Valentine’s Day: खाली हाथ- जातिवाद के चलते जब प्रेमी अनुरोध पहुंचा पागलखाने

आगरापूरी दुनिया में ‘ताजमहल के शहर’ के नाम से मशहूर है. इसी शहर में स्थित है मानसिक रोगियों के उपचार के लिए मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय. इस संस्थान को कई भारतीय हिंदी फिल्मों में प्रमुखता से दिखाया गया है, हालांकि सच्चाई यह है कि न जाने कितनी भयानक और दुखद कहानियां दफन हैं इस की दीवारों में. आरोही को इस संस्थान में आए 2 महीने ही हुए थे. वह मनोचिकित्सक थी. इस के पहले वह कई निजी अस्पतालों में काम कर चुकी थी. अपनी काबिलीयत और मेहनत के बल पर उस का चयन सरकारी अस्पताल में हो गया था. उस से ज्यादा उस का परिवार इस बात से बहुत खुश था. वैसे भी भारत में आज भी खासकर मध्य वर्ग में सरकारी नौकरी को सफलता का सर्टिफिकेट माना जाता है. आरोही अपना खुद का नर्सिंगहोम खोलना चाहती थी. इस के लिए सरकारी संस्थान का अनुभव होना फायदेमंद रहता है. इसी वजह से वह अपनी मोटी सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर यहां आ गई थी.

वैसे आरोही के घर से दूर आने की एक वजह और भी थी. वह विवाह नहीं करना चाहती थी और यह बात उस का परिवार समझने को तैयार नहीं था. यहां आने के बाद भी रोज उस की मां लड़कों की नई लिस्ट सुनाने के लिए फोन कर देती थीं. जब आरोही विवाह करना चाहती थी तब तो जातबिरादरी की दीवार खड़ी कर दी गई थी और अब जब उस ने जीवन के 35 वसंत देख लिए और उस के छोटे भाई ने विधर्मी लड़की से विवाह कर लिया तो वही लोग उसे किसी से भी विवाह कर लेने की आजादी दे रहे हैं. समय के साथ लोगों की प्राथमिकता भी बदल जाती है. आरोही उन्हें कैसे समझाती कि-

‘सूखे फूलों से खुशबू नहीं आती, किताबों में बंद याद बन रह जाते हैं’ या ‘नींद खुलने पर सपने भी भाप बन उड़ जाते हैं.’

‘‘मैडम,’’

‘‘अरे लता, आओ.’’

‘‘आप कुछ कर रही हैं तो मैं बाद में आ जाती हूं.’’

आरोही ने तुरंत अपनी डायरी बंद कर दी और बोली, ‘‘नहींनहीं कुछ नहीं. तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘216 नंबर बहुत देर से रो रहा है. किसी की भी बात नहीं सुन रहा. आज सिस्टर तबस्सुम भी छुट्टी पर हैं इसलिए…’’

‘‘216 नंबर… यह कैसा नाम है?’’

‘‘वह… मेरा मतलब है बैड नंबर 216.’’

‘‘अच्छा… चलो देखती हूं.’’

चलतेचलते ही आरोही ने जानकारी के लिए पूछ लिया, ‘‘कौन है?’’

‘‘एक प्रोफैसर हैं. बहुत ही प्यारी कविताएं सुनाते हैं. बातें भी कविताओं में ही करते हैं. वैसे तो बहुत शांत हैं, परेशान भी ज्यादा नहीं करते हैं, पर कभीकभी ऐसे ही रोने लगते हैं.’’

‘‘सुनने में तो बहुत इंटरैस्टिंग कैरेक्टर लग रहे हैं.’’

कमरे में दाखिल होते ही आरोही ने देखा कोई 35-40 वर्ष का पुरुष बिस्तर पर अधलेटा रोए जा रहा था.

‘‘सुनो तुम…’’

‘‘आप रुकिए मैडम, मैं बोलती हूं…’’

‘‘हां ठीक है… तुम बोलो.’’

‘‘अनुरोध… रोना बंद करो. देखो मैडम तुम से मिलने आई हैं.’’

इस नाम के उच्चारण मात्र से आरोही परेशान हो गई थी. मगर जब वह पलटा तो सफेद काली और घनी दाढ़ी के बीच भी आरोही ने अनुरोध को पहचान लिया. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह चेतनाशून्य हो कर वहीं गिर गई. होश आने पर वह अपने क्वार्टर में थी. उस के आसपास हौस्पिटल का स्टाफ खड़ा था. सीनियर डाक्टर भी थे.

‘‘तुम्हें क्या हो गया था आरोही?’’ डाक्टर रमा ने पूछा.

‘‘अब कैसा फील कर रही हो?’’ डाक्टर सुधीर के स्वर में भी चिंता झलक रही थी.

‘‘हां मैडम, मैं तो डर ही गई थी… आप को बेहोश होता देख वह पेशैंट भी अचानक चुप हो गया था.’’

‘‘मुझे माफ करना लता और आप सब भी, मेरी वजह से परेशान हो गए…’’

‘‘डोंट बी सिली आरोही. तुम अब

आराम करो हम सब बाद में आते हैं,’’ डाक्टर सुधीर बोले.

‘‘जी मैडम, और किसी चीज की जरूरत हो तो आप फोन कर देना.’’

उन के जाने बाद आरोही ने जितना सोने की कोशिश की उतना ही वह समय उस के सामने जीवंत हो गया, जब आरोही और अनुरोध साथ थे. आरोही और अनुरोध बचपन से साथ थे. स्कूल से कालेज का सफर दोनों ने साथ तय किया था. कालेज में भी उन का विषय एक था- मनोविज्ञान. इस दौरान उन्हें कब एकदूसरे से प्रेम हो गया, यह वे स्वयं नहीं समझ पाए थे. घंटों बैठ कर भविष्य के सपने देखा करते थे. देशविदेश पर चर्चा करते थे. समाज की कुरीतियों को जड़ से मिटाने की बात करते थे. मगर जब स्वयं के लिए लड़ने का समय आया, सामाजिक आडंबर के सामने उन का प्यार हार गया. एक दलित जाति का युवक ब्राह्मण की बेटी से विवाह का सपना भी कैसे देख सकता था. अपने प्रेम के लिए लड़ नहीं पाए थे दोनों और अलग हो गए थे.

आरोही ने तो विवाह नहीं किया, परंतु 4-5 साल के बाद अनुरोध के विवाह की खबर उस ने सुनी थी. उस विवाह की चर्चा भी खूब चली थी उस के घर में. सब ने चाहा था कि आरोही को भी शादी के लिए राजी कर लिया जाए, परंतु वे सफल नहीं हो पाए थे. आज इतने सालों बाद अनुरोध को इस रूप में देख कर स्तब्ध रह गई थी वह. अगले दिन सुबह ही वह दोबारा अनुरोध से मिलने उस के कमरे में गई.

आज अनुरोध शांत था और कुछ लिख भी रहा था. हौस्पिटल की तरफ से उस की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे लिखने के लिए कागज और कलम दे दी गई थी. आज उस के चेहरे से दाढ़ी भी गायब थी और बाल भी छोटे हो गए थे.

‘‘अनु,’’ आरोही ने जानबूझ कर उसे उस नाम से पुकारा जिस नाम से उसे बुलाया करती थी. उसे लगा शायद अनुरोध उसे पहचान ले.

उस ने एक नजर उठा कर आरोही को देखा और फिर वापस अपने काम में लग गया. पलभर को उन की नजरें मिली अवश्य थीं पर उन नजरों में अपने लिए अपरिचित भाव देख कर तड़प गई थी आरोही, मगर उस ने दोबारा कोशिश की, ‘‘क्या लिख रहे हो तुम?’’

उस की तरफ बिना देखे ही वह बोला-

‘सपने टूट जाते हैं, तुम सपनों में आया न करो, मुझे भूल जाओ और मुझे भी याद आया न करो.’

अनुरोध की दयनीय दशा और उस की अपरिचित नजरों को और नहीं झेल पाई आरोही और थोड़ा चैक करने के बाद कमरे से बाहर निकल गई. मगर वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और बाहर आते ही रो पड़ी. अचानक पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘आप अनुरोध को जानती हैं मैडम?’’

पीछे पलटने पर आरोही ने पहली बार देखा सिस्टर तबस्सुम को, जिन के बारे में वह पहले सुन चुकी थी. वे इकलौती थीं जिन की बात अनुरोध मानता भी था और उन से ढेर सारी बातें भी करता था. कई सालों से वह सिस्टर तबस्सुम से काफी हिलमिल गया था.

‘‘मैं… मैं और अनुरोध…’’

‘‘शायद आप वही परी हैं जिस का इंतजार यह पगला पिछले कई सालों से कर रहा है. पिछले कई सालों में आज पहली बार मुसकराते हुए देखा मैं ने अनुरोध को. चलिए मैडम आप के कैबिन में चल कर बात करते हैं.’’

दोनों कैबिन में आ गईं. तबस्सुम का अनुरोध के प्रति अनुराग आरोही देख पा रही थी.

‘‘अनुरोध… ऐसा नहीं था. उस की ऐसी हालत कैसे हुई? क्या आप को कुछ पता है?’’ सिर हिला कर सिस्टर ने अनुरोध की दारुण कहानी शुरू की…

‘‘अनुरोध का चयन मेरठ के कालेज में मनोविज्ञान के व्याख्याता के पद पर हुआ था. इसी दौरान वह एक शादी में हिस्सा लेने मोदी नगर गया था, परंतु उसे यह नहीं पता था कि वह शादी स्वयं उसी की थी.

‘‘उस के मातापिता ने उस के लगातार मना करने से तंग आ कर उस का विवाह उस की जानकारी के बिना ही तय कर दिया था. शादी में बहुत कम लोगों को ही बुलाया गया था. मोदी नगर पहुंचने पर उस के पास विवाह करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने मातापिता के किए की सजा वह एक मासूम लड़की को नहीं दे सकता था और उस का विवाह विनोदिनी से हो गया.

‘‘विवाह के कुछ महीनों बाद ही विनोदिनी ने पढ़ाई के प्रति अपने लगाव को अनुरोध के सामने व्यक्त किया. अनुरोध सदा से स्त्री शिक्षा तथा स्त्री सशक्तीकरण का प्रबल समर्थक रहा था. खासकर उस के समुदाय में तो स्त्री शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय थी. इसीलिए जब उस ने अपनी पत्नी के शिक्षा के प्रति लगाव को देखा तो अभिभूत हो गया.

‘‘विनोदिनी कुशाग्रबुद्धि तो नहीं थी, परंतु परिश्रमी अवश्य थी और उस की इच्छाशक्ति भी प्रबल थी. उस के मातापिता बहू की पढ़ाई के पक्षधर नहीं थे. विनोदिनी के मातापिता भी उसे आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे, परंतु सब के खिलाफ जा कर अनुरोध ने उस का दाखिला अपने ही कालेज के इतिहास विभाग में करा दिया. विनोदिनी को हर तरह का सहयोग दे रहा था अनुरोध.

‘‘शादी के 1 साल बाद ही अनुरोध की मां ने विनोदिनी पर बच्चे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया, परंतु यहां भी अनुरोध अपनी पत्नी के साथ खड़ा रहा. जब तक विनोदिनी की ग्रैजुएशन पूरी नहीं हुई, उन्होंने बच्चे के बारे में सोचा तक नहीं.

‘‘विनोदिनी प्रथम श्रेणी में पास हुई और उस के बाद उस ने पीसीएस में बैठने की अपनी इच्छा अनुरोध को बताई. उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था. अनुरोध ने उस का दाखिला शहर के एक बड़े कोचिंग सैंटर में करा दिया. घर वालों का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था. पहले 2 प्रयास में सफल नहीं हो पाई थी विनोदिनी.

‘‘मगर अनुरोध उसे सदा प्रोत्साहित करता रहता. इसी दौरान विनोदिनी 1 बेटे की मां भी बन गई. परंतु बच्चे को दूध पिलाने के अलावा बच्चे के सारे काम अनुरोध स्वयं करता था. घर के काम और जब वह कालेज जाता था तब बच्चे को संभालने के लिए उस ने एक आया रख ली थी. कभीकभी उस की मां भी गांव से आ जाती थीं. बेटे के इस फैसले से सहमत तो वे भी नहीं थीं, परंतु पोते से उन्हें बहुत लगाव था.

‘‘चौथे प्रयास के दौरान तो विनोदिनी को जमीन पर पैर तक रखने नहीं दिया था अनुरोध ने. अनुरोध की तपस्या विफल नहीं हुई थी. विनोदिनी का चयन पीसीएस में डीएसपी के पद पर हो गया था. वह ट्रेनिंग के लिए मुरादाबाद चली गई. उस समय उन का बेटा अमन मात्र 4 साल का था.

‘‘अनरोध ने आर्थिक और मानसिक दोनों तरह से अपना सहयोग विनोदिनी को दिया. लोगों की बातों से न स्वयं आहत हुआ और न अपनी पत्नी को होने दिया. उस ने विनोदिनी के लिए वह किया जो उस के स्वयं के मातापिता नहीं कर पाए. सही मानों में फैमिनिस्ट था अनुरोध. स्त्रीपुरुष के समान अधिकारों का प्रबल समर्थक.

‘‘जब विनोदिनी की पहली पोस्टिंग अलीगढ़ हुई तो लगा कि उस की समस्याओं का अंत हुआ. अब दोनों साथ रह कर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ेंगे, परंतु वह अंत नहीं आरंभ था अनुरोध की अंतहीन पीड़ा का.

‘‘विनोदिनी के जाने के बाद अनुरोध अपना तबादला अलीगढ़ कराने में लग गया. अमन को भी वह अपने साथ ही ले गई थी. अनुरोध को भी यही सही लगा था कि बच्चा अब कुछ दिन मां के साथ रहे और फिर उस का तबादला भी 6 महीने में अलीगढ़ होने ही वाला था. सबकुछ तय कर रखा था उस ने परंतु नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था उस के लिए.

‘‘विनोदिनी का व्यवहार समय के साथ बदलता चला गया. पद के घमंड में अब वह अनुरोध का अपमान भी करने लग गई थी. उस ने तो मेरठ आना बंद ही कर दिया था, इसलिए अनुरोध को अपने बेटे से मिलने अलीगढ़ जाना पड़ता था. विनोदिनी के कटु व्यवहार का तो वह सामना कर लेता था, परंतु इस बात ने उसे विचलित कर दिया था कि उन के बीच के झगड़े का विपरीत असर उन के बेटे पर हो रहा था.

अब वह शीघ्र ही मेरठ छोड़ना चाहता था. डेढ़ साल बीत गया था, पर उस का तबादला नहीं हो पा रहा था.

‘‘‘प्रिंसिपल साहब, आखिर यह हो क्या रहा है? 6 महीनों में आने वाली मेरी पोस्टिंग, डेढ़ साल में नहीं आई. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?’

‘‘‘अनुरोध तुम्हें तो पता है सरकारी काम में देर हो ही जाती है.’

‘‘‘जी सर… पर इतनी देर नहीं. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे आप जानबूझ कर ऐसा नहीं होने दे रहे?’

‘‘‘अनुरोध…’

‘‘‘आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं सर? क्या हमारा रिश्ता आज का है?’

‘‘‘अनुरोध… कोई है जो जानबूझ कर तुम्हारी पोस्टिंग रोक रहा है.’

‘‘‘कौन?’

‘‘‘तुम्हें तो मैं बहुत समझदार समझता था, जानबूझ कर कब तक आंखें बंद रखोगे?’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘गिरिराज सिंह और विनोदिनी…’

‘‘‘प्रिंसिपल साहब…’ चीख पड़ा अनुरोध.

‘‘अनुरोध के कंधे पर हाथ रख कर प्रिंसिपल साहब बोले,…

‘बेटा, विश्वास करना अच्छी बात है, परंतु अंधविश्वास मूर्खता है. अपनी नींद से जागो.’

‘‘विनोदिनी के बारे में ऐसी बातें अनुरोध ने पहली बार नहीं सुनी थीं, परंतु वह ऐसी सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करता था. उसे लगता था कि विनोदिनी बददिमाग, बदतमीज और घमंडी हो सकती है परंतु चरित्रहीन नहीं.

‘‘2 महीने की छुट्टी ले कर जिस दिन वह अलीगढ़ पहुंचा, घर पर ताला लगा था. वहां पर तैनात सिपाही से पता चला कि मैडम नैनीताल घूमने गई हैं. मगर विनोदिनी ने अनुरोध को इस बारे में कुछ नहीं बताया था.

‘‘7 दिन बाद लौटी थी विनोदिनी परंतु अकेले नहीं, उस के साथ गिरिराज सिंह भी था.

‘‘‘कैसा रहा आप का टूर मैडम?’

‘‘‘उसे देख कर दोनों न चौंके न ही शर्मिंदा हुए. बड़ी बेशर्मी से वह आदमी सामने रखे सोफे पर ऐसे बैठ गया जैसे यह उस का ही घर हो.’

‘‘‘तुम कब आए?’

‘‘विनोदिनी की बात अनसुनी कर अनुरोध गिरिराज सिंह से बोला, ‘मुझे अपनी पत्नी से कुछ बात करनी है. आप इसी वक्त यहां से चले जाएं.’

‘‘‘यह कहीं नहीं जाएगा…’

‘‘‘विनोदिनी चुप रहो…’

‘‘मगर उस दिन गिरिराज सिंह नहीं अनुरोध निकाला गया था उस घर से. विनोदिनी ने हाथ तक उठाया था उस पर.

‘‘गिरिराज और विनोदिनी को लगा था कि इस के बाद अनुरोध दोबारा उन के रिश्ते पर आवाज उठाने की गलती नहीं करेगा, परंतु वे गलत थे.

‘‘टूटा जरूर था अनुरोध पर हारा नहीं था. वह जान गया था कि अब इस रिश्ते

में बचाने जैसा कुछ नहीं था. उसे अब केवल अपने अमन की चिंता थी. इसलिए वह कोर्ट में तलाक के साथ अमन की कस्टडी की अर्जी भी दायर करने वाला था. इस बात का पता लगते ही विनोदिनी ने पूरा प्रयास किया कि वह ऐसा न करे. उन के लाख डरानेधमकाने पर भी अनुरोध पीछे नहीं हटा था. एक नेता और अधिकारी का नाम होने के कारण मीडिया भी इस खबर को प्रमुखता से दिखाने वाली है. इस बात का ज्ञान उन दोनों को था.

‘‘गिरिराज सिंह को अपनी कुरसी और विनोदिनी को अपनी नौकरी की चिंता सताने लगी थी. इसीलिए कोर्ट के बाहर समझौता करने के लिए विनोदिनी ने उसे अपने घर बुलाया.

‘‘जब अनुरोध वहां पहुंचा घर का दरवाजा खुला था. घर के बाहर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. जब बैल बजाने पर भी कोई नहीं आया तो उस ने विनोदिनी का नाम ले कर पुकारा. थोड़ी देर बाद अंदर से एक पुरुष की आवाज आई, ‘इधर चले आइए अनुरोध बाबू.’

‘‘अनुरोध ने अंदर का दरवाजा खोला तो वहां का नजारा देख कर वह हैरान रह गया. बिस्तर पर विनोदिनी और गिरिराज अर्धनग्न लेटे थे. उसे देख कर भी दोनों ने उठने की कोशिश तक नहीं की.

‘‘‘क्या मुझे अपनी रासलीला देखने बुलाया है आप लोगों ने?’

‘‘‘नहींजी… हा… हा… हा… आप को तो एक फिल्म में काम देने बुलाया है.’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘हर बात जानने की जल्दी रहती है तुम्हें… आज भी नहीं बदले तुम,’ विनोदिनी ने कहा.

‘‘‘मतलब समझाओ भई प्रोफैसर साहब को.’’

‘‘इस से पहले कि अनुरोध कुछ समझ पाता उस के सिर पर किसी ने तेज हथियार से वार किया. जब उसे होश आया उस ने स्वयं को इसी बिस्तर पर निर्वस्त्र पाया. सामने पुलिस खड़ी थी और नीचे जमीन पर विनोदिनी बैठी रो रही थी.

‘‘कोर्ट में यह साबित करना मुश्किल नहीं हुआ कि विनोदिनी के साथ जबरदस्ती हुई है. इतना ही नहीं यह भी साबित किया गया कि अनुरोध एक सैक्सहोलिक है और उस का बेटा तक उस के साथ सुरक्षित नहीं है, क्योंकि अपनी इस भूख के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. विनोदिनी के शरीर पर मारपीट के निशान भी पाए गए. अनुरोध के मोबाइल पर कई लड़कियों के साथ आपत्तिजनक फोटो भी पाए गए.

‘‘उस पर घरेलू हिंसा व महिलाओं के संरक्षण अधिनियम कानून के अनुसार केस दर्ज किया गया. उस पर बलात्कार का भी मुकदमा दर्ज किया गया. मीडिया ने भी अनुरोध को एक व्यभिचारी पुरुष की तरह दिखाया. सोशल नैटवर्किंग साइट पर तो बाकायदा एक अभियान चला कर उस के लिए फांसी की सजा की मांग की गई. कोर्ट परिसर में कई बार उस के मातापिता के साथ बदसुलूकी भी की गई.

‘‘अनुरोध के मातापिता का महल्ले वालों ने जीना मुश्किल कर दिया था. जिस दिन कोर्ट ने अनुरोध के खिलाफ फैसला सुनाया उस के काफी पहले से उस की मानसिक हालत खराब होनी शुरू हो चुकी थी. लगातार हो रहे मानसिक उत्पीड़न के साथ जेल में हो रहे शारीरिक उत्पीड़न ने उस की यह दशा कर दी थी. फैसला आने के 10 दिन बाद ही अनुरोध के मातापिता ने आत्महत्या कर ली और अनुरोध को यहां भेज दिया गया. एक आदर्शवादी होनहार लड़के और उस के खुशहाल परिवार का ऐसा अंत…’’

कुछ देर की खामोशी के बाद तबस्सुम फिर बोलीं, ‘‘मैडम, मैं मानती हूं कि घरेलू हिंसा का सामना कई महिलाओं को करना पड़ता है. इसीलिए स्त्रियों की रक्षा हेतु इस कानून का गठन किया गया था.

‘‘परंतु घरेलू हिंसा से पीडि़त पुरुषों का क्या? उन पर उन की स्त्रियों द्वारा की गई मानसिक और शारीरिक हिंसा का क्या?

‘‘अगर पुरुष हाथ उठाए तो वह गलत… नामर्द, परंतु जब स्त्री हाथ उठाए तो क्या? हिंसा कोई भी करे, पुरुष अथवा स्त्री, पति अथवा पत्नी, कानून की नजरों में दोनों समान होने चाहिए. जिस तरह पुरुष द्वारा स्त्री पर हाथ उठाना गलत है उसी प्रकार स्त्री द्वारा पुरुष पर हाथ उठाना भी गलत होना चाहिए. परंतु हमारा समाज तुरंत बिना पूरी बात जाने पुरुष को कठघरे में खड़ा कर देता है.

‘‘ताकतवार कानून स्त्री की सुरक्षा के लिए बनाए गए परंतु आजकल विनोदिनी जैसी कई स्त्रियां इस कानून का प्रयोग कर के अपना स्वार्थ सिद्ध करने लगी हैं.

‘‘वैसे तो कानून से निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है, परंतु इस तरह के केस में ऐसा हो नहीं पाता. वैसे भी कानून तथ्यों पर आधारित होता है और आजकल पैसा और रसूख के बल पर तथ्यों को तोड़ना और अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना आम बात हो गई है. जिस के पास पैसा और ताकत है कानून भी उस के साथ है.

‘‘हां, सही कह रही हैं आप तबस्सुम. अनुरोध जैसे मर्द फैमिनिज्म का सच्चा अर्थ जानते हैं. वे जानते हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकसमान है. न कोई बड़ा, न कोई छोटा. इसलिए गलत करने पर सजा भी एकसमान होनी चाहिए.

‘‘मगर विनोदिनी जैसी कुछ स्त्रियां नारीवाद का गलत चेहरा प्रस्तुत कर रही हैं,’’ लता के अचानक आ जाने से दोनों की बातचीत पर विराम लग गया.

‘‘माफ कीजिएगा वह बैड नंबर 216 को खाना देना था.’’

‘‘अरे हां… तुम चलो मैं आती हूं. चलती हूं मैडम अनुरोध को खाना खिलाने का समय हो गया है.’’

‘‘मैं भी चलती हूं…’’

जब वे दोनों वहां पहुंचीं तो देखा अनुरोध अपने दोनों हाथों को बड़े ध्यान से निहार रहा  था. आरोही उस के पास जा कर बैठ गई. फिर पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो? प्लीज कुछ तो बोलो.’’

कुछ नहीं बोला अनुरोध. उस की तरफ देखा तक नहीं.

सिस्टर तबस्सुम अनुरोध के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘बोलो बेटा, बताओ… तुम चिंता न करो कुदरत ने चाहा तो अब सब ठीक हो जाएगा.’’

इस बार वह उन की तरफ पलटा और फिर अपनी खाली हथेलियों को उन की तरफ फैलाते हुए बोला-

‘ऐ प्यार को मानने वालो, इजहार करना हमें भी सिखाओ. बंद करें हथेली या खोल लें इसे, खो गई हमारी छाया से हमें भी मिलवाओ…

माई बैटर हाफ : क्या पति भी पत्नी के लिए ये सब सोचते हैं

हमारे रिश्तेनाते हमारा सामर्थ्य होते हैं. इन में पतिपत्नी का रिश्ता एकदूसरे के प्रति विश्वास, प्रेम और अपनेपन पर आधारित होता है. दो अजनबी प्यार में पड़ कर विवाहित होते हैं और फिर एक तरह से उन के बीच एक अटूट प्रेम का रिश्ता पनपने लगता है. इसी से ही आगे चल कर स्नेह, प्रेम और अपनेपन की भावनाओं से रिश्तों का धागा बुना जाता है.

यह अपनापन ही हमारे मन को हमेशा से उमंग देता रहता है और यही अनुभूति पतिपत्नी के रिश्तों में भी होती है. इस रिश्ते में एक मन होता है विश्वास रखने वाला तो दूसरा मन होता है समझने वाला. कई बार पत्नी अपने पति के काम के बारे में, उस की अच्छीबुरी आदतों के बारे में, उस के स्नेहशील नेचर के बारे में बातें करती रहती है. उस का पति के प्रति प्रेम का अभिमान उस के चेहरे से साफ झलकता है, तो कई बार कामयाब पति के पीछे उस की पत्नी दृढ़ निश्चय से खड़ी रहती है. लेकिन क्या एक कामयाब पत्नी के पीछे, उस की सराहना करने के लिए पुरुष वर्ग भी आगे रहता है?

सिर्फ एक स्टैंप नहीं: समीक्षा गुप्ता

हकीकत में एक कामयाब पत्नी का पति होना गर्व की अनुभूति कराता है. ऐसा ही एक अनूठा रिश्ता है ग्वालियर की मेयर समीक्षा गुप्ता और उन के पति राजीव गुप्ता का. बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से इकोनौमिक्स में स्नातक समीक्षा मूलत: मध्य प्रदेश के राजगढ़ की हैं. शादी के बाद उन्होंने कई साल एक घरेलू महिला की तरह बिताए और अपनी भूमिका को अच्छी तरह निभाया. फिर उन की सासूमां ने उन्हें कौरपोरेटर का चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया तो वे कौरपोरेटर हुईं. यहीं से समीक्षा के नए सफर की शुरुआत हुई. लेकिन समीक्षा ने कभी अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा नहीं किया.

चुनाव जीतने के बाद वे एक स्टैंप न रह कर वार्ड में लोगों के रुके हुए कामों व उन की परेशानियों की तरफ ध्यान देने लगीं. ऐसा कर के ही दूसरी पारी में भी वे अपने चुनाव क्षेत्र से जीतीं. इस के बाद ग्वालियर की जनता ने उन्हें मेयर की कुरसी पर बैठाया. एक कौरपोरेटर के तौर पर उन के काम सिर्फ अपने वार्ड तक ही सीमित थे, लेकिन मेयर होते ही पूरे ग्वालियर शहर के विकास के काम धड़ल्ले से करने शुरू कर दिए.

शहर का सौंदर्यीकरण, चौड़े रास्ते, पार्क, रोड, कन्यादान जैसी योजनाओं पर उन्होंने सफलतापूर्वक काम किया. इस दौरान उन्हें लोगों का विरोध भी सहना पड़ा. पति राजीव कहते हैं, ‘‘जब समीक्षा शहर या शहर के लोगों के बारे में कोई निर्णय लेती हैं तब वे सिर्फ एक शहर की मेयर होती हैं. बाहर के काम के बारे में या किसी समस्या के बारे में वे घर पर विचारविमर्श तो करती हैं, लेकिन अंतिम निर्णय खुद ही लेती हैं.

‘‘घर आने के बाद वे 2 बेटियों की प्यारी मां होती हैं, हमारे अम्मां, बाबूजी की बहू होती हैं. हमारा परिवार संयुक्त परिवार है. वे हर एक रिश्ते का मान रखती हैं. आज समीक्षा स्त्री भू्रण हत्या के साथसाथ महिलाओं पर होने वाले अत्याचार पर काम कर रही हैं, इस का मुझे गर्व है.’’

घर की छांव: छाया नागपुरे

एफआरआर फोरेक्स में सीनियर मैनेजर के पद पर आसीन छाया के पति विजय के चेहरे पर अभिमान स्पष्ट रूप से झलकता है. इस परिवार का बेटा यशराज और बेटी ऐश्वर्या के साथ खुद विजय इन सभी की सफलता का संगम छाया के असीम स्नेह की छांव में ही हो सका, ऐसा उन्हें लगता है.

पहली मुलाकात, पहली तकरार, पहला गिफ्ट, सालगिरह आदि बातें आमतौर पर सिर्फ महिलाओं को ही याद रहती हैं, लेकिन विजय ने उन के प्यार को 26 साल किस दिन हुए, यह बात बहुत ही गौरव से बताई.

उन की जिंदगी में छाया के आने के बाद सब अच्छा ही होता गया, ऐसा बताते हैं विजय. उन्होंने बताया कि छाया ने अपनी पढ़ाई बहुत ही प्रतिकूल हालात में पूरी की है. घर में ट्यूशन पढ़ा कर बी.एससी. पूरी की. उस के बाद विजय के अनुरोध पर उन्होंने लेबर स्टडीज विषय पर एम.एस. किया.

पहली ही नौकरी में उन्हें कामगारों द्वारा की गई हड़ताल की समस्या सुलझाने के लिए सिल्व्हासा में भेजा गया. उस वक्त वे अपनी छोटी बेटी और पति को साथ ले कर गई थीं. वहां पर कामगारों ने उन के साथ अच्छा बरताव नहीं किया था. ‘एक औरत हमारी समस्याएं क्या हल करेगी.’ यही भाव उस वक्त उन के चेहरों पर थे. तब छाया ने वहां का माहौल हलका करने के लिए कहा कि मैं अपने पति और बेटी को ले कर आप के शहर आई हूं. आप का शहर कैसा है यह तो दिखाइए. यह कहने के बाद वहां का माहौल हलका हुआ और मालिक और कामगारों के बीच का तनाव कम हुआ.

विजय कहते हैं कि आज भी परिवार के सगेसंबंधी अपनी समस्याएं ले कर छाया के पास आते हैं तब छाया उन्हें ‘मैं जो कहती हूं वह करना ही चाहिए’ न कह कर उस बात के फायदे और नुकसान के विकल्प उन के सामने रखती हैं. इस से अपनी समस्याओं का हल उन्हें वहीं मिल जाता है. कभीकभी सामने वालों से डीलिंग करते वक्त उन्हें कठोर कदम भी उठाना पड़ता है. इस बारे में छाया खुद कहती हैं, ‘‘आखिर मैं ह्यूमन रिसोर्स यानी व्यक्तियों के साथ डील करती हूं. हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता.

संवाद साधने वाली: लीना

लीना प्रकाश सावंत. लीना यानी नम्र. लेकिन नाम में नम्रता होते हुए भी कहां पर नम्र होना है और कहां पर प्रतिकार करना है, इस की जानकार लीना सावंत के पति कंस्ट्रक्शन के बिजनैस में हैं. कौमर्स से स्नातक लीना नौकरीपेशा प्रकाश सावंत के साथ शादी होने के बाद जब गोवा, पूना घूम रही थीं, तो वहां भी वे समय का सदुपयोग करने के लिए छोटीमोटी नौकरी कर रही थीं.

लेकिन प्रकाश ने जब नौकरी छोड़ कर बिजनैस करने का फैसला कर लिया तब लीना ने उन की कल्पनाओं को साकार करने में मदद की और खुद भी बिजनैस में ध्यान देने लगीं. इस के बारे में प्रकाश ने कहा कि सब से पहले हमें वोडाफोन के ग्लो साइन एडवरटाइजमैंट का कौंट्रैक्ट मिला था. तब आर्थिक प्रबंधन व बाकी सभी कामों की जिम्मेदारी लीना ने स्वयं ही अपने कंधों पर ली थी. इंटरनैशनल क्रिएशन नाम की उन की कंपनी ग्लो साइन बोर्ड में टौपर कंपनी है.

आज उन के घर का इंटीरियर हो या बच्चों का कमरा, हर एक चीज उन्होंने अपनी बेहतरीन कल्पना से डिजाइन की है. आज उन का बड़ा बेटा प्रसाद यूएस में शिक्षा ले कर उन के बिजनैस में मदद कर रहा है, तो दूसरा बेटा केदार इकोल मोंडेल जैसे मशहूर स्कूल में पढ़ रहा है. बच्चों की पढ़ाई घर की जिम्मेदारियां संभालते हुए लीना आज बिजनैस में पति की खूब मदद कर रही हैं.

बदलते समय के कदमों को भांप कर 2006 में प्रकाश सावंत ने कंस्ट्रक्शन के कारोबार में कदम रखा तब लीना उन के पीछे खड़ी रहीं. आज भी कारोबार की रूपरेखा तय करते वक्त सब से पहले लीना के सुझाव ध्यान में रखे जाते हैं.

कई बार हंसीमजाक में कहा जाता है कि आप सुखी हैं या शादीशुदा हैं? लेकिन इन पतियों का उन के बैटर हाफ के बारे में झलकता हुआ प्यार, विचार और विश्वास देख कर हम कह सकते हैं कि कामयाब महिलाओं के कारण ही उन का जीवन अधिकतम समृद्ध और खुशहाल हो पाया.

छंट गया कुहरा: विक्रांत के मोहपाश में बंधी जा रही थी माधुरी

विक्रांत को स्कूटर से अंतिम बार जाते हुए देखने के लिए माधुरी बालकनी में जा कर खड़ी हो गई. विक्रांत के आंखों से ओझल होते ही उसे लगा जैसे सिर से बोझ उतर गया हो. अब न किसी के आने का इंतजार रहेगा, न दिल की धड़कनें बढ़ेंगी और न ही उस के न आने से बेचैनी और मायूसी उस के मन को घरेगी. यह सोच कर वह बहुत ही सुकून महसूस कर रही थी.

जब किसी के चेहरे से मुखौटा उतर कर वास्तविक चेहरे से सामना होता है तो जितनी शिद्दत से हम उसे चाहते हैं उसी अनुपात में उस से नफरत भी हो जाती है, एक ही क्षण में दिल की भावनाएं उस के लिए बदल जाती हैं. ऐसा ही माधुरी के साथ हुआ था.

माधुरी के विवाह को 5 साल हो गए थे. विवाह के बाद दिल्ली की पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाले परिवार में पलीबढ़ी माधुरी को उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर में रहने से और अपने पति मनोहर के अंतर्मुखी स्वभाव के कारण बहुत ऊब और अकेलापन लगने लगा था.

विक्रांत मनोहर के औफिस में ही काम करना था. अविवाहित होने के कारण अकसर वह मनोहर के साथ औफिस से उस के घर आ जाता था. माधुरी को भी उस का आना अच्छा लगता था. फिर वह अकसर खाना खा कर ही जाता था. खातेखाते वह खाने की बहुत तारीफ करता, जबकि अपने पति के मुंह से ऐसे बोल सुनने को माधुरी तरस जाती थी.

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उस के आते ही घर में रौनक सी हो जाती थी. माधुरी उस से किताबों, कहानियों, फिल्मों, सामाजिक गतिविधियों पर बात कर के बहुत संतुष्टि अनुभव करती थी. धीरेधीरे वह उस की ओर खिंचती चली गई. जिस दिन वह नहीं आता तो उसे कुछ कमी सी लगती, मन उदास हो जाता. धीरेधीरे माधुरी को एहसास होने लगा कि इस तरह उस का विक्रांत की ओर आकर्षित होना मनोहर के प्रति अन्याय होगा, यह सोच कर वह मन से बेचैन रहने लगी. उसे लगने लगा कि जैसे वह कोई अपराध कर रही है, विवाहोपरांत किसी भी परपुरुष से एक सीमा तक ही अपनी चाहत रखना उचित है, उस के बाद तो वह शादीशुदा जिंदगी के लिए बरबादी का द्वार खोल देती है.

सबकुछ समझते हुए भी पता नहीं क्यों वह अपनेआप को उस से मिले बिना रोक नहीं पाती थी. जादू सा कर दिया था जैसे उस ने उस पर. अब तो यह हालत थी कि जिस दिन वह नहीं आता था तो वह अपने पति से उस के न आने का कारण पूछने लगी थी.

एक साथ काम करते हुए मनोहर को आभास होने लगा था कि विक्रांत कुछ रहस्यमय है. औफिस में 1-2 और लोगों से भी उस ने पारिवारिक संबंध बना रखे थे, जिन के घर भी अकसर वह जाया करता था.

धीरेधीरे मनोहर को भी माधुरी का विक्रांत के प्रति पागलपन अखरने लगा था. उस ने माधुरी को कई बार समझाया कि उस का विक्रांत के प्रति इतना आकर्षण ठीक नहीं है. वह अकेला है, पता नहीं क्यों विवाह नहीं करता. उसे तो अपना समय काटना है. लेकिन उस की समझ में नहीं आया और दिनप्रतिदिन उस का आकर्षण बढ़ता ही गया. उस की प्रशंसा भरी बातों में वह उलझती ही जा रही थी. एक तरफ अपराधभावना तो दूसरी ओर उसे न छोड़ने की विवशता. दोनों ने उसे मानसिक रोगी बना दिया था.

मनोहर जानता था कि माधुरी उस के लिए समर्पित है. विक्रांत ने ही अपनी बातों के जाल से उसे सम्मोहित कर रखा है और उस दिन को कोसता रहता था जब वह पहली बार उसे अपने घर लाया था. हर तरह से समझा कर वह थक गया.

धीरेधीरे माधुरी को विक्रांत से रिश्ता रखना तनाव अधिक खुशी कम देने लगा था. जिस रिश्ते का भविष्य सुरक्षित न हो, उस का यह परिणाम होना स्वाभाविक है, लेकिन वह उस से रिश्ता तोड़ने में अपने को असमर्थ पाती थी. ऊहापोह में 3 साल बीत गए. इस बीच वह एक चांद सी बेटी की मां भी बन गई थी.

अचानक एक दिन माधुरी के साथ ऐसी घटना घटी जिस ने उस के पूरे वजूद को ही हिला कर रख दिया. मनोहर के औफिस जाते ही विक्रांत औफिस में ही काम करने वाले रमनजी की बेटी नेहा, उम्र यही कोई 20 वर्ष होगी को उस के घर ले कर आया. पूर्व परिचित थी और अकसर वह माधुरी के घर आती रहती थी.

विक्रांत का भी उस परिवार से घनिष्ठ संबंध था. विक्रांत आते ही बिना किसी भूमिका के बोला, ‘‘इस का गर्भपात करवाना है. इस के साथ बलात्कार हुआ है…’’

1 मिनट को माधुरी को लगा जैसे कमरे की दीवारें उस की आंखों के सामने घूम रही हैं. जब उस ने इस बात की पुष्टि की तब जा कर माधुरी को विश्वास हुआ. इस से पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विक्रांत जो कह रहा है वह सच है.

डाक्टर मित्र ने कहा, ‘‘10 दिन भी देर हो जाती तो गर्भपात नहीं हो सकता था… पर एक बार के बलात्कार से कोई लड़की गर्भवती नहीं होती, ये सब फिल्मों में ही होता है… इस के जरूर किसी से शारीरिक संबंध हैं.’’

यह सुन माधुरी का माथा ठनका कि अरे, जिस तरह विक्रांत को उस के चेहरे के हावभाव से नेहा के लिए परेशान देख रही हूं. वह सामान्य नहीं है. मैं तो सोच रही थी कि कितना भला है जो एक लड़की की मदद कर रहा है, पर अब डाक्टर के कहने पर मुझे कुछ शक हो रहा है कि यह क्यों नेहा को ले कर इतना परेशान है… तो क्या… उस ने मुझे अपनी परेशानी से मुक्ति पाने के लिए मुहरा बनाया है… उसे पता है कि मेरी एक डाक्टर फ्रैंड भी है… और यह भी जानता है कि मैं उस की मदद के लिए हमेशा तत्पर हूं. वह मन ही मन बुदबुदाई और फिर गौर से नेहा और विक्रांत का चेहरा पढ़ने लगी.

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गर्भपात होते ही विक्रांत का तना चेहरा कितना रिलैक्स लग रहा था. उस के बाद वह माधुरी को साधिकार यह कह कर गायब हो गया था कि वह उसे उस के घर पहुंचा दे और किसी को कुछ न बताए. माधुरी का शक यकीन में बदल गया था.

माधुरी ने अपनी डाक्टर फ्रैंड की मदद से नेहा से हकीकत उगलवाने की ठान ली.

डाक्टर ने कड़े शब्दों में पूछा, ‘‘सच बता कि यह किस का बच्चा था?’’

उस ने पहले तो कुछ नहीं बताया. बस यह कहती रही कि कालेज के रास्ते में किसी ने उस के साथ बलात्कार किया था. लेकिन जब माधुरी ने उस से कहा कि सच बोलेगी तो वह उस की मदद करेगी नहीं तो उस की मां को सब बता देगी, तब वह धीरेधीरे कुछ रुकरुक कर बोली, ‘‘यह बच्चा विक्रांत अंकल का था. मैं उन की बातों से प्रभावित हो कर उन्हें चाहने लगी थी. उन्होंने मुझ से विवाह का वादा कर के मुझे समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया,’’ और वह रोने लगी.

‘‘उफ, अंकल के रिश्ते को ही विक्रांत ने दागदार कर दिया. कितना विश्वासघात किया उस ने उस परिवार के साथ, जिस ने उस पर विश्वास कर के अपने घर में प्रवेश करने की अनुमति दी. जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया,’’ माधुरी यह अप्रत्याशित बात सुन कर बिलकुल सकते की हालत में थी. उस के दिमाग में विचारों का तूफान उठ रहा था. उस का मन विक्रांत के प्रति घृणा से भर उठा.

माधुरी का उतरा चेहरा देख कर उस की डाक्टर फ्रैंड थोड़ा मुसकराई और फिर बोली, ‘‘तू तो ऐसे परेशान है जैसे तेरे साथ ही कुछ गलत हुआ है?’’

‘‘तू सही सोच रही है…मेरा भी मानसिक बलात्कार उस ने किया है. अब मेरी आंखें खुल चुकी हैं. इतना गिरा हुआ इंसान कोई हो सकता है, मैं सोच भी नहीं सकती. मैं ने अपने जीवन के 3 साल उस के जाल में फंस कर बरबाद कर दिए.’’ माधुरी ने उसे भारी मन से बताया.

प्रतिक्रियास्वरूप उसे मुसकराते देख कर उसे अचंभा हुआ और फिर प्रश्नवाचक नजरों से उस की ओर देखने लगी तो वह बोली, ‘‘मैं सारी कहानी कल ही तुम तीनों के हावभाव देख कर समझ गई थी. आखिर इस लाइन में अनुभव भी कोई चीज है. तुझे पता है मेरे पति नील मनोवैज्ञानिक हैं. उन से मुझे बहुत जानकारी मिली है. ऐसे लोग बिल्ली की तरह रास्ता देख लेते हैं और वहीं शिकार के लिए मंडराते रहते हैं, शारीरिक शोषण के लिए कुंआरी लड़कियों को विवाह का झांसा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं…विवाहित से ऐसी आशा करना खतरनाक होता है, इसलिए उन्हें मानसिक रूप से सम्मोहित कर के अपने टाइम पास का अड्डा बना लेते हैं…

‘‘उन्हें पता होता है कि स्त्रियां अपनी प्रशंसा की भूखी होती हैं, इसलिए इस अस्त्र का सहारा लेते हैं. ऐसे रिश्ते दलदल के समान होते हैं. जिस से अगर कोई समय रहते नहीं ऊबरे तो धंसता ही चला जाता है. शुक्र है जल्दी सचाई सामने आ गई, वरना….’’ माधुरी अवाक उस की बातें सुनती रही और उस की बात पूरी होने से पहले ही उस के गले से लिपट कर रोने लगी.

माधुरी ने थोड़ा संयत हो कर अपनी आवाज को नम्र कर के नेहा से पूछा, ‘‘जब इतना कुछ हो गया है तो तुम्हारा विवाह उस से करवा देते हैं. तुम्हारी मां से बात करती हूं.’’

‘‘नहीं…मैं उन से नफरत करती हूं, उन्होंने नाटक कर के मुझे फंसाया है. उन के और लड़कियों से भी संबंध हैं…उन्होंने मुझे खुद बताया है, प्लीज आप किसी को मत बताइएगा. उन्होंने कहा है कि यदि मैं किसी को बताऊंगी तो वे मेरे फोटो दिखा कर मुझे बदनाम कर देंगे,’’ और उस ने रोते हुए हाथ जोड़ दिए.

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहोगी वैसा ही होगा,’’ माधुरी ने उसे सांत्वना दी.

अस्पताल से माधुरी नेहा को अपने घर ले आई, उस के आराम का पूरा ध्यान रखा. फिर उसे समझाते हुए बोली, ‘‘तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है, मैं हूं न. तुम्हें अपनी मां को सबकुछ बता देना चाहिए ताकि उस का तुम्हारे घर आना बंद हो जाए. नहीं तो वह हमेशा तुम्हें ब्लैममेल करता रहेगा. वह तुम्हारे फोटो दिखाएगा तो उस का भी तो नाम आएगा. फिर उस की नौकरी चली जाएगी, इसलिए वह कदापि ऐसा कदम नहीं उठा सकता. सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए तुम्हें धमका रहा है. तुम अपनी मां से बात नहीं कर सकती तो मैं करती हूं.’’ माधुरी से अधिक उस की पीड़ा को और कौन समझ सकता था.

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माधुरी की बात सुन कर नेहा को बहुत हिम्मत मिली. वह उस से लिपट कर देर तक रोती रही.

माधुरी ने नेहा की मां को फोन कर के अपने घर बुलाया और फिर सारी बात बता दी. पूरी बात सुन कर उस की मां की क्या हालत हुई यह तो भुक्तभोगी ही समझ सकता है. माधुरी के समझाने पर उन्होंने नेहा को कुछ नहीं कहा पर उन को क्या पता कि जब वह खुद ही उस की बातों के जाल में फंस गई तो नेहा की क्या बात…

वे रोते हुए बोलीं, ‘‘आप प्लीज किसी को मत बताइएगा, नहीं तो इस से शादी कौन करेगा? आप का एहसान मैं जिंदगीभर नहीं भूलूंगी.

अब मेरे घर के दरवाजे उस के लिए हमेशा के लिए बंद.’’

माधुरी ने उन्हें आश्वस्त कर के बिदा किया. उन के जाने के बाद वह पलंग पर लेट कर फूटफूट कर बच्चों की तरह रोने लगी. पूरे दिन का गुबार आंसुओं में बह गया. अब वह बहुत हलका महसूस करने लगी. उसे लगा कि उस के जीवन पर छाया कुहरा छंट गया है, सूर्य की किरणें उस के लिए नया सबेरा ले कर आई हैं.

अब माधुरी शाम को अपने पति मनोहर के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी. पति के आते ही उस ने सारी बात बताते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, मैं भटक गई थी.’’

‘‘तुम्हारी इस में कोई गलती नहीं. मैं जानता था देरसबेर तुम्हारी आंखें जरूर खुलेंगी. देखो विवाह को एक समझौता समझ कर चलने में ही भलाई है. हर चीज चाही हुई किसी को नहीं मिलती. मुझे भी तो तुम्हारी यह मोटी नाक नहीं अच्छी लगती तो क्या मैं सुंदर नाक वाली ढूंढ़ूं…’’

अभी उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर पति के गले से लिपट कर खुद को बहुत सुरक्षित महसूस कर रही थी. अगले दिन विक्रांत मनोहर के साथ आया. माधुरी उस के सामने नहीं आई तो वह सारी स्थिति समझ थोड़ी देर बाद लौट गया.

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वर्चुअल रोमांस करें लवलाइफ अनलौक

बैंगलुरु का राहुल बेसब्री से औफिस खुलने का इंतजार कर रहा है ताकि वह अपनी औफिस क्रश पूजा को देख सके. हर दिन बस यही सोचता है कि बस जल्दी से कोरोना खत्म हो और वह पूजा को अपने दिल की बात बता सके.’’

कुछ ऐसा ही हाल दिल्ली के रोहित का भी है. रोहित को वैसे तो किसी सीरियस रिलेशनशिप में रुचि नहीं है, लेकिन उसे लड़कियों से फ्लर्ट करने में काफी मजा आता है.’’

जी हां, यह हाल सिर्फ राहुल और रोहित का ही नहीं, बल्कि ऐसे और कई युवक व पुरुष भी हैं जो अपने प्यार, अपने क्रश से मिलने को बेताब हैं. असल में कोरोना यंग लकड़ेलड़कियों व पुरुषों के लिए मुसीबत ले कर आया है. अब दिल पर किसी का जोर तो चलता नहीं, लेकिन कोरोना को किसी के दिल के हाल से क्या मतलब. ऐसे में जिंदगी बेबस बन कर रह गई है. अगर आप के …

आप अपने दिल की बात अपने पार्टनर तक पहुंचा सकते हैं, उस के साथ समय बिता कर मस्ती कर सकते हैं. कैसे, आइए, हम बताते हैं:

हैप्पन डेटिंग ऐप

यह काफी लोकप्रिय डेटिंग ऐप्प है, जिस की मदद से आप अपने आसपास के लोगों से दोस्ती का हाथ बढ़ा कर उन के साथ जीभर कर रोमांस कर सकते हैं. यह एक लोकेशन बेस्ड ऐप्प है, जिस की मदद से आप अपने आसपास के लोगों से ही दोस्ती कर सकते हैं. इस ऐप्प से जुड़ने के लिए आप को इस पर अपना अकाउंट बनाना होता है, फिर लोगिन करने के लिए आप को अपनी फेसबुक आईडी से ही जुड़ना होगा, जिस के माध्यम से आप इस ऐप्प में लौगिन कर पाएंगे.

इस ऐप्प की खास बात यह है कि यह सिर्फ आप के फेसबुक पेज से आप का नाम व उम्र ले कर आप का अकाउंट बना देगा. फिर आप इस में अपनी कुछ खास पसंद डाल सकते हैं, जिस से आप को उसी तरह के प्रोफाइल आने लगते हैं.

आप के पास लाइक और डिसलाइक करने के दोनों औप्शंस होते हैं. लेकिन इस के लिए आप को अपने फोन का जीपीएस औन करना होता है, क्योंकि यह एक लोकेशन बेस्ड ऐप्प जो है. प्रोफाइल पसंद आने पर आप जीभर कर उस के साथ डेट करें. हो सकता है यह डेट आप का हमसफर चुनने में भी आप की मदद करे. वैसे रोमांस का मौका तो मिल ही जाएगा.

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आर्केक्यूपिड ऐप

इसे ओकेसी के नाम से भी जानते हैं. इस ऐप्प पर अकाउंट बनाने के लिए आप को ढेरों प्रश्नों के जवाब देने होते हैं, जिस से आप को अपने जैसा पार्टनर मिलने में काफी आसानी हो जाती है, क्योंकि यह आप के प्रश्नों के उत्तर देने मात्र से सम झ जाता है कि आप अपने लिए किस तरह के पार्टनर को सर्च कर रहे हैं. आप चाहें तो सर्च फिल्टर्स की मदद से भी पार्टनर सर्च कर सकते हैं. फिर वर्चुअल डेटिंग के बाद अगर चीजें सही लगती हैं तो सही समय आने पर मौका देख कर आमनेसामने मिल कर अपनी फ्रैंडशिप को और गहरा बनाएं.

ट्रूली मैडली ऐप

इसे एक ट्रस्टी डेटिंग ऐप कहा जाए तो कम न होगा, क्योंकि इस में फेक आईडी नहीं होने के कारण धोखा मिलने के चांसेज काफी कम रहते हैं. यह ऐप्प आप का अकाउंट बनाने के लिए आईडी प्रूफ मांगता है. अगर आप ने दे दिया तो आप इस ऐप का मजा ले सकते हैं वरना आप को इस ऐप को यूज करने की इजाजत नहीं होगी. इस ऐप में आप को इस बात का डर नहीं होगा कि कोई आप के फोटो के साथ छेड़छाड़ करेगा, क्योंकि इस में आप फोटो को डाउनलोड नहीं कर सकते. बस फ्रैंडशिप होने के बाद आप की बातचीत, आप के शेयरिंग सिर्फ आप के बीच ही रहेगी यानी यह ऐप आप को सच्चे प्यार से मिलवाने के साथसाथ रोमांस का भी मौका देगा.

टिंडर ऐप

टिंडर ऐप को कौन नहीं जानता, क्योंकि यह भारत में का पहला ऐप जो है, जो डिजिटल डेटिंग के रूप में उभर कर सामने आया था. आज लाखों लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बना चुका है. इस ऐप पर रेजिटेर करने के लिए आप को अपनी फेसबुक आईडी से लौगिन करना होगा. फिर आप का इस पर खुद अकाउंट बन जाएगा. आप को इस के लिए अपने फोन की लोकेशन को औन करना होगा ताकि आप को अपने आसपास के लोगों के बारे में जानकारी मिल सके. इस ऐप की खास बात यह है कि आप इस में सर्च फिल्टर औप्शन के आधार पर भी सर्च कर सकते हैं. इस में अगर आप को प्रोफाइल पसंद आया है तो आप स्वाइप राइट कर सकते हैं नहीं तो स्वाइप लेफ्ट. स्वाइप राइट करते ही आप अपने पार्टनर के साथ चैट का लुत्फ उठा सकते हैं. बस ध्यान रखें कि आप इन ऐप्स पर अपनी अट्रैक्टिव फोटो लगाएं, क्योंकि पहली नजर में कोई आप के प्रति अट्रैक्ट आप के फोटो को देख कर ही होगा. तो हुए न कमाल के ऐप्स.

रोमांस के लिए इंस्ट्राग्राम भी बैस्ट औप्शन

अगर आप किसी के साथ रोमांस करना चाहते हैं तो इंस्ट्राग्राम आप के लिए बैस्ट औप्शन है. बस इस पर आप को अपना अकाउंट बनाना होगा और फिर उस पर अपने अट्रैक्टिव फोटो लगा कर बस फौलो करना शुरू कर दें. दोस्ती करने की कोशिश करें और जब दोस्ती हो जाए तो बातचीत का सिलसिला शुरू कर दें. इस प्लेटफौर्म के जरीए आप आराम से अपने दोस्त से बात कर सकते हैं और किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होगी. घर वालों को लगेगा कि आप सोशल मीडिया पर बिजी हैं, लेकिन आप तो यहां आराम से चैटिंग का मजा ले रहे हैं. इस की खास बात यह है कि अगर आप को कोई अच्छा नहीं लगा तो आप अपने अकाउंट को भी डीएक्टिवेट कर सकते हैं.

औनलाइन डेटिंग के फायदे काम के बीच भी डेटिंग का मौका

अकसर औफिस में जब भी किसी को किसी से प्यार होता है, तो हर समय मन करता है कि उस के साथ ही समय बिताएं. काम के बीच में भी कई बार उस के पास जाने को दिल करता है और जब मन इसे रोक नहीं पाता, तो किसी बहाने से उस की सीट के आसपास ही घूमना शुरू कर देते हैं, जिस से न सिर्फ दूसरों की नजर में आते हैं, बल्कि काम की प्रोडक्टिविटी पर भी असर पड़ता है, जबकि औनलाइन डेटिंग में किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होती और मन की सारी ख्वाइशें भी पूरी हो जाती हैं. यानी काम भी और काम के बीच मस्ती भी.

जब मन करे तब छोड़ दो

औफिस में प्रेम करने का मतलब अगर सफल हुआ तो ठीक वरना ब्रेकअप होने पर दोनों पार्टनर ही एकदूसरे पर कीचड़ उछालने लग जाते हैं. ऐसे माहौल में काम करना काफी मुश्किल हो जाता है. कई बार तो बात इतनी बिगड़ जाती है कि नौकरी छोड़ने तक की नौबत आ जाती है. लेकिन औनलाइन प्रेम आप को इन सब  झं झटों से दूर रखता है. अगर आप के पार्टनर के साथ विचार मेल नहीं खाते तो आप उसे ब्लौक भी कर सकते हैं.

एकसाथ कइयों से डेटिंग

असल में जब हम एकसाथ कइयों से डेटिंग करते हैं तो हम काफी लंबे समय तक इस  झूठ को छिपा नहीं रख पाते और कई बार बातबात में सच बाहर आ ही जाता है या फिर पार्टनर के फोन को देखने भर से ही चीजें सम झ आ जाती हैं. ऐसे में लंबे समय तक रिश्ते में धोखा देना नहीं चल पाता. लेकिन औनलाइन डेटिंग में इस तरह के  झूठ का पर्दाफाश होना इतना आसान नहीं होता. ऐसे में आप एकसाथ कइयों के साथ रिलेशनशिप में रह कर अपनी लाइफ को रोमांटिक व मस्त बना सकती हैं.

सैक्स पर खुल कर बातें

चाहे हमारा रिलेशन कितना भी करीब क्यों न हो फिर भी आमनेसामने होने पर इस तरह की बातें करने में थोड़ी  झिझक तो होती ही है. लेकिन औनलाइन डेटिंग में आप खुल कर पार्टनर से इस तरह की बातें कर के व उस का फील ले कर मजा ले सकते हो. उस की इन बातों में दिलचस्पी व वह आप को कितना मजा दे सकता है यह आप को उस की बातों से पता चल जाएगा. इस से आप को यह निर्णय लेने में आसानी होगी कि वह आप के लायक है या नहीं, क्योंकि अगर रोमांस नहीं हो या फिर पार्टनर की बातों में वह सैक्सीपन न हो तो रिश्ते में वह बात नहीं आ पाती.

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शौपिंग की डिमांड से छुटकारा

अधिकांश लड़कियां फ्रैंडशिप ही इसलिए करती हैं ताकि उन का पार्टनर उन्हें शौपिंग करवा सके. उन की हर ख्वाहिश को पूरा कर सके और जरा सा मना करने पर या तो लड़ाई हो जाती है या फिर ब्रेकअप. लेकिन औनलाइन डेटिंग में आप के सामने पार्टनर की इस तरह की ख्वाहिशों को पूरा करने की डिमांड नहीं होती है. बस आप को यही तो कहना है कि जब मिलेंगे तब ये दूंगा. इस से पार्टनर भी खुश और आप की पौकेट भी खाली होने से बच जाएगी और कभीकभार औनलाइन शौपिंग करवानी भी पड़े तो कोई फर्क नहीं पड़ता.

अगर आप अपनी औनलाइन डेटिंग में सफल होना चाहते हैं तो इन बातों का खास खयाल रखें:

बातबात पर रूठें नहीं

रिश्ता चाहे औफलाइन हो या औनलाइन, पार्टनर यही चाहते हैं कि दोनों एकदूसरे की बात को सम झें, बात पसंद नहीं आने पर रूठें नहीं, बल्कि प्यार से सम झाएं, इस से रिश्ता लंबे समय तक टिका रहता है, साथ ही रिश्ते में विश्वास बना रहने के साथसाथ पार्टनर एकदूसरे से बिना डरे अपने मन की बात भी कर पाते हैं. इसलिए बातबात पर रूठने की आदत को आप को छोड़ना पड़ेगा.

विश्वास बनाए रखें

कोई भी रिश्ता हमेशा विश्वास की बुनियाद पर टिका होना चाहिए. आप भले ही औनलाइन डेटिंग का मजा ले रहे हों, लेकिन आप हमेशा अपनी रियल पर्सनैलिटी ही सामने लाएं. इस से आप की पार्टनर आप के रियल पर्सनैलिटी को सम झ पाएगा और अगर यह रिश्ता आगे बढ़ता है तो ज्यादा दिक्कतें भी नहीं होंगी. लेकिन अगर आप का रिश्ता  झूठ की बुनियाद पर टिका होगा तो सच सामने आने पर रिश्ते में दरार भी पड़ सकती है. इसलिए संभल जाएं.

कम्युनिकेशन न टूटने पाए

भले ही आप काफी बिजी हों, फिर भी पार्टनर से दिन में एक बार फुरसत के क्षणों में बात जरूर करें. उसे अपने रूटीन के बारे में भी बताएं, इस से उसे लगेगा कि आप उसे इग्नोर नहीं कर रहे, क्योंकि अगर बातों का तार टूटा तो औनलाइन फ्रैंडशिप को भी टूटने में देर नहीं लगेगी.

पार्टनर की परेशानी को अपना सम झें

कहते हैं न कि सुख के सब साथी होते हैं, लेकिन दुख का कोई नहीं और असल में दोस्ती की पहचान दुख के समय ही होती है. ऐसे में अगर आप का पार्टनर दुखी है तो उसे प्यार से सम झाएं, उस के दर्द को अपना सम झें. आप के इस व्यवहार से उसे आप से अपनापन महसूस होगा और अगर आप ने उसे ऐसे समय में इग्नोर किया तो रिश्ता मजबूत नहीं बन पाएगा.

दूसरी लड़कियों की तारीफ करने से बचें

अकसर लड़कियां अपने सामने दूसरी लड़कियों की तारीफ बरदाश्त नहीं करती हैं और अगर उन का पार्टनर बारबार इसी बात को दोहराता है तो उन के बीच लड़ाई झगड़े तक की नौबत आ जाती है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपने बीच किसी तीसरे को नहीं आने दें, बल्कि जितना हो सके एकदूसरे पर प्यार की बारिश कर के करीब आएं. इस तरह आप इस मुश्किल समय में भी रोमांस कर सकते हैं.

तो फिर अब औफिस खुलने का इंतजार क्यों करना, खुल कर औनलाइन रोमांस करिए.

पास होने का एहसास भी

भले ही आप कोरोना के समय में एकसाथ सिनेमाहौल में जा कर मूवी नहीं देख पा रहे हैं, मौल में नहीं घूम पा रहे हैं, लेकिन आप यहां दूर हो कर भी एकसाथ ऐंजौय कर सकते हैं. तो अब आप सोच रहे होंगे कि भला दूर हो कर भी एकसाथ ऐंजौय कैसे? तो चलिए हम आप को बताते हैं कि आप जूम, हैंगआउट व स्काइप के माध्य से एकसाथ स्क्रीन शेयर कर के मूवी देख सकते हैं, गाने सुन सकते हैं. यकीन मानिए जब आप एकदूसरे को सौंग्स के लिंक भेज कर एकसाथ सौंग व मूवी देखने का लुत्फ उठाएंगे तो आप का दिल एकदूसरे के लिए जरूर धड़केगा, साथ ही आप औनलाइन ड्रैस पसंद कर के उन का रिएक्शन भी जान सकते हैं. इस से आप एकदूसरे की पसंदनापसंद भी जान पाएंगे.

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कौन चरित्रहीन: सालों बाद आभा ने बच्चों की कस्टडी क्यों मांगी?

उसके हाथों में कोर्ट का नोटिस फड़फड़ा रहा था. हत्प्रभ सी बैठी थी वह… उसे एकदम जड़वत बैठा देख कर उस के दोनों बच्चे उस से चिपक गए. उन के स्पर्श मात्र से उस की ममता का सैलाब उमड़ आया और आंसू बहने लगे. आंसुओं की धार उस के चेहरे को ही नहीं, उस के मन को भी भिगो रही थी. न जाने इस समय वह कितनी भावनाओं की लहरों पर चढ़उतर रही थी. घबराहट, दुख, डर, अपमान, असमंजस… और न जाने क्याक्या झेलना बाकी है अभी. संघर्षों का दौर है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. जब भी उसे लगता कि उस की जिंदगी में अब ठहराव आ गया है, सबकुछ सामान्य हो गया है कि फिर उथलपुथल शुरू हो जाती है.

दोनों बच्चों को अकेले पालने में जो उस ने मुसीबतें झेली थीं, उन के स्थितियों को समझने लायक बड़े होने के बाद उस ने सोचा था कि वे कम हो जाएंगी और ऐसा हुआ भी था. पल्लवी 11 साल की हो गई थी और पल्लव 9 साल का. दोनों अपनी मां की परेशानियों को न सिर्फ समझने लगे थे वरन सचाई से अवगत होने के बाद उन्होंने अपने पापा के बारे में पूछना भी छोड़ दिया था. पिता की कमी वे भी महसूस करते थे, पर नानी और मामा से उन के बारे में थोड़ाबहुत जानने के बाद वे दोनों एक तरह से मां की ढाल बन गए थे. वह नहीं चाहती थी कि उस के बच्चों को अपने पापा का पूरा सच मालूम हो, इसलिए कभी विस्तार से इस बारे में बात नहीं की थी. उसे अपनी ममता पर भरोसा था कि उस के बच्चे उसे गलत नहीं समझेंगे.

कागज पर लिखे शब्द मानो शोर बन कर उस के आसपास चक्कर लगा रहे थे, ‘चरित्रहीन, चरित्रहीन है यह… चरित्रहीन है इसलिए इसे बच्चों को अपने पास रखने का भी हक नहीं है. ऐसी स्त्री के पास बच्चे सुरक्षित कैसे रह सकते हैं? उन्हें अच्छे संस्कार कैसे मिल सकते हैं? इसलिए बच्चों की कस्टडी मुझे मिलनी चाहिए… एक पिता होने के नाते मैं उन का ध्यान ज्यादा अच्छी तरह रख सकता हूं और उन का भविष्य भी सुरक्षित कर सकता हूं…’

चरित्रहीन शब्द किसी हथौड़े की तरह उस के अंतस पर प्रहार कर रहा था. मां को रोता देख पल्लवी ने कोर्ट का कागज मां के हाथों से ले लिया. ज्यादा कुछ तो समझ नहीं आया. पर इतना अवश्य जान गई कि मां पर इलजाम लगाए जा रहे हैं.

‘‘पल्लव तू सोने जा,’’ पल्लवी ने कहा तो वह बोला, ‘‘मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं. सब जानता हूं. हमारे पापा ने नोटिस भेजा है और वे चाहते हैं कि हम उन के पास जा कर रहें. ऐसा कभी नहीं होगा. मम्मी आप चिंता न करें. मैं ने टीवी में एक सीरियल में देखा था कि कैसे कोर्ट में बच्चों को लेने के लिए लड़ाई होती है. मैं नहीं जाऊंगा पापा के पास. दीदी आप भी नहीं जाना.’’

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पल्लव की बात सुन कर वह हैरान रह गई. सही कहते हैं लोग कि वक्त किसी को भी परिपक्व बना सकता है.

‘‘मैं भी नहीं जाऊंगी उन के पास और कोर्ट में जा कर कह दूंगी कि हमें मम्मी के पास ही रहना है. फिर कैसे ले जाएंगे वे हमें. मुझे तो उन की शक्ल तक याद नहीं. इतने सालों तक एक बार भी हम से मिलने नहीं आए. फिर अब क्यों ड्रामा कर रहे हैं?’’ पल्लवी के स्वर में रोष था.

कोई गलती न होने पर भी वह इस समय बच्चों से आंख नहीं मिला पा रही थी. छि: कितने गंदे शब्द लिखे हैं नोटिस में… किसी तरह उस ने उन दोनों को सुलाया.

रात की कालिमा परिवेश में पसर चुकी थी. उसे लगा कि अंधेरा जैसे धीरेधीरे उस की ओर बढ़ रहा है. इस बार यह अंधेरा उस के बच्चों को छीनने के लिए आ रहा है. भयभीत हो उस ने बच्चों की ओर देखा… नहीं, वह अपने बच्चों को अपने से दूर नहीं होने देगी… अपने जिगर के टुकड़ों को कैसे अलग कर सकती है वह?

तब कहां गया था पिता का अधिकार जब उसे बच्चों के साथ घर छोड़ने पर मजबूर किया गया था? बच्चों की बगल में लेट कर उस ने उन के ऊपर हाथ रख दिया जैसे कोई सुरक्षाकवच डाल दिया हो.

उस के दिलोदिमाग में बारबार चरित्रहीन शब्द किसी पैने शीशे की तरह चुभ रहा था. कितनी आसानी से इस बार उस पर एक और आरोप लगा दिया गया है और विडंबना तो यह है कि उस पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया गया है जिसे कभी झल्ली, मूर्ख, बेअक्ल और गंवारकहा जाता था. आभा को लगा कि नरेश का स्वर इस कमरे में भी गूंज रहा है कि तुम चरित्रहीन हो… तुम चरित्रहीन हो… उस ने अपने कानों पर हाथ रख लिए. सिर में तेज दर्द होने लगा था.

समय के साथ शब्दों ने नया रूप ले लिया, पर शब्दों की व्यूह रचना तो बरसों पहले ही हो चुकी थी. अचानक ‘तुम गंवार हो… तुम गंवार हो…’ शब्द गूंजने लगे… आभा घिरी हुई रात के बीच अतीत के गलियारों में भटकने लगी…

‘‘मांबाप ने तुम जैसी गंवार मेरे पल्ले बांध मेरी जिंदगी खराब कर दी है. तुम्हारी जगह कोई पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा बीवी होती तो मुझे कितनी मदद मिल जाती. एक की कमाई से घर कहां चलता है. तुम्हें तो लगता है कि घर संभाल रही हो तो यही तुम्हारी बहुत बड़ी क्वालिफिकेशन है. अरे घर का काम तो मेड भी कर सकती है, पर कमा कर तो बीवी ही दे सकती है,’’ नरेश हमेशा उस पर झल्लाता रहता.

आभा ज्यादातर चुप ही रहती थी. बहुत पढ़ीलिखी न सही पर ग्रैजुएट थी. बस आगे कोई प्रोफैशनल कोर्स करने का मौका ही नहीं मिला. कालेज खत्म होते ही शादी कर दी गई. सोचा था शादी के बाद पढ़ेगी, पर सासससुर, देवर, ननद और गृहस्थी के कामों में ऐसी उलझी कि अपने बारे में सोच ही नहीं पाई. टेलैंट उस में भी है. मूर्ख नहीं है. कई बार उस का मन करता कि चिल्ला कर एक बार नरेश को चुप ही करा दे, पर सासससुर की इज्जत का मान रखते हुए उस ने अपना मुंह ही सी लिया. घर में विवाद हो, यह वह नहीं चाहती थी.

मगर मन ही मन ठान जरूर लिया था कि वह पढ़ेगी और स्मार्ट बन कर दिखाएगी…

स्मार्ट यानी मौडर्न और वह भी कपड़ों से…

ऐसी नरेश की सोच थी… पर वह स्मार्टनैस सोच में लाने में विश्वास करती थी. जल्दीजल्दी 2 बच्चे हो गए, तो उस की कोशिशें फिर ठहर गईं. बच्चों की अच्छी परवरिश प्राथमिकता बन गई. मगर खर्चे बढ़े तो नरेश की झल्लाहट भी बढ़ गई. बहन की शादी पर लिया कर्ज, भाई की भी पढ़ाई और मांबाप की भी जिम्मेदारी… गलती उस की भी नहीं थी. वह समझ रही थी इसलिए उस ने सिलाई का काम करने का प्रस्ताव रखा, ट्यूशन पढ़ाने का प्रस्ताव रखा पर गालियां ही मिलीं.

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‘‘कोई सौफिस्टिकेटेड जौब कर सकती हो तो करो… पर तुम जैसी गंवार को कौन नौकरी देगा. बाहर निकल कर उन वर्किंग वूमन को देखो… क्या बढि़या जिंदगी जीती हैं. पति का हाथ भी बंटाती हैं और उन की शान भी बढ़ाती हैं.’’

आभा सचमुच चाहती थी कि कुछ करे. मगर वह कुछ सोच पाती उस से पहले ही विस्फोट हो गया.

‘‘निकल जा मेरे घर से… और अपने इन बच्चों को भी ले जा. मुझे तेरी जैसी गंवार की जरूरत नहीं… मैं किसी नौकरीपेशा से शादी करूंगा. तेरी जैसी फूहड़ की मुझे कोई जरूरत नहीं.’’

सकते में आ गई थी वह. फूहड़ और गंवार मैं हूं कि नरेश… कह ही नहीं पाई वह.

सासससुर के समझाने पर भी नरेश नहीं माना. उस के खौफ से सभी डरते थे. उस के चेहरे पर उभरे एक राक्षस को देख उस समय वह भी डर गई थी. सोचा कुछ दिनों में जब उस का गुस्सा शांत हो जाएगा, वह वापस आ जाएगी. 2 साल की पल्लवी और 1 साल के पल्लव को ले कर जब उस ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा था तब उसे क्या पता था कि नरेश का गुस्सा कभी शांत होगा ही नहीं.

मायके में आ कर भाईभाभी की मदद व स्नेह पा कर उस ने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट की पढ़ाई की. फिर जब एक कंपनी में उसे नौकरी मिली तो लगा कि अब उस के सारे संघर्ष खत्म हो गए हैं. बच्चों को अच्छे स्कूल में डाल दिया. खुद का किराए पर घर ले लिया.

इतने सालों बाद फिर से यह झंझावात कहां से आ गया. यह सच है कि नरेश ने तलाक नहीं लिया था, पर सुनने में आया था कि किसी पैसे वाली औरत के साथ ऐसे ही रह रहा था. सासससुर गांव चले गए थे और देवर अपना घर बसा कर दूसरे शहर में चला गया था. फिर अब बच्चे क्यों चाहिए उसे…

वह इस बार हार नहीं मानेगी… वह लड़ेगी अपने हक के लिए. अपने बच्चों की खातिर. आखिर कब तक उसे नरेश के हिसाब से स्वयं को सांचे में ढालते रहना होगा. उसे अपने अस्तित्व की लड़ाई तो लड़नी ही होगी. आखिर कैसे वह जब चाहे जैसा मरजी इलजाम लगा सकता है और फिर किस हक से… अब वह तलाक लेगी नरेश से.

अदालत में जज के सामने खड़ी थी आभा. ‘‘मैं अपने बच्चों को किसी भी हालत में इसे नहीं सौंप सकती हूं. मेरे बच्चे सिर्फ मेरे हैं. पिता का कोई दायित्व कब निभाया है इस आदमी ने…’’

‘‘तुम्हारी जैसी महत्त्वाकांक्षी, रातों को देर तक बाहर रहने वाली, जरूरत से ज्यादा स्मार्ट और मौडर्न औरत के साथ बच्चे कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? पुरुषों के साथ मीटिंग के बहाने बाहर जाती है, उन से हंसहंस कर बातें करती है… मैं ने इसे छोड़ दिया तो क्या यह अब किसी भी आदमी के साथ घूमने के लिए आजाद है? जज साहब, मैं इसे अभी भी माफ करने को तैयार हूं. यह चाहे तो वापस आ सकती है. मैं इसे अपना लूंगा.’’

‘‘नहीं. कभी नहीं. तुम इसलिए मुझे अपनाना चाहते हो न, क्योंकि मैं अब कमाती हूं. तुम्हें उस अमीर औरत ने बेइज्जत कर के बाहर निकाल दिया है और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें कमा कर खिलाऊं? नरेश मैं तुम्हारे हाथों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं हूं और न ही तुम्हें बच्चों की कस्टडी दूंगी. हां, तुम से तलाक जरूर लूंगी.

‘‘जज साहब अगर बच्चों को अच्छी जिंदगी देने के लिए मेहनत कर पैसा कमाना चारित्रहीनता की निशानी है तो मैं चरित्रहीन हूं. जब मैं घर की देहरी के अंदर खुश थी तो मुझे गंवार कहा गया, जब मैं ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा तो मैं चरत्रिहीन हो गई. आखिर यह कैसी पुरुष मानसिकता है… अपने हिसाब से तोड़तीमरोड़ती रहती है औरत के अस्तित्व को, उस की भावनाओं को अपने दंभ के नीचे कुचलती रहती है… मुझे बताइए मैं चरित्रहीन हूं या नरेश जैसा पुरुष?’’ आभा के आंसू बांध तोड़ने को आतुर हो उठे थे. पर उस ने खुद को मजबूती से संभाला.

