लेखिका- शकीला एस हुसैन
बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.
‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’
सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’
सबा ने दुख से रीमा को देखा. रीमा एक कम पढ़ी, नासमझ लड़की थी. वह आटेसाटे की शादी (लड़की दे कर लड़की ब्याहना) में सबा की भाभी बन कर आ गई थी. सबा की छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से हुई थी. आज वही रीमा कितनी आसानी से सबा की शादी के बारे में सबकुछ कह रही हैं.
अब्बा ने एक के बाद एक लड़कियां होने का इलजाम भी अम्मी पर लगाया, हफ्तों बेटियों की सूरत नहीं देखी. वह तो अच्छा हुआ तीसरी बार बेटा हो गया, तो अम्मी की हैसियत का ग्राफ कुछ ऊंचा हो गया और अब्बा भी कुछ नरम पड़े. बेटियों का भार कम करने की खातिर बचपन में ही भाई की शादी मामू की बेटी रीमा से और छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से तय कर दी. आजाद सबा से उम्र में छोटा था इसलिए लुबना की बात तय कर दी. आज पहली बार उसे लड़की होने की बेबसी का एहसास हुआ.
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‘‘रीमा, तुम क्या जानो इल्म कैसी दौलत है? कैसी रोशनी है, जो इंसान को जीने का सलीका सिखाती है? वहीं यह डिगरी मर्दऔरत के बीच ऐसे फासले भी पैदा कर देती है कि औरत की सारी उम्र इन फासलों को पाटने में कट जाती है.’’
सबा का कतई दिल न चाह रहा था कि एक बार फिर उसे शोपीस की तरह लड़के वालों को दिखाया जाए पर अम्मी की मिन्नत और बेबसी के आगे वह मजबूर हो गई. वे कहने लगीं, ‘‘सबा, मेरी खातिर मान जाओ. मुझे पूरी उम्मीद है कि वे लोग तुम्हें जरूर पसंद करेंगे.’’
उस ने दुखी हो सोचा, ‘उस की ख्वाहिश व पसंद का किसी को एहसास नहीं. वह एमएससी पास है और एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती है फिर भी पसंद लड़का ही करेगा,’ उस ने उलझ कर कहा, ‘‘अम्मी, कितने लोग तो आ कर रिजैक्ट कर गए हैं, किसी को सांवले रंग पर एतराज, किसी को उम्र ज्यादा लगी, किसी को पढ़ालिखा होना और किसी को नौकरी करना नागवार गुजरा. अब फिर वही नाटक.’’
अम्मी रो पड़ीं, ‘‘बेटी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. तुम्हारी शादी मुझे सब से पहले करनी थी पर तुम हमारी मजबूरी और हालात की भेंट चढ़ गईं.’’
सबा यह नौकरी करीब 8 साल से कर रही थी, जब वह बीएससी फाइनल में थी तो अब्बा की एक ऐक्सिडैंट में टांग टूट गई, नौकरी प्राइवेट कंपनी में थी. बहुत दिनों के इलाज के बाद लकड़ी के सहारे चलने लगे. इस अरसे में नौकरी खत्म हो गई.
कंपनी से मिला पैसा कुछ इलाज में खर्च हुआ, कुछ घर में. अब आमदनी का कोई जरिया न था. लुबना और छोटा भाई जोहेब अभी पढ़ रहे थे. उस ने बीएससी पास करते ही नौकरी की तलाश शुरू कर दी. अच्छी डिवीजन होने के कारण उसे इसी स्कूल में प्राइमरी सैक्शन में नौकरी मिल गई. उस ने नाइट क्लासेस से एमएससी और बीएड पूरा किया और फिर सेकेंडरी सैक्शन में प्रमोट हो गई. अब अब्बा उसे बेहद प्यार करते. वही तो घर की गाड़ी खींच रही थी.
शाम को गहरे रंगों के रेशमी कपड़ों में लड़के की अम्मी और 2 बहनें आईं. उन लोगों ने बताया कि लड़के, नईम की ख्वाहिश है कि लड़की पढ़ीलिखी हो, इसलिए वे लोग सबा को देखने आए हैं.
