- सर्कस: बहुत ही ज्यादा बुरी फिल्म
- रेटिंग: एक स्टार
- निर्माताः टीसीरीज और रोहित षेट्टी
- निर्देषकः रोहित षेट्टी
- कलाकारः रणवीर सिंह, वरूण षर्मा, संजय मिश्रा,जैकलीनफर्नाडिष,पूजा हेगड़े,मुरली शर्मा, अश्विनी कालसेकरऔर मुकेश तिवारी,जौनी लीवर, सिद्धार्थ जाधव,राधिकाबांगिया,वृजेष हीरजी, टीकू टलसानिया,विजय पाटकर, उदयटिकेकर,सुलभा आर्या,ब्रजेंद्र काला व अन्य.
- अवधिः दो घंटा 22 मिनट
मषहूर लेखक,कवि व निर्देषक गुलजार 1982 में षेक्सपिअर के नाटक ‘‘द कॉमेडी आफ एरर्स’’ पर आधारित फिल्म ‘‘अंगूर’’ लेकर आए थे.जिसमें संजीव कुमार व देवेन वर्मा की मुख्य भूमिका थी.इस फिल्म में दो जुड़वाओं की जोड़ी बचपन में बिछुड़ जाती है.युवावस्था में पहुचने पर यह जोड़ी मिलती है,तो कई तरह की उलझनें पैदा होती हैं.अब 40 साल बाद उसी अंगूर’ फिल्म के अधिकार लेकर ‘गोलमाल’ सीरीज फेम निर्देषक रोहित षेट्टी टैजिक कौमेडी फिल्म ‘‘सर्कस’’ लेकर आए हैं और उन्होने एक क्लासिक फिल्म का बंटाधार करने में कोई कसर नही छोड़ी है.
यूं तो फिल्म के ट्रेलर से ही आभास हो गया था कि फिल्म कैसी होगी? इसके अलावा जब कुछ दिन पहले हमने फिल्म के पीआरओ से पूछा था कि फिल्म के कलाकारों के इंटरव्यू कब होगे,तो उसने जवाब दिया था-‘‘अब कलाकारों का इंटरव्यू से विष्वास उठ गया है.इसलिए कोई इंटरव्यू नहीं होगे.’’ फिल्म देखकर समझ में आया कि जब निर्देषक व कलाकारों को पता था कि उन्होने बहुत घटिया फिल्म बनायी है,तो इंटरव्यू क्या देते. पर ‘सर्कस’ सफल नही होगी,इसका अहसास निर्देषक रोहित षेट्टी को था,इसीलिए कुछ दिन पहले उन्होने कहा था कि हर वर्ष सिर्फ चार फिल्में ही सफल होती हैं.’
कहानीः
फिल्म की षुरूआत में कुछ डाॅक्टरों को संबोधित करते हुए डाक्टर राय बच्चों के ख्ूान की बजाय परवरिष की बात करते हुए एक नए प्रयोग की बात करते हैं.जिससे अन्य डाक्टर सहमत नही होते.पर वह अपना प्रयोग जारी रखने की बात करते हैं.पता चलता है कि डाक्टर राॅय अपने मित्र जाॅय के साथ मिलकर ‘जमनादास अनाथालय’’ चला रहे हैं.इसी अनाथालय में चार जुड़वा बच्चे हैं,इनमें से दो एक घर से और दो दूसरे घर से हैं.जब उन्हें गोद लेने के लिए एक परिवार उटी से आता है जो कि बहुत बड़े सर्कस के मालिक हैं और दूसरा परिवार बंगलोर का उद्योगपति है.तब डॉक्टर रौय (मुरली शर्मा) अपने प्रयोग को सही साबित करने के लिए दोनों जुड़वा बच्चों की अदला बदली कर देते हैं.वह दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि एक बच्चे के लिए उसका वंश नहीं, बल्कि उसकी परवरिश जरूरी होती है.
दोनों परिवार अपने बच्चों का नाम रौय (रणवीर सिंह) और जौय (वरुण शर्मा) रखते हैं.चारों सुकुन से अपनी जिंदगी गुजार रहे होते हैं.इस बीच सर्कस के मालिक की मौत के बाद रौय व जौय अपने पिता केव्यवसाय को आगे बढ़ाते हैं.और माला (पूजा हेगड़े ) से रौय की षादी को पांच साल हो जाते हैं.उधर बंगलोर में राय बहादुर (संजय मिश्रा ) की बेटी बिंदू (जैकलीन फर्नाडिष ) से रौय प्यार कर रहे हैं और षादी करना चाहते हैं.राय बहादुर को लगता है कि उनकी बेटी बिंदू गलत युवक से षादी करना चाहती है.एक दिन उटी में एक चाय बागान को खरीदने के लिए बैंगलौर वाले रौय और जौय लाखों रूपए लेकर ऊटी आते हैं.उन्हे लूटने के लिए पाल्सन (जौनी लीवर ) के गंुडे उनके पीछे लग जाते हैं.ऊटी शहर पहुॅचते ही कन्फ्यूजन षुरू होता है. अब उटी षहर में दो रौय और दो जौय. हैं. कभी लोग एक से टकराते हैं तो कभी दूसरे से.परिणामतः उलझनें बढ़ती हैं और यह भी फंसते जाते हैं.वहीं अब डाॅक्टर रौय भी छिप्कर सारामाजरा देख रहे हैं.जब यह चारो सामने आएंगे,तब क्या होगा?
लेखन व निर्देषनः
किसी क्लासिक कृति को कैसे तहस नहस किया जाए,यह कला रोहित षेट्टी व रणवीर सिंह से बेहतर कोई नहीं बता सकता.फिल्म में कहानी का कोई अता पता नहीं,उपर से संवाद भी अति बोझिल.बतौर निर्देषक जमीन’,‘गोलमाल’,‘सूर्यवंषी’ के बाद रोहित षेट्टी की यह 15 वीं फिल्म हैं,जहां वह बुरी तरह से चूक गए हैं.इस फिल्म से साफ झलकता है कि उनका जादू खत्म हो गया.रोहित षेट्टी के कैरियर की यह सबसे ज्यादा कमजोर फिल्म है. फिल्म का नाम सर्कस है,मगर फिल्म में सर्कस ही नही है.युनूस सजावल लिखित पटकथा बेदम है.
फिल्म षुरू होने पर लगता है कि कुछ मजेदार फिल्म होगी,लेकिन पंाच मिनट बाद ही फिल्म दम तोड़ देती है.इंटरवल के बाद संजय मिश्रा,जौनी लीवर, सिद्धार्थ जाधव अपनी कौमेडी से फिल्म को संभालने का असलप्रयास करते नजर आते हैं,मगर अफसोस इन्हें पटकथा व संवादों का सहयोग नही मिलता. यह पहली बार है,जब रोहित शेट्टी फिल्म के किसी भी किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाए.सभी किरदार काफी अधपके से लगते हैं.मुरली षर्मा का किरदार उटी में आकर क्या करता है और फिर अचानक कहंा गायब हो जाता है,किसी की समझ में नही आता.फिल्म का क्लायमेक्स तो सबसे घटिया है.रोहित षेट्टी जैसा समझदार फिल्मकार इतनी घटिया फिल्म बना सकता है,इसकी तो कल्पना भी नही की जा सकती. कहानी तीस साल आगे बढ़ जाती है,मगर डाॅक्टर रौय यानी कि मुरली षर्मा की उम्र पर असर नजर नही आता.अमूमन देख गया है कि जुड़वा बच्चों में से एक को दर्द होता है, तो दूसरे को भी होता है.पर यहां उसका उल्टा दिखाया गयाहै.
रोहित षेट्टी ने कुछ क्लासिकल गीतों के अधिकार खरीदकर फिल्म में पिरोए हैं,मगर कहानी का काल गानों से मेल ही नही खाता.यहां तक कि दीपिका पादुकोण का गाना ‘करंट लगा..’भी फिल्म को नही बचा पाता. बंटी नागी की एडीटिंग और जोमोन टी जॉन की सिनेमैटोग्राफी प्रभावित नहीं करती है.
अभिनयः
दोहरी भूमिका में रणवीर सिंह और वरूण षर्मा हैं.फिल्म देखकर लगता है कि दोनो अभिनय की एबीसीडी भूल चुके हैं.जैकलीन ने यह फिल्म क्यों की,यह बात समझ ेसे परे हैं.पूजा हेगड़े के अभिनय मंे ंभी दम नजर नहीं आता.मुरली षर्मा को मैने छोटे किरदारों से लेकर बड़े किरदारों तक में देखा है और हर बार उनका अभिनय निखरता रहा है.मगर इस फिल्म में वह भी मात खा गए.राय बहादुर के किरदार में संजय मिश्रा कुछ हद तक फिल्म को संभालते हैं.मगर उनके अभिनय में भी दोहराव ही नजर आता है.इसफिल्म में संजय मिश्रा जिस अंदाज में अंग्रेजी बोलते नजर आते हैं,उस तरह से वह कई फिल्मों में कर चुके हैं.उनके अभिनय नयापन नही है.पर यह कहना गलत नही होगा कि संजय मिश्रा,रणवीर सिंह पर भारी पड़ गए हैं.मुकेष तिवारी को इस तरह की फिल्म व इस तरह के फालतू किरदारों को निभाने से बचना चाहिए.सुलभा आर्या,अष्विनी कलसेकर,टीकू तलसानिया,ब्रजेष हीरजी,ब्रजेंद्र काला तो महज षोपीस’ ही हैं.सिद्धार्थ जाधव ओवरएक्टिंग ही करते है.
षान्तिस्वरुप त्रिपाठी