बड़ी उम्र में शादी: जरूरी या मजबूरी

तथाकथित सभ्य समाज में भी विवाह जैसे बेहद निजी मामले में लोगों की राय बिन बुलाए मेहमान की तरह तुरंत आ टपकती है. उस पर भी बात यदि बड़ी आयु में हो रहे विवाह की हो तो सभी की नजरें उस व्यक्तिविशेष पर यों उठ जाती हैं जैसे उस ने इस उम्र में शादी कर के कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो. अपराधी न होते हुए भी उसे लोगों की घूरती निगाहों और व्यंग्य बाणों का सामना करना पड़ता है.

समाज में इस तरह के विवाह को रंगीलेपन की श्रेणी में ही रखा जाता है. उस व्यक्ति के चरित्र पर हर तरफ से उंगलियां उठने लगती हैं. सभी ऐसा जताते हैं जैसे बड़ी उम्र में उस के विवाह कर लेने से विवाह की पवित्रता के भंग हो जाने का पूरापूरा खतरा है. बड़ी उम्र में हुए इस विवाह के कारण लोगों का विवाह के इस बंधन से भरोसा ही उठ जाएगा. क्या बड़ी उम्र में की गई यह शादी टिक पाएगी या इस उम्र में शादी कर के उन्हें क्या हासिल होगा जैसे प्रश्नों की झड़ी सी लग जाती है, जिन के उत्तर में व्यक्ति घबरा जाता है. समाज के ठेकेदार कहे जाने वालों की यह सोच उन की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाती है. उन के हिसाब से उम्र के इस आखिरी पड़ाव को बिताने का रामभजन ही सर्वोत्तम तरीका है. क्या जरूरत है कि शादी की ही जाए?

क्या है वास्तविकता

मगर वास्तविकता कुछ और है. जीवन की अनुभवजनित सचाई यही कहती है कि बढ़ती उम्र के इस दौर में इनसान का अकेलापन भी बढ़ता जाता है. विशेषकर उन हालात में जब कोई बुजुर्ग अपने जीवनसाथी को खो चुका हो या उस से अलग हो चुका हो.

कुछ शारीरिक थकान और कुछ मानसिक तौर पर असुरक्षा का भाव इनसान को अंदर ही अंदर भयभीत कर देता है. उम्र के इस पड़ाव पर व्यक्ति को एक साथी की जरूरत होती है, जो उसे मानसिक व भावनात्मक संबल दे सके, उस के दुखदर्द या मनोदशा को समझ सके और यह काम एक जीवनसाथी ही कर सकता है.

यह वह समय होता है जब बुजुर्गों के पास अनुभवों का भंडार होता है और सुनने वाले सिर्फ गिनती के. अत: एक बार युवावस्था तो अकेले बिताई जा सकती है, परंतु बड़ी उम्र के इस दौर में व्यक्ति को एक अदद साथी की जरूरत होती ही है, जो न सिर्फ न्यायसंगत है, बल्कि सुरक्षित भी. तो क्या गलत है अगर कोई बुजुर्ग अकेले होने पर किसी का दामन थाम उस के साथ जिंदगी बिताना चाहे. क्या बड़ी उम्र में वह अपनी खुशी के लिए अपनी जिंदगी के फैसले नहीं कर सकता?

जैसे तैसे क्यों जीना

वृद्धावस्था उम्र का वह दौर होता है जब व्यक्ति अपने सभी कर्तव्यों से निवृत्त हो चुका होता है. जैसे बच्चों को पढ़ालिखा, योग्य बना कर उन की शादीब्याह कर चुका होता है. बच्चे भी शादीब्याह कर अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं. उन की प्राथमिकताएं भी बदल जाती हैं. वे चाह कर भी अपने बुजुर्गों के साथ अधिक समय नहीं बिता पाते. तो ऐसे में क्या उन को अपनी बढ़ती उम्र के चलते जिंदगी को बोझ समझ कर जैसेतैसे जीते रहना चाहिए, या उन्हें जिंदगी के एक नए दौर की शुरुआत करनी चाहिए? इस उम्र में शादी करने का फैसला एक अहम फैसला होता है, जिस का तहेदिल से स्वागत होना चाहिए.

यहां पर फिल्म इंडस्ट्री के जानेमाने कलाकार और फिल्म मेकर करीब बेदी द्वारा 70 साल की उम्र में 42 साल की परवीन दुसांज से की गई शादी इस का बेहतरीन उदाहरण है. यह कबीर बेदी की चौथी शादी है. उन की पिछली तीनों शादियां क्यों सफल नहीं हो पाईं या उन के टूटने के क्या कारण थे, उन का नितांत व्यक्तिगत मसला है. उन रिश्तों की हकीकत कुछ भी हो, उन पर सवाल उठाना बेमानी होगा, उन के निजी मामलों में दखल होगा. लोगों द्वारा ये कयास जरूर लगाए जा रहे होंगे कि क्या यह शादी सफल होगी या फिर पिछली तीनों शादियों की तरह यह भी बिखर जाएगी?

इस बारे में रोचिका अपनी बेबाक राय देते हुए कहती हैं कि कबीर बेदी की 3 शादियां नहीं टिकीं तो चौथी शादी के टिकने में भी बड़ा संशय है. आकांक्षा का भी यही कहना है कि क्या गारंटी है कि कबीर की चौथी शादी टिकेगी ही? ऐसे में यहां एक प्रश्न उठाना चाहूंगी कि माना कि करीब बेदी की चौथी शादी के टिकने की संभावना बहुत कम है, पर जिन नवविवाहित जोड़ों की शादी महीने भर में ही तलाक के कगार पर आ खड़ी होती है. क्या उन की शादी के टिकने की गारंटी आप ले सकते हैं? यदि नहीं तो बड़ी उम्र की शादी पर इतना बवाल क्यों? किशोर कुमार की 4 शादियों के बाद भी उन की लोकप्रियता में कहीं कोई कमी नहीं हुई. आज भी उन को एक महान गायक और कलाकार के रूप में जाना जाता है.

राय जुदाजुदा

समझ व अनुभव में काफी बड़ी सुधा का कहना है कि अगर किशोर कुमार 4 विवाह कर के भी लोगों में लोकप्रिय हैं, तो इसलिए कि आम जनता उन के कार्यक्षेत्र से प्रभावित है, उन की पर्सनल लाइफ से उसे कुछ लेनादेना नहीं है. लोग किशोर कुमार की आवाज के दीवाने हैं. तो यहां पर सुधा ने अनजाने में खुद ही मेरी बात का समर्थन कर दिया, जिसे मैं पहले ही उदाहरणस्वरूप पेश कर चुकी थी. हां, सुधा  की इस बात से अवश्य सहमत हुआ जा सकता कि है शादी के नाम पर इस संस्था का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

फिल्म जगत में किया जाने वाला कोई भी कार्य हमारे समाज खासकर युवाओं पर गहरा असर डालने वाला होता है. फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों- दिलीप कुमार व अमिताभ बच्चन के आर्दश जीवन का नमूना भी पेश है.

पूनम अहमद इस बात से पूरा इत्तफाक रखते हुए कहती हैं कि हर किसी के हालात अलग होते हैं. यह जरूरी नहीं है कि अगर कुछ लोगों की शादी एक आर्दश बनी हो तो सभी उसी नक्शेकदम पर चल पाएं. पूनम ने एक और तर्क दिया कि वे दोनों जब तक लिव इन में रहे कोई नहीं बोला, लेकिन जैसे ही रिश्ते को नाम दिया तो हंगामा क्यों बरपा? यहां यह बात माने नहीं रखती कि किस कारण से व्यक्तिविशेष की शादी टूटी है, बल्कि बात यहां प्रौढ़ावस्था में अपनेपन व सहारे की जरूरत की है, जिसे चाहना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार भी है क्योंकि इस उम्र में इनसान के लिए सिर्फ भावनाओं की अहमियत होती है न कि दैहिक सुख की. बड़ी आयु की शादी की सार्थकता और प्राथमिकता इसी में समाई है.

बढ़ती उम्र में भी व्यक्ति अपने जीवन से प्यार करे और उसे जिंदादिली से जीए. एकदूसरे का सच्चा साथी, हमदर्द बन कर एकदूसरे का सहारा बने. इस से अधिक खुशी की बात और क्या हो सकती है और धीरेधीरे ही सही समाज भी बदलाव को स्वीकार अवश्य करेगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें