विनीत का मुंह हारे हुए जुआरी जैसा हो गया था.
‘‘अगर मैं ने रोहित से दूरी बना भी ली तो आप वापस अपने पुराने ढर्रे पर आ जाओगे, क्योंकि आप दिल से नहीं बदल रहे. सिर्फ मेरे और रोहित के बीच की नजदीकियों के डर से बदलने की बात कर रहे हो…जिस दिन यह डर खत्म हो जाएगा आप फिर अपनी बिंदास हरकतों पर उतर आओगे.’’
‘‘यह अकेले बाहर घुमाने ले जाना, लता भाभी को भी अवौइड करना, मेरे आसपास मंडराते रहना, ये बस मेरे प्रति सच्चे प्यार की वजह से नहीं है, बल्कि यह मुझे और रोहित को ले कर तुम्हारे मन में पनप रही असुरक्षा की भावना की प्रतिक्रिया मात्र है.
‘‘विनीत आज तुम 3 महीने में ही डर कर इतना परेशान हो गए. लेकिन कभी मेरे दर्द का जरा सा भी एहसास नहीं किया, जिसे मैं पिछले 2 सालों से सहती आ रही हूं.’’
‘‘मुझे माफ कर दो अंजलि…मैं सचमुच गलत हूं. मैं अपने डर और ईर्ष्या के कारण ही तुम पर दबाव बनाना चाह रहा था कि तुम रोहित से बात करना बंद कर दो. मैं वास्तव में खुदगर्ज और असुरक्षा की भावना से ग्रस्त व्यक्ति हूं. मुझे माफ कर दो अंजलि,’’ विनीत की आंखें भर आईं.
विनीत के स्वर की सचाई सुन कर और आंखों में पश्चात्ताप के आंसू देख कर एकबारगी अंजलि का मन पिघल गया, लेकिन तुरंत ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया और विनीत के सामने से हट गई. यह सब ढोंग है. वह अब विनीत पर किसी भी तरह से भरोसा नहीं कर सकती. रोहित न सिर्फ उस का बहुत अच्छा दोस्त बन चुका है, बल्कि उस के दिल के भी काफी करीब आ गया है. विनीत की लता से नजदीकियों ने अंजलि के मन में जो एक खालीपन और अकेलापन पैदा कर दिया था उसे बहुत हद तक रोहित ने भर दिया था.
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अब वास्तव में अंजलि को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि विनीत क्या करता है, किस से बातें करता है या कहां आताजाता है. अंजलि अब अपनी खुशी में मगन रहती. उसे भी एक मस्त, आगेपीछे घूमने वाला साथी मिल गया था.
हां, विनीत जरूर अपनी गलती समझ गया था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि लता के साथ उस के अनुचित व्यवहार का परिणाम एक दिन उस के घर में ऐसी आग लगा देगा. उस ने लता से पूरी तरह से रिश्ता तोड़ लिया था. लता को भी अक्ल आ गई थी कि देवर देवर होता है और पति पति. आप हावभाव दिखा कर परपुरुष को हमेशा के लिए अपने नाम नहीं लिखवा सकते. वह तो सोचती थी कि विनीत पूरी तरह से उस के पल्लू से बंधा है और उम्र भर बंधा रहेगा, लेकिन अंजलि के जीवन में रोहित के आ जाने से सारा परिदृश्य ही बदल गया.
बच्चों की परीक्षा खत्म होने पर लता ने अपना बोरियाबिस्तर समेट कर अपने पति के पास बैंगलुरु चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. देवर को मुट्ठी में पकड़ कर रखने के चक्कर में कहीं पति भी हाथ से न निकल जाए. 2 नावों की सवारी करने के लालच में कहीं वह बीच समंदर में ही न गिर पड़े.
विनीत की भी अक्ल ठिकाने आ गई थी. अपनी मौजमस्ती में चूर वह भूल गया था कि अगर पत्नी से वफादारी और ईमानदारी चाहते हो तो पति को भी त्याग करना ही पड़ता है. ताली एक हाथ से नहीं बजती. पति को भी रिश्तों की मर्यादा निभानी पड़ती है.
विनीत के स्वभाव में अप्रत्याशित परिवर्तन ने अंजलि को भी सोचने पर मजबूर कर दिया. आजकल विनीत अंजलि और घर का पूरा ध्यान रखता. अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी निष्ठा से निभाता. उस के व्यवहार में कहीं कोई बनावटीपन नहीं था. उसे सबक मिल गया था. उस के स्वभाव में सचाई की झलक दिखती थी. अंजलि को पता लगा कि लता अपने पति के पास वापस जा चुकी है, उस ने अपना घर उजड़ने से बचा लिया.
अब अंजलि ऊहापोह की स्थिति में थी. वह सच्चा प्यार तो विनीत से ही करती है, मगर रोहित के आकर्षण को भी तोड़ नहीं पा रही थी. विनीत को सबक सिखाने में उसे खुद भी सबक मिल गया कि रोहित के साथ उस के रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है.
इसी बीच रोहित के घर वालों ने उस के लिए लड़कियां देखनी शुरू कर दीं. अंजलि और रोहित जानते थे कि एक दिन तो यह होना ही था. बेवजह बन गए अनचाहे रिश्ते के बिना झंझट खत्म होने की संभावना ने अंजलि के दिल में एक सुकून सा भर दिया. चलो अच्छा है इस बहाने रोहित और उस के बीच अपनेआप दूरी आ जाएगी. वह भी इस दोहरी जिंदगी से ऊब गई थी. फिर उस का विनीत भी सुधर चुका था.
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रोहित को भी कई दिनों से लगने लगा था कि विवाहित स्त्री के रूप की मृगमरीचिका में भटकने से कुछ हासिल नहीं होगा. अंजलि सिर्फ विनीत की पत्नी है और उसी के साथ खुश रह सकती है. दूसरे की पत्नी के साथ उस का जीवन कभी सुरक्षित या खुशहाल नहीं हो सकता. उन दोनों के बीच रोहित हर हाल में पराया और बाहरी ही रहेगा. विनीत के दिलफेंक स्वभाव से तंग आ कर अंजलि मात्र परिस्थितिवश उस के करीब आ गई थी और कुछ नहीं. इस सचाई से अवगत होते ही रोहित का मोहभंग हो गया. पिछले कुछ दिनों से वह देख रहा था कि अंजलि उस से कटने लगी है. अपनी स्थिति जान कर चुपचाप अपने घर लौट गया.
दूसरे दिन सुबहसुबह अंजलि ने घर की सारी खिड़कियां खोल दीं. पिछले कुछ महीनों से घर का वातावरण तनावपूर्ण और घुटन भरा हो गया था. आज भी हवा एकदम ताजा और खुशनुमा थी. लता और रोहित नाम के अनचाहे मेहमान उन के घर और जीवन से हमेशा के लिए जा चुके थे. आज अंजलि को अपना दिलदिमाग एकदम तरोताजा लग रहा था. वह घर को नए सिरे से संवारते हुए गुनगुना रही थी.
‘‘बहुत दिनों से तुम ने शौपिंग नहीं की, चलो आज मैं छुट्टी ले लेता हूं. जी भर कर शौपिंग करो और खाना भी बाहर ही खा लेंगे,’’ उस का खुशगवार मूड देख कर विनीत बोला.
‘‘सच?’’ अंजलि चहकी, ‘‘शहर में हैंडीक्राफ्ट मेला लगा है. वहां भी ले चलोगे?’’
‘‘हां बाबा जहां कहोगी वहां ले चलूंगा. अब जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ विनीत हंसते हुए बोला.
‘‘ओह विनीत, तुम कितने अच्छे हो. बस मैं हूं, तुम हो और हमारा अपना घर है,’’ अंजलि उस के सीने से लिपटती हुई भावुक स्वर में बोली.
विनीत ने उसे कस कर बांहों में भर लिया.
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दोपहर के खाने के समय लता हमेशा की तरह झट से विनीत के पास वाली कुरसी पर बैठ गई तो अंजलि बड़ी खुशी से रोहित के साथ बैठ गई. विनीत का पता नहीं क्यों खाने में मन नहीं लग रहा था. शाम को सब लोग टीवी देखने बैठे थे. लता विनीत के साथ सोफे पर बैठी थी. बीचबीच में हंसीमजाक करते हुए वह कभी विनीत के कंधे पर हाथ मारती तो कभी पैर पर.
अंजलि दूसरे सोफे पर अकेली बैठी थी. तभी रोहित आ गया और अंजलि के पास बैठ गया. अब वे दोनों टीवी पर चल रहे कार्यक्रम पर कमैंट करते हुए ठहाके लगाने लगे. अंजलि भी हंसते हुए रोहित के हाथ पर या कंधे पर हाथ मार रही थी. विनीत बैठाबैठा कसमसा रहा था.
आखिर में विनीत से रहा नहीं गया. वह उठ कर जल्दी सोने चला गया. 10 मिनट बाद लता भी मुंह बना कर अपने कमरे में चली गई. अंजलि जानबूझ कर उस रात बहुत देर बाद सोने गई. जब तक रोहित बैठा रहा वह और अंजलि जोरजोर से हंसीमजाक करते रहे. जब अंजलि सोने के लिए कमरे में गई तो उस ने देखा विनीत मुंह पर चादर लपेटे सोने का नाटक कर रहा था. लेकिन बेचैनी से पहलू बदलने के कारण साफ समझ आ रहा था कि वह जाग रहा है. अंजलि विनीत की ओर पीठ कर के चैन से सो गई.
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दूसरे दिन छुट्टी थी. लता फिल्म देखने के लिए विनीत के पीछे पड़ी. विनीत ने चुपचाप से प्लान बनाया और ऐन वक्त पर अंजलि से तैयार होने के लिए कहा. मगर अंजलि भी भला कहां पीछे रहने वाली थी. उस ने तपाक से रोहित को फोन लगा दिया और फिल्म देखने का आमंत्रण दे डाला. विनीत जलभुन गया. वह बैडरूम में आ कर अंजलि पर गुस्सा करने लगा कि रोहित को ले जाने की क्या जरूरत है? तब अंजलि ने दोटूक जवाब दिया कि उस के और लता के बीच वह मूर्खों की तरह मुंह बंद कर के बैठी रहती है. या तो मुझे घर पर रहने दो या फिर रोहित को भी साथ ले चलो. विनीत के पास और कोई चारा नहीं था. वह बेमन से रोहित को भी साथ ले गया.
विनीत ने सोचा वह सब से पहले अंजलि को बैठाएगा, फिर लता को उस के बाद वह और फिर अपने पास रोहित को. तब पूरी फिल्म में वह और लता पास बैठेंगे और अंजलि और रोहित 2 कोनों में. लेकिन अंजलि ने पहले ही सीट नंबर सुन लिया और फटाफट सिनेमाहौल में घुस कर रोहित की बगल में बैठ गई. विनीत यहां भी मात खा गया. फिर तो पूरी फिल्म भर उस का मूड़ उखड़ा रहा.
लता पहले तो बहुत कोशिश करती रही उस से कि वह पहले की तरह हंसीमजाक करे पर आखिर खुद भी खीज कर चुप हो गई. अलबत्ता अंजलि और रोहित ने पूरी फिल्म बहुत ऐंजौय की. उस के बाद रोहित ने अपनी ओर से डिनर का प्रस्ताव रखा जिसे अंजलि ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.
फिल्म खत्म होने के बाद वे लोग मौल में ही घमते रहे, फिर थोड़ी देर बाद मौल के ही एक रैस्टोरैंट में डिनर कर के लौटे. पूरे समय विनीत हूंहां के अलावा कुछ नहीं बोला. विनीत के कारण लता को भी चुप रहना पड़ रहा था. बस रोहित और अंजलि ही दुनियाजहान की बातों में खोए हुए थे.
दूसरे दिन भी लता किचन में रोटियां बनाने पहुंची, लेकिन विनीत नहीं गया. वह अंजलि के आसपास घूमता और बातें करता रहा, क्योंकि वह जानता था कि या तो अंजलि रोहित के घर चली जाएगी या फिर वह यहां आ जाएगा, क्योंकि वह अभी तक औफिस नहीं गया होगा. लिहाजा, सारी रोटियां लता को अकेले ही बनानी पड़ीं. वह तो विनीत के लिए ही यहां आती है. जब इस बार विनीत रोहित की वजह से उखड़ा हुआ है और उस का पूरा ध्यान अंजलि पर ही लगा रहता है, तो वह बेवजह अपने दिन खराब क्यों करे. अत: विनीत के औफिस जाने के समय उस ने कहा कि वह उसे बस में बैठा दे.
‘‘अरे भाभी, आप इतनी जल्दी जा रही हैं. आप हैं तो घूमनेफिरने में कितना मजा आ रहा है. कुछ दिन और रुक जाइए. कल रोहित ने हाफ डे लिया है. हम सब लेक पर घूमने चलेंगे,’’ अंजलि ने लता को रोक लिया.
विनीत जलभुन गया. पहली बार उसे लता का रहना बुरा लग रहा था. उस ने लेक पर जाने का प्रोग्राम बहुत टालना चाहा तो अंजलि चिढ़ गई. बोली, ‘‘क्यों विनीत, इस से पहले तो जब भी लता भाभी आती थीं तुम छुट्टी लेले कर फिल्में देखने और घूमने ले जाते थे? अब अचानक तुम्हें क्या हो गया?’’
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अंजलि की बात पर विनीत निरुत्तर हो गया. वह मनमसोस कर दूसरे दिन सब के साथ लेक पर गया. हमेशा अंजलि को उपेक्षित सा छोड़ कर लता के साथ घूमनेफिरने के मजे लेने वाला विनीत अब लता से भी कटाकटा सा घूम रहा था, क्योंकि उस का सारा ध्यान तो अंजलि और रोहित की बातों पर लगा था. घर आ कर लता मुंह फुला कर जल्दी सोने चली गई. अंजलि कौफी बना लाई और रोहित के साथ बातें करने लगी. विनीत थोड़ी देर बैठा रहा, फिर तंग आ कर सोने चला गया.
दूसरे दिन लता चली गई. विनीत ने चैन की सांस ली. लता थी तो सारा समय विनीत से चिपकी रहती थी और अंजलि को पूरी आजादी मिल जाती थी रोहित के साथ रहने की. अब तो विनीत ने लता को फोन करना भी बहुत कम कर दिया था. लता ही फोन करती तो विनीत थोड़ीबहुत बातचीत कर के फोन रख देता. लता भी विनीत की बदलती प्रवृत्ति को समझ गई थी. टीवी देखते समय वह यथासंभव अंजलि के पास सट कर बैठता या फिर उस का हाथ पकड़ कर ही बैठता जैसे अगर उस ने हाथ नहीं पकड़ा तो वह भाग जाएगी.
अंजलि को उस की इन हरकतों से कोफ्त होती. विनीत रोहित से बचने के लिए अकसर शाम को या छुट्टी वाले दिन बाहर लंच या डिनर अथवा शौंपिग का प्रोग्राम बना लेता. अंजलि को और चिढ़ होती, क्योंकि वह जानती थी ये सब सिर्फ उसे रोहित से दूर करने के लिए है.
2-3 महीने निकल गए. अंजलि बदस्तूर रोहित से हंसतीबोलती. एक दिन विनीत से आखिर रहा नहीं गया. वह अंजलि से उलझ ही गया. आज वह अपने दिल की तिलमिलाहट दूर कर लेना चाहता था.
‘‘अंजलि, आखिर यह रोहित के साथ तुम्हारा क्या चल रहा है… तुम्हें नहीं लगता कि तुम उस में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगी हो?’’
‘‘बिलकुल भी नहीं विनीत. मैं तो बिलकुल सामान्य व्यवहार कर रही हूं. इतना हंसनाबोलना तो चलता है न?’’ अंजलि ने जवाब दिया.
‘‘थोड़ाबहुत कहां तुम तो आजकल उस के साथ बहुत ही ज्यादा इन्वौल्व हो रही हो, विनीत बोला.’’
‘‘बिलकुल नहीं. कभीकभार ही तो साथ मिलतेबैठते हैं,’’ अंजलि लापरवाही से बोली.
‘‘कभीकभार कहां रोज तो मुंह उठा कर चला आता है और फिर पूरा समय खाना खाते हुए टीवी देखते तुम से सट कर बैठता है,’’ विनीत झल्ला कर बोला.
‘‘तो क्या हुआ साथ बैठना कोई गलत है क्या? आदमी को इतना खुले विचारों वाला तो होना ही चाहिए न?’’ अंजलि ने लता के मामले में कही विनीत की बात को ही वापस उस के मुंह पर मारा.
कुछ क्षण को विनीत सकापका गया. उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे. फिर अकड़ कर बोला, ‘‘मेरा डायलौग मुझे मत मारो. मेरी बात अलग है.’’
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‘‘क्यों तुम्हारी बात क्यों अलग है? इसलिए कि तुम पुरुष हो, कुछ भी कर सकते हो और मैं औरत हूं तो मुझे तुम्हारे कहने के हिसाब से चलना पड़ेगा? क्यों, क्या मुझ में अपना अच्छाबुरा समझने की अकल नहीं है?’’ अंजलि तुनक कर बोली.
‘‘मैं वादा करता हूं अंजलि मैं अपनी फ्लर्टिंग की आदत छोड़ दूंगा. बस तुम रोहित से दूरी बना लो.’’
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फिर अपनी सोच पर अंजलि खुद घबरा गई. उस ने लता को फोन लगाया तो उस ने भी फोन नहीं उठाया. लता के पिताजी के घर पर फोन किया तो पता चला लता अभी तक अपने घर नहीं पहुंची. अगर लता 11 बजे की बस से भी निकलती तो एकडेढ़ बजे तक अपने घर पहुंच जाती. अब तो ढाई बज गए हैं. अंजलि घर में अंदरबाहर होती रही. कभी विनीत का फोन मिलाती तो कभी लता का और कभी आनंद का.
4 बजे जा कर विनीत का फोन आया. अंजलि ने घबरा कर पूछा कि कहां हैं और औफिस क्यों नहीं गए…फोन क्यों नहीं उठा रहे थे. मगर विनीत का जवाब सुन कर अंजलि के गुस्से का पारावर न रहा. दरअसल, विनीत लता को बस में बैठा कर औफिस जाने के लिए ही निकला था, मगर रास्ते में एक मौल में नई रिलीज हुई फिल्म का पोस्टर देख कर लता का मन हुआ उस फिल्म को देखने का. शो 12 बजे का था. अत: दोनों मौल में ही घूमते रहे और 12 बजे फिल्म देखने बैठ गए. फिल्म का साउंड तो तेज होता ही है. अत: फोन की रिंग सुनाई नहीं दी. अब लता को बस में बैठाने के बाद उस ने मिस्ड कौल देखीं.
अंजलि ने विनीत की पूरी बात सुने बिना ही फोन काट दिया.
आज तो आनंद के फोन आने से अंजलि को पता चल गया कि विनीत औफिस नही पहुंचा है वरना विनीत तो कभी बताता नहीं. वह 6 बजे घर आता और ऐसे दर्शाता जैसे सीधे औफिस से चला आ रहा है. पहले भी पता नहीं कितनी बार झूठ बोल चुका होगा विनीत… क्या पता सच में फिल्म देखने गए थे या फिर 10 बजे से 4 बजे तक…
जब इनसान का एक झूठ पकड़ा जाता है, तो फिर उस के ऊपर से विश्वास उठ जाता है. फिर उस की हर बात में झूठ की ही गंध आने लगती है.
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विनीत भी समझ गया था कि इस बार तो अंजलि को बहुत बुरा लगा है और अब वह कई दिनों तक गुस्सा रहेगी. विनीत अपनी गलती समझ गया था, इसलिए अंजलि से बहुत अच्छा बरताव कर रहा था. घर के कामों में हाथ बंटाना, अपना काम समय पर करना. समय पर घर में सामान, सब्जी ला देता. लेकिन अंजलि ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. न अच्छी न बुरी. वह विनीत की ओर से एकदम तटस्थ और उदासीन हो गई थी. घर के सारे काम सुघड़ ढंग से निबटाती. विनीत से जितना जरूरी होता उतना ही बोलती. एक तरह से घर में उन दोनों के बीच शीत युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी.
विनीत को बहुत बैचेनी हो रही थी. अंजलि खुल कर झगड़ा कर लेती तो विनीत भी बहस कर के अपनी सफाई दे देता या उलटा हर बार की तरह अंजलि की सोच को छोटा कह कर उसे ही गलत साबित कर के अपनी गलती ढांप लेता. लेकिन अभी तो अंजलि न बोल कर, न झगड़ा कर के एक तरह से विनीत को अपराधी साबित कर चुकी है. विनीत अंदर ही अंदर अपनी गलती का एहसास कर के अपराधबोध से ग्रस्त हो रहा है. गलती पर गलतियां कर के भी अंजलि पर हावी रहने वाले विनीत को यों अंदर ही अंदर कसमसाते रहना बहुत खल रहा था. 2-4 बार उस ने अंजलि से बात करने की, अपनी सफाई देने की कोशिश की भी पर अंजलि ने उसे नजरअंदाज कर दिया. कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.
10-12 दिन बाद अचानक सामान उठानेरखने की आवाजें सुन कर विनीत ने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने वाले फ्लैट का दरवाजा खुला था और मजदूर सामान अंदर रख रहे थे.
शाम को औफिस से आया तो देखा सामने वाले फ्लैट का दरवाजा बंद था. विनीत ने सोचा इन का सारा सामान रखा गया होगा. चाय पीते हुए उस ने अंजलि से पूछताछ की तो पता चला सामने कोई फैमिली नहीं वरन एक युवक रहने आया है. उसे इसी शहर में नौकरी लगी है और सामने वाला फ्लैट किराए पर ले कर वह यहीं रहेगा. विनीत को अफसोस हुआ. अगर परिवार होता तो ज्यादा अच्छा होता, अंजलि को कंपनी मिल जाती. युवक का रहना न रहना तो बराबर ही है.
दूसरे दिन सुबह अंजलि के बात करने की आवाज सुन कर विनीत बाहर आया तो पता चला वह युवक आया था बाई के बारे में कहने. अंजलि ने उस के यहां अपनी बाई भेजने का आश्वासन दे दिया. थोड़ी देर बाद वह पीने का पानी भरने के लिए बरतन लेने आया. विनीत के औफिस जाने तक वह युवक जिस का नाम रोहित था 4-5 बार किसी न किसी काम से अंजलि के पास आया. विनीत ने सरसरी निगाहों से उसे देखा. लंबा, गोराचिट्टा सुदर्शन युवक था.
शाम को विनीत औफिस से घर आया तो अंजलि ने चाय बनाई और रोहित को भी चाय पर बुला लिया. रोहित आया. तीनों ने साथ चाय पी और बातें कीं. विनीत को यह भला लड़का लगा. उस का परिवार पास के ही शहर में रहता था. घर में मम्मीपापा के अलावा दादी, एक छोटी बहन और भाई भी है. थोड़ी देर बातें कर के रोहित चला गया. 4-5 दिन में उस का घर व्यवस्थित हो गया. सामान जमाने में अंजलि ने उस की मदद की.
एक दिन विनीत घर आया तो अंजलि घर पर नहीं थी. रोहित के घर पर भी ताला लगा था. 5 मिनट बाद रोहित और अंजलि आ गए. अंजलि रोहित को किचन का कुछ जरूरी सामान खरीदवाने उस के साथ मार्केट गई थी.
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फिर तो रोज ही घर का कुछ न कुछ सामान लेने रोहित अंजलि को मार्केट ले जाने लगा. कभी ब्रैड, बटर, दूध तो कभी चादरतकिए, परदों का कपड़ा, तो कभी बालटीमग आईना, इत्यादि लेने. अंजलि रोज विनीत के आने से पहले या समय पर वापस आ जाती. रात का खाना तो रोहित साथ ही खाता. 1-2 बार विनीत थोड़ा झुंझला भी गया कि यह क्या रोजरोज उस के साथ बाजार चली जाती हो. ऐसा ही था तो उस की मां आ कर उस का घर क्यों नहीं सैट कर जातीं, तब अंजलि ने कह दिया कि उस की दादी की तबीयत ठीक नहीं है और बहन की परीक्षाएं सिर पर हैं इसलिए वह भी नहीं आ सकती है.
इसी बीच लता फिर उन के यहां आ धमकी. लता के आने से विनीत फिर उस के आगेपीछे घूमने लगा. उसे लगा कि अंजलि यह देख कर परेशान हो जाएगी हर बार की तरह. लेकिन इस बार तो अंजलि ने उन दोनों को पूरी तरह नकार दिया. लता आई तब रोहित की भी छुट्टियां थी. अत: वह सारा दिन अंजलि के यहीं रहता.
रोटियां बनाने लता जैसे ही किचन में आई अंजलि तपाक से बाहर चली आई और रोहित को बुला लाई. विनीत का अजब हाल हो रहा था. उस का ध्यान अंजलि और रोहित पर था और मन मार कर लता के साथ किचन में खड़ा होना पड़ रहा था.
आगे पढें- अंजलि दूसरे सोफे पर अकेली बैठी थी. तभी रोहित…
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किचन से आती हंसीमजाक की आवाजों को सुन कर ड्राइंगरूम में सोफे के कुशन ठीक करती अंजलि की भौंहें तन गईं. एकबारगी मन किया कि किचन में चली जाए, पर पता था उन दोनों को तो उस के होने न होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता. रोज यही होता है. सुबह से अंजलि चाय, नाश्ता और खाने की पूरी तैयारी करती है, दालसब्जी बनाती है और जैसे ही रोटियां बनाने की बारी आती है उस की जेठानी लता चली आती है, ‘‘चलो अंजलि, तुम सुबह से काम रही हो. रोटियां मैं बना देती हूं.’’
मना करने पर भी अंजलि को जबरदस्ती बाहर भेज देती. लता की मदद करने अंजलि का पति विनीत तुरंत किचन में घुस जाता. अब अंजलि बिना काम के किचन में खड़ी हो कर क्या करे. अत: चुपचाप बाहर आ कर दूसरे काम निबटाती या फिर नहाने चली जाती और अगर किचन में खड़ी हो भी जाए तो लता और विनीत के भद्दे व अश्लील हंसीमजाक को देखसुन कर उस का सिर भन्ना जाता. उसे लता से कोफ्त होती. माना कि विनीत उस का देवर है, लेकिन अब तो अंजलि का पति है न, तो दूसरे के पति के साथ इस तरह का हंसीमजाक करना क्या किसी औरत को शोभा देता है?
लेकिन विनीत से जब भी बात करो इस मामले में वह उलटा अंजलि पर ही गुस्सा हो जाता कि अंजलि की सोच इतनी गंदी है. वह अपने ही पति के बारे में ऐसी गलत बातें सोचती है, शक करती है. 3 साल हो गए अंजलि और विनीत की शादी को हुए. इस 3 सालों में दसियों बार लता को ले कर उन दोनों के बीच झगड़ा हो चुका है. लेकिन हर बार नाराज हो कर उलटासीधा बोल कर विनीत अंजलि की सोच को ही बुरा और संकुचित साबित कर देता.
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पास ही के शहर में रहने के कारण लता जबतब अंजलि के घर चली आती. लता का पति यानी विनीत के बड़े भाई बैंगलुरु में नौकरी करते हैं. लता अपने दोनों बेटों के साथ अपने मातापिता के घर में रहती है, इसीलिए उसे बच्चों की भी चिंता नहीं रहती. हफ्ते या 10-15 दिनों में 2-4 दिन के लिए आ ही जाती है अंजलि के घर. और ये 2-4 दिन अंजलि के लिए बहुत बुरे बीतते. लता के जाने के बाद अंजलि अपनेआप को थोड़ा संयत करती, मन को संभालती, विनीत और अपने रिश्ते को ले कर सामान्य होती तब तक लता फिर आ धमकती और अंजलि का जैसेतैसे सुचारु हुआ जीवन और मन दोबारा अस्तव्यस्त हो जाता.
एक बार तो हद ही हो गई. लता नहाने गई हुई थी. अंजलि भी अपने कमरे में थी. थोड़ी देर बाद किसी काम से अंजलि कमरे से बाहर निकली, तो देखा विनीत लता के कमरे से बाहर आ रहा था.
‘‘क्या हुआ विनीत, भाभी नहा कर आ गईं क्या?’’ अंजलि ने पूछा.
‘‘नहीं, अभी नहीं आईं.’’
‘‘तो तुम उन के कमरे में क्या कर रहे थे?’’ अंजलि ने सीधे विनीत के चेहरे पर नजरें गढ़ा कर पूछा.
