क्या बहू-बेटी नहीं बन सकती

लेखक- डा. अर्जनिबी युसुफ शेख

कमरे से धड़ाम से प्लेट फेंकने की आवाज आई. बैठकरूम में टीवी देख रहे भाईबहनों के बीच से उठ कर आसिम आवाज की दिशा में कमरे में चला गया. आसिम के कमरे में जाते ही उस की बीवी रजिया ने फटाक से दरवाजा बंद कर दिया. यह आसिम की शादी का दूसरा ही दिन था.

आसिम की बीवी रजिया देखने में बड़ी खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती और बातों पर फिदा हो कर ही आसिम ने उस से शादी के लिए हां भर दी थी. वैसे वह आसिम की भाभी की बहन की बेटी थी. बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. घर में नई भाभी के आ जाने से आसिम के भाई और आसिम के मामू के बच्चे यानी मुमेरे भाईबहन भी बहुत खुश थे.

आसिम के घर में सगे और ममेरे भाईबहनों के बीच कोई भेद नहीं था. एक बाड़े में भाईबहन के अलगअलग घर थे परंतु साथ ऐसे रहते थे जैसे सब एक ही घर में रहते हों.

सब साथ खाना खाते, साथ खेलते, साथ मेले में जाते थे. फूप्पी भाई के बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह संभाला करती और भाभी भी ननद के बच्चों को अपने बच्चों जैसा ही प्यार करती. वास्तव में बच्चों ने भेदभाव देखा ही नहीं था. इसलिए उन्हें यह कभी एहसास हुआ ही नहीं

कि वे सगे भाईबहन नहीं बल्कि मामूफूप्पी के बच्चे हैं.

अगले दिन शाम के समय जब फिर सब भाईबहन टीवी देखने बैठे तो आसिम कमरे में ही रहा. वह सब के बीच टीवी देखने नहीं आया. इस के अगले दिन फिर सब एकत्रित अपनी पसंद का सीरियल देखने साथ बैठे ही थे कि आसिम की बीवी दनदनाती आई और रिमोट से अपनी पसंद की मूवी लगा कर देखने बैठ गई.

आसिम की अम्मीं ने जब यह देखा तो वे बहू से कहने लगीं, ‘‘बेटा, सब जो सीरियल देख रहे हैं वही तू भी थोड़ी देर देख ले. सीरियल देखने के बाद चले जाते हैं बच्चे.’’

बातबात पर लड़ाई

दरअसल, आसिम के मामू के यहां टीवी नहीं था और न ही उन्हें अलग से टीवी लेने की जरूरत महसूस हुई कभी. एक टीवी के ही बहाने अपना पसंदीदा सीरियल या कोई खास मूवी देखने सब एक समय बैठक में नजर आते थे. अगले दिन फिर जब सब उसी वक्त टीवी देखने बैठे तो आसिम की बीवी रजिया ने आ कर टीवी बंद कर दिया. सब चुपचाप बाहर निकल गए. धीरेधीरे सब की समझ में आ गया कि रजिया भाभी को सब का बैठना अखरता है.

दोपहर के समय पार्टी मामू के यहां जमती थी. रजिया को आसिम का मामू के यहां बैठना भी अखरता. वह बुलाने चली जाती. आसिम उठ कर नहीं आता तो उस की बड़बड़ शुरू हो जाती. सुबह देर तक सोना, उठ कर सास द्वारा बना कर रखा हुआ खाना खाना और कमरे में चले जाना. न 2 देवरों की उसे कोई फिक्र थी न सासससुर से कुछ लेनेदेने की परवाह.

कुछ समय बाद छोटे भाई की शादी हुई. नई बहू ने धीरेधीरे घर को संभाल लिया. हर काम में सब की जबान पर छोटी बहू अमरीन का ही नाम रहता. अमरीन के साथ घर के सदस्यों का हंसनाबोलना रजिया को अखरने लगा. वह बातबात पर अमरीन से झगड़ने लगती.

सास को लगा समय के साथ या औलाद होने पर रजिया सुधर जाएगी. वह 3 साल में 2 बेटियों की मां बन गई, लेकिन उस के व्यवहार में कोई उचित परिवर्तन नहीं हुआ. किसी न किसी बात से रोज किसी न किसी से लड़ना, इस की बात उस से कहना और तिल का पहाड़ बना देना उस की आदत बन चुकी थी. झगड़ा भी खुद करती और अपनी मां को घंटों फोन पर जोरजोर से सुनाने बैठ जाती. पूरा घर उस की बातबात पर लड़ाई से परेशान हो चुका था.

अच्छी है समझदारी

अयाज एक पढ़ालिखा लड़का है. औनलाइन वर्क में वह थोड़ाबहुत कमा लेता है. घर में 2 भाभियां हैं. दोनों के 3-3 बच्चे हैं. छोटी बहू का छोटा बच्चा बहुत छोटा है, इसलिए वह सासससुर को चायनाश्ता जल्दी दे नहीं पाती. बड़ी बहू अपने 3 बच्चों के साथ सासससुर और देवर का भी ध्यान करती है. वालिदैन ने चाहा अब छोटे की शादी करवा देनी चाहिए ताकि बड़ी बहू के काम में कुछ आसानी हो जाए. काफी लड़कियां अयाज को दिखाई गईं. लेकिन उसे एक भी पसंद नहीं आई.

2 महीने बाद एक दोस्त ने फिर एक लड़की दिखाई. वह गांव में बेहद गरीब परिवार से थी. अयाज को वह पसंद आ गई. अयाज ने लड़की को एक मोबाइल दिला दिया. दोनों घंटों बातें करते. रिश्ता पक्का हुआ ही था कि कोरोना के चलते लौकडाउन लग गया. अयाज जल्दी शादी के लिए उत्सुक था. लौकडाउन में जरा सी ढील मिलते ही अयाज के साथ मां और दोनों भाई गए और दुलहन को निकाह पढ़ा कर ले आए. दुलहन के वालिदैन गरीब थे, इसलिए कुछ भी साथ न दे सके. रस्मों और विदाई का छोटा सा खर्च भी अयाज को ही करना पड़ा.

अयाज के वालिदैन यह सोच कर खुश थे कि अयाज की बीवी रेशमा गरीब घर से होने के कारण यहां खातेपीते घर में खुश रहेगी. वैसे भी घर में है ही कौन? 2 बड़ी बहुएं, वे भी अलगअलग. तीनों बेटियां अपनेअपने घर. इस छोटी बहू से उम्मीद थी कि उस के आने से काम में थोड़ी आसानी हो जाएगी.

अयाज का निकाह होना था कि वह जैसे सब को भूल गया. दूसरे दिन से अयाज के कमरे का दरवाजा अकसर लगा रहने लगा. अयाज आवाज देने पर बाहर आता. भाभी का बनाया हुआ खाना कमरे में ले जाता और दोनों बड़ी बैठ कर खाना खाते.

बात का बतंगड़

15 दिन बीत चुके थे. अयाज ने भाभी से कह दिया कि उन दोनों का खाना न बनाए. वह दोनों के लिए बाहर से खाना ले आता और सीधा  कमरे में चला जाता. वालिदैन बड़ी बहू के भरोसे बैठे रहते, लेकिन अयाज पूछता तक नहीं.

शायद अयाज की बीवी रेशमा को डर था  कि वह सब से छोटी बहू होने के कारण सासससुर की जिम्मेदारी उसी पर न पड़ जाए. वह कमरे के बाहर भी नहीं निकलती. एक बार सास ने जरा सा कह दिया कि ऐसे तौरतरीके नहीं होते. खानदानी बेटियां ससुराल में अपने मांबाप का नाम रोशन करती हैं. यह सुनना था कि रेशमा ने बड़बड़ शुरू कर दी. अयाज के सामने सास की मुंहजोरी करने लगी.

अयाज ने उसे चुप करने की कोशिश की, लेकिन रेशमा को यह बुरा लग रहा था कि अपनी मां को कुछ कहने की जगह अयाज उसे चुप बैठने का बोल रहा है.

सास चुप हो गई थी, लेकिन रेशमा और अयाज में ठन गई. अयाज ने गाली देते हुए रेशमा को चुप होने के लिए कहा. लेकिन रेशमा ने उसी गाली को दोहराते हुए कह दिया, ‘‘होंगे तुम्हारे मांबाप.’’

गाली को प्रत्युत्तर में सुनते ही अयाज ने रेशमा को तमाचा जड़ दिया. थप्पड़ बैठते ही रेशमा गुस्से से लालपीली हो गई. उस ने तपाक से दरवाजा बंद किया और फल काटने के लिए रखा चाकू उठा कर खुद के हाथ की नस काटने की कोशिश करने लगी. अयाज चाकू छीनने लगा.

रेशमा गुस्से में बड़बड़ा रही थी, ‘‘अब एक को भी नहीं छोड़ूंगी. सब जाएंगे जेल.’’ बाहर भाभियां, दोनों भाइयों, सासससुर को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें. अंदर से छीनाझपटी की आवाजें उन्हें परेशान कर रही थीं. छोटे बच्चे रोने लगे. दोनों भाइयों ने दरवाजा तोड़ दिया.

अयाज ने रेशमा के हाथ से चाकू छीन लिया, लेकिन इस छीनाझपटी में हलका सा चाकू उस के हाथ पर लग गया था जिस से खून निकल रहा था. सब ने राहत की सांस ली कि शुक्र है उस के हाथ की नस नहीं कटी. शादी के 20 ही दिन में इस हादसे से पूरा परिवार सहम और डर गया था. ऐसा झगड़ा उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था.

मन में डर

समीर बड़ी मेहनत व मशक्कत से अपने परिवार को संभाल रहा था. दोनों बड़े भाई उसी के पास काम करते थे. वालिदैन, 3 भाई, 2 बड़ी भाभियां, उन के 4 बच्चे और 4 बहनों से परिपूर्ण परिवार में गरीबी थी पर सुकून था. अब तक 3 बहनों की शादी वे कर चुके थे. बड़ी बहन घर की जिम्मेदारी निभा रही थी, इसलिए उसे पहले अपनी छोटी बहनों की शादी करनी पड़ी. समीर हर एक काम बहन से सलाह ले कर करता. दिनबदिन तरक्की करते हुए वह अब ग्रिल वैल्डिंग ऐंड फिटिंग का बड़ा कौंट्रैक्टर बन गया.

रोज रात में सोने से पहले वह आंगन में जा कर किसी से बात करता है यह सब जानते थे. धीरेधीरे पता चला कि समीर किसी काम के सिलसिले में नहीं बल्कि किसी लड़की से बात करता है. समीर समझदार है वह किसी में यों ही नहीं फंसेगा, यह सोच कर किसी ने समीर से कुछ नहीं पूछा.

3 साल बीत गए. समीर के वालिद समीर की शादी के पीछे पड़ गए. समीर ने यह बात लड़की को बता दी. अब उस के फोन घर के नंबर पर भी आने लगे. वह दूर प्रांत से थी. घर के लोग चाहते थे समीर यहीं कि किसी अच्छी लड़की से शादी कर ले. समीर निर्णय नहीं ले पा रहा था. उसे डर था कि उस लड़की को वह करीब से जानता नहीं.

अगर उस की बात मान कर उस से शादी कर ले और बाद में वह इस से खुश न रहे तो? यह एक सवाल था जो समीर के मन को सशंकित किए हुए था और उसे उस लड़की से शादी करने से रोक रहा था. घर के लोग लड़की देख रहे थे और समीर हर किसी में कमी बताते हुए रिजैक्ट करता जा रहा था.

समीर की बड़ी बहन समीर के दिलोदिमाग को जानती थी. वह जानती थी कि किसी अन्य लड़की से शादी कर के समीर खुश नहीं रह पाएगा. 3 साल तक जिस से सुखदुख की हर बात शेयर करता रहा, उसे भुला देना आसान नहीं होगा समीर के लिए. उस ने फरहीन नामक उस लड़की से बात की और उसे साफतौर से कह दिया कि हमारे यहां और तुम्हारे यहां के माहौल में बहुत अंतर है. हमारे यहां लड़की जल्दी घर से बाहर नहीं निकलती. एक खुले माहौल में रहने के बाद बंद वातावरण में रहना तुम्हारे लिए मुश्किल होगा.

मगर फरहीन रोरो कर गिड़गिड़ाती रही, ‘‘बाजी मैं सब एडजस्ट कर लूंगी. किसी को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

तब समीर की बहन ने उस से कह दिया, ‘‘मैं कोशिश करती हूं घर के लोगों को समझने की, लेकिन वादा नहीं करती.’’

2 दिन बाद समीर की बहन ने समीर को समझने की कोशिश की और कहा उसी लड़की से शादी करनी होगी तुझे, जिसे तू ने अब तक आस में रखा. घर के सभी सदस्यों को राजी कर समीर के घर से 4 बड़े लोगों ने जा कर शादी की तारीख तय की.

हां और न की मनोस्थिति में समीर ने शादी कर ली. फरहीन दुलहन बन घर आ गई. लेकिन समीर फिर भी खुश नहीं था. फरहीन ज्यादा खूबसूरत नहीं थी और वह जानता था इस से भी अच्छी लड़की उसे आसानी से मिल सकती थी. किंतु यह भी तय था कि अगर फरहीन किए वादे निभाती है तो वह अपने दिमाग से यह सोच निकाल देगा.

समीर बाहर से आ कर थोड़ी देर बहन के पास बैठता था. यह उस की हमेशा की आदत थी. फरहीन को यह अखरने लगा. घर में किसी से भी जरा सी बात कर लेने पर उस का मुंह फूल जाता. बड़ी भाभी काम करती और वह आराम फरमाती. उसे सब में कमियां दिखाई देतीं और किसी न किसी की बात को पकड़ कर बड़बड़ाती रहती. जरा सी बात का बतंगड़ बना देती और इतनी जोरजोर से बोलती कि घर की खिड़कियां और दरवाजे बंद करने पड़ते.

अपने ही घर में पराए

घर के लोग अपने ही घर में पराए हो गए. उन्हें आपस की बात भी उस से छिप कर करनी पड़ती. इन हालात से तंग आ समीर ने तय कर लिया कि उसे मायके भेज कर फिर वापस नहीं लाना. लेकिन फरहीन के मायके जाने से पहले मालूम हुआ कि वह प्रैगनैंट है. समीर इस गुड न्यूज से खुश नहीं हुआ बल्कि उसे लगा कि वह फंस चुका है. ससुराल के लोगों को समीर से दूर रखने की कोशिश में फरहीन समीर के दिल से दूर होती जा रही थी.

वह नाममात्र के लिए ससुराल में थी दिलदिमाग उस का मायके में ही रहता. वह अपने भाईभाभियों को वालिदैन की ओर ध्यान देने की हिदायत करती. उन की समस्याएं सुनती, उन्हें समझती. अकसर वहां की खुशी और दुख उस के चेहरे से साफ समझे जा सकते थे.

समय के साथ फरहीन मां बन गई. लेकिन उस की आदतें नहीं बदलीं. बच्चे की जिंदगी बरबाद न हो यह सोच कर उसे सहना समीर

की जिंदगी का हिस्सा बन गया. वह ये सब अकेले सह भी लेता, किंतु खुद की बीवी द्वारा अपने घर के लोगों का चैनसुकून बरबाद होते देखना उस की मजबूरी बन चुकी थी. फरहीन

को एक शब्द कहना मतलब बड़े तमाशे के लिए तैयार होना था.

सवाल अहम है

सवाल यह है कि बेटी को क्या यही सीख मायके से मिलती है? ससुराल में आते ही घर की एकता को तोड़ने की कोशिश से क्या वह बहू अपना दर्जा और सम्मान पा सकती है? शौहर पर सिर्फ और सिर्फ मेरा अधिकार है यह समझना यानी शादी कर के क्या वह बहू शौहर को खरीद लेती है? क्या एक बेटी अपनी ससुराल में किए गए गलत व्यवहार से अपने पूरे गांव, गांव की सभी बेटियों को बदनाम नहीं करती?

जो बेटी ससुराल में रहते हुए अपने भाईभाभियों को वालिदैन का खयाल रखने की ताकीद करती है वह खुद अपने कर्मों की ओर ध्यान क्यों नहीं देती? एक बेटी जिस तरह निस्स्वार्थ रुप से परिवार के प्रत्येक सदस्य का सुखदुख समझ लेती है, घर को एकजुट और आनंदित रखने का प्रयास करती है तो क्या बेटी बहू बन ससुराल के घर में बेटी सा वातावरण

नहीं रख सकती? ससुराल में पदार्पण करते ही बेटी स्वार्थी बन अपना कर्तव्य, अपनी सार्थकता क्यों भूल जाती है? क्या बहू बेटी नहीं बन सकती?

सास हमारी शादीशुदा जिंदगी में रोकटोक करती हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 25 वर्षीय विवाहित महिला हूं. मेरी परेशानी का कारण मेरी सास हैं. वे मुझे पति के साथ सैक्स संबंध बनाने से रोकती हैं. उन का कहना है कि मेरे साथ सैक्स संबंध बनाने से उन के बेटे का औफिस में काम में मन नहीं लगेगा. अभी हमारी शादी को अधिक समय नहीं हुआ है और मैं अपने पति के साथ सैक्स संबंध बनाना चाहती हूं लेकिन मेरी सास मुझे पति के साथ सोने से भी रोकती हैं. मैं ने उन्हें समझाने की कोशिश भी की है लेकिन वे कुछ सुनना नहीं चाहतीं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप अपने पति से इस बारे में खुल कर बात करें और आप की सास की कही सारी बातें उन्हें बताएं. साथ ही, सास को साफ शब्दों में समझा दें कि पति के साथ सोना और उन के साथ सैक्स संबंध बनाना आप का वैवाहिक हक है और वे इस के लिए आप को रोक नहीं सकतीं. साथ ही, उन्हें यह भी समझा दें कि उन का यह सोचना कि सैक्स करने से उन के बेटे का नौकरी में मन नहीं लगेगा सर्वथा अतार्किक व बेकार की बात है. उन्हें बताएं कि अगर उन के बेटे को आप से यानी अपनी पत्नी से घर में शारीरिक सुख नहीं मिलेगा तो उन का मन औफिस में इधरउधर भटकेगा और तब उन का मन काम में नहीं लगेगा.

दरअसल, आप की बातों से लगता है कि आप की सास आप के पति को अपने पल्लू से बांधे रखना चाहती हैं. वे नहीं चाहतीं कि आप पतिपत्नी के बीच प्यार का रिश्ता बने. इसलिए वे ऐसी अतार्किक बातें व हरकतें कर रही हैं. आप उन की बातों पर हरगिज ध्यान न दें और पति के साथ शारीरिक संबंध अवश्य बनाएं.

ये भी पढ़ें- मेरी बेटी को स्किजोप्रेनिआ की बीमारी है, क्या इससे जौब या शादी में दिक्कत आ सकती है?

ये भी पढ़ें…

क्या आपको भी सेक्स के दौरान होता है दर्द

सेक्‍स एक ऐसी अनुभूति है, जिसमें आप पूरी तरह से खो जाते हैं. लेकिन जब दोनों को सेक्‍स के आनंद में होना चाहिए, तब कई महिलाएं खुद को अहसनीय दर्द में पाती है. यह समस्‍या केवल लाखों लोगों को प्रभावित ही नहीं करती, बल्कि उम्र के साथ बदतर होती जाती है. वास्‍तव में अमेरिका में सेक्‍स सर्वे के अनुमान के अनुसार, सेक्‍सुअल पेन 20 प्रतिशत अमेरिकी महिलाओं को- 15 प्रतिशत मेनोपॉज से पहले और 33 प्रतिशत उसके बाद प्रभावित करता है.

‘जो डिवाइन’ – सेक्स टॉय कंपनी की फॉर्मर नर्स और सीओ-फाउंडर सामन्था इवांस कहती हैं कि इसके कारण भिन्न हो सकते हैं. दर्द योनि के आस-पास मसल्‍स के टाइट होने या प्रवेश से पहले कामोत्‍तेजना की कमी के कारण होता है. वह कहती है कि बहुत ज्‍यादा कॉपी पीने या बहुत अधिक स्‍ट्रॉबेरी खाने से इसका कारण हो सकता है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि इन खाद्य पदार्थों में ऑक्सलेट्स नामक तत्‍व बहुत अधिक मात्रा में होता है- जो संवदेनशील महिलाओं के यूरीन मार्ग में जलन पैदा करता है.

सेक्स दर्दनाक नहीं होना चाहिए 

सेक्‍स महिला और उसके पार्टनर दोनों के लिए एक सुखद अनुभव होना चाहिए. सेक्‍स के दौरान दर्द को कभी भी अनदेखा नहीं करना चाहिए. अगर आप सेक्‍स के दौरान या बाद में दर्द का अनुभव करते हैं, तो अपने डाक्‍टर से सलाह लेनी चाहिए.

अक्सर आपका डॉक्टर समस्या का निदान कर आसानी से उसका समाधान कर देता है. हालांकि कई महिलाएं शादी और रिश्‍ते के टूटने के बाद सेक्‍स करने से बचती है. लेकिन अगर समस्‍या सच में दर्द को लेकर है तो अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें और एक दूसरे को समझते हुए सेक्‍स की प्रक्रिया में बदलाव करें. सेक्‍स के दौरान दर्द के कई कारण हो सकते हैं कुछ का इलाज आसानी से हो जाता है तो कुछ का समाधान करने में काफी समय लग जाता है.

आहार से परेशानी

आहार में ऑक्सलेट्स का उच्‍च स्‍तर के कारण संवदेनशील यूरीन मार्ग में जलन पैदा हो जाती है- पाइप से यूरीन शरीर से उत्‍सर्जित किया जाता है. जब बहुत ज्‍यादा ऑक्‍सलेट्स आंत के माध्‍यम से खून में अवशोषित होता है, वह कैल्शियम के साथ मिलकर तेज कैल्शियम-ऑक्‍सलेट्स बनाता है. यह शरीर में कहीं भी नाजुक ऊतकों के साथ जुड़कर, दर्द और नुकसान का कारण बनता है. जिन महिलाओं को इर्रिटेबल बॉउल सिंड्रोम (आईबीएस) की समस्‍या होती है वह आंतों की खराबी के कारण बहुत ज्यादा ऑक्‍सलेट्स को अवशोषित कर लेती है. 3-6 महीनों तक कम ऑक्‍सलेट्स आहार लेकर इसके लक्षणों में सुधार किया जा सकता है. उच्‍च ऑक्‍सलेट्स आहार में अजवाइन, कॉफी, सेम, बीयर, लीक, पालक, मीठा आलू और स्ट्रॉबेरी शामिल हैं.

ये भी पढ़ें- Top 10 Personal Problem Tips in Hindi: टॉप 10 पर्सनल प्रौब्लम टिप्स हिंदी में

लुब्रिकेशन की कमी

यह सेक्‍स के दौरान दर्द का प्रमुख कारण है. कामोत्‍तेजना में कमी का मतलब योनि में लुब्रिकेशन की कमी है, लेकिन कई महिलाएं में (जिनमें युवा महिलाएं भी शामिल है) पर्याप्‍त मात्रा में लुब्रिकेशन नहीं होता है. योनि में ड्राईनेस को हमेशा से महिलाओं के मेनोपॉज से जोड़ा जाता है, लेकिन युवा महिलाएं भी गर्भनिरोधक गोली, मासिक हार्मोनल परिवर्तन, तनाव और चिंता के कारण इससे प्रभावित होती है और उनका सेक्‍स करने को मन नहीं करता. सेक्‍स से पहले फोर प्‍ले में ज्‍यादा जयादा समय लगाने से महिला के यौन सुख में सुधार किया जा सकता है. हालांकि मेनोपॉज महिलाओं योनि में ड्राईनेस सामान्‍य स्‍थिति है लेकिन लुब्रिकेशन के उपाय वास्‍तव में आपकी मदद कर सकता है.

कामोत्तेजना की कमी

ज्‍यादातर महिलाएं को सेक्‍स करने से पहले वॉर्म होने की जरूरत होती है लेकिन कई पुरुष साथी के तैयार होने से पहले ही सेक्‍स के लिए जल्‍दबाजी करते हैं. सेक्‍स से पहले फोरप्‍ले आपके यौन सुख को बढ़ा सकता है. कई बार सेक्‍स करना संभव नहीं होता लेकिन आप इंटरकोर्स के बिना फोरप्‍ले से सेक्‍स का मजा ले सकते हैं.

एलर्जी की स्थिति

कई महिलाओं को नए प्रोडक्‍ट इस्‍तेमाल करने पर यानी नया शैम्पू या शॉवर जेल का प्रयोग करने से लेकर वाशिंग पाउडर तक सब खुजली या जलन का अनुभव होता है. यहां तक कि कुछ तरह के योनि लुब्रिकेशन भी एलर्जी का कारण बनते हैं, इसलिए अपने जननांगों की नाजुक त्‍वचा में कुछ भी इस्‍तेमाल करने से पहले सावधान रहें. साथ ही कुछ लाटेकस प्रोडक्ट जैसे कंडोम और सेक्‍स खिलौने और कुछ शुक्राणुनाशक क्रीम एलर्जी की प्रतिक्रिया कर सकते हैं.

तर्क

अगर एक महिला अपने रिश्‍ते में भावनात्‍मक दर्द का सामना करती है तो सेक्‍स के दौरान दर्द हो सकता है. क्‍योंकि ऐसे में वह अपने पार्टनर को दुश्‍मन की तरह अनुभव करती है. अगर आपको सेक्‍स के दौरान या बाद दर्द का अनुभव करते हैं तो चिकित्‍सक से सलाह लें. ऐसे में ‘परामर्शदाता या सेक्स चिकित्सक परामर्श से आपको मदद मिल सकती है. चुप्‍पी में पीड़ि‍त होने की जरूरत नहीं है.

ये भी पढ़ें- मेरा बेटे को शराब और सिगरेट की लत लग गई है, मैं क्या करूं?

सास नहीं मां बनें

आज सुहानी जब औफिस में आई तो उखड़ीउखड़ी सी दिख रही थी. 2 वर्ष पूर्व ही उस का विवाह उसी की जाति के लड़के विवेक से हुआ था. विवाह क्या हुआ, मानो उस के पैरों में रीतिरिवाजों की बेडि़यां डाल दी गईं. यह पूजा है, इस विधि से करो. आज वह त्योहार है, मायके की नहीं, ससुराल की रस्म निभाओ. ऐसी ही बातें कर उसे रोज कुछ न कुछ अजीबोगरीब करने पर मजबूर किया जाता.

समस्या यह थी कि पढ़ीलिखी और कमाऊ बहू घर में ला कर उसे गांवों के पुराने रीतिरिवाजों में ढालने की कोशिश की जा रही थी. पहनावे से आधुनिक दिखने वाली सास असलियत में इतने पुराने विचारों की होगी, कोई सोच भी नहीं सकता था.

बेचारी सुहानी लाख कोशिश करती कि उस का अपनी सास से विवाद न हो, फिर भी किसी न किसी बहाने दोनों में खटपट हो ही जाती. सास तो ठहरी सास, कैसे बरदाश्त कर ले कि बहू पलट कर जवाब दे व उसे सहीगलत का ज्ञान कराए.

सो, बहू के बारे में वह अपने सभी रिश्तेदारों से बुराइयां करने लगी. यह सब सुहानी को बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. और तो और, उस के पति को भी उस की सास ने रोधो कर और सुहानी की कमियां गिना कर अपनी मुट्ठी में कर रखा था. नतीजतन, पति से भी सुहानी का रोजरोज झगड़ा होने लगा था.

हमारे आसपास में ही न जाने ऐसे कितने उदाहरण होंगे जिन में सासें अपनी बहुओं को बदनाम करती हैं और सभी रिश्तेदारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में सारी जिंदगी बहुओं की बुराई करने में बिता देती हैं.

एटीएम न मिलने का दुख

12 और 8 वर्षीय बेटियों की मां योगिता कहती हैं, ‘‘शादी होते ही जब मैं ससुराल गई तो मेरी सास ने तय कर रखा था कि पढ़ीलिखी बहू है, नौकरी तो करेगी ही और उस की तनख्वाह पर उन्हीं का ही हक होगा. लेकिन मेरे पति ने मुझे लेटेस्ट कंप्यूटर कोर्स करना शुरू करवा दिया. उन का कहना था कि अभी विवाह के कारण तुम अपनी पुरानी नौकरी छोड़ कर आई हो, नया कोर्स कर लोगी तो आगे भी नौकरी में फायदा रहेगा. मैं ने उन की बात मान कर कोर्स करना शुरू कर दिया.

पूरे दिन मेरी सास घर के बाहर ही रहतीं, उन्हें घूमनेफिरने का बहुत शौक है. मैं सुबह नाश्ते से ले कर रात का डिनर तक सब संभालती. उस के अलावा कंप्यूटर क्लास भी जाती और उस की पढ़ाई

भी करती. घर में साफसफाई के लिए कामवाली आती थी. सास मुझे ताने दे कर कहती कि क्या जरूरत है कामवाली की, तुम नौकरी तो कर नहीं रही हो. कभी कहतीं जब नौकरी करो तो ही सलवार सूट पहनो. अभी रोज साड़ी पहना करो.

ये भी पढ़ें- सुनिए भी और सुनाइए भी…..

हमारी आर्थिक स्थिति उच्चमध्यवर्गीय थी. सो, मुझे समझ नहीं आया कि कामवाली और पहनावे का नौकरी से क्या ताल्लुक. लेकिन मैं ने कामवाली को नहीं हटाया. सास रोज किसी न किसी तरह मेरे काम में कमी निकाल कर उलटेसीधे ताने मारतीं. मुझे तो समझ ही न आया कि वे ये सब क्यों करती हैं.

मेरे पति से वे आएदिन अपनी विवाहित बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे मांगती रहतीं. मेरे पति धीरेधीरे सब समझने लगे थे कि मम्मी की पैसों की डिमांड बढ़ती जा रही है. यदि हम अपने घर में कुछ नया सामान लाते तो वे झगड़ा करतीं और देवर के विवाह की जिम्मेदारी हमें बतातीं.

ऐसा चलते एक वर्ष बीत गया और तो और, मुझ से कहतीं, ‘अभी बच्चा पैदा मत करना.’ जबकि मेरी उम्र 29 वर्ष हो गई थी. मुझे समझ ही न आता कि यह कैसी सास है जो अपनी बहू को बच्चा पैदा करने पर रोक लगाती है.

मुझे हर बात पर टोकतीं और पति के साथ मुझे समय भी न बिताने देतीं. जैसे ही पति दफ्तर से घर आते, वे हमारे कमरे में आ कर बैठ जातीं.

एक दिन जब उन्होंने मुझे किसी बात पर टोका तो मैं ने भी पलट कर जवाब दिया. तो वे गुस्से में आगबबूला हो गईं और बोलीं, ‘‘नौकरी भी नहीं की तू ने, न जाने पढ़ीलिखी भी है कि नहीं, यदि करती तो तनख्वाह मुझे थोड़ी दे देती तू.’’

इतना सुन कर मुझे हकीकत समझते देर न लगी और मैं ने भी पलट कर कहा, ‘‘यही प्रौब्लम है न आप को, कि तनख्वाह नहीं आ रही. इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी उठाने पर भी आप मुझे चैन से नहीं रहने देतीं. घर की कामवाली बना रखा है. माफ कीजिए आप को बहू नहीं, एटीएम मशीन चाहिए थी. वह न मिली तो आप मुझे चौबीसों घंटों की नौकरानी की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. बेटा पूरी कमाई आप के हाथ में देदे और बहू चौबीसों घंटे आप की चाकरी करे.’’

बस, उसी दिन के बाद से उन्होंने मेरे देवरननद को मेरे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया. रिश्तेदारों से जा कर कहने लगीं, बहू को आजादी चाहिए, इसलिए बच्चा भी पैदा नहीं करती. मेरे ससुर को भी झूठी पट्टी पढ़ा कर मेरे खिलाफ कर दिया. कल तक जो ससुर मेरे पढ़ीलिखी होने के साथ घरेलू गुणों की तारीफ करते न थकते थे, अब मुझे बांझ पुकारने लगे थे.

रोजरोज के झगड़ों से परेशान हो कर मेरे पति ने अलग घर ले लिया और किसी तरह उन से पीछा छुड़ाया. अब हम उन्हें हर महीने पैसे दे देते हैं, वे चाहे जैसे रहें. उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए, वे न तो मेरी बेटियों से मिलना चाहती हैं और न ही मैं उन की सूरत देखना चाहती हूं. बस, मेरे पति कभीकभी उन से मां होने के नाते, मिल लेते हैं.

संयुक्त परिवार नहीं चाहिए

25 वर्षीया रीता कहती है, ‘‘मेरे विवाह के समय मेरे पति विदेश में रहते थे. सो मैं भी विवाह होते ही उन के साथ चली गई. 2 वर्षों बाद जब हम अपने देश लौट आए और सास के साथ रहे, तब 2 महीने भी मेरी सास ने मुझे चैन से न रहने दिया. सारे दिन अपनी तारीफ करतीं और मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करतीं. सब से पहले उन्होंने कहा कि मैं जींस और वैस्टर्न कपड़े न पहनूं क्योंकि आसपास में कई रिश्तेदार रहते हैं. मैं ने उन की वह  बात मान ली. लेकिन हर बात में बेवजह टोकाटाकी देख कर ऐसा लगता जैसे उन्हें हमारा साथ में रहना नहीं भाया.

‘‘जब तक बेटा विदेश में काम कर उन्हें पैसे देता था, सब ठीक था. लेकिन जैसे ही हम यहां आए, न जाने कौन सा तूफान आ गया. वे बारबार मेरे ससुर की आड़ में मुझे ताने देतीं. मेरे ससुर सीधेसादे रिटायर्ड बुजुर्ग हैं. उन से भी वे खूब झगड़ा करतीं. मैं फिर भी चुप रहती क्योंकि मैं जानती थी कि वे ससुर से भी बेवजह झगड़ा कर रही हैं, यदि मैं बीच में कुछ बोलूंगी तो वे मुझ से झगड़ना शुरू कर देंगी.

‘‘लेकिन हद तो तब हो गई जब मैं ने एक दिन खाना बना कर परोसा और वे मेरे हाथ के बने खाने में कमी निकाल कर मुझे नीची जाति का कहने लगीं. जबकि मैं और मेरे पति एक ही ब्राह्मण जाति के हैं. तो मैं ने भी पलट कर कह दिया, ‘आप ही मुझे लेने बरात ले कर आए थे तो मैं यहां आई हूं, तब मेरी जाति नजर नहीं आई आप को?’

‘‘बस, अगली ही सुबह जैसे ही मेरे पति औफिस गए, वे कहने लगीं, ‘‘मैं ने चावल में रखी कीटनाशक गोली खा ली है.’’ पहले तो मैं समझी नहीं, लेकिन मेरे ससुर भी मुझे कोसने लगे और कहने लगे कि डाक्टर को बुलाओ. तो मैं ने अपनी पति को फोन किया. वे बोले कि मम्मी को अस्पताल ले कर जाओ. मैं उन्हें अस्पताल ले कर गई और वहां भरती करवाया.

‘‘इस बीच, मैं ने अपनी जेठानी को भी फोन कर बुला लिया था, जो उसी शहर में ही अलग रहती थीं. क्योंकि मैं जान गई थी कि वे मेरे से ज्यादा अनुभवी हैं और मैं ने यह भी सुन रखा था कि सास के बुरे व्यवहार के कारण ही वे अलग रहने लगी थीं.

‘‘मेरी जेठानी ने वहां आ कर मुझे बताया कि यह पुलिस केस बनेगा तो मैं बहुत घबरा गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले. तब तक मेरे पति दफ्तर से छुट्टी ले कर अस्पताल पहुंच गए, उस से पहले अस्पताल वालों ने पुलिस को खबर कर दी थी कि आत्महत्या की कोशिश का केस आया है. मेरी जेठानी ने पुलिस से बात कर मामला सुलझा दिया.

‘‘नजदीकी रिश्तेदार यह खबर सुनते ही अस्पताल में जमा हो गए. मेरे ससुर ने सभी से कहा कि सासबहू का रात को झगड़ा हुआ. सब ने सोचा कि नई बहू बहुत खराब है और मेरे पति ने भी मुझे डांटा कि मम्मी से रात को उलझने की क्या जरूरत थी. सब से बुरी बात तो यह हुई कि जब अस्पताल में टैस्ट हुए और रिपोर्ट आई तो मालूम हुआ कि उन्होंने कोई कीटनाशक गोली नहीं खाई थी. यह सब मुझे बदनाम करने के लिए किया गया एक ड्रामा था ताकि मैं आगे से उन के सामने पलट कर जवाब देने की हिम्मत ही न करूं.

‘‘आज मैं, अपने पति के साथ विदेश में ही रहती हूं. लेकिन जब भी भारत आती हूं, अपनी सास से नहीं मिलना चाहती.’’

ये भी पढ़ें- शादी के बाद तुरंत उठाएं ये 5 स्‍टेप

रीता ने जब मुझे यह सब बताया तो वह आंसुओं में डूबी हुई थी और अपनी जेठानी का बहुत धन्यवाद कर रही थी. लेकिन अपनी सास के लिए उस के मन में नफरत के सिवा कुछ भी नहीं था.

सारी सासें एक सी

योगिता और रीता के किस्सों से मुझे अपनी एक चाइनीज सहेली की याद आई. उस चाइनीज सहेली का नाम है ब्रेंडा. वह शंघाई की रहने वाली थी और मलयेशिया में नौकरी करने गईर् थी. वहीं उसे एक रशियन लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने विवाह भी कर लिया. विवाह को 6 वर्ष बीते और उस के पति का तबादला भारत में हो गया. उस का पति होटल इंडस्ट्री में कार्यरत था.

मेरी ब्रेंडा से मुलाकात हुई और हम सहेलियां बन गईं. हम दोनों अंगरेजी में ही बात किया करते थे.

3 वर्ष हम साथ रहे और उस ने मुझे अपनी सास से होने वाले झगड़ों के बारे में बताया. मैं आश्चर्यचकित थी कि क्या विदेशी सासें, जो देखने में बहुत मौडर्न लगती हैं, भी बुरा व्यवहार करती हैं? तो उस ने कहा, ‘‘यस, देयर आर सम ड्रैगन लेडीज हू कीप डूइंग समथिंग दिस ओर दैट टू स्पौयल अवर इमेज ऐंड शो देयर सैल्फ गुड’’ यानी कि कुछ महिलाएं ड्रैगन के समान बुरी होती हैं, जो अपनेआप को भली दिखाने के लिए हमारा नाम खराब करती रहती हैं. वह मुझे शंघाई और मलयेशिया की सासों के और भी बहुत किस्से सुनाया करती.

जब वह भारत में भी थी, उन 3 वर्षों में एक बार उस की रशियन सास भारत में उस के घर आईं और 2 महीने तक उस के साथ रहीं. उन दिनों ब्रेंडा रोज ही घर में सास द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के किस्से सुनाया करती. साथ ही, उस ने यह भी बताया कि अपार्टमैंट में जो दूसरे रशियन लोग हैं, जिन से उस के पति की अच्छी दोस्ती भी है, उन से उस की सास ने उस के बारे में बहुत बुराइयां की.

उस के बाद ब्रेंडा कहती थी कि मैं अपनी मदर इन ला को भारत बुलाना ही नहीं चाहती. वे दूर रहें तो अच्छा है.

सुहानी, रीता, योगिता और ब्रेंडा सभी के किस्से सुन कर ऐसा लगता है कि यह यूनिवर्सल ट्रुथ है कि सास खाए बिना रह सकती है, पर बोले बिना नहीं.

कैसे पटेगा एकतरफा सौदा

सासबहू के रिश्ते में मधुरता की उम्मीद के साथ कोईर् भी पिता अपनी बेटी को दूसरी महिला के हाथ में सौंप देता है, जोकि उस की बेटी की मां की उम्र की होती है. इस में वह क्यों उस बहू के साथ बराबरी का कंपीटिशन बना लेती है. या यों कहिए कि देने के सिवा सिर्फ लेने का सौदा तय करना चाहती है. और यदि वह न मिले तो उसे सरेआम बदनाम करती है ताकि वह दुनिया की नजरों में अपनेआप को बेचारी साबित कर सके. क्योंकि वह एक नई लड़की के घर में कदम रखते ही घर में बरसों से चलती आई रामायण को महाभारत में बदल देती है, और सिर्फ स्वयं ही नहीं, घर के अन्य सदस्यों समेत उस पर चढ़ाई करने लगती  है?

ये भी पढ़ें- तो कहलाएंगी Wife नं. 1

इसी बात पर एक बार ब्रेंडा ने कहा था, ‘‘एक्चुअली, शी यूज टू बी द क्वीन औफ द हाउस, नाऊ शी कैन नौट टोलरेट एनीबडी एल्स इन द हाउस.’’ यानी कल तक सास ही घर की रानी होती थी, सारा राजपाट उसी का था, अब वह किसी और को घर में राज करते कैसे बरदाश्त करे.’’ शायद ब्रेंडा ने सही ही कहा था, लेकिन क्या इस रिश्ते में खींचातानी की जगह प्यार व मिठास नहीं भरी जा सकती?

यदि गहराई से सोचा जाए तो इस मिठास के लिए सास को राजदरबार की रानी की तरह नहीं, एक मालिन की तरह का व्यवहार करना चाहिए. जिस तरह से मालिन नर्सरी से लाए नए पौधे उगा कर, उन्हें सींच कर हरेभरे पेड़ में बदल देती है, उसी तरह से अगर सास भी पराएघर से आई बेटी को अपने घर की मिट्टी में जड़ें फैलाने के लिए खादपानी व धूप का पूरा इंतजाम कर दे तो बहूरूपी वह पौधा हराभरा हो सकेगा और निश्चित रूप से मीठे फल मिलेंगे ही.

क्या जरूरी है रिश्ते का नाम बदलना

गुरुग्राम की रहने वाली रंजना के बेटे की शादी का अवसर था. विदाई के समय दुलहन की मां अपनी बेटी से गले मिलते हुए बोलीं, ‘‘अब एक मम्मी से नाता तोड़ कर दूसरी मम्मी को अपना बनाने जा रही हो. आज से तुम्हारी मम्मी रंजनाजी हैं. अब इन की बेटी हो तुम.’’

रंजना ने तुरंत उन की बात काटते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं आप से एक मां का अधिकार नहीं छीनना चाहती. मम्मी तो आप ही रहेंगी इस की. मैं अभी तक अपनी बेटी का प्यार तो पा ही रही थी, अब मुझे बहू का प्यार चाहिए. मैं मां के साथसाथ खुद को अब ‘सासूमां’ कहलवाना भी पसंद करूंगी. सासबहू के सुंदर रिश्ते को महसूस करने का समय आया है. मैं भला क्यों वचिंत रहूं इस सुख से?’’

प्रश्न है कि आखिर आवश्यकता ही क्यों पड़ती है रिश्तों के नाम बदलने की या किसी अन्य रिश्ते से तुलना करने की? सास शब्द इतना भयंकर सा क्यों हो गया कि बोलते ही मस्तिष्क में ममतामयी स्त्री के स्थान पर एक कू्रर, डांटतीफटकारती अधेड़ महिला की तसवीर उभरने लगती है. बहू शब्द क्यों इतना पराया लगने लगा कि अपनत्व की भावना से सजाने के लिए उस पर बेटी शब्द का आवरण डालना पड़ता है. कारण स्पष्ट है कि कुछ रिश्तों ने अपने नामों के अर्थ ही खो दिए हैं.

अहम और स्वार्थ के दलदल में फंस कर एकदूसरे के प्रति व्यवहार इतना रूखा हो गया है कि रिश्तों का केवल एक पक्ष ही उजागर हो रहा है. उन रिश्तों का सुखद पहलू दर्शाने के लिए किसी अन्य रिश्ते के नाम का सहारा लेना पड़ रहा है. मगर केवल नाम बदल देने से कोई भी रिश्ता उजला नहीं हो सकता. इस के लिए आवश्यक है कि व्यवहार व सोच में बदलाव लाया जाए.

क्यों बदनाम है सासबहू का संबंध

सास और बहू का रिश्ता आपसी अनबन के लिए बदनाम है. इसे सुंदर रूप देने के लिए यह समझना होगा कि इस में अब समय के साथ बदलाव लाया जाए. वर्तमान परिवेश में अधिकतर बहुएं कामकाजी हैं तथा सास भी पहले की तरह घर में बंद रहने वाली नहीं रहीं. अब इस रिश्ते में मांबेटी जैसे स्नेह के अतिरिक्त आपसी सामंजस्य व मित्रता की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है. यदि दोनों पक्ष कुछ बातों को ध्यान में रख एकदूसरे से अच्छा व्यवहार करें तो इस रिश्ते का नाम बदलने की आवश्यकता ही नहीं होगी.

ये भी पढ़ें- Arranged Marriage में दिलदार बनें : रिश्ता तय करने से पहले ध्यान रखें ये बातें

सास शब्द से परहेज क्यों

‘सास’ शब्द सब का चहेता बन जाए और सासबहू का रिश्ता प्रेम की भावना से पगा एक मोहक रिश्ता कहलाए, इस के लिए सास को निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए:

– बहू पर अपना भरपूर स्नेह उड़ेल देने के साथ ही उस में एक मित्र की छवि देखने का प्रयास करना होगा.

– एक स्त्री होने के नाते बहू की भावनाओं को बखूबी समझना होगा.

– दकियानूसी सोच से ऊपर उठ कर व्यर्थ के व्रत और रीतिरिवाजों का बोझ उस पर लादने से बचना होगा.

– वर्तमान में कपड़ों का वर्गीकरण विवाहित अथवा अविवाहित को ले कर नहीं होता. अत: ड्रैस को ले कर उस पर ऐसा कोई नियम लागू करने से बचना होगा.

– घर में रह रही बहू को मशीन न समझ कर संवेदनाओं से परिपूर्ण व्यक्ति समझना होगा.

– यह सच है कि प्रत्येक व्यक्ति के अपने अलगअलग विचार होते हैं. किसी विषय पर मतभेद हों तो सास नाहक ही तंज कसने के स्थान पर प्रेम की भाषा में अपनी बात कह दे तथा बहू के विचार सुन कर समझने का प्रयास करे तो टकराव के लिए कोई स्थान ही नहीं होगी.

– बहू से किसी बात पर भी दुरावछिपाव न करते हुए उसे परिवार का अंग समझ सब कुछ साझा किया जाए.

– बहू के साथ कभीकभी आउटिंग करना रिश्ते में स्नेह बढ़ाने का काम करेगा.

बहू शब्द अप्रिय क्यों

बहू बन जाने पर लड़की की दुनिया बदल जाती है. उसे कर्त्तव्यों की एक लंबी सी लिस्ट थमा दी जाती है. नए वातावरण में स्वयं को स्थापित करने की चुनौती स्वीकार करते हुए उसे रिश्तों में अपनेपन के नए रंग भरने होते हैं. बहू शब्द अप्रिय न रहे, इस के लिए उसे भी कुछ बातें ध्यान में रखनी होंगी:

– मन में ससुराल के प्रति अपनेपन की भावना के साथ प्रवेश करे.

– वहां के माहौल से जल्द ही परिचित होने का प्रयास करे. यदि हर बात में वह ससुराल की तुलना मायके से करेगी तो उस के हाथ निराशा ही लगेगी.

ये भी पढ़ें- संबंध को टेकेन फार ग्रांटेड लेंगी तो पछताना ही पड़ेगा

– आज के समय पढ़ीलिखी लड़कियां परिस्थितियों को समझते हुए अपने जीवन से जुड़े फैसले स्वयं लेना चाहती हैं. एक बहू होने के नाते उन्हें चाहिए कि यदि किसी विषय में निर्णय लेते समय सासबहू की टकराहट हो तो कुछ अपनी मनवा कर कुछ उन की मान कर सामंजस्य बैठाएं.

– वह इस सत्य को न भूले कि उस के पति का परिवार के अन्य व्यक्तियों से भी नाता है और उन के प्रति उत्तरदायित्व भी है. अत: ‘मेरा पति सिर्फ मेरा है’ की सोच त्याग ईर्ष्या से दूर रहना होगा.

– सोशल मीडिया के इस युग में मोबाइल या व्हाट्सऐप के माध्यम से बहू अपने संबंधियों व मित्रों से जुड़ी रहती है. उसे चाहिए कि ससुराल की हर बात सब को न बताए. छोटीमोटी समस्याओं को तूल न देते हुए जल्द ही सुलझाने का प्रयास करे.

अपने तरीके से जीने दें बेटे की पत्नी को

भारत के विक्रांत सिंह चंदेल ने रूस की ओल्गा एफिमेनाकोवा से शादी की. शादी के बाद वे गोवा में रहने लगे. कारोबार में नुकसान होने के बाद ओल्गा पति के साथ उस के घर आगरा रहने आ गई. लेकिन विक्रांत की मां ने ओल्गा को घर में आने देने से साफ मना कर दिया. कारण एक तो यह शादी उस की मरजी के खिलाफ हुई थी, दूसरा सास को विदेशी बहू का रहनसहन पसंद नहीं था.

सुलह का कोई रास्ता न निकलता देख ओल्गा को अपने पति के साथ घर के बाहर भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा. ओल्गा का कहना था कि उस की सास दहेज न लाने और उस के विदेशी होने के कारण उसे सदा ताने देती रही है.

जब मामला तूल पकड़ने लगा तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को हस्तक्षेप करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री से विदेशी बहू की मदद करने के लिए कहना पड़ा. उस के बाद सास और ननद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए. तब जा कर सास ने बहू को घर में रहने की इजाजत दी और कहा कि अब वह उसे कभी तंग नहीं करेगी.

नहीं देती प्राइवेसी

सास-बहू के रिश्ते को ले कर न जाने कितने ही किस्से हमें देखने और सुनने को मिलते हैं. सास को बहू एक खतरे या प्रतिद्वंद्वी के रूप में ही ज्यादा देखती है. इस की सब से बड़ी वजह है सास का अपने बेटे को ले कर पजैसिव होना और बहू को अपनी मनमरजी से जीने न देना. सास का हस्तक्षेप ऐसा मुद्दा है जिस का सामना बेटाबहू दोनों ही नहीं कर पाते हैं. वे नहीं समझ पाते कि पजैसिव मां को अपनी प्राइवेसी में दखल देने से कैसे रोकें कि संबंधों में कटुता किसी ओर से भी न आए.

ये भी पढ़ें- बच्चों की मस्ती पर न लगाएं ब्रैक

अधिकांश बहुओं की यही शिकायत होती है कि सास प्राइवेसी और बहू को आजादी देने की बात को समझती ही नहीं हैं. उन्हें अगर इस बात को समझाना चाहो तो वे फौरन कह देती हैं कि तुम जबान चला रही हो या हमारी सास ने भी हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार किया था, पर हम ने उन्हें कभी पलट कर जवाब नहीं दिया.

आन्या की जब शादी हुई तो उसे इस बात की खुशी थी कि उस के पति की नौकरी दूसरे शहर में है और इसलिए उसे अपनी सास के साथ नहीं रहना पड़ेगा. वह नहीं चाहती थी कि नईनई शादी में किसी तरह का व्यवधान पड़े. वह बहुत सारे ऐसे किस्से सुन चुकी थी और देख भी चुकी थी जहां सास की वजह से बेटेबहू के रिश्तों में दरार आ गई थी.

शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए वक्त चाहिए होता है और उस समय अगर सास की दखलंदाजी बनी रहे तो मतभेदों का सिलसिला न सिर्फ नवयुगल के बीच शुरू हो जाता है बल्कि सासबहू में भी तनातनी होने लगती है.

आन्या अपने तरीके से रोहन के साथ गृहस्थी बसाना, उसे सजानासंवारना चाहती थी. उस की सास बेशक दूसरे शहर में रहती थी पर वह हर 2 महीने बाद एक महीने के लिए उन के पास रहने चली आती थी क्योंकि उसे हमेशा यह डर लगा रहता था कि उस की नौकरीपेशा बहू उस के बेटे का खयाल रख भी पा रही होगी या नहीं.

आन्या व्यंग्य कसते हुए कहती है कि आखिर अपने नाजों से पाले बेटे की चिंता मां न करे तो कौन करेगा. लेकिन समस्या तो यह है मेरी सास को हददरजे तक हस्तक्षेप करने की आदत है, वे सुबह जल्दी जाग जातीं और किचन में घुसी रहतीं. कभी कोई काम तो कभी कोई काम करती ही रहतीं.

मुझे अपने और रोहन के लिए नाश्ता व लंच पैक करना होता था पर मैं कर ही नहीं पाती थी क्योंकि पूरे किचन में वे एक तरह से अपना नियंत्रण  रखती थीं. यही नहीं, वे लगातार मुझे निर्देश देती रहतीं कि मुझे क्या बनाना चाहिए, कैसे बनाना चाहिए और उन के बेटे को क्या पसंद है व क्या नापसंद है.

सुबहसुबह उन का लगातार टोकना मुझे इतना परेशान कर देता कि मेरा सारा दिन बरबाद हो जाता. यहां तक कि गुस्से में मैं रोहन से भी नाराज हो जाती और बात करना बंद कर देती. मुझे लगता कि रोहन अपनी मां को ऐसा करने से रोकते क्यों नहीं हैं?

सब से ज्यादा उलझन मुझे इस बात से होती थी कि जब भी मौका मिलता वे यह सवाल करने लगतीं कि हम उन्हें उन के पोते का मुंह कब दिखाएंगे? हमें जल्दी ही अपना परिवार शुरू कर लेना चाहिए. जो भी उन से मिलता, यही कहतीं, ‘मेरी बहू को समझाओ कि मुझे जल्दी से पोते का मुंह दिखा दे.’ रोहन को भी वे अकसर सलाह देती रहतीं. प्राइवेसी नाम की कोई चीज ही नहीं बची थी.

रोहन का कहना था कि  हर रोज आन्या को मेरी मां से कोई न कोई शिकायत रहती थी. तब मुझे लगता कि मां हमारे पास न आएं तो ज्यादा बेहतर होगा. मैं उस की परेशानी समझ रहा था पर मां को क्या कहता. वे तो तूफान ही खड़ा कर देतीं कि बेटा, शादी के बाद बदल गया और अब बहू की ही बात सुनता है.

मैं खुद उन दोनों के बीच पिस रहा था और हार कर मैं ने अपना ट्रांसफर बहुत दूर नए शहर में करा लिया ताकि मां जल्दीजल्दी न आ सकें. मुझे बुरा लगा था अपनी सोच पर, पर आन्या के साथ वक्त गुजारने और उसे एक आरामदायक जिंदगी देने के लिए ऐसा करना आवश्यक था.

ये भी पढ़ें- रिश्तों की अजीब उलझनें

परिपक्व हैं आज की बहुएं

मनोवैज्ञानिक विजयालक्ष्मी राय मानती हैं कि ज्यादातर विवाह इसलिए बिखर जाते हैं क्योंकि पति अपनी मां को समझा नहीं पाता कि उस की बहू को नए घर में ऐडजस्ट होने के लिए समय चाहिए और वह उन के अनुसार नहीं बल्कि अपने तरीके से जीना चाहती है ताकि उसे लगे कि वह भी खुल कर नए परिवेश में सांस ले रही है, उस के निर्णय भी मान्य हैं तभी तो उस की बात को सुना व सराहा जाता है.

बहू के आते ही अगर सास उस पर अपने विचार थोपने लगे या रोकटोक करने लगे तो कभी भी वह अपनेपन की महक से सराबोर नहीं हो सकती.

बेटेबहू की जिंदगी की डोर अगर सास के हाथ में रहती है तो वे कभी भी खुश नहीं रह पाते हैं. सास को समझना चाहिए कि बहू एक परिपक्व इंसान है, शिक्षित है, नौकरी भी करती है और वह जानती है कि अपनी गृहस्थी कैसे संभालनी है. वह अगर उसे गाइड करे तो अलग बात है पर यह उम्मीद रखे कि बहू उस के हिसाब से जागेसोए या खाना बनाए या फिर हर उस नियम का पालन करे जो उस ने तय कर रखे हैं तो तकरार स्वाभाविक ही है.

आज की बहू कोई 14 साल की बच्ची नहीं होती, वह हर तरह से परिपक्व और बड़ी उम्र की होती है. कैरियर को ले कर सजग आज की लड़की जानती है कि उसे शादी के बाद अपने जीवन को कैसे चलाना है.

फैमिली ब्रेकर बहू

आर्थिक तौर पर संपन्न होने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए एक टारगेट सैट करने वाली बहू पर अगर सास हावी होना चाहेगी तो या तो उन के बीच दरार आ जाएगी या फिर पतिपत्नी के बीच भी स्वस्थ वैवाहिक संबंध नहीं बन पाएंगे.

एक टीवी धारावाहिक में यही दिखाया जा रहा है कि मां अपने बेटे को ले कर इतनी पजैसिव है कि वह उसे उस की पत्नी के साथ बांटना ही नहीं चाहती थी. बेटे का खयाल वह आज तक रखती आई है और बहू के आने के बाद भी रखना चाहती है, जिस की वजह से पतिपत्नी के बीच अकसर गलतफहमी पैदा हो जाती है.

फिर ऐसी स्थिति में जब बहू परिवार से अलग होने का फैसला लेती है तो उसे फैमिली यानी घर तोड़ने वाली ब्रेकर कहा जाता है. सास अकसर यह भूल जाती है कि बहू को भी खुश रहने का अधिकार है.

विडंबना तो यह है कि बेटा इन दोनों के बीच पिसता है. वह जिस का भी पक्ष लेता है, दोषी ही पाया जाता है. मां की न सुने तो वह कहती है कि जिस बेटे को इतने अरमानों से पाला, वह आज की नई लड़की की वजह से बदल गया है और पत्नी कहती है कि जब मुझ से शादी की है तो मुझे भी अधिकार मिलने चाहिए. मेरा भी तो तुम पर हक है. बेटे और पति पर हक की इस लड़ाई में बेटा ही परेशान रहता है और वह अपने मातापिता से अलग ही अपनी दुनिया बसा लेता है.

शादी किसी लड़की के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व नया अध्याय होता है. पति के साथ वह आसानी से सामंजस्य स्थापित कर लेती है, पर सास को बहू में पहले ही दिन से कमियां नजर आने लगती हैं. उसे लगता है कि बेटे को किसी तरह की दिक्कत न हो, इस के लिए बहू को सुघड़ बनाना जरूरी है. और वह इस काम में लग जाती है बिना इस बात को समझे कि वह बेटे की गृहस्थी और उस की खुशियों में ही सेंध लगा रही हैं.

ये भी पढ़ें- जानें क्या हैं Married Life के 9 वचन

इस का एक और पहलू यह है कि बेटे के मन में मां इतना जहर भर देती है कि  उसे यकीन हो जाता है कि उस की पत्नी ही सारी परेशानियों की वजह है और वह नहीं चाहती कि वह अपने परिवार वालों का खयाल रखे या उन के साथ रहे.

जरूरी है कि सास बेटे की पत्नी को खुल कर जीने का मौका दें और उसे खुद

ही निर्णय लेने दें कि वह कैसे अपनी जिंदगी संवारना व अपने पति के साथ जीना चाहती है. सास अगर हिदायतें व रोकटोक करने के बजाय बहू का मार्गदर्शन करती है तो यह रिश्ता तो मधुर होगा ही साथ ही, पतिपत्नी के संबंधों में भी मधुरता बनी रहेगी.

मैं अपनी सासूमां से परेशान हूं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मुझे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां समझती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी समझ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान समझेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

ये भी पढ़ें- 

सिर्फ 7 फेरे ले लेने से पतिपत्नी का रिश्ता नहीं बनता है. रिश्ता बनता है समझदारी से निबाहने के जज्बे से, पतिपत्नी का रिश्ता बनते ही सब से अहम रिश्ता बनता है सासबहू का. या तो सासबहू का रिश्ता बेहद मधुर बनता है या फिर दोनों ही जिद्दी और चिड़चिड़ी होती हैं. ऐसा बहुत कम पाया गया है कि दोनों में से एक ही जिद्दी और चिड़चिड़ी हो. जिद दोनों तरफ से होती है. एक तरफ से जिद हो और कहना मान लिया जाए तो झगड़ा किस बात का? एक तरफ से जिद होती है तो उस की प्रतिक्रियास्वरूप दूसरी ओर से भी और भी ज्यादा जिद का प्रयास होता है. यह संबंधों को बिगाड़ देता है. इस के नुकसान देर से पता चलते हैं. तब यह रोग लाइलाज हो जाता है.

कटुता से प्रभावित रिश्ते

सासबहू के संबंध में कटुता आना अन्य रिश्तों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. मनोवैज्ञानिक स्टीव कूपर का मत है कि संबंध में कटुता एक कुचक्र है. एक बार यह शुरू हो गया तो संबंध निरंतर बिगड़ते चले जाते हैं. बिगड़ते रिश्तों में आप जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं. अन्य रिश्ते जो प्रभावित होते हैं वे हैं छोटे बच्चों के साथ संबंध, देवरदेवरानी, ननदननदोई, जेठजेठानी, पति के भाईभाभी आदि. ये वह रिश्ते हैं जो परिवार में वृद्धि के साथ जन्म लेते हैं. इन रिश्तों को निभाना रस्सी पर नट के बैलेंस बनाने के समान है. हर रिश्ते में अहं अपना काम करता है और अनियंत्रित तथा असंतुलित अहं के कारण घर का माहौल शीघ्रता से बिगड़ता है.

सास-बहू मजबूत बनाएं रिश्तों की डोर

सास और बहू का बेहद नजदीकी रिश्ता होते हुए भी सदियों से विवादित रहा है. तब भी जब महिलाएं अशिक्षित होती थीं खासकर सास की पीढ़ी अधिक शिक्षित नहीं होती थी और आज भी जबकि दोनों पीढि़यां शिक्षित हैं और कहींकहीं तो दोनों ही उच्चशिक्षित भी हैं. फिर क्या कारण बन जाते हैं इस प्यारे रिश्ते के बिगड़ते समीकरण के.

संयुक्त परिवारों में जहां सास और बहू दोनों साथ रह रही हैं वहां अगर सासबहू की अनबन रहती है तो पूरे घर में अशांति का माहौल रहता है. सासबहू के रिश्ते का तनाव बहूबेटे की जिंदगी की खुशियों को भी लील जाता है. कभीकभी तो बेटेबहू का रिश्ता इस तनाव के कारण तलाक के कगार तक पहुंच जाता है.

हालांकि भारत की महिलाओं का एक छोटा हिस्सा तेजी से बदला है और साथ ही बदली है उन की मानसिकता. उस हिस्से की सासें अब नई पीढ़ी की बहुओं के साथ एडजैस्टमैंट बैठाने की कोशिश करने लगी हैं. सास को बहू अब आराम देने वाली नहीं, बल्कि उस का हाथ बंटाने वाली लगने लगी है. यह बदलाव सुखद है. नई पीढ़ी की बहुओं के लिए सासों की बदलती सोच सुखद भविष्य का आगाज है. फिर भी हर वर्ग की पूरी सामाजिक सोच को बदलने में अभी वक्त लगेगा.

बहुत कुछ बदलने की जरूरत

भले ही आज की सास बहू से खाना पकाने व घर के दूसरे कामों की जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद नहीं करती, बहू पर कोई बंधन नहीं लगाती और न ही उस के व्यक्तिगत मसलों में हस्तक्षेप करती है. पर फिर भी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जो अधिकतर घरों में इस प्यारे रिश्ते को बहुत सहज नहीं होने देते. अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है क्योंकि आज भी कहीं सास तो कहीं बहू भारी है.

वे कारण जो शिक्षित होते हुए भी इन  2 रिश्तों के समीकरण बिगाड़ते हैं:

– आज की बहू उच्चशिक्षित होने के साथ आत्मनिर्भर भी है, मायके से मजबूत भी है क्योंकि अधिकतर 1 या 2 ही बच्चे हैं. अधिकतर लड़कियां इकलौती हैं, जिस के कारण वे सास से क्या किसी से भी दब कर नहीं चलतीं.

– आज के समय में लड़की के मातापिता सास व ससुराल से क्या पति से भी बिना कारण समझता करने की पारंपरिक शिक्षा नहीं देते जो सही भी है.

ये भी पढ़ें- जब मायके से न लौटे बीवी

– बहुओं का आज के समय में खाना बनाना न आना एक स्वाभाविक सी बात है और बनाना आना आश्चर्य की.

– गेंद अब सास के पाले से निकल कर बहू के पाले में चली गई.

– बहू नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है, इसलिए बेटा उसे अधिक तवज्जो देता है जो सास को थोड़ा उपेक्षित सा कर देता है.

– सास शिक्षित होते हुए भी और नए जमाने के अनुसार खुद को बदलने का दावा करने के बावजूद बहू के इस बदले हुए आधुनिक, आत्मविश्वासी व बिंदास रूप को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही है.

– पतिपत्नी के बंधे हुए पारंपरिक रिश्ते से उतर कर बहूबेटे के दोस्ताने रिश्ते को कई सासों को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है.

– बहू के बजाय बेटे को घर संभालना पड़े तो सास की पारंपरिक सोच उसे कचोटती है.

ये कुछ ऐसे कारण हैं जो आज की सासबहू दोनों शिक्षित पीढ़ी के बीच अलगाव व तनाव का कारण बन रहे हैं. फलस्वरूप विचारों व भावनाओं की टकराहट दोनों तरफ से होती है.

छोटीछोटी बातें चिनगारी भड़काने का काम करती हैं जिस की परिणति कभीकभी बेटेबहू को कोर्ट की दहलीज तक पहुंचा कर होती है.

यूनिवर्सिटी औफ कैंब्रिज की सीनियर प्रोफैसर राइटर और मनोचिकित्सक डा. टेरी आप्टर ने अपनी किताब ‘व्हाट डू यू वांट फ्रौम मी’ के लिए की गई अपनी रिसर्च में पाया कि 50% मामलों में सासबहू का रिश्ता खराब होता है. 55% बुजुर्ग महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे खुद को बहू के साथ असहज और तनावग्रस्त पाती हैं, जबकि करीब दोतिहाई महिलाओं ने महसूस किया कि उन्हें उन की बहू ने अपने ही  घर में अलगथलग कर दिया.

दुनिया के सभी रिश्तों से कहीं ज्यादा जटिल रिश्ता है सासबहू का. भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में इसे कठिन रिश्ता माना गया है. भारत में यह समस्या ज्यादा इसलिए है क्योंकि यहां परिवार व बड़ेबुजुर्गों को अहमियत दी जाती है.

नई पीढ़ी की बहुओं की सोच:

नई पीढ़ी की लड़कियों की सोच बहुत बदल गई है. वे पारंपरिक बहू की परिधि में खुद को किसी तरह भी फिट नहीं करना चाहतीं. उन की सोच कुछकुछ पाश्चात्य हो चुकी है. उन्हें ढोंग व दिखावा पसंद नहीं है. वे विवाह बाद अपने घर को अपनी तरह से संवारना चाहती हैं. वे अपने जीवन में किसी की भी दखलांदाजी पसंद नहीं है. उन के लिए उन का परिवार उन के बच्चे व पति हैं. बेटी ही बहू बनती है.

आज बेटियों को पालनेपोषने का तरीका बहुत बदल गया है. लड़कियां आज विवाह, ससुराल, सासससुर के बारे में अधिक नहीं सोचतीं. उन के लिए उन का कैरियर, खुद के विचार व व्यक्तित्व प्राथमिकता में रहते हैं.

सास की सोच:

सास की पारंपरिक सामाजिक तसवीर बेहद नैगेटिव है. समाजशास्त्री रितु सारस्वत के अनुसार, सास की इमेज के प्रति ये ऐसे जमे हुए विचार हैं, जो इतनी आसानी से मिटाए नहीं जा सकते. आज की शिक्षित सास ने बहू के रूप में एक पारंपरिक सास को निभाया है. बहुत कुछ अच्छाबुरा ?ोला है. बड़ेबड़े परिवार निभाए हैं. नौकरी करते हुए या बिना नौकरी किए ढेर सारा काम किया है.

वहीं बहू का रूप इतना बदल गया कि खुद को बहुत बदलने के बावजूद सास के लिए बहू का यह नया रूप आत्मसात करना सरल नहीं हो रहा है जिस के कारण न चाहते हुए भी दोनों के रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं.

सास का डर:

सासबहू के तनावपूर्ण रिश्ते का सब से बड़ा कारण है सास में ‘पावर इनसिक्योरिटी’ का होना. सास बेटे की शादी होने के बाद इस चिंता में पड़ जाती है कि कहीं मेहनत से तैयार किया हुआ उन का बसाबसाया साम्राज्य छिन न जाए. जो सासें इस इनसिक्योरिटी के भाव से ग्रस्त रहती हैं, उन के अपनी बहू से रिश्ते अधिकतर खराब रहते है.

बेटेबहू का रिश्ता मजबूत बनाने में मां की अहम भूमिका: विवाह से पहले बेटा अपनी मां के ही सब से नजदीक होता है. विवाह के बाद बेटे की प्राथमिकता में बदलाव आता है. जहां सास चाहती है कि बेटा तो विवाह के बाद उस का रहे ही अपितु बहू भी उस की हो जाए. यह सुंदर भाव व अभिलाषा है. हर मां ऐसा चाहती है. लेकिन इस के लिए कुछ बातों का पहले ही दिन से बहुत ध्यान रखने की जरूरत है.

सब से पहले तो बहू को अपनी अल्हड़ सी बेटी के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है जिस की हर उपलब्धि पर खुशियों व तारीफ के पुल बांधे जाएं व हर गलती को मुसकरा कर प्यार से टाल दिया जाए क्योंकि एक सुकुमार लाडली सी बेटी विवाह होते ही बहू की जिम्मेदारी के खोल में नहीं सिमट सकती.

बहू को बेटे की पत्नी व अपनी बहू मानने से पहले एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करे. उस के विचारों, फ्रैंड सर्कल, उस के काम को भी उतना ही महत्त्व दे जितना बेटे को देती है. युवा लड़कों में अपनी कामकाजी पत्नी को ले कर बहुत बदलाव आया है, लेकिन अकसर देखने को मिलता है कि मां बेटे के इस भाव को पोषित नहीं कर पाती.

बहू बेटे की पीढ़ी की व उसी के समकक्ष शिक्षित है, नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है. बेटा और बहू की कई आपसी बातें, सलाहें उन की अपनी पीढ़ी के अनुसार हैं जो अकसर सास को समझ नहीं आतीं और वह खुद को उपेक्षित महसूस करती है. बेटेबहू के आपसी रिश्ते को सहजता से लेने की जरूरत है, जैसे बेटीदामाद का लेते हैं. क्या वे मां को सबकुछ बता देते हैं?

निजी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं: बेटे बहू के बीच छोटीमोटा झगड़ा होना आम बात है. वे दोनों इसे खुद ही सुलझ लेते हैं. लेकिन उन दोनों के बीच पड़ कर यह सोचना कि बहू गलती मान कर सुलह कर ले, छोटे से झगड़े को बड़ा कर देता है.

ये भी पढ़ें- ससुराल में रिश्ते निभाएं ऐसे

एकदूसरे से जलन क्यों:

सास और बहू के बीच जलन यह बात थोड़ी अजीब लगती है क्योंकि दोनों का रिश्ता अच्छा हो या बुरा होता तो मांबेटी का ही है. लेकिन इन दोनों के बीच जलन कहां किस रूप में जन्म ले ले, कहा नहीं जा सकता. लड़के ने अपनी मां को ज्यादा पूछा, उन के लिए बिना पत्नी को बताए कुछ खरीद लाए, किसी मसले पर उन से सलाह मांग कर उन्हें तवज्जो दे, मां के बनाए खाने की अधिक तारीफ कर दी, पत्नी को मां से खाना बनाना व गृहस्थी चलाने के गुर सीखने की सलाह दे डाले तो बहू के दिल में सास के प्रति जिद्द व जलन के भाव आ जाते हैं. वहीं सास भी इन्हीं सब कारणों से बहू के प्रति ईष्यालु हो सकती है.

सास के जमाने में बहू के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियां बहुत थी. आज की लड़की के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियों के माने बदल गए हैं. उस के बदले हुए तरीके को सहर्ष स्वीकार करें. बेमन से स्वीकार करने पर रिश्ता हमेशा भार बना रहेगा. सासबहू के बीच की सहजता खत्म होगी तो इस का असर बेटेबहू के रिश्ते पर पड़ेगा.

बेटा तो अपना ही है. अगर कभी पक्ष लेने की जरूरत पड़े तो बहू का ले वरना तटस्थ बनी रहे.

बच्चों के रिश्ते को बचाए रखने की जिम्मेदारी दोनों परिवारों की: यह सही है कि बहू का असली घर उस के पति का ही घर माना जाता है. इसलिए उस के ससुराल वालों पर बच्चों के विवाह को मजबूत बनाने की और अलगाव की स्थिति में बचाने की जिम्मेदारी ज्यादा आती है. जो बेटा जितना अपनी मां के करीब होगा वह मां और भी इस के लिए प्रयासरत रह सकती है क्योंकि बेटा अपनी मां की सलाह सुन लेता है.

मगर आज के समय लड़की के मातापिता भी इस के लिए कम कुसूरवार नहीं हैं. वे भी छोटीछोटी बातों में बेटी को उकसा कर तिल का ताड़ बना देते हैं. बेटी पर कोई अत्याचार हो रहा है तो जरूर साथ दें, लेकिन छोटीछोटी बातों, परिस्थितियों में बेटी को समझतावादी नजरिया रखने को कहें क्योंकि एक विवाह टूट कर दूसरा इतना सरल नहीं होता.

तलाक सिर्फ एक रास्ता है, मंजिल नहीं है खास कर जब बच्चे हों, क्योंकि तलाक पतिपत्नी का होता है, मातापिता का नहीं होता. बच्चों को दोनों की जरूरत होती है.

हर छोटी सी बात को मानसम्मान का प्रश्न बना लेना कोई समझदारी नहीं है. ससुराल वालों को भी अपना नजरिया बदलने की जरूरत है.

बहू के रूप में आई लड़की के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार करना सीखें. ‘तारीफ करने की आदत’ व ‘स्वीकार करने’ का स्वभाव किसी भी रिश्ते को टूटने से ही नहीं बचाता, अपितु मजबूत भी बनाता है.

ये भी पढ़ें- लाडली को सिखाएं रिश्ते संवारना

सास बहू दोनों के लिए जानना जरुरी है घरेलू हिंसा कानून

मेरे महल्ले में एक वृद्ध महिला अपने घर में अकेली रहती हैं. वे बेहद मिलनसार व हंसमुख हैं. उन का इकलौता बेटा और बहू भी इसी शहर में अलग घर ले कर रहते हैं. एक दिन जब मैं ने उन से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने जो कुछ भी बताया वह सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.

उन्होंने बताया, ‘‘मेरे बेटे ने प्रेमविवाह किया था. फिर भी हम ने कोई आपत्ति नहीं की. बहू ने भी आते ही अपने व्यवहार से हम दोनों का दिल जीत लिया. 2 साल बहुत अच्छे से बीते. लेकिन मेरे पति की मृत्यु होते ही मेरे प्रति अप्रत्याशित रूप से बहू का व्यवहार बदलने लगा. अब वह बेटे के सामने तो मेरे साथ अच्छा व्यवहार करती, परंतु उस के जाते ही वह बातबात पर मुझे ताने देती और हर वक्त झल्लाती रहती. मुझे लगता है कि शायद अधिक काम करने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई है, इसलिए मैं ने उस के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. मगर उस ने तो जैसे मेरे हर काम में मीनमेख निकालने की ठान रखी थी.

‘‘धीरेधीरे वह घर की सभी चीजों को अपने तरीके से रखने व इस्तेमाल करने लगी. हद तो तब हो गई जब उस ने फ्रिज और रसोई को भी लौक करना शुरू कर दिया. एक दिन वह मुझ से मेरी अलमारी की चाबी मांगने लगी. मैं ने इनकार किया तो वह झल्लाते हुए मुझे अपशब्द कहने लगी. जब मैं ने यह सबकुछ अपने बेटे को बताया तो वह भी बहू की ही जबान बोलने लगा. फिर तो मुझे अपनी बहू का एक नया ही रूप देखने को मिला. वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगी तथा रसोई में जा कर आत्महत्या का प्रयास भी करने लगी. साथ ही, यह धमकी भी दे रही थी कि वह यह सबकुछ वीडियो बना कर पुलिस में दे देगी और हम सब को दहेज लेने तथा उसे प्रताडि़त करने के इलजाम में जेल की चक्की पिसवाएगी. उस समय तो मैं चुप रह गई, परंतु मैं ने हार नहीं मानी.

‘‘अगले ही दिन बिना बहू को बताए उस के मातापिता को बुलवाया. अपने एक वकील मित्र तथा कुछ रिश्तेदारों को भी बुलवाया. फिर मैं ने सब के सामने अपने कुछ जेवर तथा पति की भविष्यनिधि के कुछ रुपए अपने बेटेबहू को देते हुए इस घर से चले जाने को कहा. मेरे वकील मित्र ने भी बहू को निकालते हुए कहा कि महिला संबंधी कानून सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी सास के लिए भी है. तुम्हारी सास भी चाहे तो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट कर सकती है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सीधी तरह से इस घर से चली जाओ. मेरा यह रूप देख कर बहू और बेटा दोनों ही चुपचाप घर से चले गए. अब मैं भले ही अकेली हूं परंतु स्वस्थ व सुरक्षित महसूस करती हूं.’’

ये भी पढ़ें- Friendship Day Special: कब आती है दोस्ती में दरार

उक्त महिला की यह स्थिति देख कर मुझे ऐसा लगा कि अब इस रिश्ते को नए नजरिए से भी देखने की आवश्यकता है. सासबहू के बीच झगड़े होना आम बात है. परंतु, जब सास अपनी बहू के क्रियाकलापों से खुद को असुरक्षित व मानसिक रूप से दबाव महसूस करे तो इस रिश्ते से अलग हो जाना ही उचित है. बदलते समय और बिखरते संयुक्त परिवार के साथ सासबहू के रिश्तों में भी काफी परिवर्तन आया है.

एकल परिवार की वृद्धि होने के कारण लड़कियां प्रारंभ से ही सासविहीन ससुराल की ही अपेक्षा करती हैं. वे पति व बच्चे तो चाहती हैं परंतु पति से संबंधित अन्य कोई रिश्ता उन्हें गवारा नहीं होता. शायद वे यह भूल जाती हैं कि आज यदि वे बहू हैं तो कल वे सास भी बनेंगी.

फिल्मों और धारावाहिकों का प्रभाव:

हम मानें या न मानें, फिल्में व धारावाहिक हमारे भारतीय परिवार व समाज पर गहरा असर डालते हैं. पुरानी फिल्मों में बहू को बेचारी तथा सास को दहेजलोभी, कुटिल बताते हुए बहू को जला कर मार डालने वाले दृश्य दिखाए जाते थे.

कई अदाकारा तो विशेषरूप से कुटिल सास का बेहतरीन अभिनय करने के लिए ही जानी जाती हैं. आजकल के सासबहू सीरीज धारावाहिकों का फलक इतना विशाल रहता है कि उस में सबकुछ समाया रहता है. कहीं गोपी, अक्षरा और इशिता जैसी संस्कारशील बहुएं भी हैं तो कहीं गौरा और दादीसा जैसी कठोर व खतरनाक सासें हैं. कोकिला जैसी अच्छी सास भी है तो राधा जैसी सनकी बहू भी है. अब इन में से कौन सा किरदार किस के ऊपर क्या प्रभाव डालता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलता है.

आज के व्यस्त समाज में आशा सहाय और विजयपत सिंघानिया की स्थिति देख कर तो यही लगता है कि अब हम सब को अपनी वृद्धावस्था के लिए पहले से ही ठोस उपाय कर लेने चाहिए. कई यूरोपियन देशों में तो व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद शोक मनाने के लिए भी सारे इंतजाम करने के बाद ही मरता है. हमारे समाज का तो ढांचा ही कुछ ऐसा है कि हम अपने बच्चों से बहुत सारी अपेक्षाएं रखते हैं.

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, बेटेबहू के हाथ से तर्पण व मोक्ष पाने का लालच इतना ज्यादा है कि चाहे जो भी हो जाए, वृद्ध दंपती बेटेबहू के साथ ही रहना चाहते हैं. बेटियां चाहे जितना भी प्यार करें, वे बेटियों के साथ नहीं रह सकते, न ही उन से कोई मदद मांगते हैं. कुछ बेटियां भी शादी के बाद मायके की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना चाहती हैं. और दामाद को तो ससुराल के मामले में बोलने का कोई हक ही नहीं होता.

भारतीय समाज में एक औरत के लिए सास बनना किसी पदवी से कम नहीं होता. महिला को लगता है कि अब तक उस ने बहू बन कर काफी दुख झेले हैं, और अब तो वह सास बन गई है. सो, अब उस के आराम करने के दिन हैं. सास की हमउम्र सहेलियां भी बहू के आते ही उस के कान भरने शुरू कर देती हैं. ‘‘बहू को थोड़ा कंट्रोल में रखो, अभी से छूट दोगी तो पछताओगी बाद में.’’

‘‘उसे घर के रीतिरिवाज अच्छे से समझा देना और उसी के मुताबिक चलने को कहना.’’

‘‘अब तो तुम्हारा बेटा गया तुम्हारे हाथ से’’, इत्यादि जुमले अकसर सुनने को मिलते हैं. ऐसे में नईनई सास बनी एक औरत असुरक्षा की भावना से घिर जाती है और बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी समझ बैठती है. जबकि सही माने में देखा जाए तो सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है. आप चाहें तो गुरु और शिष्या के जैसा भी हो सकता है और सहेलियों जैसा भी.

यदि हम कुछ बातों का विशेषरूप से ध्यान रखें तो ऐसी विपरित परिस्थितियों से निबटा जा सकता है, जैसे-

–       नई बहू के साथ घर के बाकी सदस्यों के जैसा ही व्यवहार करें. उस से प्यार भी करें और विश्वास भी, परंतु न तो चौबीसों घंटे उस पर निगरानी रखें और न ही उस की बातों पर अंधविश्वास करें.

–       नई बहू के सामने हमेशा अपने गहनों व प्रौपर्टी की नुमाइश न करें और न ही उस से बारबार यह कहें कि ‘मेरे मरने के बाद सबकुछ तुम्हारा ही है.’ इस से बहू के मन में लालच पैदा हो सकता है. अच्छा होगा कि आप पहले बहू को ससुराल में घुलमिल जाने दें तथा उस के मन में ससुराल के प्रति लगाव पैदा होने दें.

–       बहू की गलतियों पर न तो उस का मजाक उड़ाएं और न ही उस के मायके वालों को कोसें. बल्कि, अपने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए सहीगलत, उचितअनुचित का ज्ञान दें. परंतु याद रहे कि ‘हमारे जमाने में…’ वाला जुमला न इस्तेमाल करें.

–       बहू की गलतियों के लिए बेटे को ताना न दें, वरना बहू तो आप से चिढ़ेगी ही, बेटा भी आप से दूर हो जाएगा.

–       अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें तथा घरेलू कार्यों में आत्मनिर्भर रहने का प्रयास करें.

–       समसामयिक जानकारियों, कानूनी नियमों, बैंक व जीवनबीमा संबंधी नियमों तथा इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स के बारे में भी अपडेट रहें. इस के लिए आप अपनी बहू का भी सहयोग ले सकती हैं. इस से वह आप को पुरातनपंथी नहीं समझेगी, और वह किसी बात में आप से सलाह लेने में हिचकेगी भी नहीं.

–       अपने पड़ोसी व रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखने का प्रयास करें.

–       बेटेबहू को स्पेस दें. उन के आपसी झगड़ों में बिन मांगे अपनी सलाह न दें.

–       परंपराओं के नाम पर जबरदस्ती के रीतिरिवाज अपनी बहू पर न थोपें. उस के विचारों का भी सम्मान करें.

आखिर में, यदि आप को अपनी बहू का व्यवहार अप्रत्याशित रूप से खतरनाक महसूस हो रहा है तो आप अदालत का दरवाजा खटखटाने में संकोच न करें. याद रखिए घरेलू हिंसा का जो कानून आप की बहू के लिए है वह आप के लिए भी है.

ये भी पढ़ें- जानें बच्चे को कितना दें जेब खर्च

कानून की नजर में

केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक अंगरेजी अखबार के जरिए यह कहा था कि घरेलू हिंसा कानून ऐसा होना चाहिए जो बहू के साथसाथ सास को भी सुरक्षा प्रदान कर सके. क्योंकि अब बहुओं द्वारा सास को सताने के भी बहुत मामले आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि हिंदू मैरिज कानून के मुताबिक, कोई भी बहू किसी भी बेटे को उस के मांबाप के दायित्वों के निर्वहन से मना नहीं कर सकती.

क्या कहता है समाज

भारतीय समाज के लोगों ने अपने मन में इस रिश्ते को ले कर काफी पूर्वाग्रह पाल रखे हैं. विशेषकर युवा पीढ़ी बहू को हमेशा बेचारी व सास को दोषी मानती है. युवतियां भी शादी से पहले से ही सासबहू के रिश्ते के प्रति वितृष्णा से भरी होती हैं. वे ससुराल में जाते ही सबकुछ अपने तरीके से करने की जिद में लग जाती हैं. वे पति को ममा बौयज कह कर ताने देती हैं और सास को भी अपने बेटे से दूर रखने की कोशिश करती हैं.

मेरी सास की रोकटोक के कारण मैं परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मु झे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां सम झती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी सम झ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान सम झेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

ये भी पढ़ें- 

अकसर देखा जाता है कि घर में सासबहू के झगड़े के बीच पुरुष बेचारे फंस जाते हैं और परिवार की खुशियां दांव पर लग जाती हैं. पर यदि रिश्तों को थोड़े प्यार और समझदारी से जिया जाए तो यही रिश्ते हमारी जिंदगी को खुशनुमा बना देते हैं.

जानिए, कुछ ऐसे टिप्स जो सासबहू के बीच बनाएं संतुलन रखेंगे.

कैसे बनें अच्छी बहू

1. मैरिज काउंसलर कमल खुराना के मुताबिक, बेटा, जो शुरू से ही मां के इतना करीब था कि उस का हर काम मां खुद करती थीं, वही शादी के बाद किसी और का होने लगता है. ऐसे में न चाहते हुए भी मां के दिल में असुरक्षा की भावना आ जाती है. आप अपनी सास की इस स्थिति को समझते हुए शुरू से ही उन से सदभाव का व्यवहार करेंगी तो यकीनन रिश्ते की बुनियाद मजबूत बनेगी.

2. बहू दूसरे घर से आती है. अचानक सास उसे बेटी की तरह प्यार करने लगे, यह सोचना गलत है. प्यार तो धीरेधीरे बढ़ता है. यदि आप धैर्य रखते हुए अपनी तरफ से सास को मां का प्यार और सम्मान देती रहेंगी, तो समय के साथ सास के मन में भी आप के लिए प्यार गहरा होता जाएगा.

3. सास के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें. नाराज होने पर भी बातचीत बंद न करें.

4. यदि आप से कोई गलती हुई है, आप ने सास के प्रति गलत व्यवहार किया है या कोई काम गलत हो गया है तो सहजता से उसे स्वीकार करते हुए सौरी कह दें.

पूरी खबर पढने के लिए- सास-बहू के रिश्तों में बैलेंस के 80 टिप्स

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Mother’s Day Special: सास-बहू की स्मार्ट जोड़ी

शादी हमें एक जोड़े में बांधती है – पति पत्नी की जोड़ी में. लेकिन एक और जोड़ी है जिसमें शादी के कारण हम बंधते हैं और वह है सास बहू की जोड़ी! एक समय था जब पर्दे पर भी सास का किरदार निभाने के लिए किसी निर्दई इमेज वाली एक्ट्रेस जैसे ललिता पवार या शशि कला को चुना जाता था. जिंदगी हो या पर्दा – सास बहू का रिश्ता कड़वाहट भरा होता था. लेकिन यह बीते जमाने की बात होने लगी है. आज के दौर में जहां बहुएं पढ़ी लिखी, नौकरी पेशा, फैशन परस्त और हर लिहाज से स्मार्ट होने लगी हैं वही सासें भी पीछे नहीं रही. आज की सास ने अपनी पुरानी छवि उतार फेंकी है क्योंकि वह अच्छे से जानती है कि बेटे के साथ आजीवन मधुर संबंध बनाए रखने के लिए बहू से अच्छे संबंध रखना बेहद जरूरी है.

स्मार्ट सास और बहू वही है जो एक दूसरे की अहमियत समझती है. बहू जानती है कि सास से अनबन के कारण उसकी गृहस्थी में कलेश घुलेगा और रोजमर्रा का जीवन चलाना कठिन होगा, वहीं सास समझती है कि बहू से बना कर रखा तो पूरे परिवार का सुख मिलता रहेगा और बुढ़ापा भी चैन से गुजरेगा. और फिर जब संबंध इतने निकट का हो तो क्यों ना आपसी मेलजोल और माधुर्य से अपने साथ सामने वाले के जीवन को भी सुखमय बना लिया जाए. कितना अच्छा हो कि बहू जब सास को ‘मम्मी ‘ पुकारे तो वह उसके हृदय से निकले; कि जब सास ‘बेटा ‘ कहे तो उसका तात्पर्य अपने बेटे से नहीं वरन बहू से हो! ऐसा जरूर हो सकता है पर अपने आप नहीं. इसके लिए चाहिए थोड़ी स्मार्टनेस जो दोनों पलड़ों में होनी आवश्यक है. समझदार हैं वे सास बहू जो इस अनमोल रिश्ते की कीमत और गरिमा को पहचानती हैं और देर होने से पहले सही कदम उठा लेते हैं.

एनी चेपमेन, अमेरिकी संगीतकार तथा लोकप्रिय वक्ता, जो स्वयं बहू रही और अब सास बन चुकी हैं, ने कई पुस्तके लिखी, जैसे – ‘ द मदर इन लॉ डांस ‘ , ‘ ओवरकमिंग नेगेटिव इमोशंस ‘ , ’10 वेज़ टू प्रिपेयर डॉटर फॉर लाइफ ‘ आदि. आज के समय में सास बहू के रिश्ते को सुनहरा बनाने के लिए कुछ नियम बताती हैं जो हैं कि न तो सास को बहू की तुलना अपनी बेटी से करनी चाहिए और ना ही बहू को सास की तुलना अपनी मां से करनी चाहिए. साथ ही एनी कहती हैं कि स्मार्ट वो सास और बहू हैं जो एक दूसरे के व्यक्तित्व को पहचान लें. यदि सास या बहु कुछ हठीले स्वभाव की है तो दोनों को चाहिए वे परस्पर नम्रता बनाए रखें लेकिन साथ ही थोड़ी दूरी भी रखें.

ये भी पढ़ें- फैमिली डॉक्टर है अहम

जैसे बहू नई वैसे सास भी

जैसे बहु नई नवेली होती है ठीक वैसे ही सास के लिए भी यह पहला अनुभव होता है. उसे भी नए रिश्ते में ढलना वैसे ही सीखना होता है जैसे बहू सीखती है. इसलिए दोनों को पर्याप्त समयावधि मिलनी चाहिए. हथेली पर सरसों नहीं उगती. इस रिश्ते को सुदृढ़ बनाने के लिए समय और स्पेस की जरूरत होती है. स्मार्ट वो सास बहू हैं जो इस बात को समझते हुए एक दूसरे को पूरा समय और स्पेस दें.

जब वरिष्ठ लेखिका सुधा जुगरान की इकलौती बहू आई तब उन्होंने इस बात को सहर्ष स्वीकारा कि अब उनके बेटे के जीवन और उनके घर में एक अन्य स्त्री का प्रवेश हो रहा है. आम सासु मां की तरह इन्होंने कभी अपनी बहू चारू को खाने, पहनने व सोने को लेकर कोई निर्देश नहीं दिए क्योंकि इनका मानना है कि यह तीनों चीजें किसी भी इंसान की नैसर्गिक जरूरत है और इच्छाएं हैं. इन बातों पर बंधन किसी भी लड़की के जीवन का संतुलन तो डगमगाता ही है अपितु सास बहू के रिश्ते में भी कड़वाहट ला देता है. बेटे के विवाह के बाद सुधा जी ने समझ लिया कि अब उनके लिए केवल उनकी बहू ही हर तरह से महत्वपूर्ण है – उसी की तारीफ, उसी की पसंद, उसी के क्रियाकलाप. उन्होंने सास बहू के रिश्ते को मीठा बनाने का फार्मूला जान लिया था – बेटा तो अपना है ही, सींचना तो उस पौधे को पड़ता है जिसे नया-नया रोपा गया है. शुरू के सालों में इनकी इन्हीं कोशिशों का परिणाम है कि शादी के 6 साल बाद भी दोनों के बीच छोटी-मोटी गलतफहमियां तक सिर नहीं उठा पातीं. वहीं चारु ने भी खुद को बिल्कुल सहजता से नए वातावरण में ढाल लिया. आज वह अपनी सासू मां के साथ शॉपिंग जाती है, दोनों एक जैसी पोशाकें पहनती हैं, गप्पें लगाती हैं ताकि प्यार में यह रिश्ता मां बेटी जैसा, समझदारी में सहेलियों जैसा, और मान सम्मान में सास बहू जैसा बन पाए. सुधा जी के शब्दों में, ” मेरा मानना है विचार बदलो और नजर बदलो, नजारे अपने आप बदल जाएंगे.”

शब्दों का खेल

याद रखिए, सास और बहू अलग परिवेशों से आती हैं, दोनों वयस्क हैं, आज तक की अपनी जिंदगी निश्चित ढंग से जीती आई हैं. शब्दों रिश्तों को पत्थर सा मजबूत भी बना सकते हैं और कांच सा तोड़ भी सकते हैं. सोच समझकर शब्दों का प्रयोग करें. जो भी बोलें, नाप तोल कर बोलें.कोशिश करें कि पहले आप दूसरे की भावनाएं समझें और बाद में मुंह खोले. याद रखें शब्द बाण एक बार कमान से निकल गए तो उनकी वापसी असंभव है, साथ ही, उनके द्वारा दिए घाव भरना भी बहुत मुश्किल. यदि चुप्पी से काम चल सके तो चुप रहे.

बने स्मार्ट बहू

जब बहू अपना घर परिवार, माता पिता, भाई बहन सब कुछ छोड़कर ससुराल आती है तब सास ही उसे प्यार और अपनेपन से दुलार कर ससुराल में मां की कमी महसूस नहीं होने देती. साथ ही बहु को उसके पति (अपने बेटे) के स्वभाव, आदतों, अच्छाइयों, बुराइयों तथा पसंद-नापसंद से परिचित करवाती है. साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों की आवश्यकताओं के बारे में भी समझाती है. नए घर के रीति-रिवाज, परंपराएं एवं रस्में भी बहू सास से ही सीखती है. तो बहू को चाहिए कि अपनी स्मार्टनेस से इस महत्वपूर्ण रिश्ते को मधुर बनाए.

– बहुओं को चाहिए कि वह सास को बुजुर्ग होने के साथ अनुभवी भी माने. अपनी सास से उनके जमाने के मजेदार किस्से सुने – बचपन के, शादी के बाद के, बच्चों को पालते समय संबंधित अनुभव आदि. जब एक सास अपनी बीती हुई जिंदगी के अनुभव अपनी नई बहू से बांटेगी तो उसके मन में बहू के प्रति लगाव बढ़ना स्वाभाविक है जिससे उन दोनों का रिश्ता और सुदृढ़ हो जाएगा.

– बहू अपनी सास से सुझाव लेने में हिचकिचाए नहीं. हो सकता है कि आप अपनी सास के हर सुझाव से इत्तफाक ना रखती हो, फिर भी उनके अनुभव को देखते हुए उनसे सुझाव लेने में कोई हर्ज नहीं है. लेकिन कभी भी उनके दिए सुझावों को व्यक्तिगत लेते हुए उन पर बहस ना करें. सुझाव मानना आपकी इच्छा पर निर्भर करता है, पसंद आए तो माने वरना सास को अपनी सोच से अवगत करा दें.

– रिश्तो में स्पेस देना भी बहुत जरूरी है. आपका पति जो अब तक केवल एक बेटा था और जो अभी तक मां के अनुसार ही चल रहा था, शादी के बाद उसके व्यवहार में परिवर्तन आना स्वाभाविक है. इससे कभी-कभी मां के मन में असुरक्षा की भावना आने लगती है और यह चिढ़ बात- बेबात टोकाटाकी या तानों के रूप में बाहर आती है. यहां एक स्मार्ट बहू का कर्तव्य है कि वह मां बेटे के बीच दरार की वजह ना बने और मां बेटे की आपसी बातचीत का बुरा ना माने, साथ ही हस्तक्षेप ना करे.

नए घर की जिम्मेदारियों को और परिवार के रखरखाव के विषय में जितना बेहतर सास समझा सकती है उतना कोई भी नहीं. नए परिवार में बैलेंस बनाने के लिए सास से अपना रिश्ता एक दूसरे को सुविधा देने की भावना का बनाने की कोशिश कीजिए.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: जब एक दूसरे के सम्बल बने हम

बने स्मार्ट सास

स्मार्ट सास वह है जो यह बात समझ जाए कि अब नई बहू भी उसके परिवार का हिस्सा बन चुकी है. घर का माहौल सरल रखें ताकि यदि बहू कुछ कहना चाहे तो बेझिझक अपनी बात रख सके. सभी की अपनी कुछ आदतें होती है जिसे हम हमेशा फॉलो करना चाहते हैं. आखिर बहू 25 – 26 वर्ष की आयु में घर में प्रवेश करती है. अगर उसकी कुछ ऐसी आदतें हैं जो सास को पसंद नहीं आ रही तब भी जबरन दबाव डालकर न रोकें. उसे अपनी खास इच्छा या शौक पूरे करने दें तभी वह सब को अपना समझ पाएगी.

– सास होशियारी से बहू की छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करके उसे बेटी की तरह प्यार दुलार दे ताकि उसे मां की कमी महसूस ना हो. तब आपका घर, घर नहीं स्वर्ग बन जाएगा.

– बहू को खुले दिल से अपने परिवार का हिस्सा बनाएं. सास बहू के संबंधों का प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है. यदि सास बहू के बीच संबंध मधुर होते हैं तो घर में व्यर्थ का तनाव नहीं पनपता तथा घर के सभी सदस्य प्रसन्नचित्त रहते हैं.

– सास को चाहिए कि जिस लाड प्यार पर अब तक केवल उसके बेटे का अधिकार था, अब वही प्यार वह बहू बेटे को साथ में बांटे.

टोने-टोटके की दुनिया

सास बहू की नोक झोंक एक ऐसा विषय है जो सदियों से चला आ रहा है. अमूमन हर घर में कभी ना कभी कोई समस्या उभर ही आती है. इसलिए इस विषय पर भी पंडित और धार्मिक दुकानदार अपनी रोटी खूब चालाकी से सेंकने के भरपूर प्रयास करते रहते हैं.

– राजस्थान के वैदिक अनुष्ठान संस्थान के आचार्य अजय द्विवेदी कहते हैं कि मंत्र “ॐ क्रां क्रीं क्रों” का 108 बार जाप करें. सास अपने बेडरूम में मोर पंख रखें जो कि प्रेम और वात्सल्य का प्रतीक होता है. साथ ही बहू पूर्णिमा का व्रत करें. सास और बहू दिन के दोनों पहरों में अपने इष्टदेव का ध्यान करें, उन्हें नैवेद्य अर्पण करें ताकि सास बहू में नकारात्मकता समाप्त हो.

– वेबदुनिया नामक ऑनलाइन चैनल बताता है कि सास व बहू में आपसी संबंध कटु होने पर बहू चांदी का चौकोर टुकड़ा अपने पास रखें. साथ ही शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से हल्दी या केसर की बिंदी माथे पर लगाना शुरू करें. गले में चांदी की चेन धारण करें. और सबसे महत्वपूर्ण बात – किसी से भी कोई सफेद वस्तु ना लें.

– इसी का ठीक उलटा उपाय एस्ट्रो मां त्रिशला बताती हैं कि हर सोमवार को बहू अपनी सास को कोई सफेद चीज खिलाए. साथ ही कुछ सरल उपाय जैसे सास बहू दोनों की फोटो फ्रेम करवाकर उत्तर में लगाएं. और सास हर महीने आने वाली दोनों चौथ पर बहू को सिंदूर का टीका करते हुए “ॐ गंग गणपतए नमः” का जाप करें. बहू को थोड़ा सा गुण और एक मुट्ठी गेहूं किसी चौराहे पर रखते हुए प्रार्थना करनी है कि हे प्रभु हमारे रिश्ते को मां बेटी सा बना दीजिए.

– डॉ आर बी धवन गुरु जी कहते हैं कि 5.5 रत्ती का चंद्रकांत मणि पत्थर लेकर चांदी में बनवाकर बहू को छोटी उंगली में और सास बीच वाली उंगली में सोमवार के दिन धारण करने से गृह क्लेश दूर होगा.

– यूट्यूब पर ‘आपके सितारे’ नाम से अपना चैनल चला रहे वैभव नाथ शर्मा के अनुसार सास बहू के क्लेश को दूर करने के लिए गाय के गोबर का दीपक बनाकर सुखा लें. फिर उसमें तिल का तेल और एक डली गुड़ डालकर दीपक जलाएं जो रात को घर के मुख्य द्वार के मध्य में रखें. मंगलवार की रात को यह करने से सास बहू की दुर्भावना दूर होगी.

ऊपर दिए टोटके तो सिर्फ ट्रेलर है; पिक्चर अभी बाकी है! टोने टोटकों की भरमार इसलिए है क्योंकि लोग अपनी समझदारी पर विश्वास करने की जगह इन अंधविश्वासों की दुनिया में डूबना पसंद करते हैं. पर आप ऐसा कतई न करें. बातों के चक्कर में ना आए, ना ही किसी ढोंगी बाबा – मां ही बातों में फंस कर अपना जीवन दूभर करें. समझदारी से काम लें. अपने आसपास की सास बहू की जोड़ियों को देखें और उनसे सीखने का प्रयास करें.

रीयल लाइफ उदाहरण

दिल्ली की मालती अरोड़ा के पति की मृत्यु बहुत कम उम्र में हो गई थी. उन्होंने नौकरी की, अपने बच्चे पाले. फिर उनकी बहू आ गई जोकि आज के जमाने की थी. उसने इच्छा जताई कि उसकी सास भी उसके साथ मॉल जाएं, शॉपिंग करें और आज के परिधान जैसे जींस और स्कर्ट पहने. मालती जी ने पहले कभी यह सब नहीं किया था. उनका जीवन तो बस जिम्मेदारियों की भेंट चढ़ा रहा था. लेकिन उन्होंने अपनी बहू का पूरा साथ दिया. उन्होंने अपने संकोच को दरकिनार कर जींस और लॉन्ग स्कर्ट पहनना शुरू कर दिया. बहू के दिल में जगह बनाने का यह स्वर्णिम अवसर उन्होंने दोनों हाथ से लपका. आज सब इस सास बहू की जोड़ी को देखकर हैरान हो जाते हैं. मालती जी की समझदारी ने उनके घर को एक मजबूत धागे से बांधे रखा है.

ग्वालियर की गौरी सक्सेना को हर दोपहर में थोड़ा सुस्ताने की आदत थी. जब उनकी बहू आई तो उसने दोपहर में दोनों के पतियों के ऑफिस चले जाने के बाद कभी शॉपिंग तो कभी मूवी का प्रोग्राम बनाना शुरू किया. गौरी ने अपनी आदत को टालते हुए उसका साथ दिया. जैसा प्रोग्राम बनता, वह वैसे ही चल पड़ते. एक बार जब गौरी की बहन मिलने आई और उन्होंने बताया कि तुम्हारी सास बिना दोपहर में सुस्ताए रह नहीं पातीं तब बहू के मन में सास के प्रति आदर भाव और बढ़ गया.

जयपुर की संध्या की जब शादी हुई तब वो एक संयुक्त परिवार का हिस्सा बनी. ऐसे में सबका दिल जीतने के लिए उसने अपनी सास का दामन थामा. जैसाजैसा सास बतातीं, वो वैसा ही करती. धीरे-धीरे पूरा परिवार संध्या का मुरीद हो गया. यहां तक कि शाकाहारी होते हुए भी संध्या ने अपने नए परिवार के स्वादानुसार चिकन भी पकाना सीखा. संसार त्यागने तक उसकी सास केवल उसी के पास रहना पसंद करती रहीं.

कुछ ऐसे टिप्स भी होते हैं जो सास बहू के रिश्ते को और भी मजबूत और प्यारा बना सकते हैं बशर्ते इन्हें सास और बहू साथ में फॉलो करें –

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: कोरोना के दौर में घरेलू शिक्षा में मां की क्या हो भूमिका

शेयर करें अपने दिल की बातें: शादी के बाद जहां बहू को नए घर में रहने के रीति रिवाज और रंग ढंग सीखने होते हैं वही सास के मन में भी यह दुविधा होती है कि क्या बहू उनके परिवार के अनुसार खुद को ढाल पाएगी. ऐसे में बेहतर ऑप्शन है कि आप एक दूसरे के साथ अपने मन की बात शेयर करें. इससे आप दोनों को एक दूसरे के विचारों का पता चलेगा और रिश्ता निभाने में आसानी होगी.

अपने विचार एक दूसरे पर न थोपे : यह बात केवल न केवल सास बल्कि बहू को भी समझनी चाहिए कि हर किसी की सोच और विचार अलग होते हैं. अपने विचार दूसरों पर थोपने से उन्हें गुस्सा आना वाजिब है. अगर आप अपने सास बहू के रिश्ते में मिठास रखना चाहते हैं तो एक दूसरे के विचारों का आदर करें. इससे आप दोनों के बीच प्यार बढ़ेगा और रिश्ता मजबूत होगा.

एक दूसरे को दे भरपूर समय : अपनी नई शादी की खुमारी में बहू केवल अपने पति या फिर मायके वालों को ही टाइम दे, यह उचित नहीं. वहीं सास भी अपनी बहू के साथ बैठकर कुछ बातें शेयर करें. एक दूसरे के साथ टाइम स्पेंड करने से न केवल आपको एक दूसरे को समझने का मौका मिलेगा बल्कि प्यार भी बढ़ेगा.

व्यवसाय के क्षेत्र में भी साथ सास बहू

रुचि झा एक इन्वेस्टमेंट बैंकर थीं. एक बार छुट्टियों के दौरान वह अपने गांव पहुंची. रुचि बताती है “उस समय मिथिला पेंटिंग से जुड़े कुछ राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों से मिलने का संयोग बना. उन पेंटिंग्स को देखकर मुझे महसूस हुआ कि मैं इस कला को दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाना चाहती हूं.” रुचि ने कॉर्पोरेट दुनिया से विदा लेने की सोची तो खुद का काम शुरू करने के लिए उन्हें किसी साथी की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि इस काम के लिए उनकी सास रेणुका कुमारी आदर्श साझेदार थीं. दोनों ने मिलकर ‘आइमिथिला हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम प्राइवेट लिमिटेड’ की शुरुआत की तथा अपने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ‘आईमिथिला ‘ से उद्यमिता के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई. साथ ही स्थानीय कलाकारों को भी अपना हुनर दिखाने के लिए एक प्लेटफार्म दिया.

रुचि नोएडा और दिल्ली से मार्केटिंग का काम संभालती हैं जबकि उनकी सास, जोकि वनस्पति विज्ञान प्रोफेसर के रूप में काम कर चुकी हैं, दरभंगा जो मधुबनी आर्ट के लिए मशहूर है, से प्रोडक्शन यूनिट में कलाकारों के साथ समन्वय स्थापित करती हैं. इस सास बहू की जोड़ी ने सुपर स्टार्टअप का अवार्ड भी जीता है.

सास बहू का रिश्ता जितना प्यारा होता है उतना ही नाजुक भी. पूरे परिवार के प्यार और सामंजस्य की धुरी इसी रिश्ते पर टिकी होती है. थोड़ी सी समझदारी से इस रिश्ते को मीठा और मजबूत बनाया जा सकता है. आवश्यकता है तो बस सास और बहू दोनों को इस रिश्ते को निभाने में स्मार्टनेस अपनाने की.

ये भी पढ़ें- 10 टिप्स: ऐसे मजबूत होगा पति-पत्नी का रिश्ता

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें