हमने अपनी शादी की पहली सालगिरह की पार्टी का आयोजन बैंक्वेटहौल में किया था. ब्यूटीपार्लर से बनसंवर कर जब मैं वहां राजीव के सामने पहुंची, तो उन्होंने मेरी प्रशंसा करते हुए सीटी बजा दी.
‘‘थैंक यू, डार्लिंग. तुम भी किसी फिल्म स्टार से कम नहीं दिख रहे हो,’’ मेरे मुंह से अपनी तारीफ सुन उन का चेहरा भी खुशी से खिल उठा. धीरेधीरे मित्र और रिश्तेदार पार्टी में पहुंचने लगे. राजीव और मैं पूरे उत्साह से उन की आवभगत में लग गए. हमारी आंखें जब भी आपस में टकरातीं, तो वे खुश हो कर मुसकराते जिस से मेरे दिल में अजीब सी गुदगुदी पैदा हो जाती. फिर मेरे मायके वाले आ पहुंचे. भैयाभाभी और मम्मीपापा ने मुझे गले लगा कर शुभकामनाएं दीं. जब राकेश जीजाजी ने मुझे गले लगा कर मुबारकबाद दी, तो मेरे देखते ही देखते राजीव के माथे पर बल पड़ गए. लेकिन अब जीजाजी ने मुड़ कर राजीव को मुबारकबाद दी, तो वे उन से गले लग कर मिले. उस वक्त उन के मधुर व्यवहार को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वे मन ही मन जीजाजी से चिढ़े हुए थे.
‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, इस बात का मुझे गर्व है,’’ मैं ने अचानक राजीव का हाथ पकड़ कर प्यार से दबाया और फिर उन के होंठों पर उभरी प्यारी सी मुसकान देखने के बाद अन्य मेहमानों की आवभगत में व्यस्त हो गई. मैं ने जब राजीव से शादी के लिए हां की थी, तब उन के व्यवहार से उन की ईर्ष्यालू प्रवृत्ति को दर्शाने वाला कोई संकेत मेरी पकड़ में नहीं आया था. अपने मौसेरे भाई की शादी में मेरा परिचय राजीव से हुआ था. वे नवीन भैया के खास दोस्त थे. उस शादी में मुझ पर लाइन मारने वाले लड़कों की कमी नहीं थी, पर राजीव ने मेरा दिल जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी. हम बरात के साथ खूब नाचतेगाते गए थे. राजीव को ज्यादा अच्छा नाचना नहीं आता था, लेकिन मेरे इर्दगिर्द वे ही सब से ज्यादा जोशीले अंदाज में थिरकते नजर आए थे. मेरी नजरों में चढ़ने के लिए उन्होंने मुझे और मेरी सहेलियों को सारे स्नैक्स भागभाग कर चखाए. वे हर फोटो में मेरे साथ या पीछे खड़े नजर आते. उन के दोस्तों और मेरी सहेलियों ने उन की बहुत टांगखिंचाई की, पर उन्होंने मेरे इर्दगिर्द मंडराना नहीं छोड़ा था. मैं ने उन्हें उस रात ज्यादा लिफ्ट तो नहीं दी, पर यह भी सच है कि उन के लिए मेरे दिल में प्यार का छोटा सा अंकुर फूट जरूर आया था. बाद में उन्होंने मेरे औफिस के चक्कर लगाने शुरू किए. मुझे और मेरी 2 सहेलियों को 3 बार कौफी पिलाने के बाद उन्हें मेरे साथ अकेले में घूमने का मौका मिला था.
कुछ दिनों के बाद वे मेरे सारे दोस्तों से परिचित हो गए. उन के बीच राजीव की लोकप्रियता देखते ही बनती थी. उन जैसा मिलनसार और हंसमुख प्रेमी पा जाने के लिए वे सभी मुझे बहुत खुशहाल मानते थे. पहली बार वे मेरे घर नवीन भैया के साथ आए और अगली बार अपने मम्मीडैडी के साथ. उन दोनों ने उसी दिन मुझे अपने घर की बहू बनाने की इच्छा प्रकट कर दी. मेरी राय जानने के बाद पापा ने भी अगले दिन उन्हें हां कह दी. अपनी शादी की सालगिरह की पार्टी में हम ने डांस करने के शौकीनों के लिए डीजे का इंतजाम किया था. राजीव के कुछ दोस्तों ने सब से पहले हम दोनों को डांस फ्लोर पर खड़ा कर दिया और फिर तालियां व सीटियां बजाबजा कर हमारा उत्साह बढ़ाने लगे. मैं ने पूरा साल काफी मेहनत की थी, पर राजीव को ढंग से नाचना नहीं सिखा पाई. लेकिन वे शरमाने वालों में से नहीं थे. उन के नाचने के जोशीले स्टाइल को देख कर कई मेहमानों के पेट में हंसतेहंसते बल पड़ गए.