‘‘व…वह तौलिया ले जाना भूल गई थीं. वही देने गया था,’’ विनीत ने जवाब दिया.
‘‘अगर उन्हें तौलिया चाहिए था, तो मुझे बता देते तुम क्यों देने गए?’’ अंजलि को गुस्सा आया.
‘‘तुम फिर शुरू हो गईं? मैं उन्हें तौलिया देने गया था, उन के साथ नहा नहीं रहा था, जो तुम इतना भड़क रही हो. उफ, शक का कभी कोई इलाज नहीं होता. क्या संकुचित विचारों वाली बीवी गले पड़ी है. अपनी सोच को थोड़ा मौडर्न बनाओ, थोड़ा खुले दिमाग और विचारों वाली बनने की कोशिश करो,’’ विनीत ने कहा और फिर दूसरे कमरे में चला गया.
अंजलि की आंखों में आंसू छलक आए. दूसरे दिन सुबह विनीत ने बताया कि लता भाभी वापस जा रही हैं. वह औफिस जाते हुए उन्हें बस में बैठा देगा. अंजलि ने चैन की सांस ली. 4 दिन से तो विनीत लता के चक्कर में औफिस ही नहीं गया था. लता जा रही है तो अब 10-12 दिन तो कम से कम चैन से कटेंगे. यों तो विनीत अधिकतर समय फोन पर ही लता से बातें करता रहता है, लेकिन गनीमत है लता प्रत्यक्ष रूप से तो दोनों के बीच नहीं रहती.
लता और विनीत चले गए तो अंजलि ने चैन की सांस ली. उस ने अपने लिए 1 कप चाय बनाई और ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर पसर गई. जब भी लता आती है पूरे समय अंजलि का सिर भारी रहता है. वह लाख कोशिश करती है नजरअंदाज करने की, मगर क्याक्या छोड़े वह? लता और विनीत की नजदीकियां आंखों को खटकती हैं. सोफे पर एकदूसरे से सट कर बैठना, अंजलि अगर एक सोफे पर बैठी हो और लता दूसरे पर तो विनीत अंजलि के पास न बैठ कर लता के पास बैठता है. खाना खाते समय भी लता विनीत के पास वाली कुरसी पर ही बैठती है. जब तक लता रहती है अंजलि को न अपना पति अपना लगता है न घर. लता बुरी तरह विनीत के दिल पर कब्जा कर के बैठी है. रात में भी अंजलि थक कर सो जाती पर विनीत लता के पास बैठा रहता. अपने कमरे में पता नहीं कितनी रात बीतने के बाद आता.
विनीत की इन हरकतों से अंजलि बहुत परेशान हो गई थी. फिल्म देखने जाते हैं, तो विनीत अंजलि और लता के बीच बैठता और सारे समय लता से ही बातें और फिल्म पर कमैंट करता. ऐसे में अंजलि अपनेआप को बहुत उपेक्षित महसूस करती.
अंजलि के दिमाग में यही सब बातें उमड़घुमड़ रही थीं कि तभी उस के मोबाइल की रिंग बजी.
‘‘हैलो,’’ अंजलि ने फोन रिसीव करते हुए कहा.
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‘‘हैलो भाभी नमस्ते. मैं आनंद बोल रहा हूं. क्या बात है विनीत आज औफिस नहीं आया? आज बहुत जरूरी मीटिंग थी. उस के फोन पर बैल तो जा रही है, लेकिन वह फोन नहीं उठा रहा. सब ठीक तो है?’’ आनंद के स्वर में चिंता झलक रही थी. आनंद विनीत के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी.
‘‘क्या विनीत औफिस में नहीं हैं?’’ अंजलि बुरी तरह चौंक कर बोली, ‘‘लेकिन वे तो सुबह 9 बजे ही औफिस निकल गए थे.’’
‘‘नहीं भाभी विनीत आज औफिस नहीं आया है और फोन भी नहीं उठा रहा है,’’ और आनंद ने फोन काट दिया.
अंजलि को चिंता होने लगी कि आखिर विनीत कहां जा सकते हैं. दोपहर के 2 बज रहे थे. अंजलि ने भी विनीत को फोन लगाया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. अंजलि परेशान हो गई कि कहीं कोई दुर्घटना तो…
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