सास कमाऊ-बहू घरेलू तो कैसे निभाएं

कुमकुम भटनागर 55 साल की हैं पर देखने में 45 से अधिक की नहीं लगतीं. वे सरकारी नौकरी में हैं और काफी फिट हैं. स्टाइलिश कपड़े पहनती हैं और आत्मविश्वास के साथ चलती हैं.

करीब 25 साल पहले अपने पति के कहने पर उन्होंने सरकारी टीचर के पद के लिए आवेदन किया. वे ग्रैजुएट थीं और कंप्यूटर कोर्स भी किया हुआ था. इस वजह से उन्हें जल्द ही नौकरी मिल गई. कुमकुमजी पूरे उत्साह के साथ अपने काम में जुट गईं.

उस वक्त बेटा छोटा था पर सास और पति के सहयोग से सब काम आसान हो गया. समय के साथ उन्हें तरक्की भी मिलती गई. आज कुमकुम खुद एक सास हैं. उन की बहू प्रियांशी पढ़ीलिखी, सम झदार लड़की है. कुमकुम ऐसी ही बहू चाहती थीं. उन्होंने जानबू झ कर कामकाजी नहीं बल्कि घरेलू लड़की को बहू बनाया क्योंकि उन्हें डर था कि सासबहू दोनों औफिस जाएंगी तो घर कौन संभालेगा?

प्रियांशी काफी मिलनसार और सुघड़ बहू साबित हुई. घर के काम बहुत करीने से करती. मगर प्रियांशी के दिल में कहीं न कहीं एक कसक जरूर उठती थी कि उस की सास तो रोज सजधज कर औफिस चली जाती है और वह घर की चारदीवारी में कैद है.

वैसे जौब न करने का इरादा उस का हमेशा से रहा था, पर सास को देख कर एक हीनभावना होने लगी थी. कुमकुम अपने रुपए जी खोल कर खुद पर खर्च करतीं. कभीकभी बहूबेटे के लिए भी कुछ उपहार ले आतीं. मगर बहू को हमेशा पैसों के लिए अपने पति की तरफ देखना पड़ता. धीरेधीरे यह असंतोष प्रियांशी के दिमाग पर हावी होने लगा. उस की सहेलियां भी उसे भड़काने लगीं.

नतीजा यह हुआ कि प्रियांशी चिड़चिड़ी होती गई. सास की कोई भी बात उसे अखरने लगी. घर में  झगड़े होने लगे. एक हैप्पी फैमिली जल्द शिकायती फैमिली में तबदील हो गई.

आज लड़कियां ऊंची शिक्षा पा रही हैं. कंपीटीशन में लड़कों को मात दे रही हैं. भारत में आजकल ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं कामकाजी ही हैं खासकर नई जैनरेशन की लड़कियां घर में बैठना पसंद नहीं करतीं. ऐसे में यदि घर की सास औफिस जाए और बहू  घर में बैठे तो कई बातें तकरार पैदा कर सकती हैं. ऐसे आवश्यकता है इन बातों का खयाल रखने की:

रुपयों का बंटवारा

यदि सास कमा रही हैं और अपनी मनमरजी पैसे खर्च कर रही हैं तो जाहिर है कहीं न कहीं बहू को यह बात चुभेगी जरूर. बहू को रुपयों के लिए अपने पति के आगे हाथ पसारना खटकने लगेगा. यह बहू के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात होगी. वह मन ही मन सास के साथ प्रतियोगिता की भावना रखने लगेगी.

ऐसे में सास को चाहिए कि अपनी और बेटे की कमाई एक जगह रखें और इस धन को कायदे से 4 भागों में बांटें. एक हिस्सा भविष्य के लिए जमा करें, एक हिस्सा घर के खर्चों के लिए रखें, एक हिस्सा बच्चे की पढ़ाई और किराए आदि के लिए रख दें और बाकी बचे हिस्से के रुपए बहू, बेटे और अपने बीच बराबरबराबर बांट लें. इस तरह घर में रुपयों को ले कर कोई  झगड़ा नहीं होगा और बहू को भी इंपौर्टैंस मिल जाएगी.

काम का बंटवारा

सास रोज औफिस जाएगी तो जाहिर है कि बहू का पूरा दिन घर के कामों में गुजरेगा. उसे कहीं न कहीं यह चिढ़न रहेगी कि वह अकेली ही खटती रहती है. उधर सास भी पूरा दिन औफिस का काम कर के जब थक कर लौटेंगी तो फिर घर के कामों में हाथ बंटाना उन के लिए मुमकिन नहीं होगा. ऐसे में उन की बहू से यही अपेक्षा रहेगी कि वह गरमगरम खाना बना कर खिलाए.

इस समस्या का समाधान कहीं न कहीं एकदूसरे का दर्द सम झने में छिपा हुआ है. सास को सम झना पड़ेगा कि कभी न कभी बहू को भी काम से छुट्टी मिलनी चाहिए. उधर बहू को भी सास की उम्र और दिनभर की थकान महसूस करनी पड़ेगी.

जहां तक घर के कामों की बात है तो सैटरडे, संडे को सास घर के कामों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर बहू को आराम दे सकती हैं. वे बहू को बेटे के साथ कहीं घूमने भेज सकती हैं या फिर बाहर से खाना और्डर कर बहू को स्पैशल फील करवा सकती हैं. इस तरह एकदूसरे की भावनाएं सम झ कर ही समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.

फैशन का चक्कर

कामकाजी सास की बहू को कहीं न कहीं यह जरूर खटकता है कि उस के मुकाबले सास ज्यादा फैशन कर रही हैं. वह खुद तो सुबह से शाम तक घरगृहस्थी में फंसी पड़ी है और सास रोज नए कपड़े पहन और बनसंवर कर बाहर जा रही हैं. औफिस जाने वाली महिलाओं का सर्कल भी बड़ा हो जाता है. सास की सहेलियां और पौपुलैरिटी बहू के अंदर एक चुभन पैदा कर सकती है.

ऐसे में सास का कर्तव्य बनता है कि फैशन के मामले में व बहू को साथ ले कर चलें. बात कपड़ों की हो या मेकअप प्रोडक्ट्स की, सैलून या फिर किट्टी पार्टी में जाने की, बहू के साथ टीमअप करने से सास की खुशी और लोकप्रियता बढ़ेगी और बहू भी खुशी महसूस करेगी.

वैसे भी आजकल महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू, टिपटौप और स्मार्ट बन कर रहना समय की मांग है. हर पति यही चाहता है कि जब वह घर लौटे तो पत्नी का मुसकराता चेहरा सामने मिले. पत्नी स्मार्ट और खूबसूरत होगी तो घर का माहौल भी खुशनुमा बना रहेगा.

प्रोत्साहन जरूरी

यह आवश्यक नहीं कि कोई महिला तभी कामकाजी कहलाती है जब वह औफिस जाती है. आजकल घर से काम करने के भी बहुत सारे औप्शन हैं. आप की बहू घर से काम कर सकती है. वह किसी औफिस से जुड़ सकती है या फिर अपना काम कर सकती है. हर इंसान को प्रकृति ने कोई न कोई हुनर जरूर दिया है. जरूरत है उसे पहचानने की.

यदि आप की बहू के पास भी कोई हुनर है तो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें. वह कई तरह के काम कर सकती है जैसे पेंटिंग, डांस या म्यूजिक टीचर, राइटर, इवेंट मैनेजर, फोटोग्राफर, ट्रांसलेटर, कुकिंग ऐक्सपर्ट या फिर कुछ और. इन के जरीए एक महिला अच्छीखासी कमाई भी कर सकती है और समाज में रुतबा भी हासिल कर सकती है.

घर में सास का रुतबा

पैसे के साथ इंसान का रुतबा बढ़ता है. बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी. जाहिर है जब पत्नी घरेलू हो और मां कमाऊ तो पति भी अपनी मां को ही ज्यादा भाव देगा. घर के हर फैसले पर मां की रजामंदी मांगी जाएगी. पत्नी को कोने में कर दिया जाएगा. इस से युवा पत्नी का कुढ़ना स्वाभाविक है.

ऐसे में पति को चाहिए कि वह मां के साथसाथ पत्नी को भी महत्त्व दे. पत्नी युवा है, नई सोच और बेहतर सम झ वाली है. वैसे भी पतिपत्नी गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. पत्नी को इग्नोर कर वह अपना ही नुकसान करेगा.

उधर मां भी उम्रदराज हैं और वर्किंग हैं. उन के पास अनुभवों की कमी नहीं. ऐसे में मां के विचारों का सम्मान करना भी उस का दायित्व है.

जरूरत है दोनों को आपस में तालमेल बैठाने की. घर की खुशहाली में घर के सभी सदस्यों की भूमिका होती है, इस बात को सम झ कर समस्या को जड़ से ही समाप्त किया जा सकता है.

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आज की सास बहू, मिले सुर मेरा तुम्हारा

संडे था. फुटबौल का मैच चल रहा था. विपिन टीवी पर नजरें जमाए बैठा था. रिया ने कई बार कोशिश की कि विपिन टीवी छोड़ कर उस के साथ मूवी देखने चले पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था.

बीचबीच में इतना कह देता था, ‘‘मैच खत्म होने दो, फिर बात करता हूं.’’ वहीं पास बैठी पत्रिका पढ़ती मालती बेटेबहू के बीच चलती बातें सुन चुपचाप मुसकरा रही थीं. सुधीश यानी उन के पति भी मैच देखने में व्यस्त थे. मालती को अपना अनुभव याद आ गया. सुधीश भी टीवी पर मैच देखना ही पसंद करते थे. मालती को भी मूवीज देखने का बहुत शौक था. बड़ी जिद कर के वे सुधीश को ले जाती थीं पर अच्छी से अच्छी फिल्म को भी देख कर वे जिस तरह की प्रतिक्रिया देते थे, उसे देख कर मालती हमेशा पछताती थीं कि क्यों ले आई इन्हें.

मालती ने चुपचाप रिया को अंदर चलने का इशारा किया तो रिया चौंकी. फिर मालती के पीछेपीछे वह उन के बैडरूम में जा पहुंची. पूछा, ‘‘मम्मीजी, क्या हुआ?’’

‘‘कौन सी मूवी देखनी है तुम्हें?’’

‘‘सुलतान.’’

मालती हंस पड़ीं, ‘‘टिकट मिल जाएंगे?’’

‘‘देखना पड़ेगा जा कर, पर विपिन पहले हिलें तो.’’

‘‘उसे छोड़ो, वह नहीं हिलेगा. तुम तैयार हो जाओ.’’

‘‘मैं अकेली?’’

‘‘नहीं भई, मुझे भी तो देखनी है.’’

‘‘क्या?’’ हैरान हुई रिया.

‘‘और क्या भई, मुझे भी बहुत शौक है. इन बापबेटे को मैच छुड़वा कर जबरदस्ती मूवी ले गए तो वहां भी ये दोनों ऐंजौय थोड़े ही करेंगे. हमारा भी उत्साह कम कर देंगे. चलो, निकलती हैं, मूवी देखने और फिर डिनर कर के ही लौटेंगी.’’

रिया मालती के गले लग गई. खुश होते हुए बोली, ‘‘थैंक्यू मम्मीजी, कितनी बोर हो रही थी मैं. संडे को पूरा दिन विपिन टीवी से चिपके रहते हैं.’’

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दोनों सासबहू तैयार हो गईं.

सुधीश और विपिन ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हैं?’’

‘‘मूवी देखने.’’

दोनों को करंट सा लगा. सुधीश ने कहा, ‘‘अकेले?’’

मालती हंसीं, ‘‘अकेले कहां, बहू साथ है. चलो, बाय. खाना रखा है. तुम दोनों का. हम डिनर बाहर करेंगी,’’ कह कर मालती रिया के साथ जल्दी से निकल गईं.

सासबहू ने 2 सहेलियों की तरह ‘सुलतान’ फिल्म का आनंद उठाया. कभी सलमान की बौडी की बात करतीं, तो कभी किसी सीन पर खुल कर ठहाके लगातीं. खूब अच्छे मूड में मूवी देख कर दोनों ने बढि़या डिनर किया. रात 10 बजे दोनों खिलीखिली घर पहुंचीं. बापबेटे का मैच खत्म हो चुका था. दोनों बोर हो रहे थे.

इस के बाद तो मालती और रिया के बीच सासबहू का रिश्ता 2 सहेलियों में बदल गया. जब भी सुधीश और विपिन कोई प्रोग्राम बनाने में जरा भी आनाकानी करते, दोनों दोबारा पूछती भी नहीं. शौपिंग पर भी साथ जाने लगीं, क्योंकि दोनों पुरुष लेडीज शौपिंग में बोर होते थे. दोनों को अब किसी फ्रैंड की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. रिया भी औफिस जाती थी. छुट्टी वाले दिन वह बाहर जाना चाहती, तो विपिन और सुधीश मैच देखना चाहते, दोनों फुटबौल के दीवाने थे. रिपीट मैच भी शौक से देखते थे. उन्हें मूवीज, शौपिंग का शौक था ही नहीं. रिया और विपिन में अब इस बात पर कोई मूड भी नहीं खराब करता था. चारों अपनाअपना शौक पूरा कर रहे थे.

एकदूसरे के साथ समय बिताने से एकदूसरे के स्वभाव, पसंदनापसंद जानने के बाद दोनों एकदूसरे की हर बात का ध्यान रखती थीं.

अब तो हालत यह हो गई थी कि विपिन कभी फ्री होता तो रिया कह देती, ‘‘तुम रहने दो, मम्मीजी के साथ चली जाऊंगी. तुम तो शौप के बाहर फोन में बिजी हो जाते हो. बोरियत होती है.’’

विपिन हैरान रह जाता था. सुधीश के साथ भी यही होने लगा था. रिया फ्री होती तो मालती रिया की ही कंपनी पसंद करतीं. सासबहू की बौंडिंग देख कर पितापुत्र हैरान रह जाते थे.

कई बार कह भी देते थे, ‘‘तुम दोनों हमें भूल ही गईं.’’

घर का माहौल हलकाफुलका, खुशनुमा रहता.

हर घर में सासबहू 2 सहेलियां बन जाएं तो जीने का मजा ही कुछ और होता है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे की भावनाओं का आदर करते हुए एकदूसरे के सुखदुख, पसंदनापसंद को दिल से महसूस करना होगा. जरूरी नहीं है कि पतिपत्नी के शौक एकजैसे हों. दोनों का अपना मन मारना ठीक नहीं होगा. अगर पितापुत्र के शौक सासबहू से नहीं मिलते और सासबहू की पसंदनापसंद आपस में मिलती है तो क्यों न अपने मन के अनुसार जीने के लिए एकदूसरे का साथ दे कर घर का माहौल तनावमुक्त रखा जाए.

एक और उदाहरण देखते हैं. एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मी व पलीबढ़ी सुमन जब एक मुसलिम लड़के समीर से अंतर्जातीय विवाह कर ससुराल पहुंची, तो सास आबिदा बेगम ने यह पता चलने पर कि सुमन शाकाहारी है, केवल शाकाहारी खाना बनातीं.

