लेखिका- प्रेमलता यदु
लेखिका- प्रेमलता यदु
लेखिका- प्रेमलता यदु
पुलिस स्टेशन पर पांव धरते ही मेरी सांसें तेज हो गईं. रोना तो तभी से आ रहा था जब से पुलिस ने पकड़ा था लेकिन अब तो आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, उस पर जब इंस्पैक्टर साहब ने कहा-
“अपने पापा को फोन लगाओ और यहां आने को कहो.”
उन का यह कहना था कि मेरे हाथपांव कांपने लगे. अतुल के माथे पर भी पसीने की बूंदें दिखाई देने लगीं. अतुल ने इंस्पैक्टर साहब को बहुत समझाने की कोशिश की कि वे कम से कम मुझे जाने दें. लेकिन इंस्पैक्टर साहब मुझे छोड़ने को तैयार ही नहीं थे, वे तो इस बात पर अड़े रहे कि वे मुझे परिवार वालों को ही सौंपेंगे और मेरा यह सोचसोच कर बुरा हाल हो रहा था कि यदि पापा और घर के अन्य सदस्यों को पता चलेगा कि मैं अतुल के साथ शहर से दूर एक लव स्पौट पर पकड़ी गई हूं तो सब के सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी. यही हाल अतुल का भी था. घर वाले हमें इस हाल में देखेंगे तो क्या सोचेंगे. अतुल ने जरूरी काम का बहाना बना कर औफिस से छुट्टी ली थी, इसलिए वह औफिस भी फोन नहीं कर सकता था. इस वक्त हमारे पास घर पर फोन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था.
मैं बारबार उस घड़ी को कोस रही थी जब मैं घर पर सब से झूठ बोल कर निकली थी कि ग्रुप स्टडीज और एग्जाम की तैयारी के लिए अपनी फ्रैंड शालिनी के घर जा रही हूं.
मैं अतुल से मिलने जा रही हूं, यह बात मेरे चाचा की बेटी भूमि के अलावा कोई नहीं जानता था. भूमि केवल मेरी बहन ही नहीं, मेरी सब से अच्छी दोस्त भी है. मेरे और अतुल के बीच की सेतु भी इस वक्त वही है. भूमि के साथ ही मैं घर से निकली थी और उस ने ही घर पर सब से कहा था कि वह मुझे शालिनी के घर पर ड्रौप करने जा रही है. अब हमारे साथसाथ भूमि भी घर वालों के रडार पर थी, यह सोच कर मैं और भी परेशान थी.
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तभी इंस्पैक्टर साहब ने फिर कहा-
“तुम दोनों अपने घरों पर फोन लगाते हो या मैं नंबर डायल करूं.”
यह सुन कर अतुल ने कहा- “नहीं सर, हम फ़ोन लगाते हैं.”
जब हम ने घर पर फ़ोन कर के बताया कि हम पुलिस स्टेशन पर हैं तो मेरे पापा और चाचा फौरन पुलिस स्टेशन आ पहुंचे. पापा की आंखों में गुस्सा तैर रहा था जिसे देख कर मैं और अतुल सहम से गए. पापा और चाचा अभी इंस्पैक्टर साहब से बात कर ही रहे थे कि अतुल के पापा और बड़े भैया भी वहां आ गए. उन्हें देख कर मैं शर्म से पानीपानी हो गई और जमीन पर नजरें गड़ाए, हाथों को बांधे खड़ी रही. हमारे परिजनों से मिलने के बाद इंस्पैक्टर साहब ने हमें जाने की आज्ञा दे दी.
पापा पुलिस स्टेशन पर तो मुझ से कुछ नहीं बोले लेकिन अतुल के पापा, बड़े भैया उस से न जाने क्या कह रहे थे. मैं दूर खड़ी चुपचाप सब देख रही थी क्योंकि सुनाई तो कुछ दे नहीं रहा था. डर इस बात का था अतुल पापा से सब सचसच न बता दे. वह कहीं उन से यह न कह दे कि मैं ने उसे मिलने को बुलाया था.
थोड़ी देर बाद हम घर आ गए. सारे रास्ते खामोशी छाई रही, ना तो पापा ने कुछ कहा और ना ही चाचा ने. घर पहुंची, तो सभी बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रहे थे. मुझे देखते ही मां दौड़ती हुई मेरे करीब आ गईं. वे कुछ कहने वाली थीं कि दादी ने उन्हें रोक दिया और मुझे कमरे में जाने को कहा.
कमरे में जाते वक्त मैं ने देखा, भूमि मुंह लटकाए शांत कोने में खड़ी है. मैं बिना कोई सफाई दिए, सिर झुकाए अपने कमरे के भीतर आ गई. इस वक्त अतुल के घर पर क्या हो रहा होगा, यह बात मुझे सता रही थी लेकिन इस समय अतुल को फोन करना या वहां की जानकारी प्राप्त कर पाना संभव नहीं था. सो, मैं फोन एक ओर रख पलंग पर औंधेमुंह लेट गई और विचार करने लगी, यह मेरी कैसी नादानी है, यह जानते हुए कि एक महीने बाद मेरी शादी है, मैं बगैर कुछ सोचेसमझे अतुल से मिलने चली गई. अभी कुछ ही सप्ताह तो गुजरे हैं हमारी सगाई को और मैं… ऊफ… यह क्या पागलपन कर बैठी.
इस पागलपन का कारण यह था कि पीजी सोशल साइंस में यह मेरा फाइनल ईयर था और घर पर मेरी शादी की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. संयुक्त परिवार होने की वजह से और परिवार की बड़ी बेटी होने के कारण मम्मीपापा और चाचाचाची चाहते थे कि मेरी शादी जल्द से जल्द करा दें. अभी मेरा ग्रेजुएशन कम्पलीट हुआ ही कि रिश्ते आने लगे थे. लेकिन मैं पोस्टग्रेजुएशन कम्पलीट करना चाहती थी जिस के लिए पापा ने अनुमति भी दे दी थी.
जब से मैं ने यौवन की दहलीज पर कदम रखा था तब से मेरी यही चाह थी कि मैं उस लड़के से शादी करूंगी जिसे देखते ही मेरा दिल तेजी से धड़कने लगेगा, मनमयूर झूम उठेगा और मैं उसी के संग डेट पर जाऊंगी, रोमांस करूंगी. लेकिन ऐसा कुछ भी करने का मौका नहीं मिला.
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जिसे देख कर पहली बार मेरा दिल तेजी से धड़का वह कोई और नहीं, अतुल ही था जो मुझे अपने परिवार के साथ शादी के लिए देखने आया था. अतुल की अभीअभी बैंक में नौकरी लगी थी. वह बैंक में अधिकारी था. उस का घरपरिवार सब अच्छा है. यह देख कर पापा और चाचा ने मेरी शादी अतुल से फिक्स कर दी. फिर क्या था, मेरी अतुल से सगाई भी हो गई और एक महीने बाद एग्जाम के बाद हमारी शादी भी तय हो गई.
इस वजह से डेटिंग और रोमांस की चाह मन के अंदर ही दम तोड़ने लगी. लेकिन मैं ऐसा होने नहीं देना चाहती थी, मैं शादी से पहले रोमांस का आनंद हर हाल में उठाना चाहती थी, इसलिए मैं ने भूमि के सामने अपने दिल के पन्ने खोल दिए. मेरा हाल ए दिल जान कर भूमि ने कहा-
‘डोंट वरी माई डियर टीना, तुम डेट पर भी जाओगी और रोमांस भी कर पाओगी, तुम देखती जाओ मेरा कमाल.’
इतना कह कर भूमि अतुल के मोबाइल नंबर के जुगाड़ में लग गई. मोबाइल नंबर तो मिल गया लेकिन हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम अतुल को फोन कर के कहें तो क्या कहें. दो दिनों बाद 14 फरवरी वेलैंटाइन डे था. यह अच्छा अवसर था अतुल को फोन करने और उस से मिलने का.
भूमि और मैं ने मिल कर वेलैंटाइन डे का सारा प्लान बना लिया और फिर भूमि ने अतुल को फोन किया. काफी देर तक रिंग बजती रही, उस के बाद अतुल ने फोन उठाया. अतुल के फोन उठाते ही भूमि ने कहा-
‘आप से टीना बात करना चाहती है.’
यह सुनते ही अतुल ने अश्चर्य से कहा- ‘कौन टीना? मैं किसी टीना को नहीं जानता.’
अतुल के ऐसा कहते ही भूमि ने शरारती अंदाज में कहा-
‘अरे वाह जी, सगाई कर ली, एक महीने बाद शादी करने जा रहे हो और अपनी होने वाली बीवी को नहीं जानते जीजा जी, प्रीषा ऊर्फ टीना आप से बात करना चाहती है.’
मैं अतुल से बात करना चाहती हूं, यह सुनते ही अतुल ने फौरन भूमि से मुझे फोन देने को कहा.
सगाई के बाद आज पहली बार हम दोनों ने काफी देर तक बात की थी और यह डिसाइड किया कि हम वेलैंटाइन डे पर पूरा दिन साथ बिताएंगे.
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मैं ने और भूमि ने मिल कर वेलैंटाइन डे के एक दिन पहले अपनी पौकेट मनी से अतुल के लिए शौपिंग भी कर ली. उस के लिए वेलैंटाइन कार्ड, रैड रोज़ और एक गौगल भी पर्चेज किए. अब, बस, कल का इंतज़ार था. दूसरे दिन सुबह होते ही मैं और भूमि निर्धारित समय पर तैयार हो कर घर वालों से झूठ बोल कर निकल पड़े अतुल से मिलने. यह मेरी पहली डेट थी. मन में थोड़ी घबराहट और थोड़ा उत्साह भी था. भूमि मुझे हमारे दुर्ग शहर की लोकप्रिय कौफी शौप कैफिनो के बाहर छोड़ कर चली गई क्योंकि इसी कौफी शौप पर अतुल से मिलना तय हुआ था.
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लेखिका- प्रेमलता यदु
मैं तेज़ सांसों के साथ कौफी शौप के अंदर धीरेधीरे बढ़ने लगी. तभी मैं ने देखा, अतुल कौर्नर की एक टेबल पर मेरा इंतजार कर रहा है. उसे देखते ही मेरी आंखों में चमक आ गई और अतुल के चेहरे पर भी मुसकान की लहर दौड़ गई. टेबल के करीब पहुंचते ही अतुल ने मुझे बैठने का इशारा किया और मैं अतुल के सामने वाली चैयर पर बैठ गई. मेरे बैठने के थोड़ी ही देर बाद वेटर हमारी टेबल पर एक चौकलेट केक ले कर आया जिस पर लिखा था ‘हैप्पी वेलैंटाइन डे’. उस केक को देख मैं सरप्राइज्ड हो गई. केक काटने के बाद हमारी टेबल पर मेरा फेवरेट कैफेचिनो आ गया, जो कि अतुल ने पहले से ही और्डर कर रखा था. सरप्राइज यहीं पर खत्म नहीं हुआ. अतुल ने मुझे वेलैंटाइन कार्ड और रैड रोज़ भी दिया. उस के बाद हम लोग ड्राइव पर निकल गए.
अतुल की बाइक के पीछे बैठते ही मेरा मन रोमांचित हो उठा. बाइक हवा से बातें करने लगी और मैं अतुल के प्यार में खोने लगी. शहर से दूर एक लव स्पौट पर आ कर अतुल ने बाइक रोक दी और हम सब से नजरें बचाते हुए एक पेड़ के नीचे जा बैठे. तब मैं ने अपने बैग से कार्ड, रोज़ और गौगल निकाल कर अतुल की ओर बढ़ा दिया. उन्हें लेते हुए जब अतुल ने मेरा हाथ थामा तो शर्म से मेरे चेहरे का रंग गुलाबी हो गया और जब अतुल मेरे बालों पर अपनी उंगलियां फेरने लगा, मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं और मैं उस से लिपट गई. उस के बाद अतुल के होंठों की छुअन से मेरे पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई. दुनिया से बेखबर हम एकदूजे की आंखों में कुछ इस तरह डूबने लगे कि हमें इस बात का भी ख़याल न रहा कि अभी हमारी शादी नहीं हुई है और हम अपने घर के रूम में नहीं, पब्लिक प्लेस में हैं. तभी न जाने कहां से गश्त लगाती पुलिस वहां आ पहुंची और हम लव स्पौट से सीधे पुलिस स्टेशन आ पहुंचे.
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अभी मैं यह सब स्मरण कर ही रही थी कि मेरा मोबाइल बज उठा और मैं वर्तमान में आ पहुंची. फोन अतुल का था. मेरे फोन रिसीव करते ही अतुल ने कहा-
“टीना, मैं अभी घर नहीं आ पाऊंगा, बैंक में जरूरी काम है. तुम अकेले ही बंटी के स्कूल पेरैंट्स-टीचर्स मीटिंग के लिए चली जाना और शादी में जाने के लिए जो भी शौपिंग करनी हो, कर लेना.”
आज सुबह ही अतुल ने मुझ से प्रौमिस किया था कि वह बैंक के कुछ जरूरी काम निबटा कर जल्दी घर लौट आएगा लेकिन हर बार की तरह इस बार भी अतुल अपने काम में फंस गया. अतुल से यह सब सुन कर एक बार फिर मन उदास हो गया.
शादी के बाद न जाने अतुल के अंदर का रोमांस कहां गुम हो गया था और मैं भी घरगृहस्थी में कुछ ऐसी उलझी रहती कि अतुल के लिए कभी मेरे पास समय ही न होता. इस के अलावा एक और बात थी जो हमें एकदूसरे के प्रति बिंदास होने से रोकती थी. जब कभी भी हम रोमांटिक होने की सोचते या कोशिश करते, हमें मेरे पापा की घूरती निगाहें नज़र आने लगतीं. आज तक मैं और अतुल पापा की उन नज़रों को नहीं भुला पाए हैं जो हम ने पुलिस स्टेशन में देखा था और इस वजह से आज भी रोमांस के नाम पर हमारे हाथपांव फूलने लगते हैं.
जब भी मैं किसी कपल्स को रोमांस करते देखती या दुनिया से परे एकदूजे में खोए देखती तो मन में एक टीस सी उठती और ऐसा लगता इस दुनिया की बनाई रस्मोंरिवाज, लज्जा, स्त्री का गहना, परिवार की इज्जत, कुल की मर्यादा जैसे बड़ेबड़े शब्दों, जो पांव में बेड़ियां बन जकड़ी हुए हैं, को तोड़ कर, सबकुछ भूल कर मैं अपने अतुल की बांहों में समा जाऊं पर ऐसा कर पाना संभव न होता.
मैं सोचने लगी शादी को 5 साल बीत गए लेकिन फिर कभी मैं और अतुल डेट पर नहीं गए जैसा शादी से पहले उस रोज हम वेलैंटाइन डे पर गए थे. वही हमारी पहली और आख़री डेट थी क्योंकि उस दिन पुलिस स्टेशन से घर लौटने के बाद घर पर तो किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन उस दिन के बाद मैं ने कभी न तो अतुल को फोन किया और न ही कभी अतुल ने मुझे फोन किया या मिलने की कोशिश की और फिर मेरा पीजी का एग्जाम समाप्त होते ही हमारी शादी हो गई. उस के बाद फिर कभी हम डेट पर जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाए. जब कभी भी डेट के बारे में सोचते, पुलिस स्टेशन और परिवार वालों की तीखी, तिरछी नज़रें स्मरण हो आतीं और सारा रोमांस काफूर हो जाता. यहां तक कि कई बार तो हम ऐसा व्यवहार करने लगते जैसे प्यार करना या रोमांस करना कोई गुनाह है. हम चाह कर भी अपने बैडरूम में भी एकदूसरे की आगोश में जाने से डरते. यों लगता जैसे किसी की नजरें हम पर गड़ी हुई हैं.
शादी के बाद सबकुछ बदल गया था. 23 साल की उम्र में मेरी शादी अतुल से हो गई. मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदी और हाथों में चूड़ियां पहनते ही मैं 23 साल की आंटी बन गई. मुझ से दोचार साल छोटे लड़केलड़कियां भी मुझे आंटी बुलाने लगे थे. पहले तो बहुत बुरा लगता था लेकिन फिर धीरेधीरे आंटी सुनने की आदत पड़ गई और फिर जब मैं ने अपने बेटे को जन्म दिया और मां बनी तो मुझे आंटी सुनना अच्छा लगने लगा.
इन्हीं सब बातों को सोचते हुए अचानक मुझे याद आया कि मुझे पेरैंट्स-टीचर मीटिंग में जाना है और रिश्तेदारी में जो शादी है उस के लिए भी तो अभी कुछ शौपिंग करनी बाकी है. घर के सभी लोग तो पहले ही शादी में जा चुके थे. मेरा 4 साल का बेटा भी घरवालों के साथ ही चला गया था. अतुल के बैंक में काम होने की वजह से हम 2 दिनों के बाद जाने वाले थे.
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मैं अपना वार्डरोब खोल कुरती और लैगिंग्स निकाल तैयार होने लगी. मौडर्न ड्रैस के नाम पर मेरे वार्डरोब में अब यही कुरतियां और लैगिंग्स ही रह गई थीं. लेटेस्ट डिजाइन के कपड़े और वैस्टर्न ड्रैस कब हटती चली गईं, मुझे पता ही न चला. मैं खुस यह मानने लगी थी कि एक संस्कारी बहू, अच्छी बीवी और अच्छी मां को लेटेस्ट मौडर्न डिजाइनर कपड़े पहनना शोभा नहीं देता.
मुझे अतुल पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन मैं इस वक्त क्या कर सकती थी. मुझे स्कूल तो जाना ही था और शौपिंग भी करनी ही थी, इसलिए मैं तैयार हो कर घर से निकल पड़ी. स्कूल में मीटिंग अटेंड करने और शौपिंग करने के बाद मैं घर आ ही रही थी कि रास्ते में कौफी शौप कैफिनो पर मेरी नज़र पड़ी. इस कौफी शौप के साथ मेरी बहुत ही खूबसूरत यादें जुड़ी हैं, इसलिए मैं ने सोचा क्यों न उन यादों को ताजा किया जाए और थोड़ा सा टाइम स्पैंड किया जाए. यही सोच कर मैं कौफ़ी शौप के अंदर आ गई. इन 5 सालों में कुछ भी नहीं बदला था. हां, मैं ज़रूर बदल गई थी.
मैं उसी कौर्नर की टेबल पर जा बैठी जहां शादी से पहले अतुल के साथ बैठी थी. मैं ने एक कैफेचिनो और्डर किया और वेटर के आने का इंतजार करने लगी तभी बेबाक, उन्मुक्त हंसी ने मेरा ध्यान आकर्षित किया. मेरी टेबल से थोड़ी ही दूरी पर एक जोड़ा दुनिया से बेखबर अपने में ही खोया हुआ था. देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन की नईनई शादी हुई हो. दोनों की उम्र करीब 32-33 साल की लग रही थी. आजकल कैरियर बनाने में इतना वक्त तो लग ही जाता है और लोग अब लेट मैरिज भी करने लगे हैं.
न चाहते हुए भी मेरा ध्यान बारबार उन की ओर जा रहा था. तभी मेरे कानों में सुनाई पड़ा-
“तुम्हें पता है तुम से इस तरह मिलने के लिए मुझे अपने बौस से कितने झूठ बोलने पड़ते हैं, क्याक्या बहाने बनाने पड़ते हैं और आज तो हद ही हो गई, बौस तो मुझे छुट्टी देने के मूड में ही नहीं थे. मैं तबीयत ख़राब होने का बहाना बना कर तुम से मिलने आई हूं.”
“तुम मुझ से प्यार करती हो, तो इतना तो करना पड़ेगा. मैं तुम्हें जब भी बुलाऊंगा, तुम्हें मुझ से मिलने आना ही पड़ेगा.”
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लेखिका- प्रेमलता यदु
उन की बातें सुन कर मैं यह तो समझ गई कि ये दोनो पतिपत्नी नहीं हैं लेकिन शादीशुदा हो कर इस तरह अपने पार्टनर को धोखा देना..….! छी…छी… इंसान कई बार अपने स्वार्थ में कितना गिर जाता है. मैं अभी यह सब सोच ही रही थी कि मेरा कैफेचिनो आ गया लेकिन मेरा पूरा ध्यान और कान उन्हीं की तरफ था.
तभी उस औरत ने कहा-
“मुझे आज जल्दी निकलना होगा क्योंकि बसस्टौप पर मेरा बेटा मेरा इंतजार कर रहा होगा.”
यह सुनते ही वह आदमी उस का हाथ थामते हुए बोला-
“तो क्या हुआ, थोड़ी देर और बैठो न प्लीज़, फिर चली जाना. रोज़रोज़ ऐसे मिलने का मौका कहां मिलता है और फिर मेरा बेटा भी तो मेरा इंतजार कर रहा होगा.”
ओह, मतलब, ये दोनों केवल शादीशुदा ही नहीं, बल्कि बालबच्चे वाले भी हैं और यह हाल है, इतनी बेशर्मी… मैं अपना कैफेचीनों फिनिश करती हुई यह सब सोच ही रही थी कि वह महिला घबराती हुई बोली-
“ओ माई गौड, लगता है आज हमारी चोरी पकड़ी जाएगी. यह रमा यहां कहां से आ धमकी. अगर इस ने हमें इस वक्त यहां साथ देख लिया न, तो सभी जगह ढिंढोरा पीटने में उसे वक्त नहीं लगेगा. अभी यह सब वह कह रही थी कि उस दूसरी महिला ने उन्हें दूर से ही देख लिया और हाथ हिलाने लगी, फिर करीब आ कर बोली-
“हाय, मीता तुम… इस वक्त औफिस औवर में यहां, ओह जीजाजी भी साथ हैं. नमस्ते जीजा जी. यहां कैसे?”
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जीजा जी सुनते ही यह बात तो साफ हो गई कि दोनों पतिपत्नी ही हैं लेकिन फिर ये ऐसी बातें क्योंकर रहे थे. तभी मैं ने सुना-
“रमा, वह क्या है न, हम दोनों ने मिल कर यह डिसाइड किया है कि हम महीने में एक दिन डेट पर जरूर जाएंगे चाहे कुछ हो जाए. जहां हम केवल प्रेमीप्रेमिका होंगे और कुछ नहीं. जिंदगी की आपाधापी में एकदूसरे से प्यार के दो शब्द कहने का वक्त नहीं है. बस, हम भाग ही रहे हैं अपने, अपने बच्चों, परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए. इसलिए हम ने सोचा, क्यों न लाइफ में रोमांस का तड़का लगाया जाए जो हमें रिफ्रैश कर दे.”
ऐसा कह कर दोनों ठाहके लगा कर हंस पड़े और मैं यह सब सुन अपना बिल पे कर, कौफी शौप से बाहर आ गई. आज मैं यह बात जान चुकी थी कि जिंदगी अपनी ही रफ्तार में चलती रहती है, लेकिन यदि हमें जिंदगी का मज़ा लेना है तो हमें दौड़तीभागती जिंदगी से कुछ लमहें चुराने होंगे और उन में रोमांस का तड़का लगाना होगा. तभी, जिंदगी मसालेदार और स्वादिष्ठ होगी. इस भागतीदौड़ती जिंदगी में रोमांस का तड़का जरूरी है.
आज की इस घटना, दृश्य और उन की बातों ने मेरा दृष्टिकोण बदल दिया था. मैं ने सोचा, अब अपनी नीरस व बोर होती शादीशुदा जिंदगी को रंगीन और हसीन बनाने के लिए रोमांस का तड़का तो लगाना ही पड़ेगा. यह सोच कर मैं घर जाने का आइडिया ड्रौप कर दोबारा मार्केट की तरफ मुड़ गई.
मार्केट से लौट कर मैं ने पूरे घर को एक रोमांटिक लुक दिया. अतुल की पसंद का कड़ाही पनीर, नौन, और वेज़ रायता औनलाइन और्डर कर, खुद तैयार हो कर अतुल का इंतजार करने लगी. आज शादी के बाद पहली बार मैं इस तरह तैयार हुई थी. दरवाजे पर दस्तक होते ही मैं ने दौड़ कर कर दरवाजा खोला. दरवाजा खोलते ही मुझे शिफौन के टू पीस गौउन और एक नए रूप में देख अतुल हैरान रह गया और उस ने फौरन इस डर से दरवाजा बंद कर दिया कि अगर किसी ने मुझे इस रूप में देख लिया तो क्या सोचेगा.
घर के अंदर आते ही घर की सजावट देख, अतुल की आंखें खुली की खुली रह गईं. चारों ओर रंगबिरंगे जलती हुई कैंडल, रोज़ पेट्लस, सैंटर टेबल पर क्रिस्टल बौल में पेट्लस के साथ फ्लोटिंग कैंडल्स, उन पर धीमेधीमे बजता रोमांटिक इंस्ट्रुमैंटल सौंग और पूरे घर पर बिखरा बहुत ही प्यारा फ्रैगरेंस… यह सब देख अतुल के मुंह से निकला-
“वाऊ, इट्स सो ब्यूटीफुल एंड रोमांटिक टीना,” ऐसा कहते हुए अतुल ने मुझे अपने गले से लगा लिया. लेकिन अगले ही पल अतुल के चेहरे का रंग बदल गया और वह मुझ से कहने लगा-
“यह सब क्या है टीना और तुम ने ये कैसे कपड़े पहन रखे हैं. तुम तो इस तरह के कपड़े नहीं… फिर आज क्यों..? अगर घरवालों को पता चलेगा तो वे क्या सोचेंगे… शायद तुम यह भूल गई हो कि तुम इस घर की बहू हो, एक चार साल के बच्चे की मां हो, हमारे घर के कुछ संस्कार हैं और क्या तुम्हें यह भी याद नहीं कि इस रोमांस के चक्कर में हमें पुलिस स्टेशन तक के दर्शन करने पड़ गए थे. मैं आज भी उस दिन के बारे में सोच कर ही कांप जाता हूं.”
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अतुल से ऐसी बातें सुन कर मन थोड़ा उदास तो हो गया लेकिन आज कौफी शौप में रोमांस की जो ज्योति प्रज्ज्वलित हुई थी, अब वह बुझने वाली नहीं थी, इसलिए मैं ने अतुल की बातों पर गौर किए बिना अपनी बांहों का हार अतुल के गले में डालती हुई बोली-
“माई डियर, मैं कुछ भी नहीं भूली हूं, मुझे सब याद है, मुझे याद है कि मैं इस घर की बहू हूं, एक बच्चे की मां हूं लेकिन हम यह भूल गए थे कि हम पतिपत्नी भी हैं. संस्कारी होने का मतलब यह नहीं है कि पतिपत्नी एकदूसरे से प्यार नहीं कर सकते, रोमांस नहीं कर सकते या डेट पर नहीं जा सकते और फिर किसी एक घटना की वजह से हम एकदूसरे का हाथ थामना छोड़ दें, प्यार करना छोड़ दें, खुल कर जीना छोड़ दें या प्यार जताना छोड़ दें, यह तो सही नहीं है न. इस दौड़तीभागती जिंदगी में पतिपत्नी को प्यार का दामन थामे रखना बहुत जरूरी है. तभी तो पतिपत्नी का जीवन सुखमय होगा. ज़रा सोचो, अगर पतिपत्नी के बीच प्रेम करना ग़लत है तो फिर हमारे पौराणिक कथाओं में कई जगहों पर रति और काम का उल्लेख क्यों किया गया है.”
मेरे समझाने का असर अतुल पर हुआ और आज पूरे 5 वर्षों बाद हम ने पूरी रात काफी रोमांटिक तरह से गुज़ारी. अगली सुबह भी अतुल के सिर पर रात की खुमारी छाई हुई थी, वह बैंक नहीं जाना चाहता था लेकिन शादी में जाने के लिए छुट्टी लेनी थी, इसलिए अतुल बैंक चला गया और मैं शादी में जाने की तैयारियों में जुट गई. शाम को जब अतुल बैंक से लौटा तो उसे देख कर आज मैं सरप्राईज रह गई. उस के हाथों में गुलाब का फूल था, जो मेरे लिए था. अतुल मुझे बांहों में भरते हुए बोला-
“अ ब्यूटीफुल रोज़ फार माई मोस्ट ब्यूटीफुल वाइफ.”
अतुल के ऐसा कहते ही मैं इतराती हुई खुद को अतुल से छुड़ाती हुई बोली-
“आप बैठो, मैं आप के लिए चाय लाती हूं.”
ऐसा कह कर मैं किचन की तरफ मुड़ी ही थी कि अतुल का मोबाइल बजा. मैं वहीं रुक गई. मम्मी जी का फोन था. वे जानना चाहती थीं कि हम शादी के लिए कब निकल रहे हैं. तभी अतुल गंभीर होते हुए बोला, “मम्मी, बैंक में काम बहुत है, हम शादी में नहीं आ पाएंगे.” ऐसा कह कर अतुल ने फोन रख दिया. यह सुनते ही मेरा चेहरा उतर गया और मैं शिक़ायतभरे अंदाज़ से अतुल की ओर देखने लगी. तभी अतुल ने मुझे अपनी ओर खींच कर सीने से लगा लिया और फिर मूवी के 2 टिकट मुझे दिखाते हुए बोला, “चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, पहले मूवी, फिर डिनर. जब तक घर के सभी लोग शादी से नहीं लौटते, यह बंदा तुम्हारी सेवा में हाजिर है.”
मैं मुसकराती हुई अतुल के गालों पर अपनी उंगली फेरती हुई बोली, “और घरवालों के आने के बाद…”
अतुल मुझे अपने और करीब खींचता हुआ अपने लबों को मेरे लबों के पास ला कर बोला, “रोमांस तो अब तब भी जारी रहेगा.”
यह सुन कर मैं हंस पड़ी और खुद को अतुल से अलग कर तैयार होने अपने रूम में आ गई. तैयार होते हुए मैं यह सोचने लगी कि जिंदगी में रोमांस का तड़का लगाना बहुत जरूरी है तभी तो यह शादीशुदा जिंदगी मसालेदार, जायकेदार और चटपटी बनती है और जीने का मज़ा आता है.