अमला और सुयश का विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया. घर में बहुत ही हंसीखुशी का माहौल था. सुयश की मां माया और पति अमला सासबहू कम, मांबेटी ज्यादा लग रही थीं. सारे मेहमान चले गए तो माया ने कहा, ‘‘अमला, अब फ्री हुए हैं. आ जाओ, हिसाब कर लें.’’
अमला कुछ समझी नहीं. बोली, ‘‘कैसा हिसाब? मांजी, मैं समझी नहीं.’’
‘‘अरे, वह जो तुम्हें मुंहदिखाई में कैश मिला है. सब ले आओ.’’
अमला अपना पर्स ले आई. सारा कैश निकाल कर माया को पकड़ा दिया. अमला ने सोचा, देख रही होंगी कि किस ने क्या दिया है. फिर उसी को पकड़ा देंगी. सारा कैश गिन कर माया ने अपने पर्स में रख लिया तो अमला के मुंह से निकल गया, ‘‘मांजी, इन्हें आप रखेंगी?’’
‘‘हां, और क्या? इतने सालों से सब को दे ही तो रही हूं. यह मेरा दिया हुआ ही तो वापस आया है.’’
‘‘पर यह तो बहू का होता है न.’’
‘‘नहीं अमला, इस पर सास का हक होता है, क्योंकि मैं ही तो दे रही हूं सालों से, न देती तो कौन दे कर जाता?’’
नईनवेली बहू अमला चुप रही, पर मन ही मन सास पर इतना गुस्सा आया कि कई रिश्तेदारों, परिचितों से इस बात की शिकायत कर दी. माया को पता चला तो अमला पर बहुत गुस्सा हुईं.
रिश्ते में दरार
मांबेटी जैसा प्यार धरा का धरा रह गया. शुरुआती दिनों में ही दिलों में ऐसी कटुता जन्मी कि रिश्ता फिर मधुर हो ही नहीं पाया. माया सब से कहती कि अमला को खुद ही ये पैसे ‘उन्हीं का हक है’ कह कर खुशीखुशी दे देने चाहिए थे. उधर अमला का कहना था कि यह उन की मुंहदिखाई का उपहार है, पैसे उसे ही मिलने चाहिए थे.
एक रस्म ने सासबहू के रिश्ते में उपजी मिठास को पल भर में खत्म कर दिया. 4 दिन में ही इस रिश्ते में जो प्यार व सम्मान दिखाई दे रहा था, पैसे की बात आई तो दरार पड़ गई. माया और अमला दोनों ही सासबहू के रिश्ते को प्यार व सम्मान से निभाने की तैयार कर रही थीं पर फिर ऐसी दरार उभरी जो कभी न भर पाई. आज 3 साल बाद भी माया और अमला को किसी के भी विवाह के समय यह बात याद आ जाती है तो आज भी बहस छिड़ जाती है.
बढ़ती हैं दूरियां
सुशीला ने अपनी बड़ी बहू नीता जो साधारण परिवार से आई थी और दहेज में भी कुछ खास नहीं लाई थी, उसे मुंहदिखाई में 100 रुपए पकड़ा दिए थे. छोटी बहू नताशा अमीर परिवार की लड़की थी जो अपने साथ बहुत कुछ लाई थी, उस की मुंहदिखाई में सुशीला ने उसे सोने का सैट दिया तो नीता को बहुत दुख हुआ.
उस ने मुंह से तो कुछ नहीं कहा पर सास के इस भेदभाव ने उस का मन इतना आहत कर दिया कि वह उन से धीरेधीरे दूर होती चली गई. नताशा के समय मुंहदिखाई का पैसा भी सुशीला ने नहीं लिया जबकि नीता से 1-1 रुपया ले लिया था. यह बात सुशीला के बड़े बेटे रमेश ने भी नोट की तो उसे मां का यह भेदभाव अच्छा नहीं लगा. मन में दूरियां बढ़ती चली गईं.
ऐसी रस्मों से फायदा ही क्या जो किसी का मन दुखा दें. विवाह का अवसर घर में, जीवन में खुशियां लाता है पर कुछ रस्में घर के आपसी संबंधों में कटुता उत्पन्न करती हैं. हमारा समाज आडंबरों, रीतिरिवाजों से घिरा है और आजकल तो परिवार में गिनेचुने ही लोग होते हैं. उन में भी अगर ऐसी रस्मों के चलते कड़वाहट भर जाए तो ऐसी रस्में जीवन भर कचोटती हैं. कोई भी रिश्ता किसी रस्म के चंद पैसों से बढ़ कर नहीं है.