतनी कठिन भी नहीं

घ. परिश्रम व मजे का तालमेल है.

सही जवाब है परिश्रम व मजे का तालमेल. शादी में मेहनत जरूर लगती है पर वह नामुमकिन नहीं. शादी को सफल बनाने के लिए उस की ओर लगातार ध्यान देना चाहिए.

(4) अपने साथी को देख कर मैं:

क. उत्साहित व प्रसन्न हो जाती हूं

ख. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता

ग. घबराने लगती हूं

घ. थोड़ाबहुत खुश होती हूं.

सही जवाब है उत्साहित व प्रसन्न हो जाती हूं. यदि आप को अपने साथी को देखने से शादी से पहले खुशी नहीं मिलती है तो बाद में क्या होगा. यह बात सच है कि शादी का खुमार समय के साथ कम होता जाता है और उसे बरकरार रखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. इसलिए शुरुआत उत्साह व खुशी से होनी चाहिए.

(5) खास मुद्दों पर हम दोनों:

क. कभी चर्चा नहीं करते हैं

ख. कभीकभार चर्चा कर लेते हैं

ग. रोज चर्चा करते हैं

घ. तभी चर्चा करते हैं जब बात हाथ से बाहर हो जाए.

सही जवाब है कभीकभार चर्चा कर लेते हैं. जिंदगी में इतना कुछ घटित होता रहता है कि यदि आप चर्चा नहीं करते हैं तो अभी आप शादी के लिए तैयार नहीं हैं और यदि आप रोज चर्चा करते हैं तो आप के रिश्ते में तनाव अधिक है और मस्ती कम. अच्छा रिश्ता मस्तीभरा तथा गंभीर बातों का मिलाजुला रस होता है.

(6) प्रेम मेरे लिए:

क. लेनदेन की सुंदर अभिव्यक्ति है

ख. मेरा खयाल रखने के लिए साथी की खोज है

ग. अपने साथी का ध्यान रखना

घ. किसी और की तरह बन जाना.

सही जवाब है लेनदेन की सुंदर अभिव्यक्ति. प्यार में केवल एक ही साथी दूसरे का खयाल रखे यह मुमकिन नहीं. प्यार समझौते का दूसरा नाम है, जिस में दोनों तरफ से आदानप्रदान होना आवश्यक है.

ताकि तलाक के बाद न हों बर्बाद

जब निशा और रमेश ने शादी के 15 साल बाद एकदूसरे से अलग होने का फैसला किया तब निशा को मालूम नहीं था कि उस के हक क्या हैं, किसकिस चीज पर उसे हक मांगना चाहिए और किस चीज पर नहीं. इसलिए उस ने घर की संपत्ति में से अपना हिस्सा नहीं मांगा, जिस पर दोनों का अधिकार था. चूंकि रमेश ने बच्चे निशा के पास ही रहने दिए तो घर की संपत्ति पर उस का ध्यान ही नहीं गया जबकि निशा भी कामकाजी थी और मुंबई के उपनगर मीरा रोड में दोनों जिस फ्लैट में रहते थे, उसे दोनों के कमाए गए साझे पैसे से खरीदा गया था.

दरअसल, तलाक के समय निशा इतनी टूट गई थी कि भविष्य की किसी सोचसमझ या आ सकने वाली परेशानी पर अपना ध्यान ही नहीं लगा सकी. वास्तव में तलाक इमोशनल लैवल पर ऐसी ही चोट पहुंचाता है. लेकिन इस के आर्थिक परिणाम और भी खतरनाक होते हैं.

तलाक के कुछ महीनों बाद ही निशा को एहसास हो गया कि वह बड़ी गलती कर बैठी है. कुछ ही दिनों की अकेली जिंदगी के बुरे अनुभवों से वह जान गई कि सारी संपत्ति रमेश को दे कर उस ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है. तब उस ने रमेश से अपना हिस्सा मांगा और याद दिलाया कि मकान उन दोनों ने मिल कर खरीदा था.

प्रौपर्टी पर कानूनन हक

कानून के मुताबिक, वैवाहिक जीवन के दौरान खरीदी गई कोई भी प्रौपर्टी पतिपत्नी दोनों की होती है. उस पर दोनों का ही मालिकाना हक होता है. याद रहे यह नियम तब भी लागू होता है, जब संपत्ति खरीदने में पत्नी की कोई भूमिका न हो. हां, मगर विरासत में मिली या कोई दूसरी प्रौपर्टी इस कानून के दायरे में नहीं आती. लेकिन जिन चीजों में पत्नी का हक बनता है उन में अगर सुबूत न भी हों तो भी उन में पत्नी को हक मिलता है.

निशा के मामले में प्रौपर्टी यानी मकान रमेश के नाम था. लेकिन घर के लिए गए लोन में वह सहआवेदक और सहऋ णी थी. साथ ही उस ने अपने अकाउंट से घर के लिए कई ईएमआई भी अदा की थीं. तलाक के बाद अभी तक उस ने होम लोन ईएमआई का ईसीएस मैंडेट भी खत्म नहीं किया था. इस वजह से पति से अलग होने के बाद भी 2 महीने तक होम लोन की 2 ईएमआई उस के खाते से निकल गईं. इसे देख निशा ने अपने बैंक को आगे की ईएमआई रोकने के लिए कहा. इस पर बैंक ने इस के लिए लंबाचौड़ा प्रोसैस बता दिया, जिसे पूरा किए बिना इसे रोक पाना मुमकिन नहीं.

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मुआवजे की मांग

तलाक के कुछ ही महीनों बाद सामने आ गई यह अकेली परेशानी नहीं थी. कई और परेशानियों ने उसे अचानक आ घेरा. दरअसल, निशा ने तलाक के वक्त पति से बच्चों की परवरिश के लिए किसी किस्म के मुआवजे की कोई मांग नहीं की थी. उस समय उसे लग रहा था कि वह जो कमाती है, उसी में कैसे भी कर के पूरा कर लेगी. उसे आर्थिक दिक्कत महसूस होने लगी.

निशा को बहुत जल्द समझ में आ गया कि उस ने अपना हक न मांग कर बड़ी गलती कर दी है.

अगर साथ रहना संभव न रह गया हो और तलाक लेना जरूरी बन गया हो तो किनकिन बातों का ध्यान रखना चाहिए, आइए जानते हैं:

अपना हिस्सा जरूर लें:

कानून के मुताबिक अगर शादी के दौरान कोई प्रौपर्टी  खरीदी गई है, तो उस में पतिपत्नी दोनों की बराबर की हिस्सेदारी होती है. भले किसी एक ने ही अपनी कमाई से उसे खरीदा हो. यह हिस्सा तब भी मांगें जब आप आर्थिक रूप से मजबूत हों, क्योंकि तलाक के बाद किसी की भी जिंदगी में बड़ा आर्थिक बदलाव आ सकता है. जब लग रहा हो कि अब तलाक हो ही जाएगा तो उस समय कुछ और आर्थिक सजगता अमल में लाना जरूरी है जैसे साझे बैंक अकाउंट्स और क्रैडिट कार्ड्स जितनी जल्दी हो बंद कर दें.

इस मामले में विकास मिश्र का अनुभव आप को बहुत कुछ बता सकता है. विकास का जब शादी के 3 साल बाद सुनीता से तलाक हो गया तो उस के कुछ दिनों बाद उसे कूरियर से मिला पत्नी के एड औन क्रैडिंट कार्ड का भारीभरकम बिल बहुत नागवार गुजरा. वह गुस्से में भड़क उठा.

उस ने एक पल को तो सोचा कि क्रैडिट कार्ड बिल फाड़ कर फेंक दे. पैसा वह किसी भी कीमत पर नहीं चुकाना चाहता था. लेकिन उस के फाइनैंस ऐडवाइजर ने बताया कि पेमैंट डिफाल्ट से उस के क्रैडिट स्कोर पर भारी असर पड़ेगा. इसलिए विकास ने वह बिल चुका कर अपने बैंक को फोन कर के उस क्रैडिट कार्ड को ब्लौक करने को कहा.

बकाया लोन चुकाएं:

जब राजेश और सुमन तलाक ले रहे थे, तो कार सुमन ने अपने पास रखी, जिस के लिए दोनों ने मिल कर लोन लिया था. कार की 11 ईएमआई बची हुई थीं. तलाक के बाद जब राजेश ने किस्तें देना बंद कर दीं तो लोन चुकाने के लिए बैंक की ओर से उन से संपर्क किया गया.

राजेश ने पैसा सुमन से वसूलने के लिए कहा. सुमन ने कर्ज की बाकी रकम चुका भी दी. फिर भी बैंक ने राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया. ऐसा क्यों किया गया. इस पर क्रैडिट इन्फौरमेशन ब्यूरो (सिबिल) में सीनियर अधिकारी कहते हैं कि अगर किसी कपल ने ज्वौइंट लोन लिया है, तो उसे चुकाने की जिम्मेदारी दोनों की है. तलाक के बाद भी वे इस फाइनैंशियल लायबिलिटी से मुक्त नहीं हो सकते.

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क्रैडिट स्कोर पर रखें नजर:

अलग होने वाले कपल को अपने क्रैडिट स्कोर के बारे में खास सावधानी बरतनी चाहिए. अगर कोई ज्वौइंट लोन बकाया है, तो उस की पेमैंट को ले कर कभी भी विवाद हो सकता है. इस का असर दोनों के ही क्रैडिट स्कोर पर पड़ सकता है. यह तब भी हो सकता है जब बैंक अपना कर्ज वसूल ले.

राजेश और सुमन के मामले में राजेश ने सुमन के लिए ही कार का लोन लिया था और अंतत: चुकाया भी उसी ने. लेकिन इस के बाद भी राजेश डिफाल्टर हो गया, क्योंकि बुनियादी तौर पर किस्त वही भरता था. उसी की अकाउंट से जाती थी. मगर तलाक के बारे में उस ने बैंक को अपनी तरफ से सूचित नहीं किया और न ही ऐसे समय में पूरा किया जाने वाला प्रोसैस पूरा किया, इसलिए बैंक ने अपना कर्ज वापस पाने के बाद भी राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया.

दरअसल, डिवौर्स सैटलमैंट में किसी एक को लोन चुकाने के लिए भी अगर कहा जाता है, तो भी बैंक के साथ औरिजनल ऐग्रीमैंट नहीं बदलेगा. जिस में दोनों पार्टनर की लोन चुकाने की जवाबदेही है.

परिसंपत्तियों का बंटवारा:

अगर तलाक आपसी सहमति से होता है तो संपत्तियों के बंटवारे जैसी तमाम परेशानियों से बचा जा सकता है. हालांकि यह तभी हो पाता है, जब अलग होने वाले पार्टनर सही डिमांड करें. अलग होते वक्त दोनों को एसैट्स और लायबिलिटी की लिस्ट बना लेनी चाहिए. उन की मार्केट वैल्यू का ठीकठीक पता लगा लेना चाहिए.

कपल आपसी सहमति से इन सभी चीजों का बंटवारा कर सकते हैं और बकाया लोन के लिए जवाबदेही भी आपस में बांट सकते हैं. हालांकि यह काम करना इतना आसान नहीं है, जितना लगता है. फिर भी कोशिश की जाए तो दोनों को ही फायदा है. दोनों मिल कर तय कर सकते हैं कि पत्नी को घर मिले और दूसरे एसैट्स पति को.

ऐसा इसलिए क्योंकि पत्नी घर मिलने से खुद को आर्थिक तौर पर सुरक्षित महसूस करेगी. यह अलग बात है कि इस के बाद भी उसे फिक्स्ड इनकम की जरूरत होगी जो घर से नहीं मिल सकती. इसलिए पत्नी को ऐसे एसैंट्स की मांग करनी चाहिए. जिन से उसे नियमित इनकम हो सके.

वैसे समझदारी तो इसी में है कि रिश्ता बिगड़ने की तरफ बढ़े उस से पहले ही चौकन्ना हो घर को टूटने से बचा लें. अगर यह कतई मुमकिन न हो तो इन तमाम बातों का ध्यान जरूर रखें. ताकि तलाक के बाद बिलकुल बरबाद होने से बचा जा सके.