‘‘मैं तुम्हें तलाक देने को तैयार नहीं हूं. तुम भिजवा दो तलाक का नोटिस. चक्कर लगाती रहना फिर अदालत के बरसों तक,’’ नरेश फुफकारा था.

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केस चलता जा रहा था. पल्लवी और पल्लव को आभा को न चाहते हुए भी केस में घसीटना पड़ा. जज ने कहा कि बच्चे इतने बड़े हैं कि उन से पूछना जरूरी है कि वे किस के साथ रहना चाहते हैं.

‘‘हम इस आदमी को जानते तक नहीं हैं. आज पहली बार देख रहे हैं. फिर इस के साथ कैसे जा सकते हैं? हम अपनी मां के साथ ही रहेंगे.’’

अदालत में 2 साल तक केस चलने के बाद जज साहब ने फैसला सुनाया, ‘‘नरेश को बच्चों की कस्टडी नहीं मिल सकती और आभा पर मानसिक रूप से अत्याचार करने व उस की इज्जत पर कीचड़ उछालने के जुर्म में उस पर मानहानि का मुकदमा चलाया जाए. ऐसी घृणित सोच वाले पुरुष ही औरत की अस्मिता को लहूलुहान करते हैं और समाज में उसे सम्मान दिलाने के बजाय उस के सम्मान को तारतार कर जीवन में आगे बढ़ने से रोकते हैं. आभा को परेशान करने के एवज में नरेश को उन्हें क्व5 लाख का हरजाना भी देना होगा.’’

आभा ने नरेश के आगे तलाक के पेपर रख दिए. बुरी तरह से हारे हुए नरेश के सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था. दोनों बच्चों के लिए तो वह एक अजनबी ही था. कांपते हाथों से उस ने पेपर्स पर साइन कर दिए. अदालत से बाहर निकलते हुए आभा के कदमों में एक दृढ़ता थी. दोनों बच्चों ने उसे कस कर पकड़ा था.

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सुबह 10 बजे- मेघा की मां क्यों थी शादी के खिलाफ

मेघा आज फिर जाम में फंस गई थी. औफिस से आते समय उस के कई घंटे ऐसे ही बरबाद हो जाते हैं, प्राइवेट नौकरी में ऐसे ही इतनी थकान हो जाती है, उस पर इतनी दूर स्कूटी से आनाजाना.

मेघा लोअर व टौप ले कर बाथरूम में घुस गई, कुछ देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आई. उस के कानों में अभी भी सड़क की गाडि़यों के हौर्न गूंज रहे थे. तभी उस ने लौबी में अपनी मां को कुछ पैकेट फैलाए देखा, वे बड़ी खुश दिख रही थीं. मेघा भी उन के पास बैठ गई. मम्मी उत्साह से पैकेट से साड़ी निकाल कर उसे

दिखाने लगीं, ‘‘यह देखो अब की अच्छी साड़ी लाई हूं.’’ पर मम्मी अभी कुछ दिन पहले ही तो 6 साडि़यों का कौंबो मैं ने और 6 का रिया ने तुम्हें औनलाइन मंगा कर दिया था.’’

‘‘वे तो डेली यूज की हैं. कहीं आनेजाने पर उन्हें पहनूंगी क्या? लोग कहेंगे कि 2-2 बेटियां कमा रही हैं और कैसी साडि़यां पहनती हैं,’’ कह कर उन्होंने प्यार से मेघा के गाल पर धीरे से एक चपत लगा दी. मेघा मुसकरा दी.

तभी वे फिर बोलीं, ‘‘और देख यह बिछिया… ये मैचिंग चूडि़यां और पायलें… अच्छी हैं न?’’

‘‘हां मां बहुत अच्छी हैं. आप खुश रहें बस यही सब से अच्छा है, अब मैं बहुत थक गई हूं. चलो खाना खा लेते हैं. मुझे कल जल्दी औफिस जाना है,’’ मेघा बोली.

‘‘ठीक है तुम चलो मैं आई,’’ कह कर मम्मी अपना सामान समेटने लगीं.

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उन के चेहरे पर खिसियाहट साफ दिखाई दे रही थी. सभी ने हंसीमजाक करते हुए खाना खाया. फिर अपनेअपने बरतन धो कर रैक में रख दिए. उन के घर में शुरू से ही यह नियम है कि खाना खाने के बाद हर कोई अपने जूठे बरतन खुद धोता है.

खाना खा कर मेघा लेटने चली गई, पर आंखों से नींद कोसों दूर थी, वह सोचने लगी कि हर नारी अपने को किसी के लिए समर्पित करने में ही सब से बड़ी खुशी महसूस करती है. कल की ही बात है. मेघा की दोस्त सोनल उस से कह रही थी कि यार तू भी 30 पार कर रही है. क्या शादी करने का इरादा नहीं है? मगर मेघा उसे कैसे बताती कि जब से उस ने नौकरी शुरू की है घर थोड़ा अच्छे से चलने लगा है.

अब कोई उस की शादी की बात उठाता ही नहीं, क्योंकि उन्हें उस से ज्यादा घर खर्च की चिंता रहती है… छोटी बहनों की पढ़ाई कैसे होगी… वे 4 बहनें हैं. पापा का काम कुछ खास चलता नहीं है. इसलिए उन्होंने बचपन अभाव में काटा है. जब से मेघा से छोटी रिया भी सर्विस करने लगी है, मम्मी अपनी कुछ इच्छाएं पूरी कर पा रही हैं वरना तो घर खर्च की खींचतान में ही लगी रहती थीं.

मेघा की दोस्त सोनल की 2 साल पहले ही शादी हुई है. औफिस में वह मेघा की कुलीग है. उसे खुश देख कर मेघा को बड़ा अच्छा लगता है. कभीकभी उस का मन कहता है, मेघा क्या तू भी कभी यह जीवन जी सकेगी?

आज सोनल ने फिर बात उठाई थी, ‘‘मेघा पिछले साल हम लोग औफिस टूर पर बाहर गए थे तो मयंक तुझ से कितना मिक्स हो गया था… यार तेरी ही कास्ट का है. तुझ से फोन पर तो अकसर बात होती रहती है. अच्छा लड़का है… क्यों नहीं मम्मी से कह कर उस से बात चलवाती हो? अगर बात बन गई तो दहेज का भी चक्कर नहीं रहेगा. फिर मयंक की तुझ से अंडरस्टैंडिंग भी अच्छी है. अच्छा ऐसा कर तू पहले मयंक से पूछ. अगर वह तैयार हो जाता है, तो अपने घर वालों को उस के घर भेज देना.’’ मेघा को सोनल की बात में दम लगा.

1-2 दिन पहले ही उस की मयंक से बात हुई थी, तो वह बता रहा था कि घर वाले उस की शादी के मूड में हैं. हर दूसरे दिन कोई न कोई रिश्ता ले कर आ रहा है.

मेघा सोचने लगी, ‘कल मयंक से बात करती हूं. यह तो मुझे भी महसूस होता है कि शादी करना जीवन में जरूरी होता है, पर कोई अच्छा लड़का मिले. मुझे जीवन में खुशियां देने के साथसाथ मेरे घर वालों को भी सपोर्ट करे, तो इस से अच्छी और क्या बात होगी,’ सोचतेसोचते उसे नींद आ गई.

सुबह नींद खुली तो 7 बज रहे थे. उसे 8 बजे औफिस पहुंचना था. वह जल्दी से फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर भागी. जब तक वह तैयार हुई तब तक मम्मी ने मेज पर नाश्ता लगा दिया. टिफिन भी वहीं रख दिया. मेघा ने दौड़तेभागते 2 ब्रैड पीस खा कर चाय पी और फिर स्कूटी निकाल औफिस के लिए निकल गई. काम के चक्कर में उसे कुछ याद ही नहीं रहा.

लंच के समय सोनल ने फिर वही बात छेड़ी तो उसे कल रात की बात याद आई. लंच खत्म कर के उस ने मयंक को फोन लगाया.

सोनल सामने ही बैठी थी. वह इशारे से कह रही थी कि शादी के लिए पूछ. मेघा ने हिम्मत कर के पूछा तो मयंक हंस दिया, ‘‘अरे यार तुझे पा कर कौन खुश नहीं होगा भला… तुम ने मुझे अपने लायक समझा तो संडे को अपने मम्मीपापा को मेरे घर भेजो, बाकी सब मैं देख लूंगा.’’

‘‘ठीक है कह कर मेघा ने फोन काट दिया और फिर सोनल को सब बताया तो वह भी बहुत खुश हुई.

‘‘पर सोनल मैं अपनी शादी के बारे में अपने मम्मीपापा से कैसे बात कर पाऊंगी?’’

मेघा को परेशान देख कर सोनल बोली, ‘‘तू घर पहुंच उन से मेरी बात करा देना.’’

मेघा शाम 4 बजे ही औफिस से चल दी. घर पहुंच चाय पी कर बैठी ही थी कि सोनल का फोन आ गया. उसे दिन की सारी बातें याद आ गई. उस ने फोन मम्मी की ओर बढ़ा दिया. सोनल ने मम्मी को सब बता उन्हें संडे को मयंक के घर जाने के लिए कहा.

मम्मी के चेहरे पर मेघा को कुछ खास खुशी की झलक नहीं दिख रही थी. वे केवल हांहां करती जा रही थीं.

फोन कटने पर वे मेघा की तरफ घूम कर बोलीं, ‘‘हम लोगों के पास तो दहेज के लिए पैसे नहीं हैं. फिर हम रिश्ता ले कर कैसे जाएं? तुम्हें पहले मुझ से बात करनी चाहिए थी.’’

यह सुन कर मेघा हड़बड़ा गई. बोली, ‘‘मैं ने कुछ नहीं कहा. सोनल ने ही मयंक से बात की थी… आप और पापा उस के घर हो आओ… देखो घर में और लोग कैसे हैं… मयंक तो बहुत सुलझा हुआ है.’’

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तभी पापा भी आ गए. जब उन्हें सारी बात पता लगी तो उन के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए, ‘‘ठीक है हम लोग संडे को ही मयंक के घर जाएंगे,’’ कह उन्होंने खुशी से मेघा की पीठ थपथपाई.

फिर सब बहनों ने मिल कर आगे की प्लानिंग की. यह तय हुआ कि सोनल के हसबैंड, मम्मीपापा और छोटी बहन मयंक के घर चले जाएंगे. छोटी बहन के मयंक के घर जाने से वहां क्या बात हुई, कैसा व्यवहार रहा, सब पता लग जाएगा. मम्मी से तो पूछते नहीं बनेगा. पापा से भी पूछने में संकोच होगा.

मेघा की छोटी तीनों बहनें मन से उस की शादी के लिए सोचती रहती थीं, पर आज की महंगाई और दहेज के बारे में सोच कर चुप हो जाती थीं. मयंक के बारे में सुन कर सब को जोश आ गया था.

‘‘मैं अब अपना पैसा बिलकुल खर्च नहीं करूंगी,’’ यह रिया की आवाज थी.

‘‘मुझे भी कुछ ट्यूशन बढ़ानी पड़ेंगी, तो बढ़ा लूंगी,’’ यह तीसरे नंबर की ज्योति बोली.

‘‘मैं भी अब कोई फरमाइश नहीं करूंगी,’’ छोटी कैसे पीछे रहती.

‘‘ठीक है ठीक है, सब लोगों को जो करना है करना पर पहले मयंक के घर तो हो आओ,’’ कह कर मेघा टीवी खोल कर बैठ गई.

संडे परसों था, पापा समय बरबाद नहीं करना चाहते थे. उन्होंने जाने की पूरी तैयारी कर ली. मम्मी ने भी कौन सी साड़ी पहननी है, छोटी क्या पहनेगी सब तय कर लिया.

दूसरे दिन शनिवार था. मेघा ने सोनल को बता दिया कि उस के हसबैंड को साथ जाना पड़ेगा.

वह तैयार हो गई. बोली, कोई इशू नहीं. एक अंकल का स्कूटर रहेगा एक इन की मोटरसाइकिल हो जाएगी… आराम से सब लोग मयंक के घर पहुंच जाएंगे.

मेघा ने फोन कर के मयंक से उस के पापा का फोन नंबर ले लिया. शाम को पापा ने मयंक के पापा को फोन कर के संडे को उन के घर पहुंचने का समय ले लिया. सुबह 10 बजे मिलना तय हुआ.

मेघा की मम्मी बड़ी उलझन में थी कि अगर वे लोग तैयार हो गए तो कैसे मैनेज करेंगे. कुछ नहीं पर अंगूठी तो चाहिए ही. मेरे सारे जेवर तो धीरेधीरे कर के बिक गए… बरात की खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी.

मेघा की मां को परेशान देख उस के पापा बोले, ‘‘अभी से क्यों परेशान हो? पहले वहां मिल तो आएं.’’

रविवार सुबह ही चुपके से मेघा ने मयंक को फोन मिला कर कहा, ‘‘मयंक, तुम घर में ही रहना… कोई बात बिगड़ने न पाए… सब संभाल लेना.’’

‘‘हांहां ठीक है. मेरे मम्मीपापा बहुत सुलझे हुए हैं… उन्हें अपने बेटे की खुशी के आगे कुछ नहीं चाहिए… जिस में मैं खुश उस में वे भी खुश.’’ मेघा बेफिक्र हो कर अंदर आ गई. देखा मम्मी तैयार हो गई थीं.

‘‘चलो, जल्दी लौट आएंगे वरना आज दुकान बंद रह जाएगी.’’ मेघा की मां बोली.

कुछ दिन पहले ही मेघा के पापा ने एक दुकान खोली थी. करीब 12 बजे सभी लौट आए. पापा बहुत खुश थे. सभी बातें कायदे से हुई थीं. बस मयंक के पापा कुंडली मिला कर बात आगे बढ़ाना चाहते थे. वे पापा से बोले कि आप बिटिया की कुंडली भिजवा देना.

जब सब लोग खाना खा कर लेट गए तो सब बहनों ने छोटी को बुला कर वहां का सारा हाल पूछा. छोटी ने वहां की बड़ी तारीफ की. बताया कि अगर कुंडली मिल गई तो शादी पक्की हो जाएगी.

मम्मी ने तो वहां साफसाफ कह दिया कि हम लोग पैसा नहीं दे सकते. किसी तरह जोड़ कर बरात की खातिरदारी कर देंगे. दहेज देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है.

सुन कर रिया गुस्सा गई. बोली, ‘‘ये सब कहने की पहले ही दिन क्या जरूरत थी? आगे बात चलती तो बता देतीं.’’

‘‘दूसरे दिन मेघा की तबीयत ठीक नहीं थी. औफिस से छुट्टी ले कर जल्दी घर आ गई. दवा खा कर चादर ओढ़ कर लेट गई. थोड़ी देर बाद रिया और मम्मी की आवाज उस के कानों में पड़ी. रिया बोली, ‘‘दीदी की शादी फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए. मयंक अच्छा लड़का है. एक बार मैं भी उस से मिली हूं.’’

मम्मी तुरंत बोली,‘‘अरे नहीं बहुत मौडर्न परिवार है. हम उन के स्तर का खर्च ही नहीं कर पाएंगे. तभी तो मैं उस दिन सब साफ कह आई थी. अगर मयंक मेघा से शादी का इच्छुक है, तो कुछ खर्च उसे भी तो करना चाहिए. सगाई, शादी सारे खर्च को आधाआधा बांट लें… जेवर भी… मैं ने कह दिया है हमारे पास नहीं हैं… जेवर तो आप को ही लाने पड़ेंगे… फिर मेरी तो 4 लड़कियां हैं. मुझे तो सब पर बराबर ध्यान देना पड़ेगा. आप के तो केवल एक लड़का है. आप को तो बस उसी के लिए सोचना है.’’

