वे कौन से हालात हैं जो लड़की को घर छोड़ने को मजबूर कर देते हैं. आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं. जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं. मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है. इस का एक कारण आज का बदलता परिवेश है. आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है.
कुछ ऊंचनीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरहतरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है. यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.
आज लड़केलड़कियों को समान दर्जा दिया जा रहा है. उन में आपस में मित्रता आम बात है. मगर पाखंडों में डूबे मध्यवर्गीय परिवारों में लड़कियों का लड़कों से दोस्ती करने को शक की निगाह से देखा जाता है. यदि कोई लड़की किसी लड़के से बात करती है, तो उस पर संदेह किया जाता है. जब घर वालों के व्यंग्यबाण लड़की की भावनाओं को आहत करते हैं तो उस के अंदर विद्रोह की भावना जागती है, क्योंकि वह सोचती है कि जब वह गलत नहीं है तब भी उसे संदेह की नजरों से देखा जा रहा है, तो क्यों न अपने व्यक्तित्व को लोग और समाज जैसा सोचते हैं वैसा ही बना लिया जाए? जब बात सीमा से परे या सहनशक्ति से बाहर हो जाती है तो यह विद्रोह की भावना विस्फोट का रूप इख्तियार कर लेती है. लेकिन ऐसे हालात में भी घर वालों का सहयोगात्मक रवैया उस के बाहर बढ़ते कदमों को रोक सकता है, मगर अकसर मातापिता का उपेक्षापूर्ण रवैया ही इस के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार रहता है.
मातापिता की बड़ी भूल
ज्यादातर मातापिता सहयोग की भावना की जगह गुस्से से काम लेते हैं. दरअसल, युवावस्था एक ऐसी अवस्था होती है, जब बच्चों को सब कुछ नयानया लगता है. उन के मन में सब को जानने और समझने की जिज्ञासा रहती है. यदि उन्हें सही ढंग से समझाया जाए तो वे ऐसे कदम न उठाएं, क्योंकि यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है, जहां वह किसी के रोके नहीं रुकता. युवा बच्चे के मन की हर बात, हर इच्छा उस पर जनून बन कर सवार होती है, जिसे सिर्फ और सिर्फ मातापिता की सहानुभूति और प्रेमपूर्ण व्यवहार ही शिथिल कर सकता है. यदि मातापिता यह सोचते हैं कि बच्चे उन की डांट, मार या उपेक्षापूर्ण रवैए से सुधर जाएंगे तो यह उन की सब से बड़ी भूल होती है.
जरूरी है सहयोगात्मक रवैया
माना कि लड़कियों के घर से भागने की जिम्मेदार वे खुद हैं. पर इस में मातापिता और परिवेश का भी पूरापूरा योगदान रहता है. मातापिता लड़कियों की भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते. जबकि उन का सहयोगात्मक रवैया बेहद जरूरी होता है. मगर लड़कियों को भी चाहिए कि वे भावावेश या जिद में आ कर कोई निर्णय न लें. बड़ों की बात को विवेकपूर्ण सुन कर ही कोई निर्णय करें, क्योंकि यथार्थ यह भी है कि एक पीढ़ी अंतराल के कारण विचारों में परिवर्तन होता है, जिस से मतभेद स्थापित होते हैं. बड़ों का विरोध करें, मगर उन की उचित बातों को जरूर मानें वरना यही पलायन प्रवृत्ति जारी रही तो आप ही जरा कल्पना कीजिए कि भविष्य में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा?