रेटिंगः तीन स्टार
निर्माताः समीर नायर
निर्देशकः राजेश मापुस्कर
कलाकारः अजय देवगन, ईशा देओल तख्तानी, राशी खन्ना, अश्विनी कलसेकर, अतुल कुलकर्णी, अशीश विद्यार्थी, मिलिंद गुणाजी
अवधिः साढ़े चार घंटेः 45 मिनट के छह एपीसोड
ओटीटी प्लेटफार्मः हॉटस्टार डिज्नी
इदरीस एल्बा की रोमांचक व सायकोलॉजिकल ब्रिटिश वेब सीरीज ‘‘लूथर’’ का हिंदी रीमेक वेब सीरीज ‘‘ रूद्राः द डार्क एज’’ लेकर फिल्मकार राजेश मापुस्कर आए हैं, जो कि डिज्नी हॉट स्टार पर 4 मार्च से स्ट्रीम हो रही है. मगर अफसोस की बात है कि राजेश मपुस्कर नकल करने में भी सफल नही हो पाए. जबकि मुंबई की पृष्ठभूमि की आपराधिक कहानियों को रोमांचक तरीके से पेश करते हुए पूरा माहौल न्यूयार्क जैसा रचने के अलावा दिग्गज व प्रतिभाशाली कलाकारों को इसमें भर रखा है. इतना ही नही ‘रूद्राः द डार्क एज’ जैसी वेब सीरीज को जिस तरह से फिल्माया गया है, उसे देखते हुए यह टीवी, मोबाइल या लैपटॉप पर देखना सुखद अनुभव नही दे सकता. इसे तो सिनेमाघर में ही देखना उचित होगा. हमने इस सीरीज के तीन एपीसोड सिनेमाघर मे ही देखे हैं.
कहानीः
पहले एपीसोड की कहानी शुरू होती है मुंबई के क्राइम स्पेशल स्क्वॉड के डीसीपी रुद्रवीर सिंह उर्फ रूद्रा (अजय देवगन ) द्वारा एक संदिग्ध का पीछा करने से. पर उस अपराधी से सच कबुलवाने के बाद वह उसे बचाता नही है, बल्कि उसे उंची इमारत से नीचे गिरने देता है, जो कि बाद में अस्पताल में कोमा में चला जाता है. पर डीसीपी रूद्रा की बॉस दीपाली हांडा (अश्विनी कलसेकर) उन्हें सस्पेंड होने से बचा लेती है. इसके बाद वह सायकोलॉजिस्ट और ख्ुाद को सबसे बड़ी जीनियस समझने वाली आलिया चैकसी (राशी खन्ना ) के माता पिता की हत्या की जांच शुरू करते हंै, जहां वह मनोविज्ञान का सहारा लेकर बता देते हंै कि आलिया ने ही अपने माता पिता की हत्या की है, पर सबूत नहीं मिलते. लेकिन यहां से रूद्रा की जिंदगी में आलिया का समावेश हो जाता है. उधर रूद्रा का वैवाहिक जीवन संकट के दौर से गुजर रहा है. रूद्रा की पत्नी शैला(ईशा देओल तख्तानी ) अब अपने प्रेमी राजीव के साथ रह रही है. वहीं रूद्रा की बॉस बार बार उन्हे चेतावनी देती रहती है. जबकि उनका साथी गौतम(अतुल कुलकर्णी) भी मदद करता रहता है. इस तरह मुंबई शहर में होने वाले अपराधों और रुद्र की व्यक्तिगत लड़ाइयों के आसपास की आशंकाओं के साथ हर एपीसोड की कहानी चलती रहती है.
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लेखन व निर्देशनः
इस वेब सीरीज की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसके निर्देशक राजेश मपुसकर हैं. वह इसे पूरी संजीदगी व गहराई के साथ नहीं बना पाए. निर्देशक राजेश मापुसकर ने इसे फिल्माते समय अपना सारा ध्यान आस पास के माहौल को बनाने पर ज्यादा दिया. मंुबई में ही फिल्मायी गयी इस वेब सीरीज को देखकर अहसास होता है, जैसे कि हम अमरीका के न्यूयार्क शहर में पहुच गए हों. पुलिस के खास जांच कार्यालय, अपराधी से पूछताछ के कक्ष आदि की बनावट, साफ सफाई व तकनीक आदि को देखकर यह अहसास नही होता कि यह भारत में होगा. इसके अलावा हर एपीसोड काफी धीमी गति से चलता है. कहानी को बेवजह खींचा गया है. हर एपीसोड 45 से 48 मिनट का है, जिसे महज तीस मिनट के अंदर खत्म किया जा सकता था. दूसरी बात यह सीरीज पूरी तरह से मानव सायकोलॉजी पर आधारित है. जिसमें इंसान के हाव भाव, बौडी लैंगवेज आदि से सच का पता लगाया जाता है. मसलन- पहले एपीसोड में आलिया चैकसी से पूछ ताछ करते समय तेज तर्रार व अतिबुद्धिमान आलिया से रूद्रा सच कबूल नही करवा पाता. तब वह उबासी लेता है. मतलब ऐसी हरकत करता है कि उसे नींद आ रही है. मनोविज्ञान के अनुसार जब एक इंसान उबासी लेता है, तो सामने वाले इंसान को भी उबासी आनी चाहिए. पर आलिया को उबासी नही आती, जिससे रूद्रा आश्वस्त हो जाता है कि उसी ने अपने माता पिता की हत्या की है. अब इस बात को वही इंसान समझ सकता है, जिसे मानवीय मनोविज्ञान की समझ हो. इस वजह से भी यह वेब सीरीज आम लोगों के सिर के ेउपर से जाने वाली है. इतना ही नही इसकी मेकिंग जिस तरह की है, उसे देखते हुए इसे मोबाइल या लैपटॉप पर देखकर लुत्फ नही उठाया जा सकता. यह तो सिर्फ बड़े स्क्रीन पर देखे जाने योग्य है. जी हॉ!इसमें भव्यता है. कैमरा वर्क अच्छा है. मगर कमजोर लेखन, निर्देशकीय कमजोरी और एडिटिंग में कसावट का अभाव इसे बिगाड़ने का काम करता है. सीरीज में काफी खून-खराबा दिखाया गया है. एक कहानी तो ऐसे पेंटर की है, जो महिलाओं का अपहरण करके उनका खून पीता है, उनके खून से कैनवास पर तस्वीर बनाता है. यानीकि विभत्सता का भी चित्रण है. इस वेब सीरीज में मनोरंजन का ग्राफ एक समान नहीं है. वह तेजी से ऊपर-नीचे होता है.
यॅूं तो किसी भी पुलिस अफसर की निजी जिंदगी और उसके द्वारा अपराध की छानबीन का मिश्रण लोगों को काफी पसंद आता है. मगर यहां निर्देशक इसे सही अंदाज में नही पेश कर पाए. दूसरी बात पिछले कुछ समय से हर वेब सीरीज या फिल्म में पुलिस अफसर के तबाह वैवाहिक जीवन की कहानी को ठूंसा जाता जा रहा है. इसे देखने पर कई बार अहसास होता है कि रुद्रा के किरदार को ठीक से विकसित नहीं किया गया. पूरी वेब सीरीज जुमलों वाले संवाद व फार्मूलों पर ही चलती है. पूरी वेब सीरीज में रोमांच का अभाव है.
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अभिनयः
रूद्रा जैसे समर्पित पुलिस अफसर, जो अपराधी को पकड़ने व न्याय के लिए कानून को अपने हाथ में लेने में यकीन विश्वास करता है, के किरदार में अजय देवगन ने काफी सध हुआ अभिनय किया है. कई दृश्यों में उनकी बौडी लैंगवेज मनेाविज्ञान के अनुरूप है. मगर उनकी ईमेज एक एक्शन स्टार की है, जबकि इस वेब सीरीज में एक्शन न के बराबर है. फिर भी लड़खड़ाती वेब सीरीज को कई जगह अजय देवगन का अभिनय संभालता है. मगर ओटीटी पर अजय देवगन कुछ भी नया करते हुए नजर नही आते. आलिया चैकसी के किरदार में राशी खन्ना अपने अभिनय से जरुर कुछ उम्मीदें जगाती हैं. शैला के किरदार में ईशा देओल तख्तानी निराश करती हैं. इस वेब सीरीज से उनके जुड़ने की बात समझ से परे हैं. अश्विनी कलसेकर, अतुल कुलकर्णी, अशीश विद्यार्थी, मिलिंद गुणाजी ठीक ठाक हैं.