मेरा12वीं कक्षा का रिजल्ट आने वाला था. मुझे उम्मीद थी कि मैं अच्छे मार्क्स ले आऊंगी. इस के बाद मेरी इच्छा कालेज जौइन करने की थी. उस समय घर में दादी सब से बुजुर्ग सदस्या थीं और पापा भी उन का कहा हमेशा मानते थे.
जब मेरे कालेज जाने की चर्र्चा हुई तो दादी ने पापा से कहा, ‘‘और कितना पढ़ाओगे? अपनी बिरादरी में फिर लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा और अगर मिला भी तो उतना तिलक देने की हिम्मत है तुझ में?’’
‘‘मां, जब लड़की पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी तो तिलक नहीं देना पड़ेगा.’’
‘‘लड़कियां कितनी भी पढ़लिख जाएंअपने समाज में बिना तिलक की शादी तो मैं ने नहीं सुनी है.’’
‘‘तुम चिंता न करो मां… पोती का आगे पढ़ने का मन है… उसे आशीर्वाद दो कि अच्छे मार्क्स आएं… स्कौलरशिप मिल जाए तो उस की पढ़ाई पर खर्च भी नहीं आएगा.’’
‘‘ठीक है, अगर तेरी समझ में आगे पढ़ने से भावना बेटी का भला है तो पढ़ा. पर मेरी एक बात तुम लोगों को माननी होगी… कालेज में भावना को साड़ी पहननी होगी. स्कूल वाला सलवारकुरता, स्कर्टटौप या जींस में मैं भावना को कालेज नहीं जाने दूंगी,’’ दादी ने फरमान सुनाया.
‘‘ठीक है दादी, जींस नहीं पहनूंगी पर सलवारकुरते में क्या बुराई है? उस में भी तो पूरा शरीर ढका रहता है?’’
‘‘जो भी हो, अगर कालेज में पढ़ना है तो तुम्हें साड़ी पहननी होगी?’’
मेरा रिजल्ट आया. मुझे मार्क्स भी अच्छे मिले, पर इतने अच्छे नहीं कि स्कौलरशिप मिले. फिर भी अच्छे कालेज में दाखिला मिल गया. पर मेरा साड़ी पहन कर जाना अनिवार्य था. मम्मी ने मुझे साड़ी पहनना सिखाया और मेरे लिए उन्होंने 6 नई साडि़यां और उन से मैचिंग ब्लाउज व पेटीकोट भी बनवा दिए ताकि मैं रोज अलग साड़ी पहन सकूं.
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जुलाई मध्य से मेरी क्लासेज शुरू हुईं. नईर् किताबें और स्टडी मैटीरियल लेतेलेते जुलाई बीत गया पर इस साल सिलेबस में कुछ बदलाव हुआ थे, जिस के चलते इतिहास की एक किताब अभी मार्केट में उपलब्ध नहीं थी. प्रोफैसर अपने नोट्स से पढ़ाते थे. कभी 1-2 प्रिंटआउट किसी एक स्टूडैंट को देते थे और उस का फोटोकौपी कर हमें आपस में बांटनी होती थीं.
ऐसे कुछ नोट्स मेरे अलावा बहुतों को नहीं मिल सके थे और सितंबर में पहला टर्मिनल ऐग्जाम होना था. लाइब्रेरी में सिर्फ एक ही रिफरैंस बुक थी, जिसे हम घर ले जाने के लिए इशू नहीं करा सकते थे. वहीं बैठ कर पढ़नी होती थी. मैं जब भी लाइब्रेरी जाती उस किताब पर किसी न किसी का कब्जा होता.
एक दिन मैं उस किताब के लिए लाइब्रेरी गई. उस दिन भी वह किताब किसी ने पढ़ने के लिए इशू करा रखी थी. इत्तफाक से उस किताब पर मेरी नजर पड़ी. मेरी बगल में बैठे एक लड़के ने इशू करा कर टेबल पर रखी थी और वह खुद दूसरी किताब पढ़ रहा था. मैं ने हिम्मत कर उस से कहा, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, अगर इस किताब को आप अभी नहीं पढ़ रहे हैं तो थोड़ी देर के लिए मुझे दे दें. मैं इस में से कुछ नोट कर वापस कर दूंगी.’’
उस ने किताब को मेरी तरफ सरकाते हुए कहा, ‘‘श्योर, आप इसे ले सकती हैं. वैसे हिस्टरी तो मेरा सब्जैक्ट भी नहीं है. मैं ने अपने एक फ्रैंड के लिए इशू कराई है. जब तक वह आएगा तब तक आप इसे पढ़ सकती हैं.’’
‘‘थैंक्स,’’ कह कर मैं ने किताब ले ली.
करीब 20 मिनट के अंदर एक लड़का आया और बगल वाले लड़के से बोला, ‘‘प्रसून, तुम ने मेरी किताब इशू कराई है न?’’
‘‘मधुर, आ बैठ. किताब है, तू नहीं आया था तो मैं ने इन्हें दे दी है. थोड़ी देर मेंतुम्हें मिल जाएगी.’’
मैं अपना नोट्स लिखना बंद कर किताब उसे देने जाने लगी तभी प्रसून बोला, ‘‘अरे नहीं, आप कुछ देर और रख कर अपने नोट्स बना लें. है न मधुर?’’
मुझे अच्छा नहीं लग रहा था. 5 मिनट बाद मैं ने किताब प्रसून को लौटा दी.
वह बोला, ‘‘आप मेरे सैक्शन में तो नहीं हैं… क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’
‘‘मुझे भावना कहते हैं.’’
मैं उठ कर चलने लगी तो वह बोला, ‘‘मुझे लगता है कि आप को किताब से और नोट्स बनाने बाकी रह गए हैं. आप एक काम करें मुझे सिर्फ पेज नंबर बता दें. मैं आप को वे पन्ने दे सकता हूं.’’
‘‘तो आप क्या किताब में से उन पन्नों को फाड़ कर मुझे देंगे?’’
‘‘क्या मैं आप को ऐसा बेहूदा लड़का लगता हूं?’’
‘‘नहीं, मेरा मतलब वह नहीं था. सौरी, पर आप उन पन्नों को मुझे कैसे देंगे?’’
‘‘पहले आप अपना मोबाइल नंबर मुझे बताएं. फिर यह काम चुटकियों में हो जाएगा.’’
मुझे लगा कहीं मेरा फोन नंबर ले कर यह मुझे परेशान न करने लगे. अत: बोली, ‘‘नो थैंक्स.’’
तब दूसरे लड़के मधुर ने कहा, ‘‘भावनाजी, मैं समझ सकता हूं कि कोई भी लड़की किसी अनजान लड़के को अपना फोन नंबर नहीं देना चाहेगी, पर आप यकीन करें, प्रसून कोई ऐसावैसा लड़का नहीं है. यह तो उन पेजों का फोटो अपने मोबाइल से ले कर आप को मैसेज या व्हाटसऐप अथवा मेल कर सकता है. ऐसा इस ने क्लास की और लड़कियों के लिए भी किया है और उन लड़कियों से इस से ज्यादा कोई मतलब भी नहीं रहा इसे.’’
मैं कुछ देर सोचती रही, फिर अपनी नोटबुक से एक स्लिप फाड़ कर अपना फोन नंबर प्रसून को दे दिया.
वह बोला, ‘‘भावना, आप कहें तो मैं इन के प्रिंट निकाल कर आप को दे दूंगा.’’
‘‘नहीं, इतनी तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है. आप बस व्हाइटऐप कर दें.’’
उसी रात प्रसून की व्हाट्सऐप पर रिक्वैस्ट आई जिसे मैं ने ऐक्सैप्ट किया और चंद
मिनटों के अंदर वे सारे पेज, जिन की मुझे जरूरत थी, मेरे पास आ गए. मैं ने प्रसून को ‘मैनीमैनी थैंक्स’ टैक्स्ट किया. उस दिन से उस के प्रति मेरे मन में अच्छी भावनाएं आने लगीं.
इस के बाद कुछ दिनों तक मेरी प्रसून या मधुर किसी से भेंट नहीं हुई. उन के सैक्शन भी अलग थे और प्रसून अकसर मधुर के स्कूटर से आता था. मैं कुछ दूर पैदल और कुछ दूर रिकशे से आतीजाती थी.
उस दिन मेरा हिस्टरी का पेपर था. सुबह से ही तेज बारिश हो रही थी. ऐग्जाम तो देना ही था. मैं किसी तरह रिकशे से कालेज गई, पर रिकशे पर भी भीगने से बच नहीं सकी थी. प्रसून की मदद से मेरा पेपर बहुत अच्छा गया. कालेज के गेट से निकली तो बारिश पूरी थमी नहीं थी, बूंदाबांदी हो रही थी.
उस दिन गेट पर कोई रिकशा नहीं मिला, क्योंकि उस दिन जिन्हें आमतौर पर जरूरत नहीं होती थी, भीगने से बचने के लिए वे भी रिकशा ले रहे थे.
मैं सड़क पर एक किनारे धीरेधीरे चौराहे की ओर आगे बढ़ रही थी जहां से रिकशा मिलने की उम्मीद थी पर लगातार बारिश के चलते सड़क पर पानी जमा हो गया था. मुझे महसूस हुआ कि मेरे पीछेपीछे कोई चल रहा है, पर मैं ने मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की. साड़ी को भीगने से बचाने के लिए एक हाथ से थोड़ा ऊपर कर चल रही थी.
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