नतालिया इग्नातोवा या संक्षेप में नताशा मास्को विश्वविद्यालय में हिंदी की रीडर थी. उस के पति वहीं भारत विद्या विभाग के अध्यक्ष थे. पतिपत्नी दोनों मिलनसार, मेहनती और खुशमिजाज थे.
नताशा से अकसर फोन पर मेरी बात हो जाती थी. कभीकभी हमारी मुलाकात भी होती थी. वह हमेशा हिंदी की कोई न कोई दूभर समस्या मेरे पास ले कर आती जो विदेशी होने के कारण उसे पहाड़ जैसी लगती और मेरी मातृभाषा होने के कारण मुझे स्वाभाविक सी बात लगती. जैसे एक दिन उस ने पूछा कि रेलवे स्टेशन पर मैं उस से मिला या उस को मिला, क्या ठीक है और क्यों? आप बताइए जरा.
उस ने मुझे अपने संस्थान में 2-3 बार अतिथि प्रवक्ता के रूप में भी बुलाया था. मैं गया, उस के विद्यार्थियों से बात की. उसे अच्छा लगा और मुझे भी. मैं भी दूतावास के हिंदी से संबंधित कार्यक्रमों में उसे बुला लेता था.
नताशा मुझे दूतावास की दावतों में भी मिल जाती थी. जब भी दूतावास हिंदी से संबंधित कोई कार्यक्रम रखता, तो समय होने पर वह जरूर आती. कार्यक्रम के बाद जलपान की भी व्यवस्था रहती, जिस में वह भारतीय पकवानों का भरपूर आनंद लेती.
2-3 बार भारत हो आई नताशा को हिंदी से भी ज्यादा पंजाबी का ज्ञान था और वह बहुत फर्राटे से पंजाबी बोलती थी. दरअसल, शुरू में वह पंजाबी की ही प्रवक्ता थी, लेकिन बाद में जब विश्व- विद्यालय ने पंजाबी का पाठ्यक्रम बंद कर दिया तो वह हिंदी में चली आई.
रूस में अध्ययन व्यवस्था की यह एक खास विशेषता है कि व्यक्ति को कम से कम 2 कामों में प्रशिक्षण दिया जाता है. यदि एक काम में असफल हो गए तो दूसरा सही. इसलिए वहां आप को ऐसे डाक्टर मिल जाएंगे जो लेखापाल के कार्य में भी निपुण हैं.
हम दोनों की मित्रता हो गई थी. वह फोन पर घंटों बातें करती रहती. एक दिन फोन आया, तो वह बहुत उदास थी. बोली, ‘‘हमें अपना घर खाली करना होगा.’’
‘‘क्यों?’’ मैं ने पूछा, ‘‘क्या बेच दिया?’’
‘‘नहीं, किसी ने खरीद लिया,’’ उस ने बताया.
‘‘क्या मतलब? क्या दोनों ही अलगअलग बातें हैं?’’ मैं ने अपने मन की शंका जाहिर की.
‘‘हां,’’ उस ने हंस कर कहा, ‘‘वरना भाषा 2 अलगअलग अभि- व्यक्तियां क्यों रखती?’’
‘‘पहेलियां मत बुझाओ. वस्तुस्थिति को साफसाफ बताओ,’’ मैं ने नताशा से कहा था.
‘‘पहले यह बताइए कि पहेलियां कैसे बुझाई जाती हैं?’’ उस ने प्रश्न जड़ दिया, ‘‘मुझे आज तक समझ नहीं आया कि पहेलियां क्या जलती हैं जो बुझाई जाती हैं.’’
‘‘यहां बुझाने का मतलब मिटाना, खत्म करना नहीं है बल्कि हल करना, सुलझाना है,’’ मैं ने जल्दी से उस की शंका का समाधान किया और जिज्ञासा जाहिर की, ‘‘अब आप बताइए कि मकान का क्या चक्कर है?’’
‘‘यह बड़े दुख का विषय है,’’ उस ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तो आप को पहले ही बताया था कि मेरा मकान बहुत अच्छे इलाके में है और यहां मकानों के दाम बहुत ज्यादा हैं.’’
‘‘जी हां, मुझे याद है,’’ मैं ने कहा, ‘‘वही तो पूछ रहा हूं कि क्या अच्छे दाम ले कर बेच दिया.’’
‘‘नहीं, असल में एक आदमी ने मेरे मकान के बहुत कम दाम भिजवाए हैं और कहा है कि आप का मकान मैं ने खरीद लिया है,’’ उस ने रहस्य का परदाफाश किया.
‘‘अरे, क्या कोई जबरदस्ती है,’’ मैं ने उत्तेजित होते हुए कहा, ‘‘आप कह दीजिए कि मुझे मकान नहीं बेचना है.’’
‘‘बेचने का प्रश्न कहां है,’’ नताशा बुझे हुए स्वर में बोली, ‘‘यहां तो मकान जबरन खरीदा गया है.’’
‘‘लेकिन आप मकान खाली ही मत कीजिए,’’ मैं ने राह सुझाई.
‘‘आप तो दूतावास में हैं, इसलिए आप को यहां के माफिया से वास्ता नहीं पड़ता,’’ उस ने दर्द भरे स्वर में बताया, ‘‘हम आनाकानी करेंगे तो वे गुंडे भिजवा देंगे, मुझे या मेरे पति को तंग करेंगे. हमारा आनाजाना मुहाल कर देंगे, हमें पीट भी सकते हैं. मतलब यह कि या तो हम अपनी छीछालेदर करवा कर मकान छोड़ें या दिल पर पत्थर रख कर शांति से चले जाएं.’’
‘‘और अगर आप पुलिस में रिपोर्ट कर दें तो,’’ मुझे भय लगने लगा था, ‘‘क्या पुलिस मदद के लिए नहीं आएगी?’’
‘‘मकान का दाम पुलिस वाला ही ले कर आया था,’’ उस ने राज खोला, ‘‘बहुत मुश्किल है, प्रकाशजी, माफिया ने यहां पूरी जड़ें जमा रखी हैं. यह सरकार माफिया के लोगों की ही तो है. मास्को का जो मेयर है, वह भी तो माफिया डौन है. आप क्या समझते हैं कि रूस तरक्की क्यों नहीं करता? सरकार के पास पैसे पहुंचते ही नहीं. जनता और सरकार के बीच माफिया का समानांतर शासन चल रहा है. ऐसे में देश तरक्की करे, तो कैसे करे.’’
‘‘यह न केवल दुख का विषय है बल्कि बहुत डरावना भी है,’’ मुझे झुरझुरी सी हो आई.
‘‘देखिए, हम कितने बहादुर हैं जो इस वातावरण में भी जी रहे हैं,’’ नताशा ने फीकी सी हंसी हंसते हुए कहा था.
मैं 1997 में जब मास्को पहुंचा था, तो एक डालर के बदले करीब 500 रूबल मिलते थे. साल भर बाद अचानक उन की मुद्रा तेजी से गिरने लगी. 7, 8, 11, 22 हजार तक यह 4-5 दिनों में पहुंच गई थी. देश भर में हायतौबा मच गई. दुकानों पर लोगों के हुजूम उमड़ पड़े, क्योंकि दामों में मुद्रा हृस के मुताबिक बढ़ोतरी नहीं हो पाई थी. सारे स्टोर खाली हो गए और आम रूसी का क्या हाल हुआ, वह तब पता चला जब नताशा से मुलाकात हुई.
नताशा ने मुझे बताया था कि अपने मकान से मिली राशि और अपनी जमापूंजी से वह एक मकान खरीद लेगी जो बहुत अच्छी जगह तो नहीं होगा पर सिर छिपाने के लिए जगह तो हो
ही जाएगी.
‘‘क्यों नया मकान खरीदा?’’ उस के दोबारा मिलने पर मैं ने पूछा.
मेरा सवाल सुन कर नताशा विद्रूप हंसी हंसने लगी. फिर अचानक रुक कर बोली, ‘‘जानते हैं यह मेरी जो हंसी है वह असल में मेरा रोना है. आप के सामने रो नहीं सकती, इसलिए हंस रही हूं. वरना जी तो चाहता है कि जोरजोर से बुक्का फाड़ कर रोऊं,’’ वह रुकी और ठंडी आह भर कर फिर बोली, ‘‘और रोए भी कोई कितना. अब तो आंसू भी सूख चुके हैं.’’
मैं समझ गया कि मामला कुछ रूबल की घटती कीमत से ही जुड़ा होगा. मकानों के दाम बढ़ गए होंगे और नताशा के पैसे कम पड़ गए होंगे. मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं था, चुप रहा.
‘‘आप जानते हैं, राज्य का क्या मतलब होता है? हमें बताया जाता है कि राज्य लोगों की मदद के लिए है, समाज में व्यवस्था के लिए है, समाज के कल्याण के लिए है. यह हमारा, हमारे लिए, हमारे द्वारा बनाया गया राज्य है. लेकिन अगर आप ने इतिहास पढ़ा हो तो आप को पता चलेगा कि राज्य व्यवस्था का निर्माण दरअसल, लोगों के शोषण और उन पर शासन के लिए हुआ था? इसलिए हम जो यह खुशीखुशी वोट देने चल देते हैं, उस का मतलब सिर्फ इतना भर है कि हम अपनी इच्छा से अपना शोषण चुन रहे हैं.’’
नताशा बोलती रही, मैं ने उसे बोलने दिया क्योंकि मेरे टोकने का कोई औचित्य नहीं था और मुझे लगा कि बोल लेने से संभवत: उस का दुख कम होगा.
‘‘आप शायद नहीं जानते कि कल तक हमारे पास 80 हजार रूबल थे, जो हम ने अतिरिक्त काम कर के पेट काटकाट कर, पैदल चल कर, खुद सामान ढो कर और इसी तरह कष्ट उठा कर जमा किए थे. सोचा था कि एक कार खरीदेंगे पर जब उन हरामजादों ने हमारा मकान छीन लिया, तो सोचा कि चलो अभी मकान ही खरीदा जाए,’’ नताशा बातचीत के दौरान निस्संकोच गालियां देती थी जो उस के मुंह से अच्छी भी लगती थीं और उस के दुख की गहराई को भी जाहिर करती थीं, ‘‘पर हमें 2 दिन की देर हो गई और अब पता चला कि देर नहीं हुई, बल्कि देर की गई. हम तो सब पैसा तैयार कर चुके थे. लेकिन मकानमालिक को वह सब पता था, जो हमारे लिए आश्चर्य बन कर आया, इसलिए उस ने पैसा नहीं लिया.’’
नताशा ने रुक कर लंबी सांस ली और आगे कहा, ‘‘आप जानते हैं, यह मुद्रा हृस कब हुआ? यह अचानक नहीं हुआ, उन कुत्तों ने अपने सब रूबल डालर में बदल लिए या संपत्ति खरीद ली और फिर करवा दिया मुद्रा हृस. भुगतें लोग. रोएं अपनी किस्मत को,’’ इतना कह कर वह सचमुच रोने को हो आई, फिर अचानक हंसने लगी. बोली, ‘‘जाने क्यों, मैं, आप को यह सब सुना कर दुखी कर रही हूं,’’ उस ने फिर कहा, ‘‘शायद सहकर्मी होने का फायदा उठा रही हूं. जानते हैं न कि जिन रूबलों से मकान लिया जा सकता था वे अब एक महीने के किराए के लिए भी काफी नहीं हैं.’’
उस ने फीकी हंसी हंस कर फिर कहा, ‘‘और व्यवस्था पूरी थी. बैंक बंद कर दिए गए. लोग बैंकों के सामने लंबी कतारों में घंटों खड़े रहे. किसी को थोड़े रूबल दे दिए गए और फिर बैंकों को दिवालिया घोषित कर दिया गया. लोग सड़कों पर ही बाल नोचते, कपड़े फाड़ते देखे गए. लेकिन किसी का नुकसान ही तो दूसरे का फायदा होगा. यह दुनिया का नियम है.’’