रिश्ता एहसासों का: क्या हो पाई नताशा और आदित्य की शादी?

चाइल्ड स्पैशलिस्ट पूरे रोहतक में डंका बजता. बच्चे को कोई भी तकलीफ हो बस उन्होंने अगर बच्चे को छू भी लिया तो सम झो वह ठीक. उन का एक ही बेटा था आदित्य. स्कूलिंग के लिए देहरादून में दून स्कूल में एडमिशन कराया.

डाक्टर रवि का सपना कि मेरा बेटा मु झ से भी काबिल डाक्टर बने. लेकिन आदित्य को तो कहीं और ही उगना था. उस का सपना था कि वह वर्ल्ड फेमस कोरियोग्राफर बनेगा.

खैर, स्कूल के बाद इसलिए कालेज की पढ़ाई करने मुंबई गया ताकि पढ़ाई भी पूरी हो जाए और शौक भी. पढ़ाई तो पूरी न हो सकी अलबत्ता शौक पूरा हो गया. कोरियोग्राफी सीखने लगा.

वहां पर किसी से मुहब्बत हो गई. मातापिता को बताया तो पापा बोले, ‘‘आदित्य, तेरी खुशी से बढ़ कर हमारे लिए इस जहां में और कुछ नहीं, अगर तु झे लगता है कि वह लड़की तेरे लिए सही है तो हमें क्या एतराज हो सकता है.’’

‘‘लेकिन पा… पा वो… वो… नताशा खान है,’’ आदित्य थोड़ा सा   झिझकते और हकलाते हुए बोला.

‘‘अरे तो क्या हुआ बेटा? तुम घबरा क्यों रहे हो. ये हिंदूमुसलिम हम इनसानों ने बनाए? कुदरत ने नहीं. उस ने तो केवल इनसान बनाया था… हम उस के मातापिता से बात करते हैं.’’

‘‘थैंक्यू पापा, थैंक्यू मम्मी…’’ वह खुश हो कर मांपापा के गले लग गया.

मगर उधर नताशा ने अपने घर में आदित्य के बारे में बताया तो भूचाल आ गया.

‘‘कान खोल कर सुन लो नताशा, आदित्य से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती और आज के बाद इस घर में मु झे आदित्य का नाम सुनाई नहीं देना चाहिए,’’ नताशा के डैड ने फरमान सुना दिया.

बात न बनती देख एक दिन नताशा ने

ठोस कदम उठाया और घर छोड़ कर चली आई आदित्य के पास.

बालिंग लड़की है, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. कोर्ट मैरिज कर ली. आदित्य के मातापिता को भी इस शादी को मानना ही था.

कैसा है आपसी तालमेल किसी को कुछ नहीं पता. या तो आदित्य जाने या वह जिस के साथ रहना है अर्थात आदित्य की पत्नी नताशा.

नताशा को कभी खाना तो दूर चाय तक बनानी नहीं आती थी. आदित्य बचपन से ही घर से दूर रहा. पहले देहरादून और फिर मुंबई. अकसर खाना बाहर का ही खाता. कभी जब घर आता तो मां के हाथ का खाना खा कर खुश हो जाता.

नताशा का कभी अगर घर में ही चाय पीने का मन होता तो वह भी आदित्य ही बना कर देता. नताशा को बनानी नहीं आती. आदित्य ने बहुत कहा, ‘‘नताशा, तुम थोड़ाबहुत मां से खाना बनाना सीख लो या कोई कुकिंग कोर्स कर लो.’’

नताशा का एक ही जवाब होता, ‘‘मु झ से यह तो होगा नहीं… मैं खाना बनाने के लिए नहीं पैदा हुई… ये इतने होटल किसलिए हैं?’’ रोज का यही काम तीनों समय खाना बाहर से ही आता.

 

एक बार बर्ड फ्लू फैला हर तरफ… न तो आदित्य को कुछ बनाना आता, न ही

नताशा बनाती. तब भी खाना बाहर से और्डर किया जाता.

आखिर शरीर है, कब तक बाहर का अनहाइजीनिक खाना सहन करता. मशीन में भी अगर तेल की जगह पानी या अन्य कोई गंदा तेल डालोगे तो वह भी खराब हो जाएगी.

आखिरकार आदित्य का शरीर भी अनहाइजैनिक खाना और अधिक सहन नहीं कर पाया. जवाब देने लगा. उस खाने को खा कर आदित्य अधिकतर बीमार रहने लगा. एक दिन बहुत बुरी तरह से पेट में दर्द उठा. तब डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने बताया कि फूड पौइजनिंग हो गई है.

फूड पौइजनिंग इस हद तक हो गई कि

3 महीने तक इलाज चला तब जा कर ठीक हुआ, अभी ठीक हुआ ही था कि फिर से आदित्य को लगा कि उसे कुछ प्रौब्लम है क्योंकि उस के पेशाब में मवाद सा उसे महसूस हुआ और साथ ही अकसर कमजोरी रहने लगी. कामधाम सब बंद हो गया. डाक्टर को दिखाने पर पता चला कि दोनों गुरदे खराब हो चुके हैं.

आदित्य ने मातापिता को तब जा कर अपनी बीमारी के बारे में बताया. नताशा ने अब तक सोच लिया था कि वह आदित्य को छोड़ देगी. वह इस बीमार और लाचार व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती. आदित्य के मातापिता ने जब उस की बीमारी का सुना तो  झट से टैक्सी बुलाई और पहुंच गए बेटे के पास. डाक्टर से किडनी बदलने के लिए बात की. लेकिन किडनी दे कौन.  मातापिता दोनों ही शुगर और हार्ट पेशैंट हैं, अब रही नताशा, सो नताशा से कहा गया तो उस ने साफ शब्दों में कहा, ‘‘पापाजी मैं आदित्य को तलाक दे रही हूं. मैं अब इस व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती,’’ कह कर उस ने अपने मायके के लिए गाड़ी पकड़ी और चली गई.

अगले ही दिन कोर्ट से तलाक के कागज आदित्य के पास पहुंच गए. आदित्य ने चुपचाप उन पर हस्ताक्षर कर दिए और मातापिता आदित्य को अपने साथ ले लाए.

आदित्य अब डायलिसिस पर है, लेकिन वह खुश है, वह मां के पास है, वह खुश है कि वह घर का साफसुथरा मां के हाथों का बना खाना खाता है. वह चहक उठता है जब मां उस के लिए दलिया या खिचड़ी भी बना देती हैं. वह खुश है नताशा की हर पल की चिकचिक नहीं सुननी पड़ती.

इधर नताशा कुछ दिन मुंबई अपनी सहेली के घर पर रही. लेकिन उस ने महसूस किया कि सहेली उसे बो झ सम झती है, उस पर उस का पति किसी न किसी बहाने से उसे छूता रहता. कभी जब उस की सहेली घर पर न होती और वह अकेली होती तो घर आ जाता और उसे परेशान करने लगता. आखिर उसे अलग से किराए का घर ले कर रहना पड़ा.

मगर यह क्या वह तो यहां भी सुरक्षित नहीं. अकसर बौस घर तक छोड़ने के बहाने आते और घंटों उस के घर बैठे रहते. कभी चाय, कभी कौफी लेते. कभी बहाने से नितंबों पर तो कभी गालों पर चपत मार कर बात करते.

एक बार तो कस कर सीने को पकड़ लिया. दर्द से उस की चीख निकल गई, जिस से ऊपर के फ्लैट वाली रूबी ने पूछा लिया, ‘‘क्या हुआ नताशा, फिर से छिपकली देख ली क्या?’’

‘‘उफ, हां भाभी, हां बहुत बड़ी छिपकली है, चली गई अब,’’  झूठ बोलना पड़ा. बौस जो ठहरे और तब बौस भी चले गए.

मगर नताशा सम झ चुकी थी कि अकेले रहना आसान नहीं. आदित्य को तलाक दे चुकी है, अब मायके के सिवा कोई जगह नजर नहीं आ रही थी.

आखिर मायके का रुख किया. सोचा वहीं पर कोई छोटीमोटी नौकरी कर के गुजारा कर लेगी. मगर घर पर सुरक्षित तो रहेगी, मगर बोया बबूल तो आम कहां से पाओगे.

वही हाल नताशा का था. घर में कदम रखते ही वह सम झ गई कि उस की यहां किसी को जरूरत नहीं. बिन बुलाया मेहमान है वह. डैड ने तो आते ही कह दिया, ‘‘आ गई न फिर से मेरे घर, क्या दिया आदित्य ने? उस की औकात ही नहीं थी, जो तु झे रखता. अब यहां क्या लेने आई है? जहां से आई है वहीं वापस जा. यह मेरा घर है धर्मशाला नहीं.

मातापिता हर समय तिरस्कार करते. भाईभाभी भी नौकरों की तरह काम लेते. उस पर भी तिरस्कृत होती रहती. आखिर एक स्कूल में नौकरी लगी. सोचा कुछ कमाएगी तो कोई कद्र भी करेगा.

यहां भी नजरों से नताशा के रूप का रस पीने वाले हजारों कीड़े थे. एक टीचर ने तो एक दिन सरेआम हथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘नताशा डार्लिंग उस लौंडे से कुछ नहीं मिला क्या जो उसे छोड़ आई है?’’

उस पर दूसरा बोला, ‘‘अरे तो हम हैं न, इस की हर ख्वाहिश पूरी कर देंगे. एक बार हमें सीने से तो लगाए, हम तो कब से तड़प रहे हैं. नताशा डियर बोलो कब और कहां मिलें?’’

नताशा की आंखें भर आईं. आज उसे आदित्य की बेहद याद आने लगी. उस ने फिर से एक ठोस कदम उठाया. घर आई, अपना सामान पैक किया और चल पड़ी मुंबई वापस उन्हीं गलियों की तरफ.

 

रास्ते में ही आदित्य के नंबर पर फोन मिलाया. लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. नताशा

लगातार रोए जा रही थी और अपनेआप से ही बोलती जा रही थी कि आदी प्लीज एक बार फोन उठाओ, मु झे तुम से माफी मांगनी है, मु झे वापस अपने घर आना है, मु झे तुम्हारे पास आना है. प्लीज आदी एक बार फोन उठा लो मेरा.

3-4 कौल के बाद आदित्य के पापा ने फोन उठाया. कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो, पापाजी, पापाजी मैं नताशा बोल

रही हूं.’’

‘‘हां बेटा मैं जानता हूं, कहो, कुछ काम था?’’

‘‘हां पापाजी, मु झे आदित्य से, आप सब से मिलना है, पापाजी मैं बहुत बुरी हूं, लेकिन फिर भी आप की बेटी हूं, मु झे माफ कर दीजिए, पापाजी आदित्य से भी कहें मु झे माफ कर दे और एक बार मु झ से बात कर ले. मैं वापस आ रही हूं पापाजी, मैं अपने घर वापस आ रही हूं. आप सब से माफी मांगने और आप सब का प्यार लेने,’’ नताशा बोले जा रही थी और रोए भी जा रही थी.

‘‘किस से माफी मांगेगी बेटा, वह तो चला गया हमें छोड़ कर हमेशाहमेशा के लिए, अभीअभी उस का क्रिमिशन कर के आ रहे हैं.’’

‘‘क्या, नहीं पापाजी, ऐसा नहीं हो सकता, कह दो यह  झूठ है, कह दो, एक बार कह दो कि यह  झूठ है,’’ और फोन हाथ से छूट गया और वह जारजार रोने लगी.

अगली बार कब

उफ, कल फिर शनिवार है, तीनों घर पर होंगे. मेरे दोनों बच्चों सौरभ और सुरभि की भी छुट्टी रहेगी और अमित भी 2 दिन फ्री होते हैं. मैं तो गृहिणी हूं ही. अब 2 दिन बातबात पर चिकचिक होती रहेगी. कभी बच्चों का आपस में झगड़ा होगा, तो कभी अमित बच्चों को किसी न किसी बात पर टोकेंगे. आजकल मुझे हफ्ते के ये दिन सब से लंबे दिन लगने लगे हैं. पहले ऐसा नहीं था. मुझे सप्ताहांत का बेसब्री से इंतजार रहता था. हम चारों कभी कहीं घूमने जाते थे, तो कभी घर पर ही लूडो या और कोई खेल खेलते थे. मैं मन ही मन अपने परिवार को हंसतेखेलते देख कर फूली नहीं समाती थी.

धीरेधीरे बच्चे बड़े हो गए. अब सुरभि सी.ए. कर रही है, तो सौरभ 11वीं क्लास में है. अब साथ बैठ कर हंसनेखेलने के वे क्षण कहीं खो गए थे.

मैं ने फिर भी जबरदस्ती यह नियम बना दिया था कि सोने से पहले आधा घंटा हम चारों साथ जरूर बैठेंगे, चाहे कोई कितना भी थका हुआ क्यों न हो और यह नियम भी अच्छाखासा चल रहा था. मुझे इस आधे घंटे का बेसब्री से इंतजार रहता था. लेकिन अब इस आधे घंटे का जो अंत होता है, उसे देख कर तो लगता है कि यह नियम मुझे खुद ही तोड़ना पड़ेगा.

दरअसल, अब होता यह है कि हम चारों की बैठक खत्म होतेहोते किसी न किसी का, किसी न किसी बात पर झगड़ा हो जाता है. मैं कभी सौरभ को समझाती हूं, कभी सुरभि को, तो कभी अमित को.

सुरभि तो कई बार यह कह कर मुझे बहुत प्यार करती है कि मम्मी, आप ही हमारे घर की बाइंडिंग फोर्स हो. सुरभि और मैं अब मांबेटी कम, सहेलियां ज्यादा हैं.

जब सप्ताहांत आता है, तो अमित फ्री होते हैं. थोड़ी देर मेल चैक करते हैं, फिर कुछ देर टीवी देखते हैं और फिर कभी सौरभ तो कभी सुरभि को किसी न किसी बात पर टोकते रहते हैं. बच्चे भी अपना तर्क रखते हुए बराबर जवाब देने लगते हैं, जिस से झगड़ा बढ़ जाता और फिर अमित का पारा हाई होता चला जाता है.

मैं अब सब के बीच तालमेल बैठातेबैठाते थक जाती हूं. मैं बहुत कोशिश करती हूं कि छुट्टी के दिन शांति प्यार से बीतें, लेकिन ऐसा होता नहीं है. कोई न कोई बात हो ही जाती है. बच्चों को लगता है कि पापा उन की बात नहीं समझ रहे हैं और अमित को लगता है कि बच्चों को उन की बात चुपचाप सुन लेनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि अमित बहुत रूखे, सख्त किस्म के इंसान हैं. वे बहुत शांत रहने और अपने परिवार को बहुत प्यार करने वाले इंसान हैं. लेकिन आजकल जब वे युवा बच्चों को किसी बात पर टोकते हैं, तो बच्चों के जवाब देने पर उन्हें गुस्सा आ जाता है. कभी बच्चे सही होते हैं, तो कभी अमित. जब मेरा मूड खराब होता है, तीनों एकदम सही हो जाते हैं.

वैसे मुझे जल्दी गुस्सा नहीं आता है, लेकिन जब आता है, तो मेरा अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहता है. वैसे मेरा गुस्सा खत्म भी जल्दी हो जाता है. पहले मैं भी बच्चों पर चिल्लाने लगती थी, लेकिन अब बच्चे बड़े हो गए हैं, मुझे उन पर चिल्लाना अच्छा नहीं लगता.

अब मैं ने अपने गुस्से के पलों का यह हल निकाला है कि मैं घर से बाहर चली जाती हूं. घर से थोड़ी दूर स्थित पार्क में बैठ या टहल कर लौट आती हूं. इस से मेरे गुस्से में चिल्लाना, फिर सिरदर्द से परेशान रहना बंद हो गया है. लेकिन ये तीनों मेरे गुस्से में घर से निकलने के कारण घबरा जाते हैं और होता यह है कि इन तीनों में से कोई न कोई मेरे पीछे चलता रहता है और मुझे पीछे देखे बिना ही यह पता होता है कि इन तीनों में से एक मेरे पीछे ही है. जब मेरा गुस्सा ठंडा होने लगता है, मैं घर आने के लिए मुड़ जाती हूं और जो भी पीछे होता है, वह भी मेरे साथ घर लौट आता है.

एक संडे को छोटी सी बात पर अमित और बच्चों में बहस हो गई. मैं तीनों को शांत करने लगी, मगर मेरी किसी ने नहीं सुनी. मेरी तबीयत पहले ही खराब थी. सिर में बहुत दर्द हो रहा था. जून का महीना था, 2 बज रहे थे. मैं गुस्से में चप्पलें पहन कर बाहर निकल गई. चिलचिलाती गरमी थी. मैं पार्क की तरफ चलती गई. गरमी से तबीयत और ज्यादा खराब होती महसूस हुई. मेरी आंखों में आंसू आ गए. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि इतनी बहस क्यों करते हैं ये लोग. मैं ने मुड़ कर देखा. सुरभि चुपचाप पसीना पोंछते मेरे पीछेपीछे आ रही थी. ऐसे समय में मुझे उस पर बहुत प्यार आता है, मैं उस के लिए रुक गई.

सुरभि ने मेरे पास पहुंच कर कहा, ‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है, मम्मी. क्यों आप अपनेआप को तकलीफ दे रही हैं?’’

मैं बस पार्क की तरफ चलती गई, वह भी मेरे साथसाथ चलने लगी. मैं पार्क में बेंच पर बैठ गई. मैं ने घड़ी पर नजर डाली. 4 बज रहे थे. बहुत गरमी थी.

सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी, कम से कम छाया में तो बैठो.’’

मैं उठ कर पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठ गई. सुरभि ने मुझ से धीरेधीरे सामान्य बातें करनी शुरू कर दीं. वह मुझे हंसाने की कोशिश करने लगी. उस की कोशिश रंग लाई और मैं धीरेधीरे अपने सामान्य मूड में आ गई.

तब सुरभि बोली, ‘‘मम्मी, एक बात कहूं मानेंगी?’’

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘मम्मी, आप गुस्से में यहां आ कर बैठ जाती हैं… इतनी धूप में यहां बैठी हैं. इस से आप को ही तकलीफ हो रही है न? घर पर तो पापा और सौरभ एयरकंडीशंड कमरे में बैठे हैं… मैं आप को एक आइडिया दूं?’’

मैं उस की बात ध्यान से सुन रही थी, मैं ने बताया न कि अब हम मांबेटी कम, सहेलियां ज्यादा हैं. अत: मैं ने कहा, ‘‘बोलो.’’

‘‘मम्मी, अगली बार जब आप को गुस्सा आए तो बस मैं जैसा कहूं आप वैसा ही करना. ठीक है न?’’

मैं मुसकरा दी और फिर हम घर आ गईं. आ कर देखा दोनों बापबेटे अपनेअपने कमरे में आराम फरमा रहे थे.

सुरभि ने कहा, ‘‘देखा, इन लोगों के लिए आप गरमी में निकली थीं.’’ फिर उस ने चाय और सैंडविच बनाए. सभी साथ चायनाश्ता करने लगे. तभी अमित ने कहा, ‘‘मैं ने सुरभि को जाते देख कर अंदाजा लगा लिया था कि तुम जल्द ही आ जाओगी.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सौरभ ने मुझे हमेशा की तरह ‘सौरी’ कहा और थोड़ी देर में सब सामान्य हो गया.

10-15 दिन शांति रही. फिर एक शनिवार को सौरभ अपना फुटबाल मैच खेल कर आया और आते ही लेट गया. अमित उस से पढ़ाई की बातें करने लगे जिस पर सौरभ ने कह दिया, ‘‘पापा, अभी मूड नहीं है. मैच खेल कर थक गया हूं… थोड़ी देर सोने के बाद पढ़ाई कर लूंगा.’’

अमित को गुस्सा आ गया और वे शुरू हो गए. सुरभि टीवी देख रही थी, वह भी अमित की डांट का शिकार हो गई. मैं खाना बना रही थी. भागी आई. अमित को शांत किया, ‘‘रहने दो अमित, आज छुट्टी है, पूरा हफ्ता पढ़ाई ही में तो बिजी रहते हैं.’’

अमित शांत नहीं हुए. उधर मेरी सब्जी जल रही थी, मेरा एक पैर किचन में, तो दूसरा बच्चों के बैडरूम में. मामला हमेशा की तरह मेरे हाथ से निकलने लगा तो मुझे गुस्सा आने लगा. मैं ने कहा, ‘‘आज छुट्टी है और मैं यह सोच कर किचन में कुछ स्पैशल बनाने में बिजी हूं कि सब साथ खाएंगे और तुम लोग हो कि मेरा दिमाग खराब करने पर तुले हो.’’

अमित सौरभ को कह रहे थे, ‘‘मैं देखता हूं अब तुम कैसे कोई मैच खेलते हो.’’

सौरभ रोने लगा. मैं ने बात टाली, ‘‘चलो, खाना बन गया है, सब डाइनिंग टेबल पर आ जाओ.’’

सौरभ ने कहा, ‘‘अभी भूख नहीं है. समोसे खा कर आया हूं.’’

यह सुनते ही अमित और भड़क उठे. इस के बाद बात इतनी बढ़ गई कि मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा.

‘‘तुम लोगों की जो मरजी हो करो,’’ कह लंच छोड़ कर सुरभि पर एक नजर डाल कर मैं निकल गई. मैं मन ही मन थोड़ा चौंकी भी, क्योंकि मैं ने सुरभि को मुसकराते देखा. आज तक ऐसा नहीं हुआ था. मैं परेशान होऊं और मेरी बेटी मुसकराए. मैं थोड़ा आगे निकली तो सुरभि मेरे पास पहुंच कर बोली, ‘‘मम्मी, आप ने कहा था कि अगली बार मूड खराब होने पर आप मेरी बात मानेंगी?’’

‘‘हां, क्या बात है?’’

‘‘मम्मी, आप क्यों गरमी में इधरउधर भटकें? पापा और भैया दोनों सोचते हैं आप थोड़ी देर में मेरे साथ घर आ जाएंगी… आप आज मेरे साथ चलो,’’ कह कर उस ने अपने हाथ में लिया हुआ मेरा पर्स मुझे दिखाया.

मैं ने कहा, ‘‘मेरा पर्स क्यों लाई हो?’’

सुरभि हंसी, ‘‘चलो न मम्मी, आज गुस्सा ऐंजौय करते हैं,’’ और फिर एक आटो रोक कर उस में मेरा हाथ पकड़ती हुई बैठ गई.

मैं ने पूछा, ‘‘यह क्या है? हम कहां जा रहे हैं?’’ और मैं ने अपने कपड़ों पर नजर डाली, मैं कुरता और चूड़ीदार पहने हुए थी.

सुरभि बोली, ‘‘आप चिंता न करें, अच्छी लग रही हैं.’’

वंडरमौल पहुंच कर आटो से उतर कर हम  पिज्जा हट’ में घुस गए.

मैं हंसी तो सुरभि खुश हो गई, बोली, ‘‘यह हुई न बात. चलो, शांति से लंच करते हैं.’’

तभी सुरभि के सैल पर अमित का फोन आया. पूछा, ‘‘नेहा कहां है?’’

सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी मेरे साथ हैं… बहुत गुस्से में हैं… पापा, हम थोड़ी देर में आ जाएंगे.’’

फिर हम ने पिज्जा आर्डर किया. हम पिज्जा खा ही रहे थे कि फिर अमित का फोन आ गया. सुरभि से कहा कि नेहा से बात करवाओ.

मैं ने फोन लिया, तो अमित ने कहा, ‘‘उफ, नेहा सौरी, अब आ जाओ, बड़ी भूख लगी है.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी नहीं, थोड़ा और चिल्ला लो… खाना तैयार है किचन में, खा लेना दोनों, मैं थोड़ा दूर निकल आई हूं, आने में टाइम लगेगा.’’

कुछ ही देर में सौरभ का फोन आ गया, ‘‘सौरी मम्मी, जल्दी आ जाओ, भूख लगी है.’’

मैं ने उस से भी वही कहा, जो अमित से कहा था.

‘पिज्जा हट’ से हम निकले तो सुरभि ने कहा, ‘‘चलो मम्मी, पिक्चर भी देख लें.’’

मैं तैयार हो गई. मेरा भी घर जाने का मन नहीं कर रहा था. वैसे भी पिक्चर देखना मुझे पसंद है. हम ने टिकट लिए और आराम से फिल्म देखने बैठ गए. बीचबीच में सुरभि अमित और सौरभ को मैसज देती रही कि हमें आने में देर होगी… आज मम्मी का मूड बहुत खराब है. जब अमित बहुत परेशान हो गए तो उन्होंने कहा कि वे हमें लेने आ रहे हैं. पूछा हम कहां हैं. तब मैं ने ही अमित से कहा कि मैं जहां भी हूं शांति से हूं, थोड़ी देर में आ जाऊंगी.

फिल्म खत्म होते ही हम ने जल्दी से आटो लिया. रास्ता भर हंसते रहे हम… बहुत मजा आया था. घर पहुंचे तो बेचैन से अमित ने ही दरवाजा खोला. मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘ओह नेहा, इतना गुस्सा, आज तो जैसे तुम घर आने को ही तैयार नहीं थी, मैं पार्क में भी देखने गया था.’’

सुरभि ने मुझे आंख मारी. मैं ने किसी तरह अपनी हंसी रोकी. सौरभ भी रोनी सूरत लिए मुझ से लिपट गया. बोला, ‘‘अच्छा मम्मी अब मैं कभी कोई उलटा जवाब नहीं दूंगा.’’

दोनों ने खाना नहीं खाया था, मुझे बुरा लगा.

अमित बोले, ‘‘चलो, अब कुछ खिला दो और खुद भी कुछ खा लो.’’

सुरभि ने मुझे देखा तो मैं ने उसे खाना लगाने का इशारा किया और फिर खुद भी उस के साथ किचन में सब के लिए खाना गरम करने लगी. हम दोनों ने तो नाम के कौर ही मुंह में डाले. मैं गंभीर बनी बैठी थी.

अमित ने कहा, ‘‘चलो, आज से कोई किसी पर नहीं चिल्लाएगा, तुम कहीं मत जाया करो.’’

सौरभ भी कहने लगा, ‘‘हां मम्मी, अब कोई गुस्सा नहीं करेगा, आप कहीं मत जाया करो… बहुत खराब लगता है.’’

और सुरभि वह तो आज के प्रोग्राम से इतनी उत्साहित थी कि उस का मुसकराता चेहरा और चमकती आंखें मानो मुझ से पूछ रही थीं कि अगली बार आप को गुस्सा कब आएगा?

पर्सनल स्पेस- क्यों नेहा के पास जाने को बेताब हो उठा मोहित?

आज औफिस में मैं बिलकुल भी ढंग से काम नहीं कर सका था. इस कारण बौस से तो कई बार डांट खानी पड़ी ही, सहयोगियों के साथ भी झड़प हो गई थी.

आखिर में तंग आ कर मैं ने औफिस से1 घंटा पहले जाने की अनुमति बौस से मांगी, तो उन्होंने तीखे शब्दों में मुझ से कहा, ‘‘मोहित, आज सारा दिन तुम ने कोई भी काम ढंग से नहीं किया है. मुझे छोटीछोटी बातों पर

किसी को डांटना अच्छा नहीं लगता. मुझे उम्मीद है कि कल तुम्हारा चेहरा मुझे यों लटका हुआ नहीं दिखेगा.’’

‘‘बिलकुल नहीं दिखेगा, सर,’’ ऐसा वादा कर मैं उन के कक्ष से बाहर आ गया.

औफिस से निकल कर मैं मोटरसाइकिल से बाजार जाने को निकल पड़ा. मुझे अपनी पत्नी नेहा के लिए कोई अच्छा सा गिफ्ट लेना था.

हमारी शादी को अभी 4 महीने ही हुए हैं. वह मेरे सुख व खुशियों का बहुत ध्यान रखती है. मेरी पसंद पूछे बिना मजाल है वह कोई काम कर ले.

पिछले गुरुवार को उस का यही प्यार भरा व्यवहार मुझे ऐसा खला कि मैं ने उसे शादी के बाद पहली बार बहुत जोर से डांट दिया था.

उस दिन हमें रवि की शादी की पहली सालगिरह की पार्टी में जाना था. जगहजगह टै्रफिक जाम मिलने के कारण मुझे औफिस से घर पहुंचने में पहले ही देर हो गई थी. ऊपर से ये देख कर मेरा गुस्सा बढ़ने लगा कि नेहा समय से तैयार होना शुरू करने की बजाय मेरे घर पहुंचने का इंतजार कर रही थी.

‘‘इन में से मैं कौन सी साड़ी पहनूं, यह तो बता दो?’’ आदत के अनुरूप उस ने इस मामले में भी मेरी पसंद जाननी चाही थी.

‘‘नीली साड़ी पहन लो,’’ अपना व उस का मूड खराब करने से बचने के लिए मैं ने अपनी आवाज में गुस्से के भाव पैदा नहीं होने दिए थे.

‘‘मुझे लग रहा है कि मैं ने इसे तब भी पहना था, जब हम रवि के घर पहली बार डिनर करने गए थे.’’

‘‘तो कोई दूसरी साड़ी पहन लो.’’

‘‘आप प्लीज बताओ न कि कौन सी पहनूं?’’

इस बार मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं उस पर जोर से चिल्ला उठा, ‘‘यार, तुम जल्दी तैयार होने के बजाय फालतू की बातें करने में समय बरबाद क्यों कर रही हो? हर काम करने से पहले मेरी जान खाने की बजाय तुम अपनेआप फैसला क्यों नहीं करतीं कि क्या किया जाए, क्या न किया जाए? मुझे ऐसा बचकाना व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगता है.’’

पार्टी में पहुंच कर उस का मूड पूरी तरह से ठीक हो गया, पर मेरा मूड उस के चिपकू व्यवहार के कारण खराब बना रहा.

रवि मेरा कालेज का दोस्त है. उस पार्टी में शामिल होने कालेज के और भी बहुत से दोस्त आए थे. मैं कुछ समय अपने इन पुराने दोस्तों के साथ बिताना चाहता था, पर नेहा मेरा हाथ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी.

कुछ देर के लिए जब वह फ्रैश होने गई, तब मैं अपने दोस्तों के पास पहुंच गया था. मेरे दोस्त मौका नहीं चूके और नेहा का चिपकू व्यवहार मेरी खिंचाई का कारण बन गया था.

मुंहफट सुमित ने मेरा मजाक उड़ाते हुए कह भी दिया, ‘‘अबे मोहित, ऐसा लगता है कि तू ने तो किसी थानेदारनी के साथ शादी कर ली है. नेहा भाभी तो तुझे बिलकुल पर्सनल स्पेस नहीं देती हैं.’’

‘‘शायद मोहित शादी के बाद भी हर सुंदर लड़की के साथ इश्क लड़ाने को उतावला रहता होगा, तभी भाभी इस की इतनी जबरदस्त चौकीदारी करती हैं,’’ कुंआरे नीरज के इस मजाक पर सभी दोस्तों ने एकसाथ ठहाका लगाया था.

अपने मन की खीज को काबू में रखते हुए मैं ने जवाब दिया, ‘‘वह थानेदारनी नहीं बल्कि बहुत डिवोटिड वाइफ है. तुम सब अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कितनी केयरिंग और घर संभालने में कितनी कुशल है.’’

‘‘अपना यार तो बेडि़यों को ही आभूषण समझने लगा है,’’ नीरज के इस मजाक पर जब दोस्तों ने एक और जोरदार ठहाका लगाया, तो मैं मन ही मन नेहा से चिढ़ उठा था.

पार्टी में हमारे साथ पढ़ी सीमा भी मौजूद थी. वह कुछ दिनों के लिए मुंबई से यहां मायके में अकेली रहने आई थी. पति के साथ न होने के कारण वह खूब खुल कर कालेज के पुराने दोस्तों से हंसबोल रही थी. मेरे मन में उस के ऊपर डोरे डालने जैसा कोई खोट नहीं था, पर कुछ देर उस के साथ हलकेफुलके अंदाज में फ्लर्ट करने का मजा मैं जरूर लेना चाहता था.

नेहा के हर समय चिपके रहने के कारण मैं उस के साथ कुछ देर भी मस्ती भरी गपशप नहीं कर सका. अपने सारे दोस्तों को उस के साथ खूब ठहाके लगाते देख मेरा मन खिन्न हो उठा.

मुझे थोड़ा सा भी समय अपने ढंग से जीने के लिए नहीं मिल रहा है, मेरे मन में इस शिकायत की जड़ें पलपल मजबूत होती चली गई थीं.

मैं खराब मूड के साथ पार्टी से घर लौटा था. मेरे माथे पर खिंची तनाव की रेखाएं देख कर नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘क्या सिर में दर्द हो रहा है?’’

‘‘हां, मुझे भयंकर सिरदर्द हो रहा है, पर तुम सिर दबाने की बात मुंह से निकालना भी मत,’’ मैं ने रूखे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं सिर दबा दूंगी तो आप की तबीयत जल्दी ठीक हो जाएगी,’’ मेरी रुखाई देख कर उस का चेहरा फौरन उतर सा गया था.

‘‘मुझे सिरदर्द जल्दी ठीक नहीं करना है. अब तुम मेरा सिर खाना बंद करो, क्योंकि मैं कुछ देर शांति से अकेले बैठना चाहता हूं. मुझे खुशी व सुकून से जीने के लिए पर्सनल स्पेस चाहिए, यह बात तुम जितनी जल्दी समझ लोगी उतना अच्छा रहेगा,’’ मैं उस के ऊपर जोर से गुर्राया, तो वह आंसू बहाती हुई मेरे सामने से हट गई थी.

अगले दिन मैं ने उस के साथ ढंग से बात नहीं की. वह रात को मुझ से लिपट कर सोने लगी, तो मैं ने उसे दूर धकेला और करवट बदल ली. मुझे उस का अपने साथ चिपक कर रहना फिलहाल बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रहा था.

अगले दिन शनिवार की सुबह मैं जब औफिस जाने को घर से निकलने लगा, तब उस ने मुझ से दुखी व उदास लहजे में कहा था, ‘‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है. आज अपने भाई के साथ मैं कुछ दिनों के लिए मायके रहने जा रही हूं. मेरी अनुपस्थिति में आप जी भर कर पर्सनल स्पेस का मजा ले लेना.’’

मैं ने उसे रुकने के लिए एक बार भी नहीं कहा, क्योंकि मैं सचमुच कुछ दिनों के लिए अपने ढंग से अकेले जीना चाहता था.

नेहा से मिली आजादी का फायदा उठाने के लिए मैं ने उस दिन औफिस खत्म होने के बाद अपने दोस्त नीरज को फोन किया. उस ने फौरन मुझे अपने घर आने की दावत दे दी, क्योंकि वह मुफ्त की शराब पीने को हमेशा ही तैयार रहता था.

हम दोनों ने उस के ड्राइंगरूम में बैठ कर शराब पी. हमारी महफिल सजने के कारण उस की पत्नी कविता का मूड खराब नजर आ रहा था, पर हम दोनों ने अपनी मस्ती के चलते इस बात की फिक्र नहीं की.

शराब खत्म हो जाने के बाद मुझे मालूम पड़ा कि मेरा दोस्त बदल चुका था. नीरज ने कविता के डर के कारण मुझे डिनर कराए बिना ही घर से विदा कर दिया.

मैं ने बाहर से बर्गर खाया और घर लौट कर नीरज को मन ही मन ढेर सारी गालियां देता पलंग पर ढेर हो गया.

पार्टी के दिन सीमा से खुल कर हंसीमजाक न कर पाने की बात अभी भी मेरे मन में अटकी हुई थी. इतवार की सुबह मैं ने रवि से उस का फोन नंबर ले कर उस के साथ लंच करने का कार्यक्रम बना लिया.

हम 12 बजे एक चाइनीज रेस्तरां में मिले. पहले मैं ने उसे बढि़या लंच कराया और फिर हम बाजार में घूमने लगे. उस की खनकती हंसी और बातें करने का दिलकश अंदाज लगातार मेरे मन को गुदगुदाए जा रहा था.

कुछ देर बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या हम मैटनी शो देखने चलें?’’

‘‘नहीं,’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर जवाब दिया.

‘‘क्यों मना कर रही हो?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘हाल के अंधेरे में तुम अपने हाथों को काबू में नहीं रख पाओगे.’’

‘‘मैं वादा करता हूं कि बिलकुल शरीफ बच्चा बन कर फिल्म देखूंगा.’’

‘‘सौरी मोहित, शादी के बाद तुम्हें नेहा के प्रति वफादार रहना चाहिए.’’

उस का यह वाक्य मेरे मन को बुरी तरह चुभ गया. मैं ने उस से चिढ़ कर पूछा, ‘‘क्या तुम अपने पति के प्रति वफादार हो?’’

‘‘मैं उन के प्रति पूरी तरह से वफादार हूं,’’ उस का इतरा कर यह जवाब देना मेरी चिढ़ को और ज्यादा बढ़ा गया.

‘‘फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि अगर मैं जरा सी भी कोशिश करूं, तो तुम मेरे साथ सोने को राजी हो जाओगी.’’

‘‘शटअप.’’ उस ने मुझे चिढ़ कर डांटा, तो मैं उस का मजाक उड़ाने वाले अंदाज में हंस पड़ा था.

मेरे खराब व्यवहार के लिए उस ने मुझे माफ नहीं किया और कुछ मिनट बाद जरूरी काम होने का बहाना बना कर चली गई. मुझे उस के चले जाने का अफसोस तो नहीं हुआ, पर मन अजीब सी उदासी का शिकार जरूर हो गया.

मैं ने अकेले ही फिल्म देखी और बाद में देर रात तक बाजार में अकारण घूमता रहा. उस रात भी मैं ढंग से सो नहीं सका, क्योंकि नेहा की याद बहुत सता रही थी. बारबार उस से फोन पर बातें करने की इच्छा हो रही थी, पर उस के साथ गलत व्यवहार करने के अपराधबोध ने ऐसा नहीं करने दिया.

सोमवार को औफिस में दिन गुजारना मेरे लिए मुश्किल हो गया था. काम में मन न लगने के कारण बौस से कई बार डांट खाई. जब वहां रुकना बेहद कठिन हो गया, तो बौस से इजाजत ले कर मैं घंटा भर पहले औफिस से बाहर आ गया था.

औफिस से निकलने के घंटे भर बाद मैं ने नेहा को फोन कर के उलाहना दिया, ‘‘तुम इतनी ज्यादा निर्मोही कैसे हो गई हो? आज दिन भर फोन कर के मेरा हालचाल क्यों नहीं पूछा?’’

‘‘मैं ने तो आप की नाराजगी व डांट के डर से फोन नहीं किया,’’ उस की आवाज का कंपन बता रहा था कि मेरी आवाज सुन कर वह भावुक हो उठी थी.

‘‘तुम्हारा फोन आने से मैं नाराज क्यों होऊंगा?’’

‘‘मैं फोन करती तो आप जरूर डांट कर कहते कि मैं मायके में रह कर भी आप को चैन से जीने नहीं दे रही हूं.’’

‘‘मैं पागल हूं, जो तुम्हें अकारण डांटूंगा. मुझे लगता है कि मायके पहुंच कर तुम्हें मेरा ध्यान ही नहीं आया.’’

‘‘जिस के अंदर मेरी जान बसती है, उस का ध्यान मुझे कैसे नहीं आएगा?’’

‘‘तो वापस कब आओगी?’’

‘‘आप आज लेने आ जाओगे, तो आज ही साथ चल चलूंगी.’’

‘‘मैं तो आ गया हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है, पगली?’’

‘‘क्या बारबार घंटी आप बजा रहे हो?’’

‘‘दरवाजा खोल कर देख लो न मेरी जान.’’

‘‘मैं अभी आई.’’

उस की उतावलेपन व खुशी से भरी आवाज सुन कर मैं जोर से हंस पड़ा था.

दरवाजा खोल कर जब नेहा ने मुझे फूलों का बहुत सुंदर सा गुलदस्ता हाथ में लिए खड़ा देखा, तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. अपना उपहार स्वीकार करने के बाद वह मेरी छाती से लिपट कर खुशी के आंसू बहाने लगी.

मुझे इस समय उस की वह बात ध्यान आ रही थी, जो उस ने मायके आने से पहले कही थी, ‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है.’

मैं ने उस का माथा चूम कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ में यह आ गया

है कि तुम्हारे अलावा मेरी जिंदगी में खुशियां भरने की किसी के पास फुरसत नहीं है. मुझे अपनी जिंदगी में पर्सनल स्पेस नहीं, बल्कि तुम्हारा प्यार भरा साथ चाहिए. भविष्य में मेरी बातों का बुरा मान कर फिर कभी मुझे अकेला मत छोड़ना.’’

‘‘कभी नहीं छोड़ूंगी.’’ अपनी मम्मी की उपस्थिति की परवाह न करते हुए उस ने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित किया और फिर शरमा भी गई.

उस ने कुछ देर बाद ही मेरे साथ सट कर बैठते हुए ढेर सारे सवाल पूछने शुरू कर दिए. मुझे उस के सवालों का जवाब देने में अब कोई परेशानी महसूस नहीं हो रही थी. उस से दूर रहने के मेरे अनुभव इतने घटिया रहे थे कि मेरे सिर से पर्सनल स्पेस में जीने का भूत पूरी तरह से उतर गया था.

नो गिल्ट ट्रिप प्लीज

नेहा औफिस से निकली तो कपिल बाइक पर उस का इंतज़ार कर रहा था. वह इठलाती हुई उस की कमर में हाथ डाल कर उस के पीछे बैठ गई फिर मुंह पर स्कार्फ बांध लिया.

कपिल ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की. सड़क के ट्रैफिक से दूर बाइक पर जब कुछ खाली रोड पर निकली तो नेहा ने कपिल की गरदन पर किस कर दिया. कपिल ने सुनसान जगह देख कर बाइक एक किनारे लगा दी. नेहा हंसती हुई बाइक से उतरी और  कपिल ने जैसे ही हैलमेट उतार कर रखा, नेहा ने कपिल के गले में बांहें डाल दीं. कपिल ने भी उस की कमर में हाथ डाल उसे अपने से और सटा लिया. दोनों काफी देर तक एकदूसरे में खोए रहे.

उतरतीचढ़ती सांसों को काबू में करते हुए नेहा बोली,” सुनो, अभी मेरे घर चलना चाहोगे?”

”क्या?” कपिल हैरान हो गया.

”हां, घर पर कोई नहीं है, चलो न.”

”तुम्हारे मम्मीपापा कहां गए?”

”किसी की डैथ पर अफसोस करने गए हैं, रात तक आएंगे.”

”तो चलो, फिर हम देर क्यों कर रहे हैं? मैं तो अभी से सोच कर मरा जा रहा हूं कि क्या हम सचमुच अभी वही करने जा रहे हैं जो हम 15 दिनों से नहीं कर पाए. यार, रूड़की में जगह ही नहीं मिलती. पिछली बार मेरे घर पर कोई नहीं था, तब मौका मिला था.”

”चलो अब, बातें नहीं कुछ और करने का मूड है अभी.”

कपिल ने बड़े उत्साह से बाइक नेहा के घर की तरफ दौड़ा दी. रास्ते भर मुंह पर स्कार्फ बांधे नेहा कपिल की कमर में बाहें डाल उस से लिपटी रही. दोनों युवा प्रेमी अपनीअपनी धुन में खोए हुए थे.

दोनों का अफेयर 2 साल से चल रहा था. दोनों का औफिस एक ही बिल्डिंग में था. इसी बिल्डिंग में कभी कैफेटैरिया में, तो कभी लिफ्ट में मिलते रहने से दोनों की जानपहचान हुई थी. दोनों ने एकदूसरे को देखते ही पसंद कर लिया था.

नेहा की बोल्डनैस पर कपिल फिदा था तो कपिल के शांत व सौम्य स्वभाव पर नेहा मुग्ध हो गई थी. इन 2 सालों में दोनों पता नहीं कितनी बार शारीरिक रूप से भी पास आ गए थे. नेहा लाइफ को खुल कर जीना चाहती थी. कई बार तो कपिल उस के जीने के ढंग को देख कर हैरान रह जाता.

नेहा के घर में उसके पेरैंट्स थे. दोनों कामकाजी थे. छोटा भाई कालेज में पढ़ रहा था. कपिल अपने पेरैंट्स की इकलौती संतान था. उस की मम्मी हाउसवाइफ थी. कपिल के पिता रवि एक बिल्डर थे. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी.

कपिल ने अपने घर में नेहा के बारे में बता दिया था. नेहा को बहू बनाने में कपिल के पेरैंट्स को कोई आपत्ति  नहीं थी. नेहा कपिल के घर भी आतीजाती रहती पर नेहा के घर में कपिल के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था.

हमेशा की तरह कपिल ने नेहा की बिल्डिंग से कुछ दूर एक शौपिंग कौंप्लैक्स की पार्किंग में बाइक खड़ी की. पहले नेहा अपने घर गई. थोड़ी देर बाद कपिल उस के घर पहुंचा. पहले भी घर पर किसी के न होने का  दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था.

घर में अंदर जाते ही कपिल ने अपना बैग एक तरफ रख नेहा को बांहों में भर लिया. उस पर अपने प्यार की बरसात कर दी. नेहा ने उस बरसात में अपनेआप को पूरी तरह भीग जाने दिया. प्यार की यह बरसात नेहा के बैड पर कुछ देर बाद ही रुकी.

कपिल ने कहा,”यार, अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता, चलो न, शादी कर लेते हैं. देर क्यों कर रही हो?”

नेहा ने अपने बोल्ड अंदाज में कहा,”शादी के लिए क्यों परेशान हो?, जो बाद में करना है अभी कर ही रहे हैं न.”

‘अरे ,ऐसे नहीं, अब चोरीचोरी नहीं, खुल कर अपने घर में तुम्हारे साथ रहना है.”

”पर मेरा मूड शादी का नहीं है, कपिल.”

”कब तक इंतजार करवाओगी?”

”पर मैं ने तो यह कभी नहीं कहा कि मैं तुम से शादी जल्दी ही करूंगी.”

”पर मैं तो तुम से ही करूंगा, मैं तुम्हारे बिना जी ही नहीं सकता, नेहा. मैं ने सिर्फ तुम से ही प्यार किया है.”

”ओह, कपिल,” कहते हुए नेहा ने फिर कपिल के गले में बांहें डाल दीं, कहा, ”चलो, अब तुम्हे फिर कौफी पिलाती हूं.”

दोनों ने कौफी भी काफी रोमांस करते हुए पी. कपिल थोड़ी देर बाद चला गया. हर समय टच में रहने के लिए व्हाट्सऐप था ही.

यह दोनों का रोज का नियम था कि कपिल ही नेहा को उस के घर छोड़ कर जाता. कपिल ने घर जा कर साफसाफ बताया कि वह नेहा के साथ था.

उस की मम्मी सुधा ने कहा,” बेटा, तुम दोनों शादी क्यों नहीं कर रहे हो? अब दोनों ही अच्छी नौकरी भी कर रहे हो, तो देर किस बात की है?”

”मम्मी, अभी नेहा शादी नहीं करना चाहती.”

”फिर कब तक करेगी ?उस के पेरैंट्स क्या कहते हैं?”

”कुछ नहीं,मम्मी. अभी तो उस ने अपने घर में हमारे बारे में बताया ही नहीं.”

”यह क्या बात हुई ?”

”छोड़ो मम्मी, जैसा नेहा को ठीक लगे. वह शायद और टाइम लेना चाहती है.”

”बेटा, एक बात और मेरे मन में है. क्या तुम उस से निभा लोगे? वह काफी बोल्ड लड़की है, तुम ठहरे सीधेसादे.”

”मम्मी, वह आज की लड़की है. आज की लड़कियां आप के टाइम से थोड़ी अलग होती हैं. नेहा बोल्ड है मगर गलत नहीं. आप चिंता न करो वह शायद कुछ और रुकना चाहती है.”

“पर मुझे लगता है अब तुम सीरियसली शादी के बारे में सोचो.”

”अच्छा ठीक है मम्मी, उस से बात करता हूं.”

2 दिन बाद ही नेहा ने कपिल से कहा,”यार, लौटरी लग गई, मेरा भाई दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा है और मेरे चाचा की तबीयत खराब हो गई है. मेरे मम्मीपापा उन्हें देखने दिल्ली जा रहे हैं. चलो, अब तुम भी अपने घर बोल दो कि तुम भी टूर पर जा रहे हो. दोनों औफिस से छुट्टी ले कर जम कर घर पर ऐश करेंगे.”

”सच?”

”लाइफ ऐंजौय करेंगे, यार. आ जाओ, खाना बाहर से और्डर करेंगे. बस सिर्फ ऐश ही ऐश.”

कपिल नेहा को दिलोजान से चाहता था. जैसा उस ने कहा था कपिल ने वैसा ही किया. वह अपने घर पर टूर पर जाने की बात बता कर नेहा के घर रात गुजारने के लिए अपने कपङे वगैरह ले कर आ गया. दोनों ने जीभर कर रोमांस किया. जब मन हुआ पास आए, एकदूसरे में खोए रहे.

कपिल ने कहा,”यार, तुम्हारे साथ ये पल ही मेरा जीवन हैं. अब तुम हमेशा के लिए मेरी लाइफ में जल्दी आ जाओ. अब मैं नहीं रुक सकता बोलो, कब मिला रही हो अपने पेरैंट्स से?”

नेहा ने प्यार से झिड़का,”तुम क्या यह शादीशादी करते रहते हो? शादी की क्या आफत आई है? और मैं तुम्हें कितनी बार बता चुकी हूं कि मेरा मूड शादी करने का नहीं है.”

अब कपिल गंभीर हुआ,”नेहा, यह क्या कहती रहती हो? मेरी मम्मी बारबार मुझे शादी करने के लिए कह रही हैं और हम रूक क्यों रहे हैं ?”

नेहा ने अब शांत पर गंभीर स्वर में कहा ,”देखो, मैं अभी काफी साल शादी के बंधन में नहीं बंधने वाली. अभी मैं सिर्फ 26 साल की हूं और लाइफ ऐंजौय कर रही हूं.”

”पर मैं 30 का हो रहा हूं. आज नहीं तो कल हमें शादी करनी ही है. एकदूसरे के इतने करीब हैं तो चोरीचोरी कब तक क्यों मिलें?”

”यह मैं ने कब कहा कि आज नहीं तो कल हम शादी कर ही रहे हैं?”

”मतलब ?”

”देखो, कपिल अब तक मैं ने तुम्हें अपने पेरैंट्स से इसलिए नहीं मिलवाया क्योंकि अरैंज्ड मैरिज तो हमारी होगी नहीं क्योंकि हम अलगअलग जाति के हैं. मेरे पेरैंट्स ठहरे पक्के पंडित और तुम हम से नीची जाति के. अभी इस उम्र में जाति को ले कर मुझे टैंशन चाहिए ही नहीं. हम प्यार, रोमांस सैक्स सब कुछ तो ऐंजौय कर रहे हैं, तुम शादी के पीछे क्यों पड़े हो? शादी तो अभी दूरदूर तक मैं नहीं करने वाली.”

”क्या तुम मुझे प्यार नहीं करतीं?”

”करती तो हूं.”

”फिर तुम्हारा मन नहीं करता कि हम दोनों एकसाथ रहने के लिए शादी कर लें?”

‘नहीं, यह मन तो नहीं करता मेरा.”

”अच्छा बताओ, कितने दिन रुकना चाहती हो, मैं तुम्हारा इंतजिर करूंगा.”

”मुझे नहीं पता.”

कपिल कुछ गंभीर सा बैठ गया तो नेहा ने शरारती अंदाज में मस्ती शुरू कर दी. कहा,”मैं तुम्हें फिर कहती हूं कि शादी की रट छोड़ो, लाइफ को ऐंजौय करो.”

”मतलब तुम मुझ से शादी नहीं करोगी?”

”नहीं.”

”मैं समझ ही नहीं पा रहा, नेहा यह सब क्या है? तुम 2 साल से मेरे साथ रिलैशनशिप में हो, पता नहीं कितनी बार हम ने सैक्स किया होगा और तुम कह रही हो कि मुझ से शादी नहीं करोगी?”

“सैक्स कर लिया तो कौन सा गुनाह कर लिया? हम एकदूसरे को पसंद करते थे और करीब आ गए. अच्छा लगा. इस में शादी कहां से आ गई?”

”तो शादी कब और किस से करने वाली हो ?”

”अभी तो कुछ भी नहीं पता. मैं यह सोच कर तुम से सैक्स थोड़े ही कर रही थी कि तुम से ही शादी करूंगी. कपिल, अब वह जमाना गया जब कोई लड़की किसी लङके को इसलिए अपने पास आने देती थी कि उसी से शादी करेगी. ऐसा कुछ नहीं है अब. कम से कम मैं ऐसा नहीं सोचती. अभी मैं लाइफ ऐंजौय करने के मूड में हूं. अभी गृहस्थी संभालने का मेरा कोई मूड नहीं. तुम भी अब यह शादी शादी की रट छोड़ दो और ऐंजौय करो.”

”नहीं… नेहा मैं इस रिश्ते को कोई नाम देना चाहता हूं.”

नेहा अब झुंझला गई,” तो कोई ऐसी लड़की ढूंढ़ लो जो तुम से अभी शादी कर ले.”

कपिल ने भावुक हो कर उस का हाथ पकड़ लिया,”ऐसा कभी न कहना नेहा. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.”

”अरे, सब कहने की बातें हैं. रोज हजारों दिल जुड़ते हैं और हजारों टूटते हैं. सब चलता रहता है.”

कपिल की आंखों में सचमुच नमी आ गई. यह नमी गालों पर भी बह गई  तो नेहा हंस पड़ी,” यह क्या कपिल, इतना इमोशनल क्यों हो यार… रिलैक्स.”

”कभी मुझ से दूर मत होना, नेहा. आई रियली लव यू , कहतेकहते कपिल ने उसे बांहों में भर कर किस कर दिया. नेहा भी उस के पास सिमट आई. थोड़ी देर रोमांस चलता रहा.

काफी समय दोनों ने साथ बिता लिया था. अगले दिन कपिल घर जाने लगा तो नेहा ने कहा,”कपिल, बी प्रैक्टिकल.”

कपिल ने उसे घूरा तो वह हंस पड़ी और कहा ,”प्रैक्टिकल होने में ही समझदारी है. इमोशनल हो कर मुझे गिल्ट ट्रिप पर भेजने की कोशिश मत करो.”

कुछ दिन तो सामान्य से कटे , फिर कपिल ने महसूस किया कि नेहा उस से कटने लगी है. कभी फोन पर कह देती,”तुम जाओ, मेरी कुछ जरूरी मीटिंग्स हैं, देर लगेगी. कभी मिलती तो जल्दी में होती. बाइक पर कभी साथ भी होती तो चुप ही रहती. पहले की तरह बाइक पर शरारतों भरा रोमांस खत्म होने लगा. दूरदूर अजनबी सी बैठी रहती. कपिल के पूछने पर औफिस का स्ट्रैस कह देती.कपिल को साफ समझ आ रहा था कि वह उस से दूर हो रही है. फोन भी अकसर नहीं उठाती और कुछ भी बहाना कर देती.

एक दिन कपिल ने बाइक रास्ते में एक सुनसान जगह पर रोक दी और पूछा,”नेहा, मुझे साफसाफ बताओ कि तुम मुझ से दूर क्यों भाग रही हो ? मुझे तुम्हारा यह अजनबी जैसा व्यवहार बरदाश्त नहीं हो रहा है.”

नेहा ने भी अपने मन की बात उस दिन साफसाफ बता दी,” कपिल, तुम बहुत इमोशनल हो. हमारे अभी तक के संबंधों को शादी के रूप में देखने लगे हो. मेरा अभी दूरदूर तक शादी का इरादा नहीं है. अभी तो मुझे अपने कैरियर पर ध्यान देना है. मैं शादी के झमेले में अभी नहीं फंसना चाहती. तुम्हारी शादी की चाहत से मैं बोर होने लगी हूं और शायद तुम जैसे इमोशनल इंसान के साथ मेरी ज्यादा निभे भी न, तो समझो कि मैं तुम से ब्रैकअप कर रही हूं.”

कपिल का स्वर भर्रा गया,”ऐसा मत कहो, नेहा. मैं तुम्हारे बिना जीने की सोच भी नहीं सकता.”

”अरे ,यह सब डायलाग फिल्मों के लिए रहने दो. कोई किसी के बिना नहीं मरता. चलो, आज लास्ट टाइम घर छोड़ दो अब ऐंड औल द बैस्ट फौर योर फ्यूचर. एक अच्छी लड़की ढूंढ़ कर शादी कर लो. और हां, मुझे भी बुला लेना, मैं भी आउंगी. मुझे कोई गिल्ट नहीं है और मैं उन में से भी नहीं जो अपने प्रेमी को किसी और का होते न देख सकूं, ”कह कर नेहा जोर से हंसी.

कपिल ने उसे किसी रोबोट की तरह उस के घर तक छोड़ दिया.

“बाय, कपिल कह कर इठ लाती हुई नेहा अपने घर की तरफ चली गई. नेहा ने एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा. कपिल नेहा को तब तक देखता रहा जब तक वह उस की आंखों से ओझल न हो गई.

कपिल वापसी में रोता हुआ बाइक चलाता रहा. वह सचमुच नेहा से प्यार करता था. उस के बिना जीने की वह कल्पना ही नहीं कर पा रहा था.

लुटापिटा, हारा सा घर पहुंचा. उस की शक्ल देख कर उस की मम्मीपापा घबरा गए. वह खराब तबीयत का बहाना बता कर अपने कमरे में 2 दिन पड़ा रहा तो सब को चिंता हुई. न कुछ खापी रहा था और न ही कुछ बोल रहा था.

उस की मम्मी सुधा ने उस के एक दोस्त सुदीप को बुलाया. सुदीप उस के और नेहा के संबंधों के बारे में जानता था. सुदीप ने काफी समय कपिल के पास बैठ कर बिताया. कपिल कुछ बोल ही नहीं रहा था, पत्थर सा हो गया था. दीवानों सी हालत थी. बहुत देर बाद सुदीप के कुछ सवालों का जवाब उस ने रोते हुए दे कर बता दिया कि नेहा ने उसे छोड़ दिया है. सुदीप देर तक उसे समझाता रहा.

अगले दिन की सुबह घर में मातम ले कर आई. कपिल ने रात में हाथ की नस काट कर आत्महत्या कर ली थी. एक पेपर पर लिख गया था ,”सौरी मम्मी, मुझे माफ कर देना. नेहा ने मुझे छोड़ दिया है. मैं उस के बिना नहीं जी पाउंगा. पापा, मुझे माफ कर देना.”

मातापिता बिलखते रहे. सुदीप पता चलने पर बदहवास सा भागा आया. जोरजोर से रोने लगा. बड़ी मुश्किल घङी थी. सुधा बारबार गश खाती और कहती कि क्या एक लड़की के प्यार में हमें भी भूल गया? हमारा अब कौन है? पडोसी, रिश्तेदार सब इकठ्ठा होते रहे. सब ने रमेश और सुधा को बहुत मुश्किल से संभाला. दोनों को कहां चैन आने वाला था. सुदीप को नेहा पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

एक शाम वह नेहा के औफिस की बिल्डिंग के नीचे खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. वह निकली तो उस ने अपना परिचय देते हुए उसे कपिल की आत्महत्या के बारे में बताया तो नेहा ने एक ठंडी सांस ले कर कहा ,”दुख जरूर हुआ मुझे पर गिल्ट फील करवाने की जरूरत नहीं है. वह कमजोर था , मेरी सचाई के साथ कही बात को सहन नहीं कर पाया तो मेरी गलती नहीं है. उस की आत्महत्या के लिए मैं खुद को दोषी बिलकुल नहीं समझूंगी. मुझे गिल्ट ट्रिप मत भेजो, ओके…” कहते हुए वह सधे कदमों से आगे बढ़ गई. सुदीप हैरानी से उसे देखता रह गया.

प्यार एक एहसास

पिता की 13वीं से लौटी ही थी सीमा. 15 दिन के लंबे अंतराल के बाद उस ने लैपटौप खोल कर फेसबुक को लौग इन किया. फ्रैंड रिक्वैस्ट पर क्लिक करते ही जो नाम उभर कर आया उसे देख कर बुरी तरह चौंक गई.

‘‘अरे, यह तो शैलेश है,’’ उस के मुंह से बेसाख्ता निकल गया. समय के इतने लंबे अंतराल ने उस की याद पर धूल की मोटी चादर बिछा दी थी. लैपटौप के सामने बैठेबैठे ही सीमा की आंखों के आगे शैलेश के साथ बिताए दिन परतदरपरत खुलते चले गए.

दोनों ही दिल्ली के एक कालेज में स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे. शैलेश पढ़ने में अव्वल था. वह बहुत अच्छा गायक भी था. कालेज के हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में वह बढ़चढ़ कर भाग लेता था. सीमा की आवाज भी बहुत अच्छी थी. दोनों कई बार डुएट भी गाते थे, इसलिए अकसर दोनों का कक्षा के बाहर मिलना हो जाता था.

एक बार सीमा को बुखार आ गया. वह 10 दिन कालेज नहीं आई तो शैलेश पता पूछता हुआ उस के घर उस का हालचाल पूछने आ गया. परीक्षा बहुत करीब थी, इसलिए उस को अपने नोट्स दे कर उस की परीक्षा की तैयारी करने में मदद की. सीमा ने पाया कि वह एक बहुत अच्छा इनसान भी है. धीरेधीरे उन की नजदीकियां बढ़ने लगीं. कालेज में खाली

समय में दोनों साथसाथ दिखाई देने लगे. दोनों को ही एकदूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था. 1 भी दिन नहीं मिलते तो बेचैन हो जाते. दोनों के हावभाव से आपस में मूक प्रेमनिवेदन हो चुका था. इस की कालेज में भी चर्चा होने लगी.

यह किशोरवय उम्र ही ऐसी है, जब कोई प्रशंसनीय दृष्टि से निहारते हुए अपनी मूक भाषा में प्रेमनिवेदन करता है, तो दिल में अवर्णनीय मीठा सा एहसास होता है, जिस से चेहरे पर एक अलग सा नूर झलकने लगता है. सारी दुनिया बड़ी खूबसूरत लगने लगती है. चिलचिलाती गरमी की दुपहरी में भी पेड़ के नीचे बैठ कर उस से बातें करना चांदनी रात का एहसास देता है.

लोग उन्हें अजीब नजरों से देख रहे हैं, इस की ओर से भी वे बेपरवाह होते हैं. जब खुली आंखों से भविष्य के सपने तो बुनते हैं, लेकिन पूरे होने या न होने की चिंता नहीं होती. एकदूसरे की पसंदनापसंद का बहुत ध्यान रखा जाता है. बारिश के मौसम में भीग कर गुनगुनाते हुए नाचने का मन करता है. दोनों की यह स्थिति थी.

पढ़ाई पूरी होते ही शैलेश अपने घर बनारस चला गया, यह वादा कर के कि वह बराबर उस से पत्र द्वारा संपर्क में रहेगा. साल भर पत्रों का आदानप्रदान चला, फिर उस के पत्र आने बंद हो गए. सीमा ने कई पत्र डाले, लेकिन उत्तर नहीं आया. उस जमाने में न तो मोबाइल थे न ही इंटरनैट. धीरेधीरे सीमा ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया और कर भी क्या सकती थी?

सीमा पढ़ीलिखी थी तथा आधुनिक परिवार से थी. शुरू से ही उस की आदत रही थी कि वह किसी भी रिश्ते में एकतरफा चाहत कभी नहीं रखती. जब कभी उसे एहसास होता कि उस का किसी के जीवन में अस्तित्व नहीं रह गया है तो स्वयं भी उस को अपने दिल से निकाल देती थी. इसी कारण धीरेधीरे उस के मनमस्तिष्क से  शैलेश निकलता चला गया. सिर्फ उस का नाम उस के जेहन में रह गया था. जब भी ‘वह’ नाम सुनती तो एक धुंधला सा चेहरा उस की आंखों के सामने तैर जाता था, इस से अधिक और कुछ नहीं.

समय निर्बाध गति से बीतता गया. उस का विवाह हो गया और 2 प्यारेप्यारे बच्चों की मां भी बन गई. पति सुनील अच्छा था, लेकिन उस से मानसिक सुख उसे कभी नहीं मिला. वह अपने व्यापार में इतना व्यस्त रहता कि सीमा के लिए उस के पास समय ही नहीं था. वह पैसे से ही उसे खुश रखना चाहता था.

15 साल के अंतराल पर फेसबुक पर शैलेश से संपर्क होने पर सीमा के मन में उथलपुथल मच गई और अंत में वर्तमान परिस्थितियां देखते हुए रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट न करने में ही भलाई लगी.

अभी इस बात को 4 दिन ही बीते होंगे कि  उस का मैसेज आ गया. किसी ने सच ही कहा है कि कोई अगर किसी को शिद्दत से चाहे तो सारी कायनात उन्हें मिलाने की साजिश करने लगती है और ऐसा ही हुआ. इस बार वह अपने को रोक नहीं पाई. मन में उस के बारे में जानने की उत्सुकता जागी. मैसेज का सिलसिला चलने लगा, जिस से पता लगा कि वह पुणे में अपने परिवार के साथ रहता है. फिर मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान हुआ.

इस के बाद प्राय: बात होने लगी. उन का मूक प्रेम मुखर हो उठा था. पहली बार शैलेश की आवाज फोन पर सुन कर कि कैसी हो नवयौवना सी उस के दिल की स्थिति हो गई थी. उस का कंठ भावातिरेक से अवरुद्ध हो गया था.

उस ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘अच्छी हूं. तुम्हें मैं अभी तक याद हूं?’’

‘‘मैं भूला ही कब था,’’ जब उस ने प्रत्युत्तर में कहा तो, उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

उस ने पूछा, ‘‘फिर पत्र लिखना क्यों छोड़ दिया?’’

‘‘तुम्हारा एक पत्र मां के हाथ लग गया था, तो उन्होंने भविष्य में

तुम्हारामेरा संपर्क में रहने का दरवाजा ही बंद कर दिया और मुझे अपना वास्ता दे दिया था. उन का इकलौता बेटा था, क्या करता.’’

उस ने सीमा से कभी भविष्य में साथ रहने का वादा तो किया नहीं था, इसलिए वह शिकायत भी करती तो क्या करती. एक ऐसा व्यक्ति जिस ने अपने प्रेम को भाषा के द्वारा कभी अभिव्यक्त नहीं किया था, उस का उसे शब्दों का जामा पहनाना उस के लिए किसी सुखद सपने का वास्तविकता में परिणत होने से कम नहीं था. यदि वह उस से बात नहीं करती तो इतनी मोहक बातों से वंचित रह जाती.

समय का अंतराल परिस्थितियां बदल देता है, शारीरिक परिवर्तन करता है, लेकिन मन अछूता ही रह जाता है. कहते हैं हर इनसान के अंदर बचपना होता है, जो किसी भी उम्र में उचित समय देख कर बाहर आ जाता है.

उन की बातें दोस्ती की परिधि में तो कतई नहीं थीं. हां मर्यादा का भी उल्लंघन कभी नहीं किया. शैलेश की बातें उसे बहुत रोमांचित करती थीं. बातों से लगा ही नहीं कि वे इतने सालों बाद मिले हैं. फोन से बातें करते हुए उन्होंने उन पुराने दिनों को याद कर के भरपूर जीया. कुछ शैलेश ने याद दिलाईं जो वह भूल गई थी, कुछ उस ने याद दिलाई. ऐसे लग रहा था जैसेकि वे उन दिनों को दोबारा जी रहे हैं.

15 सालों में किस के साथ क्या हुआ वह भी शेयर किया. आरंभ में इस तरह बात करना उसे अटपटा अवश्य लगता था, संस्कारगत थोड़ा अपराधबोध भी होता था और यह सोच कर भी परेशान होती थी कि इस तरह कितने दिन रिश्ता निभेगा.

इसी ऊहापोह में 5-6 महीने बीत गए. दोनों ही चाहते थे कि यह रिश्ता बोझ न बन जाए. यह तो निश्चित हो गया था कि आग लगी थी दोनों तरफ बराबर. पहले यह आग तपिश देती थी, लेकिन धीरेधीरे यही आग मन को ठंडक तथा सुकून देने लगी. उन की रस भरी बातें उन दोनों के ही मन को गुदगुदा जाती थीं.

एक बार शैलेश ने एक गाने की लाइन बोली, ‘‘तुम होतीं तो ऐसा होता, तुम यह कहतीं…’’

उस की बात काटते हुए सीमा बोली, ‘‘और तुम होते तो कैसा होता…’’

कभी सीमा चुटकी लेती, ‘‘चलो भाग चलते हैं…’’

शैलेश कहता, ‘‘भाग कर जाएंगे कहां?’’

एक दिन शैलेश ने सीमा को बताया कि औफिस के काम से वह बहुत जल्दी दिल्ली आने वाला है. आएगा तो वह उस से और उस के परिवार से अवश्य मिलेगा. यह सुन कर उस का मनमयूर नाच उठा. फिर कड़वी सचाई से रूबरू होते ही सोच में पड़ गई कि अब सीमा किसी और की हो चुकी है.

क्या इस स्थिति में उस का शैलेश से मिलना उचित होगा? फिर अपने सवाल का उत्तर देते हुए बुदबुदाई कि ऊंह, तो क्या हुआ? समय बहुत बदल गया है, एक दोस्त की तरह मिलने में बुराई ही क्या है… सुनील की परवाह तो मैं तब करूं जब वह भी मेरी परवाह करता हो. खुश रहने के लिए मुझ भी तो कोई सहारा चाहिए. देखूं तो सही इतने सालों में उस में कितना बदलाव आया है. अब वह शैलेश के आने की सूचना की प्रतीक्षा करने लगी थी.’’

अंत में वह दिन भी आ पहुंचा, जिस का वह बेसब्री से इंतजार कर रही थी. सुनील बिजनैस टूअर पर गया हुआ था. दोनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. उन्होंने कनाट प्लेस के कौफी हाउस में मिलने का समय निश्चित किया. वह शैलेश से अकेले घर में मिल कर कोई भी मौका ऐसा नहीं आने देना चाहती थी कि बाद में उसे आत्मग्लानि हो.

उसे लग रहा था कि इतने दिन बाद उस को देख कर कहीं वह भावनाओं में बह कर कोई गलत कदम न उठा ले, जिस की उस के संस्कार उसे आज्ञा नहीं देते थे. शैलेश को देख कर उसे लगा ही नहीं कि वह उस से इतने लंबे अंतराल के बाद मिल रही है. वह बिलकुल नहीं बदला था. बस थोड़ी सी बालों में सफेदी झलक रही थी. आज भी वह उसे बहुत अपना सा लग रहा था. बातों का सिलसिला इतना लंबा चला कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

इधरउधर की बातें करते हुए जब शैलेश ने सीमा से कहा कि उसे अपने वैवाहिक जीवन से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन उस की जगह कोई नहीं ले सकता तो उसे अपनेआप पर बहुत गर्व हुआ.

अचानक शैलेश को कुछ याद आया. उस ने पूछा, ‘‘अरे हां, तुम्हारे गाने के शौक का क्या हाल है?’’

बात बीच में काटते हुए सीमा ने उत्तर दिया, ‘‘क्या हाल होगा. मुझे समय ही नहीं मिलता. सुनील तो बिजनैस टूअर पर रहते हैं और न ही उन को इस सब का शौक है.’’

‘‘अरे, उन को शौक नहीं है तो क्या हुआ, तुम इतनी आश्रित क्यों हो उन पर? कोशिश और लगन से क्या नहीं हो सकता? बच्चों के स्कूल जाने के बाद समय तो निकाला जा सकता है.’’

सीमा को लगा काश, सुनील भी उस को इसी तरह प्रोत्साहित करता. उस ने तो कभी उस की आवाज की प्रशंसा भी नहीं की. खैर, देर आए दुरुस्त आए. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि वह अपनी इस कला को लोगों के सामने उजागर करेगी.

उस को चुप देख कर शैलेश ने कहा, ‘‘चलो, हम दोनों मिल कर एक अलबम तैयार करते हैं. सहकर्मियों की तरह तो मिल सकते हैं न. इस विषय पर फोन पर बात करेंगे.’’

सीमा को लगा उस के अकेलेपन की समस्या का हल मिल गया. दिल से वह शैलेश के सामने नतमस्तक हो गई थी.

फिर से बिछड़ने का समय आ गया था. लेकिन इस बार शरीर अलग हुए थे केवल, कभी न बिछड़ने वाला एक खूबसूरत एहसास हमेशा के लिए उस के पास रह गया था, जिस ने उस की जिंदगी को इंद्रधनुषी रंग दे कर नई दिशा दे दी थी. इस एहसास के सहारे कि वह इतने सालों बाद भी शैलेश की यादों में बसी है. वह शैलेश का सामीप्य हर समय महसूस करती थी. दूरी अब बेमानी हो गई थी.

एक कवि ने प्रेम की बहुत अच्छी परिभाषा देते हुए कहा है कि सिर्फ एहसास है यह रूह से महसूस करो. कहते हैं प्यार कभी दोस्ती में नहीं बदल सकता और यदि बदलता है तो उस से अच्छी दोस्ती नहीं हो सकती. इस दोस्ती का अलग ही आनंद है. सीमा को बहुत ही प्यारा दोस्त मिला.

धन्यवाद भाग-3: जब प्यार के लिए वंदना ने तोड़ी मर्यादा

मैं ने वंदना को बड़ी मुश्किल से पहचाना. उस का चेहरा और बदन सूजा सा नजर आ रहा था. उस की सांसें तेज चल रही थीं और उसे तकलीफ पहुंचा रही थीं.

‘‘शालू, तू ने बड़ा अच्छा किया जो मुझ

से मिलने आ गई. बड़ी याद आती थी तू कभीकभी. तुझ से बिना मिले मर जाती, तो मेरा मन बहुत तड़पता,’’ मेरा स्वागत यों तो उस ने मुसकरा कर किया, पर उस की आंखों से आंसू भी बहने लगे थे.

मैं उस के पलंग पर ही बैठ गई. बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर मुंह से एक शब्द भी

नहीं निकला, तो उस की छाती पर सिर रख कर एकाएक बिलखने लगी.

‘‘इतनी दूर से यहां क्या सिर्फ रोने आई है, पगली. अरे, कुछ अपनी सुना, कुछ मेरी सुन. ज्यादा वक्त नहीं है हमारे पास गपशप करने का,’’ मुझे शांत करने का यों प्रयास करतेकरते वह खुद भी आंसू बहाए जा रही थी.

‘‘तू कभी मिलने क्यों नहीं आई? अपना ठिकाना क्यों छिपा कर रखा? मैं तेरा दिल्ली

में इलाज कराती, तो तू बड़ी जल्दी ठीक हो जाती, वंदना,’’ मैं ने रोतेरोते उसे अपनी शिकायतें सुना डालीं.

‘‘यह अस्थमा की बीमारी कभी जड़ नहीं छोड़ती है, शालू. तू मेरी छोड़ और अपनी सुना. मैं ने सुना है कि अब तू शांत किस्म की टीचर हो गई है. बच्चों की पिटाई और उन्हें जोर से डाटना बंद कर दिया है तूने,’’ उस ने वार्त्तालाप का विषय बदलने का प्रयास किया.

‘‘किस से सुना है ये सब तुम ने वंदना?’’ मैं ने अपने आंसू पोंछे और उस का हाथ अपने हाथों में ले कर प्यार से सहलाने लगी.

‘‘जीजाजी तुम्हारी और सोनूमोनू की ढेर सारी बातें मुझे हमेशा सुनाते रहते हैं,’’ जवाब देते हुए उस की आंखों में मैं ने बेचैनी के भाव बढ़ते हुए साफसाफ देखे.

‘‘वे यहां कई बार आ चुके हैं?’’

‘‘हां, कई बार. मेरा सारा इलाज वे ही…’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि उन्होंने मु?ो अपने यहां आने की, तुम्हारी बीमारी और इलाज कराने की बातें कभी नहीं बताई हैं?’’

‘‘हां, मुझे पता है.’’

‘‘क्यों किया उन्होंने ऐसा? मैं क्या तुम्हारा इलाज कराने से उन्हें रोक देती? मुझे अंधेरे में क्यों रखा उन्होंने?’’ ये सवाल पूछते हुए मैं बड़ी पीड़ा महसूस कर रही थी.

‘‘तुम्हें कुछ न बताने का फैसला जीजाजी ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर लिया था, शालू.’’

‘‘पर क्यों किया उन्होंने ऐसा फैसला?’’

‘‘उन का मत था कि तुम शायद उन के ऐक्शन को समझ नहीं पाओगी.’’

‘‘उन का विचार था कि तुम्हारे इलाज कराने के उन के कदम को क्या मैं नहीं समझ पाऊंगी?’’

‘‘हां, और मुझ से बारबार मिलने आने की बात को भी,’’ वंदना का स्वर बेहद धीमा और थका सा हो गया.

कुछ पलों तक सोचविचार करने के बाद मैं ने झटके से पूछा, ‘‘अच्छा, यह तो बताओ कि तुम जीजासाली कब से एकदूसरे से मिल रहे हो?’’

एक गहरी सांस छोड़ कर वंदना ने बताया, ‘‘करीब सालभर पहले वे टूर पर बनारस आए हुए थे. वहां से वे अपने एक सहयोगी के बेटे की शादी में बरात के साथ यहां कानपुर आए थे. यहीं अचानक इसी नर्सिंगहोम के बाहर हमारी मुलाकात हुई थी. वे अपने पुराने दोस्त डाक्टर सुभाष से मिलने आए थे.’’

‘‘और तब से लगातार यहां तुम से मिलने आते रहे हैं?’’

‘‘हां, वे सालभर में 8-10 चक्कर यहां

के लगा ही चुके होंगे. उन का भेजा कोई न

कोई आदमी तो मुझ से मिलने हर महीने जरूर आता है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यहां का बिल चुकाने, मुझे जरूरत के रुपए देने. मैं कोई जौब करने में असमर्थ हूं न. मुझ बीमार का बोझ जीजाजी ही उठा रहे हैं शालू.’’

अचानक मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी और एक ही  झटके में सारा माजरा मुझे समझ

आ गया.

‘‘तुम्हारा और तुम्हारे जीजाजी का अफेयर चल रहा है न… मुझ से छिपा कर तुम से मिलने का. तुम्हारी बड़ी आर्थिक सहायता करने का और कोई कारण हो ही नहीं सकता है, वंदना,’’ मारे उत्तेजना के मेरा दिल जोर से धड़कने लगा.

उस ने कोई जवाब नहीं दिया और आंसूभरी आंखों से बस मेरा चेहरा निहारती रही.

‘‘मेरा अंदाजा ठीक है न?’’ मेरी शिकायत से भरी आवाज ऊंची हो उठी. पलभर में मेरी आंखों पर वर्षों से पड़ा परदा उठ गया है. मेरी सब से अच्छी सहेली का मेरे पति के साथ अफेयर तो तब से ही शुरू हो गया होगा जब मैं बीएड करने में व्यस्त थी और तुम मेरे हक पर चुपचाप डाका डाल रही थी. तुम ने शादी क्यों तोड़ी, अब तो यह भी मैं आसानी से समझ सकती हूं. तब कितनी आसानी से तुम दोनों ने मेरी आंखों में धूल झोंकी.’’

‘‘न रो और न गुस्सा कर शालू. तेरे अंदाज ठीक है, पर तेरे हक पर मैं ने कभी डाका नहीं डाला. कभी वैसी भयंकर भूल मैं न कर बैठूं, इसीलिए मैं ने दिल्ली छोड़ दी थी. हमेशा के लिए तुम दोनों की जिंदगियों में से निकलने का फैसला कर लिया था. मुझे गलत मत समझ, प्लीज.

‘‘जीजाजी बड़े अच्छे इंसान हैं. हमारे बीच जीजासाली का हंसीमजाक से भरा रिश्ता पहले अच्छी दोस्ती में बदला और फिर प्रेम में.

‘‘हम दोनों के बीच दुनिया के हर विषय पर खूब बातें होतीं. हम दोनों एकदूसरे के सुखदुख के साथी बन गए थे. हमारे आपसी संबंधों की मिठास और गहराई ऐसी ही थी जैसी जीवनसाथियों के बीच होनी चाहिए.

‘‘फिर मेरा रिश्ता तय हुआ पर मैं ने अपने होने वाले पति की जीजाजी से तुलना करने की भूल कर दी. जीजाजी की तुलना में उस के व्यक्तित्व का आकर्षण कुछ भी न था.

‘‘मैं जीजाजी को दिल में बसा कर कैसे उस की जीवनसंगिनी बनने का ढोंग करती. अत: मैं ने शादी तोड़ना ही बेहतर समझ और तोड़ भी दी.

‘‘जीजाजी मुझे मिल नहीं सकते थे क्योंकि वे तो मेरी बड़ी

बहन के जीवनसाथी थे. तब मैं ने भावुक हो कर उन से खूबसूरत यादों के सहारे अकेले और तुम दोनों से दूर जीने का फैसला किया और दिल्ली छोड़ दी.’’

‘‘मैं तो कभी तुम दोनों से न मिलती पर कुदरत ने सालभर पहले मुझे जीजाजी से अचानक मिला दिया. तब तक अस्थमा ने मेरे स्वास्थ्य का नाश कर दिया था. मां के गुजर जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली ही आर्थिक तंगी और जानलेवा बीमारी का सामना कर रही थी.

‘‘जीजाजी के साथ मैं ने उन के प्रेम में

पड़ कर वर्षों पहले अपनी जिंदगी के सब से सुंदर 2 साल गुजारे थे. उन्हें भी वह खूबसूरत समय याद था. मु?ो धन्यवाद देने के लिए उन्होंने सालभर से मेरी सारी जिम्मेदारी उठाने का बोझ अपने ऊपर ले रखा है. मैं बदले में उन्हें हंसीखुशी के बजाय सिर्फ चिंता और परेशानियां ही दे सकती हूं.

‘‘यह सच है कि 15 साल पहले तेरे हिस्से से चुराए समय को जीजाजी के साथ बिता कर मैं ने सारी दुनिया की खुशियां और सुख पाए थे. अब भी तेरे हिस्से का समय ही तो वे मुझे दे कर मेरी देखभाल कर रहे हैं. तेरे इस एहसान को मैं इस जिंदगी में तो कभी नहीं चुका पाऊंगी, शालू. अगर मेरे प्रति तेरे मन में गुस्सा या नफरत हो, तो मुझे माफ कर दे. तुझे पीड़ा दे कर मैं मरना नहीं चाहती हूं,’’ देर तक बोलने के साथसाथ रो भी पड़ने के कारण उस की सांसें बुरी तरह से उखड़ गई थीं.

मैं ने उसे छाती से लगाया और रो पड़ी. मेरे इन आंसुओं के साथ ही मेरे मन में राजेश और उसे ले कर पैदा हुए शिकायत, नाराजगी और गुस्से के भाव जड़ें जमाने से पहले ही बह गए.

धन्यवाद भाग-2: जब प्यार के लिए वंदना ने तोड़ी मर्यादा

लगभग 15 साल बीत गए थे वंदना को दिल्ली छोड़े हुए. वह अब

कानपुर में गंभीर रूप से बीमार पड़ कर जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी. इतने लंबे समय में उस के जीवन में क्याक्या घटा है, इस की कोई जानकारी मेरे पास नहीं थी.

शनिवार को हम दोनों गाड़ी से चल दिए. सारे रास्ते में मैं ने वंदना को याद करते हुए कई बार आंसू बहाए. अपनी सीट पर बैठे हुए जिस अंदाज में राजेश बारबार करवट बदल रहे थे, उस से यह साफ जाहिर हो रहा था कि वे भी कुछ बेचैन हैं. स्टेशन से पहले ही उन्होंने किसी को मोबाइल से कहा, ‘‘5 मिनट में बाहर आते हैं.’’

कानपुर स्टेशन से बाहर आने के बाद जिस बात ने मु?ो बड़ा हैरान

किया, वह थी एक औटोरिकशेवाले का राजेश को सलाम करना और बिना हम से पूछे हमारा बैग उठा कर अपने रिकशा की तरफ बढ़ जाना.

‘‘यह औटो वाला आप को कैसे जानता है,’’ मैं ने अचंभित स्वर में पूछा, तो राजेश गंभीर अंदाज में मेरा चेहरा ध्यान से देखने लगे.

‘‘मेरे सवाल का जवाब दीजिए न?’’ उन्हें हिचकिचाते देख मैं ने उन पर दबाव डाला.

‘‘शालू, तुम वंदना से मिलना चाहती हो न,’’ उन्होंने संजीदा लहजे में मुझ से ये पूछा.

‘‘हम यहां इसीलिए तो आए हैं,’’ उन का सवाल सुन कर मेरे मन में अजीब सी उलझन के भाव उभरे.

‘‘हां, और अब तुम मेरी एक प्रार्थना पर ध्यान दो प्लीज. आगेआगे जो घटेगा, उसे ले

कर तुम्हारे मन में कई तरह की भावनाएं और सवाल उभरेंगे. तुम कृपा कर के उन्हें अपने मन

में ही रखना.’’

‘‘आप ऐसी अजीब सी बंदिश क्यों लगा रहे हैं मुझ पर?’’

‘‘क्योंकि कुछ सवालों के जवाब दिए नहीं जा सकते. शब्दों से मनोभावनाओं को व्यक्त करना हमेशा संभव नहीं होता है. उन्हें व्यक्त करने का प्रयास पीड़ादायक होता है और सुनने वाला कहीं अर्थ का अनर्थ लगा ले, तो स्थिति और बिगड़ जाती है, शालू.’’

‘‘मेरी सम?ा में तो आप की कोई बात नहीं आ रही है,’’ मैं परेशान हो उठी.

‘‘ध्यान रखना कि तुम्हें कोई सवाल नहीं पूछना है मु?ा से,’’ उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और औटो की तरफ चल पड़े.

औटो वाले ने 20 मिनट बाद हमें खन्ना नर्सिंगहोम की ऊंची सी इमारत तक अपनेआप पहुंचा दिया. फिर गेट पर खड़े वाचमैन ने राजेश को परिचित अंदाज में सलाम किया. रिसैप्शनिस्ट भी उन्हें पहचानती थी. उस नर्सिंगहोम के मालिक डाक्टर सुभाष ने मुझे अपना परिचय राजेश के बचपन के दोस्त के रूप में दिया. वहां की सिस्टर और आयाओं की मुसकान साफ दर्शा रही थी कि वे सब राजेश को अच्छी तरह जानतेपहचानते हैं.

मेरी जानकारी में राजेश कभी कानपुर नहीं आए थे, लेकिन इन सब बातों से मेरे लिए यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि यहां मुझ से छिपा कर वे आते रहे हैं. उन्हें अपनी कंपनी के काम से अकसर टूर पर जाना पड़ता है. मेरी जानकारी में आए बिना उन का यहां आना कोई मुश्किल काम न था.

‘‘मु?ा से क्यों छिपाते रहे हो आप यहां अपना आना?’’ मैं राजेश से यह सवाल पूछना चाहती थी, पर उन्होंने तो पहले ही कोई सवाल पूछने पर बंदिश लगा दी थी.

मु?ो डाक्टर सुभाष के पास छोड़ कर राजेश बिना कुछ कहे कक्ष से बाहर चले गए. डाक्टर साहब ने मेरे लिए चाय मंगवाई और फिर मुझ से बातें करने लगे.

‘‘राजेश को मैं सालों से जानता हूं, पर वे ऐसा हीरा इंसान हैं, इस का अंदाजा मुझे पिछले

1 साल में ही हुआ, भाभीजी,’’ उन की आंखों

में अपने दोस्त के लिए गहरे सम्मान के भाव मौजूद थे.

मेरी सम?ा में नहीं आया कि वे क्यों राजेश को ‘हीरा’ कह रहे हैं, सो मैं खामोश

रही. वैसे मैं सारे मामले को समझने के लिए बड़ी उत्सुकता से उन के आगे बोलने का इंतजार कर रही थी.

‘‘आजकल कौन किसी के काम आता है, भाभीजी. सचमुच अपना राजेश अनूठा इंसान है. जरूर आप ने ही उसे इतना ज्यादा बदल दिया है,’’ मेरी प्रशंसा कर वे हंस पड़े तो मुझे भी मुसकराना पड़ा.

‘‘राजेश वंदना के इलाज का सारा खर्चा उठा कर बड़ी इंसानियत का काम रह रहा है. मैं भी जितनी रियायत कर सकता हूं, कर रहा हूं, पर फिर भी दवाइयां महंगी होती हैं. आप की सहेली के इलाज पर डेढ़दो लाख का खर्चा तो जरूर हो चुका होगा आप लोगों का. यहां का हर कर्मचारी और डाक्टर राजेश को बड़ी इज्जत की नजरों से देखता है, भाभीजी.’’

यह दर्शाए बिना कि मैं इस सारी जानकारी से अनजान हूं, मैं ने वार्त्तालाप को आगे बढ़ाने के लिए पूछा, ‘‘अब वंदना की तबीयत कैसी है?’’

‘‘ठीक नहीं है, भाभीजी. जो कुछ हो सकता है, हम कर रहे हैं, पर ज्यादा लंबी गाड़ी नहीं खिंचेगी उस की.’’

‘‘ऐसा मत कहिए, प्लीज,’’ मेरी आंखों से आंसू बह चले.

‘‘मैं आप को  झूठी तसल्ली नहीं दूंगा. भाभीजी. अस्थमा ने उस के फेफड़ों को इतना कमजोर कर दिया है कि अब उस का हृदय भी फेल होने लगा है. उस ने बहुत कष्ट भोग लिया है. अब उसे छुटकारा मिल ही जाना चाहिए.’’

‘‘मुझे उस से मिलवा दीजिए, प्लीज.’’

डाक्टर सुभाष के आदेश पर एक वार्डबौय मुझे वंदना के कमरे तक छोड़ गया. मैं अंदर प्रवेश करती उस से पहले ही राजेश बाहर आए.

‘‘जाओ, मिल लो अपनी सहेली से,’’ उन्होंने थके से स्वर में मुझ से कहा और फिर मेरा माथा बड़े भावुक से अंदाज में चूम कर वहां से चले गए.

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