कैसे बचाएं गृहस्थी को

लेखिका– सपना मांगलिक

कोई रिश्ता परफैक्ट नहीं होता. दोस्तों की बात अलग है, क्योंकि वे एकसाथ, एक घर में, एक कमरे में, एक माहौल में पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं करते. मगर पतिपत्नी ऐसा करते हैं और यह मानवीय स्वभाव है कि हम एकजैसी एकरस चीजों और लोगों से जल्दी ऊब जाते हैं. पर परिवार पतिपत्नी की परिपूर्णता के कारण ही बनता है. बच्चों का विकास परिवार में ही संभव है. पतिपत्नी को चाहिए कि दोनों एकदूसरे को समझें, एकदूसरे को परिपूर्ण बनाएं भले ही वे शारीरिक व मानसिक नजरिए से कभी एकदूसरे के समान नहीं हो सकते. स्त्रीपुरुष एकदूसरे को समझ सकते हैं और वे एकदूसरे के पूरक हो सकते हैं, परंतु कभी एकदूसरे जैसे नहीं हो सकते और यह उस अंतर के कारण है, जो उन के प्राकृतिक वजूद में है.

वे दोनों स्वतंत्र व स्वाधीन इनसान हैं और अब वे बड़े हो गए हैं और अब वे पति या पत्नी के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं. परिवार बनाने के बाद लड़के और लड़की को शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है जिस की छाया में वे आत्मिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए अधिक प्रयास कर सकते हैं. इस के लिए परिवार का सफल होना आवश्यक है. जब इनसान संयुक्त रूप से जीवन बिताना आरंभ कर देता है, तो वह अधिक जिम्मेदारी का आभास करता है. वह अपने जीवन को अर्थ व लक्ष्यपूर्ण समझता है. अनैतिक कार्यों से दूर रहने के लिए परिवार आवश्यक है. समाज की सुरक्षा के लिए परिवार आवश्यक है.

पारिवारिक विघटन के कारण

पति और पत्नी की दिनचर्या सालोंसाल एकजैसी रहती है. अत: अहम, झूठा दिखावा, नएपन की तलाश, आर्थिक संपन्नता की ललक जबजब रिश्तों में आने लगती है तो दिलों में दूरियां और ऊब आना स्वाभाविक है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ज्यादातर परिवारों में जो झगड़े होते हैं, पतिपत्नी के बीच जो तनाव रहता है, बातबात पर दोनों जब एकदूसरे से लड़ते हैं उस का कारण एकदूसरे की शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक आवश्यकताओं का पूरा न होना है. दूसरे शब्दों में कहें तो भावनात्मक कमी इन समस्याओं के मूल में है. इस से डरने और परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है. जीवन की इस सचाई का सामना करते हुए जीवनशैली, विचार समयसमय पर परिवर्तित कर घर के माहौल को नया एवं हलकाफुलका खुशनुमा बनाया जा सकता है.

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कैसे खिलाएं रखें अपने वैवाहिक जीवन का पुष्प

बिना किसी शर्त के प्यार करना: कहते हैं प्यार में कोई शर्त नहीं होती. इस का मतलब है, जो जैसा है, उसे उसी रूप में प्यार करें. लेकिन यही बात समय बीतने के साथ उसी रिश्ते में दरार का कारण बनती है. प्यार, देखभाल, विश्वास और सम्मान रिश्ते की जरूरत है. कुछ रिश्तों में समय भी देना पड़ता है. किसी के बारे में कोई राय बनाने से पहले खुद को भी तोल लें. कई बार आप अपनी जरूरत के हिसाब से भी रिश्ते बनाती हैं. नाजुक रिश्ते तभी मजबूत बनते हैं जब आप दिल से उन्हें अपनाएंगी और उन्हें खुद को अपनाने देंगी. खुल कर विचारों का आदानप्रदान न करना: किसी भी रिश्ते में विचारों का आदानप्रदान व दूसरे के विचारों को सम्मान देना बेहद जरूरी होता है. जिन रिश्तों में संवाद की कमी होती है, उन में अकसर मतभेद मनभेद में बदल जाते हैं. परिणामस्वरूप रिश्ता धीरेधीरे टूटने के कगार पर पहुंच जाता है.

दूसरे को सम्मान न देना: कुछ महिलाओं और पुरुषों की यह सोच होती है कि यदि कोई हम से प्यार करता है या हमारा जीवनसाथी है तो उसे हमारी हर बात माननी ही होगी. ऐसे लोग सारे निर्णय स्वयं लेना चाहते हैं. वे अपने साथी की बात या विचार को सम्मान नहीं देते हैं. इस स्थिति को भले ही कुछ समय के लिए नजरअंदाज कर दिया जाए, पर ऐसे रिश्ते ताउम्र नहीं टिक पाते. कुछ समय बाद बिखर जाते हैं.

दूसरे पर यकीन करें: मां के घर में भी आप ने अपने बहनभाई, दादादादी और दूसरे रिश्तेदारों के साथ तालमेल बनाया ही होगा. बहनों की भी आपस में लड़ाई होती है और मनमुटाव भी. ऐसा ही मनमुटाव अगर सास या ननद से हो जाए, तो आप दिल पर क्यों ले लेती हैं? आप अपने किसी भी रिश्ते की तुलना एकदूसरे से न करें. सभी रिश्तों पर यकीन करें. आप का यकीन आप को धोखा नहीं देगा. रिश्तों की मजबूती के लिए वक्त चाहिए. आप अगर अपनेआप को नहीं खोलेंगी, तो रिश्ते कभी आप के दिल को नहीं छू पाएंगे.

व्यवहार से जुड़ी परेशानी: कोई भी इनसान ऐसे व्यक्ति के साथ वक्त बिताना पसंद नहीं करता, जो जरूरत से ज्यादा गुस्से वाला हो या अत्यधिक शांत रहने वाला. ऐसे रिश्ते में विचारों, खुशियों व दुखों का आदानप्रदान नहीं हो पाता. परिणामस्वरूप साथी कुंठित महसूस करने लगता है. यह कुंठा कुछ समय बाद असहनीय हो जाती है और रिश्ता टूटने का कारण बन जाती है. खुशनुमा रिश्ते के लिए अपने साथी के साथ अपनी भावनाएं, अपने अनुभव, अपनी सोच जरूर साझा करें.

एकतरफा प्यार करना: जब एक रिश्ते में सोचविचार, आकांक्षा, मूल्यों तथा रहनसहन में कोई तालमेल नहीं होता तो देरसबेर परेशानी आनी तय है. आप को कुछ समय बाद पता चल जाएगा कि आप इस रिश्ते को जितना प्यार दे रही हैं, क्या आप को उतना मिल रहा है? अपनी बात स्पष्ट रूप से रखना भी सीखें. अपनी किसी सहेली या घर वालों की राय लेने से पहले यह भी देख लें कि कहीं आप रिश्ते बनाने या तोड़ने में जल्दबाजी तो नहीं कर रहीं?

रिश्ते में उदासीनता आना: अकसर शादी के कुछ सालों बाद हर रिश्ते में उदासीनता आने लगती है. पैसा, घर और गाड़ी पाने की दौड़ में आप रिश्तों की गरमाहट को भूलने लगती हैं. रिश्तों में एक किस्म की प्रतिद्वंद्विता घर करने लगती है. यह वक्त है रिश्तों की ओवरहौलिंग का. उम्र के इस दौर में आप को भी अपनों का साथ चाहिए. देर नहीं हुई है. आप एक मैसेज कीजिए, फोन घुमाइए और इन सब को इकट्ठा कीजिए. पहले की तरह मनपसंद खाना और गप्पबाजी के साथ अपनेआप को तरोताजा कीजिए. ये वे लोग हैं, जो आप के साथ चलते आए हैं और हमेशा चलेंगे.

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इनसानियत को बाकी रखने के लिए भी परिवार आवश्यक है. अगर संसार का कोई भी इनसान पारिवारिक जीवन का निर्वाह न करे और उस के पास कोई संतान भी न हो तो कुछ वर्षों के बाद पूरी जमीन से इनसान यानी मानव समाज ही समाप्त हो जाएगा. ज्यादातर इनसान यह चाहते हैं कि उन का वंश चले, उन की संतानें हों. अलबत्ता इस बारे में महिलाएं पुरुषों से अधिक इस बात को पसंद करती हैं कि उन का कोई बच्चा हो और उन के अंदर मां बनने की जो भावना है वही उस का मूल कारण है. मातापिता और बच्चों के बीच जो प्रेमपूर्ण संबंध होते हैं वे इनसान के मन को शांति प्रदान करते हैं और यह शांति इनसान को तभी प्राप्त होती है जब वह पारिवारिक जीवन का निर्वाह करता है.

 

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