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सुख की गारंटी नहीं शादी

लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स के प्रोफैसर (जो हैप्पीनैस ऐक्सपर्ट भी हैं) पाल डोलन के शब्दों में, ‘‘शादी पुरुषों के लिए तो फायदेमंद है, लेकिन महिलाओं के लिए नहीं. इसलिए महिलाओं को शादी के लिए परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि वे बिना पति के ज्यादा खुश रह सकती हैं खासकर मध्य आयुवर्ग की विवाहित महिलाओं में अपनी हमउम्र अविवाहित महिलाओं की तुलना में शारीरिक और मानसिक परेशानियां होने का ज्यादा खतरा होता है. इस से वे मर भी जल्दी सकती हैं.’’

विवाहित महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं ज्यादा खुश रहती हैं. शादीशुदा, कुंआरे, तलाकशुदा, विधवा और अलग रहने वाले लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर पाल डोलन का कहना है कि आबादी में जो हिस्सा सब से स्वस्थ और खुशहाल रहता है वह उन महिलाओं का है जिन्होंने कभी शादी नहीं की और जिन के बच्चे नहीं हैं. उन के मुताबिक जब पतिपत्नी एकसाथ होते हैं और उन से पूछा जाए कि वे कितने खुश हैं तो उन का कहना होता है कि वे बहुत खुश हैं. लेकिन जब पति या पत्नी साथ में नहीं हों तो वे स्वाभाविक रूप से यह कहते सुने जा सकते हैं कि जिंदगी दूभर हो गई है.

अगर कहीं भी शादी की बात पर बहस होती है तो शादी की जरूरत के कई कारण बताए जाते हैं जैसे नई सृष्टि की रचना, भावनात्मक सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, औरत मां बन कर ही पूरी होती है, स्त्रीपुरुष एकदूसरे के पूरक हैं, समाज में अराजकता रोकने में सहायक आदि. ये सारे कारण शादी को महज एक जरूरत का दर्जा देते हैं, मगर कोई यह नहीं कहता कि हम ने शादी अपनी खुशी के लिए की है.

ज्यादातर घरों में लड़कियों को बचपन से शादी कर के खुशीखुशी घर बसाने के सपने दिखाए जाते हैं. हर बात के पीछे उन्हें समझया जाता है कि शादी के बाद वे अपने मन का कर सकेंगी, शादी के बाद बहुत प्यार मिलेगा, शादी के बाद अपने घर जाएंगी या फिर शादी के बाद ही उन का जीवन सार्थक होगा वगैरहवगैरह. मगर सच तो यह है कि शादी के बाद भी बहुत सी लड़कियों के सपने हकीकत के आईने में बेरंग ही नजर आते हैं.

अपना घर

घर की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा लड़कियों के मन में बचपन से यह बात भरी जाती है कि मां का घर उस का अपना नहीं है. उसे मायका छोड़ कर ससुराल जाना पड़ेगा और वही उस का अपना घर कहलाएगा. ससुराल पहुंच कर लड़की को पता चलता है कि वह इस घर में बाहर से आई है और कभी सगी नहीं कहलाएगी. वह बहू ही रहेगी कभी बेटी नहीं हो सकती.

मायके के पास पैसों की कितनी भी कमी हो पर लड़की को कभी महसूस नहीं होने देते, जबकि ससुराल कितनी भी धनदौलत से पूर्ण हो पर बहू को अपनी सीमा में रहना होता है. शुरुआत में कई साल उसे घरपरिवार के किसी भी मसले में बोलने का हक नहीं दिया जाता. ससुराल वाले कितने भी एडवांस हों, मगर बहू तो बहू ही होती है. वह बेटे या बेटी की बराबरी नहीं कर सकती.

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अकेलापन

लड़कियों को बचपन से शादी के सपने दिखाए जाते हैं. जिस लड़की की किसी कारणवश शादी नहीं हो पाती या फिर वह स्वयं शादी करना नहीं चाहती तो मांबाप या रिश्तेदारों के साथसाथ सारा समाज उसे सिखाता है कि शादी के बाद ही लाइफ सैटल हो पाती है. शादी के बिना जीवन में कुछ भी नहीं रखा. भले ही वह लड़की सैल्फ डिपैंडैंट हो, अच्छा कमा रही हो मगर उसे बुढ़ापे का डर जरूर दिखाया जाता है.

उसे बताया जाता है कि जब घर में सब खुद के परिवारों में व्यस्त हो जाएंगे तो वह अकेली रह जाएगी. यह सोच काफी हद तक सही है क्योंकि समय के साथ जब मांबाप चले जाते हैं और भाईबहन अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं तब अविवाहित लड़की खुद को अकेला महसूस करती है. मगर इस का समाधान कठिन नहीं. यदि वह अपने काम में व्यस्त रहे और रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखे तो इस तरह की समस्या नहीं आती.

बात पते की

लड़कियों को बचपन से यह भी सिखाया जाता है कि एक औरत मां बनने के बाद ही पूर्ण होती है. लड़कियों पर कम उम्र में ही शादी के लिए दबाव डाला जाता है ताकि वे सही उम्र में मां बन जाएं. मां बनना जीवन की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है मगर जरा सोचिए इस के कारण लड़की को सब से पहले तो अपनी पढ़ाई और कैरियर बीच में छोड़ना पड़ता है. फिर वह शादी कर दूसरे घर आ जाती है और वहां एडजस्टमैंट कर ही रही होती है कि हर तरफ से बच्चे के लिए दबाव पड़ने लगती है.

सही समय पर बच्चे हो गए तो सब अच्छा है पर मान लीजिए किसी कारण से बच्चे नहीं हुए तब क्या होता है? दबी आवाज में उस पर ही इलजाम लगाए जाते हैं. उसे बांझ कह कर पुकारा जाता है. सालोंसाल बच्चे की चाह में घर वाले उसे पंडेपुजारियों और झड़फूंक वालों के पास ले जाते हैं. इन सब के बीच उस महिला को कितना मैंटल स्ट्रैस होता होगा यह बात समझनी भी जरूरी है.

शादी के बाद पति गलत आदतों का शिकार निकल जाए तो जरूरी नहीं कि आप की जिंदगी खुशहाल ही रहेगी. शादी के समय आप को यह पता नहीं होता कि आप का पति कैसा है? पति अच्छा निकला तो लड़की सुकूनभरी जिंदगी जीती है, मगर जरूरी नहीं कि हमेशा ऐसा ही हो. कितनी ही लड़कियां शादी के बाद अपने शराबी पति के अत्याचारों का शिकार बन जाती हैं तो कुछ पति की बेवफाई से परेशान रहती हैं.

कुछ के पति बिजनैस डुबो देते हैं तो कुछ दोस्तबाजी के चक्कर में बीवी को रुलाते रहते हैं. बहुत से पति ऐसे भी होते हैं जो पत्नी के साथ मारपीट करते हैं और उसे अपने पैरों की जूती से ज्यादा नहीं समझते. ऐसे में आप यह कैसे कह सकते हैं कि शादी के बाद लड़की को सुख ही मिलेगा और उस का जीवन संवर जाएगा? संभव तो यह भी है न कि उस की जिंदगी बरबाद ही हो जाए और उसे उम्रभर घुटघुट कर जीना पड़े.

ससुराल वालों के सितम

कई बार ऐसा भी होता है कि मांबाप तो अच्छा घर देख कर बेटी की शादी करते हैं, मगर नतीजा उलटा निकलता है. बहुत से मामलों में ससुराल वाले लड़की पर जुल्म करते हैं. कभी दहेज के लिए धमकाते हैं तो कभी घरेलू हिंसा करते हैं. बहुत सी लड़कियों को ससुराल में जिंदा जला दिया जाता है. कुछ घरों में ऊपरी तौर पर भले ही कुछ न किया जाए पर दिनरात ताने दिए जाते हैं, बुराभला कहा जाता है.

अकसर सास बहू के खिलाफ बेटे के कान भरती पाई जाती है. ऐसे हालात में लड़की को शादी के बाद घुटघुट कर जीना पड़ता है और उस की जिंदगी खुशहाल होने के बजाय बरबाद हो जाती है.

मांबाप का कर्तव्य है कि वे अपनी बेटियों को हमेशा अप्रत्याशित के लिए तैयार रहने के काबिल बनाएं. शादी के बाद भी ऐसा बहुत कुछ हो सकता है जिस का मुकाबला करने के लिए खुद को मजबूत बनाना पड़ता है और दिमाग से ही नहीं, मन से व तन से भी. बेहतर होगा कि मातापिता बेटियों पर शादी के लिए दबाव डालने के बजाय उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएं.

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शादी मजबूरी क्यों

एक शादीशुदा महिला ही जानती है कि शादी के बाद असल में उसे क्याक्या ?ोलना पड़ता है. यही वजह है कि आज बहुत सी लड़कियां शादी करना नहीं चाहतीं. उन का मानना है कि जब वे खुद कमा रही हैं और शांति से जी रही हैं तो फिर शादी कर के अपनी परेशानियां क्यों बढ़ाएं. दरअसल, हमारा सामाजिक तानाबाना ही इस तरह का रहा है जहां यह माना जाता है कि महिलाओं का काम घर संभालना और बच्चे पैदा करना होता है जबकि पुरुषों का काम कमाना और महिलाओं को संरक्षण देना. लेकिन वक्त के साथ महिलाओं और पुरुषों के रोल बदल रहे हैं. ऐसे में सोच बदलनी भी जरूरी है.

यह सही है कि अविवाहित जीवन में महिलाओं को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. मगर शादी भी इंसान को अनेक सामाजिक व पारिवारिक झंझटों में फंसाती है. तो फिर अविवाहित जीवन को गलत या हेय क्यों माना जाए? क्यों न लड़कियों को खुद तय करने दिया जाए कि उन्हें क्या करना है?

30-35 साल से ऊपर की अविवाहित महिला अब भी लोगों की आंखों में खटकती है. लड़की भले ही कितना भी पढ़लिख ले और ऊंचे पद पर पहुंच जाए, लेकिन उसे ससुराल भेज कर ही मातापिता के सिर से बोझ उतरता है. ज्यादातर लोगों की सोच यह होती है कि 30 साल से ऊपर की अविवाहित लड़की सुखी हो ही नहीं सकती.

सुख का सीधा संबंध शादी से है. मगर सच तो यह है कि सुखी या दुखी और खुश या नाखुश होने की परिभाषा सब के लिए अलगअलग होती है. ऐसी बहुत सी अविवाहित महिलाएं हैं जो 30 के ऊपर हैं और अपनेआप में पूर्ण हैं. आप मदर टेरेसा, लता मंगेशकर, पीनाज मसानी, बरखा दत्त, सोनल मान सिंह जैसी बहुत सी महिलाओं का नाम ले सकते हैं. हम यदि कहीं भी अचीवर्स लिस्ट ढूंढ़ते हैं तो कभी भी शादी क्राइटेरिया नहीं होता यानी जीवन में आप की खुशी शादी पर निर्भर नहीं करती.

मातापिता का कर्तव्य है कि बच्चों को शिक्षित करें, आत्मनिर्भर बनाएं और उस के बाद अपने जीवन के निर्णय ख़ुद लेने दें. सब के सुख अलगअलग होते हैं. सुख को अगर परिभाषित करें तो कोई भी इंसान जब अपने मन की करता है या कर पाता है शायद तभी वह सब से सुखद स्थिति में होता है.

विवाह तभी करना चाहिए जब आप किसी को इतना चाहें कि उस के साथ जीवन बिताना चाहें. मगर जिस की शादी में रुचि न हो उसे कभी भी नहीं करनी चाहिए. प्रेम हो तो शादी करें, मगर उस में भी खुशी मिलेगी ही यह कहा नहीं जा सकता. जीवन में खुशियां चुननी पड़ती हैं. कोई हाथ में रख कर नहीं देता. खुशियां पाने का यत्न हम सभी करते हैं. कभी सफल होते हैं तो कभी असफल. विवाह करना या न करना व्यक्ति का निजी मामला है. इस में कोई कुछ नहीं कह सकता. हमारे समाज में शादीशुदा, अविवाहित और समलैंगिक के लिए व्यक्ति के स्तर पर समान इज्जत होनी चाहिए. कोई क्या चुनता है यह व्यक्तिगत मसला है.

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