लड़के की अम्मी ने हाथों में ढेर सी चमकती चूडि़यां पहन रखी थीं. खनखनाते हुए वे बोलीं, ‘‘हमारे बेटे की डिमांड पढ़ीलिखी लड़की है, इसलिए हमें तो आप की बेटी पसंद है.’’
अम्मी ने शादी में देर न की क्योंकि जोहेब की बहुत अच्छी नौकरी लगे 2 साल हो चुके थे. काफी कुछ तो उन्होंने दहेज में देने को बना रखा था. कुछ और तैयारी हुई और सबा दुलहन बन कर नईम के घर पहुंच गई.
सबा उस मामूली से सजे कमरे में दुलहन बनी बैठी थी. उस की ननदें और उस की सहेलियां कुछ देर उस के पास बैठी बचकाने मजाक करती रहीं, फिर भाई को भेजने का कह कर उसे तनहा छोड़ गईं. काफी देर बाद उस की जिंदगी का वह लमहा आया जिस का लड़कियां बड़ी बेसब्री से इंतजार करती हैं. नईम हाथ में मोबाइल लिए अंदर दाखिल हुआ और उस के पास बैठ गया, उस का घूंघट उठा कर कोई खूबसूरत या नाजुक बात कहने के बजाय वह, उसे मोबाइल से अपने दोस्तों के बेहूदा मैसेज पढ़ कर सुनाने लगा जो खासतौर पर उस के दोस्तों ने उसे इस रात के लिए भेजे थे. सबा सिर झुकाए सुनती रही. उस का दिल भर आया. वह खूबसूरत रात बिना किसी अनोखे एहसास, प्यार के जज्बात के गुजर गई.
सुबह नाश्ते में पूरियां, हलवा, फ्राइड चिकन देख उस ने धीरे से कहा, ‘‘मैं सुबहसुबह इतना भारी नाश्ता नहीं कर सकती.’’
‘‘ठीक है, न खाओ,’’ नईम ने लापरवाही से कहा, फिर उस के लिए ब्रैडदूध मंगवा दिया, न कोई मनुहार न इसरार.
फिर जिंदगी एक इम्तिहान की तरह शुरू हो गई. सबा अभी अपनेआप को इस बदले माहौल में व्यवस्थित करती, उस से पहले ही सब के व्यवहार बदलने लगे. सास की तीखी बातें, ननदों के बातबात पर पढे़लिखे होने के ताने. जैसे उसे नीचा दिखाने की होड़ शुरू हो गई. उस का व्यवहारकुशल और पढ़ालिखा होना जैसे एक गुनाह बन गया. सबा इसे झेल नहीं पा रही थी इसलिए उस ने खामोशी ओढ़ ली. धीरेधीरे सब से कटने लगी. उन लोगों की बातों में भी या तो किसी की बुराई होती या मजाक उड़ाया जाता, वह अपने कमरे तक सीमित हो गई.
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नईम का नरम और बचकाना रवैया उसे खड़े होने के लिए जमीन देता रहा. इतना भी काफी था. जब वह स्टोर से आता मांबहनों के पास एकडेढ़ घंटे बैठता, तीनों उस की शिकायतों के दफ्तर खोल देतीं. हर काम में बुराई का एक पहलू मिल जाता, खाने में कम तेल डालना, छोटी रोटियां बनाना कंजूसी गिना जाता, साफसफाई की बात पर मौडर्न होने का इलजाम, चमकदमक के रेशमी कपड़े न पहनने पर फैशन की दुहाई, ये सब सुन उस का मन कसैला हो जाता.
नईम पर कुछ देर इन शिकायतों का असर रहता फिर वह सबा से अच्छे से बात करता. क्योंकि यह उसी की ख्वाहिश थी कि उसे पढ़ीलिखी बीवी मिले और वह अपने दोस्तों पर उस की धाक जमा सके पर सबा को एक शोपीस बन कर नईम के दोस्तों के यहां जाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था.
नौकरी तो वह छोड़ ही चुकी थी. एक तो स्कूल ससुराल से बहुत दूर था, दूसरे, शादी की एक शर्त नौकरी छोड़ना भी थी. अपना काम पूरा कर अपने कमरे में किताबें पढ़ती रहती. कानून की डिगरी लेना उस के सपनों में से एक था पर हालात ने इजाजत न दी, न ही वक्त मिला. अब वह अपने खाली टाइम में कानून की किताबें पढ़ अपना यह शौक पूरा करती. वह एक समझदार बेटी, एक परफैक्ट टीचर, एक संपूर्ण औरत तो थी पर मनचाही बहू नहीं बन पा रही थी.
कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि नईम कुछ उलझाउलझा और परेशान है. न पहले की तरह दिनभर के हालात उसे सुनाता है न बातबेबात कहकहे लगाता है. अम्मी व बहनों की बातों का भी बस हूंहां में जवाब देता है. पहले की शोखी, वह बचपना एकदम खत्म हो गया था. उस रात सबा की आंख खुली तो देखा नईम जाग रहा है, बेचैनी से करवटें बदल रहा है. सबा ने एक फैसला कर लिया, वह उठ कर बैठ गई और बहुत प्यार से पूछा, ‘‘नईम, मैं कई दिनों से देख रही हूं, आप परेशान हैं. बात भी ठीक से नहीं करते, क्या परेशानी है?’’
नईम ने टालते हुए कहा, ‘‘नहीं, ऐसा कुछ खास नहीं, स्टोर की कुछ उलझनें हैं.’’
सबा ने उस के बाल संवारते हुए कहा, ‘‘नईम, हम दोनों ‘शरीकेहयात’ हैं यानी जिंदगी के साथी. आप की परेशानी और दुख मेरे हैं, उन्हें बांटना और सुलझाना मेरा भी फर्ज है, हो सकता है कोई हल हमें, मिल कर सोचने से मिल जाए. आप खुल कर मुझे पूरी बात बताइए.’’
‘‘सबा, मैं एक मुश्किल में फंस गया हूं. एक दिन एक सेल्सटैक्स अफसर मेरे स्टोर पर आया. ढेर सारा सामान लिया. जब मैं ने पैसे लेने के लिए बिल बना कर दिया तो वह एकदम गुस्से में आ गया. कहने लगा, ‘तुम जानते हो मैं कौन हूं, क्या हूं? और तुम मुझ से पैसे मांग रहे हो?’
‘‘मैं ने विनम्र हो कर कहा, ‘साहब, काफी बड़ा बिल है, मैं खुद सामान खरीद कर लाता हूं.’
‘‘इतना सुनते ही वह बिफर उठा, ‘मैं देख लूंगा तुम्हें, स्टोर चलाने की अक्ल आ जाएगी. तुम मेरी ताकत से नावाकिफ हो. ऐसे तुम्हें फसाऊंगा कि तुम्हारी सारी अकड़ धरी की धरी रह जाएगी.’ और सामान पटक कर स्टोर से निकल गया. उस के बाद उस का एक जूनियर आ कर सारे खातों की पूछताछ कर के गया और धमकी दे गया कि जल्द ही पूरी तरह चैकिंग होगी और एक नोटिस भी पकड़ा गया. इतना लंबा नोटिस अंगरेजी में है, पता नहीं कौनकौन से नियम और धाराएं लिखी हैं. तुम तो जानती हो मेरी अंगरेजी बस कामचलाऊ है, हिसाबकिताब का ज्यादा काम तो मुंशी चाचा देखते हैं.’’
सबा ने सुकून से सारी बात सुनी और तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘आप बिलकुल परेशान न हों, जब आप कोई गलत काम नहीं करते हैं तो आप को घबराने की जरा भी जरूरत नहीं है. अगर खातों में कुछ कमियां या लेजर्स नौर्म्स के हिसाब से नहीं हैं तो वह सब हो जाएगा. आप सारे खाते और नोटिस, नौर्म्सरूल्स सब घर ले आइए, मैं इत्मीनान से बैठ कर सब चैक कर लूंगी या आप मुझे स्टोर पर ले चलिए, पीछे के कमरे में बैठ कर मैं और मुंशी चाचा एक बार पूरे खाते और हिसाब नियमानुसार चैक कर लेंगे. अगर कहीं कोई कमी है तो उस का भी हल निकाल लेंगे, आप हौसला रखें.’’
सबा की विश्वास से भरी बातें सुन कर नईम को राहत मिली. उस के होंठों की खोई मुसकराहट लौट आई.
दूसरे दिन एक अलग तरह की सुबह हुई. सबा भी नईम के साथ जाने को तैयार थी. यह देख अम्मी की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘हमारे यहां औरतें सुबहसवेरे शौहर के साथ सैर करने नहीं जाती हैं.’’
नईम अम्मी का हाथ पकड़ कर उन्हें उन के कमरे में ले गया और उस पर पड़ने वाली विपदा को इस अंदाज में समझाया कि अम्मी का दिल दहल गया. वे चुप थीं, कमरे में बैठी रहीं. सबा नईम के साथ चली गई. बात इतनी परेशान किए थी कि अम्मी का सारा तनतना झाग की तरह बैठ गया.
सबा के लिए यह कड़े इम्तिहान की घड़ी थी. यही एक मौका उसे मिला था कि अपनी तालीम का सही इस्तेमाल कर सकती थी. उस ने युद्धस्तर पर काम शुरू कर दिया. एक तो वह सहनशील थी दूसरे, बीएससी में उस के पास मैथ्स था, और जनरलनौलेज व कानूनी जानकारी भी अच्छीखासी थी.
पहले तो उस ने नोटिस ध्यान से पढ़ा, फिर एकएक एतराज और इलजाम का जवाब तैयार करना शुरू किया. मुंशीजी ईमानदार व मेहनती थे पर इतने ज्यादा पढ़े न थे लेकिन सबा के साथ मिल कर उन्होंने सारे सवालों के सटीक व नौर्म्स पर आधारित, सही उत्तर तैयार कर लिए. शाम तक यह काम पूरा कर उस ने नोटिस का टू द पौइंट जवाब भिजवा दिया.
एक बोझ तो सिर से उतरा. अब उन्हें बिलबुक के अनुसार सारे खाते चैक करने थे कि कहीं भी छोटी सी भूल या कमी न मिल सके. एक जगह बिलबुक में एंट्री थी पर लेजर में नहीं लिखा गया था. नईम ने उस बिल पर माल भेजने वाली पार्टी से बातचीत की तो खुलासा हुआ कि माल भेजा गया था पर मांग के मुताबिक न होने की वजह से वापस कर के दूसरे माल की डिमांड की गई थी जो जल्द ही आने वाला था. सबा ने उस के लिए जरूरी कागजात तैयार कर लिए. पार्टी कंसर्न से जरूरी कागजात पर साइन करवा के रख लिए.
3 दिन की जीतोड़ मेहनत के बाद नईम और सबा ने चैन की सांस ली. अब कभी भी चैकिंग हो जाए, कोई परेशानी की बात नहीं थी. शाम 4 बजे जब सबा घर वापस जाने की तैयारी कर रही थी उसी वक्त सेल्सटैक्स अफसर अपने 2 बंदों के साथ आ गया. आते ही उस ने नईम और मुंशीजी से बदतमीजी से बात शुरू कर दी.
दोनों जब तक जवाब देते, सबा उठ कर सामने आ गई और उस ने बहुत नरम और सही अंगरेजी में कहा, ‘‘सर, आप सरकारी नौकर हैं. जांच और पूछताछ करना आप का फर्ज है. आप तरीके से पूछें फिर भी आप को तसल्ली न हो तो आप लिखित में नोटिस दें, हम उस का जवाब देंगे. आप की पहली इन्क्वायरी का संतोषप्रद जवाब दिया जा चुका है. आप को जो भी मालूमात चाहिए, मुझ से पूछिए क्योंकि लेजर मैं मेंटेन करती हूं पर पूछताछ में अपने लहजे और भाषा पर कंट्रोल रखिएगा क्योंकि हम भी आप की तरह संभ्रांत नागरिक हैं.’’
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इतनी सटीक और परफैक्ट अंगरेजी में जवाब सुन अफसर के रवैए में एकदम फर्क आ गया. काफी देर जांच चलती रही, सबा ने बड़े आत्मविश्वास से हर शंका का बड़े सही ढंग से समाधान किया क्योंकि पिछले 4 दिनों में वह हर बात को अच्छी तरह से समझ चुकी थी. सेल्सटैक्स अफसर कोई घपला न निकाल सका, इसलिए अपने साथियों के साथ वापस चला गया, पर धमकी देते गया कि उस की खास नजर इस स्टोर पर रहेगी. अकसर परेशान करने को नोटिस आते रहे जिन्हें सबा ने बड़ी सावधानी से संभाल लिया.
