अच्छी Married Life के लिए स्नेह और समझदारी है जरूरी 

लेखिका- स्नेहा सिंह

विवाह में वर-वधू को भले ही और कोई दान न ददिया जाए, पर समझदारी का दान देना बहुत जरूरी है. नवविवाहित जोड़े के शुरू के 2 साल उनके आगे के संबंधों में तालमेल बैठाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगें. वैसे तो यह भी कहा जाता है कि समय के साथ व्यक्ति और संबंध, दोनों ही परिपक्व होते हैं, परंतु शादी होने के तुरंत बाद अगर संबंधों को ले कर लापरवाही बरती जाए तो उस समय संबंधों में आई खटास लंबे समय तक नहीं जाती. एक समय था, जब महिलाओं को सब सहन कर लेने की सलाह दी जाती थी. शादी के तुरंत बाद पति अपने संबंधों को ले कर तथा अपनी पत्नी के बारे में केयरलेस होता था. तब कहा जाता था कि “बेटा स्त्री जाति को सब सहना पड़ता है. जैसा चल रहा है, चलने दो. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.” इस तरह की सलाह दी जाती थी. जबकि अब समय बदल गया है. अब महिलाएं सब कुछ सहन करने के बजाय अपनी भावनाओं को अधिक महत्व देती हैं. फिर भी गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में अभी खास फर्क नहीं पड़ा है.

खैर, बात यहां इस बात की हो रही है कि नई-नई शादी हुई हो तो कपल को शुरुआत के समय का सदुपयोग कर के संबंधों को मजबूत बनाना चाहिए. किसी भी अच्छी चीज को पाने के लिए मेहनत जरूरी है. इसी तरह संबंध भी मेहनत मांगता है. चाहे अरेंज मैरिज हो या लव मैरिज, विवाह के बाद शुरुआत का समय बहुत नाजुक होता है. इसी समय परस्पर भावनाओं की डोर मजबूत हो, इस तरह का रास्ता अपनाना चाहिए.

 एकदूसरे को समय दें

Time is the Ultumate precious gift… यह वाक्य एकदम सही है. अपने प्रिय साथी को ज्यादा से ज्यादा समय दे कर साथ रहें. शुरूआत का समय शादीशुदा जोड़े के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. अलबत्ता, काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच भी तालमेल बैठाना पड़ता है. फिर भी कपल्स को एकदूसरे को कुछ समय तो देना ही चाहिए. शादी के बाद कुछ दिनों का ब्रेक ले कर कहीं न कहीं घूमने जरूर जाएं. अभी कोरोना महामारी की वजह से लंबे टूर पर न जा कर छोटे टूर के लिए अपने शहर में ही किसी अच्छे होटल में एक-दो रात गुजारी जा सकती है. यहां मूल बात अकेलेपन की है. शादी के बाद कुछ समय ऐसा निकालें, जिसमें परिवार से दूर अकेले में रहने का मौका मिले. यह मौका आपके प्रिय साथी को नजदीक लाने में मदद करेगा. हनीमून खत्म होने के बाद आफिस से घर आने के बाद कमरे में सोने के लिए आने से पहले पति-पत्नी दोनों वाॅक पर जाएं. आधे घंटे की यह वाॅक पूरे दिन की थकान दूर करने वाली साबित होगी. इस वाॅक के दौरान एकदूसरे को मिला एकदूसरे के लिए समय एकदूसरे की प्रायोरिटी का अनुभव कराएगी. अगर वर्क फ्राम होम चल रहा हो तो उसमें से कुछ मिनट निकाल कर पत्नी के उस के काम में सहायक बनें. ऐसे छोटेछोटे क्षणों में इन्वेस्ट किया गया समय लंबे समय तक संबंध को मजबूत रखने की वजह बन सकता है.

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बातचीत से “मैं” में से “हम” बनें 

महिला नए वातावरण में सेट होने में इतनी नर्वस हो जाती है कि वह अपने मन की बात कह नहीं पाती. परिणाम स्वरूप अंदर ही अंदर घुटती रहती है. दूसरी ओर पुरुष में भी ऐसा ही होता है. सेक्स संबंध तो बना लेता है, पर बातचीत करने के लिए उसके पास शब्द कम पड़ते हैं. बातचीत का अभाव संबंध में गैप लाता है. ऐसे तमाम पुरुष हैं, जिनकी शांत रहने की आदत होती है या उनके घर में क्या हो रहा है, यह वे पत्नी से नहीं बताते. यहां छुपाने का इरादा नहीं होता, भुलक्कण स्वभाव की वजह से वे ऐसा करते हैं. ऐसे में जब पत्नी को पता चलता है तो उसे लगता है कि पति बात छुपा रहा है. इसका मतलब वह उसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर सका. इसलिए बातचीत का अभाव न रहे, इस बात का ध्यान रखना चाहिए. बातचीत की डोर मजबूत रहेगी तो व्यक्तिगत जीवन में कोई समस्या नहीं रहेगी. सेक्स में होने वाली दिक्कत भो पार्टनर से शेयर कर सकेंगे. आप क्या सोच रही हैं, यह भुता कर सामने वाला क्या सोच रहा है, यह जान लेने पर संबंध और अधिक मजबूत होगा. बातचीत की डोर पति-पत्नी को “मैं” में से कब ‘हम’ तक पहुंचा देगी, पता ही नहीं चलेगा.

मेरा-तेरा नहीं, हमारा परिवार 

जब भी आप किसी के साथ विवाह करती हैं, तब उसका परिवार भी आप का परिवार हो जाता है. यह बात पति-पत्नी, दोनों पर लागू होती है. मात्र लड़कियों को ही ससुराल जा कर लड़के के परिवार को अपना नहीं करना होता. लड़का भी लड़की के परिवार को उतना ही महत्व देगा तो लड़की के मन में अपने आप पति के लिए सम्मान और लगाव पैदा होगा. याद रखिए कि हर आदमी का रहनसहन अलग होता है. उस रहनसहन में सेट होने के लिए खोने की भावना और समझ होनी चाहिए. दोनों ही पक्षों पर यह बात लागू होती है. साथ रहने वाले लोगों में कोई न कोई समस्या आती ही रहती है. इस समस्या का हल नाराजगी के बजाय बातचीत से लाएं. अगर समझदारी से काम लिया जाएगा तो हर सवाल का जवाब मिल जाएगा.

 अक्सीर दवा है प्रशंसा

प्रशंसा के मामले में लड़के शादी के बाद एकदम कंजूस हो जाते हैं. शादी के पहले लड़कियों की प्रशंसा के पुल बांधने वाले लड़के शादी के बाद शर्म का अनुभव करने लगते हैं. इस सोच को बदलना चाहिए. हर व्यक्ति के लिए उसकी प्रशंसा बहुत ही महत्वपूर्ण और उत्साह बढाने वाली होती है. फिर अपने सब से प्रिय पात्र की प्रशंसा करने में कैसी झिझक? हम भले यहां लड़कों की बात कर रहे हैं, पर यह बात दोनों पर लागू होती है. वैसे तो शादी के बाद हमेशा प्रशंसा करनी चाहिए, शुरुआत में कुछ समय तक इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए. जिस दिन पत्नी अच्छी लग रही हो, उस दिन बिना किसी झिझक के दिल खोल कर बखान कर लेना चाहिए. इसी तरह अच्छा भोजन बनाया हो तो बखान करना चाहिए. बखान के रूप में आप उपहार दे सकते हैं. पत्नी भी अपने पति का बखान कर के, पति कोई गिफ्ट लाया हो तो पत्नी उसके बारे में खुशी व्यक्त कर के बखान करे. पति आफिस जाने के लिए तैयार हो तो बखान करें. इस तरह करने से उत्साह बढ़ता है. बखान करने से उत्साह बढ़ता है और आगे भी उसी तरह काम करने की इच्छा होती है, जिससे बखान हो. व्यक्तिगत समय में भी बखान करते रहना चाहिए. व्यक्तिगत समय में प्रशंसा या बखान सेक्स में अधिक उत्तेजना पैदा करता है.

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मै दोबारा नौकरी करना चाहती हूं, लेकिन पति मना कर रहे हैं?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय विवाहिता व 3 वर्षीय बेटे की मां हूं. विवाह से पूर्व मैं नौकरी करती थी. शादी चूंकि दूसरे शहर में हुई है, इसलिए नौकरी छोड़नी पड़ी. अब मैं चाहती हूं दोबारा नौकरी कर लूं. पति से इस विषय में बात की तो वे मना करने लगे. चूंकि हम यहां अकेले रहते हैं, घर में कोई बड़ा बच्चे को संभालने के लिए नहीं है. बच्चे को क्रैच में छोड़ने के वे सख्त खिलाफ हैं. इस के अलावा उन का कहना है कि जब आर्थिक तौर पर हम सक्षम हैं तो फिर मैं क्यों नौकरी करना चाहती हूं. मैं कैसे समझाऊं कि आर्थिक निर्भरता के लिए नहीं अपनी इच्छा के लिए नौकरी करना चाहती हूं. यदि मैं ने और 2-4 साल यों ही बरबाद कर दिए तो मेरा कैरियर चौपट हो जाएगा. बताएं क्या करूं?

जवाब

शादी के बाद पारिवारिक कारणों से खासकर बच्चों की परवरिश के लिए अधिकांश महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं. उन्हें इस बात का मलाल भी नहीं होता, क्योंकि घरगृहस्थी और बच्चों का लालनपालन अपनेआप में एक फुल टाइम जौब है. दोनों को एकसाथ मैनेज करना, खासकर तब जब बच्चे की देखरेख करने के लिए परिवार का कोई सदस्य न हो, बहुत मुश्किल होता है. जहां तक क्रैच में बच्चे को छोड़ने की बात है, पहले तो अच्छे क्रैच मिलते नहीं और मिल भी जाएं तो भी उतनी अच्छी देखभाल बच्चे की नहीं हो पाती जितनी उस की मां करती है. अत: यदि आप को किसी प्रकार की आर्थिक तंगी नहीं है तो आप को नौकरी के लिए जिद नहीं करनी चाहिए. घर में अतिरिक्त समय में आप अपनी कोई हौबी विकसित या ट्यूशन आदि कर सकती हैं.

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‘‘शादी…यानी बरबादी…’’ जब उस की मां ने उस के सामने उस की शादी की चर्चा छेड़ी तो सुलेखा ने मुंह बिचकाते हुए कहा था, ‘‘मां मुझेशादी नहीं करनी है, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारा देखभाल करना चाहती हूं.’’

‘‘नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते,’’ मां ने स्नेहभरी नजरों से अपनी बेटी की ओर देखा.

‘‘मां मुझेशादी जैसी रस्मों पर बिलकुल भरोसा नहीं… विवाह संस्था एकदम खोखली हो चुकी है… आप जरा अपनी जिंदगी देखो, शादी के बाद पापा से तुम्हें कौन सा सुख मिला है? पापा ने तो तुम्हें किसी और के लिए तलाक…’’ कहती हुई वह अचानक रुक गई और फिर आंसू भरे नेत्रों से मां की ओर देखने लगी.

मां ने दूसरी तरफ मुंह घुमा अपने आंसुओं को छिपाने की कोशिश करते हुए बोलीं, ‘‘अरे छोड़ो इन बातों को… इस वक्त ऐसी बातें नहीं करते और फिर लड़कियां तो होती ही हैं पराया धन. देखना ससुराल जा कर तुम इतनी खो जाओगी कि अपनी मां की तुम्हें कभी याद भी नहीं आएगी,’’ और फिर बेटी को गले लगा कर उस के माथे को चूम लिया.

मालती अपनी बेटी को बेहद प्यार करती हैं. आज 20 वर्ष हो गए उन्हें अपने पति से अलग हुए, जब मालती का अपने पति से तलाक हुआ था तब सुलेखा सिर्फ 5 वर्ष की थी. तब से ले कर आज तक उन्होंने सुलेखा को पिता और मां दोनों का प्यार दिया. सुलेखा उन की बेटी ही नहीं उन की सुखदुख की साथी भी थी. अपने टीचर की नौकरी से जितना कुछ कमाया वह अपनी बेटी पर ही खर्च किया. अच्छी से अच्छी शिक्षादीक्षा के साथसाथ उस की हर जरूरत का खयाल रखा. मालती ने अपनी बेटी को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी भले खुद कितना भी कष्ट झेलना पड़ा हो.

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