पतिपत्नी के बीच के उस महीन से अदृश्य अधिकारसूत्र को उस ने कभी पकड़ा ही नहीं था. अब अकसर ही यही होने लगा. रजत किसी न किसी कारण से देर से घर आता. छुट्टी वाले दिन भी निकल जाता. कभीकभी शाम को भी निकल जाता और खाना खा कर घर पहुंचता. छवि के पूछने पर कह देता कि रीतिका के साथ था.
छवि कसमसा जाती. कुछ कह नहीं पाती. खुद की तुलना रीतिका से करने लगती. कब, कहां, किस मोड़ पर छोड़ दिया उस ने पति का साथ… वह आगे निकल गया और वह वहीं पर खड़ी रह गई.
वापस आ कर रजत मुंह फेर कर सो जाता और वह तकिए में मुंह गड़ाए आंसू बहाती रहती. ऐसा तो कभी नहीं हुआ उस के साथ. उस ने इस नजर से कभी सोचा ही नहीं रजत के लिए.
रजत को खो देने का डर कभी पैदा ही नहीं हुआ, मन में तो आंसू आने का सवाल ही पैदा नहीं होता. घर, बच्चे, सासससुर की सेवा, घर का काम और पति की देखभाल, जीवन यहीं तक सीमित कर लिया था उस ने. पति इस के अलावा भी कुछ चाहता है इस तरफ तो उस का कभी ध्यान ही नहीं गया.
छवि छटपटा जाती. दिल करता झंझोड़ कर पूछे रजत से ‘क्यों कर रहे हो ऐसा… रीतिका क्या लगती है तुम्हारी…’ पर पता नहीं क्यों कारण जैसे उस की समझ में आ रहा था. रीतिका के व्यक्तित्व के सामने वह अपनेआप को बौना महसूस कर रही थी.
एक दिन रविवार को छवि तैयार हो कर घर से निकल गई. रीतिका खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. तभी घंटी बज उठी. रीतिका ने दरवाजा खोला तो छवि को खड़ा देख कर चौंक गई. पूछा, ‘‘छवि, तुम यहां? इस समय? रजत कहां है?’’
‘‘वे घर पर नहीं थे… मैं तुम से मिलने आई हूं रीतिका,’’ छवि सहमी हुई सी बोली.
छवि के बोलने के अंदाज पर रीतिका को उस पर दया सी आ गई, ‘‘हांहां, छवि अंदर आओ न.’’ वह उस का हाथ पकड़ कर खींचती हुई अंदर ले आई, ‘‘बैठो.’’
छवि थोड़ी देर चुप रही. कभी उस का चेहरा देखती, तो कभी नीचे देखने लगती जैसे तोल रही हो कि क्या बोले और कैसे बोले.
‘‘छवि घबराओ मत खुल कर बोलो क्या काम है मुझ से?’’
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‘‘वह… आजकल रजत कुछ बदल से गए हैं…’’ बोलतेबोलते वह हकला सी गई, ‘‘जब से तुम आई हो…’’
सुन कर रीतिका जोर से हंस पड़ी.
‘‘अकसर घर से गायब रहने लगे हैं… तुम्हारे पास आ जाते हैं…’’ कहतेकहते उस की आंखों में आंसू आ गए. ‘‘तुम तो शादीशुदा हो रीतिका… मुझ से मेरा पति मत छीनो…’’
रीतिका हंसतेहंसते चुप हो गई. थोड़ी देर चुप रह कर फिर बोली, ‘‘तुम्हारा पति मैं ने नहीं छीना छवि… तुम ने खुद उसे अपने से दूर कर दिया है.’’
‘‘मैं ने कैसे कर दिया है? वे आजकल तुम्हारे साथ रहते हैं… तुम्हारे साथ पिक्चर जाना, तुम्हें शौपिंग कराना, तुम्हारे साथ घूमना… न बच्चों पर ध्यान देते हैं न घर पर…’’
‘‘छवि, सब से पहले तो इस बात का विश्वास करो कि जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है हमारे बीच… ऐसा कुछ होता, तो बहुत पहले हो जाता… तब तुम रजत की जिंदगी में न होती… हम दोनों के बीच दोस्ती से अधिक कुछ नहीं… वह कभीकभी मेरी मदद के लिए जरूर आता है पर हमेशा मेरे साथ नहीं होता.’’
‘‘फिर कहां जाते हैं?’’
‘‘अब यह तो रजत ही जाने कि वह कहां जाता है, लेकिन क्यों जाता है, यह मैं समझ सकती हूं…’’
‘‘क्यों जाते हैं?’’ छवि अचंभित सी रीतिका को देखते हुए बोली.
‘‘छवि, शिक्षा का मतलब डिग्री लेना ही नहीं होता, नौकरी करना ही नहीं होता, एक गृहिणी होते हुए भी तुम ने ऐसा कुछ किया जो सिर्फ खुद के लिए किया हो… अब वह जमाना नहीं रहा छवि, जब कहते थे कि पति के दिल पर राज करना है तो पेट से रास्ता बनाओ… मतलब कि अच्छा खाना बनाओ… अब सिर्फ खाना बनाना ही काफी नहीं है…
‘‘अच्छा खाना बनाना आए या न आए पर पति के दिल को समझना जरूर आना चाहिए… अब एक गृहिणी की प्राथमिकताएं भी बहुत बदल गई हैं… क्यों नहीं तुम ने खुद को बदला समय के साथ… कभी रजत की बगल में खड़े हो कर देखा है खुद को…
रजत एक खूबसूरत, उच्चशिक्षित व सफल पुरुष है… और तुम खुद कहां हो… न तुम ने अपनी शिक्षा बढ़ाई, न तुम ने अपने रखरखाव पर ध्यान दिया. न पहनावे पर, न अपना सामान्य ज्ञान बढ़ाने पर… तुम्हारा उच्चशिक्षित पति तुम्हारे साथ आखिर बात भी करे तो किस टौपिक पर…वह समय अब नहीं रहा छवि जब उच्चशिक्षित पतियों की पत्नियां अनपढ़ भी हुआ करती थीं.’’
रीतिका थोड़ी देर चुप रह कर फिर बोली, ‘‘नौकरी करना ही जरूरी नहीं है… एक शिक्षित, स्मार्ट, सामान्य ज्ञान से भरपूर, अंदरबाहर के काम संभालने वाली गृहिणी भी पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी होने की ताकत रखती है… पर तुम ने किचन से बाहर निकल कर खुद के बारे में कभी कुछ सोचा हो तब तो…
‘‘क्या रजत का दिल नहीं करता होगा कि उस के दोस्तों की बीवियों की तरह उस की पत्नी भी स्मार्ट व शिक्षित दिखे, इतना वजन बढ़ा लिया है तुम ने… इस बेडौल शरीर को ढोना तुम्हें क्या उच्छा लगता है? तुम अच्छी पत्नी तो बनी छवि पर अच्छी साथी न बन सकी अपने पति की… सोचो छवि, कई लड़कियों को ठुकरा कर रजत ने तुम्हें पसंद किया था. कहां खो गईर् वह छवि, जिसे वह दीवानों की तरह प्यार करता था?’’
रीतिका की बातें सुन कर छवि को याद आने लगा कि ऐसा कुछ
रजत भी कहता था. कई तरह से कई बातें समझाना चाहता था पर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. रजत की बातें कभी समझ में नहीं आईं पर रीतिका की बातें उस के कहने के अंदाज से समझ में आ रही थीं.
रीतिका उसे चुप देख कर फिर बोली, ‘‘छवि आज यह बात स्त्रियों पर ही नहीं पुरुषों पर भी समान रूप से लागू होती है… स्मार्ट और शिक्षित स्त्री भी अपने पति में यही सब गुण देखना पसंद करती है… बड़ी उम्र की महिलाएं भी आज अपने प्रति उदासीन नहीं हैं… वे अपने रखरखाव के प्रति सजग हैं… बेडौल पति तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगता. फिर पुरुष की तो यह फितरत है.’’
‘‘तो मैं अब क्या करूं रीतिका?’’ छवि हताश सी बोली.
‘‘करना चाहोगी तो सबकुछ आसान लगेगा… पहले तो घर के पास वाला जिम जौइन कर लो… तरहतरह के पकवान बनाना थोड़ा कम करो… रोज का अखबार पढ़ो… टीवी पर समाचार सुनो… बाहर के हर कार्य के लिए बेटे और रजत पर निर्भर मत रहो, खुद करो… इन सब बातों से विश्वास बढ़ता है और विश्वास बढ़ने से व्यक्तित्व निखरता है और व्यक्तित्व निखरने से पति पर अधिकारभावना खुद आ जाएगी.’’
रीतिका की बात सुन कर छवि खुद में गुम हो गई. फिर खुद से एक वादा सा करते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ करना रीतिका… मैं ने तुम्हें गलत समझा… मैं आज ही से तुम्हारी बात पर अमल करूंगी. बस एक बात की उम्मीद कर सकती हूं तुम से?’’
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‘‘हां, क्यों नहीं.’’
‘‘तुम्हारीमेरी यह मुलाकात रजत को कभी पता न चले.’’
‘‘कभी पता नहीं चलेगी मुझ पर विश्वास करो. मैं कभी नहीं चाहूंगी कि किसी भी कारण से तुम दोनों के बीच दूरी आए… हमारी यह मुलाकात मेरे सीने में दफन हो गई. तुम बेफिक्र हो कर घर जाओ.’’
छवि घर आ गई. घर लौटते हुए जिम में बात करती आई. 4 महीने का पैकेज था. जिम चलाने वाले ने शर्तिया 15 किलोग्राम वजन घटाने का वादा किया था… उसे एक डाइट चार्ट भी दिया कि उसे सख्ती से इस का पालन करना होगा.
रजत से बिना कुछ बोले छवि अपने अभियान में जुट गई. सच है कोई कितना भी बदलना चाहे किसी को तब तक नहीं बदल सकता, जब तक कोई खुद न बदलना चाहे. अब छवि का नियम बन गया था रोज अखबार पढ़ना और टीवी पर समाचार सुनना. उस ने अखबार वाले से कई पत्रपत्रिकाएं भी लगा ली थीं.
घर की साफसफाई और पकवान बनने कुछ कम हो गए थे पर किसी के जीवन पर इस का कोई खास असर नहीं पड़ा. अलबत्ता छवि की जिंदगी बदलने लगी थी. अब वह अकसर किसी न किसी काम से घर से निकल जाती. इस से खुद को तरोताजा महसूस करती.
बाहर के काम खुद करने से उसे संतुष्टि महसूस होती, जिस से उस में आत्मविश्वास आना शुरू हो गया था. रजत उस में धीरेधीरे आने वाले परिवर्तन को देख रहा था, पर सोच रहा था कि थोड़े दिन की बात है, जो उस की बेरुखी की वजह से शायद छवि में आ गया हो. थोड़े दिनों में अपने फिर पुराने ढर्रे पर आ जाएगी.
लेकिन छवि अपनी उसी दिनचर्या पर कायम रही. 4-5 महीने होतेहोते छवि का वजन 15 किलोग्राम कम हो गया. बदन के उतारचढ़ाव की प्रखरता फिर अपनी मौजूदगी का एहसास कराने लगी. चेहरे की चरबी घट कर कसाव आने से चेहरा कांतिमय हो गया. बड़ीबड़ी झील सी आंखें, जो चरबी बढ़ने से छोटी हो गई थीं, फिर से अपनी गहराई नापने लगीं.
रजत देखता कि अकसर वह खाली समय में पत्रपत्रिकाएं पढ़ते हुए मिलती या फिर बच्चों से कंप्यूटर सीखने का प्रयास करती. वह छवि को फोन पर किसी से बात करते हुए सुनता तो उसे छवि के लहजे व बातचीत पर हैरानी होती. उस की बातचीत का अंदाज तक बदल चुका था.
एक दिन उस ने पार्लर जा कर अपने पूंछ जैसे बाल भी कटवा लिए. कंधों तक लहराते बालों में जब उस ने शीशे में अपना चेहरा देखा तो खुद को ही नहीं पहचान पाई. उस ने कटे बालों को रबड़बैंड से बांधा और घर आ गई.
दूसरे दिन उन्हें सपरिवार मामाजी के घर जाना था. बच्चे तैयार हो कर बाहर निकल गए थे. रजत भी तैयार हो कर बाहर निकला. कार बैक कर के खड़ी की और छवि के बाहर आने का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर इंतजार करने के बाद छवि को देर करते देख वह उसे बुलाने अंदर चला गया.
‘‘कहां हो छवि… कितनी देर लगा रही हो… जल्दी करो, देर हो रही है,’’ कहता हुआ वह बैडरूम में चला गया. उस ने देखा चूड़ीदार सूट पहने एक सुंदर व स्मार्ट सी युवती अपने कंधों तक लहराते बालों पर कंघी फेर रही है.
‘‘छवि,’’ आवाज सुन कर छवि ने पलट कर देखा.
‘‘छवि यह तुम हो,’’ रजत उसे खुशी मिश्रित आश्चर्य से देख रहा था. उसे सामने देख कर छवि ऐसे शरमा रही थी जैसे कल ही शादी हुई हो.
रजत उस के करीब आ गया, ‘‘विश्वास नहीं हो रहा कि यह तुम हो… तुम्हें देख कर तो आज 17-18 साल पहले के दौर में पहुंच गया हूं… ‘‘कितनी सुंदर लग रही हो,’’ वह उस की झील सी गहरी आंखों में डुबकी लगाते हुए बोला.
‘‘चलो हटो… ऐसे ही बोल रहे हो… बहुत सताया आप ने मुझे.’’
‘‘सच कह रहा हूं छवि… प्यार तो मैं तुम्हें हमेशा ही करता था पर पतिपत्नी को एकदूसरे को प्यार करने के लिए, प्यार के माध्यम कभी कम नहीं होने देने चाहिए,’’ वह उसे बांहों में कसते हुए बोला, ‘‘आज तो दिल बहकने को कर रहा है.’’
‘‘मुझे माफ कर दो रजत… मैं ने आप की बातें समझने में बहुत देर कर दी.’’ॉ
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‘‘कोई बात नहीं… आखिर समझ तो गई, पर अब मेरा मामाजी के घर जाने का मूड नहीं है… बच्चों को भेज देते हैं…’’ रजत शरारत से उस के कान के पास मुंह ला कर बोला.
‘‘ठीक है,’’ रजत की बात समझ खिलखिलाती हुई छवि ने अपनी बांहें रजत के गले में डाल दीं.
मगर छवि ने रजत का प्रस्ताव सिरे से नकार दिया. जब छवि अनारकली सूट जैसी शालीन ड्रैस पहनने को तैयार नहीं हुई तो जींसटौप क्या पहनेगी. पापा सही कहते थे, घर का रहनसहन, स्कूलिंग, शिक्षादीक्षा इन सब का असर इंसान की पर्सनैलिटी और विचारों पर पड़ता है. पत्नी को तरहतरह से सजानेसवारने का रजत का शौक धीरेधीरे दम तोड़ गया.
रजत नौकरी में ऊंचे पदों पर पहुंचता गया. बच्चे बड़े होते गए. मातापिता वृद्ध होते
गए और फिर एक दिन इस दुनिया से चले गए. छवि की जैसेजैसे उम्र बढ़नी शुरू हुई तो खुद से बेपरवाह उस का शरीर भी फैलना शुरू हो गया. चेहरे की रौनक जो उम्र की देन थी बिना देखभाल के बेजान होने लगी. लंबे लहराते बाल उम्र के साथ पतली पूंछ जैसे रह गए. वह उन्हें लपेट कर कस कर जूड़ा बना लेती, जो उस के मोटे चेहरे को और भी अनाकर्षक बना देता.
रजत कहता, ‘‘छवि मैं तुम में 20-22 साल की लड़की नहीं ढूंढ़ता, पर चाहता हूं कि तुम अपनी उम्र के अनुसार तो खुद को संवार कर रखा करो… 42 की उम्र ज्यादा नहीं होती है.’’
मगर छवि पर कोई असर नहीं पड़ता. धीरेधीरे रजत ने बोलना ही छोड़ दिया. वह खुद 46 की उम्र में अभी भी 36 से अधिक नहीं लगता था. अपने मोटापे, पहनावे और रहनसहन की वजह से छवि उम्र में उस से बड़ी लगने लगी थी. अब रजत का उसे साथ ले जाने का भी मन नहीं करता. ऐसा नहीं था कि वह दूसरी औरतों की तरफ आकर्षित होता था पर तुलना स्वाभाविक रूप से हो जाती थी.
‘‘आप अभी तक यहां बैठे हैं… लाइट भी नहीं जलाई,’’ छवि लाइट जलाते हुए बोली, ‘‘चलो खाना खा लो.’’
खाना खा कर रजत सो गया. आज पुरानी बातें याद कर के उस के मन की खिन्नता और बढ़ गई थी. छवि के प्रति जो अजीब सा नफरत का भाव उस के मन में भर गया था वह और भी बढ़ गया.
दूसरे दिन रजत औफिस पहुंचा. उस के एक कुलीग का तबादला हुआ था. उस की जगह कोई महिला आज जौइन करने वाली थी. रजत अपने कैबिन में पहुंचा तो चपरासी ने आ कर उसे सलाम किया. फिर बोला, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’
रजत बौस के कमरे की तरफ चल दिया. इजाजत मांग कर अंदर गया तो उस के बौस बोले, रजत ये रीतिका जोशी हैं. सहदेव की जगह इन्होंने जौइन किया है. इन्हें इन का काम समझा दो.’’
रजत ने पलट कर देखा तो खुशी से बोला, ‘‘अरे, रीतिका तुम?’’
‘‘रजत तुम यहां…’’ रीतिका सीट से उठ खड़ी हुई.
‘‘आप दोनों एकदूसरे को जानते हैं?’’
‘‘जी, हम दोनों ने साथ ही इंजीनियरिंग
की थी.’’
‘‘फिर तो और भी अच्छा है… रीतिका रजत आप की मदद कर देंगे…’’
‘‘जी, सर,’’ कह कर दोनों बौस के कमरे से बाहर आ गए.
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रीतिका को उस का काम समझा कर लंचब्रेक में मिलने की बात कह कर रजत अपने लैपटौप में उलझ गया. लंचब्रेक में रीतिका उस के कैबिन में आ गई, ‘‘लंचब्रेक हो गया… अभी भी लैपटौप पर नजरें गड़ाए बैठे हो.’’
‘‘ओह रीतिका,’’ वह गरदन उठा कर बोला. फिर घड़ी देखी, ‘‘पता ही नहीं चला… चलो कैंटीन चलते हैं.’’
‘‘क्यों, तुम्हारी पत्नी ने जो लंच दिया है उसे नहीं खिलाओगे?’’
‘‘वही खाना है तो उसे खा लो,’’ कह रजत टिफिन खोलने लगा. खाने की खुशबू चारों तरफ बिखर गई.
दोनों खातेखाते पुरानी बातों, पुरानी यादों में खो गए. रजत देख रहा था रीतिका में उम्र के साथसाथ और भी आत्मविश्वास आ गया था. साधारण सुंदर होते हुए भी उस ने अपने व्यक्तित्व को ऐसा निखारा था कि अपनी उम्र से 10 साल कम की दिखाई दे रही थी.
रजत छेड़ते हुए बोला, ‘‘क्या बात है,
तुम्हारे पति तुम्हारा बहुत खयाल रखते हैं… उम्र को 7 तालों में बंद कर रखा है.’’
‘‘हां,’’ वह हंसते हुए बोली, ‘‘जब उम्र थी तब तुम ने देखा नहीं… अब ध्यान दे रहे हो.’’
‘‘ओह रीतिका तुम भी कहां की बात ले बैठी… ये सब संयोग की बातें हैं,’’ उस का कटाक्ष समझ कर रजत बोला.
‘‘अच्छा छोड़ो इन बातों को. मुझे घर कब बुला रहे हो? तुम्हारी पत्नी से मिलने का बहुत मन है. मैं भी तो देखूं वह कैसी है, जिस के लिए तुम ने कालेज में कई लड़कियों के दिल तोड़े थे.’’
रजत चुप हो गया. थोड़ी देर अपनेअपने कारणों से दोनों चुप रहे. फिर रीतिका ही
चुप्पी तोड़ती हुई बोली, ‘‘लगता है घर नहीं बुलाना चाहते.’’
‘‘नहींनहीं ऐसी बात नहीं. जिस दिन भी फुरसत हो फोन कर देना. उस दिन का डिनर घर पर साथ करेंगे.’’
‘‘ठीक है.’’
फिर अगले काफी दिनों तक रीतिका बहुत बिजी रही. नयानया काम संभाला था. जब फुरसत मिली तो एक रविवार को फोन कर दिया, ‘‘आज शाम को आ रही हूं तुम्हारे घर, कहीं जा तो नहीं रहे हो न?’’
‘‘नहींनहीं, तुम आ जाओ… डिनर साथ करेंगे.’’
शाम को रीतिका पहुंच गई. उस दिन तो वह और दिनों से भी ज्यादा स्मार्ट व सुंदर लग रही थी. रजत को उसे छवि से मिलाते हुए भी शर्म आ रही थी. फिर खुद को ही धिक्कारने लगा कि क्या सोच रहा है वह.
तभी छवि ड्राइंगरूम में आ गई.
‘‘छवि, यह है रीतिका… मेरे साथ इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ती थी.’’
छवि का परिचय कराते हुए रजत ने रीतिका के चेहरे के भाव साफ पढ़ लिए. वह जैसे कह रही हो कि यही है वह, जिस के लिए तुम ने मुझे ठुकरा दिया था, वह थोड़ी देर तक हैरानी से छवि को देखती रही.
‘‘बैठिए न खड़ी क्यों हैं,’’ छवि की आवाज सुन कर वह चौकन्नी हुई. छवि और रीतिका की पर्सनैलिटी में जमीनआसमान का फर्क था. दोनों की बातचीत में कुछ भी कौमन नहीं था, इसलिए ज्यादा बातें रजत व रीतिका के बीच ही होती रहीं पर साफ दिल छवि ने इसे अन्यथा नहीं लिया.
खाना खा कर रीतिका जाने लगी तो रजत कार की चाबी उठाते हुए बोला, ‘‘छवि, मैं रीतिका को घर छोड़ आता हूं.’’
अपनेअपने झंझावातों में उलझे रजत व रीतिका कार में चुप थे. तभी रजत अचानक बोल पड़ा, रीतिका छवि पहले बहुत खूबसूरत थी.
‘‘हूं.’’
‘‘पर उसे न सजनेसंवरने, न पहननेओढ़ने और न ही पढ़नेलिखने का शौक है… किसी भी बात का शौक नहीं रहा उसे कभी.’’
‘हूं,’ रीतिका ने जवाब दिया.
‘‘बहुत कोशिश की उसे बदलने की… बहुत समझाया पर वह समझती ही नहीं… थकहार कर मैं भी चुप हो गया.’’
‘‘क्या खूबसूरती ही सबकुछ होती है रजत?’’ रीतिका का स्वर इतना थका था जैसे मीलों की दूरी तय कर के आया हो.
रजत उस के थके स्वर के मतलब को समझ रहा था. वह चुप हो गया. थोड़ी देर दोनों चुप रहे.
फिर एकाएक रीतिका बोली, ‘‘बातों से समझा कर नहीं मानती, तो कुछ कर के समझाओ… जब तक दिल पर चोट नहीं लगेगी, तब तक नहीं समझेगी… जब तक कुछ खो देने का डर नहीं होगा… तब तक कुछ पाने की कोशिश नहीं करेगी.’’
रजत चुप रहा. रीतिका की बात कुछ समझा, कुछ नहीं. तभी उस ने कार एक जगह रोक दी.
‘‘यहां कहां रोक दी कार?’’
‘‘आइसक्रीम खाने के लिए. तुम्हें आइसक्रीम बहुत पसंद है न और वह भी आइसक्रीम पार्लर में खाना.’’
‘‘तुम्हें याद है अभी तक?’’ रीतिका संजीदगी से बोली.
‘‘हां, क्यों नहीं. दोस्तों की आदतें भी कोई भूलता है क्या? चलो उतरो,’’ रजत कार का दरवाजा खोलते हुए बोला.
दोनों उतर कर आइसक्रीम पार्लर में चले गए. उन्हें पता ही नहीं चला कि काफी समय हो गया है. फिर रीतिका को छोड़ कर जब रजत घर पहुंचा तो छवि उस के इंतजार में चिंतित सी बैठी थी. उसे देखते ही बोली, ‘‘बहुत देर कर दी. मोबाइल भी आप घर भूल गए थे.’’
‘‘हां, देर हो गई. दरअसल आइसक्रीम खाने रुक गए थे. रीतिका को आइसक्रीम बहुत पसंद है.’’
‘‘आइसक्रीम तो हमेशा घर पर रहती है. घर पर ही खिला देते?’’ छवि का स्वर हमेशा से अलग कुछ झुंझलाया हुआ था.
रजत ने चौंक कर छवि के चेहरे पर नजर डाली. उस के स्वभाव के विपरीत हलकी सी ईर्ष्या की छाया नजर आई. बोला, ‘‘उसे आइसक्रीम पार्लर में ही खाना पसंद है… फिर बातचीत में भी देर हो गई…’’ और फिर कपड़े बदलने लगा.
छवि थोड़ी देर खड़ी रही, फिर बिस्तर पर लेट गई. कपड़े बदल कर रजत भी बिस्तर पर लेट गया. नींद उसे भी नहीं आ रही थी. पर उसे आश्चर्य हुआ कि हमेशा लेटते ही घोड़े बेच कर सो जाने वाली छवि आधी रात तक करवटें बदलती रही. रजत को रीतिका की बात याद आ गई कि जब तक दिल पर चोट नहीं लगेगी, कुछ खोने का डर नहीं होगा. तब तक कुछ पाने की भी कोशिश नहींकरेगी.
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अब रजत अकसर औफिस से घर आने में कुछ देर करने लगा. कभी उस से कुछ भी न पूछने वाली छवि अब कभीकभी उस से देर से आने का कारण पूछने लगी. वह भी लापरवाही से जवाब दे देता, ‘‘रीतिका को कुछ शौपिंग करनी थी. उस के साथ चला गया था… उस के पति तो यहां पर हैं नहीं अभी,’’ और फिर छवि के चेहरे के भाव देखना नहीं भूलता. वह देखता कि रीतिका का नाम सुन कर छवि का चेहरा स्याह पड़ जाता.
आगे पढ़ें- पतिपत्नी के बीच के उस महीन से…
रजत औफिस से घर पहुंचा, घंटी बजाई तो छवि ने दरवाजा खोल दिया. छवि पर नजर पड़ते ही रजत का मन खिन्नता से भर गया. उस ने एक उड़ती सी नजर छवि पर डाली और सीधे बैडरूम में चला गया. कपड़े बदल कर वह बाथरूम में फ्रैश हो कर निकला तो छवि कमरे में आ गई.
‘‘चलो, चायनाश्ता रख दिया है…’’ छवि कोमल स्वर में बोली. रजत और भी चिढ़ गया. चप्पलें घसीटता हुआ डाइनिंगटेबल की तरफ बढ़ गया. तब तक बच्चे भी आ गए. सब खातेपीते बातें करने लगे. बच्चों के साथ बात करतेकरते उस का मूड कुछ ठीक हो गया.
अभी वे बातें कर ही रहे थे छवि फिर उठ गई और जूठे बरतन समेटने लगी. उस ने छवि पर नजर दौड़ाई. फैला बेडौल शरीर, बढ़ा पेट, कमर में खोंसा साड़ी का पल्ला, बेतरतीब बालों को ठूंस कर बनाया जूड़ा, बेजान होता चेहरा. बच्चों के साथ बातें करतेकरते रजत का ठीक होता मूड फिर उखड़ गया.
छवि बरतन उठा कर किचन में चली गई. उस के प्रैशर कुकर, चकलाबेलन और बरतनों की खनखन ने अपना बेसुरा संगीत शुरू कर दिया था. रजत ने झुंझला कर अखबार उठाया और बाहर बरामदे में चला गया. थोड़ी देर सुबह के पढ़े बासी अखबार को दोबारा पढ़ता रहा. फिर शाम का धुंधलका छाने लगा तो दिखाई देना कम हो गया. उस ने लाइट नहीं जलाई. अंदर जाने का मन नहीं किया. कुरसी पर पीछे सिर टिका कर यादों में खो गया…
इसी छवि को कभी रजत ने लड़कियों की भीड़ में पसंद किया था. घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर अपनाया था. उस के जेहन में वह दुबलीपतली, बड़ीबड़ी आंखों वाली सलोनी सी छवि तैर गई.
चाचा की बेटी की शादी में लखनऊ गया रजत जब लौटा तो अकेला नहीं आया. छवि का वजूद भी उस के जेहन से लिपटा साथ आ गया. बरातियों से हंसीठिठोली करती दुलहन की सहेलियों के बीच उस की नजर गोरी, लंबी, छरहरी छवि पर अटक गई.
छवि की लंबी वेणी दिल से लिपट गई. छवि के गुलाबी गाल, बड़ीबड़ी आंखों की झील सी गहराई, रसीले होंठों की चमक भुलाए न भूली. जब भी आंखें बंद करता हंसतीमुसकराती छवि उस की आंखों में उतर जाती.
रजत इंजीनियर था. बहुत अच्छी नौकरी में था. उस के पिता रिटायर्ड आर्मी औफिसर थे. बहुत अच्छेअच्छे घरों से शादी के प्रस्ताव उस के पिता के पास उस के लिए आए हुए थे. उन सब पर घर में सलाहमशवरा चल रहा था. वह खुद भी बहुत खूबसूरत था. इंजीनियरिंग कालेज में कई लड़कियां उस पर जान छिड़कती थीं, पर वह किसी की गिरफ्त में नहीं आया. रीतिका से तो उस की बहुत अच्छी दोस्ती थी. वह उसे केवल दोस्त मानता था. रीतिका ने उसे कई तरह से जताया कि वह उस से शादी करना चाहती है, पर साधारण शक्लसूरत की रीतिका उसे शादी के लिए पसंद नहीं आई.
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मगर छवि अपना जादू चला चुकी थी. घर में आए सारे विवाह प्रस्तावों को नकार कर जब उस ने मां के सामने अपनी बात रखी तो मां ने चाचा को फोन कर के सारी बात बताई. फिर उन्होंने छवि के बारे में सबकुछ पता लगाया. छवि बीए पास एक सामान्य घर की लड़की थी. दूसरी जाति की भी थी. मातापिता ने रजत को बहुत समझाया कि सुंदरता ही सब कुछ नहीं होती. लड़की किसी भी तरह उस के योग्य नहीं हैं. आजकल के हिसाब से उसे ज्यादा पढ़ीलिखी भी नहीं कहा जा सकता.
‘‘बीए पास तो है… कौन सा मुझे उस से नौकरी करवानी है,’’ रजत बोला.
‘‘बात नौकरी की नहीं है बेटा… घर का रहनसहन, स्कूलिंग ये सब भी माने रखते हैं. इन सब बातों का असर इंसान के विचारों पर पड़ता है… आज समय बहुत बदल गया है. कुछ समय बाद तुझे खुद यह बात महसूस होने लगेगी. बीए तो हमारी कामवाली की बेटी भी कर रही है तो क्या तू उस से शादी कर सकता है?’’
पिता का ऐसा कहना रजत को खल गया. काम करने वाली की बेटी की तुलना छवि से करने से उस का दिल टूट गया. फिर चिढ़ कर बोला, ‘‘बाकी बातें तो सीखने की हैं… सिखाई जा सकती हैं, पर जो चीज कुदरत देती है वह पैदा नहीं की जा सकती… मेरे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी.’’
अपनी दलीलों से रजत ने मातापिता को चुप कर दिया था. आखिर मातापिता मान गए. छवि उस के जीवन में क्या आई, वह उस के रूपसौंदर्य व भोलीभाली बातों में पूरी तरह डूब गया. छवि जितनी सुंदर थी उस का स्वभाव भी उतना ही अच्छा था. सासससुर ने उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया. वे उसे बहुत प्यार करते थे.
प्यार तो रजत भी उसे दीवानों की तरह करता था. औफिस से छूटते ही सीधे घर की दौड़ लगाता. लेकिन घर आ कर देखता छवि किचन में उलझी हुई कभी ससुरजी के लिए सूप बना रही होती है, कभी सास के लिए घुटनों का तेल गरम कर रही होती है, कभी गरम पानी की थैली भर रही होती है, कभी सब्जी काट रही होती है, तो कभी उस के लिए बढि़या नाश्ता बनाने में मसरूफ होती है.
‘‘छोड़ो न छवि ये सब… मुझे ये सब नहीं चाहिए,’’ कह रजत गैस बंद कर देता, ‘‘मांपापा का काम तुम पहले निबटा लिया करो… जब मैं आऊं तो सिर्फ मेरे पास रहा करो,’’ वह उसे अपनी बांहों में कसने की कोशिश करता.
छवि कसमसा जाती, ‘‘क्याकरते हो… मां आ जाएंगी,’’ कह वह जबरन खुद को छुड़ा लेती.
‘‘तो फिर कमरे में चलो,’’ रजत शरारत करते हुए कहता.
