दिन के 11 बज चुके थे और सुरेश अभी भी गहरी नींद में सोया था. आजकल उस की शाम की शिफ्ट चल रही है इसलिए सुबह जल्दी उठने की परवाह नहीं होती. वैसे भी बीवी सुजाता 2 दिन पहले ही मायके गई है. अभी कम से कम 15-20 दिन तो वह बीवी की चिकचिक से भी आजाद था.
सुजाता घर में होती है तो उसे जल्दी उठ कर व्यायाम के लिए जाने की जिद करती है. वैसे सुरेश कभी उस की सुनता नहीं. सुरेश हमेशा से अपनी मरजी का मालिक रहा है. उस की मां ने भी बचपन से उसे यही सिखाया था. कितनी दफा वह सुजाता को मां की बात कह चुका है कि मर्द घर का मालिक होता है और औरत उस की गुलाम. घर कैसे चलाना है इस का फैसला मर्द करता है. औरत कभी भी मर्द को आज्ञा नहीं दे सकती मगर उसे मर्द की आज्ञा माननी जरूर चाहिए. ऐसी बातें सुन कर सुजाता चुप रह जाती और वह हंसता हुआ अपने मन की करने लगता.
दरवाजे पर दस्तक हुई तो सुरेश को उठना पड़ा. दरवाजा खोला तो सामने कुरियर वाला खड़ा था,” सर आप का कुरियर.”
उस के हाथ में एक लिफाफा था. सुरेश ने लिफाफा खोला तो भौंचक्का रह गया. यह तो वकील का नोटिस था जिसे सुजाता द्वारा भिजवाया गया था.
हड़बड़ाते हुए सुरेश ने नोटिस पढ़नी शुरू की. यह तलाक का नोटिस था जिस में लिखा हुआ था,’ श्रीमान सुरेश महाजन, यह नोटिस आप के नाम हमारी मुवक्किल सुजाता कपूर द्वारा भेजा गया है.
हमारी मुवक्किल सुजाता निम्न बातों पर आप को गौर कराना चाहती हैं. उन्होंने क्रम से कुछ घटनाओं का विवरण लिखा है कि आप की ज्यादतियों ने उन के अधिकार छीने और वे घरेलू हिंसा का शिकार हुईं. ऐसी तमाम घटनाओं के मद्देनजर वे आप से आजिज आ चुकी हैं और छुटकारा पाना चाहती हैं.
नोटिस में विस्तार से कुछ घटनाओं का वर्णन था. ये घटनाएं सुरेश के पुरुषवादी रवैये की पोल खोल रही थीं. सुजाता ने क्रम से ये घटनाएं लिखी थीं :
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14 फरवरी, 2020 : मिस्टर सुरेश महाजन यानी माननीय पति महोदय आप को हमारी शादी के करीब 1 सप्ताह बाद की वह रात तो याद ही होगी. लौकडाउन से 1 महीने पहले वैलेंटाइन डे के दिन जब हम हनीमून पर मनाली गए थे तो उस दिन मैं ने अपनी बहन द्वारा दिए गए तोहफे को खोला था. बहन ने चुपके से मेरे बैग में एक ड्रैस रख दी थी और मैं उसे पहन कर तैयार हो गई. ड्रैस कहीं से भी बेकार नहीं लग रही थी. स्लीवलैस जरूर थी मगर भद्दी नहीं थी. उस ड्रैस को पहन कर खुशीखुशी मैं अपने कमरे से बाहर निकली. आप ने बुरा सा मुंह बनाया. अपने हाथ में पकड़ा हुआ अखबार नीचे फेंका और झकझोरते हुए मुझे यह कहते हुए वापस बाथरूम में धकेल दिया कि ऐसी ड्रैस पहन कर साथ चलने की बात सोचना भी मत.
उस वक्त मुझे ऐसा लगा था जैसे मेरे वजूद पर ही सवाल खड़ा किया गया हो. क्या मुझे अपनी पसंद के कपड़े पहनने का हक भी नहीं मिलना चाहिए? क्या अपने हनीमून पर अपने पति के साथ भी मैं वैस्टर्न ड्रैस नहीं पहन सकती?
नोटिस में एक और घटना का विवरण था. सुजाता ने हिंसा का आरोप लगाते हुए एक दिन क्या हुआ था, इस बारे में विस्तार से लिखा था :
23 मार्च, 2020 : उस दिन मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. मुझे उठने में देर हो गई. आप तो मेरे उठाने पर ही उठते हो. इस वजह से आप को औफिस जाने में देर हो गई. मैं ने तबीयत खराब में भी जल्दीजल्दी नाश्ता बनाया मगर आप झल्लाते हुए औफिस गए. शाम तक मुझे 102 डिग्री बुखार हो चुका था. मैं ने फोन करने की सोची फिर रुक गई कि आप का मूड सही नहीं. मैं दवा खा कर पूरे दिन सोई रही. शाम को दरवाजे की घंटी लगातार तेज आवाज में बजती सुन मैं हड़बड़ा कर उठी और चक्कर खा कर गिर पड़ी. किसी तरह लड़खड़ाते हुए मैं ने दरवाजा खोला.
मेरी तरफ एक पल को भी देखे बगैर आप ने मुझे धक्का दिया और चिल्लाते हुए घर में घुसे. अपना बैग बिस्तर पर पटकते हुए चीखने लगे,” दरवाजा खोलने में इतनी देर लगती है? पता नहीं क्यों पूरे दिन बिस्तर तोड़ती रहती है. मैं थकहार कर औफिस से लौटता हूं और एक तुम हो कि दरवाजा भी नहीं खुलता. अब मुंह क्या देख रही हो? पानी लाओ. ”
उस वक्त मुझे खुद पर कितना तरस आया यह केवल मैं ही जानती हूं. तुम ने एक नजर भी मेरे मलिन पड़े चेहरे की तरफ नहीं डाली. मेरी तकलीफ तुम्हें दिखाई ही नहीं दी. तुम ने यह सोचने की कोशिश भी नहीं की कि मैं आज इतनी सुस्त क्यों हो रही हूं. तुम्हारे लिए मैं ने चाय बनाई मगर खाना बनाने की हिम्मत नहीं हुई. तुम्हें कुछ कहने का भी दिल नहीं किया. मैं जा कर सो गई और तुम ने रात में खाना न मिलने पर फिर से हंगामा कर दिया. मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए तुम थप्पड़ लगाने ही वाले थे मगर हाथ गरम देख कर रुक गए.
यह कैसा रिश्ता है हमारा, जहां पति को अपनी पत्नी की तकलीफ भी नहीं दिखती? यह बात अलग है कि अगले दिन से ही लौकडाउन हो गया और तुम मुझे चायब्रैड खिलाने के लिए घर में थे. मगर आज सोचती हूं कि यदि उस समय मुझे वायरल बुखार के बजाय कोरोना हुआ होता तो तुम मेरी क्या हालत करते.
3 अप्रैल 2020 : इस दिन मैं ने तुम से बिना पूछे घर के परदे बदल दिए थे जिन्हें कुछ दिन पहले ही खरीदे थे. तुम ने उन पर सरसरी नजर डाली और कोने में पटक दिया. मुझ पर चिल्लाते हुए तुम ने कहा था,” इतने चटकीले रंग के परदे मेरे घर में नहीं लगेंगे.”
उस दिन मैं पूछना चाहती थी कि क्या यह घर केवल तुम्हारा है? मैं यहां मेहमान हूं? यह मेरा घर नहीं? मगर हमेशा की तरह मुझे तुम से कुछ भी पूछने या बताने की इच्छा नहीं हुई. मैं अपने कमरे में जा कर बैठ गई. मेरी आंखें छलछला आईं थीं मगर तुम अपने अहम के नशे में गुम थे.
26 अप्रैल 2020 : याद करो उस दिन शाम 7 बजे मैं हंसतीमुसकराती अपनी सहेली से बातें कर के मुड़ी और तुम ने मेरे गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया. चीख पड़े थे तुम. मेरी गलती इतनी सी थी कि मैं ने अपनी सहेली से उस के पति की तारीफ कर दी थी. तुम्हारे अंदर जलन की आग ऐसी भड़की कि तुम ने आगेपीछे सोचे बगैर मुझ पर हाथ उठा दिया.
तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारी तारीफ करती रहूं जबकि तुम मेरी खुशी की कोई कदर नहीं करते. मेरी सहेली विभा का पति हमेशा विभा की पसंद और उस की खुशी को तवज्जो देता है. ऐसे में मैं ने उस की तारीफ कर के क्या गलत कर दिया था?
2 मई 2020 : इस दिन अपनी मां की शह पर तुम ने मेरी बांह मरोड़ दी. कई दिनों तक मैं इस दर्द से परेशान रही. वजह सिर्फ इतनी ही थी कि मैं तुम्हारे शर्ट की बटन टांकना भूल गई जबकि उस दिन तुम्हारी जूम मीटिंग थी. पर क्या इतनी सी बात पर तुम मेरे साथ इतना दुर्व्यवहार करोगे? लौकडाउन में तुम भी तो पूरे दिन घर में बैठे रहते हो. औफिस का काम तो मुश्किल से 3-4 घंटे करते हो बाकी समय कभी दोस्त, कभी टीवी तो क्या कभी बीवी का हाथ बंटाना जरूरी नहीं?
सच तो यह है कि तुम्हारे लिए दूसरी सभी चीजें महत्त्वपूर्ण हैं सिवाए हमारे रिश्ते के. तो फिर इस रिश्ते को ढोते रहने की मजबूरी कैसी? खत्म करते हैं न इस रिश्ते को.
5 मई 2020 : इस दिन आप ने मेरी औकात समझाई थी. आप ने बताया था कि मुझे औरत होने का धर्म निभाना है. आप को एक बेटा देना है बेटी नहीं. बेटी की तो आप के जीवन में कोई अहमियत ही नहीं है. बेटा पैदा करना बस मेरे ही हाथ में तो है. कभीकभी तो मुझे शक होता है कि क्या वाकई आप पढ़ेलिखे हो? आप से बेहतर तो अनपढ़ हैं जो अपनी बिटिया को कंधों पर बैठाए दुनियाजहान घूम आते हैं. पर आप के लिए बेटी बोझ है. आप को तो सिर्फ बेटा चाहिए. जाने कैसी रूढ़िवादी मानसिकता में जकड़े हुए हो आप कि जब साथ चलती हूं तो एक अजीब सी जकड़न का एहसास होता है. अब आजादी चाहती हूं मैं आप से. आप की धौंस भरी बातों से, आप के पुरुषवादी व्यवहार से.
14 मई 2020 : उस दिन शाम को सब्जी काटते हुए मेरा हाथ कट गया था. मेरे दाहिने हाथ में पट्टी बंधी थी मगर आप को कोई परवाह नहीं हुई कि मैं खाना कैसे बनाऊंगी. पिछले 2 महीने से मैं आप को पसंद की चीजें बनाबना कर खिला रही हूं न. फिर क्या आप एक दिन मेरे लिए कुछ बना नहीं सकते थे? बेशर्म हो कर मैं ने आप को कहा भी कि हैल्प कर दो तो आप ने कैसा धौंस भरा जवाब दिया था,” खाना बनाना औरतों का काम है. बता दो तुम से नहीं होता तो किसी और को रख लेता हूं.”
आप का जवाब सुन कर मैं बिलकुल चुप रह गई थी. आगे कुछ कहने को बचा ही नहीं था मेरे पास
मैं ने सोचा था कि लौकडाउन के इस समय में आप के साथ ज्यादा वक्त बिता पाऊंगी. ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकूंगी आप को. ज्यादा करीब आ पाऊंगी. मगर अफसोस, करीब आने के बजाय हमेशा के लिए दूर हो जाना चाहती हूं. क्योंकि लौकडाउन के इन दिनों में बेहतर ढंग से समझ लिया है.
मैं ऐसे शख्स के साथ कतई नहीं रह सकती जिस के लिए रिश्तों का कोई अर्थ नहीं. जो अपने जीवनसाथी की तकलीफ न समझ सके, उसे बराबरी का दरजा न दे सके उस की खुशियों का खयाल न कर सके, उस पर विश्वास भी न करे और न ही उसे अपनी जिंदगी में कोई अहमियत ही दे सके.
सुरेश बिस्तर पर लुढ़क गया. कागज छूट कर नीचे जा गिरा. उसे आज रोशनी भी चुभने लगी थी. उस ने जल्दी से अपने चेहरे को तकिए से ढंक लिया. आज पहली दफा किसी ने उसे आईना दिखाया था और अपनी सूरत देख कर उसे शर्म आ रही थी.
उसे सुजाता के साथ बिताए एकएक पल याद आने लगे थे. वे पल जब सुजाता को जीभर कर प्यार किया था उस ने. वे पल जब सुजाता के साथ ने जीवन आनंद से भर दिया था. उसे याद आ रहा था कैसे सुबह से शाम तक सुजाता उस के और घर के कामों में लगी रहती थी. सुजाता को तो हमेशा मुसकराने की आदत थी. तो क्या वाकई वह इतना स्वार्थी और घमंडी था जिस ने सुजाता की हंसी छीन ली?
सुरेश बारबार उस कागज में लिखी बातें पढ़ने लगा. उस में लिखी हर घटना उस की आंखों के आगे सजीव हो उठीं. वाकई सुजाता ने जो भी लिखा था वह 100% सही था. मगर जब घटनाएं हो रही थीं उस वक्त सुरेश ने कभी भी सुजाता की नजरों से नहीं सोचा था. सुजाता जो उस की जीवनसाथी है, कितनी दुखी थी और सुरेश को इस बात का अहसास भी नहीं था. उस ने कभी यह सोचा ही नहीं था कि सुजाता इस तरह सब कुछ छोड़ कर भी जा सकती है.
उसे तो सुजाता की आदत हो गई थी. उस के बिना घर में कितना अकेला हो जाएगा. एक छोड़ा हुआ पति कहलाएगा. दोस्त पीठ पीछे उस का मजाक उड़ाएंगे. ऐसी कितनी ही बातें सुरेश के जेहन में घूमने लगीं.
सुजाता के यों मुंह मोड़ने से उस की जिंदगी कितनी बदल जाएगी. पहले तलाक की भागदौड़ और परेशानियां और फिर सुजाता संपत्ति में से भी तो हिस्सा मांगेगी. उसे गुजाराभत्ता भी देना पड़ेगा. तलाक के बाद दूसरी शादी की टैंशन भी रहेगी.
सुरेश को अपना कुलीग विजय याद आया. तलाक के बाद बहुत मुश्किलों से उसे दूसरी दफा कोई ढंग की दुलहन मिल पाई थी. मगर वह भी फ्रौड निकली.
सुरेश सोफे के कोने में बैठ गया. एक सीधीसादी व पढ़ीलिखी पत्नी को गंवाने के बाद कहीं वह भी परेशानियों के भंवर में न फंस जाए. सुजाता में कोई कमी नहीं. यह तो सचमुच उस का खोखला घमंड था, पुरुषवादी रवैआ था जिस की वजह से उस की शादीशुदा जिंदगी बरबाद होने वाली थी.
सुरेश रातभर करवटें बदलता रहा. वह लगातार यही सोचता रहा कि सुजाता को तलाक न लेने के लिए कैसे राजी किया जाए.
अगले दिन सुबह उठते ही उस ने सुजाता को फोन लगाया और एक दफा मिलने की इच्छा जाहिर की. किसी तरह सुजाता तैयार हो गई. सुजाता का मायका आगरा में था. सुरेश ने सुबहसुबह बस ली और इलाहाबाद से आगरा के लिए रवाना हो गया. सुजाता ने उसे माल में मिलने बुलाया.
सुजाता का हाथ थाम कर सुरेश ने कहा,”बस एक मौका दे दो मुझे सुजाता. तुम्हारी हर शिकायत दूर कर दूंगा. तुम्हें खोने के एहसास ने ही मुझे मेरी औकात समझा दी है. सुजाता बस एक मौका दे दो अपने पति को. फिर जो चाहे कर लेना. तुम ने मुझे आईना दिखा दिया है. यकीन रखो मैं चेहरा बदल लूंगा. बस तुम्हारा साथ नहीं खो सकता.”
सुजाता ने सोचा भी नहीं था कि सुरेश इस तरह उस से माफी मांगेगा.
“एक मौका तो हर अपराधी को दिया जाता है. आप को भी दे दूंगी. पर ध्यान रखना, मौके बारबार नहीं मिलते.” मुसकराते हुए सुजाता ने कहा तो सुरेश ने बढ़ कर उसे गले से लगा लिया. सुजाता के द्वारा भेजे गए नोटिस ने उस की जिंदगी की दिशा ही बदल दी थी. सुरेश को सबक मिल चुका था कि वह तुलसीदास की रामचरित मानस की चौपाइयों पर भरोसा करके सुखी जिंदगी नहीं जी सकता. सुजाता उन में से नहीं है जो सिर पर पल्लू ढांक कर प्रवचनकर्ताओं की ऊलजलूल बातें मान ले. वह एक बराबरी का हक रखने वाली पत्नी है, ताड़न की अधिकारी नहीं.