पिछला भाग पढ़ने के लिए- मौन प्रेम: भाग-1
तभी एक लड़का मोटरसाइकिल को स्लो कर मेरे पास आ कर बोला, ‘‘उठा परदा, दिखा जलवा.’’
मैं ने जल्दी से साड़ी नीचे कर ली, पर मेरा पैर फिसल पड़ा और गिरने लगी. मगर इस के पहले कि मैं सड़क पर गिरती पीछे से किसी के हाथों ने मुझे संभाल लिया वरना मैं पूरी तरह कीचड़ से सन जाती. जब मैं पूरी तरह सहज हुई तो देखा वे हाथ प्रसून के थे.
इसी बीच मोटरसाइकिल वाले लड़के की बाइक कुछ दूर आगे जा कर स्लिप हुई और वह गिर पड़ा. उस के कपड़ों और चेहरे पर कीचड़ पुता था.
प्रसून ने जोर से कहा, ‘‘बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला.’’
वह लड़का उठा और गुस्से से हमें देखने लगा. प्रसून बोला, ‘‘ऐसे क्यों घूर रहा है. वह देख तेरे सामने जो ट्रक गया है उस के पीछे यही लिखा है.’’
इस बार मैं भी खुल कर हंस पड़ी थी. फिर पूछा, ‘‘आज आप पैदल चल रहे हैं? आप के दोस्त मधुर नहीं हैं?’’
‘‘नहीं, आज वह मेरे साथ नहीं आया है.’’
मैं ने प्रसून को हिस्टरी पेपर में उस की मदद के लिए धन्यवाद दिया. वह मेरे साथसाथ चौराहे तक गया. वहां मुझे रिकशा मिल गया. प्रसून अपने घर की तरफ चल पड़ा. उस के घर का पता मुझे अभी तक मालूम नहीं था न ही मैं ने जानने की जरूरत समझी या कोशिश की.
कुछ दिनों बाद कालेज लाइब्रेरी में प्रसून मुझे मिला. मैं ने गुड मौर्निंग कह कर पूछा, ‘‘आप कैसे हैं?’’
‘‘बिलकुल ठीक नहीं हूं और तुम कैसी हो? ओह सौरी, मेरा मतलब आप कैसी हैं?’’
‘‘इट्स ओक विद तुम, पर क्या हुआ आप को?’’
‘‘यह आपआप कब तक चलेगा हमारे बीच. आप मैं औपचारिकता है, वह अपनापन नहीं जो तुम में है. अगर अब मुझ से बात करनी है तो हम दोनों को आप छोड़ कर तुम पर आना पड़ेगा… समझ गईं?’’
‘‘समझ गईं नहीं, समझ गई,’’ और फिर हम दोनों हंस पड़े.
प्रसून बड़ा हंसमुख लड़का था. किसी ने उस के चेहरे पर उदासी नहीं देखी थी. पढ़नेलिखने में भी टौप था और उतना ही स्मार्ट भी. किसी भी लड़की या लड़के से बेखौफ, बेतकल्लुफ मिल कर बातें करता, हंसनाहंसाना उस की फितरत में था. किसी की नि:स्वार्थ मदद करने को हमेशा तैयार रहता. कालेज के फंक्शंस में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता. अनेक लड़के और लड़कियां उस के प्रशंसक थे और उस से नजदीकियां बढ़ाना चाहते थे. मैं भी उस की प्रशंसा सुन प्रभावित हुई और उस की ओर आकर्षित हुई. मेरे मन में उस के लिए एक मौन प्यार जाग उठा था.
हम दोनों अब लाइब्रेरी के अतिरिक्त कभी कैंटीन तो कभी मार्केट में मिलने लगे और कभी मूवी हौल में भी. पर बीच में कोई न कोई कबाब में हड्डी जरूर बनता. कभी मधुर तो कभी कोई अन्य लड़का या फिर लड़की.
उस की ओर से कभी प्यारमुहब्बत की बातें सुनने के लिए मैं तरस रही थी, प्रोपोज
करना तो बहुत दूर की बात थी.
फाइनल ईयर तक जातेजाते मैं ने अनुभव किया कि जब कभी वह एकांत में होता फोन पर किसी लड़की से बात करता होता. यह देख मुझे ईर्ष्या होती. 2-3 दिन की छुट्टियों में वह बिना बताए लापता हो जाता. कहां जाता, किसी को नहीं बताता था.
प्रसून कुछ अन्य विषयों में भी मेरी काफी सहायता करता. मुझे उस समय तक पता नहीं था कि कालेज में कुछ मनचली लड़कियां भी हैं जो पौकेट मनी के लिए मौजमस्ती करने से बाज नहीं आतीं.
एक बार ऐसी ही एक लड़की मंजुला मुझे कौफी पिलाने के लिए एक कैफेटेरिया में ले गई. उस कैफेटेरिया के ऊपर ही एक गैस्ट हाउस था. पर कौफी पीने के बाद मेरा सिर चकराने लगा और हलकीहलकी नींद सी आने लगी. मंजुला मुझे गैस्टहाउस में एक कमरे में ले गई और मुझे एक बैड पर लिटा दिया. कुछ देर आराम करने को कह बोली, ‘‘मैं थोड़ी देर में कोई दवा ले कर आती हूं.’’
इस के बाद जब मेरी आंखें खुलीं तो मैं ने देखा कि मेरे पास प्रसून और मधुर दोनों बैठे थे. मधुर ने कहा, ‘‘तुम्हें मंजुला के बारे में पता नहीं था? तुम उस के साथ कालेज से बाहर क्यों गई थीं?’’
‘‘मैं बस उसे कालेज का स्टूडैंट समझती थी और 2 पीरियड फ्री थे तो थोड़ी देर के लिए कौफी पीने चली गई उस के साथ.’’
‘‘अपने कालेज की कैंटीन में भी कौफी मिलती है या नहीं? फिर बाहर जाने का क्या मतलब था?’’
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‘‘मंजुला बोली कि कैंटीन में तो रोज ही पीते हैं. आज कौफी टाइम है, बाहर चल कर पीते हैं.’’
‘‘और तुम भोली बच्ची की तरह उस के पीछेपीछे चल दी. बेवकूफ लड़की,’’ उस ने डांटते हुए कहा.
प्रसून ने बीच में रोक कर कहा, ‘‘तुम भावना को क्यों इतना डांट रहे हो? उसे जब मंजुला के बारे कुछ पता नहीं है तो उस की क्या गलती है?’’
‘‘पर मंजुला के बारे में तुम लोग क्या कहना चाहते हो?’’
मधुर बोला, ‘‘मंजुला मौजमस्ती और पौकेटमनी के लिए खुद तो अपना चरित्र खो चुकी है और अब दूसरी लड़कियों के लिए दलाली करने लगी है. प्रसून उस कैफे की तरफ से गुजर रहा था और उस ने तुम्हें मंजुला के साथ अंदर जाते देखा तो उस ने तुरंत फोन कर मुझे भी यहां आने को कहा और स्वयं तुम्हें खोजते हुए ऊपर गैस्टहाउस तक पहुंचा. अगर थोड़ी भी देर होती तो तुम्हारी इज्जत मिट्टी में मिल गई होती.’’
‘‘उफ, मैं तो अपने कालेज की लड़कियों के बारे में ऐसा सोच भी नहीं सकती थी. तुम लोगों ने पुलिस में सूचना दी है?’’ मैं ने पूछा.
‘‘मैं तो देने जा रहा था, पर प्रसून ने मना किया, क्योंकि फिर तुम्हें बारबार पुलिस थाने और कोर्ट जाना पड़ता गवाही के लिए. फिर तुम जान सकती हो कि कुछ दिनों के लिए शहर में तुम ब्रेकिंग न्यूज का विषय रहती.’’
‘‘तो क्या मंजुला और उस बदमाश लड़के को यों ही छोड़ दिया जाए?’’
‘‘उस लड़के की अच्छी पिटाई की गई है. पता नहीं अच्छा किया या बुरा, पर 2-4 चांटे मैं ने मंजुला को भी जड़ दिए. प्रिंसिपल से उस की शिकायत कर दी है. शायद वह रैस्टीकेट हो जाए. वह लड़का तो अपने कालेज का नहीं था,’’ मधुर बोला.
‘‘पर मुझे तुम लोग यहां क्यों लाए हो? यह किस का घर है?’’
‘‘यह प्रसून का कमरा है. इस छोटे से कमरे में वह किराए पर रहता है. इस के बारे में बाद में बात करेंगे. अब तुम देर नहीं करो, शाम होने को है. तुम्हें घर छोड़ देते हैं.’’
मैं कृतज्ञतापूर्ण नजरों से प्रसून को देख कर बोली, ‘‘तुम मेरे लिए आज मसीहा बन कर आए मैं तुम्हारे उपकार का बदला नहीं चुका पाऊंगी प्रसून,’’ बोल कर मैं उस का हाथ पकड़ कर रो पड़ी.
उन दोनों की मदद से मैं सहीसलामत घर लौट आई. उस दिन मेरे मन में प्रसून के लिए बहुत प्यार उमड़ आया पर प्रसून के बरताव से मैं नहीं समझ पा रही थी कि मेरे लिए उस के मन में क्या है.
आगे पढ़ें- मैं ने बीए कर लिया और प्रसून पीसीएस में कंपीट कर…
पिछला भाग पढ़ने के लिए- मौन प्रेम: भाग-2
समय बीतता जा रहा था. मैं ने बीए कर लिया और प्रसून पीसीएस में कंपीट कर चुका था. इस खुशी में प्रसून ने ट्रीट दिया. मैं और मधुर उस के साथ होटल में थे. हम तीनों में कोई भी ड्रिंक नहीं लेता था. उस दिन होटल के डाइनिंगहॉल में औरकैस्ट्रा के गायक ने बौलीवुड के रोमांटिक गानों से सब को प्रसन्न किया. उस का आखिरी गाना था, ‘‘किसी न किसी से कभी न कभी कहीं न कहीं दिल लगाना पड़ेगा…’’
मैं अब उन के बीच फ्रैंक हो चुकी थी. मैं ने प्रसून से पूछा, ‘‘तब तुम्हारा दिल किस पर आया है?’’
वह गंभीर हो गया और बोला, ‘‘मेरी छोड़ो, तुम बोलो शादी कब कर रही हो? अपनी शादी में मुझे बुलाना नहीं भूलना.’’
मुझे उस का जवाब सुन कर अच्छा नहीं लगा. मैं सोच रही थी कि शायद अब अच्छी नौकरी मिल जाने के बाद यह मेरे साथ घर बसाने की बात सोच रहा होगा. उस दिन के बाद तो प्रसून से मेरी कोई बात नहीं हुई. वह किसी दूसरे शहर में राज्य सरकार का बड़ा अफसर था. मेरे मातापिता मेरी शादी की बात भी चला रहे थे. मधुर इसी शहर में था और कभीकभी हमारी मुलाकात हो जाती थी.
एक दिन मधुर मिला. मैं ने उस से प्रसून के बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘वैसे तो प्रसून देखने में बहुत खुश और सदा मुसकराते रहता है पर वह एक अंतर्मुखी लड़का है. अपना दर्द दूसरों से नहीं बांटता है. मुझे भी अपनी पर्सनल जिंदगी के बारे में कुछ नहीं बताया है. पर अभी कुछ दिन पहले ही मुझे उस की हकीकत का पता चला है.’’
‘‘ऐसी कौन सी बात है?’’
‘‘कुछ दिन पहले मुझे उस ने अपने गांव में बुलाया था. मैं उस से मिलने उस के गांव गया पर वह तब तक शहर जा चुका था. मैं उस की बूढ़ी मां और उस की 5 साल की बेटी से मिला.’’
‘‘बेटी?’’
‘‘हां, उस की शादी तो 12वीं कक्षा में ही हो गई थी. उस के पिता नहीं थे और उस की अस्वस्थ मां की देखभाल के लिए कोई भरोसेमंद औरत घर में चाहिए थी. उस ने शादी की. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा. उसे एक बच्ची भी हुई. फिर उस की पत्नी उसे और बच्ची को छोड़ कर भाग गई.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘जैसा कि प्रसून की मां ने कहा वह गांव में नहीं रहना चाहती थी उसे शहर में रहना था. प्रसून ने कहा था कि जब तक उसे शहर में नौकरी नहीं मिलती उसे गांव में ही रहना होगा. पर वह नहीं मानी और बेटी को छोड़ कर चली गई. सुना है बाद में उस ने शादी भी कर ली. प्रसून अब कुछ ही दिनों के अंदर अपनी मां और बेटी को शहर शिफ्ट कर रहा है?’’
मैं ने मन में सोचा कि इतनी बड़ी बात उस ने कभी किसी से शेयर नहीं की. करीब 1 सप्ताह बीता होगा बरसात का मौसम था. 3 दिनों से पूरे राज्य और पड़ोसी राज्य में बारिश हो रही थी. हर तरफ बाढ़ और अफरातफरी का माहौल था. टीवी न्यूज से पता चला कि बाढ़ में डैम के गेट खोलने के चलते प्रसून का गांव जलमग्न हो गया था.
मधुर ने मुझ से फोन कर कहा, उस की मां को बचाया न जा सका पर उस की बेटी शिविर में बीमार है. प्रसून वहां पहुंचने ही वाला है. मैं वहीं जा रहा हूं.
मैं ने बिना देर किए कहा, ‘‘मुझे भी साथ ले चलो, मैं भी चलूंगी.’’
‘‘वहां बहुत दिक्कत होगी तुम्हें.’’
‘‘ये बेकार की बातें हैं, तुम नहीं ले जा सकते तो मैं अकेली ही चली जाऊंगी.’’
‘‘अच्छा रुको, मैं आ रहा हूं.’’
‘‘मैं मधुर के साथ प्रसून के गांव आई. प्रसून 2 दिन बाद ही पहुंच सकता था, क्योंकि खुद वह जहां था वहां भी बाढ़ थी और बिना दूसरे को चार्ज दिए वह नहीं आ सकता था. मधुर ने उसे बता दिया था कि हम दोनों उस की बेटी के पास पहुंचने ही वाले हैं.
मैं शिविर में प्रसून की बेटी से मिली. उसे कौलरा हुआ था. मैं ने उस का नाम पूछा तो उस का छोटा सा जवाब था, ‘‘मिनी.’’ मैं ने उसे प्यार से गोद में ले लिया. वह मुझ से लिपट गई और बोली, ‘‘आप मेरी मम्मी हो न?’’
‘‘नहीं बेटे मम्मी तो नहीं, पर मम्मी जैसी ही हूं.’’मधुर मिनी और मेरा फोटो ले रहा था. मैं ने डाक्टर की सलाह के अनुसार मिनी के खानेपीने का इंतजाम किया. अब मिनी की स्थिति काफी सुधर चुकी थी. प्रसून भी आ गया. मुझे और मधुर को देख कर उसे खुशी और संतोष हुआ कि उस की बेटी सुरक्षित है.
मिनी दौड़ कर प्रसून के सीने से जा लगी और बोली ‘‘पापा, आप इतनी देर से क्यों आए. कहीं मैं मर जाती तो?’’
प्रसून ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘ऐसा नहीं बोलते बेटा. तेरे बिना तो पापा भी जिंदा नहीं रह सकते हैं. तेरे ही लिए मधुर अंकल और भावना आंटी यहां आए हैं.’’
हम चारों 3 दिन तक वहां एकसाथ रहे. तब तक पानी भी बहुत कम हो गया और स्थिति बेहतर हो गई थी. मधुर बोला, ‘‘अब बाढ़ का असर भी करीबकरीब खत्म हो चला है. मिनी बिटिया भी ठीक हो गई है. अब मैं चलता हूं.’’
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मैं बोल उठी, ‘‘मैं चलता हूं, वाह क्या कमाल की बात करते हो. मुझे यहां तक लाने वाले तुम हो और यों ही छोड़ कर चले जाने को तैयार हो.’’
‘‘तुम यहां स्वेच्छा से आई थी, मेरे कहने से नहीं.’’
‘‘ठीक है, तुम जा सकते हो. मैं अकेली भी जा सकती हूं.’’
‘‘भावना, तुम बुरा मान गईं, मैं ने सोचा शायद तुम कुछ दिन और यहां रुकना चाहो.’’
मैं ने एक नजर प्रसून की तरफ देखा. वह बेटी को प्यार किए जा रहा था, उस ने नजर उठा कर मेरी तरफ देखा. पर उस की आंखों की भाषा में मेरे रुकने का कोई आशय नहीं था. मुझे अच्छा नहीं लगा. अत: मैं मधुर से बोली, ‘‘नहीं, अब मेरा यहां क्या काम. मैं भी चलती हूं.’’
मैं मधुर के साथ लौट आई. नौकरी लगने के बाद प्रसून अपने गांव की ज्यादातर जमीन बेच चुका था, जो थोड़ीबहुत संपत्ति बची थी उसे अपने चाचा के हवाले कर वह मिनी के साथ शहर आ गया.
एक दिन प्रसून ने मुझे एक वीडियो क्लिप और मैसेज फोन पर भेजा. उस वीडियो क्लिप को मधुर ने गांव में लिया था, जिस में मैं मिनी को समझा रही थी कि मैं उस की मम्मी जैसी ही हूं. मैसेज में लिखा गया था. ‘मिनी, तुम्हें बहुत याद करती है. क्या उस की मम्मी जैसी से सिर्फ मम्मी नहीं बन सकती हो? मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार करूंगा. मैं ने तुम्हारे घर में पहले ही बात कर ली है, उम्मीद है तुम निराश नहीं करोगी.’’
प्रसून के मुंह से ऐसी बात सुनने का तो मैं इंतजार ही कर रही थी. अभी तक उस के मौन से मैं निराश हो चली थी. अब आस की किरण फूटने लगी. उस ने इस बात के लिए मिनी का सहारा क्यों लिया? खुद भी तो कह सकता था?मैं सोच रही थी. फिर भी मैं बेहद खुश थी. इतनी खुश कि मेरी आंखों से आंसू टपक पड़े. मैं ने प्रसून को टैक्स्ट किया, ‘मुझे इस दिन का बेसब्री से इंतजार था.’
मेरा12वीं कक्षा का रिजल्ट आने वाला था. मुझे उम्मीद थी कि मैं अच्छे मार्क्स ले आऊंगी. इस के बाद मेरी इच्छा कालेज जौइन करने की थी. उस समय घर में दादी सब से बुजुर्ग सदस्या थीं और पापा भी उन का कहा हमेशा मानते थे.
जब मेरे कालेज जाने की चर्र्चा हुई तो दादी ने पापा से कहा, ‘‘और कितना पढ़ाओगे? अपनी बिरादरी में फिर लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा और अगर मिला भी तो उतना तिलक देने की हिम्मत है तुझ में?’’
‘‘मां, जब लड़की पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी तो तिलक नहीं देना पड़ेगा.’’
‘‘लड़कियां कितनी भी पढ़लिख जाएंअपने समाज में बिना तिलक की शादी तो मैं ने नहीं सुनी है.’’
‘‘तुम चिंता न करो मां… पोती का आगे पढ़ने का मन है… उसे आशीर्वाद दो कि अच्छे मार्क्स आएं… स्कौलरशिप मिल जाए तो उस की पढ़ाई पर खर्च भी नहीं आएगा.’’
‘‘ठीक है, अगर तेरी समझ में आगे पढ़ने से भावना बेटी का भला है तो पढ़ा. पर मेरी एक बात तुम लोगों को माननी होगी… कालेज में भावना को साड़ी पहननी होगी. स्कूल वाला सलवारकुरता, स्कर्टटौप या जींस में मैं भावना को कालेज नहीं जाने दूंगी,’’ दादी ने फरमान सुनाया.
‘‘ठीक है दादी, जींस नहीं पहनूंगी पर सलवारकुरते में क्या बुराई है? उस में भी तो पूरा शरीर ढका रहता है?’’
‘‘जो भी हो, अगर कालेज में पढ़ना है तो तुम्हें साड़ी पहननी होगी?’’
मेरा रिजल्ट आया. मुझे मार्क्स भी अच्छे मिले, पर इतने अच्छे नहीं कि स्कौलरशिप मिले. फिर भी अच्छे कालेज में दाखिला मिल गया. पर मेरा साड़ी पहन कर जाना अनिवार्य था. मम्मी ने मुझे साड़ी पहनना सिखाया और मेरे लिए उन्होंने 6 नई साडि़यां और उन से मैचिंग ब्लाउज व पेटीकोट भी बनवा दिए ताकि मैं रोज अलग साड़ी पहन सकूं.
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जुलाई मध्य से मेरी क्लासेज शुरू हुईं. नईर् किताबें और स्टडी मैटीरियल लेतेलेते जुलाई बीत गया पर इस साल सिलेबस में कुछ बदलाव हुआ थे, जिस के चलते इतिहास की एक किताब अभी मार्केट में उपलब्ध नहीं थी. प्रोफैसर अपने नोट्स से पढ़ाते थे. कभी 1-2 प्रिंटआउट किसी एक स्टूडैंट को देते थे और उस का फोटोकौपी कर हमें आपस में बांटनी होती थीं.
ऐसे कुछ नोट्स मेरे अलावा बहुतों को नहीं मिल सके थे और सितंबर में पहला टर्मिनल ऐग्जाम होना था. लाइब्रेरी में सिर्फ एक ही रिफरैंस बुक थी, जिसे हम घर ले जाने के लिए इशू नहीं करा सकते थे. वहीं बैठ कर पढ़नी होती थी. मैं जब भी लाइब्रेरी जाती उस किताब पर किसी न किसी का कब्जा होता.
एक दिन मैं उस किताब के लिए लाइब्रेरी गई. उस दिन भी वह किताब किसी ने पढ़ने के लिए इशू करा रखी थी. इत्तफाक से उस किताब पर मेरी नजर पड़ी. मेरी बगल में बैठे एक लड़के ने इशू करा कर टेबल पर रखी थी और वह खुद दूसरी किताब पढ़ रहा था. मैं ने हिम्मत कर उस से कहा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, अगर इस किताब को आप अभी नहीं पढ़ रहे हैं तो थोड़ी देर के लिए मुझे दे दें. मैं इस में से कुछ नोट कर वापस कर दूंगी.’’
उस ने किताब को मेरी तरफ सरकाते हुए कहा, ‘‘श्योर, आप इसे ले सकती हैं. वैसे हिस्टरी तो मेरा सब्जैक्ट भी नहीं है. मैं ने अपने एक फ्रैंड के लिए इशू कराई है. जब तक वह आएगा तब तक आप इसे पढ़ सकती हैं.’’
‘‘थैंक्स,’’ कह कर मैं ने किताब ले ली.
करीब 20 मिनट के अंदर एक लड़का आया और बगल वाले लड़के से बोला, ‘‘प्रसून, तुम ने मेरी किताब इशू कराई है न?’’
‘‘मधुर, आ बैठ. किताब है, तू नहीं आया था तो मैं ने इन्हें दे दी है. थोड़ी देर मेंतुम्हें मिल जाएगी.’’
मैं अपना नोट्स लिखना बंद कर किताब उसे देने जाने लगी तभी प्रसून बोला, ‘‘अरे नहीं, आप कुछ देर और रख कर अपने नोट्स बना लें. है न मधुर?’’
मुझे अच्छा नहीं लग रहा था. 5 मिनट बाद मैं ने किताब प्रसून को लौटा दी.
वह बोला, ‘‘आप मेरे सैक्शन में तो नहीं हैं… क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’
‘‘मुझे भावना कहते हैं.’’
मैं उठ कर चलने लगी तो वह बोला, ‘‘मुझे लगता है कि आप को किताब से और नोट्स बनाने बाकी रह गए हैं. आप एक काम करें मुझे सिर्फ पेज नंबर बता दें. मैं आप को वे पन्ने दे सकता हूं.’’
‘‘तो आप क्या किताब में से उन पन्नों को फाड़ कर मुझे देंगे?’’
‘‘क्या मैं आप को ऐसा बेहूदा लड़का लगता हूं?’’
‘‘नहीं, मेरा मतलब वह नहीं था. सौरी, पर आप उन पन्नों को मुझे कैसे देंगे?’’
‘‘पहले आप अपना मोबाइल नंबर मुझे बताएं. फिर यह काम चुटकियों में हो जाएगा.’’
मुझे लगा कहीं मेरा फोन नंबर ले कर यह मुझे परेशान न करने लगे. अत: बोली, ‘‘नो थैंक्स.’’
तब दूसरे लड़के मधुर ने कहा, ‘‘भावनाजी, मैं समझ सकता हूं कि कोई भी लड़की किसी अनजान लड़के को अपना फोन नंबर नहीं देना चाहेगी, पर आप यकीन करें, प्रसून कोई ऐसावैसा लड़का नहीं है. यह तो उन पेजों का फोटो अपने मोबाइल से ले कर आप को मैसेज या व्हाटसऐप अथवा मेल कर सकता है. ऐसा इस ने क्लास की और लड़कियों के लिए भी किया है और उन लड़कियों से इस से ज्यादा कोई मतलब भी नहीं रहा इसे.’’
मैं कुछ देर सोचती रही, फिर अपनी नोटबुक से एक स्लिप फाड़ कर अपना फोन नंबर प्रसून को दे दिया.
वह बोला, ‘‘भावना, आप कहें तो मैं इन के प्रिंट निकाल कर आप को दे दूंगा.’’
‘‘नहीं, इतनी तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है. आप बस व्हाइटऐप कर दें.’’
उसी रात प्रसून की व्हाट्सऐप पर रिक्वैस्ट आई जिसे मैं ने ऐक्सैप्ट किया और चंद
मिनटों के अंदर वे सारे पेज, जिन की मुझे जरूरत थी, मेरे पास आ गए. मैं ने प्रसून को ‘मैनीमैनी थैंक्स’ टैक्स्ट किया. उस दिन से उस के प्रति मेरे मन में अच्छी भावनाएं आने लगीं.
इस के बाद कुछ दिनों तक मेरी प्रसून या मधुर किसी से भेंट नहीं हुई. उन के सैक्शन भी अलग थे और प्रसून अकसर मधुर के स्कूटर से आता था. मैं कुछ दूर पैदल और कुछ दूर रिकशे से आतीजाती थी.
उस दिन मेरा हिस्टरी का पेपर था. सुबह से ही तेज बारिश हो रही थी. ऐग्जाम तो देना ही था. मैं किसी तरह रिकशे से कालेज गई, पर रिकशे पर भी भीगने से बच नहीं सकी थी. प्रसून की मदद से मेरा पेपर बहुत अच्छा गया. कालेज के गेट से निकली तो बारिश पूरी थमी नहीं थी, बूंदाबांदी हो रही थी.
उस दिन गेट पर कोई रिकशा नहीं मिला, क्योंकि उस दिन जिन्हें आमतौर पर जरूरत नहीं होती थी, भीगने से बचने के लिए वे भी रिकशा ले रहे थे.
मैं सड़क पर एक किनारे धीरेधीरे चौराहे की ओर आगे बढ़ रही थी जहां से रिकशा मिलने की उम्मीद थी पर लगातार बारिश के चलते सड़क पर पानी जमा हो गया था. मुझे महसूस हुआ कि मेरे पीछेपीछे कोई चल रहा है, पर मैं ने मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की. साड़ी को भीगने से बचाने के लिए एक हाथ से थोड़ा ऊपर कर चल रही थी.
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