घर पहुंच कर नईम खुशी से पागल हो रहा था, अम्मी और बहनों को सबा की काबिलीयत विस्तार से जताते हुए बोला, ‘‘सबा का पढ़ालिखा होना, उस की गहरी जानकारी और अंगरेजी बोलना सारी मुसीबतों से टक्कर लेने में कामयाब रहे. पहले यही अफसर मुझ से ढंग से बात नहीं करता था. मेरा अंगरेजी मेें ज्यादा दखल न होने से और विषय की पकड़ कमजोर होने से मुझ पर हावी हो रहा था. अपनी जानकारी से सबा ने ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया है कि अब बेवजह मुझे परेशान न करेगा. मैं ने फैसला कर लिया है कि सबा हफ्ते में 2 बार आ कर हिसाबकिताब चैक करेगी ताकि आइंदा ऐसा कोई मसला न खड़ा हो.’’
एक अरसे के बाद अम्मी ने प्यार से सबा को गले लगाया. बहनें भी प्यार से लिपट गईं. सबा को लगा उस की मुश्किलों का खत्म होने का वक्त आ गया है. उन्हें हंसता देख कर नईम बोला, ‘‘अम्मी, मैं ने शादी के वक्त शर्त रखी थी कि लड़की पढ़ीलिखी होनी चाहिए तो आप सब खूब नाराज हो रहे थे पर उस वक्त पढ़ीलिखी बीवी की ख्वाहिश इसलिए थी कि मैं कम पढ़ालिखा था. उस कमी को मैं अपनी पढ़ीलिखी बीवी से पूरी करना चाहता था और मैं गर्व से अपने दोस्तों से कह सकूं कि मेरी बीवी एमएससी है.
‘‘यह हकीकत तो अब खुली है कि इल्म सिर्फ दिखाने या नाज करने के लिए नहीं होता. इस मुश्किल घड़ी में जब मैं बेहद निराश और डिप्रैस्ड था, उस वक्त सबा ने अपनी तालीम, समझदारी व जानकारी से मामला संभाला. आज मैं अपनी ख्वाहिश की जिंदगी और कारोबार में इल्म की अहमियत को समझ गया हूं. इल्म कोई शोपीस नहीं है बल्कि हर समस्या, हर मुश्किल से जूझने का सफल हथियार है.’’
सबा ने खुशी से चमकती आंखों से नईम को शुक्रिया कहा.
सबा के स्टोर में मदद करने से एक एहसान के बोझ से दबी अम्मी उस से कुछ हद तक नरम हो गईं पर दिल में जमी ईर्ष्या और कम होने के एहसास की धूल अभी भी अपनी जगह पर थी. बहनें भी रूखीरूखी सी मिलतीं. सबा सोचने लगी, उस से कहीं गलती हो रही है. एकाएक उस के दिमाग में धमाका हुआ. उसे एहसास हुआ, कोताही उस की तरफ से भी हो रही है. अभी लोहा गरम है, बस एक वार की जरूरत है. वह पढ़ीलिखी है यह एहसास उस पर भी तो हावी रहा था. अनजाने में वह उन से दूर होती गई.
अगर वे लोग अपनी जहालत और नासमझी से उसे अपना नहीं रहे थे तो उस ने भी कहां आगे बढ़ कर कोशिश की. वह तो समझदार थी. उसे ही उन लोगों का साथ निभाना था. उस ने अपनी बेहतरी को एक खोल की तरह अपने ऊपर चढ़ा लिया था. अब उसे इस खोल को तोड़ कर उन लोगों के लेवल पर उतर कर उन के दिलों में धीरेधीरे जगह बनानी होगी. यही तो उस की कसौटी है कि उसे अपनी तालीम को इस तरह इस्तेमाल करना है कि वे सब दिल से उस के चाहने वाले हो जाएं. उन की नफरत मुहब्बत में बदल जाए. पहल उसे ही करनी होगी. अपने गंभीर और आर्टिस्टिक मिजाज को छोड़ कर अपने घमंड के पीछे डाल कर उसे यह रिश्तों की जंग जीतनी होगी.
दूसरे दिन सबा ने गहरे रंग का रेशमी सूट पहना. झिलमिल करता दुपट्टा ओढ़ नीचे आ गई. उस की सास तख्त पर बैठी सिर में तेल डाल रही थीं. वह उन के करीब जा कर बैठ गई. उन्होंने मुसकरा कर उस के खूबसूरत जोड़े को देखा, उस ने उन के हाथ से कंघा ले कर कंघी करते हुए कहा, ‘‘अम्मी, अगर नासमझी में मुझ से कोई भूल हुई है तो माफ करें, अपनेआप को मैं आप की ख्वाहिश के मुताबिक बदल लूंगी.’’
अम्मी हैरान सी उसे देख रही थीं. आज इस चमकीले सूट में वह उन्हें बड़ी अपनी सी लग रही थी. वह उस के संजीदा व्यवहार से बदगुमान हो गई थीं. उन्हें लगा था कि तालीमयाफ्ता, होशियार बहू उन से उन का बेटा छीन लेगी, क्योंकि नईम वैसे भी उसे खूब चाहता था. कहीं बहू बेटे पर हावी न हो जाए, इसलिए उन्होंने उस के नुक्स निकाल कर उस की अहमियत कम करना शुरू कर दिया. बेटियों ने भी साथ दिया क्योंकि सबा ने भी अपने आसपास एक नफरत की दीवार खड़ी कर दी थी.
आज वही दीवार, अपनेपन और मुहब्बत की गरमी से पिघल रही थी. उस ने अम्मी की चोटी गूंथते हुए कहा, ‘‘अम्मी, आप मुझे रिश्तों का मान दीजिए, मुझे अपनी बेटी समझें, मुझे भी रिश्ते निभाने आते हैं. मैं आप के बेटे को कभी आप से दूर नहीं करूंगी बल्कि मैं भी आप की बन जाऊंगी. मैं मुहब्बत की प्यासी हूं. रमशा और छोटी मेरी बहनें हैं. आप उन्हीं की तरह मुझे अपनी बेटी समझें. तालीम और काबिलीयत ऐसी चीज नहीं है जो दिलों के ताल्लुक और मुहब्बत में सेंध लगाए.’’
अम्मी को लग रहा था जैसे उन के कानों में मीठा रस टपक रहा है. वे ठगी सी काबिल बहू की बातें सुन रही थीं जो सीधे उन के दिल में उतर रही थीं. उसी ने उन के बेटे को कितनी बड़ी मुश्किल से निकाला है पर जरा सा गुरूर नहीं है. सबा ने रमशा और छोटी को दुलारते हुए कहा, ‘‘आप इन के लिए परेशान न हों, मैं इन दोनों को भी जमाने के साथ चलना सिखाऊंगी. मेरी कुछ, बहुत अच्छे घरों में पहचान है. वहां इन दोनों के लिए रिश्ते भी देखूंगी,’’ यह बात सुन कर दोनों ननदों की आंखों में नई जिंदगी के ख्वाब तैरने लगे.
शाम को नईम जब स्टोर से आया तो घर में खाने की खुशगवार खुशबू के साथ प्यार की महक भी थी. सब ने हंसतेमुसकराते खाना खाया. सबा की एक छोटी सी पहल ने सारा माहौल खुशियों से भर दिया. उस ने अपनी समझदारी से अपना अहं छोड़ कर अपना घर बचा लिया, क्योंकि कुछ पाने के लिए झुकना जरूरी है. उसे यह बात समझ में आ गई कि नीचे झुकने से कद छोटा नहीं होता बल्कि ऊंचा हो जाता है. उन सब में इल्म की कमी से एक एहसासेकमतरी था, उसे छिपाने के लिए वे सबा में कमियां ढूंढ़ते थे. आज उस ने उन के साथ कदम से कदम मिला कर उन के खयालात बदल दिए.
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दरअसल, एक रंग पर दूसरा रंग मुश्किल से चढ़ता है. नया रंग चढ़ाने को पुराने रंग को धीरेधीरे हलका करना पड़ता है. दूसरी शाम नईम की पसंद के मुताबिक तैयार हो कर वह उस के दोस्त के यहां खुशीखुशी मिलने जा रही थी. यह नई जिंदगी का खुशगवार आगाज था जिस का उजाला उस के ख्वाबों में नए रंग भरने वाला था.