डांस फ्लोर पर कुछ और जोड़े आ गए तो मैं ने राजीव से पूछा, ‘‘क्या हम अब मेहमानों की देखभाल करने चलें?’’
‘‘यस, स्वीटहार्ट,’’ उन्होंने मेरा हाथ थामा और डांस फ्लोर से उतर कर मेहमानों की तरफ चल पड़े.
उन्होंने मेरा हाथ बड़ी देर तक नहीं छोड़ा. इस बात से कुछ लोगों ने शायद यह अंदाजा लगाया होगा कि हम जरूरत से ज्यादा बन रहे हैं, लेकिन असली कारण मैं ही समझ रही थी. राजीव नहीं चाहते थे कि मैं किसी और के साथ डांस करूं. इसीलिए वे मुझे अपने साथ लिए मेहमानों के बीच घूम रहे थे. फिर वही हुआ जो वे नहीं चाहते थे. मैं ने अपने कालेज के कुछ दोस्तों को भी आमंत्रित किया था. वे सब मस्त हो कर डांस कर रहे थे और मौका मिलते ही मेरा हाथ पकड़ कर मुझे भी डांस फ्लोर पर खींच लिया. उन के साथ नाचते हुए मुझे इस बात का एहसास था कि राजीव इस वक्त मन ही मन किलस रहे होंगे.
मुश्किल से 5 मिनट भी नहीं गुजरे और राजीव डांस फ्लोर पर पहुंच गए. मेरे दोस्तों का हौसला बढ़ाते हुए उन्होंने मुंह में उंगली डाल कर जब सीटियां बजानी शुरू कीं, तो माहौल और ज्यादा मस्त हो उठा. जब गाना बदला, तो वे मेरा हाथ पकड़ कर फ्लोर से उतर आए. फिर मेरे कान के पास मुंह ला कर नाराजगी प्रकट करते हुए कहा, ‘‘अब तुम कालेज स्टूडैंट नहीं हो, नेहा. एक शादीशुदा स्त्री को सलीके से व्यवहार करना आना चाहिए. तुम ढील दोगी, तो इन्हीं दोस्तों में से कोई बदतमीज तुम्हारे साथ चीप हरकत करने की जुर्रत कर बैठेगा.’’
‘‘तुम मेरी कितनी चिंता करते हो. आई लव यू, डार्लिंग,’’ उन की आंखों में मैं ने प्यार से झांका, तो वे संतुष्ट भाव से मुसकरा उठे. शादी के कुछ हफ्तों बाद से ही मुझे उन के ईर्ष्यालू स्वभाव की झलक दिखने लगी थी. जब भी हमउम्र युवकों के साथ हंसबोल कर हम घर लौटते, तो वे जरूर मुझ से झगड़ा करते.
‘‘मैं तुम्हारे या अपने दोस्तों से सिर्फ मनोरंजन की खातिर हंसतीबोलती हूं… किसी के साथ चक्कर चलाने की मेरी कोई मंशा नहीं है, क्योंकि न मैं चरित्रहीन हूं और न ही तुम से असंतुष्ट. फिर तुम क्यों इस बात को ले कर मुझ से बारबार झगड़ते हो?’’ शुरू में उन्हें बड़े प्यार से समझाने की कोशिश करती थी. ऐसा नहीं कि मेरी बात उन की समझ में नहीं आती थी. वे बड़ी जल्दी सहज हो कर मुझ से हंसनेबोलने लगते, पर अगला मौका मिलते ही वे फिर मेरे पीछे पड़ने से नहीं चूकते थे. राजीव का मेरे चरित्र पर शक करना मुझे धीरेधीरे ज्यादा खलने लगा. इस कारण हमारे बीच हर पार्टी से लौटने के बाद बहस और झगड़ा होता. मैं पहले की तरह उन का लैक्चर आराम से नहीं सुनती थी, इस कारण वे मुझ से ज्यादा देर तक नाराज रहते थे. मुझे मनाने का काम वे जल्दी नहीं करते और मैं भी पहले की तरह आसानी से सहज नहीं हो पाती थी. कई बार ऐसा भी हुआ कि किलस कर मैं ने कुछ पार्टियों में किसी भी आदमी से बात नहीं की. मुझे यों चुपचुप देखना भी राजीव को पसंद नहीं आता और तब उन से अलग तरह का लैक्चर मुझे सुनने को मिलता.
‘‘तुम्हें साथ ले कर कहीं जाना सिरदर्दी बनता जा रहा है, नेहा, यों मुंह फुला कर घूमना था, तो यहां आई ही क्यों?’’ मेरे चुप रहने पर भी वे गुस्सा होते. मेरा समझाना, नाराज हो कर झगड़ना या चुप रहना उन में बदलाव नहीं ला सका था. मैं इस समस्या को हल करने का कोई और तरीका सोच पाती उस से पहले ही जीजाजी वाली घटना घट गई. यह हमारी शादी होने के करीब 8 महीने बाद की घटना है. उन दिनों मैं सप्ताह भर के लिए मायके रहने आई हुई थी. मेरे लौटने वाले दिन दीदी और जीजाजी मिलने आ गए. मुझे वापस ले जाने को राजीव उस शाम को आने वाले थे. शाम के समय दीदी, जीजाजी और मैं गपशप करते हुए छत पर टहल रहे थे. कुछ देर बाद दीदी मां के साथ रसोई में काम कराने नीचे चली गईं.
राजीव के पहुंचने का हमें पता नहीं चला था. जब वे अचानक छत पर पहुंचे, उस वक्त मैं जीजाजी की किसी बात पर बड़ी जोर से हंस रही थी.
‘‘कौन सा चुटकुला सुनाया है तुम्हारे जीजाजी ने, मुझे भी बताओ,’’ राजीव मुसकराते हुए हमारे पास आ गए.
‘‘अरे, हम वैसे ही हंस रहे थे. क्या हालचाल हैं तुम्हारे? नेहा से दूर हो कर हफ्ते भर में ही दुबले हो गए तुम तो,’’ जीजाजी के इस मजाक पर सब से जोर से राजीव ने ही ठहाका लगाया था. कुछ देर बाद जीजाजी हमें अकेला छोड़ कर नीचे चले गए. मैं ने भावुक अंदाज में उन का हाथ पकड़ कर चूमना चाहा, तो उन्होंने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और गुस्से से बोले, ‘‘कोई जरूरत नहीं है मेरे साथ प्यार का नाटक करने की.’’
‘‘यह क्या कह रहे हो?’’ उन की खराब सोच को उसी क्षण पकड़ लेने के कारण मुझे भी गुस्सा आ गया.
‘‘मैं ठीक ही कह रहा हूं. अरे, तुम उन औरतों में से हो, जिन्हें फ्लर्ट करना ही करना है. फिर मैं तुम्हारे प्यार पर कैसे विश्वास करूं?’’
‘‘बेकार की बातें सोचसोच कर तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है,’’ चिढ़ और फिर गुस्से का शिकार हो मैं नीचे जाने को मुड़ गई.
तब उन्होंने अचानक मेरे बाल पकड़ लिए. मैं ने उन्हें छुड़ाने की कोशिश की, पर उन की पकड़ ढीली नहीं हुई. तेज पीड़ा के कारण मेरी आंखों में आंसू छलक आए. ‘‘मेरी बात पूरी होने से पहले भागने की कोशिश की, तो मुझ से बुरा कोई न होगा,’’ मेरे बालों को जोर से एक झटका देने के बाद ही उन्होंने अपनी पकड़ ढीली की थी. उन की इस जानवर जैसी हरकत के बाद मैं ने उस रात उन के साथ ससुराल लौटने से इनकार कर दिया. किसी के समझाने का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ था. राजीव की मुझे मनाने की कोशिशें भी बेकार गई थीं. अब तक उन के गलत व्यवहार को मैं सब से छिपाती आई थी, पर उस बार मैं ने सब को उन के शक्की स्वभाव से परिचित करा दिया.