सुमन समीर के साथ लखनऊ में रहती थी. वह जितने भी दिन ससुराल कानपुर रहती, उतने दिन सिर्फ शाकाहारी खाना बनता. इस बात ने सुमन के मन में सासूमां के लिए प्यार और आदर का ऐसा बीज बोया कि समय के साथ सुमन के दिल में उस की इतनी गहरी जड़ें मजबूत हुईं कि दुनिया 2 अलगअलग माहौल में पलीबढ़ी सासबहू के बीच बैठे तालमेल को देख वाहवाह कर उठी.

आबिदा बेगम जो बहुत शांत और गंभीर सी दिखती थीं जब खुशमिजाज सुमन के साथ हंसतीबोलती, खिलखिलाती बाहर जातीं, तो उन के पति और बेटा हैरान हो जाते.

आज की अधिकतर सासें पुरानी फिल्मों की ललिता पवार जैसी सासें नहीं हैं. वे भी बहू के साथ हंसीखुशी से जीना चाहती हैं, जीवन में छूटे शौक को, अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहती हैं, वे बहू का प्यार भरा साथ पा कर जी उठती हैं.

आज की अधिकांश बहुएं भी पढ़ीलिखी, समझदार हैं. वे अपने कर्तव्यों, अधिकारों के प्रति सजग हैं. वे कामकाजी हैं. छुट्टी वाले दिन रिलैक्स होना चाहती हैं. सास का प्यार भरा साथ मिल जाए तो वे भी उत्साह से भर उठती हैं.

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आज की सासबहुएं दोनों ही जानती हैं कि हंसीखुशी एकसाथ मिल कर ही जीवन का आनंद लिया जा सकता है, लड़झगड़ कर अपना और दूसरों का जीना मुश्किल करने से कोई फायदा नहीं है. इस से दोनों पक्षों के लिए मुश्किलें ही बढ़ेंगी.

10 चीजें सासबहू साथसाथ कर सकती हैं:

1.     ब्यूटीपार्लर में जाना.

2.     बचाए पैसे को ढंग से खर्चना.

3.     घर की डैकोरेशन में साथ देना.

4.     अलग घरों में रह रही हैं तो एकदूसरे के साथ रात बिताना, बिना पतिबच्चों के.

5.     एक के मेहमान आएं तो दूसरी उन का आवभगत करना.

6.     एक ही किट्टी पार्टी में जाना.

7.     कई बार एक ही रंग की पोशाक पहनना.

8.     दोनों का अपनी सहेलियों को एक ही दिन बुलाना, जिस में कई सासें, बहुएं और सहेलियां हों.

9.     पेंटिंग, कुकिंग क्लासें जौइन करना.

10.   पति, ससुर को साथ मिल कर मजाक में तंग करना.

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Mother’s Day Special: सास-बहू की स्मार्ट जोड़ी

शादी हमें एक जोड़े में बांधती है – पति पत्नी की जोड़ी में. लेकिन एक और जोड़ी है जिसमें शादी के कारण हम बंधते हैं और वह है सास बहू की जोड़ी! एक समय था जब पर्दे पर भी सास का किरदार निभाने के लिए किसी निर्दई इमेज वाली एक्ट्रेस जैसे ललिता पवार या शशि कला को चुना जाता था. जिंदगी हो या पर्दा – सास बहू का रिश्ता कड़वाहट भरा होता था. लेकिन यह बीते जमाने की बात होने लगी है. आज के दौर में जहां बहुएं पढ़ी लिखी, नौकरी पेशा, फैशन परस्त और हर लिहाज से स्मार्ट होने लगी हैं वही सासें भी पीछे नहीं रही. आज की सास ने अपनी पुरानी छवि उतार फेंकी है क्योंकि वह अच्छे से जानती है कि बेटे के साथ आजीवन मधुर संबंध बनाए रखने के लिए बहू से अच्छे संबंध रखना बेहद जरूरी है.

स्मार्ट सास और बहू वही है जो एक दूसरे की अहमियत समझती है. बहू जानती है कि सास से अनबन के कारण उसकी गृहस्थी में कलेश घुलेगा और रोजमर्रा का जीवन चलाना कठिन होगा, वहीं सास समझती है कि बहू से बना कर रखा तो पूरे परिवार का सुख मिलता रहेगा और बुढ़ापा भी चैन से गुजरेगा. और फिर जब संबंध इतने निकट का हो तो क्यों ना आपसी मेलजोल और माधुर्य से अपने साथ सामने वाले के जीवन को भी सुखमय बना लिया जाए. कितना अच्छा हो कि बहू जब सास को ‘मम्मी ‘ पुकारे तो वह उसके हृदय से निकले; कि जब सास ‘बेटा ‘ कहे तो उसका तात्पर्य अपने बेटे से नहीं वरन बहू से हो! ऐसा जरूर हो सकता है पर अपने आप नहीं. इसके लिए चाहिए थोड़ी स्मार्टनेस जो दोनों पलड़ों में होनी आवश्यक है. समझदार हैं वे सास बहू जो इस अनमोल रिश्ते की कीमत और गरिमा को पहचानती हैं और देर होने से पहले सही कदम उठा लेते हैं.

एनी चेपमेन, अमेरिकी संगीतकार तथा लोकप्रिय वक्ता, जो स्वयं बहू रही और अब सास बन चुकी हैं, ने कई पुस्तके लिखी, जैसे – ‘ द मदर इन लॉ डांस ‘ , ‘ ओवरकमिंग नेगेटिव इमोशंस ‘ , ’10 वेज़ टू प्रिपेयर डॉटर फॉर लाइफ ‘ आदि. आज के समय में सास बहू के रिश्ते को सुनहरा बनाने के लिए कुछ नियम बताती हैं जो हैं कि न तो सास को बहू की तुलना अपनी बेटी से करनी चाहिए और ना ही बहू को सास की तुलना अपनी मां से करनी चाहिए. साथ ही एनी कहती हैं कि स्मार्ट वो सास और बहू हैं जो एक दूसरे के व्यक्तित्व को पहचान लें. यदि सास या बहु कुछ हठीले स्वभाव की है तो दोनों को चाहिए वे परस्पर नम्रता बनाए रखें लेकिन साथ ही थोड़ी दूरी भी रखें.

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जैसे बहू नई वैसे सास भी

जैसे बहु नई नवेली होती है ठीक वैसे ही सास के लिए भी यह पहला अनुभव होता है. उसे भी नए रिश्ते में ढलना वैसे ही सीखना होता है जैसे बहू सीखती है. इसलिए दोनों को पर्याप्त समयावधि मिलनी चाहिए. हथेली पर सरसों नहीं उगती. इस रिश्ते को सुदृढ़ बनाने के लिए समय और स्पेस की जरूरत होती है. स्मार्ट वो सास बहू हैं जो इस बात को समझते हुए एक दूसरे को पूरा समय और स्पेस दें.

