शहरों में ‘पेट्स लवर्स’ की संख्या बढ़ती जा रही है. इन में कुत्ते के साथसाथ बिल्ली और दूसरे पेट्स भी आते हैं. कुत्ते को ले कर कई बार पड़ोसियों में आपस में झगड़े होने लगते हैं. कई बार लोग शौकिया पेट्स पाल लेते हैं, फिर आवारा छोड़ देते हैं. छोटे डौग्स को खिलौने जैसा सम झने लगते हैं. मगर अब ऐसा करने वाले सावधान हो जाएं. अब सरकार पशु कू्ररता निवारण अधिनियम का सख्ती से पालन कराने लगी है. पशु अधिकारों के लिए मेनका गांधी ने बड़ी लड़ाई लड़ी. उस के बाद अब तमाम एनजीओ ऐसे बन गए हैं जो पशु अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे हैं.
ऐसे में कोई भी गलती करना पशुओं को पालने वाले पर भारी पड़ सकती है. सरकारी कर्मचारी सड़कों पर घूम रहे पशुओं का भले ही ध्यान न रखें, लेकिन अगर पशु पालने वाले के खिलाफ कोई शिकायत मिलेगी तो वे अपनी मनमानी पर उतर आएंगे. काला हिरन का शिकार करना फिल्म स्टार सलमान खान को भारी पड़ चुका है.
लखनऊ का चर्चित पिटबुल कांड
पेट्स पालने वालों में सब से अधिक संख्या डौग पालने वालों की होती है. ये जहां रहते हैं वहां इन के पड़ोसी परेशान रहते हैं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि अब लोग खतरनाक किस्म के डौग पालने लगे हैं, जिन को देख कर ही लोग डर जाते हैं खासकर बच्चे बहुत डरते हैं. इस के अलावा कई बार डौग घरों के आसपास गंदगी करते हैं. ऐसे में डौग लवर जिस भी सोसाइटी में रहते हैं वहां लोगों के निशाने पर रहते हैं. सोसाइटी और अपार्टमैंट्स में भी इन के लिए अलग नियम बन गए हैं.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कैसरबाग महल्ले में एक घर में पिटबुल और लैब्राडोर प्रजाति के 2 डौग पले हुए थे. घर में एक जवान लड़का अमित त्रिपाठी और उस की 82 साल की बूढी मां सुशीला त्रिपाठी रहती थीं. मां टीचर के पद से रिटायर थीं. बेटा जिम ट्रेनर के रूप में काम करता था. एक दिन घर में मां अकेली थीं. पता नहीं किन हालात में पिटबुल प्रजाति वाले कुत्ते ने उन्हें काट लिया.
इस के बाद उन की बौडी से खून ज्यादा निकल गया और जब तक कि बेटे को पता चला काफी देर हो चुकी थी. वह अपनी मां को ले कर अस्पताल गया. वहां पता चला मां की मौत हो चुकी है.
मौका पा कर महल्ले वालों ने कुत्ते को बाहर कराने के लिए हल्ला मचा दिया. पिटबुल को आदमखोर घोषित कर दिया. नगर निगम के लोग कुत्ते को ले गए. उस के व्यवहार को देखासम झा. 14 दिन अपनी देखरेख में अस्पताल में रखा. कुत्ते में खराब लक्षण नहीं दिखे तब उसे वापस मालिक को दे दिया गया. इस के बाद भी महल्ले वालों को दिक्कत बनी हुई है.
ऐसे मामले किसी एक जगह के नहीं हैं. अब लोग अपार्टमैंट्स में रहते हैं. वहां भी कुत्ते पालते हैं. बिल्लियां भी पालते हैं. ये पेट्स कई तरह से दिक्कत देते हैं. एक तो आवाज करते हैं, गंदगी करते हैं. दूसरे अनजान लोगों को देख कर काटते और भूकते हैं, जिस की वजह से अनजान लोगों को डर लगता है.
पहले लोगों के बडे़बड़े घर होते थे. ऐसे में डौग या दूसरे पालतू जानवरों को पालने से दूसरों को दिक्कत नहीं होती थी. अब महल्ले और कालोनी में छोटे घर होते हैं. अपार्टमैंट में तो बहुत ही करीबकरीब घर होते हैं. ऐसे में अगर आप पेट्स लवर हैं तो ऐसे पेट्स पालें जिन से लोगों को दिक्कत न हो.
डौंग का ले कर नियम
डौग को ले कर तमाम तरह के नियम बन गए हैं. नगर निगम से लाइसैंस लेना पड़ता है. इन को समयसमय पर वैक्सीन लगवानी पड़ती है. डौग की ट्रेनिंग ऐसी हो जिस से वह ऐसे काम न करे जिस से पड़ोस में रहने वालों को दिक्कत हो. कालोनियों ने अपनेअपने नियम अलग बनाए हैं. ऐसे में अगर आप को पेट्स पालने हैं तो सब से पहले नियमों का पालन करें.
अपने पेट्स को सही तरह से ट्रेनिंग दें और पड़ोसियों की सहमति भी लेते रहें. खतरनाक किस्म की प्रजातियां न पालें. कोई दिक्कत हो तो ऐनिमल्स डाक्टर से संपर्क करें. वह पेट्स के व्यवहार को देख व सम झ कर उस का इलाज करता है. सोसाइटी के निशाने पर आने से बचने के लिए जरूरी है कि उन की सहमति से काम करें.
अगर कोई बेवजह आप को परेशान कर रहा है तो कई कानून पेट्स पालने वालों के लिए भी हैं. कई संस्थाएं भी हैं जो ऐनिमल लवर्स की मदद करती हैं और उन के अधिकारों की रक्षा करने के लिए आवाज उठाती हैं. भारत सरकार ने पशुओं की सुरक्षा के लिए कानून भी बनाया है जो उन के अधिकारों की रक्षा करता है. इस को पशु कू्ररता निवारण अधिनियम के नाम से जाना जाता है.
क्या है पशु कू्ररता निवारण अधिनियम
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का उद्देश्य ‘जानवरों को अनावश्यक दर्द पहुंचाने या पीड़ा देने से रोकना’ है, जिस के लिए अधिनियम में जानवरों के प्रति अनावश्यक कू्ररता और पीड़ा पहुंचाने के लिए सजा का प्रावधान किया गया है. 1962 में बने इस अधिनियम की धारा 4 के तहत ‘भारतीय पशु कल्याण बोर्ड’ की स्थापना भी की गई है. 3 महीने की समय सीमा में इस के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है. इस के बाद अधिनियम के तहत किसी भी अपराध के लिए कोई मुकदमा दर्ज नहीं होगा.
जो लोग अपने घर में पालतू जानवर तो रखते हैं, लेकिन जानेअनजाने में उन के साथ कई बार ऐसा सलूक करते हैं, जो अपराध की श्रेणी में आता है. इस की भी सजा मिल सकती है. इसी तरह आसपास घूमने वाले जानवरों के साथ भी लोगों का व्यवहार बहुत माने रखता है. गलत व्यवहार पर सजा हो सकती है.
दंडनीय अपराध
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(1) के मुताबिक, हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है. पशु कू्ररता निवारण अधिनियम में साफ कहा गया है कि कोई भी पशु (मुरगी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा. बीमार और गर्भ धारण कर चुके पशुओं को मारा नहीं जाएगा.
भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक किसी पशु को मारना या अपंग करना, भले ही वह आवारा क्यों न हो, दंडनीय अपराध है. पशु कू्ररता निवारण अधिनियम 1960 के मुताबिक किसी पशु को आवारा छोड़ने पर 3 महीने की सजा हो सकती है. वाइल्डलाइफ ऐक्ट के तहत बंदरों को कानूनी सुरक्षा दी गई है. इस के तहत बंदरों से नुमाइश करवाना या उन्हें कैद में रखना गैरकानूनी है.
कुत्तों के लिए कानून को 2 श्रेणियों में बांटा गया है- पालतू और आवारा. कोई भी व्यक्ति या स्थानीय प्रशासन पशु कल्याण संस्था के सहयोग से आवारा कुत्तों का बर्थ कंट्रोल औपरेशन कर सकती है. उन्हें मारना गैरकानूनी है. जानवर को पर्याप्त भोजन, पानी, शरण देने से इनकार करना और लंबे समय तक बांधे रखना दंडनीय अपराध है.
इस के लिए जुर्माना या 3 महीने की सजा या फिर दोनों हो सकते हैं. पशुओं को लड़ने के लिए भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उस में हिस्सा लेना संज्ञेय अपराध है. पीसीए ऐक्ट की धारा 22(2) के मुताबिक भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिए ट्रेड करना और इस्तेमाल करना गैरकानूनी है.
प्रतिबंधित है यह
ड्रग्स ऐंड कौस्मैटिक रूल्स 1945 के मुताबिक जानवरों पर कौस्मैटिक्स का परीक्षण करना और जानवरों पर टैस्ट किए जा चुके कौस्मैटिक्स का आयात करना प्रतिबंधित है. ‘स्लौटर हाउस रूल्स 2001’ के मुताबिक देश के किसी भी हिस्से में पशु बलि देना गैरकानूनी है. जब हम चिडि़याघर घूमने जाते हैं तो वहां भी कुछ नियम है. चिडि़याघर और उस के परिसर में जानवरों को चिढ़ाना, खाना देना या तंग करना दंडनीय अपराध है. ऐसा करने वाले को 3 साल की सजा, 25 हजार रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
पशुओं को एक से दूसरी जगह ले जाने को ले कर भी कानून बनाया गया है. पशुओं को असुविधा में रख कर, दर्द पहुंचा कर या परेशान करते हुए किसी भी गाड़ी में एक से दूसरी जगह ले जाना मोटर व्हीकल ऐक्ट और पीसीए ऐक्ट के तहत दंडनीय अपराध है. पंछी या सांपों के अंडों को नष्ट करना या उन से छेड़छाड़ करना या फिर उन के घोंसले वाले पेड़ को काटना या काटने की कोशिश करना शिकार कहलाएगा.
इस के दोषी को 7 साल की सजा या 25 हजार रुपए का जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं. किसी भी जंगली जानवर को पकड़ना, फंसाना, जहर देना या लालच देना दंडनीय अपराध है. इस के दोषी को 7 साल तक की सजा या 25 हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं.