1. शिकागो से शुरुआत हुआ
मई दिवस जिसे अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के नाम से भी जाना जाता है, कामगार लोगों के संघर्ष की याद में हर वर्ष दुनियाभर में एक मई को यह दिवस मनाया जाता है. यह तारीख आज भी श्रमिकों के लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करती है तथा इसके साथ जुड़ी घटना की स्मृति उनमें विद्युत-जैसा उत्साह उत्पन्न करती है. इस दिन की शुरुयात अमेरिका का शिकागो शहर से काम के लिए आठ घंटे का आन्दोलन से हुई और आज यह दिवस विश्व के कोने कोने में मनाया जाता है. मजदूरो के हित कों याद करने और पूंजीपतियों के बढ़ते प्रभाव कों समय-समय पर रोकने के उद्देश्य से हर साल प्रथम मई का विशिष्ट महत्व होता है.
2. मई दिवस का इतिहास और काम के घण्टे
मई दिवस की कहानी काफी लम्बी है, सदियों से चली आरही यह कहानी आज भी चल रही है और मजदूरो के हित के लिए सदियों तक चलती रहेगी. मई दिवस का जन्म काम के घण्टे कम करने के आन्दोलन से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है. पुराने जमाने में श्रमिक को पंद्रह-बीस घंटे तक काम करना पड़ता था और उसमें भी यदि मालिक उस श्रमिक के कार्य से संतुष्ट नहीं होता तो उसका वेतन काट लिया जाता था. कार्य की अवधि को आठ घंटे तक सीमित करने के लिए भी मजदूरों को कठोर संघर्ष करना पड़ा है. काम के घण्टे कम करने के इस आन्दोलन का मज़दूरों के लिए बहुत अधिक राजनीतिक महत्त्व है. जब अमेरिका में फैक्ट्री-व्यवस्था शुरू हुई, लगभग तभी यह संघर्ष उभरा.शुरुयाती हड़तालों में अमेरिका में अधिक तनख्वाहों की माँग की गई थी, लेकिन जब भी मज़दूरों ने अपनी माँगों को सूत्रबद्ध किया, काम के घण्टे कम करने का प्रश्न और संगठित होने के अधिकार का प्रश्न केन्द्र में रहा. समय के साथ ही मजदूर संगठनो कों यह महसूस होने लगा की उनका शोषण बढ़ता गया और उनके साथ को अमानवीय रूप से लम्बे समय तक काम लिया जाता है. इसके फलस्वरूप मज़दूरों ने काम के घण्टों में आवश्यक कमी की माँग भी मजबूत कर दिया.
ये भी पढ़ें- #coronavirus: पश्चिम से पूरब को ट्रांस्फ़र होती दुनिया की ताकत
3. सूर्योदय से सूर्यास्त –
उन्नीसवीं सदी शुरुआत में मजदूरो की मांग और तेज कर दिया गयी, उस समय काम के घंटे सूर्योदय से सूर्यास्त तक (चौदह, सोलह और यहाँ तक कि अठारह घण्टे ) होता था, जिसका विरोध में अमेरिका के कई इलाकों में मज़दूरों ने संगठित होकर इसका विरोध किया. उन्नीसवीं सदी के दूसरे और तीसरे दशक काम के घण्टे कम करने के लिए हड़तालों से भरे हुए थे. कई औद्योगिक केन्द्रों में तो एक दिन में काम के घण्टे दस करने की निश्चित माँगें भी रखी गयीं. क्वमैकेनिक्स यूनियन ऑफ फि़लाडेल्फियां को , जो दुनिया की पहली ट्रेड यूनियन मानी जाती है, 1827 में फि़लाडेल्फिया में काम के घण्टे दस करने के लिए निर्माण-उद्योग के मज़दूरों की एक हड़ताल करवाने का श्रेय जाता है. इस हड़ताल के कारण काम के घंटे कम करनी की बात प्रभावशाली बनती गयी, फलस्वरूप वांन ब्यूरेन की संघीय सरकार को सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए काम के घण्टे दस करने की घोषणा करनी पड़ी.
4. आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन, आठ घण्टे आराम
समय के साथ पूरे विश्व-भर में काम के घण्टे दस करने का संघर्ष शुरू हो गया. कई बाधायो के बाद मजदूरो कों विश्व के कई इलाकों में सफलता मिली, अपने आन्दोलन के दम पर उन्होंने विश्व के कई इलाकों में काम के घंटे दस करवा ली, जिससे मजदूरो को काफी राहत मिली. फिर भी मजदूरो का आन्दोलन यही नही रुका काम के दस घंटे की बात उद्योगों में मान ली गई, तो मज़दूरों ने काम के घण्टे आठ करने की माँग उठानी शुरू कर दी. पचास के दशक के दौरान लेबर यूनियनों को संगठित करने की गतिविधियों ने इस नयी माँग को काफी बल दिया. बीच-बीच में बहुत बाधाये आई, लेकिन मजदूरो का सघर्ष चलता रहा. यह आन्दोलन मात्र अमेरिका तक ही सीमित नहीं था. यह आन्दोलन हर उस जगह प्रचलित हो चला था जहाँ उभरती हुई पूँजीवादी व्यवस्था के तहत मज़दूरों का शोषण हो रहा था. अमेरिका से पृथ्वी के दूसरे छोर पर स्थित आस्ट्रेलिया में निर्माण उद्योग के मज़दूरों ने यह नारा दिया – आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन, आठ घण्टे आराम और उनकी यह माँग 1856 में मान भी ली गई. उस समय मजदूर आन्दोलन को एक और सफलता मिली. 14 जुलाई,1889 कों विश्वभर के समाजवादी कार्ल माक्र्स की विचारधारा को व्यावहारिक स्वरूप देने की दृष्टि से फ्रांस की राजधानी पेरिस में एकत्रित हुए एवं अंतराष्ट्रीय समाजवादी संगठन (सेकंड इंटरनेशनल) की स्थापना की और मजदूरों के लिए कार्य की अधिकतम अवधि को आठ घंटे तक सीमित करने के माँग के साथ संपूर्ण विश्व में प्रथम मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव पेश किया.
5. भारत में मई दिवस :-
जब पुरे विश्व में मई दिवस के लिए सघर्ष चल रहा था तों मजदूरों के इस विश्वव्यापी आंदोलन से भारत भी अछूता नहीं रह सका. हमारे देश में मई दिवस का प्रथम आयोजन 1923 में हुआ था. मद्रास के समुद्र तट पर आयोजित इस प्रथम मई दिवस के समारोह के अध्यक्ष मजदूर नेता श्री सिंगारवेलु चेट्टियार थे. प्रथम मई दिवस सम्मलेन में हजारो मजदूरो ने भाग लिया और हर साल प्रथम मई कों मई दिवस के रूप में मनाये जाने की शपथ ली.सिंगारवेलु चेट्टियार देश के आरम्भ के कम्युनिस्टों में से एक तथा प्रभावशाली टेऊड यूनियन और मजदूर तहरीक के नेता थे. सिंगारवेलू ने इस दिन मजदूर किसान पार्टी की स्थापना की घोषणा की तथा उसके घोषणा पत्र पर प्रकाश डाला. कई कांग्रेसी नेताओं ने भी मीटिंगों में भाग लिया. इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर और संगठित रूप में इसका आयोजन मई दिवस का आयोजन 1928 में हुआ. इस आयोजन से लेकर अब तक हमारे यहाँ मई दिवस का आयोजन प्रतिवर्ष बहुत उत्साह के साथ होता रहा है. भारत में मई दिवसयह ध्यान देने की बात है कि भारत में मजदूरों की होने वाली पहली हड़तालों में अप्रैल-मई 1862 की हड़ताल थी जब 1200 मजदूरों ने हावड़ा रेलवे स्टेशन पर कई दिनों के लिए काम बन्द कर दिया था. इस घटना की खासियत यह है कि मजदूरों की मांग काम के घंटों का घटाकर 8 घंटे प्रतिदिन करने की थी क्योंकि लोकोमोटिव विभाग में काम करने वाले मजदूर 8 घंटे ही काम करते थे. अत: इन मजदूरों ने भी यही मांग उठाई, काम बन्द कर दिया था. इस घटना की खासियत यह है कि मजदूरों की मांग काम के घंटों का घटाकर 8 घंटे प्रतिदिन करने की थी क्योंकि लोकोमोटिव विभाग में काम करने वाले मजदूर 8 घंटे ही काम करते थे. अत: इन मजदूरों ने भी यही मांग उठाई. समय के साथ उनके मांगो को लेकर आन्दोलन और हड़ताल का सिलसिला चलता रहा , फिर पुरे भारत वर्ष में काम के आठ घंटे का नियम लागू कर दिया गया.
6. पहले लागू करवाना होगा पुरे विश्व में मजदूरो के लिए आठ घंटे के काम का नियम
मई दिवस विश्व भर के तमाम मजदूरो कों समर्पित है,फिर भी कई जगहों पर मजदूर इस दिन भी जी तोड़ मेहतन कर दो जून की रोटी जुटाते है. आज भी विश्व के अनेक देशों में मजदूरो के लिए आठ घंटे की कार्यावधि भी लागू नहीं हो पाई है. सही माईने में अगर मजदूरो कों समर्पित मई दिवस माना है, तों पहले पुरे विश्व में मजदूरो के लिए आठ घंटे के काम का नियम लागू करवाना होगा और समय-समय पर मजदूरो के विकास के लिए बनाने वाली योजनायो के हर मजदूर तक पहुचना होगा. अगर हम सभी ऐसा कर पाते है, तभी सही माईने में मजदूर दिवस मनाया जा सकता है.
7. कईयों के लिए मई दिवस मतलब सामान्य दिन
वे मजदूर जिसके कंधों पर सही मायनों में विश्व की उन्नति का दारोमदार निर्भर करता है. मई दिवस के शुरुयाती काल से आज तक कर्म को ही पूजा समझने वाले मेहनती मजदूर वर्ग आज भी श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए तरस रहा है. आज भी विश्व के कोने-कोने में 1 मई कों मई दिवस मानी जाती है. इस अवसर पर हमारे देश में भी इस दिन काफी हल्लाचल रहती है. देशभर में बड़ी-बड़ी सभाएँ होती हैं, बड़े-बड़े सेमिनार आयोजित किए जाते हैं. जिनमें मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनती हैं और ढ़ेर सारे लुभावने वायदे किए जाते हैं. जिन्हें सुनकर एक बार तो यही लगता है कि मजदूरों के लिए अब कोई समस्या ही बाकी नहीं रहेगी. इस दिन पूरा देश मजदूरो के हित की बाते करता है, किन्तु अगले ही दिन सब कुछ पहले जैसा हो जाता है. शोषण,गुलामी और जिल्लत भारी जिंदगी फिर से हर मजदूर भाई के सामने होता है. कई जगहों पर मजदूरो से मई दिवस के दिन भी काम लिया जाता है, दो जून के रोटी के लिए मजदूरो का एक बड़ा वर्ग इस दिन भी काम करने से माना नही कर पाता है. उनके पास यही मजबूरी होती है कि यदि वे एक दिन भी काम नहीं करेंगे तो उनके घरों में चूल्हा कैसे जलेगी.
8. मजदूरों का विकास क्यों नही होता
आजाद भारत में मजदूरो के विकास के लिए सरकारी तौर पर कई कानून बनाई गए और समय-समय पर मजदूरो के विकास के लिए विभिन्न नीति-निर्देश और योजना बनाई जाती है. फिर भी मजदूरो का विकास क्यों नही होता ? क्यों कि अधिकांश मजदूर या तो अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञ होते हैं या फिर वे अपने अधिकारों के लिए इस वजह से आवाज नहीं उठा पाते कि कहीं इससे नाराज होकर उनका मालिक उन्हें काम से ही निकाल दे और उनके परिवार के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ जाए. मजदूरो की समस्या समाज का हर तबका वाकिफ होता है, लेकिन गिने चुने मामलों में ही मजदूरो कों समाज और सरकार से सही माईने में सहायता मिलाती है. मजदूरो के विकास के लिए हमारे देश में हर वर्ष श्रम के वाजिब मूल्य, उनकी सुविधाओं आदि के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने की परम्परा सी बन चुकी है. समय-समय पर मजदूरों के लिए नए सिरे से मापदंड निर्धारित किए जाते हैं, लेकिन इनको क्रियान्वित करने की फुर्सत ही किसे है?
9. निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पाता
सरकारी अथवा गैर-सरकारी किसी भी क्षेत्र में काम करने पर मजदूरों को मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी तय करने की घोषणाएँ तों जोर-शोर से करती है, लेकिन इसके पीछे कुछ और होता हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार तकऱीबन 36 करोड़ श्रमिकों में से 34 करोड़ से अधिक को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पा रही.
ये भी पढ़ें- #lockdown: नफरत के वायरसों के बीच मोहब्बत की किरणें