‘‘नेहा, अभी ज्यादा दुखी और परेशान है, राजीव. तुम कुछ दिन बाद इसे वापस ले जाना,’’ मां ने उन्हें ऐसा कुछ समझा कर विदा कर दिया था. मेरी नाराजगी वक्त के साथ कम नहीं हुई थी. जब भी बाल पकड़ने से हुए अपमान की पीड़ा याद आती, मेरा मन राजीव के प्रति अजीब सी नफरत से भर उठता था. तब एक शाम मुझ से मिलने कविता आई. बातों ही बातों में बोली, ‘‘कभी राजीव और मैं शादी करने के इच्छुक थे, नेहा. मुझे तुम दोनों के रिश्ते के बीच दरार पड़ने की खबर मिली, तो मैं यहां आने से खुद को रोक नहीं पाई. इस मामले में मैं तुम्हारी हैल्प कर सकती हूं, नेहा.’’ वह मेरे दुख में दुखी नजर आ रही थी. मुझे उस की यह बात मेरे मन को प्रभावित कर गई. अत: पूछा, ‘‘कैसे?’’ उस शाम वह मेरे पास 2 घंटे रुकी और विदाई के वक्त तक सचमुच ही मुझे मेरी समस्या का समाधान नजर आ गया था.
राजीव की भूतपूर्व प्रेमिका को उस के पति अरुण के साथ अपनी शादी की पहली वर्षगांठ की पार्टी में मैं ने आमंत्रित किया था. राजीव को इस का पता नहीं था. इसीलिए उस रात उन दोनों को अचानक सामने देख कर वे हैरान रह गए थे. वे अरुण के कभी अच्छे दोस्त हुआ करते थे. शुरू में वे कुछ बेचैन से दिखे, पर जल्द ही उन्होंने खुद को संभाल लिया.
‘‘तुम दोनों की मुलाकात कैसे हुई?’’ राजीव ने कविता से अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए पूछा.
‘‘तुम ने तो कभी हमें मिलाया नहीं, तो एक दिन मैं नेहा से उस के मम्मीपापा के घर मिलने खुद ही पहुंच गई थी. मेरी मौसी का घर इन की कालोनी में ही है,’’ कविता ने कुछ सच और कुछ झूठ मिला कर जवाब दिया. ‘‘यह तो हमें शादी में बुलाना भी भूल गया था. अब नेहा ने तुम्हें सरप्राइज देने को हमें पार्टी में बुला लिया है, इस बात के लिए अब उस से झगड़ा मत करना, यार,’’ अरुण ने मजाक किया.
‘‘नेहा मेरे दिल की रानी भी है और मेरी बौस भी. यह जो चाहे कर सकती है,’’ राजीव ने बड़े रोमांटिक अंदाज में मेरा हाथ चूम कर मुझे भी मन ही मन चौंका दिया.
‘‘नेहा ने बताया कि तुम बड़ा अच्छा डांस करना सीख गए हो. क्या यह सच है?’’ कविता के द्वारा राजीव से पूछे गए इस सवाल का जवाब मैं ने हंसते हुए दिया, ‘‘अरे, तुम राजीव के साथ डांस कर के अपने सवाल का जवाब पा लो न.’’
‘‘गुड आइडिया.’’ कविता ने राजीव को सोचने का मौका नहीं दिया और उन का हाथ पकड़ कर डांस फ्लोर की तरफ बढ़ गई.
‘‘तुम अब खुश हो न राजीव के साथ?’’ उन के कुछ दूर जाने के बाद अरुण ने बड़े शिष्ट लहजे में मुझ से सवाल किया.
‘‘बहुत,’’ मैं ने सचाई बयान की.
‘‘राजीव दिल का बहुत अच्छा है.’’
‘‘इसीलिए उन के स्वभाव की वह कमी अब मुझे बिलकुल परेशान नहीं करती है.’’
‘‘गुड.’’
‘‘मैं कविता की और तुम्हारी आजीवन आभारी रहूंगी.’’
‘‘हमारी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ हैं,’’ मेरा कंधा प्यार से दबाने के बाद अरुण स्नैक्स की ट्रौली की तरफ बढ़ गए. मुझे कविता के साथ हुई पहली मुलाकात के अवसर पर हमारे बीच जो वार्तालाप हुआ था, उस के कुछ अंश याद आए कविता ने भावुक हो कर अपनी आपबीती मुझे सुनाई, ‘‘नेहा, मेरे पति अरुण, राजीव और मैं अच्छे दोस्त थे. अचानक मुझे अरुण की नजरों में अपने लिए प्यार के भाव नजर आने लगे, तो मैं ने उस की तरफ कुछ ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया था.’’
‘‘लेकिन तुम तो खुद को राजीव की प्रेमिका बता रही हो,’’ मैं उलझन में पड़ गई.
‘‘हां, प्रेमिका तो मैं राजीव की ही बनी थी. उसे यह बात हजम नहीं हुई कि मेरा रुझान अरुण की तरफ ज्यादा होता जा रहा है. तब उस ने मेरा दिल जीतने का अभियान युद्ध स्तर पर छेड़ा और मैं धोखा खा गई.’’ ‘‘मैं ने अरुण के बजाय राजीव को अपना दिल दे दिया, पर यह मेरी भारी भूल साबित हुई. प्रेमी का दर्जा पाते ही राजीव ने मेरे ऊपर बंदिशें लगानी शुरू कर दीं. वह नहीं चाहता था कि मैं किसी भी ऐसे युवक के साथ हंसूंबोलूं जो किसी भी बात में उस से बेहतर हो.’’
‘‘राजीव मेरा प्रेमी बन गया, तो अरुण ने मेरे प्रति अपनी कोमल भावनाओं को नियंत्रित कर लिया. फिर भी राजीव चाहता था कि मैं तो उस से बोलना बहुत कम कर दूं, पर वह खुद उस का पहले की तरह दोस्त बना रहे.
‘‘बिना कारण मैं अरुण से बोलचाल बंद कर देती तो अपनी नजरों में ही गिर जाती. मैं ने हर तरह से राजीव को समझाने की कोशिश की, पर बात नहीं बनी.
‘‘फिर एक दिन हमारे बीच भयंकर झगड़ा हुआ. उस ने मुझे बहुत अपशब्द कहे. मैं उस से इतनी ज्यादा खफा हुई कि उस झगड़े का अंत हमारे प्रेम संबंध के टूट जाने के साथ हुआ.’’ ‘‘जैसा तुम्हारे साथ घटा, बिलकुल वैसा ही मेरे साथ हो रहा है. मैं भी उन के बेवजह के शक्की व्यवहार से बुरी तरह तंग आ चुकी हूं,’’ मेरी आंखों में आंसू छलक आए.
‘‘राजीव में बस यही एक बहुत बड़ी कमी है. वैसे वह दिल का बहुत अच्छा है न?’’
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‘‘हां, पर…’’
‘‘अब मैं तुम्हें इस समस्या से निबटने का रास्ता दिखाती हूं. तुम मेरी बात ध्यान से सुनो…’’ उस शाम मुझे राजीव के शक्की व्यवहार के कारण हमारे बीच आएदिन होने वाले झगड़ों से निबटने की कारगर तरकीब समझ आ गई थी. ‘‘राजीव तुम्हें कमजोर चरित्र की नहीं मानता है, नेहा. उसे तो इस बात की फिक्र रहती है कि कोई आकर्षक पुरुष तुम्हें उस से वैसे ही न छीन ले, जैसे उस ने मुझे अरुण से छीना था,’’ कविता से मिली इस समझ ने मेरी समस्या का समाधान कर दिया. कविता से हुई पहली मुलाकात के अगले दिन मैं खुद ही पापा के साथ राजीव के पास लौट आई. मुझे अचानक सामने देख कर उन की आंखें खुशी से चमक उठीं. अब राजीव जब भी किसी आदमी के साथ मेरे हंसनेबोलने पर एतराज प्रकट करते हैं, तो मैं न नाराज होती हूं, न रूठती हूं और न ही उन्हें समझाने की कोशिश करती हूं. अब मैं फौरन कुछ वैसा ही करती हूं, जैसा मैं ने शादी की सालगिरह का केक काटने के समय किया. केक कटने के बाद मेरे कालेज के 2 दोस्तों ने कुछ ज्यादा ही उत्साह का प्रदर्शन करते हुए मुझे अपने हाथों से केक आधा खिलाया और आधा मेरे गाल पर रगड़ दिया. मौका मिलते ही मैं नाराज नजर आ रहे राजीव के पास पहुंची और उन के कान के पास मुंह ले जा कर मादक स्वर में बोली, ‘‘इस केक को मेरे गाल पर मेरा कोई दोस्त भी लगा सकता है, पर आज रात को इस गाल पर लगे केक की मिठास चखने का अधिकार सिर्फ तुम्हारा है.’’
रात के उस दृश्य की कल्पना करते ही उन की सारी नाराजगी दूर हो गई. उन्हें कुछ गलत बोलने का मौका मैं ने फिर नहीं दिया था. अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें अपने प्यार व वफा का विश्वास दिला कर मैं ने उन के और अपने मन की सुखशांति को नष्ट करने वाली बहस से एक बार फिर बचा लिया था.