शायद ये सुन कर आपको हैरानी हो और थोड़ा अजीब लगे लेकिन आज भी समाज में ससुराल में बहुओं के साथ भेदभाव होता है.इसमें कोई दोराय नहीं कि सास और बहू के बीच में नोक-झोंक न हो. कहीं पढ़ा था मैंने कि बेटी अगर चीनी है जिसके बिना जिंदगी में कोई मिठास नहीं,तो बहू नमक है जिसके बिना जीवन में कोई स्वाद नहीं. अक्सर सास और बहू के रिश्तों में खटास सी पैदा हो जाती है….इसका एक सबसे बड़ा कारण हैं सासों का यह मानना कि बहू तो बहू होती है और बेटी…बेटी होती है..हालांकि कुछ प्रतिशत ऐसी सासें हैं जो बहू को केवल बेटी का दर्जा देते ही नहीं हैं बल्कि उसको बेटी मानती भी हैं. सास बहू के रिश्तों में और भेदभाव के कुछ कारण हैं…..
1. बहू को सिर्फ एक बहू के नजरिये से देखना
सास का ये मानना की बहू कभी बेटी नहीं बन सकती है. बहू को सिर्फ एक बहू के नजरिये से देखना. कभी उसके साथ बेटी जैसा बर्ताव न करना. बहुएं घर का सारा काम करती हैं साथ अपने पति के जरूरतों का भी खयाल रखती हैं. ऐसे में ये जरूरी है कि सास अपने बहू को बेटी के समान रखें ताकि बहू भी उतनी ही इज्जत दें सास को जितनी वो अपनी मां को देती हैं.
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2. दूसरा भेदभाव का सबसे बड़ा कारण है दहेज..
दूसरा भेदभाव का सबसे बड़ा कारण है दहेज.. अगर कई बहुएं होती हैं तो अक्सर सास उस बहू को ज्यादा तवज्जों देती हैं जो ज्यादा दहेज लाती है और अपने सास की चकचागिरी करती हैं. सास को लगता है कि उसके लिए ज्यादा दहेज वाली बहू ही अच्छी होती है. इसलिए बाकी बहुओं को ज्यादा तवज्जों न देकर भेदभाव करती हैं.
3. अक्सर सासें ये सोचती हैं कि उनका बेटा कितना बदल गया है
अक्सर सासें ये सोचती हैं कि उनका बेटा कितना बदल गया है. शादी के बाद सिर्फ अपनी पत्नी पर ध्यान देता है और उसी के बारे में सोचता है मेरी तो सुनता ही नहीं है. एक ये सोच भी सास को भेदभाव की दहलीज तक ला ही देता है जब सास बेटी और बहू में भेदभाव करती हैं.
4.अगर बहू वर्किंग वुमन है तो
अगर बहू वर्किंग वुमन है तो वो शादी के बाद भी अपना काम जारी रखती है जिसके चलते वो घर के कामों में ज्यादा योगदान नहीं दे पाती तो बाकी की बहुओं को सास से उसकी चुगली करने और कान भरने का मौका मिल जाता है. आजकल सास,बहु और सस्पेंस जैसी कहानी केवल धारावाहिकों में ही नहीं बल्कि असल जिंदगी में भी दिखती है.
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हम एक उदाहरण से ये समझ सकते हैं कि इंदिरा गांधी को पूरब और पश्चिम का मिश्रण बहुत पसंद था इसलिए उन्होंने अपने एक बहू को मानेकशौ से कार्डन ब्लू बनाना सीखने के लिए भेजा तो दूसरी बहू सोनिया गांधी को हिंदुस्तानी सीखने के लिए भेजा.लेकिन कहा जाता है कि इंदिरा गांधी मेनका से ज्यादा सोनिया गांधी को चाहती थी. मतलब उस वक्त भी भेदभाव था और आज तो है ही. अगर बहू सेवा न करे तो बूरी बन जाती है सास के नजरों में भले ही घर के सारे काम करती हो और सास को आराम देती हो, लेकिन आज समाज को आइना देखने की जरूरत है. सासों को बदलने की जरूरत है…जब तक वो अपनी बहू को बेटी नहीं मानेंगी और बाकी बहुओं से तुलना करना बंद नहीं करेंगी तब तक उनको भी वो प्यार और अपनापन नहीं मिल पाएगा जो एक बहू से मिलना चाहिए…क्योंकि वक्त है बदलाव का….
Edited by Rosy