जब वरिष्ठ लेखिका सुधा जुगरान की इकलौती बहू आई तब उन्होंने इस बात को सहर्ष स्वीकारा कि अब उनके बेटे के जीवन और उनके घर में एक अन्य स्त्री का प्रवेश हो रहा है. आम सासु मां की तरह इन्होंने कभी अपनी बहू चारू को खाने, पहनने व सोने को लेकर कोई निर्देश नहीं दिए क्योंकि इनका मानना है कि यह तीनों चीजें किसी भी इंसान की नैसर्गिक जरूरत है और इच्छाएं हैं. इन बातों पर बंधन किसी भी लड़की के जीवन का संतुलन तो डगमगाता ही है अपितु सास बहू के रिश्ते में भी कड़वाहट ला देता है. बेटे के विवाह के बाद सुधा जी ने समझ लिया कि अब उनके लिए केवल उनकी बहू ही हर तरह से महत्वपूर्ण है – उसी की तारीफ, उसी की पसंद, उसी के क्रियाकलाप. उन्होंने सास बहू के रिश्ते को मीठा बनाने का फार्मूला जान लिया था – बेटा तो अपना है ही, सींचना तो उस पौधे को पड़ता है जिसे नया-नया रोपा गया है. शुरू के सालों में इनकी इन्हीं कोशिशों का परिणाम है कि शादी के 6 साल बाद भी दोनों के बीच छोटी-मोटी गलतफहमियां तक सिर नहीं उठा पातीं. वहीं चारु ने भी खुद को बिल्कुल सहजता से नए वातावरण में ढाल लिया. आज वह अपनी सासू मां के साथ शॉपिंग जाती है, दोनों एक जैसी पोशाकें पहनती हैं, गप्पें लगाती हैं ताकि प्यार में यह रिश्ता मां बेटी जैसा, समझदारी में सहेलियों जैसा, और मान सम्मान में सास बहू जैसा बन पाए. सुधा जी के शब्दों में, ” मेरा मानना है विचार बदलो और नजर बदलो, नजारे अपने आप बदल जाएंगे.”

शब्दों का खेल

याद रखिए, सास और बहू अलग परिवेशों से आती हैं, दोनों वयस्क हैं, आज तक की अपनी जिंदगी निश्चित ढंग से जीती आई हैं. शब्दों रिश्तों को पत्थर सा मजबूत भी बना सकते हैं और कांच सा तोड़ भी सकते हैं. सोच समझकर शब्दों का प्रयोग करें. जो भी बोलें, नाप तोल कर बोलें.कोशिश करें कि पहले आप दूसरे की भावनाएं समझें और बाद में मुंह खोले. याद रखें शब्द बाण एक बार कमान से निकल गए तो उनकी वापसी असंभव है, साथ ही, उनके द्वारा दिए घाव भरना भी बहुत मुश्किल. यदि चुप्पी से काम चल सके तो चुप रहे.

बने स्मार्ट बहू

जब बहू अपना घर परिवार, माता पिता, भाई बहन सब कुछ छोड़कर ससुराल आती है तब सास ही उसे प्यार और अपनेपन से दुलार कर ससुराल में मां की कमी महसूस नहीं होने देती. साथ ही बहु को उसके पति (अपने बेटे) के स्वभाव, आदतों, अच्छाइयों, बुराइयों तथा पसंद-नापसंद से परिचित करवाती है. साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों की आवश्यकताओं के बारे में भी समझाती है. नए घर के रीति-रिवाज, परंपराएं एवं रस्में भी बहू सास से ही सीखती है. तो बहू को चाहिए कि अपनी स्मार्टनेस से इस महत्वपूर्ण रिश्ते को मधुर बनाए.

– बहुओं को चाहिए कि वह सास को बुजुर्ग होने के साथ अनुभवी भी माने. अपनी सास से उनके जमाने के मजेदार किस्से सुने – बचपन के, शादी के बाद के, बच्चों को पालते समय संबंधित अनुभव आदि. जब एक सास अपनी बीती हुई जिंदगी के अनुभव अपनी नई बहू से बांटेगी तो उसके मन में बहू के प्रति लगाव बढ़ना स्वाभाविक है जिससे उन दोनों का रिश्ता और सुदृढ़ हो जाएगा.

– बहू अपनी सास से सुझाव लेने में हिचकिचाए नहीं. हो सकता है कि आप अपनी सास के हर सुझाव से इत्तफाक ना रखती हो, फिर भी उनके अनुभव को देखते हुए उनसे सुझाव लेने में कोई हर्ज नहीं है. लेकिन कभी भी उनके दिए सुझावों को व्यक्तिगत लेते हुए उन पर बहस ना करें. सुझाव मानना आपकी इच्छा पर निर्भर करता है, पसंद आए तो माने वरना सास को अपनी सोच से अवगत करा दें.

– रिश्तो में स्पेस देना भी बहुत जरूरी है. आपका पति जो अब तक केवल एक बेटा था और जो अभी तक मां के अनुसार ही चल रहा था, शादी के बाद उसके व्यवहार में परिवर्तन आना स्वाभाविक है. इससे कभी-कभी मां के मन में असुरक्षा की भावना आने लगती है और यह चिढ़ बात- बेबात टोकाटाकी या तानों के रूप में बाहर आती है. यहां एक स्मार्ट बहू का कर्तव्य है कि वह मां बेटे के बीच दरार की वजह ना बने और मां बेटे की आपसी बातचीत का बुरा ना माने, साथ ही हस्तक्षेप ना करे.

नए घर की जिम्मेदारियों को और परिवार के रखरखाव के विषय में जितना बेहतर सास समझा सकती है उतना कोई भी नहीं. नए परिवार में बैलेंस बनाने के लिए सास से अपना रिश्ता एक दूसरे को सुविधा देने की भावना का बनाने की कोशिश कीजिए.

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बने स्मार्ट सास

स्मार्ट सास वह है जो यह बात समझ जाए कि अब नई बहू भी उसके परिवार का हिस्सा बन चुकी है. घर का माहौल सरल रखें ताकि यदि बहू कुछ कहना चाहे तो बेझिझक अपनी बात रख सके. सभी की अपनी कुछ आदतें होती है जिसे हम हमेशा फॉलो करना चाहते हैं. आखिर बहू 25 – 26 वर्ष की आयु में घर में प्रवेश करती है. अगर उसकी कुछ ऐसी आदतें हैं जो सास को पसंद नहीं आ रही तब भी जबरन दबाव डालकर न रोकें. उसे अपनी खास इच्छा या शौक पूरे करने दें तभी वह सब को अपना समझ पाएगी.

– सास होशियारी से बहू की छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करके उसे बेटी की तरह प्यार दुलार दे ताकि उसे मां की कमी महसूस ना हो. तब आपका घर, घर नहीं स्वर्ग बन जाएगा.

– बहू को खुले दिल से अपने परिवार का हिस्सा बनाएं. सास बहू के संबंधों का प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है. यदि सास बहू के बीच संबंध मधुर होते हैं तो घर में व्यर्थ का तनाव नहीं पनपता तथा घर के सभी सदस्य प्रसन्नचित्त रहते हैं.

– सास को चाहिए कि जिस लाड प्यार पर अब तक केवल उसके बेटे का अधिकार था, अब वही प्यार वह बहू बेटे को साथ में बांटे.

टोने-टोटके की दुनिया

सास बहू की नोक झोंक एक ऐसा विषय है जो सदियों से चला आ रहा है. अमूमन हर घर में कभी ना कभी कोई समस्या उभर ही आती है. इसलिए इस विषय पर भी पंडित और धार्मिक दुकानदार अपनी रोटी खूब चालाकी से सेंकने के भरपूर प्रयास करते रहते हैं.

– राजस्थान के वैदिक अनुष्ठान संस्थान के आचार्य अजय द्विवेदी कहते हैं कि मंत्र “ॐ क्रां क्रीं क्रों” का 108 बार जाप करें. सास अपने बेडरूम में मोर पंख रखें जो कि प्रेम और वात्सल्य का प्रतीक होता है. साथ ही बहू पूर्णिमा का व्रत करें. सास और बहू दिन के दोनों पहरों में अपने इष्टदेव का ध्यान करें, उन्हें नैवेद्य अर्पण करें ताकि सास बहू में नकारात्मकता समाप्त हो.

– वेबदुनिया नामक ऑनलाइन चैनल बताता है कि सास व बहू में आपसी संबंध कटु होने पर बहू चांदी का चौकोर टुकड़ा अपने पास रखें. साथ ही शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से हल्दी या केसर की बिंदी माथे पर लगाना शुरू करें. गले में चांदी की चेन धारण करें. और सबसे महत्वपूर्ण बात – किसी से भी कोई सफेद वस्तु ना लें.

– इसी का ठीक उलटा उपाय एस्ट्रो मां त्रिशला बताती हैं कि हर सोमवार को बहू अपनी सास को कोई सफेद चीज खिलाए. साथ ही कुछ सरल उपाय जैसे सास बहू दोनों की फोटो फ्रेम करवाकर उत्तर में लगाएं. और सास हर महीने आने वाली दोनों चौथ पर बहू को सिंदूर का टीका करते हुए “ॐ गंग गणपतए नमः” का जाप करें. बहू को थोड़ा सा गुण और एक मुट्ठी गेहूं किसी चौराहे पर रखते हुए प्रार्थना करनी है कि हे प्रभु हमारे रिश्ते को मां बेटी सा बना दीजिए.

– डॉ आर बी धवन गुरु जी कहते हैं कि 5.5 रत्ती का चंद्रकांत मणि पत्थर लेकर चांदी में बनवाकर बहू को छोटी उंगली में और सास बीच वाली उंगली में सोमवार के दिन धारण करने से गृह क्लेश दूर होगा.

– यूट्यूब पर ‘आपके सितारे’ नाम से अपना चैनल चला रहे वैभव नाथ शर्मा के अनुसार सास बहू के क्लेश को दूर करने के लिए गाय के गोबर का दीपक बनाकर सुखा लें. फिर उसमें तिल का तेल और एक डली गुड़ डालकर दीपक जलाएं जो रात को घर के मुख्य द्वार के मध्य में रखें. मंगलवार की रात को यह करने से सास बहू की दुर्भावना दूर होगी.

ऊपर दिए टोटके तो सिर्फ ट्रेलर है; पिक्चर अभी बाकी है! टोने टोटकों की भरमार इसलिए है क्योंकि लोग अपनी समझदारी पर विश्वास करने की जगह इन अंधविश्वासों की दुनिया में डूबना पसंद करते हैं. पर आप ऐसा कतई न करें. बातों के चक्कर में ना आए, ना ही किसी ढोंगी बाबा – मां ही बातों में फंस कर अपना जीवन दूभर करें. समझदारी से काम लें. अपने आसपास की सास बहू की जोड़ियों को देखें और उनसे सीखने का प्रयास करें.

रीयल लाइफ उदाहरण

दिल्ली की मालती अरोड़ा के पति की मृत्यु बहुत कम उम्र में हो गई थी. उन्होंने नौकरी की, अपने बच्चे पाले. फिर उनकी बहू आ गई जोकि आज के जमाने की थी. उसने इच्छा जताई कि उसकी सास भी उसके साथ मॉल जाएं, शॉपिंग करें और आज के परिधान जैसे जींस और स्कर्ट पहने. मालती जी ने पहले कभी यह सब नहीं किया था. उनका जीवन तो बस जिम्मेदारियों की भेंट चढ़ा रहा था. लेकिन उन्होंने अपनी बहू का पूरा साथ दिया. उन्होंने अपने संकोच को दरकिनार कर जींस और लॉन्ग स्कर्ट पहनना शुरू कर दिया. बहू के दिल में जगह बनाने का यह स्वर्णिम अवसर उन्होंने दोनों हाथ से लपका. आज सब इस सास बहू की जोड़ी को देखकर हैरान हो जाते हैं. मालती जी की समझदारी ने उनके घर को एक मजबूत धागे से बांधे रखा है.

ग्वालियर की गौरी सक्सेना को हर दोपहर में थोड़ा सुस्ताने की आदत थी. जब उनकी बहू आई तो उसने दोपहर में दोनों के पतियों के ऑफिस चले जाने के बाद कभी शॉपिंग तो कभी मूवी का प्रोग्राम बनाना शुरू किया. गौरी ने अपनी आदत को टालते हुए उसका साथ दिया. जैसा प्रोग्राम बनता, वह वैसे ही चल पड़ते. एक बार जब गौरी की बहन मिलने आई और उन्होंने बताया कि तुम्हारी सास बिना दोपहर में सुस्ताए रह नहीं पातीं तब बहू के मन में सास के प्रति आदर भाव और बढ़ गया.

जयपुर की संध्या की जब शादी हुई तब वो एक संयुक्त परिवार का हिस्सा बनी. ऐसे में सबका दिल जीतने के लिए उसने अपनी सास का दामन थामा. जैसाजैसा सास बतातीं, वो वैसा ही करती. धीरे-धीरे पूरा परिवार संध्या का मुरीद हो गया. यहां तक कि शाकाहारी होते हुए भी संध्या ने अपने नए परिवार के स्वादानुसार चिकन भी पकाना सीखा. संसार त्यागने तक उसकी सास केवल उसी के पास रहना पसंद करती रहीं.

कुछ ऐसे टिप्स भी होते हैं जो सास बहू के रिश्ते को और भी मजबूत और प्यारा बना सकते हैं बशर्ते इन्हें सास और बहू साथ में फॉलो करें –

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शेयर करें अपने दिल की बातें: शादी के बाद जहां बहू को नए घर में रहने के रीति रिवाज और रंग ढंग सीखने होते हैं वही सास के मन में भी यह दुविधा होती है कि क्या बहू उनके परिवार के अनुसार खुद को ढाल पाएगी. ऐसे में बेहतर ऑप्शन है कि आप एक दूसरे के साथ अपने मन की बात शेयर करें. इससे आप दोनों को एक दूसरे के विचारों का पता चलेगा और रिश्ता निभाने में आसानी होगी.

अपने विचार एक दूसरे पर न थोपे : यह बात केवल न केवल सास बल्कि बहू को भी समझनी चाहिए कि हर किसी की सोच और विचार अलग होते हैं. अपने विचार दूसरों पर थोपने से उन्हें गुस्सा आना वाजिब है. अगर आप अपने सास बहू के रिश्ते में मिठास रखना चाहते हैं तो एक दूसरे के विचारों का आदर करें. इससे आप दोनों के बीच प्यार बढ़ेगा और रिश्ता मजबूत होगा.

एक दूसरे को दे भरपूर समय : अपनी नई शादी की खुमारी में बहू केवल अपने पति या फिर मायके वालों को ही टाइम दे, यह उचित नहीं. वहीं सास भी अपनी बहू के साथ बैठकर कुछ बातें शेयर करें. एक दूसरे के साथ टाइम स्पेंड करने से न केवल आपको एक दूसरे को समझने का मौका मिलेगा बल्कि प्यार भी बढ़ेगा.

व्यवसाय के क्षेत्र में भी साथ सास बहू

रुचि झा एक इन्वेस्टमेंट बैंकर थीं. एक बार छुट्टियों के दौरान वह अपने गांव पहुंची. रुचि बताती है “उस समय मिथिला पेंटिंग से जुड़े कुछ राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों से मिलने का संयोग बना. उन पेंटिंग्स को देखकर मुझे महसूस हुआ कि मैं इस कला को दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाना चाहती हूं.” रुचि ने कॉर्पोरेट दुनिया से विदा लेने की सोची तो खुद का काम शुरू करने के लिए उन्हें किसी साथी की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि इस काम के लिए उनकी सास रेणुका कुमारी आदर्श साझेदार थीं. दोनों ने मिलकर ‘आइमिथिला हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम प्राइवेट लिमिटेड’ की शुरुआत की तथा अपने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ‘आईमिथिला ‘ से उद्यमिता के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई. साथ ही स्थानीय कलाकारों को भी अपना हुनर दिखाने के लिए एक प्लेटफार्म दिया.

रुचि नोएडा और दिल्ली से मार्केटिंग का काम संभालती हैं जबकि उनकी सास, जोकि वनस्पति विज्ञान प्रोफेसर के रूप में काम कर चुकी हैं, दरभंगा जो मधुबनी आर्ट के लिए मशहूर है, से प्रोडक्शन यूनिट में कलाकारों के साथ समन्वय स्थापित करती हैं. इस सास बहू की जोड़ी ने सुपर स्टार्टअप का अवार्ड भी जीता है.

सास बहू का रिश्ता जितना प्यारा होता है उतना ही नाजुक भी. पूरे परिवार के प्यार और सामंजस्य की धुरी इसी रिश्ते पर टिकी होती है. थोड़ी सी समझदारी से इस रिश्ते को मीठा और मजबूत बनाया जा सकता है. आवश्यकता है तो बस सास और बहू दोनों को इस रिश्ते को निभाने में स्मार्टनेस अपनाने की.

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Mother’s Day 2020: काश ! तुम भी मुझे अपनी मां की तरह चाहो, सास- बहू का रिश्ता मुझे अच्छा नहीं लगता

प्रिया और आर्यन ने दो महीने पहले शादी कर ली थी. यह एक प्रेम विवाह था. उनके माता-पिता इस शादी के खिलाफ थे लेकिन आर्यन प्रिया  को सच्चे दिल से प्यार करता  था ,उसने  हार नहीं मानी. उसने प्रिया के माता-पिता और अपनी माँ को  सहमत करने के सभी प्रयास किए . अंत में किसी तरह दोनों के परिवार इस शादी के लिए राज़ी हो गए.

दोनों सुखी जीवन बिता रहे थे. एक  दोपहर, प्रिया रसोई में काम कर रही थी, जबकि आर्यन अपने कमरे में सो रहा था. उसने अपना काम पूरा कर लिया और अपनी सास को लंच के लिए बुलाने चली गई. उसने दरवाजा खोला, और कई फोटो एलबमों के बीच, उसने अपनी सास को  बिस्तर पर बैठा पाया.

वह अपनी सास के पास जाकर  बिस्तर पर बैठ गई. हालाँकि उनके बीच कुछ भी नकारात्मक नहीं था, लेकिन दोनों के रिश्ते में बर्फ की एक परत थी, जो  उन्हें एक-दूसरे के प्रति अनुकूल होने से रोक रही थी.

प्रिया ने अपनी सास से कहा , “क्या कर रहे हो माँ?”

उसकी सास ने कहा , “अरे प्रिया, कुछ नहीं, बस पुरानी तस्वीरों को देख रही  थी”.

प्रिया ने कहा , “क्या मैं भी उन्हें देख सकती हूँ?”

उसकी सास ने मुस्कुराते हुए कहा , “ज़रूर”

वे दोनों ही पुरानी तस्वीरों  को  देखने लगी . प्रिया की सास  प्रिया को उन सभी यादों के बारे में बता रही थी जो  उन तस्वीरों  के साथ संबंधित थीं. उन्होंने प्रिया को आर्यन  की बचपन की वो तस्वीरें दिखाईं, जब वह पैदा हुआ था, जब वह एक फ्रॉक पहने हुए था, जब वह नहा रहा था. प्रिया आर्यन की बचपन की तस्वीरों को  बेहद प्यार से देख रही थी. कुछ देर बाद प्रिया ने अपनी साससे कहा, “माँ, क्या मैं कुछ पूछ सकती हूँ?”

उसकी सासने कहा,”हाँ प्रिया पूछो”.

प्रिया ने कहा , ” माँ क्या आप मुझसे खुश हैं?”

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प्रिया की सासने कहा , “बेशक, तुमने  ऐसा क्यों पूछा? क्या तुम इस  घर में सहज नहीं हो ? क्या आर्यन ने कुछ कहा? ”

प्रिया ने कहा,” नहीं माँ  ,मैं बहूत खुश हूँ. आर्यन मुझे  बहूत प्यार करता है. माँ बात सिर्फ इतनी है की आप दिन के अधिकांश समय कमरे के अंदर ही रहते हो , ऐसा लगता है कि आपने खुद को सीमित कर लिया है. आप हम लोगों से ज्यादा बात भी नहीं करते हो. क्या आप मुझसे खुश नहीं हो? ”

प्रिया की सासने  निगाहें चुराते हुए कहा , “नहीं, ऐसा कुछ नहीं है.”

प्रिया ने अपनी सास का हाथ अपने हाथ में लिया.उसने महसूस किया की उस  साठ वर्षीय महिला का हाथ नरम और मोटा था. उसके हाथों का खुरदरापन उस कठिन जीवन का दर्पण था जिसे उस बूढ़ी औरत ने देखा है, और झुर्रियों की कोमलता उसकी उम्र बढ़ने की याद दिलाती थी.

प्रिया भावुक हो गयी उसने कहा ,”सच बताओ न माँ , प्लीज.”

प्रिया की सासने कहा ,“आज कल की पीढ़ी परिवारों के साथ रहना पसंद नहीं करती है, उन्हें एकांत चाहिए होता है और जो कुछ हम  पुराने लोग कहते हैं वो उन्हें हमारा  हस्तक्षेप लगता  हैं.मेरी दोनों बेटे पहले से ही शादीशुदा हैं, और उन्होंने मुझे छोड़ दिया. अब मेरे पास केवल आर्यन है, और मैं उसे इस उम्र में नहीं खो सकती.

प्रिया ने कहा , “आप आर्यन को क्यों खोयेंगी ?”

प्रिया की सासने कहा, “हर कोई मुझे आर्यन की शादी से पहले कह रहा था की आर्यन को उसकी पसंद की लड़की मिल रही है, और अब वह अपनी पत्नी और फिर बच्चों के साथ व्यस्त हो जाएगा.

मैं यही सोच के डर गयी थी की तुम लोगों का अपना जीवन जीने का तरीका है और अगर मैं कुछ भी कहूँगी  तो तुम भी  मुझे अकेला छोड़कर चले जाओगे , इसलिए मैंने सोचा कि मै तुम लोगों की लाइफ में ज्यादा disturbe न करू और तुम लोगों को अपना जीवन जीने दूं .इसलिए ही मै ज्यादा वक़्त अपने कमरे में ही रहती हूँ ताकि तुम्हे  एकांत मिले. कम से कम इस तरह से तुम  लोग मुझे अकेले छोड़कर तो कहीं नहीं जाओगे  ”

यह सुनकर प्रिया की आँखें गीली हो गईं और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे.

उसको वो वक़्त याद आया जब  उसकी  दोस्तों ने सास-बहू के रिश्ते के बारे  में चेतावनी दी थी, लेकिन यह औरत  जो उसके सामने बैठी थी वो समाज की छवि से बहूत अलग थी.

वह बुरी नहीं थी, वह सिर्फ एक बूढ़ी औरत थी, जो एक माँ थी, जो सिर्फ अपने बच्चों का साथ ,उनका प्यार, देखभाल और अपने प्रति उनका  सम्मान चाहती थी.

प्रिया ने अपनी सास का हाथ अपने हाथ में लिया और रोते हुए कहा,” माँ  अब आपके दो बच्चे हैं, पहला आर्यन और दूसरी मै . मैं आपकी  बेटी हूँ, मैं आपको  आर्यन  से अधिक प्यार करूंगी, जब भी आपको मेरी आवश्यकता होगी, मैं आपकी  देखभाल करूंगी, आप  मेरी माँ हो, जिस दिन मैंने आर्यन को स्वीकार किया था वह दिन था जब मैंने आपको अपनी माँ के रूप में स्वीकार किया था. अब आप अकेली नहीं हैं, आप मुझे स्वीकार करें या न करें  मैं आपकी बेटी हूं.