सुनते ही रिया गुस्सा हो गई, ‘‘मम्मी, आप को इस तरह नहीं बोलना चाहिए था. इस तरह तो शादी तय ही नहीं हो पाएगी.’’

‘‘तो न हो… कौन मेरी बेटी सड़क पर खड़ी भीग रही है. वह अपने घर में अपने मांबाप के साथ है. एक मयंक ही थोड़े हैं. हजार लड़के मिलेंगे. आखिर वह सर्विस कर रही है. हजार लड़के उस के आगेपीछे घूमेंगे.’’

‘‘मम्मी यह कहना आसान है, पर ऐसा संभव नहीं होता है,’’ रिया झल्ला कर बोली और फिर वहां से चली गई. मम्मी भी भुनभुनाती हुई किचन में चली गईं.

मेघा सारी बातें सुन कर सकपका गई कि आखिर मम्मी क्या चाहती हैं? क्या लड़की की शादी की बात करने जाने पर पहली बार ही इस तरह की बातें की जाती हैं… इस से तो इमेज खराब ही होगी. फिर मयंक भी कैसे बात संभाल पाएगा.

कल ही सोनल बता रही थी कि उस ने शादी के पहले 4 साल सर्विस की थी और उस की मम्मी ने उस की ही सैलरी से 2 अंगूठियां,

1 चेन और 1 जोड़ी पायल बनवा ली थीं. हर महीने कोई न कोई सामान उस के पीछे पड़ कर औनलाइन और्डर करा देती थी. साडि़यां, पैंटशर्ट, ऊनी सूट सब धीरेधीरे इकट्ठे कर लिए थे. बरतन, मिक्सी, बैडसीट्स कुछ भी शादी के समय नहीं खरीदना पड़ा था. सोनल के घर की हालत तो उन के घर से भी बदतर थी.

आज सोनल अपनी छोटी सी गृहस्थी में बहुत खुश है. एक प्यारा सा बेटा भी है. जीजाजी भी बहुत सुलझे हुए हैं. वे सोनल के मम्मीपापा का भी बहुत खयाल रखते हैं.

इसी बीच 8-10 दिन बीत गए. न यहां से किसी ने फोन किया, न मयंक के यहां से फोन आया. सोनल ने मेघा से पूछा तो वह बोली, ‘‘बारबार मेरा कहना अच्छा नहीं लगता.’’

तब सोनल ने ही मम्मी को फोन मिला कर पूछा तो वे बोलीं, ‘‘उन लोगों ने मेघा की कुंडली मांगी है… वह तो हम ने बनवाई नहीं… हमें कुंडली में विश्वास नहीं है.’’

तब सोनल बोली, ‘‘आंटी आप किसी से कुंडली चक्र बनवा कर भेज दीजिए. आप को तो वही करना पड़ेगा जो वे चाहते हैं. आखिर वे लड़के वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हमारी लड़की कमजोर है? वह भी कमाती है. हम उन के हिसाब से क्यों चलें? वे रिश्ता बराबरी का समझें तभी ठीक है.’’ सुन कर सोनल ने फोन काट दिया.

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दूसरे दिन मयंक का फोन आया, ‘‘अरे यार अपनी कुंडली तो भिजवाओ. उस दिन तो मैं ने सब संभाल लिया था पर बिना कुंडली के बात कैसे आगे बढ़ाऊं?’’

मेघा ने पापा से कहा तो उन्होंने अगले दिन दे कर आने की बात कही. मेघा के मन में यह बात चुभ रही थी कि मम्मी के मन में क्या यह इच्छा नहीं होती कि उन की बेटियों की भी शादी हो… कल ही पड़ोस की आंटी आई थीं तो मम्मी उन से कह रही थीं, ‘‘मैं तो कहती हूं चारों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं… कमाएं और आराम से साथ रहें. क्या दुनिया में सभी की शादी होती है? अपनी कमाई से ऐश करें.’’

सुन कर मेघा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई कि केवल उस को ही नहीं ये तो चारों बेटियों की शादी न करने के पक्ष में है. क्या कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है? उधर पापा जन्मकुंडली बनवा कर मयंक के घर दे आए.

4-5 दिन बाद मयंक के पापा का मेघा के पापा के पास फोन आया. उन्होंने कुंडली मिलवा ली थी. मिल गई थी. आगे की बात करने के लिए पापा को अपने घर बुलाया था.

पापा ने खुशीखुशी रात के खाने पर सब को यह बात बताई तो सभी बहनें खुशी से तालियां बजाने लगीं.

‘‘तो आप लोग कब जा रहे हैं? रिया ने पूछा.’’

‘‘आप लोग नहीं अकेले मैं जाऊंगा,’’ कह कर पापा खाना खाने लगे.

मम्मी हैरानी से उन का मुंह देखने लगीं. फिर बोली, ‘‘अकेले क्यों?’’

‘‘अभी भीड़ बढ़ाने से कोई फायदा नहीं. पता नहीं बात बने या नहीं. फिर

दुकान तुम देख लेना… बंद नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘आप साफ बात कर भी पाएंगे?’’

मम्मी की आवाज सुन कर पापा खाना खातेखाते रुक गए. बोले, ‘‘हां, ऐसी साफसाफ भी नहीं करूंगा कि बात ही साफ हो जाए.’’

सुन कर हम बहनें हंस पड़ी. मम्मी गुस्सा कर किचन में चली गईं.

रात में फिर चारों बहनों की मीटिंग हुई. पापा अकेले मयंक के घर जाएंगे, इस बात से सभी बहुत खुश थीं.

उम्र के साथ ऐसे बदलता है सैक्स बिहेवियर

शादीशुदा जिंदगी में दूरियां बढ़ाने में सैक्स का भी अहम रोल होता है. अगर परिवार कोर्ट में आए विवादों की जड़ में जाएं तो पता चलता है कि ज्यादातर झगड़ों की शुरुआत इसी को ले कर होती है. बच्चों के बड़े होने पर पतिपत्नी को एकांत नहीं मिल पाता. ऐसे में धीरेधीरे पतिपत्नी में मनमुटाव रहने लगता है, जो कई बार बड़े झगड़े का रूप भी ले लेता है. इस से तलाक की नौबत भी आ जाती है. विवाहेतर संबंध भी कई बार इसी वजह से बनते हैं.

मनोचिकित्सक डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘उम्र के हिसाब से पति और पत्नी के सैक्स का गणित अलगअलग होता है. यही अंतर कई बार उन में दूरियां बढ़ाने का काम करता है. पतिपत्नी के सैक्स संबंधों में तालमेल को समझने के लिए इस गणित को समझना जरूरी होता है. इसी वजह से पतिपत्नी में सैक्स की इच्छा कम अथवा ज्यादा होती है. पत्नियां इसे न समझ कर यह मान लेती हैं कि उन के पति का कहीं चक्कर चल रहा है. यही सोच उन के वैवाहिक जीवन में जहर घोलने का काम करती है. अगर उम्र को 10-10 साल के गु्रपटाइम में बांध कर देखा जाए तो यह बात आसानी से समझ आ सकती है.’’

शादी के पहले

आजकल शादी की औसत उम्र लड़कियों के लिए 25 से 35 के बीच हो गई है. दूसरी ओर खानपान और बदलते परिवेश में लड़केलड़कियों को 15 साल की उम्र में ही सैक्स का ज्ञान होने लगता है. 15 से 30 साल की आयुवर्ग की लड़कियों में नियमित पीरियड्स होने लगते हैं, जिस से उन में हारमोनल बदलाव होने लगते हैं. ऐसे में उन के अंदर सैक्स की इच्छा बढ़ने लगती है. वे इस इच्छा को पूरी तरह से दबाने का प्रयास करती हैं. उन पर सामाजिक और घरेलू दबाव तो होता ही है, कैरियर और शादी के लिए सही लड़के की तलाश भी मन पर हावी रहती है. ऐसे में सैक्स कहीं दब सा जाता है.

इसी आयुवर्ग के लड़कों में सैक्स के लिए जोश भरा होता है. कुछ नया करने की इच्छा मन पर हावी रहती है. उन की सेहत अच्छी होती है. वे हर तरह से फिट होते हैं. ऐसे में शादी, रिलेशनशिप का खयाल उन में नई ऊर्जा भर देता है. वे सैक्स के लिए तैयार रहते हैं, जबकि लड़कियां इस उम्र में अपनी इच्छाओं को दबाने में लगी रहती हैं.

30 के पार बदल जाते हैं हालात

महिलाओं की स्थिति: 30 के बाद शादी हो जाने के बाद महिलाओं में शादीशुदा रिलेशनशिप बन जाने से सैक्स को ले कर कोई परेशानी नहीं होती है. वे और्गेज्म हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार होती हैं. महिलाएं कैरियर बनाने के दबाव में नहीं होती. घरपरिवार में भी ज्यादा जिम्मेदारी नहीं होती. ऐसे में सैक्स की उन की इच्छा पूरी तरह से बलवती रहती है. बच्चों के होने से शरीर में तमाम तरह के बदलाव आते हैं, जिन के चलते महिलाओं को अपने अंदर के सैक्सभाव को समझने में आसानी होती है. वे बेफिक्र अंदाज में संबंधों का स्वागत करने को तैयार रहती हैं.

पुरुषों की स्थिति: उम्र के इसी दौर में पति तमाम तरह की परेशानियों से जूझ रहा होता है. शादी के बाद बच्चों और परिवार पर होने वाला खर्च, कैरियर में ग्रोथ आदि मन पर हावी होने लगता है, जिस के चलते वह खुद को थका सा महसूस करने लगते हैं. यही वह दौर होता है जिस में ज्यादातर पति नशा करने लगते हैं. ऐसे में सैक्स की इच्छा कम हो जाती है.

महिला रोग विशेषज्ञा, डाक्टर सुनीता चंद्रा कहती हैं, ‘‘हमारे पास बांझपन को दूर करने के लिए जितनी भी महिलाएं आती हैं उन में से आधी महिलाओं में बांझपन का कारण उन के पतियों में शुक्राणुओं की सही क्वालिटी का न होना होता है. इस का बड़ा कारण पति का मानसिक तनाव और काम का बोझ होता है. इस के कारण वे पत्नी के साथ सही तरह से सैक्स संबंध स्थापित नहीं कर पाते.’’

नौटी 40 एट

40 के बाद की आयुसीमा एक बार फिर शारीरिक बदलाव की चौखट पर खड़ी होती है. महिलाओं में इस उम्र में हारमोन लैवल कम होना शुरू हो जाता है. उन में सैक्स की इच्छा दोबारा जाग्रत होने लगती है. कई महिलाएं अपने को बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त पाती हैं, जिस की वजह से सैक्स की इच्छा बढ़ने लगती है. मगर यह बदलाव उन्हीं औरतों में दिखता है जो पूरी तरह से स्वस्थ रहती हैं. जो महिलाएं किसी बीमारी का शिकार या बेडौल होती हैं, वे सैक्स संबंधों से बचने का प्रयास करती हैं.

40 प्लस का यह समय पुरुषों के लिए भी नए बदलाव लाता है. उन का कैरियर सैटल हो चुका होता है. वे इस समय को अपने अनुरूप महसूस करने लगते हैं. जो पुरुष सेहतमंद होते हैं, बीमारियों से दूर होते हैं वे पहले से ज्यादा टाइम और ऐनर्जी फील करने लगते हैं. उन के लिए सैक्स में नयापन लाने के विचार तेजी से बढ़ने लगते हैं.

50 के बाद महिलाओं में पीरियड्स का बोझ खत्म हो जाता है. वे सैक्स के प्रति अच्छा फील करने लगती हैं. इस के बाद भी उन के मन में तमाम तरह के सवाल आ जाते हैं. बच्चों के बड़े होने का सवाल मन पर हावी रहता है. हारमोनल चेंज के कारण बौडी फिट नहीं रहती. घुटने की बीमारियां होने लगती हैं. इन परेशानियों के बीच सैक्स की इच्छा दब जाती है.

इस उम्र के पुरुषों में भी ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, कोलैस्ट्रौल जैसी बीमारियां और इन को दूर करने में प्रयोग होने वाली दवाएं सैक्स की इच्छा को दबा देती हैं. बौडी का यह सैक्स गणित ही पतिपत्नी के बीच सैक्स संबंधों में दूरी का सब से बड़ा कारण होता है.

डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘ऐसे में जरूरत इस बात की होती है कि सैक्स के इस गणित को मन पर हावी न होने दें ताकि सैक्स जीवन को सही तरह से चलाया जा सके.’’

रिलेशनशिप में सैक्स का अपना अलग महत्त्व होता है. हमारे समाज में सैक्स पर बात करने को बुरा माना जाता है, जिस के चलते वैवाहिक जीवन में तमाम तरह की परेशानियां आने लगती हैं. इन का दवाओं में इलाज तलाश करने के बजाय अगर बातचीत कर के हल निकाला जाए तो समस्या आसानी से दूर हो सकती है. लड़कालड़की सही मानो में विवाह के बाद ही सैक्स लाइफ का आनंद ले पाते हैं. जरूरत इस बात की होती है कि दोनों एक मानसिक लैवल पर चीजों को देखें और एकदूसरे को सहयोग करें. इस से आपसी दूरियां कम करने और वैवाहिक जीवन को सुचारु रूप से चलाने में मदद मिलती है.

बैडरूम रोमांस बढ़ाने के टिप्स

पतिपत्नी के इश्क को ज्यादा से ज्यादा रोमांस से भरपूर रखने में बैडरूम का बड़ा योगदान होता है. घर में उन का ज्यादा समय बैडरूम में ही बीतता है. वे आराम, सुकून, रोमांस, इश्क के लिए बैडरूम को ही चुनते हैं. बैडरूम की ऊर्जा का प्रभाव उन के संबंधों एवं मानसिकता पर भी पड़ता है. मनोचिकित्सक, दिनेश के मुताबिक यदि पतिपत्नी अपना जीवन प्यारमुहब्बत से भरना चाहते हैं, तो शुरुआत अपने बैडरूम से ही करें. बैडरूम को परफैक्ट रखें. इस से आप की सैक्स लाइफ हमेशा रोमांस से भरी रहेगी.

बैडरूम सजावट के टिप्स

लाइट: इश्क का इजहार करने में लाइट की अहम भूमिका होती है. अत: बैडरूम में हलकी गुलाबी, आसमानी रंग की लाइट का प्रयोग करें. कमरे में लाइट डाइरैक्ट नहीं इनडाइरैक्ट पड़नी चाहिए. लैंपशेड या कौर्नर लाइट हो तो और भी अच्छा. इस से बैडरूम रोमांस का मजा कई गुना बढ़ जाएगा.  फल रखें: अंगूर, स्ट्राबैरी, केला, चैरी या चीकू की खुशबू बहुत रोमांचित करती है. इस से प्यार करने का मजा दोगुना हो जाता है.

बैडरूम को रोमांटिक बनाएं: पतिपत्नी के अंतरंग संबंधों में मुहब्बत बनी रहे, इस के लिए वे कभी हिलस्टेशन जाते हैं, कभी समुद्र किनारे तो कभीकभी किसी बड़े होटल में. हर जगह की अपनी खूबसूरती होती है. मगर इसी खूबसूरती को, भिन्नता को अपने बैडरूम में शामिल करें, तो पतिपत्नी अपनी रोमांटिक लाइफ को एक डैस्टिनेशन पौइंट दे सकते हैं. कमरे में आर्टिफिशियल फाउंटेन, फूल, चित्र आदि  लगाने के साथसाथ अलमारी, सोफे, टेबल  आदि की जगह भी बदलते रहें ताकि बैडरूम आकर्षक लगे.

बैडरूम को रखें सुसज्जित: बैडरूम अच्छी तरह डैकोरेटेड हो. उस का इंटीरियर आप को बारबार रूम में जाने को उकसाए. परदे ऐसे कि आसमान नजर आए. हलके परदे इस्तेमाल करें. बैडरूम साफसुथरा हो. उस में तरहतरह के इनडोर पौधे लगाएं, बेल लगाएं. उस में हलकी रोशनी भी आनी चाहिए ताकि आप का मूड और ज्यादा रोमांटिक बने.  तसवीरें: बैडरूम में रोमांटिक तसवीरें लगाएं. लविंगबर्ड, हंस की तसवीर, रैडरोज  आदि लगाएं ताकि इन्हें देख कर रोमांस करने  का मन करे.

बिस्तर: मूड बनाने में बिस्तर का अहम रोल होता है. अत: गद्दे चुभनशील न हों. बैड से आवाज न आती हो. तकिए आरामदायक हों, बैडशीट का रंग इश्क को उकसाने वाला हो.

खुशबू: खुशबू हमारे अंदर कई तरह के भाव पैदा करती है. रोमांस के लिए कई तरह के परफ्यूम का प्रयोग किया जा सकता है. लैवेंडर, मोंगरा, ब्रूट, वन मैन शो जैसे परफ्यूम संबंध बनाने का मूड बनाते हैं. बैडरूम में खूबसूरत गुलदस्ते रखें. अरोमा कैंडल जलाएं. यह न  केवल बैडरूम में हलकी रोशनी देती है, बल्कि इस के जलने से भीनीभीनी खुशबू भी आती है, जो रोमांस, चुहुलबाजी के लिए प्रेरित करती है.

डिस्टर्बैंस न हो: अलार्मघड़ी, मोबाइल, सिंगिंग खिलौने आदि बैडरूम से दूर ही  रखें ताकि इन की आवाज प्यार में खलल  न डाले.

दीवारों के रंग: दीवारों के रंग भी  अपनी मूक भाषा में बहुत कुछ बोल जाते  हैं. हलका गुलाबी, औरेंज, आसमानी, तोतईरंग, पेस्टल शेड्स आदि मन में प्यार का भाव   जगाते हैं.

भभूत वाले बाबा : संतान की चाह में दामादजी

जैसे तितली का फूल से, सावन का पानी से, नेता का वोट से, पुजारी का मंदिर से रिश्ता होता है उसी तरह मेरी सास का रिश्ता उन की इकलौती बेटी से है. मेरी शादी के साथ वे भी अपनी बेटी के साथ हमारे पास आ गईं. हम ने भी दिल पर पत्थर रख कर उन को इसलिए स्वीकार कर लिया कि पीला पत्ता आज नहीं तो कल तो पेड़ से टूटेगा ही.

लेकिन पेड़ ही (यानी हम) पीले पड़ गए मगर पत्ता नहीं टूटा. मरता क्या न करता. उन्हें हम ने स्वीकार कर लिया वरना कौन बीवी की नाराजगी झेलता. पिछले 7-8 महीने से देख रहा था कि अपनी पत्नी को हम जो रुपए खर्च के लिए देते थे वे बचते नहीं थे. हम ने कारण जा?नने के लिए डरतेडरते पत्नी से पूछा तो उस ने बताया, ‘‘आजकल मम्मी की तबीयत खराब चल रही है, इसी कारण डाक्टर को हर माह रुपया देना पड़ रहा है.’’

हम चुप हो गए. कुछ कह कर मरना थोड़े ही था लेकिन आखिर कब तक हम ओवरबजट होते?

एक रविवार हम घर पर बैठ कर टेलीविजन देख रहे थे कि विज्ञापन बे्रक आते ही हमारी पत्नी ने टेलीविजन बंद कर के हमारे सामने अखबार का विज्ञापन खोल कर रख दिया.

‘‘क्या है?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘पढ़ो तो.’’

हम ने पढ़ना प्रारंभ किया. लिखा था, ‘शहर में कोई भभूत वाले बाबा आए हुए हैं जो भभूत दे कर पुराने रोगों को ठीक कर देते हैं.’ हम ने पढ़ कर अखबार एक ओर रख दिया और आशा भरी नजरों से देखती पत्नी से कहा, ‘‘यह विज्ञापन हमारे किस काम का है?’’

‘‘कैसी बात करते हो? मैं यह विज्ञापन आप को थोड़े ही जाने के लिए पढ़वा रही थी?’’

‘‘फिर?’’ हम ने कुत्ते की तरह सतर्क होते हुए सवाल किया.

‘‘मेरी मम्मी के लिए,’’ हिनहिनाती पत्नी ने जवाब दिया.

‘‘ओह, क्यों नहीं.’’

‘‘लेकिन एक बात है…’’

‘‘क्या बात है?’’ बीच में बात को रोकते हुए कहा.

‘‘कालोनी की एकदो महिलाएं इलाज के लिए गई थीं तो बाबा एवं बाबी ने उन्हें…’’

‘‘बाबा… बाबी…यानी, मैं कुछ समझा नहीं?’’ हम ने घनचक्कर की तरह प्रश्न किया.

‘‘अजी, मास्टर की घरवाली मास्टरनी, डाक्टर की बीवी डाक्टरनी तो बाबा की बीवी बाबी…’’ पत्नी ने अपने सामान्य ज्ञान को हमारे दिमाग में डालते हुए कहा.

हो…हो…कर के हम हंस दिए, फिर हम ने प्रश्न किया, ‘‘तो क्या बाबा व बाबी मिल कर इलाज करते हैं?’’

‘‘जी हां, कालोनी की कुछ महिलाएं उन के पास गई थीं. लौट कर उन्होंने बताया कि बाबा का बड़ा आधुनिक इलाज है.’’

‘‘यानी?’’

‘‘किसी को भभूत देने के पहले वे उस की ब्लड रिपोर्ट, ब्लडप्रेशर, पेशाब की जांच देख लेते हैं फिर भभूत देते हैं,’’ पत्नी ने हमें बताया तो विश्वास हो गया कि ये निश्चित रूप से वैज्ञानिक आधार वाले बाबाबाबी हैं.

‘‘तो हमें क्या करना होगा?’’

‘‘जी, करना क्या है, मम्मीजी के सारे टेस्ट करवा कर ही हम भभूत लेने चलते हैं,’’ पत्नीजी ने सलाह देते हुए कहा.

‘‘ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा,’’ हम ने कहा और टेलीविजन चालू कर के धारावाहिक देखने लगे.

अगले दिन पत्नी हम से 1 हजार रुपए ले कर अपनी मम्मी के पूरे टेस्ट करवा कर शाम को लौटी. हम से शाम को कहा गया कि अगले दिन की छुट्टी ले लूं ताकि मम्मीजी को भभूत वाले बाबाजी के पास ले जाया जा सके. मन मार कर हम ने कार्यालय से छुट्टी ली और किराए की कार ले कर पूरे खानदान के साथ भभूत वाले बाबा के पास जा पहुंचे. वहां काफी भीड़ लगी थी.

हम ने दान की रसीद कटवाई, जो 501 रुपए की काटी गई थी. हम तीनों प्राणियों का नंबर दोपहर तक आया. अंदर गए तो चेंबर में नीला प्रकाश फैला था. विशेष कुरसी पर बाबाजी बैठे थे. उन के दाईं ओर कुरसी पर मैडम बाबी बैठी थीं. हमारी सास ने औंधे लेट कर उन के चरण स्पर्श किए. बाबाजी के सामने एक भट्ठी जल रही थी. उस ने हमारी सास से आगे बढ़ने को कहा और बोला, ‘‘यूरिन, ब्लड टेस्ट होगा.’’

पत्नीजी मेंढकी की तरह उचक गईं और कहने लगीं, ‘‘हम करवा कर लाए हैं.’’

‘‘उधर दे दो,’’ नाराजगी से बाबा ने देखते हुए कहा.

ब्लड, यूरिन रिपोर्ट मैडम बाबी को दी तो उन्होंने रिपोर्ट देखी, गोलगोल घुमाई और मेरी सास के हाथों में दे दी. बारबार मुझे न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि बाबा को कहीं देखा है लेकिन वह शायद मेरा भ्रम ही था.

बाबाजी ने सासूजी को पास बुलाया. जाने कितने राख के छोटेछोटे ढेर उन के पास लगे थे. 1 मिनट के लिए प्रकाश बंद हुआ और संगीत गूंज उठा. मेरा दिल धकधक करने लगा था. मैं ने पत्नी का हाथ पकड़ लिया. 1 मिनट बाद रोशनी हुई तो बाबा ने राख में से एक मुट्ठी राख उठा कर कहा, ‘‘इस भभूत से 50 पुडि़या बना लेना और सुबह, दोपहर, शाम श्रद्धा के साथ बाबा कंकड़ेश्वर महाराज की जय बोल कर खा लेना और 10 दिन बाद फिर ब्लडशुगर, यूरिन की जांच यहां से करवा कर लाना.’’

इतना कह कर बाबा ने एक लैबोरेटरी का कार्ड थमा दिया. हम बाहर आए. सुबह ही हमारी सास ने श्रद्धा के साथ कंकड़ेश्वर महाराज की जय कह कर भभूत को फांक लिया. दोपहर में दूसरी बार, जब शाम को हम कार्यालय से लौटे तो हमारी पत्नीजी हम से आ कर लिपट गईं और बोलीं, ‘‘मम्मीजी को बहुत फायदा हुआ है.’’

‘‘सच?’’

‘‘वे अब अच्छे से चलनेफिरने लगी हैं, जय हो बाबा कंकडे़श्वर की,’’ पत्नी ने श्रद्धा के साथ कहा.

हमें भी बड़ा आश्चर्य हुआ. होता होगा चमत्कार. हम ने भी मन ही मन श्रद्धा के साथ विचार किया. पत्नी ने सिक्सर मारते हुए हमारे कानों में धीरे से कहा, ‘‘सुनो, नाराज न हो तो एक बात कहूं?’’

‘‘कहो.’’

‘‘हमारी शादी के 2 साल हो गए हैं. एक पुत्र के लिए हम भी भभूत मांग लें,’’ पत्नी ने शरमातेबलखाते हुए कहा.

‘‘क्या भभूत खाने से बच्चा पैदा हो सकता है?’’ मैं ने प्रश्न किया.

‘‘शायद कोई चमत्कार हो जाए,’’ पत्नी ने पूरी श्रद्धा के साथ कहा. मैं बिना कुछ कहे घर के अंदर चला आया.

सच भी था. मेरी सास की चाल बदल गई थी. उन की गठिया की बीमारी मानो उड़न छू हो गई थी. मेरे दिल ने भी कहा, ‘क्यों न मैं भी 2-2 किलो राख (भभूत) खा कर शरीर को ठीक कर लूं.’

रात को बिस्तर पर सोया तो फिर भभूत वाले बाबा का चेहरा आंखों के सामने डोल गया. कहां देखा है? लेकिन याद नहीं आया. हम ने मन ही मन विचार किया कि कल, परसों छुट्टी ले कर हम भी भभूत ले आएंगे. पत्नी को भी यह खुशखबरी हम ने दे दी थी. वे?भी सुंदर सपने देखते हुए खर्राटे भरने लगीं.

सुबह हम उठे. हम ने चाय पी और जा कर समाचारपत्र उठाया. अखबार खोलते ही हम चौंक गए, ‘भभूत वाले बाबा गिरफ्तार’ हेडिंग पढ़ते ही घबरा गए कि आखिर क्या बात हो गई? समाचार विस्तार से लिखा था कि भभूत वाला चमत्कारी बाबा किसी कसबे का झोलाछाप डाक्टर था जिस की प्रैक्टिस नहीं चलती थी, जिस के चलते उस ने शहर बदल लिया और बाबा बन गया. ब्लड, यूरिन की रिपोर्ट देख कर भभूत में दवा मिला कर दे देता था जिस से पीडि़त को लाभ मिलता था.

पिछले दिनों एक ब्लडशुगर के मरीज को उस ने शुगर कम करने की दवा भभूत में मिला कर दे दी. ओवरडोज होने से मरीज सोया का सोया ही रह गया. शिकायत करने पर पुलिस ने भभूत वाले बाबा को गिरफ्तार कर लिया. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई है. अंत में लिखा था, ‘किसी भी तरह की कोई भभूत का सेवन न करें, उस में स्टेराइड मिला होने से तत्काल कुछ लाभ दिखलाई देता है, लेकिन बाद में बीमारी स्थायी हो जाती है.’ एक ओर बाबा का फोटो छपा था. अचानक हमारी याददाश्त का बल्ब भी जल गया. अरे, यह तो हमारे गांव के पास का व्यक्ति है, जो एक कुशल डाक्टर के यहां पट्टी बांधने का काम करता था और फिर डाक्टर की दवाइयां ले कर लापता हो गया था.

हम बुरी तरह से घबरा गए. हम ने विचार किया, पता नहीं रात को हमारी सास भी स्वर्ग को न चली गई हों. हम अखबार लिए अंदर को दौड़ पड़े. सासू मां किचन में भजिए उड़ा रही थीं और भभूत वाले बाबा के गुणगान गा रही थीं. सासू मां को जीवित अवस्था में देख हम खुश हुए. हमें आया देख कर वे कहने लगीं, ‘‘आओ, दामादजी, मुझे बिटिया ने बता दिया कि तुम भी भभूत वाले बाबा के यहां जा रहे हो… देखना, बाबा कंकड़ेश्वर जरूर गोद हरीभरी करेंगे.’’

हम ने कहा, ‘‘आप की भभूत कहां रखी है?’’

उन्होंने पल्लू में बंधी 40-50 पुडि़यां हमें दे दीं. हम ने वे ले कर गटर में फेंक दीं. पत्नी और उन की एकमात्र मम्मी नाराज हो गईं. हम ने कहा, ‘‘हम अपनी सास को मरते हुए नहीं देखना चाहते.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’ सासजी ने नाराजगी से कहा.

‘‘बिलकुल सच कह रहा हूं, मम्मी,’’ कह कर मैं ने वह अखबार पढ़ने के लिए आगे कर दिया.

दोनों ने पढ़ा और माथा पकड़ लिया. हम ने कहा, ‘‘वह भभूत नहीं बल्कि न जाने कौन सी दवा है जिस के चलते उस के साइड इफेक्ट हो सकते थे. आप जैसी भी हैं, बीमार, पीडि़त, आप हमारे बीच जीवित तो हैं. हम आप को कहीं दूसरे डाक्टर को दिखा देंगे लेकिन इस तरह अपने हाथों से जहर खाने को नहीं दे सकते,’’ कहते- कहते हमारा गला भर आया.

सासूमां और मेरी पत्नी मेरा चेहरा देख रही थीं. सासूमां ने मेरी बलाइयां लेते हुए कहा, ‘‘बेटा, दामाद हो तो ऐसा.’’

हम शरमा गए. सच मानो दोस्तो, घर में बुजुर्ग रूपी वृक्ष की छांव में बड़ी शांति होती है और हम यह छांव हमेशा अपने पर बनाए रखना चाहते हैं.

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