जेठ महीने की चिलचिलाती गरमी ने किरण के स्वभाव में इतना चिड़चिड़ापन भर दिया था कि उस का किसी से बात करने का मन नहीं करता था. लेकिन मौसम ने करवट क्या ली, सब कुछ बदलाबदला महसूस होने लगा. एक ओर जहां बादलों ने सूरज की तपिश को छिपा लिया, वहीं दूसरी ओर बारिश की बूंदों ने महीनों से प्यासी धरती को शीतलता प्रदान कर दी. बारिश की बूंदों ने किरण के तनमन को छुआ तो मानो उस के बेजान जिस्म में जान आ गई और स्वभाव का चिड़चिड़ापन भी जाता रहा. रात को औफिस से किरण के पति सुनील घर लौटे तो दरवाजे पर उसे सजधज कर इंतजार करते हुए खड़ा पाया. वे कमरे में दाखिल हुए, तो सब कुछ रोमांटिक अंदाज में सजा कर रखा हुआ पाया. फ्रैश हो कर डिनर पर बैठे तो देखा रोमांटिक कैंडल लाइट डिनर का आयोजन था और किरण की आंखों में रोमांस और प्यार साफ नजर आ रहा था. खाना परोसा गया तो उन्हें प्लेट में सारी अपनी पसंद की डिशेज नजर आईं. सुनील को समझते देर नहीं लगी कि ये सब बारिश की बूंदों का असर है. उस ने भी पौकेट से खूबसूरत फूलों का गजरा निकाला और किरण के लंबे, घने और काले खुले केशों पर बड़े प्यार से सजा दिया. दरअसल, सुनील के औफिस से निकलते ही जब बारिश होने लगी, तो रिमझिम फुहारों ने उसे भी रोमांटिक बना दिया. तभी किरण के लिए उस ने गजरा खरीद लिया था.
जब रिमझिम बरसा पानी
कैंडल लाइट डिनर को अभी दोनों ऐंजौय कर ही रहे थे कि बादलों ने एक बार फिर से रिमझिम बरसना शुरू कर दिया. किरण तो मानो इस पल के इंतजार में थी. उस ने हौले से सुनील की कलाई थामी और आंखों में आंखें डाल कर सुनील को बगीचे तक ले गई. बारिश की रिमझिम फुहारें, हाथों में उन का हाथ और ‘रिमझिम से तराने ले के आई बरसात…’, ‘ये रात भीगीभीगी ये मस्त फिजाएं…’, ‘एक लड़की भीगीभागी सी…’, ‘आज रपट जाएं तो हमें न…’, ‘रिमझिम गिरे सावन उलझउलझ जाए मन…’ जैसे रोमांटिक गानों का साथ मिल जाने पर भला कौन ऐसा प्रेमी होगा, जो खुद को थिरकने से रोक सकेगा. दोनों खूब थिरके. कुछ ऐसा ही मौका एक प्रेमी युगल को भी मिला. लंबे समय बाद इस बार दोनों को एकांत में मिलने का मौका मिला था. उन की ग्रैजुएशन की पढ़ाई के दौरान किसी ने कभी भी उन्हें अलग नहीं देखा था. दोनों ने तभी तय कर लिया था कि जौब मिलते ही वे शादी कर लेंगे, लेकिन एक कांपिटीशन क्लीयर करने के बाद टे्रनिंग के लिए जब दोनों को अलग होना पड़ रहा था, तो उन के दोस्त उन का रोनाधोना देख कर बाहर निकल गए थे.
अब जब 2 साल बाद दोनों मिले हैं, तो बस एकदूसरे को देखे ही जा रहे हैं. न तो सचिन की आवाज निकल रही है और न ही स्मिता की. दोनों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या पूछें, कैसे पूछें. तभी बाहर बिजली के कड़कने की आवाज हुई और पल भर में ही पड़ने लगीं फुहारें. बाहर धरती गीली हो रही होती है तो अंदर मन भी भीगता है, तभी तो स्मिता के जड़ पड़े होंठ कह उठे, ‘‘आज भी नहीं बदले, बिलकुल वैसे ही हो. सारा सामान बिखेर कर रखा हुआ है. हटो, मैं ठीक कर देती हूं.’’ सचिन भी कहां खामोश रहना चाहता था. बारिश की बूंदों ने उसे भी तो गीला कर दिया था. मन से भी और तन से भी. उसे याद आने लगा था वह मंजर, जब दोनों पहली बार बारिश में मतवाले हो कर भीगे थे और हाथों में हाथ थामे एकदूसरे पर रीझे थे. आज एक बार फिर उसी अंदाज में भीगने को आतुर हो रहे हैं दोनों. ऐसे में सचिन ने भूख का बहाना बना कर स्मिता से बाहर जाने के लिए पूछा. स्मिता कहां मना करने वाली थी. वह भी तो उन यादों का हिस्सा थी. बाहर निकलते ही पल भर में ही दोनों पूरी तरह से भीग चुके थे, लेकिन खानेवाने की बात दोबारा किसी ने नहीं की.
दरअसल, भूख का तो महज बहाना था. असल में तो उन्हें एकदूसरे के करीब आना था. हुआ भी वही. बारिश की बूंदों में फूट पड़े दोनों के पुराने प्यार के अंकुर. अब तो एकदूसरे की बांहों में समाने की इच्छा भी जोर मारने लगी थी. लगातार तेज होती जा रही बारिश में दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था, तो दोनों लिपट पड़े एकदूसरे से.
जगाता तनमन में प्यार
सचमुच, सावन चीज ही ऐसी है. कमबख्त इश्क की तरह मन पर छा जाए तो तन भी अपने बस में नहीं रहता, मचलने लगता है. तभी तो रचनाकारों की रचनाओं और गीतकारों के गीतों में सावन और रिमझिम फुहारों को अलगअलग भाव, अंदाज और ढंग से पेश किया जाता रहा है. एक दार्शनिक की नजर से देखें तो धरती और आसमान के खूबसूरत समागम का प्रतीक है सावन का मौसम और अन्य प्राणियों के लिए यह संदेश कि सृजन का मौसम आ गया. धरती यानी स्त्री और आसमान यानी पुरुष, जब तक दोनों पास नहीं आते, सृजन का आधार अधूरा रहता है. तभी तो गरमी और लू के थपेड़ों से फटी धरती आसमान से बूंदों की बौछार पाते ही नवयौवना सी खिल उठती है. मानो कह रही हो कि सृजन के लिए अब वह पूरी तरह से तैयार है. ये रिमझिम फुहारें ही तो हैं, जो पुरुष और स्त्री के बीच भी ऐसे भाव जगाती हैं. समाजशास्त्री अमित कुमार कहते हैं, ‘‘हर मौसम का अपना महत्त्व और मिजाज है. जेठ की दोपहर न हो तो सावन की रिमझिम बेमानी है. आज हम कहते हैं कि ताउम्र प्यार बनाए रखना है, तो बीचबीच में एकदूसरे से दूर रहने की आदत डाल लो. न रिश्ते बासी होंगे, न प्यार फीका होगा, क्योंकि दूरियों के बाद ही एकदूसरे के प्रति मुहब्बत और उस की जरूरत का एहसास हो पाता है. कुछ ऐसी ही फिलौसफी प्रकृति की भी है. तभी तो लू के थपेड़ों के बाद होती है मीठी रिमझिम और यही कुदरती तालमेल प्रेमी युगलों को उन्मादी बनाता है.’’
दांपत्य और प्रेम के रिश्तों पर खास पकड़ रखने वाली मैरिज काउंसलर विनीता महापात्रा बताती हैं, ‘‘अजीब इत्तफाक है, मगर एक खूबसूरत सच लिए. मैरिज काउंसलिंग के दौरान हम ने अकसर पाया है कि उलझे हुए रिश्तों को सुलझाने या पार्टनर के दिल में प्यार जगाने में सावन का महीना या यों कहें कि रिमझिम फुहारें बेहद कारगर साबित होती हैं. मनोविज्ञान से जुड़ा है यह मौसम. ‘‘आप ही बताइए, प्यार और रोमानियत के लिए किन बुनियादी चीजों की जरूरत होती है. खूबसूरत माहौल, खुशगवार मौसम, आसपास खिले रंगबिरंगे फूल, भीनीभीनी खुशबू और तरंगित मन, है न. लेकिन रिमझिम फुहारों के बीच बिना कुछ किए ही स्वत: सब कुछ हो जाता है. कई बार हम ने पाया है कि जिन रिश्तों की आग आपसी तकरार से ठंडी पड़ने लगी थी, उन्हें जब हम ने सावन के मौसम में किसी खूबसूरत इलाके में चंद दिन एकांत में गुजारने की सलाह दी, तो उम्मीद से बढ़ कर परिणाम आए. उन जोड़ों ने माना कि मौसम में इतनी कशिश होती है, यह अब जाना.’’
क्या कहता है शोध
सावन के महीने को ले कर भले पहले जैसी कशिश न रह गई हो, लेकिन मौसम और मन का संबंध तो आज भी नहीं बदला. जरा सी बारिश होते ही हम आज भी खुशी से गुलफाम हो जाते हैं. यदि प्यार में गिरफ्तार हैं तो मन मचलने लगता है, क्योंकि प्यार करने वालों को प्यार के लिए ऐसे ही किसी मौके की तलाश रहती है. प्यार पर शोध करने वाले मानते हैं कि रिमझिम फुहारों और हारमोनल स्राव का गहरा रिश्ता है. प्यार का हारमोन फूलों की मादक खुशबू, खूबसूरत माहौल या किसी खास तरह का खाना खाने के बाद स्रावित होता है, जो प्यार करने को उकसाता है. ऐसे ही यह हारमोन सावन के मौसम में भी सक्रिय हो जाता है. गरमियों में यह जितना सुस्त होता है, बरसात में उतना ही चुस्त. इंसानों का ही नहीं, बाकी जीवों के लिए भी है यह ‘मेटिंग सीजन’ यानी सहवास का मौसम. अब तो आप मानेंगे न कि रिमझिम फुहारें जगाती हैं तनमन में प्यार.