और एक चीज़ माँ , हम आपको कभी नहीं छोड़ेंगे. हम हमेशा यहां रहेंगे. आप हमारे बच्चों के साथ खेलेंगी और उन्हें कहानियाँ सुनाएंगी .आप पेड़ हैं और हम सिर्फ शाखाएं हैं. हमें आपकी आवश्यकता है.”

प्रिया की सास ने प्रिया की  ओर देखा. अब उन्हें  समझ में आया कि उनका बेटा इस लड़की से इतना प्यार क्यों करता है.उन्होंने प्रिया को अपने गले लगा लिया.

दरवाजे पर खड़े आर्यन ने चुपचाप अपनी आँखें पोंछ लीं. जिन दो औरतों से वह सबसे ज्यादा प्यार करता था , वे आखिरकार खुद को एक नए रिश्ते में बाँध रही थी.

दोस्तों, दरसअल हमारे समाज में एक सोच पत्थर की लकीर बन गयी है चाहे जितना भी सर पटक लो,लकीर नहीं मिटती. चूंकि लकीर को मिटाने की कोशिश भी पूरे दिल से नहीं की जाती . तो लकीर जस की तस रहती हैं और हां उसके आगे एक लंबी लकीर खींच दी जाती हैं, और फिर लंबी,लंबी और फिर लंबी.. ……. तो क्या आपको लगता हैं कि लकीर कभी मिट पाएगी??बिल्कुल भी नहीं क्योंकि वो छोटी लकीर तो अब भी वहीं हैं.

समाज की इस भ्रांति को तोड़ अगर सास और बहू  अपने रिश्ते के बीच कोई भी लकीर ना खिचने दें और ज्यों ही लकीर जैसी चीज समझ आए तो समझदारी से उसे मिटा दे तो ना रहेगी लकीर और ना रहेंगे लकीर के निशान.

जहां तक मुझे लगता है की सास और बहू का रिश्ता केवल प्यार और अधिकार के ऊपर आधारित होता है.दोनों ही एक ही व्यक्ति के प्रति अपने अधिकारों को लेकर कुछ ज्यादा ही सजग होती हैं.

उनकी यह अधिकारों की लड़ाई धीरे-धीरे तकरार में बदल जाती है. शादी के बाद अक्सर मां को लगता है की उनका बेटा बदल गया है और अब वह सिर्फ अपनी बीवी और उसके घर के बारे में सोच रहा है.

अगर गहराई से सोचे तो एक माँ जो पूरे लाड़-प्यार से अपने पुत्र को बड़ा करती है और उसका विवाह करती है वह  आखिर अपनी बहू से बैर क्यों रखेगी.दोस्तों यह कोई बैर नहीं है ,  यह सिर्फ उस माँ का अपने बेटे को खोने का डर है जो उस माँ के अन्दर असुरक्षा की भावना को पैदा करता है.

आप अपनी सास की असुरक्षा को दूर करें. उन्हें  एक अतिरिक्त के रूप में न देखें. वह परिवार की जड़ है. उन्होंने  अपने बेटे को जन्म दिया है और उसका पालन-पोषण किया है, और फिर उन्होंने  उसे आपको उपहार में दिया है. उनके  साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसे आप अपने भाई की पत्नी से अपनी माँ के लिए चाहती  हैं. वैसे भी किसी भी वृक्ष को उसकी जड़ से काट कर हम हरा-भरा नहीं रख सकते.

जैसे आप डांट-डपट और झगड़ने के बाद  अपनी मां के खिलाफ कोई शिकायत नहीं रखती  हैं, और आप सब कुछ भूल जाती हैं, वैसे ही आप अपनी सास  के लिए  कोई शिकायत न रखें.वह आपकी माँ जैसी   ही  है.

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यदि वो आपके लिए 10% भी अपने आप को ढालती  है, तो आप अपने आप को भाग्यशाली समझें, क्योंकि यदि आपको खुद को 25 की उम्र में बदलना मुश्किल लगता है, तो कल्पना करें कि 55 की उम्र में बदलना उनके  लिए कितना मुश्किल होगा.

आज के इस लेख के माध्यम से मेरी आप सभी औरतों से जो किसी न  किसी घर की बहू है , ये गुज़ारिश है की अपनी सास को अपने पति की माँ के रूप में न देखें.पहले उसे एक महिला के रूप में देखें और  उसके जीवन और उसके संघर्षों के बारे में जानें . फिर स्वतः ही आप उसका सम्मान करना शुरू कर देंगी .

दोस्तों एक माँ अपने बेटे का मुंह देखने के लिए 9 महीने इंतज़ार करती है ,तो वो उसे इतना प्यार करती है.और वही माँ अपनी बहू का मुंह देखने के लिए 25 साल इंतज़ार करती है, तो सोचो वो उसे कितना प्यार करेगी.

स्टैपनी बन कर क्यों रह गई सास

काम से लौटी महिला बोझिल व असहाय होती है. उस के लिए तुरंत कोई भी अप्रिय स्थिति झेलना या घरेलू कार्य करना संभव नहीं होता. ऐसी परिस्थिति में परिवार चाहे संयुक्त हो या एकल, जहां सारी अपेक्षाएं सिर्फ उसी से रखी जाती हैं, वहां तनाव बढ़ता जाता है.

कामकाजी महिलाओं का लगभग एकतिहाई हिस्सा ‘लाइफ स्टाइल डिजीज’ की चपेट में है. एक सर्वे के अनुसार 20-40 साल तक की उम्र की महिलाओं में ‘लाइफ स्टाइल डिजीज’ का खतरा सब से अधिक रहता है. समय रहते इस पर ध्यान न देने से यह गंभीर परेशानी खड़ी कर सकता है. डिप्रैशन, मोटापा, ब्लडप्रैशर, डाइबिटीज जैसी समस्याएं लाइफ स्टाइल डिजीज के अंर्तगत आती हैं, जो कामकाजी महिलाओं में अंदरबाहर की जिम्मेदारियों के कारण उपजे भीषण तनाव से पैदा होती हैं.

पिछली पीढ़ी की कामकाजी महिलाएं

वे बड़े परिवारों में बड़ी होती थीं और बड़े परिवारों में ब्याह दी जाती थीं. संयुक्त परिवारों की सहीगलत, अच्छीबुरी, पसंदनापसंद परंपराएं अपनातीं, निभातीं ये महिलाएं संयुक्त परिवारों में अनेक रिश्तों को निभाने की जिम्मेदारियां भी निभातीं और किसी तरह सब को खुश रख कर अपनी नौकरी बचाए रखने की जद्दोजहद में भी लगी रहती थीं.

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उन के खुद के कमाए पैसे पर भले ही उन का हक न होता था और उन्हें उस का मानसम्मान व आत्मविश्वास प्राप्त न हो पाता था पर उन पर सब का हक होता था. उन का नौकरी करना उन की खुद की समस्या थी, उन के परिवार की नहीं. उन्हें सब के प्रति अपने कर्तव्य पालन में हर वक्त खड़े रहना पड़ता था. अगर उन्हें एक अच्छा खुशहाल जीवन जीना होता था तो उन्हें एक अच्छी पत्नी, मां, बहू, भाभी, हर भूमिका मुस्तैदी से निभानी पड़ती. उन के नौकरी करने में पति का सहयोग न के बराबर होता था.

संयुक्त परिवारों की जिम्मेदारियां पूरी करने के बावजूद और पति का सहयोग न के बराबर मिलने के बावजूद अपने परिश्रम की कमाई को ये महिलाएं अपने ढंग से खर्च भी नहीं कर पाती थीं. कमाती वे थीं पर हिसाब पति के पास रहता था.

घर की जिम्मेदारियों के अलावा मामूली कठिनाइयों के लिए भी उन्हें अवकाश लेने के लिए मजबूर किया जाता था. इन सब का असर उन की कार्यक्षमता पर पड़ता था. जरूरत पड़ने पर औनलाइन जरूरत का सामान मंगाने जैसी सुविधा तब उन के पास नहीं थी. किचन में भी इतने सुविधाजनक उपकरण नहीं होते थे, जबकि संयुक्त परिवारों में बेहिसाब काम होते थे.

नई पीढ़ी की कामकाजी महिलाएं

महिलाओं में बदलाव है. आज अगर पतिपत्नी अपनी अलग गृहस्थी बसा कर रह रहे हैं तो पति अपनी पत्नी को पूरा सहयोग दे रहे हैं. फिर चाहे वह किचन संबंधी कार्य हो या बच्चों के लालनपालन की बात हो. कामकाजी महिलाओं की दोहरी जिम्मेदारियां पूरी तरह से खत्म नहीं होती हैं, क्योंकि बच्चे अकसर समय मिलने पर मां से ही चिपकते हैं और उम्मीद करते हैं. घर के भी कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें एक महिला ही सही तरीके से अंजाम दे पाती है. फिर भी कुछ दकियानूसी परिवारों की बात छोड़ दी जाए तो आज वह संतोषजनक स्थिति में है.

जरूरत पड़ने पर बाहर से खाना और्डर करने का चलन चल पड़ा है. हर जरूरत की वस्तु के लिए औनलाइन शौपिंग जैसी सुविधा भी है. जो कामकाजी युवतियां संयुक्त परिवारों में रह रही

हैं, वहां अमूमन बहुओं की नहीं, बल्कि सासों की मुश्किल है. परिवार के नाम पर अब सासससुर ही रह गए हैं और आज की इस शिक्षित सास का रोल आज के संयुक्त परिवार में बहुत बदल गया है.

एक तरह से आज की पीढ़ी की यह सास स्टैपनी ही नहीं रह गई है. इस ने अपने समय के संयुक्त बड़े परिवार भी निभाए. बहुतों ने नौकरियां भी कीं. नौकरी के साथसाथ गृहस्थी भी संभाली. फिर अपनी संभाली और अब अगर बहूबेटे साथ हैं तो उन की गृहस्थी भी संभाल रही हैं. इसलिए आज बहू से उम्मीद कम और सासों से ज्यादा हो गई है.

जो कामकाजी महिलाएं सासससुर के साथ रहती हैं वे अपने सासससुर से अपनी गृहस्थी व बच्चों के लालनपालन में उन का सहयोग तो चाहती हैं पर जहां तक उन के पैसे की बात आती है, उन की सोच एक आम गृहिणी जैसी हो जाती है कि पति का पैसा तो सब का पर उन का पैसा सिर्फ उन का.

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वे चाहती हैं कि अपने कमाए पैसे का वे खुद जैसे चाहें इस्तेमाल करें. चाहे अपने मातापिता या भाईबहन पर खर्च करें या अपने कपड़ेजेवरों पर, पति या परिवारजन को इस में बोलने का कोई अधिकार न हो. जहां तक पति की कमाई की बात है उसी पर दूसरों का अधिकार हो और सब से ज्यादा अधिकार उस का खुद का हो. पति बिना उस की इजाजत लिए अपने भाईबहन या मातापिता पर भी अपनी कमाई नहीं खर्च कर सकता.

फर्ज और अधिकार में फर्क

सासससुर का फर्ज तो उसे याद रहता है पर अपनी कमाई पर सासससुर का थोड़ा सा अधिकार भी वह सपने में भी नहीं सोच सकती. उन का थोड़ाबहुत अधिकार है तो सिर्फ अपने  बेटे की कमाई पर. जिन युवतियों की यह मानसिकता है, उन्हें समझना चाहिए कि यदि वे अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए दूसरों का सहयोग चाहती हैं तो उन की कमाई पर भी उन के पति की कमाई की तरह ही सब का हक होगा, क्योंकि यह ‘गिव ऐंड टेक’ जैसी बात है. अगर वे किसी रूप में भी परिवारजनों का सहयोग करेंगी और साथ ही अपना मधुर व्यवहार भी बनाए रखेंगी, तभी वे दूसरों से भी सहयोग की उम्मीद कर सकती हैं.

कुछ युवतियों का तो यह आलम है कि वे कहने को तो कामकाजी हैं पर उन की नौकरी इस लायक नहीं होती कि पति या परिवार को बहुत अधिक आर्थिक मदद कर सकें, लेकिन अपनी इस नौकरी के पीछे वे अपने पूरे परिवार को परेशान किए रहती हैं. खास तौर पर सास को न उन से आर्थिक सहयोग ही मिलता है, न घर ही ठीक से संभलता है कि पति निश्ंिचत हो कर अपनी नौकरी कर सके.

आज की युवा पीढ़ी की अधिकतर कामकाजी युवतियों को सास के कर्तव्य तो याद रहते हैं पर अपने सारे कर्तव्य भूल जाती हैं. वे सास से मां जैसे व्यवहार व ससुराल में मायके जैसे अधिकार व व्यवहार की अपेक्षा तो रखती हैं पर स्वयं बेटी जैसे कर्त्तव्य व प्यार देने की बात भूल जाती हैं.

पिछले कुछ समय से सारे उपदेश सासों को ही दिए जा रहे हैं कि सिर्फ सास के ही कर्त्तव्य हैं. यह सोच कर अपनी गृहस्थी सास के भरोसे छोड़ने का समय अब नहीं रहा. सही तो यही है कि पतिपत्नी ही मिल कर अपनी गृहस्थी सुचारु रूप से चलाएं. सासससुर ने पूरी जिंदगी संघर्ष कर, अब थोड़ा विराम पाया है, इसलिए उन्हें भी अपनी अभिरुचियों के साथ जिंदगी जीने दें. उन से बस थोड़ेबहुत सहयोग की ही अपेक्षा रखें जितना वे दे सकते हैं. उन्हें जिम्मेदारियों से न लादें.

कैसी हो कामकाजी महिलाओं की जीवनशैली

कामकाजी महिलाएं चाहे आज की हों या पिछली पीढ़ी की, इस में दोराय नहीं कि उन के जीवन के कुछ साल बहुत तनाव में गुजरते हैं जब तक उन के बच्चे छोटे होते हैं. दोहरी जिम्मेदारियों के बोझ के चलते तनाव व अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से घिर चुकी कामकाजी महिलाओं को अब अपने लिए समय निकालने की जरूरत है. जिन घरों में पति या अन्य परिजन कामकाज में हाथ बंटाते हैं, उन घरों में महिलाओं का स्वास्थ्य बेहतर पाया जाता है. पर इस के लिए कामकाजी महिलाओं का व्यवहार व स्वभाव स्वयं उत्तरदायी है.

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अगर घर में दिन में काम कराने हैं तो सास कराएगी. बच्चों को स्कूल से लाना है तो सास लाएगी. मेड से निबटना है तो सास निबटेगी. घर की सफाई, पुताई कराई है तो जिम्मा सास के सिर पर. बहुत मामलों में मिल्कीयत तो सासससुर की होती है पर उपयोग बेटेबहू करते हैं और रखरखाव का काम सासससुर पर छोड़ दिया जाता है वह भी बहू की सलाह पर जो सलाह कम आदेश ज्यादा होती है. बच्चे बीमार हों तो रातभर सास ही अस्पताल में बैठी नजर आएंगी. सास को बारबार कह दिया जाता है कि आई लव यू मौम, पर असल लव तो अपनी मां पर टपकता है सास पर नहीं. सासदामाद का रिश्ता तो शानदार है पर सासबहू में सास बेचारी स्टैप्नी है, 5वां पहिया जो घिसापिटा होता है.

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