‘‘अरे कैसे चल दूं… खाना बनाने में देर हो जाएगी,’’ वह उसे चाय का कप थमा देती, ‘‘देखो, मैं ने आप के लिए ब्रैडरोल बनाए हैं. खा कर बताओ कैसे बने हैं.’’
वह कुढ़ कर कहता, ‘‘हमारी नईनई शादी हुई है छवि… तुम समझती क्यों नहीं,’’ और वह उसे फिर पास खींच कर चूमने का प्रयास करता.
छवि परे छिटक जाती. अपने मचलते अरमानों को काबू कर रजत पैर पटकता किचन से बाहर निकल जाता. उस का बहुत मन करता कि छवि सबकुछ उस के आने से पहले निबटा कर अच्छी तरह सजधज कर उस का इंतजार करे और उस के आने के बाद उस के पास बैठे, उस के साथ घूमने चले, फिल्म देखने चले, बाहर खाना खाने चले, आइसक्रीम खाने चले.
मगर शायद छवि की जिंदगी में इन सब बातों की प्राथमिकता नहीं थी, उस ने अपनी मां को भी ऐसे ही काम में उलझा देखा था और यही सोचती थी कि काम करने से ही सब खुश होते हैं. यहां तक कि पति भी… पतिपत्नी के बीच इस के अलावा दूसरी बातें भी हैं, जो इस से भी जरूरी हैं, पतिपत्नी के रिश्ते के लिए यह वह नहीं समझती थी.
यहां तक कि अखबार पढ़ना, टीवी पर खबरें सुनना, इन सब बातों से भी उस का कोई मतलब नहीं रहता था. उस के लिए घर और घर का काम, सासससुर की सेवा, पति की देखभाल बस यही सबकुछ था.
रजत का मन करता उस की नईनवेली बीवी उस से कभी रूठे और वह उसे मनाए या उस के नाराज होने पर वह उसे मनाए, मीठी छेड़छाड़ करे. पर धीरेधीरे उसे लगने लगा कि इस माटी की खूबसूरत गुडि़या से ऐसी बातों की उम्मीद करना बेकार है.
समय बीतता रहा. उन के 2 बच्चे भी हो गए. अब तो छवि और भी ज्यादा व्यस्त हो गई. उस के पास पलभर की भी फुरसत नहीं रहती.
वह कई बार कहता, ‘‘छवि, खाना बनाने के लिए कोई रख लो. तुम बस अपनी देखरेख में बनवा लिया करो… काम में इतनी उलझी रहती हो… मेरे लिए तो तुम्हारे पास कभी समय नहीं रहता.’’
‘‘कब समय नहीं रहता आप के लिए,’’ छवि हैरानी से कहती, ‘‘कौन सा काम नहीं करती हूं आप का?’’
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‘‘छवि, काम ही तो सबकुछ नहीं होता… तुम समझती क्यों नहीं… हमारी यह उम्र लौट कर नही आएगी… बहुत सी जरूरतें होती हैं तनमन की… इन्हें तुम समझना नहीं चाहती… बिस्तर पर एक मशीन की तरह जरूरत पूरी कर के सो जाना, तो सबकुछ नहीं… इस के अलावा भी बहुत कुछ है जीवन में…’’
छवि रजत की सारी जरूरतों को समझती पर उस के मन को न समझती. वह अच्छी बहू थी, अच्छी मां थी, अच्छी पत्नी थी पर अच्छी साथी नहीं थी. और एक साथी की कमी रजत को हमेशा अकेलेपन, एक अजीब तरह की तृष्णा व भटकन से भर देती.
रजत का मन करता उस के दोस्तों की बीवियों की तरह छवि भी तरहतरह की ड्रैसेज पहने, जो शालीन पर फैशनेबल हों. कम से कम चूड़ीदार सूट, अनारकली सूट ये तो वह पहन ही सकती है. यही सोच कर वह एक दिन उसे किसी तरह पटा कर बाजार ले गया. लेकिन छवि कोई भी ड्रैस, यहां तक कि सूट खरीदने को भी तैयार नहीं हुई.
‘‘अरे ये सब… मांपापा क्या कहेंगे… मैं नहीं पहन सकती ये सब.’’
‘‘मेरे सभी दोस्तों की पत्नियां पहनती हैं छवि… यह अनारकली सूट ले लो… तुम पर खूब फबेगा… अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है… आजकल तो 60 साल की औरतें भी ये सब पहनती हैं.’’
‘‘जो पहनती हैं उन्हें पहनने दो. मैं नहीं पहन सकती. उन के सासससुर उन के साथ नहीं रहते होंगे… मांपापा क्या कहेंगे.’’
‘‘छवि मैं जानता हूं अपने मम्मीपापा को… वे पुराने विचारों के नहीं हैं… मैं ने हर तरह का माहौल देखा है… वे आर्मी अफसर की पत्नी हैं… वे तुम्हें ये सब पहने देख कर खुश ही होंगे.’’
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