सबक: सुधीर जीजाजी के साथ क्या हुआ

रक्षाबंधन पर मैं मायके गई तो भैया ने मेरे ननदोई सुधीर जीजाजी के विषय में कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘नहीं भैया, ऐसा हो ही नहीं सकता, जरूर आप को कोई भ्रम हुआ होगा.’’

‘‘नहीं अनु, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ. पिछले महीने औफिस के काम से दिल्ली गया तो सोचा, सुधीर से भी मिल लूं क्योंकि उन से मुलाकात हुए काफी अरसा हो चुका था. काम से फारिग होने के बाद जब मैं सुधीर के घर पहुंचा तो वे मुझे अचानक आया हुआ देख कर कुछ घबरा से गए. उन्होंने मेरा स्वागत वैसा नहीं किया जैसा कि मेरे पहुंचने पर अकसर किया करते थे. तभी मेरी नजर शोकेस में रखी एक तसवीर पर गई. उस तसवीर में सुधीर के साथ संध्या नहीं, कोई और युवती थी. जब मैं बाथरूम से फ्रैश हो कर आया तो वह तसवीर वहां से गायब थी लेकिन वह तसवीर वाली युवती ही उन की रसोई में चायनाश्ता तैयार कर रही थी.’’

‘‘भैया, हो सकता है वह उन की मेड हो.’’

‘‘शायद मैं भी यही समझता, अगर मैं ने वह तसवीर न देखी होती.’’

‘‘देखने में कैसी थी वह युवती?’’ मैं अपनी उत्सुकता छिपा न सकी.

देखने में सुंदर मगर बहुत ही साधारण थी. एक बात और मैं ने नोटिस की, मेरे अचानक आ जाने से वह सुधीर की तरह असहज नहीं थी, बिलकुल सामान्य नजर आ रही थी. उस के हाथ की चाय और नाश्ते में आलूप्याज की पकौडि़यों और सूजी के हलवे के स्वाद से ही मैं ने जान लिया था कि वह साक्षात अन्नपूर्णा होने के साथसाथ एक कुशल गृहिणी है.

‘‘सुधीर जीजाजी ने आप का उस से परिचय नहीं करवाया?’’

‘‘उस को चायनाश्ते के लिए कहते वक्त सुधीर शायद मुझे यह दर्शा रहे थे कि वह उन की मेड है लेकिन उन के साथ उस की तसवीर, फिर तसवीर का गायब होना और मेरी उपस्थिति से सुधीर का असहज होना इस बात की तरफ साफ संकेत कर रहा था कि वह युवती उन की मेड नहीं बल्कि कुछ और है.’’

‘‘भैया, इस विषय में हमें संध्या दी को तुरंत बता देना चाहिए,’’ मैं ने उतावले स्वर में कहा.

‘‘नहीं अनु, इस विषय में तुम संध्या दी को कुछ नहीं बताओगी,’’ भैया के बजाय भाभी बड़े ही कठोर और आदेशात्मक लहजे में बोलीं. ‘‘भाभी, आप एक औरत हो कर भी औरत के साथ अन्याय की बात कर रही हैं. संध्या दी मेरे पति की सगी बहन हैं, मेरी ननद हैं. जैसे मैं आप की ननद हूं’’ ‘‘जानती हूं मैं, संध्या आप के पति की सगी बहन है, लेकिन 14 साल पहले वह अपने पति से बुरी तरह लड़झगड़ कर अपनी मरजी से अपनी दोनों बेटियों को ले कर मायके आ गई थी. सुधीर और उन के परिवार वालों ने लाख कोशिश की कि वह लौट आए लेकिन हर बार उन्हें संध्या दी ने अपमानित किया. ऐसी स्थिति में सुधीर के मांबाप ने चाहा भी कि दोनों का तलाक हो जाए लेकिन संध्या दी पर तो जैसे जिंदगीभर सुधीर को परेशान करने का जनून सवार था. शायद इसी वजह से उस ने सुधीर को तलाक भी नहीं दिया.’’

‘‘जानती हो अनु, जब तुम्हारी संध्या दी ने अपना ससुराल छोड़ा था तब अपने पति के मुंह पर थूक कर गई थी. तो भला, कौन पति अपनी ऐसी बेइज्जती सहेगा? इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद, सुधीर की इंसानियत और बड़प्पन देखो कि वे उस का और दोनों बेटियों का पूरा खर्चा बिना किसी हीलहुज्जत के नियम से दे रहे हैं. उन की हर सुखसुविधा का खयाल भी रखते हैं. महीने में उन से मिलने भी आते हैं.’’

‘‘यह तो उन का फर्ज है, भाभी. वे एक पिता और पति भी हैं,’’ मैं ने संध्या दी का पक्ष लेते हुए कहा. ‘‘सारे फर्ज सुधीर के ही हैं, तुम्हारी संध्या दी के कुछ भी नहीं,’’ भाभी कड़वे स्वर में बोलीं, ‘‘अनु, तुम ही बताओ तुम्हारी संध्या दी ने शादी के बाद अपने पति को क्या सुख दिया? उन का जीवन खराब कर दिया. कभी उन्हें मानसिक शांति नहीं मिली. मुझे तो आश्चर्य होता है कि उन की बेटियां कैसे हो गईं? उन्हें तो सुधीर के सान्निध्य से ही घिन आती थी. उन के हर काम, व्यवहार में उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती थीं. उन के कपड़े धोना तो दूर, उन्हें हाथ तक न लगाती थी. उन्हें खाने तक के लिए तरसा दिया था. वे बेचारे मां के पास खाते तो उन पर ताने कसती, उन पर व्यंग्य करती. तो बताओ अनु, क्या ऐसी औरत से हम सहानुभूति रखें? ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो अपने पति और ससुराल वालों

इतना कर्कश व्यवहार रखती हैं. एक अच्छी और सुघड़ औरत वह होती है जो परिवार को तोड़ती नहीं, बल्कि जोड़ती है. लेकिन तुम्हारी संध्या दी ने तो जोड़ना नहीं, तोड़ना सीखा है. प्रेम और मिलनसार व्यवहार जैसे शब्द तो शायद उन के शब्दकोश में हैं ही नहीं. सच पूछो, तो मुझे बेहद खुशी है कि सुधीर उस औरत के साथ हंसीखुशी रह रहे हैं.’’

‘‘भाभी, आप जो कुछ कह रही हैं वह हम सब जानते हैं. न वे व्यवहार की अच्छी हैं न स्वभाव की. जबान की भी बेहद कड़वी हैं या दूसरे शब्दों में कहें वे शुद्ध खालिस स्वार्थ की प्रतिमा हैं. मायके में भी किसी से नहीं बनी, तभी तो किराए के मकान में रह रही हैं. लेकिन एक औरत होने के नाते हमें ऐसा होने से रोकना चाहिए और संध्या दी को सबकुछ बता देना चाहिए.’’

‘‘अनु, इस मामले में मेरी सोच तुम से जुदा है. मैं भी एक औरत हूं लेकिन इस प्रकरण में मैं सुधीर का साथ दूंगी क्योंकि हर जगह आदमी ही गलत नहीं होता. 95 प्रतिशत मामलों में दोषी न होते हुए भी पुरुषों को ही दोषी ठहराया जाता है. अगर एक पति अपनी कर्कशा पत्नी को पूरा खर्चा दे रहा है, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है और इस के एवज में अगर वह अपना एकाकीपन दूर करने के लिए एक औरत के साथ सुखी, संतुष्ट और तनावमुक्त जीवन जी रहा है तो इस में गलत क्या है? वह औरत भी पूरी सचाई से वाकिफ है, तो बुरा क्या है. प्लीज, जैसा चल रहा है, चलने दो. इस बारे में संध्या को बताने का मतलब साफ है कि सुधीर का जीवन पहले से और भी बदतर हो जाना क्योंकि संध्या की फितरत से वाकिफ हूं मैं.’’

‘‘लेकिन भाभी, उस औरत को अंत में क्या हासिल होगा? कानूनी रूप से तो संध्या ही उन की पत्नी हैं. सुधीर जीजाजी के न रहने पर उन की सारी संपत्ति, जमीनजायदाद और पैंशन पर तो संध्या दी का ही हक होगा. यह सब छिपा कर हम उस औरत के साथ भी तो एक तरह से अन्याय ही कर रहे हैं,’’ मैं ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘नहीं अनु, तुम किसी के साथ कोई अन्याय नहीं कर रही हो. मैं जानती हूं, सुधीर जैसे नेकदिल इंसान मात्र अपने सुख और स्वार्थ के लिए उस औरत के साथ कोई धोखा नहीं करेंगे, न ही उसे अंधेरे में रखेंगे. पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ वे अपना रिश्ता निभाएंगे. मुझे पूरा विश्वास है सुधीर जैसे पढ़ेलिखे, समझदार और दूरदर्शी व्यक्ति ने उस के सुखी और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ न कुछ प्रबंध अवश्य कर दिया होगा.

‘‘रही बात संध्या की, तो ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो बिना वजह अपने पति और ससुराल वालों को प्रताडि़त कर के उन्हें कानूनी धमकी दे कर अपने मायके आ जाती हैं. इस श्रेणी में तुम्हारी संध्या दी भी आती हैं. यह बात मैं ही नहीं, तुम और तुम्हारे ससुराल वाले और यहां तक कि दोनों तरफ के रिश्तेदार व पड़ोसी भी जानते हैं. इसलिए यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ती हूं कि तुम संध्या को बता कर सुधीर की खुशहाल जिंदगी में जहर घुलवाओगी या चुप रह कर उन की वर्तमान खुशियां बरकरार रखोगी,’’ कह कर भाभी चुप हो गईं.

जानती हूं मैं, भाभी ने जो कुछ कहा है वह एकदम सच कहा है क्योंकि सुधीर जीजाजी उन के करीबी रिश्तेदार हैं. उन्होंने अपना दर्द उन से बयां किया है. मैं अजीब कशमकश में हूं कि एक निर्दोष आदमी की खुशियों की खातिर चुप रहूं या फिर एक कटु, कठोर व कर्कशा औरत के न्याय के लिए बोलूं… फिर भी यह तो मैं भी मानती हूं कि पतिपत्नी के रिश्ते को चाहे वह पति हो या पत्नी, कोई एक भी उस रिश्ते को तोड़ने का जिम्मेदार है तो कुसूरवार वही है. ऐसे में दोषी के साथ सहानुभूति दिखाना बेकुसूर के साथ बेइंसाफी होगी. सुधीर जीजाजी को पूरा हक है कि वे अपनी जिंदगी को नए सिरे से संवारें.

सबक: आखिर कैसे बदल गई निशा?

सुबह सैर कर के लौटी निशा ने अखबार पढ़ रहे अपने पति रवि को खुशीखुशी बताया, ‘‘पार्क में कुछ दिन पहले मेरी सपना नाम की सहेली बनी है. आजकल उस का अजय नाम के लड़के से जोरशोर के साथ इश्क चल रहा है.’’ ‘‘मुझे यह क्यों बता रही हो?’’ रवि ने अखबार पर से बिना नजरें उठाए पूछा.

‘‘यह सपना शादीशुदा महिला है.’’ ‘‘इस में आवाज ऊंची करने वाली क्या बात है? आजकल ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं.’’

‘‘आप को चटपटी खबर सुनाने का कोई फायदा नहीं होता. अभी औफिस में कोई समस्या पैदा हो जाए तो आप के अंदर जान पड़ जाएगी. उसे सुलझाने में रात के 12 बज जाएं पर आप के माथे पर एक शिकन नहीं पड़ेगी. बस मेरे लिए आप के पास न सुबह वक्त है, न रात को,’’ निशा रोंआसी हो उठी. ‘‘तुम से झगड़ने का तो बिलकुल भी वक्त नहीं है मेरे पास,’’ कह रवि ने मुसकराते हुए उठ कर निशा का माथा चूमा और फिर तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

निशा ने माथे में बल डाले और फिर सोच में डूबी कुछ पल अपनी जगह खड़ी रही. फिर गहरी सांस खींच कर मुसकराई और रसोई की तरफ चल पड़ी. उस दिन औफिस में रवि को 4 परचियां मिलीं. ये उस के लंच बौक्स, पर्स, ब्रीफकेस और रूमाल में रखी थीं. इन सभी पर निशा ने सुंदर अक्षरों में ‘आईलवयू’ लिखा था.

इन्हें पढ़ कर रवि खुश भी हुआ और हैरान भी क्योंकि निशा की यह हरकत उस की समझ से बाहर थी. उस के मन में तो निशा की छवि एक शांत और खुद में सीमित रहने वाली महिला की थी.

रोज की तरह उस दिन भी रवि को औफिस से लौटने में रात के 11 बज गए. उन चारों परचियों की याद अभी भी उस के दिल को गुदगुदा रही थी. उस ने निशा को अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘आज कोई खास दिन है क्या?’’ ‘‘नहीं तो,’’ निशा ने मुसकराते हुए

जवाब दिया. ‘‘फिर वे सब परचियां मेरे सामान में क्यों रखी थीं?’’

‘‘क्या प्यार का इजहार करते रहना गलत है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ ‘‘तुम ने शादी के 2 सालों में पहले कभी ऐसा नहीं किया, इसलिए मुझे हैरानी हो रही है.’’

‘‘तो फिर लगे हाथ एक नई बात और बताती हूं. आप की शक्ल फिल्म स्टार शाहिद कपूर से मिलती है.’’ ‘‘अरे नहीं. मजाक मत उड़ाओ, यार,’’ रवि एकदम से खुश हो उठा था.

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं उड़ा रही हूं, जनाब. वैसे मेरा अंदाजा है कि आप बन रहे हो. अब तक न जाने कितनी लड़कियां आप से यह बात कह चुकी होंगी.’’ ‘‘आज तक 1 ने भी नहीं कही है यह बात.’’

‘‘चलो शाहिद कपूर नहीं कहा होगा, पर आप के इस सुंदर चेहरे पर जान छिड़कने वाली लड़कियों की कालेज में तो कभी कमी नहीं रही होगी,’’ निशा ने अपने पति की ठोड़ी बड़े स्टाइल से पकड़ कर उसे छेड़ा. ‘‘मैडम, मेरी दिलचस्पी लड़कियों में नहीं, बल्कि पढ़नेलिखने में थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती कि कालेज में आप की कोई खास सहेली नहीं थी. आज तो मैं उस के बारे में सब कुछ जान कर ही रहूंगी,’’ निशा बड़ी अदा से मुसकराई और फिर स्टाइल से चलते हुए चाय बनाने के लिए रसोई में घुस गई. उस दिन से रवि के लिए अपनी पत्नी के बदले व्यवहार को समझना कठिन होता चला

गया था. उस रात निशा ने रवि से उस की गुजरी जिंदगी के बारे में ढेर सारे सवाल पूछे. रवि शुरू में झिझका पर धीरेधीरे काफी खुल गया. उसे पुराने दोस्तों और घटनाओं की चर्चा करते हुए बहुत मजा आ रहा था.

वैसे वह पलंग पर लेटने के कुछ मिनटों बाद ही गहरी नींद में डूब जाता था, लेकिन उस रात सोतेसोते 1 बज गया.

‘‘गुड नाइट स्वीट हार्ट,’’ निशा को खुद से लिपटा कर सोने से पहले रवि की आंखों में उस के लिए प्यार के गहरे भाव साफ नजर आ रहे थे.

अगले दिन निशा सैर कर के लौटी तो उस के हाथ में एक बड़ी सी चौकलेट थी. रवि के सवाल के जवाब में उस ने बताया, ‘‘यह मुझे सपना ने दी है. उस का प्रेमी अजय उस के लिए ऐसी 2 चौकलेट लाया था.’’ ‘‘क्या तुम्हें चौकलेट अभी भी पसंद है?’’

‘‘किसी को चौकलेट दिलवाने का खयाल आना बंद हो जाए, तो क्या दूसरे इंसान की उसे शौक से खाने की इच्छा भी मर जाएगी?’’ निशा ने सवाल पूछने के बाद नाटकीय अंदाज में गहरी सांस खींची और अगले ही पल खिलखिला कर हंस भी पड़ी. रवि ने झेंपे से अंदाज में चौकलेट के कुछ टुकड़े खाए और साथ ही साथ मन में निशा के लिए जल्दीजल्दी चौकलेट लाते रहने का निश्चय भी कर लिया.

‘‘आज शाम को क्या आप समय से लौट सकेंगे?’’ औफिस जा रहे रवि की टाई को ठीक करते हुए निशा ने सवाल किया. ‘‘कोई काम है क्या?’’

‘‘काम तो नहीं है, पर समय से आ गए तो आप का कुछ फायदा जरूर होगा.’’ ‘‘किस तरह का फायदा?’’

‘‘आज शाम को वक्त से लौटिएगा और जान जाइएगा.’’ निशा ने और जानकारी नहीं दी तो मन में उत्सुकता के भाव समेटे रवि को औफिस जाना पड़ा.

मन की इस उत्सुकता ने ही उस शाम रवि को औफिस से जल्दी घर लौटने को मजबूर कर दिया था. उस शाम निशा ने उस का मनपसंद भोजन तैयार किया था. शाही पनीर, भरवां भिंडी, बूंदी का रायता और परांठों के साथसाथ उस ने मेवा डाल कर खीर भी बनाई थी.

‘‘आज किस खुशी में इतनी खातिर कर रही हो?’’ अपने पसंदीदा भोजन को देख कर रवि बहुत खुश हो गया. ‘‘प्यार का इजहार करने का यह क्या बढि़या तरीका नहीं है?’’ निशा ने इतराते हुए पूछा तो रवि ठहाका मार कर हंस पड़ा.

भर पेट खाना खा कर रवि ने डकार ली और फिर निशा से बोला, ‘‘मजा आ गया, जानेमन. इस वक्त मैं बहुत खुश हूं… तुम्हारी किसी भी इच्छा या मांग को जरूर पूरा करने का वचन देता हूं.’’ ‘‘मेरी कोई इच्छा या मांग नहीं है, साहब.’’

‘‘फिर पिछले 2 दिनों से मुझे खुश करने की इतनी ज्यादा कोशिश क्यों की जा रही है?’’ ‘‘सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को खुश देख कर मुझे खुशी मिलती है, हिसाबकिताब रख कर काम आप करते होंगे, मैं नहीं.’’ निशा ने नकली नाराजगी दिखाई तो रवि फौरन उसे मनाने के काम में लग गया.

रवि ने मेज साफ करने में निशा का हाथ बंटाया. फिर उसे रसोई में सहयोग दिया. निशा जब तक सहज भाव से मुसकराने नहीं लगी, तब तक वह उसे मनाने का खेल खेलता रहा. उस रात खाना खाने के बाद रवि निशा के साथ कुछ देर छत पर भी घूमा. बड़े लंबे समय के बाद दोनों ने इधरउधर की हलकीफुलकी बातें करते हुए यों साथसाथ समय गुजारा.

अगले दिन रविवार होने के कारण रवि देर तक सोया. सैर से लौट आने के बाद निशा ने चाय बनाने के बाद ही उसे उठाया. दोनों ने साथसाथ चाय पी. रवि ने नोट किया कि निशा लगातार शरारती अंदाज में मुसकराए जा रही है. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आज भी मुझे कोई सरप्राइज मिलने वाला है?’’

‘‘बहुत सारे मिलने वाले हैं,’’ निशा की मुसकान रहस्यमयी हो उठी. ‘‘पहला बताओ न?’’

‘‘मैं ने अखबार छिपा दिया है.’’ ‘‘ऐसा जुल्म न करो, यार. अखबार पढ़े बिना मुझे चैन नहीं आएगा.’’

‘‘आप की बेचैनी दूर करने का इंतजाम भी मेरे पास है.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘आइए,’’ निशा ने उस का हाथ पकड़ा और छत पर ले आई. छत पर दरी बिछी हुई थी. पास में सरसों के तेल से भरी बोतल रखी थी. रवि की समझ में सारा माजरा आया तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा और उस ने खुशी से पूछा, ‘‘क्या तेल मालिश करोगी?’’

‘‘यस सर.’’ ‘‘आई लव तेल मालिश.’’ रवि फटाफट कपड़े उतारने लगा.

‘‘ऐंड आईलवयू,’’ निशा ने प्यार से उस का गाल चूमा और फिर अपने कुरते की बाजुएं चढ़ाने लगी.

रवि के लिए वह रविवार यादगार दिन बन गया.

तेल मालिश करातेकराते वह छत पर ही गहरी नींद सो गया. जब उठा तो आलस ने उसे घेर लिया.

‘‘गरम पानी तैयार है, जहांपनाह और आज यह रानी आप को स्नान कराएगी,’’ निशा की इस घोषणा को सुन कर रवि के तनमन में गुदगुदी की लहर दौड़ गई.

रवि तो उसे नहाते हुए ही जी भर कर प्यार करना चाहता था पर निशा ने खुद को उस की पकड़ में आने से बचाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी से खेल बिगड़ जाता है, साहब.

अभी तो कई सरप्राइज बाकी हैं. प्यार का जोश रात को दिखाना.’’ ‘‘तुम कितनी रोमांटिक…कितनी प्यारी…कितनी बदलीबदली सी हो गई हो.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ उस की कमर पर साबुन लगाते हुए निशा ने जरा सी बगल गुदगुदाई तो वह बच्चे की तरह हंसता हुआ फर्श पर लुढ़क गया. निशा ने बाहर खाना खाने की इच्छा जाहिर की तो रवि उसे ले कर शहर के सब

से लोकप्रिय होटल में आ गया. भर पेट खाना खा कर होटल से बाहर आए तो यौन उत्तेजना का शिकार बने रवि ने घर लौटने की इच्छा जाहिर की. ‘‘सब्र का फल ज्यादा मीठा होता है, सरकार. पहले इस सरप्राइज का मजा तो ले लीजिए,’’ निशा ने अपने पर्स से शाहरुख खान की ताजा फिल्म के ईवनिंग शो के 2 टिकट निकाल कर उसे पकड़ाए तो रवि ने पहले बुरा सा मुंह बनाया पर फिर निशा के माथे में पड़े बलों को देख कर फौरन मुसकराने लगा.

निशा को प्यार करने की रवि की इच्छा रात के 10 बजे पूरी हुई. निशा तो कुछ देर पार्क में टहलना चाहती थी, लेकिन अपनी मनपसंद आइसक्रीम की रिश्वत खा कर वह सीधे घर लौटने को राजी हो गई. रवि का मनपसंद सैंट लगा कर जब वह रवि के पास पहुंची तो उस ने अपनी बांहें प्यार से फैला दीं.

‘‘नो सर. आज सारी बातें मेरी पसंद से हुई हैं, तो इस वक्त प्यार की कमान भी आप मुझे संभालने दीजिए. बस, आप रिलैक्स करो और मजा लो.’’ निशा की इस हिदायत को सुन कर रवि ने खुशीखुशी अपनेआपको उस के हवाले कर दिया.

रवि को खुश करने में निशा ने उस रात कोईर् कसर बाकी नहीं छोड़ी. अपनी पत्नी के इस नए रूप को देख कर हैरान हो रहा रवि मस्ती भरी आवाज में लगातार निशा के रंगरूप और गुणों की तारीफ करता रहा. मस्ती का तूफान थम जाने के बाद रवि ने उसे अपनी छाती से लगा कर पूछा, ‘‘तुम इतनी ज्यादा कैसे बदल गईर् हो, जानेमन? अचानक इतनी सारी शोख, चंचल अदाएं कहां से सीख ली हैं?’’

‘‘तुम्हें मेरा नया रूप पसंद आ रहा है न?’’ निशा ने उस की आंखों में प्यार से झांकते

हुए पूछा. ‘‘बहुत ज्यादा.’’

‘‘थैंक यू.’’ ‘‘लेकिन यह तो बताओ कि ट्रेनिंग कहां से ले रही हो?’’

‘‘कोई देता है क्या ऐसी बातों की ट्रेनिंग?’’ ‘‘विवाहित महिला एक पे्रमी बना ले तो उस के अंदर सैक्स के प्रति उत्साह यकीनन बढ़ जाएगा. कम से कम पुरुषों के मामले में तो ऐसा पक्का होता है. कहीं तुम ने भी तो अपनी उस पार्क वाली सहेली सपना की तरह किसी के साथ टांका फिट नहीं कर लिया है?’’

‘‘छि: आप भी कैसी घटिया बात मुंह से निकाल रहे हो?’’ निशा रवि की छाती से और ज्यादा ताकत से लिपट गई, ‘‘मुझ पर शक करोगे तो मैं पहले जैसा नीरस और उबाऊ ढर्रा फिर से अपना लूंगी.’’ ‘‘ऐसा मत करना, जानेमन. मैं तो तुम्हें जरा सा छेड़ रहा था.’’

‘‘किसी का दिल दुखाने को छेड़ना नहीं कहते हैं.’’ ‘‘अब गुस्सा थूक भी दो, स्वीटहार्ट. आज तुम ने मुझे जो भी सरप्राइज दिए हैं, उन के लिए बंदा ‘थैंकयू’ बोलने के साथसाथ एक सरप्राइज भी तुम्हें देना चाहता है.’’

‘‘क्या है सरप्राइज?’’ निशा ने उत्साहित लहजे में पूछा. ‘‘मैं ने तुम्हारी गर्भनिरोधक गोलियां फेंक

दी है?’’ ‘‘क्यों?’’ निशा चौंक पड़ी.

‘‘क्योंकि अब 3 साल इंतजार करने के बजाय मैं जल्दी पापा बनना चाहता हूं.’’ ‘‘सच.’’ निशा खुशी से उछल पड़ी.

‘‘हां, निशा. वैसे तो मैं भी अब ज्यादा से ज्यादा समय तुम्हारे साथ बिताने की कोशिश किया करूंगा, पर अकेलेपन के कारण तुम्हारे सुंदर चेहरे को मुरझाया सा देखना अब मुझे स्वीकार नहीं. मेरे इस फैसले से तुम खुश हो न?’’ निशा ने उस के होंठों को चूम कर अपना जवाब दे दिया.

रवि तो बहुत जल्दी गहरी नींद में सो गया, लेकिन निशा कुछ देर तक जागती रही. वह इस वक्त सचमुच अपनेआप को बेहद खुश व सुखी महसूस कर रही थी. उस ने मन ही मन अपनी सहेली सपना और उस के प्रेमी को धन्यवाद दिया. इन दोनों के कारण ही उस के विवाहित जीवन में आज रौनक पैदा हो गई थी.

पार्क में जानपहचान होने के कुछ दिनों बाद ही अजय ने सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने के प्रयास शुरू कर दिए थे. सपना तो उसे डांट कर दूर कर देती, लेकिन निशा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

‘‘सपना, मैं देखना चाहती हूं कि वह तुम्हारा दिल जीतने के लिए क्याक्या तरकीबें अपनाता है. यह बंदा रोमांस करने में माहिर है और मैं तुम्हारे जरीए कुछ दिनों के लिए इस की शागिर्दी करना चाहती हूं.’’

निशा की इस इच्छा को जान कर सपना हैरान नजर आने लगी थी. ‘‘पर उस की शागिर्दी कर के तुम्हें हासिल क्या होगा?’’ आंखों में उलझन के भाव लिए सपना ने पूछा.

‘‘अजय के रोमांस करने के नुसखे सीख कर मैं उन्हें अपने पति पर आजमाऊंगी, यार.

उन्हें औफिस के काम के सिवा आजकल और कुछ नहीं सूझता है. उन के लिए कैरियर ही सबकुछ हो गया है. मेरी खुशी व इच्छाएं ज्यादा माने नहीं रखतीं. उन के अंदर बदलाव लाना मेरे मन की सुखशांति के लिए जरूरी हो गया

है, यार.’’ अपनी सहेली की खुशी की खातिर सपना ने अजय के साथ रोमांस करने का नाटक चालू रखा. सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने को वह जो कुछ भी करने की इच्छा प्रकट करता, निशा उसी तरकीब को रवि पर आजमाती.

पिछले दिनों निशा ने रवि को खुश करने के लिए जो भी काम किए थे, वे सब अजय की ऐसी ही इच्छाओं पर आधारित थे. उस ने कुछ महत्त्वपूर्ण सबक भविष्य के लिए भी सीखे थे. ‘विवाहित जीवन में ताजगी, उत्साह

और नवीनता बनाए रखने के लिए पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का दिल जीतने के प्रयास

2 प्रेमियों की तरह ही करते रहना चाहिए,’ इस सबक को उस ने हमेशा के लिए अपनी गांठ में बांध लिया. ‘अपने इस मजनू को अब हरी झंडी दिखा दो,’ सपना को कल सुबह यह संदेशा देने की बात सोच कर निशा पहले मुसकराई और फिर सो रहे रवि के होंठों को हलके से चूम कर उस ने खुशी से आंखें मूंद लीं.

सबक: क्यों शिखा की शादीशुदा जिंदगी में जहर घोल रही थी बचपन की दोस्त

अपनेमंगेतर रवि के दोस्त मयंक की सगाई के मौके पर शिखा पहली बार नेहा से मिली थी. कुछ ही देर में नेहा के मुंह से उस ने बहुत सी ऐसी बातें सुनीं, जिन से साफ जाहिर हो गया कि वह उसे फूटी आंख नहीं भा रही थी.

शिखा को पता था कि वह अच्छी डांसर नहीं है, लेकिन उसे डांस करने में बहुत मजा आता था. रवि के साथ कुछ देर डांस करने के बाद जब वह अपनी परिचित महिलाओं के पास गपशप करने पहुंची, तब नेहा ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की, ‘‘डांस में जोश के साथसाथ ग्रेस भी नजर आनी चाहिए, नहीं तो इंसान जंगली सा नजर आता है.’’

फिर कुछ देर बाद उस ने शिखा की फिगर को निशाना बनाते हुए कहा, ‘‘शिखा, तुम मेरी बात का बुरा मत मानना, पर आजकल जो जीरो साइज का फैशन चल रहा है, वह मेरी समझ से तो बाहर है. फैशन अपनी जगह है पर प्रेमी या पति के हिस्से में प्यार करते हुए सिर्फ हड्डियों का ढांचा आए, यह उस बेचारे के साथ नाइंसाफी होगी या नहीं?’’

नेहा की इस बात को सुन कर सब औरतें खूब हंसी. शिखा ने कुछ तीखा जवाब देने से खुद को रोक लिया. अपने दिमाग पर बहुत जोर डालने के बाद भी शिखा की समझ में नहीं आया कि नेहा क्यों उस के साथ ऐसा गलत सा व्यवहार कर रही है.

शिखा ने एकांत में जा कर आखिरकार रवि से पूछ ही लिया, ‘‘अतीत में तुम्हारे नेहा से कैसे संबंध रहे हैं?’’

‘‘ठीक रहे हैं, पर तुम यह सवाल क्यों पूछ रही हो?’’ उन्होंने ध्यान से शिखा के चेहरे को पढ़ना शुरू कर दिया.

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‘‘क्योंकि मुझे लग रहा है कि नेहा जानबूझ कर मेरे साथ बेढंगा सा व्यवहार कर रही है. चूंकि आज हम पहली बार मिले हैं, इसलिए मेरी किसी गलती के कारण उस के यों नाराज नजर आने का सवाल ही नहीं उठता. आर यू श्योर कि किसी पुरानी अनबन के कारण वह आप से नाराज नहीं चल रही है?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ कभी उस का झगड़ा नहीं हुआ है.’’

‘‘फिर क्या कारण हो सकता है, जो वह मुझ से इतनी खुंदक खा रही है?’’

‘‘इंसान का मूड सौ कारणों से खराब हो जाता है. तुम बेकार की टैंशन क्यों ले रही हो, यार? चलो, तुम्हें टिक्की खिलाता हूं.’’

‘‘वह मेरा पार्टी का सारा मजा किरकिरा कर रही है.’’

‘‘तो चलो उस से झगड़ा कर लेते हैं,’’ रवि कुछ चिड़ उठे थे.

‘‘तुम नाराज मत होओ. मैं उस की बातों पर ध्यान देना बंद कर देती हूं,’’ उस का मूड ठीक करने को शिखा फौरन मुसकरा उठी.

‘‘यह हुई न समझदारी की बात,’’ रवि ने प्यार से उस का गाल थपथपाया और फिर हाथ पकड़ कर टिक्की वाले स्टाल की तरफ बढ़ चला.

शिखा नेहा के गलत व्यवहार के बारे में सबकुछ भूल ही जाती अगर उस ने  कुछ देर बाद उन दोनों को बाहर बगीचे में बहुत उत्तेजित व परेशान अंदाज में बातें करते खिड़की से न देख लिया होता.

वह उन की आवाजें तो नहीं सुन सकती थी पर उन के हावभाव से अंदाज लगाया कि रवि उसे कुछ समझने की कोशिश कर रहा था और वह बड़ी अकड़ से अपनी बात कह रही थी. उत्तेजित लहजे में बोलते हुए नेहा रवि के ऊपर हावी होती नजर आ रही थी, इस बात ने शिखा के मन में खलबली सी मचा दी.

अपने मन की चिंता को काबू में रखते हुए वह मयंक के पास पहुंची और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘आप मुझे 1 बात सचसच बताओगे, मयंक भैया?’’

‘‘बिलकुल बताऊंगा,’’ मयंक ने मुसकरा कर जवाब दिया.

‘‘आप तो जानते ही हो कि मैं रवि को अपनी जान से ज्यादा चाहती हूं.’’

‘‘यह मुझे अच्छी तरह से मालूम है.’’

‘‘नेहा से आज मैं पहली दफा मिली हूं. वह मुझ से अकारण क्यों चिड़ी हुई है और बातबात में मुझे सब के सामने शर्मिंदा करने की कोशिश क्यों कर रही है, मेरे इन सवालों का जवाब तुम दो, प्लीज.’’

शिखा को बहुत संजीदा देख मयंक ने कोई कहानी गढ़ने का इरादा त्याग दिया. वह शांत खड़ी हो कर उन के बोलने का इंतजार कर रही थी.

कुछ देर बाद उस ने धीमी आवाज में शिखा को बताया, ‘‘नेहा कालेज में हमारे साथ पढ़ती थी. रवि और वह कभी एकदूसरे को बहुत चाहते थे. फिर उस के मातापिता की रजामंदी न होने से वे शादी नहीं कर पाए थे.

‘‘अमीर पिता की बेटी नेहा की शादी भी बड़े अच्छे घर में हुई है, पर अपने पति के साथ उस के संबंध अच्छे नहीं चल रहे हैं. लेकिन तुम किसी बात की चिंता मत करो. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि रवि के मन में अब उस के लिए कोई आकर्षण मौजूद नहीं है.’’

‘‘लेकिन नेहा के मन में रवि के लिए अभी भी आकर्षण मौजूद है, नहीं तो मैं उस की आंखों में क्यों चुभती?’’ नेहा के मन में गुस्सा बढ़ने लगा था.

‘‘मुझे एक बात बताओ. रवि के प्यार के ऊपर तुम्हें पूरा विश्वास है न?’’

‘‘अपने से ज्यादा विश्वास करती हूं मैं उन पर, लेकिन…’’

‘‘लेकिन को गोली मारो और मुझे बताओ कि जब रवि के प्यार पर तुम्हें पूरा विश्वास है, तो फिक्र किस बात की कर रही हो?’’

‘‘जो बीज भविष्य में बड़ी सिरदर्दी का पेड़ बनने की संभावना रखता हो, क्या उसे शुरू में ही नष्ट कर देना समझदारी नहीं होगी?’’

‘‘यह बात तो ठीक है, पर तुम करने क्या जा रही हो?’’

‘‘तुम्हारी पार्टी में कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करूंगी, देवरजी. मैं नेहा को ऐसा सबक सिखाना चाहती हूं कि वह भविष्य में कभी मुझ से पंगे लेने की जुर्रत न करे. तुम तो बस मेरा परिचय उस के पति से करा दो, प्लीज.’’

शिखा की बात को सुन मयंक की आंखों से चिंता के भाव तो कम नहीं हुए पर वो नेहा के पति विवेक के साथ उस का परिचय कराने को साथ चल पड़ा था.

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आकर्षक युवतियों के लिए पुरुषों के मन को प्रभावित करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है. शिखा ने विवेक की जिंदगी के बारे में जानने को थोड़ी सी दिलचस्पी दिखाई, तो बहुत जल्दी वो दोनों बहुत अच्छे मित्रों की तरह से हंसनेबोलने लगे थे.

‘‘मेरे पति कहीं नजर नहीं आ रहे हैं और मेरा दिल आइसक्रीम खाने को कर रहा है,’’ करीब 15 मिनट की जानपहचान के बाद शिखा की इस इच्छा को सुनते ही विवेक की आंखों में जो चमक पैदा हुई वह इस बात का प्रतीक थी कि उस का जादू विवेक पर पूरी तरह से चल गया है.

‘‘अगर तुम्हें ठीक लगे तो मेरे साथ आइसक्रीम खाने चलो,’’ उस ने फौरन साथ चलने का प्रस्ताव शिखा के सामने रख दिया.

‘‘आप चलोगे मेरे साथ?’’

‘‘बड़ी खुशी से.’’

‘‘यों मेरे साथ अकेले बाहर घूमने जाने से कहीं आप की पत्नी नाराज तो नहीं हो जाएंगी?’’ यह पूछते हुए शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘उसे मैं ने इतना सिर नहीं चढ़ाया हुआ है कि इतनी छोटी बात को ले कर मुझ से झगड़ा करे.’’

‘‘फिर भी हमें बिना मतलब किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए. आप बाहर मेरी कार नंबर 4678 के पास मेरा इंतजार करोगे, प्लीज. मैं 2 मिनट के बाद बाहर आती हूं.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ कह हौल के मुख्य द्वार की तरफ चल पड़ा.

विवेक  जैसे ही शिखा की नजरों से ओझल हुआ तो वह तेज चाल से कुछ दूर  खड़ी नेहा से मिलने चल पड़ी.

पास पहुंच कर शिखा ने उस का हाथ पकड़ा और उसे उस की सहेलियों से कुछ दूर ले आई. फिर उस के कान के पास मुंह ले जा कर उस ने हैरान नजर आ रही नेहा को कठोर लहजे में धमकी दी, ‘‘मुझे तुम्हारे और रवि के बीच कालेज में रहे पुराने इश्क के चक्कर के बारे में सबकुछ पता लग गया है. तुम अभी भी उस के साथ चक्कर चालू रखना चाहती हो, यह भी मुझे पता है. आज तुम ने सब के सामने जो मुझे बेइज्जत करने की बारबार कोशिश करी है, उस के लिए मैं तुम्हें सजा जरूर दूंगी.’’

‘‘मैं विवेक के साथ बाहर घूमने जा रही हूं और रास्ते में उसे तुम्हारी चरित्रहीनता के बारे में सब बता कर उस की नजरों में तुम्हारी छवि बिलकुल खराब कर दूंगी. तुम तो मेरे और रवि के बीच कबाब में क्या हड्डी बनती, मैं ही तुम्हारे विवाहित जीवन की सारी खुशियां नष्ट कर देती हूं,’’ उसे धमकी देने के बाद शिखा गुस्से से कांपने का अभिनय करती हुई मुख्य दरवाजे की तरफ चल पड़ी.

नेहा ने शिखा को घबराहट और डर से कांपती आवाज में पुकार कर रोकने की कोशिश करी, पर उस ने मुड़ कर नहीं देखा.

हौल से बाहर आ कर शिखा दाईं तरफ कुछ फुट दूर एक झड़ी के पीछे छिप कर बैठ गई. वहां से उसे दरवाजा साफ नजर आ रहा था.

रवि और नेहा मुश्किल से 2 मिनट बाद बेहद घबराए हुए दरवाजे से बाहर आए. जब शिखा या विवेक उन्हें कहीं नहीं नजर आए, तो वे आपस में बातें करने लगे.

‘‘शिखा तो कहीं दिखाई नहीं दे रही है,’’ रवि बहुत परेशान नजर आ रहा था.

‘‘उसे ढूंढ़ कर विवेक से बातें करने से रोको, नहीं तो वह मुझे कभी चैन से जीने नहीं देगा,’’ नेहा की आवाज डर के मारे कांप रही थी.

‘‘जब वह कहीं दिखाई ही नहीं दे रही है, तो मैं उसे रोकूं कैसे?’’ विवेक चिड़ उठा.

‘‘तुम ने उसे हमारे प्रेम के बारे में कुछ बताया ही क्यों?’’

‘‘मैं पागल हूं जो उसे तुम्हारे बारे में कुछ बताऊंगा?’’

‘‘फिर उस ने मुझ से क्या यह झूठ बोला है कि वह हमारे बारे में सबकुछ जान गई है?’’

‘‘हो सकता है किसी और ने उसे सब बता दिया हो, पर मुझे यह बताओ कि तुम आज बेकार ही उस के साथ चिड़ और नाराजगी से भरा गलत व्यवहार कर उसे क्यों छेड़ रही थी?’’

‘‘क्योंकि यह सच है कि वह घमंडी लड़की तुम्हारी भावी जीवनसंगिनी के रूप में मुझे रत्तीभर पसंद नहीं आई है.’’

‘‘तुम्हें अपनी यह राय अपने तक रखनी चाहिए थी. तुम्हारेमेरे बीच जो प्यार का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो चुका है, उस के आधार पर तुम्हें किसी कमअक्ल स्त्री की तरह शिखा से खुंदक नहीं खानी चाहिए थी,’’ रवि ने उसे फौरन डांटा तो मेरे मन ने इसे रवि की नेहा में कोई दिलचस्पी न होने का सुबूत मान कर बड़ी राहत महसूस करी.

‘‘तुम उसे रोकने के बजाय मुझे लैक्चर मत दो, तुम्हें पता नहीं कि विवेक का गुस्सा कितना तेज है. शिखा की बातें सुनने के बाद वह गुस्सैल इंसान मुझे ताने देदे कर मार डालेगा. कितनी पागल और बेवकूफ है यह शिखा. उस के लिए ये सब खेल होगा, पर मेरी तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’

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वह अचानक रोने लगी तो मैं ने उन के सामने आने का यही मौका उचित समझ.

अपने छिपने की जगह से बाहर आते हुए ही मैं ने नेहा को सख्त लहजे में चेतावनी देनी शुरू कर दी, ‘‘अगर तुम में थोड़ी सी भी बुद्धि है तो आज की इस घटना को, अपने मन के डर और इस वक्त अपनी आंखों से बहते इन आंसुओं को कभी मत भूलना. रवि की बातों से यह साफ जाहिर हो रहा है कि उसे तुम से किसी तरह का कोई वास्ता नहीं रखना है. तुम भी कभी उस के साथ गलत नीयत के साथ मुलाकात करने की कोशिश मत करना. तुम मेरी कुछ बातें इस वक्त कान खोल कर सुन लो. जो बीत गया है उसे भूलो और वर्तमान की तुलना अतीत से कर अपना मन मत दुखाओ. रवि और मैं कुछ ही दिनों बाद शादी कर के नई शुरुआत करने जा रहे हैं. अपने विवाहित जीवन के दुखों को दूर करने के लिए अगर तुम ने मेरे रवि को गुमराह कर हमारे रास्ते में दिक्कत खड़ी करने की कभी कोशिश करी, तो बहुत पछताओगी.’’

मेरी चेतावनी के जवाब में बहुत डरी हुई नेहा के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. कुछ देर पहले उस में नजर आ रही सारी अकड़ छूमंतर हो गई थी.

मैं ने बड़े अधिकार से रवि का हाथ पकड़ा और उसे साथ ले कर अंदर हौल की तरफ चल पड़ी. मुझे पक्का विश्वास था कि नेहा भविष्य में मेरे भावी जीवनसाथी के साथ किसी तरह का संपर्क बनाने की जुर्रत कभी नहीं करेगी.

सबक: आखिर क्या देख लिया मोहित ने?

लेखिका- शुभम गुप्ता 

दीवाली की दोपहर को अपने दोस्त नीरज से मोहित की मुलाकात तब हुई जब वह तेज चाल से नेहा के घर की तरफ जा रहा था.

‘‘यार, हां या न में जवाब कब देगा?’’ नीरज ने उस से हाथ मिलाते हुए पूछा.

‘‘अभी सोच रहा हूं कि क्या जवाब दूं,’’ मोहित ने कहा.

‘‘मेरे भाई, तू 32 साल का हो रहा है. शादी करेगा तो बच्चे भी होंगे. क्या यह अच्छा नहीं रहेगा कि तेरे 60 साल का होने से पहले वे सैटल हो जाएं?’’

‘‘कह तो तू ठीक ही रहा है पर मैं दोबारा शादी करने के झंझट में फंसना नहीं चाहता.’’

‘‘दोस्त, मेरी विधवा साली समझदार भी है और सुंदर भी. आज मेरे ससुराल वाले मेरे यहां आए हुए हैं. वह भी आई है. तू एक बार सब से मिल तो ले.’’

‘‘मिलने के लिए किसी और दिन कार्यक्रम बनाउंगा. अभी जरा जल्दी में हूं,’’ कह कर मोहित ने विदा लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया.

‘‘वे ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते.’’

‘‘तो तू उन से कह दे कि वे किसी और से रिश्ते के लिए भी अपनी खोज जारी रखें,’’ मोहित ने जान छुड़ाने वाले अंदाज में कहा और नीरज से हाथ मिलाने के बाद आगे बढ़ गया.

नेहा के घर पहुंचते ही उस ने उस के पति संदीप के हाथ में 2 हजार रुपए पर्स से निकाल कर पकड़ाए और कहा, ‘‘राहुल और मेघा को पटाखे दिलवा लाओ.’’

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‘‘इतने रुपयों के पटाखे…’’

‘‘आप जल्दी जाओ,’’ मोहित ने उसे आगे नहीं बोलने दिया, ‘‘त्योहार के दिन बच्चों को पूरी खुशी मिलनी चाहिए.’’

‘‘तुम भी साथ चलो.’’

‘‘नहीं, मैं तो नेहा के हाथ की बनी चाय पिऊंगा. सुबह से घर की सफाई कर के थक गया हूं.’’

‘‘तब हम निकलते हैं. थैंक यू, मोहित,’’ संदीप ने आभार प्रकट किया और फिर अपने दोनों बच्चों को बुलाने के लिए उन के कमरे की तरफ चला गया.

उन तीनों के बाजार जाने के बाद नेहा दरवाजा बंद कर के मुड़ी तो मोहित ने अपनी बांहें फैला दीं. नेहा बड़ी अदा से मुसकराती हुई पास आई और उस की बांहों में समा गई.

‘‘चलो, दीवाली सैलिब्रेट कर ली जाए,’’ मोहित उस के कान में प्यार से फुसफुसाया.

‘‘ऐसे सैलिब्रेशन के लिए तो मैं हर वक्त तैयार रहती हूं. वैसे, जनाब ने थकाने वाला क्या काम किया है आज अपने घर में?’’ नेहा ने शोख अदा से पूछा.

‘‘कुछ नहीं किया है, जानेमन. सारी ऐनर्जी अब शुरू होने वाली मौजमस्ती के लिए बचा कर रखी हुई है.’’

‘‘पटाखों पर इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘राहुल और मेघा को खुश देख कर मुझे बहुत खुशी मिलेगी.’’

‘‘तुम्हारा साथ मेरी बहुत बड़ी ताकत है, मोहित.’’

‘‘तुम्हें बांहों में भर कर मैं भी बहुत ताकतवर हो जाता हूं. तुम आज मेरी गिफ्ट की हुई साड़ी ही पहनोगी न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है?’’

‘‘फिलहाल तो यह साड़ी मुझे अपनी राह का रोड़ा नजर आ रही है.’’

‘‘2 दिनों में ही इतनी बेसब्री?’’

‘‘है न हैरानी की बात? तुम ने पता नहीं कैसा जादू कर रखा है मुझ पर.’’

‘‘जादूगरनी तो मैं हूं ही. हैप्पी दीवाली,’’ नेहा ने उस के गाल पर चुंबन अंकित कर दिया.

‘‘हैप्पी दीवाली,’’ मोहित ने उस के गुलाबी होंठों से अपने होंठ जोड़े और उसे गोद में उठा कर बैडरूम की तरफ चल पड़ा.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल.’’

‘‘झूठे.’’

‘‘आई लव यू.’’

‘‘फिर झूठ.’’

‘‘अभी देता हूं मैं अपने सच्चे प्यार का सुबूत.’’

‘‘मुझ से हमेशा सच्चा प्यार नहीं किया तो तुम्हारी जान ले लूंगी या अपनी दे दूंगी,’’ आवेश में आ कर नेहा का उस के बदन से जोर से लिपटना मोहित को बहुत उत्तेजक लगा था.

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जब संदीप बाजार से अपने बच्चों के लिए खरीदारी कर के लौटा, उस समय तक नेहा नहा चुकी थी और मोहित अपने घर जाने को तैयार नजर आ रहा था.

‘‘मैं 8 बजे तक यहां आ जाऊंगा. तब हम सब जम कर पटाखे फोड़ेंगे;’’ राहुल का गाल प्यार से थपथपा कर मोहित दरवाजे की तरफ चल दिया.

‘‘हम अभी थोड़े से बम जला लें, चाचू?’’ राहुल ने मोहित से इजाजत मांगी.

‘‘चाचू, प्लीज, हां बोल दो न,’’ मेघा बोली.

‘‘नहीं, मेरे आने के बाद शुरू करना पटाखे बजाना,’’ उन दोनों को ऐसी हिदायत दे मोहित घर से बाहर निकल आया.

उस ने घर पहुंच कर देखा कि उस का छोटा भाई अपनी पत्नी शिखा के साथ लाइटें सजाने में लगा हुआ था. वह उन दोनों को डिस्टर्ब किए बिना अंदर चला गया. वहां सब से पहले उस की मां से मुलाकात हुई.

‘‘तू कहां था?’’ मां ने पूछा.

‘‘बाजार तक गया था.’’

‘‘तेरे पिताजी की दवा लानी थी. बाजार जा रहा था तो बता कर क्यों नहीं गया?’’

‘‘दवा मनोज से मंगवा लेतीं.’’

‘‘वह घर सजाने के काम में लगा हुआ है.’’

‘‘ठीक है, मैं दवा थोड़ी देर के बाद ला दूंगा.’’

‘‘कल उन्हें डाक्टर के पास भी ले कर चलना है.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर के यहां भी चलेंगे. और कुछ?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘अब मैं नहाने जाऊं?’’

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मोहित नेहा के घर पहुंचने के लिए आतुर था, पर बहुत जल्दी करतेकरते भी 8 बज गए. वह नेहा के घर जाने के लिए निकल रहा था कि मनोज का साला और सलहज दीवाली की शुभकामनाएं देने आ पहुंचे.

मोहित को चुपचाप घर से बाहर जाते देख मां ने टोक दिया, ‘‘ऐसे कैसे उन लोगों से बिना मिले जा रहा है?’’

‘‘उन से पापा और तुम मिलो न,’’ मोहित चिढ़ कर बोला.

‘‘तेरे पापा की तबीयत ठीक नहीं है. उन के बाद घर का बड़ा तू ही है. जा, उन के पास जा कर कुछ देर तो बैठ,’’ मां ने कहा.

‘‘बड़ा कह कर मुझ पर सारी जिम्मेदारियां लादने की कोशिश मत किया करो. अभी मैं अपने दोस्तों से मिलने जा रहा हूं.’’

‘‘क्या हम तुझे बोझ लगने लगे हैं?’’ मां की आंखों में आंसू तैरने लगी.

‘‘बेकार की बातें करने में तुम्हारा जवाब नहीं.’’

‘‘थोड़ी देर बैठ कर चले जाना उस चालाक नेहा के घर,’’ मां चिढ़ कर बोलीं.

‘‘तुम बिना वजह किसी को बुरा क्यों बता रही हो?’’

‘‘जो तुझे लूटलूट कर खा रहे हैं, उन्हें चालाक न कहूं तो क्या कहूं?’’

‘‘अपनी कमाई मैं जैसे चाहूंगा वैसे खर्च करूंगा. तुम लोगों को किसी चीज की कमी तो नहीं होने देता हूं न?’’

‘‘अच्छा, अब बहस कर के न अपना दिमाग खराब कर, न मेरा. कुछ देर के बाद जहां जाना हो चले जाना. देख, मनोज और शिखा दोनों को बुरा लगेगा अगर तू मेहमानों से बिना मिले चला गया.’’

‘‘ठीक है. मैं 10 मिनट बैठ कर चला जाऊंगा,’’ अनिच्छा से मोहित बैठक की तरफ चल पड़ा.

उसे निकलतेनिकलते साढ़े 8 बजे गए क्योंकि उन लोगों के साथ उसे चाय पीनी पड़ी थी.

‘‘भाईसाहब, जो पटाखे आप खरीद कर लाए हैं, उन्हें नहीं फोड़ेंगे हमारे साथ?’’ शिखा ने उसे बाहर जाते देख पूछा.

‘‘मैं कुछ देर में आता हूं,’’ शिखा के सवाल से मन में उभरी अजीब सी बेचैनी को नियंत्रण में रखते हुए मोहित बाहर निकल आया.

बहुत तेज चल कर वह नेहा के घर पहुंचा पर वहां का दृश्य देख उस के तनमन में आग सी लग गई. वे चारों पटाखे चला रहे थे.

‘‘राहुल, मैं ने मना किया था न मेरे आने से पहले पटाखे छोड़ने को,’’ मोहित गुस्से से बोला.

‘‘आप इतनी देर से क्यों आए हो?’’ राहुल ने शिकायती अंदाज में उस से उलटा सवाल पूछ लिया.

‘‘क्या तुम थोड़ी देर इंतजार नहीं कर सकते थे?’’

‘‘चाचू, बाकी सब भी तो पटाखे चला रहे हैं. आप मुझे ही क्यों डांट रहे हो?’’ राहुल रोंआसा हो उठा.

‘‘आज त्योहार के दिन इसे मत डांटो,’’ नेहा ने पास आ कर राहुल को सिर पर हाथ फेर कर प्यार किया तो वह बम जलाने के लिए भाग गया.

मोहित की नजर अचानक संदीप की तरफ उठी तो उसे साफ नजर आया कि वह उसे ऐसे घूर रहा है, जैसे वह उस के यहां खलनायक बन कर आया हो. उस की आंखों में अपने लिए हमेशा इज्जत और आभार प्रकट करने वाले भावों को देखने के आदी मोहित को उस के बदले तेवर जरा भी अच्छे नहीं लगे. उस ने संदीप को घूरा तो वह फौरन उस के सामने से हट कर बच्चों के पास चला गया.

‘‘पटाखे तो तुम लोगों ने लगभग खत्म कर दिए हैं. अब क्या करें?’’ मोहित ने माहौल को सहज बनाने के लिए अपनेआप को शांत करने की कोशिश की.

‘‘कुछ और पटाखे नहीं मंगवा सकते?’’ नेहा ने बड़ी अदा से उस की आंखों में झांकते हुए सवाल किया.

‘‘ठीक है. मैं पटाखे लाने बाजार जाता हूं,’’ वह उसी पल मुड़ा और चल दिया. नेहा ने आवाज दे कर उसे रोकना भी चाहा पर गुस्से से भरे मोहित ने एक बार भी उस की तरफ पलट कर नहीं देखा.

मोहित बाजार न जा कर घर की तरफ चल पड़ा. उस का मूड बहुत ज्यादा खराब हो रहा था. उसे बचपन से ही पटाखे चलाने का बहुत शौक था. आज पटाखे न चला पाने की वजह से उस के मन में खीज व गुस्सा दोनों धीरेधीरे बढ़ते जा रहे थे.

अपने घर के पास पहुंच उस ने देखा कि मनोज शिखा का हाथ पकड़ कर उस से पटाखे जलवा रहा था. जब जलाया गया बम बहुत जोर की आवाज के साथ फटा तो शिखा डर कर मनोज से लिपट गई.

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इस दृश्य को देख मोहित को अपनी दिवंगत पत्नी की याद आई. सिर्फ एक दीवाली का त्योहार दोनों ने साथसाथ मनाया था. बिलकुल ऐसे ही ममता बम की तेज आवाज सुन बारबार उस की बांहों में कैद हो जाती थी. ममता की आई याद से उस की आंखों में आंसू तैर उठे.

उस के पिताजी घर से बाहर नहीं आए थे. मनोज और शिखा के पास रुकने के बजाय वह उन के कमरे की तरफ चल पड़ा.

‘‘हर कोई अपनी मस्ती में मगन है. किसी को मेरी बीमारी की फिक्र नहीं. बम की तेज आवाज के कारण मेरा दिल बैठा जा रहा है,’’ पिताजी ने उसे देखते ही शिकायतें करनी शुरू कर दीं.

‘‘कान में डालने को रुई दूं?’’ बड़ी कठिनाई से मोहित अपनी चिढ़ को काबू में रख सका था.

‘‘नहीं, पर यह देखो कि लोगों में बुद्धि बिलकुल नहीं है. इस मनोज को ही देखो. वह जानता है कि मैं बीमार हूं पर फिर भी कितनी तेज आवाज से फटने वाले पटाखे लाया है.’’

‘‘इतना गुस्सा मत करो, पापा.’’

‘‘किसी का दुखदर्द कोई दूसरा नहीं समझ सकता है,’’ मोहित के यों समझाने पर पापा उसी से खफा हो गए.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं. यह बात सभी पर लागू होती है,’’ मोहित गहरी सांस छोड़ता हुआ बोला, ‘‘मैं कुछ देर के लिए छत पर घूमने जा रहा हूं.’’

छत पर घूमते हुए उस ने नीचे झांका तो देखा कि मनोज और शिखा अभी भी पूरे जोश से पटाखे जला रहे थे. पटाखों, मिठाइयों और नेहा की साड़ी के ऊपर 10 हजार से ज्यादा खर्च कर देने के बावजूद त्योहार मनाने की कोई खुशी उस का मन इस पल महसूस नहीं कर रहा था.

तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. फोन नेहा का था.

‘‘तुम कितनी देर में आ रहे हो?’’ नेहा की आवाज में चिंता झलक रही थी.

‘‘मैं नहीं आ रहा हूं,’’ उस ने नाराज लहजे में जवाब दिया.

‘‘बेकार की बात मत करो. तुम्हें खाना हमारे साथ ही खाना है.’’

‘‘अब खाना भी मेरे बगैर क्यों नहीं खा लेते?’’

‘‘दीवाली के दिन मुझ से लड़ोगे क्या?’’

‘‘मुझे किसी से लड़ने का कोई हक नहीं है.’’

‘‘तुम यहां आ तो जाओ. फिर मैं तुम्हें मना लूंगी. देखो, बच्चे भी बारबार तुम्हें पूछ रहे हैं.’’

‘‘किसलिए?’’

‘‘तुम कह कर गए थे न कि और पटाखे ले कर आ रहे हो. अब पटाखे मत लाना पर आ जरूर जाओ.’’

तभी नीचे से आती मां की तीखी आवाज मोहित के कानों तक पहुंची, ‘‘अरे, मोहित, अपने पिताजी की दवा तो ले आ. उन्हें रात की खुराक लेनी है.’’

उस ने नीचे झांका तो शिखा मनोज से लिपटी खड़ी नजर आई. उन के सामने अनार जल रहा था. उस की रोशनी में उन के चेहरे पर छाए खुशी के भाव उसे साफ नजर आए. उस के देखते ही देखते मनोज ने झुक कर शिखा का गाल चूम लिया.

‘‘सौरी, मैं नहीं आ रहा हूं… न अभी और न फिर कभी,’’ उस की आवाज में अचानक सख्ती के भाव उभर आए.

‘‘ये कैसी अजीब बात कह रहे हो?’’ नेहा ने घबराई सी आवाज में पूछा.

‘‘मैं अजीब नहीं बल्कि अपने हित की बात कर रहा हूं. आज मुझे एक सबक मिला है. मुझे दूसरों की खुशियों की खातिर अब अपनी जिंदगी की खुशियों का और दिवाला नहीं निकलवाना है. आज से मैं स्वार्थी बनने जा रहा हूं.

‘‘अपने को मेरे करीब दिखाने वाला हर इंसान मेरी कमाई पर ऐश कर रहा है. मुझ से प्यार करने और मेरे शुभचिंतक होने का दिखावा करने वालों में मेरे घर वाले भी हैं, तुम भी हो. और मेरे एहसानों के नीचे दबे रहने की रातदिन बात करने वाला तुम्हारा नपुंसक पति भी है. अब तुम सब में से कोई भी मुझे…’’

‘‘मोहित, चुप हो जाओ,’’ नेहा ने आवाज ऊंची कर के उसे खामोश करने की कोशिश की.

‘‘तारीफ, आभार, कर्तव्य या सैक्स अपील के बल पर अब कोई बेवकूफ नहीं बना पाएगा मुझे. मेरी तरफ से गुडबाय हमेशा के लिए,’’

उस ने झटके से फोन बंद किया और आवेश भरे अंदाज में सीढि़यों की तरफ बढ़ चला.

‘‘मैं बाजार जा रहा हूं पापा की दवा लाने,’’ बाहर जाने वाले दरवाजे के पास पहुंच कर उस ने अपनी मां को आवाज दी.

‘‘अगर सब के साथ खाना खाना है तो जल्दी आना,’’ मां का यह रूखा सा जवाब सुन कर उस का पारा और चढ़ गया.

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चंद मिनटों बाद उस का गुस्सा कुछ कम हुआ तो उस ने अपने भविष्य से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण फैसला कर लिया. दवा खरीदने के बाद उस ने अपने दोस्त नीरज के घर जाने का मन बना लिया. वह उस की विधवा साली से मिलना चाहता था. अपना घर बसाने की चाह उस के मन में पलपल बलवती होती जा रही थी.

तभी उस के फोन की घंटी बज उठी. उसे स्क्रीन पर नेहा का नंबर दिखा तो उस ने फोन स्विच औफ ही कर दिया.

सबक: जब फ्लर्टी पति को सबक सिखाने के जाल में खुद फंसी अंजलि

Serial Story: सबक (भाग-4)

विनीत का मुंह हारे हुए जुआरी जैसा हो गया था.

‘‘अगर मैं ने रोहित से दूरी बना भी ली तो आप वापस अपने पुराने ढर्रे पर आ जाओगे, क्योंकि आप दिल से नहीं बदल रहे. सिर्फ मेरे और रोहित के बीच की नजदीकियों के डर से बदलने की बात कर रहे हो…जिस दिन यह डर खत्म हो जाएगा आप फिर अपनी बिंदास हरकतों पर उतर आओगे.’’

‘‘यह अकेले बाहर घुमाने ले जाना, लता भाभी को भी अवौइड करना, मेरे आसपास मंडराते रहना, ये बस मेरे प्रति सच्चे प्यार की वजह से नहीं है, बल्कि यह मुझे और रोहित को ले कर तुम्हारे मन में पनप रही असुरक्षा की भावना की प्रतिक्रिया मात्र है.

‘‘विनीत आज तुम 3 महीने में ही डर कर इतना परेशान हो गए. लेकिन कभी मेरे दर्द का जरा सा भी एहसास नहीं किया, जिसे मैं पिछले 2 सालों से सहती आ रही हूं.’’

‘‘मुझे माफ कर दो अंजलि…मैं सचमुच गलत हूं. मैं अपने डर और ईर्ष्या के कारण ही तुम पर दबाव बनाना चाह रहा था कि तुम रोहित से बात करना बंद कर दो. मैं वास्तव में खुदगर्ज और असुरक्षा की भावना से ग्रस्त व्यक्ति हूं. मुझे माफ कर दो अंजलि,’’ विनीत की आंखें भर आईं.

विनीत के स्वर की सचाई सुन कर और आंखों में पश्चात्ताप के आंसू देख कर एकबारगी अंजलि का मन पिघल गया, लेकिन तुरंत ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया और विनीत के सामने से हट गई. यह सब ढोंग है. वह अब विनीत पर किसी भी तरह से भरोसा नहीं कर सकती. रोहित न सिर्फ उस का बहुत अच्छा दोस्त बन चुका है, बल्कि उस के दिल के भी काफी करीब आ गया है. विनीत की लता से नजदीकियों ने अंजलि के मन में जो एक खालीपन और अकेलापन पैदा कर दिया था उसे बहुत हद तक रोहित ने भर दिया था.

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अब वास्तव में अंजलि को कोई फर्क नहीं पड़ता था कि विनीत क्या करता है, किस से बातें करता है या कहां आताजाता है. अंजलि अब अपनी खुशी में मगन रहती. उसे भी एक मस्त, आगेपीछे घूमने वाला साथी मिल गया था.

हां, विनीत जरूर अपनी गलती समझ गया था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि लता के साथ उस के अनुचित व्यवहार का परिणाम एक दिन उस के घर में ऐसी आग लगा देगा. उस ने लता से पूरी तरह से रिश्ता तोड़ लिया था. लता को भी अक्ल आ गई थी कि देवर देवर होता है और पति पति. आप हावभाव दिखा कर परपुरुष को हमेशा के लिए अपने नाम नहीं लिखवा सकते. वह तो सोचती थी कि विनीत पूरी तरह से उस के पल्लू से बंधा है और उम्र भर बंधा रहेगा, लेकिन अंजलि के जीवन में रोहित के आ जाने से सारा परिदृश्य ही बदल गया.

बच्चों की परीक्षा खत्म होने पर लता ने अपना बोरियाबिस्तर समेट कर अपने पति के पास बैंगलुरु चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. देवर को मुट्ठी में पकड़ कर रखने के चक्कर में कहीं पति भी हाथ से न निकल जाए. 2 नावों की सवारी करने के लालच में कहीं वह बीच समंदर में ही न गिर पड़े.

विनीत की भी अक्ल ठिकाने आ गई थी. अपनी मौजमस्ती में चूर वह भूल गया था कि अगर पत्नी से वफादारी और ईमानदारी चाहते हो तो पति को भी त्याग करना ही पड़ता है. ताली एक हाथ से नहीं बजती. पति को भी रिश्तों की मर्यादा निभानी पड़ती है.

विनीत के स्वभाव में अप्रत्याशित परिवर्तन ने अंजलि को भी सोचने पर मजबूर कर दिया. आजकल विनीत अंजलि और घर का पूरा ध्यान रखता. अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी निष्ठा से निभाता. उस के व्यवहार में कहीं कोई बनावटीपन नहीं था. उसे सबक मिल गया था. उस के स्वभाव में सचाई की झलक दिखती थी. अंजलि को पता लगा कि लता अपने पति के पास वापस जा चुकी है, उस ने अपना घर उजड़ने से बचा लिया.

अब अंजलि ऊहापोह की स्थिति में थी. वह सच्चा प्यार तो विनीत से ही करती है, मगर रोहित के आकर्षण को भी तोड़ नहीं पा रही थी. विनीत को सबक सिखाने में उसे खुद भी सबक मिल गया कि रोहित के साथ उस के रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है.

इसी बीच रोहित के घर वालों ने उस के लिए लड़कियां देखनी शुरू कर दीं. अंजलि और रोहित जानते थे कि एक दिन तो यह होना ही था. बेवजह बन गए अनचाहे रिश्ते के बिना झंझट खत्म होने की संभावना ने अंजलि के दिल में एक सुकून सा भर दिया. चलो अच्छा है इस बहाने रोहित और उस के बीच अपनेआप दूरी आ जाएगी. वह भी इस दोहरी जिंदगी से ऊब गई थी. फिर उस का विनीत भी सुधर चुका था.

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रोहित को भी कई दिनों से लगने लगा था कि विवाहित स्त्री के रूप की मृगमरीचिका में भटकने से कुछ हासिल नहीं होगा. अंजलि सिर्फ विनीत की पत्नी है और उसी के साथ खुश रह सकती है. दूसरे की पत्नी के साथ उस का जीवन कभी सुरक्षित या खुशहाल नहीं हो सकता. उन दोनों के बीच रोहित हर हाल में पराया और बाहरी ही रहेगा. विनीत के दिलफेंक स्वभाव से तंग आ कर अंजलि मात्र परिस्थितिवश उस के करीब आ गई थी और कुछ नहीं. इस सचाई से अवगत होते ही रोहित का मोहभंग हो गया. पिछले कुछ दिनों से वह देख रहा था कि अंजलि उस से कटने लगी है. अपनी स्थिति जान कर चुपचाप अपने घर लौट गया.

दूसरे दिन सुबहसुबह अंजलि ने घर की सारी खिड़कियां खोल दीं. पिछले कुछ महीनों से घर का वातावरण तनावपूर्ण और घुटन भरा हो गया था. आज भी हवा एकदम ताजा और खुशनुमा थी. लता और रोहित नाम के अनचाहे मेहमान उन के घर और जीवन से हमेशा के लिए जा चुके थे. आज अंजलि को अपना दिलदिमाग एकदम तरोताजा लग रहा था. वह घर को नए सिरे से संवारते हुए गुनगुना रही थी.

‘‘बहुत दिनों से तुम ने शौपिंग नहीं की, चलो आज मैं छुट्टी ले लेता हूं. जी भर कर शौपिंग करो और खाना भी बाहर ही खा लेंगे,’’ उस का खुशगवार मूड देख कर विनीत बोला.

‘‘सच?’’ अंजलि चहकी, ‘‘शहर में हैंडीक्राफ्ट मेला लगा है. वहां भी ले चलोगे?’’

‘‘हां बाबा जहां कहोगी वहां ले चलूंगा. अब जल्दी से तैयार हो जाओ,’’ विनीत हंसते हुए बोला.

‘‘ओह विनीत, तुम कितने अच्छे हो. बस मैं हूं, तुम हो और हमारा अपना घर है,’’ अंजलि उस के सीने से लिपटती हुई भावुक स्वर में बोली.

विनीत ने उसे कस कर बांहों में भर लिया.

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Serial Story: सबक (भाग-3)

दोपहर के खाने के समय लता हमेशा की तरह झट से विनीत के पास वाली कुरसी पर बैठ गई तो अंजलि बड़ी खुशी से रोहित के साथ बैठ गई. विनीत का पता नहीं क्यों खाने में मन नहीं लग रहा था. शाम को सब लोग टीवी देखने बैठे थे. लता विनीत के साथ सोफे  पर बैठी थी. बीचबीच में हंसीमजाक करते हुए वह कभी विनीत के कंधे पर हाथ मारती तो कभी पैर पर.

अंजलि दूसरे सोफे पर अकेली बैठी थी. तभी रोहित आ गया और अंजलि के पास बैठ गया. अब वे दोनों टीवी पर चल रहे कार्यक्रम पर कमैंट करते हुए ठहाके लगाने लगे. अंजलि भी हंसते हुए रोहित के हाथ पर या कंधे पर हाथ मार रही थी. विनीत बैठाबैठा कसमसा रहा था.

आखिर में विनीत से रहा नहीं गया. वह उठ कर जल्दी सोने चला गया. 10 मिनट बाद लता भी मुंह बना कर अपने कमरे में चली गई. अंजलि जानबूझ कर उस रात बहुत देर बाद सोने गई. जब तक रोहित बैठा रहा वह और अंजलि जोरजोर से हंसीमजाक करते रहे. जब अंजलि सोने के लिए कमरे में गई तो उस ने देखा विनीत मुंह पर चादर लपेटे सोने का नाटक कर रहा था. लेकिन बेचैनी से पहलू बदलने के कारण साफ समझ आ रहा था कि वह जाग रहा है. अंजलि विनीत की ओर पीठ कर के चैन से सो गई.

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दूसरे दिन छुट्टी थी. लता फिल्म देखने के लिए विनीत के पीछे पड़ी. विनीत ने चुपचाप से प्लान बनाया और ऐन वक्त पर अंजलि से तैयार होने के लिए कहा. मगर अंजलि भी भला कहां पीछे रहने वाली थी. उस ने तपाक से रोहित को फोन लगा दिया और फिल्म देखने का आमंत्रण दे डाला. विनीत जलभुन गया. वह बैडरूम में आ कर अंजलि पर गुस्सा करने लगा कि रोहित को ले जाने की क्या जरूरत है? तब अंजलि ने दोटूक जवाब दिया कि उस के और लता के बीच वह मूर्खों की तरह मुंह बंद कर के बैठी रहती है. या तो मुझे घर पर रहने दो या फिर रोहित को भी साथ ले चलो. विनीत के पास और कोई चारा नहीं था. वह बेमन से रोहित को भी साथ ले गया.

विनीत ने सोचा वह सब से पहले अंजलि को बैठाएगा, फिर लता को उस के बाद वह और फिर अपने पास रोहित को. तब पूरी फिल्म में वह और लता पास बैठेंगे और अंजलि और रोहित 2 कोनों में. लेकिन अंजलि ने पहले ही सीट नंबर सुन लिया और फटाफट सिनेमाहौल में घुस कर रोहित की बगल में बैठ गई. विनीत यहां भी मात खा गया. फिर तो पूरी फिल्म भर उस का मूड़ उखड़ा रहा.

लता पहले तो बहुत कोशिश करती रही उस से कि वह पहले की तरह हंसीमजाक करे पर आखिर खुद भी खीज कर चुप हो गई. अलबत्ता अंजलि और रोहित ने पूरी फिल्म बहुत ऐंजौय की. उस के बाद रोहित ने अपनी ओर से डिनर का प्रस्ताव रखा जिसे अंजलि ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.

फिल्म खत्म होने के बाद वे लोग मौल में ही घमते रहे, फिर थोड़ी देर बाद मौल के ही एक रैस्टोरैंट में डिनर कर के लौटे. पूरे समय विनीत हूंहां के अलावा कुछ नहीं बोला. विनीत के कारण लता को भी चुप रहना पड़ रहा था. बस रोहित और अंजलि ही दुनियाजहान की बातों में खोए हुए थे.

दूसरे दिन भी लता किचन में रोटियां बनाने पहुंची, लेकिन विनीत नहीं गया. वह अंजलि के आसपास घूमता और बातें करता रहा, क्योंकि वह जानता था कि या तो अंजलि रोहित के घर चली जाएगी या फिर वह यहां आ जाएगा, क्योंकि वह अभी तक औफिस नहीं गया होगा. लिहाजा, सारी रोटियां लता को अकेले ही बनानी पड़ीं. वह तो विनीत के लिए ही यहां आती है. जब इस बार विनीत रोहित की वजह से उखड़ा हुआ है और उस का पूरा ध्यान अंजलि पर ही लगा रहता है, तो वह बेवजह अपने दिन खराब क्यों करे. अत: विनीत के औफिस जाने के समय उस ने कहा कि वह उसे बस में बैठा दे.

‘‘अरे भाभी, आप इतनी जल्दी जा रही हैं. आप हैं तो घूमनेफिरने में कितना मजा आ रहा है. कुछ दिन और रुक जाइए. कल रोहित ने हाफ डे लिया है. हम सब लेक पर घूमने चलेंगे,’’ अंजलि ने लता को रोक लिया.

विनीत जलभुन गया. पहली बार उसे लता का रहना बुरा लग रहा था. उस ने लेक पर जाने का प्रोग्राम बहुत टालना चाहा तो अंजलि चिढ़ गई. बोली, ‘‘क्यों विनीत, इस से पहले तो जब भी लता भाभी आती थीं तुम छुट्टी लेले कर फिल्में देखने और घूमने ले जाते थे? अब अचानक तुम्हें क्या हो गया?’’

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अंजलि की बात पर विनीत निरुत्तर हो गया. वह मनमसोस कर दूसरे दिन सब के साथ लेक पर गया. हमेशा अंजलि को उपेक्षित सा छोड़ कर लता के साथ घूमनेफिरने के मजे लेने वाला विनीत अब लता से भी कटाकटा सा घूम रहा था, क्योंकि उस का सारा ध्यान तो अंजलि और रोहित की बातों पर लगा था. घर आ कर लता मुंह फुला कर जल्दी सोने चली गई. अंजलि कौफी बना लाई और रोहित के साथ बातें करने लगी. विनीत थोड़ी देर बैठा रहा, फिर तंग आ कर सोने चला गया.

दूसरे दिन लता चली गई. विनीत ने चैन की सांस ली. लता थी तो सारा समय विनीत से चिपकी रहती थी और अंजलि को पूरी आजादी मिल जाती थी रोहित के साथ रहने की. अब तो विनीत ने लता को फोन करना भी बहुत कम कर दिया था. लता ही फोन करती तो विनीत थोड़ीबहुत बातचीत कर के फोन रख देता. लता भी विनीत की बदलती प्रवृत्ति को समझ गई थी. टीवी देखते समय वह यथासंभव अंजलि के पास सट कर बैठता या फिर उस का हाथ पकड़ कर ही बैठता जैसे अगर उस ने हाथ नहीं पकड़ा तो वह भाग जाएगी.

अंजलि को उस की इन हरकतों से कोफ्त होती. विनीत रोहित से बचने के लिए अकसर शाम को या छुट्टी वाले दिन बाहर लंच या डिनर अथवा शौंपिग का प्रोग्राम बना लेता. अंजलि को और चिढ़ होती, क्योंकि वह जानती थी ये सब सिर्फ उसे रोहित से दूर करने के लिए है.

2-3 महीने निकल गए. अंजलि बदस्तूर रोहित से हंसतीबोलती. एक दिन विनीत से आखिर रहा नहीं गया. वह अंजलि से उलझ ही गया. आज वह अपने दिल की तिलमिलाहट दूर कर लेना चाहता था.

‘‘अंजलि, आखिर यह रोहित के साथ तुम्हारा क्या चल रहा है… तुम्हें नहीं लगता कि तुम उस में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगी हो?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं विनीत. मैं तो बिलकुल सामान्य व्यवहार कर रही हूं. इतना हंसनाबोलना तो चलता है न?’’ अंजलि ने जवाब दिया.

‘‘थोड़ाबहुत कहां तुम तो आजकल  उस के साथ बहुत ही ज्यादा इन्वौल्व हो रही हो, विनीत बोला.’’

‘‘बिलकुल नहीं. कभीकभार ही तो साथ मिलतेबैठते हैं,’’ अंजलि लापरवाही से बोली.

‘‘कभीकभार कहां रोज तो मुंह उठा कर चला आता है और फिर पूरा समय खाना खाते हुए टीवी देखते तुम से सट कर बैठता है,’’ विनीत झल्ला कर बोला.

‘‘तो क्या हुआ साथ बैठना कोई गलत है क्या? आदमी को इतना खुले विचारों वाला तो होना ही चाहिए न?’’ अंजलि ने लता के मामले में कही विनीत की बात को ही वापस उस के मुंह पर मारा.

कुछ क्षण को विनीत सकापका गया. उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे. फिर अकड़ कर बोला,  ‘‘मेरा डायलौग मुझे मत मारो. मेरी बात अलग है.’’

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‘‘क्यों तुम्हारी बात क्यों अलग है? इसलिए कि तुम पुरुष हो, कुछ भी कर सकते हो और मैं औरत हूं तो मुझे तुम्हारे कहने के हिसाब से चलना पड़ेगा? क्यों, क्या मुझ में अपना अच्छाबुरा समझने की अकल नहीं है?’’ अंजलि तुनक कर बोली.

‘‘मैं वादा करता हूं अंजलि मैं अपनी फ्लर्टिंग की आदत छोड़ दूंगा. बस तुम रोहित से दूरी बना लो.’’

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Serial Story: सबक (भाग-2)

फिर अपनी सोच पर अंजलि खुद घबरा गई. उस ने लता को फोन लगाया तो उस ने भी फोन नहीं उठाया. लता के पिताजी के घर पर फोन किया तो पता चला लता अभी तक अपने घर नहीं पहुंची. अगर लता 11 बजे की बस से भी निकलती तो एकडेढ़ बजे तक अपने घर पहुंच जाती. अब तो ढाई बज गए हैं. अंजलि घर में अंदरबाहर होती रही. कभी विनीत का फोन मिलाती तो कभी लता का और कभी आनंद का.

4 बजे जा कर विनीत का फोन आया. अंजलि ने घबरा कर पूछा कि कहां हैं और औफिस क्यों नहीं गए…फोन क्यों नहीं उठा रहे थे. मगर विनीत का जवाब सुन कर अंजलि के गुस्से का पारावर न रहा. दरअसल, विनीत लता को बस में बैठा कर औफिस जाने के लिए ही निकला था, मगर रास्ते में एक मौल में नई रिलीज हुई फिल्म का पोस्टर देख कर लता का मन हुआ उस फिल्म को देखने का. शो 12 बजे का था. अत: दोनों मौल में ही घूमते रहे और 12 बजे फिल्म देखने बैठ गए. फिल्म का साउंड तो तेज होता ही है. अत: फोन की रिंग सुनाई नहीं दी. अब लता को बस में बैठाने के बाद उस ने मिस्ड कौल देखीं.

अंजलि ने विनीत की पूरी बात सुने बिना ही फोन काट दिया.

आज तो आनंद के फोन आने से अंजलि को पता चल गया कि विनीत औफिस नही पहुंचा है वरना विनीत तो कभी बताता नहीं. वह 6 बजे घर आता और ऐसे दर्शाता जैसे सीधे औफिस से चला आ रहा है. पहले भी पता नहीं कितनी बार झूठ बोल चुका होगा विनीत… क्या पता सच में फिल्म देखने गए थे या फिर 10 बजे से 4 बजे तक…

जब इनसान का एक झूठ पकड़ा जाता है, तो फिर उस के ऊपर से विश्वास उठ जाता है. फिर उस की हर बात में झूठ की ही गंध आने लगती है.

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विनीत भी समझ गया था कि इस बार तो अंजलि को बहुत बुरा लगा है और अब वह कई दिनों तक गुस्सा रहेगी. विनीत अपनी गलती समझ गया था, इसलिए अंजलि से बहुत अच्छा बरताव कर रहा था. घर के कामों में हाथ बंटाना, अपना काम समय पर करना. समय पर घर में सामान, सब्जी ला देता. लेकिन अंजलि ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. न अच्छी न बुरी. वह विनीत की ओर से एकदम तटस्थ और उदासीन हो गई थी. घर के सारे काम सुघड़ ढंग से निबटाती. विनीत से जितना जरूरी होता उतना ही बोलती. एक तरह से घर में उन दोनों के बीच शीत युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी.

विनीत को बहुत बैचेनी हो रही थी. अंजलि खुल कर झगड़ा कर लेती तो विनीत भी बहस कर के अपनी सफाई दे देता या उलटा हर बार की तरह अंजलि की सोच को छोटा कह कर उसे ही गलत साबित कर के अपनी गलती ढांप लेता. लेकिन अभी तो अंजलि न बोल कर, न झगड़ा कर के एक तरह से विनीत को अपराधी साबित कर चुकी है. विनीत अंदर ही अंदर अपनी गलती का एहसास कर के अपराधबोध से ग्रस्त हो रहा है. गलती पर गलतियां कर के भी अंजलि पर हावी रहने वाले विनीत को यों अंदर ही अंदर कसमसाते रहना बहुत खल रहा था. 2-4 बार उस ने अंजलि से बात करने की, अपनी सफाई देने की कोशिश की भी पर अंजलि ने उसे नजरअंदाज कर दिया. कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

10-12 दिन बाद अचानक सामान उठानेरखने की आवाजें सुन कर विनीत ने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने वाले फ्लैट का दरवाजा खुला था और मजदूर सामान अंदर रख रहे थे.

शाम को औफिस से आया तो देखा सामने वाले फ्लैट का दरवाजा बंद था. विनीत ने सोचा इन का सारा सामान रखा गया होगा. चाय पीते हुए उस ने अंजलि से पूछताछ की तो पता चला सामने कोई फैमिली नहीं वरन एक युवक रहने आया है. उसे इसी शहर में नौकरी लगी है और सामने वाला फ्लैट किराए पर ले कर वह यहीं रहेगा. विनीत को अफसोस हुआ. अगर परिवार होता तो ज्यादा अच्छा होता, अंजलि को कंपनी मिल जाती. युवक का रहना न रहना तो बराबर ही है.

दूसरे दिन सुबह अंजलि के बात करने की आवाज सुन कर विनीत बाहर आया तो पता चला वह युवक आया था बाई के बारे में कहने. अंजलि ने उस के यहां अपनी बाई भेजने का आश्वासन दे दिया. थोड़ी देर बाद वह पीने का पानी भरने के लिए बरतन लेने आया. विनीत के औफिस जाने तक वह युवक जिस का नाम रोहित था 4-5 बार किसी न किसी काम से अंजलि के पास आया. विनीत ने सरसरी निगाहों से उसे देखा. लंबा, गोराचिट्टा सुदर्शन युवक था.

शाम को विनीत औफिस से घर आया तो अंजलि ने चाय बनाई और रोहित को भी चाय पर बुला लिया. रोहित आया. तीनों ने साथ चाय पी और बातें कीं. विनीत को यह भला लड़का लगा. उस का परिवार पास के ही शहर में रहता था. घर में मम्मीपापा के अलावा दादी, एक छोटी बहन और भाई भी है. थोड़ी देर बातें कर के रोहित चला गया. 4-5 दिन में उस का घर व्यवस्थित हो गया. सामान जमाने में अंजलि ने उस की मदद की.

एक दिन विनीत घर आया तो अंजलि घर पर नहीं थी. रोहित के घर पर भी ताला लगा था. 5 मिनट बाद रोहित और अंजलि आ गए. अंजलि रोहित को किचन का कुछ जरूरी सामान खरीदवाने उस के साथ मार्केट गई थी.

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फिर तो रोज ही घर का कुछ न कुछ सामान लेने रोहित अंजलि को मार्केट ले जाने लगा. कभी ब्रैड, बटर, दूध तो कभी चादरतकिए, परदों का कपड़ा, तो कभी बालटीमग आईना, इत्यादि लेने. अंजलि रोज विनीत के आने से पहले या समय पर वापस आ जाती. रात का खाना तो रोहित साथ ही खाता. 1-2 बार विनीत थोड़ा झुंझला भी गया कि यह क्या रोजरोज उस के साथ बाजार चली जाती हो. ऐसा ही था तो उस की मां आ कर उस का घर क्यों नहीं सैट कर जातीं, तब अंजलि ने कह दिया कि उस की दादी की तबीयत ठीक नहीं है और बहन की परीक्षाएं सिर पर हैं इसलिए वह भी नहीं आ सकती है.

इसी बीच लता फिर उन के यहां आ धमकी. लता के आने से विनीत फिर उस के आगेपीछे घूमने लगा. उसे लगा कि अंजलि यह देख कर परेशान हो जाएगी हर बार की तरह. लेकिन इस बार तो अंजलि ने उन दोनों को पूरी तरह नकार दिया. लता आई तब रोहित की भी छुट्टियां थी. अत: वह सारा दिन अंजलि के यहीं रहता.

रोटियां बनाने लता जैसे ही किचन में आई अंजलि तपाक से बाहर चली आई और रोहित को बुला लाई. विनीत का अजब हाल हो रहा था. उस का ध्यान अंजलि और रोहित पर था और मन मार कर लता के साथ किचन में खड़ा होना पड़ रहा था.

आगे पढें- अंजलि दूसरे सोफे पर अकेली बैठी थी. तभी रोहित…

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Serial Story: सबक (भाग-1)

किचन से आती हंसीमजाक की आवाजों को सुन कर ड्राइंगरूम में सोफे के कुशन ठीक करती अंजलि की भौंहें तन गईं. एकबारगी मन किया कि किचन में चली जाए, पर पता था उन दोनों को तो उस के होने न होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता. रोज यही होता है. सुबह से अंजलि चाय, नाश्ता और खाने की पूरी तैयारी करती है, दालसब्जी बनाती है और जैसे ही रोटियां बनाने की बारी आती है उस की जेठानी लता चली आती है, ‘‘चलो अंजलि, तुम सुबह से काम रही हो. रोटियां मैं बना देती हूं.’’

मना करने पर भी अंजलि को जबरदस्ती बाहर भेज देती. लता की मदद करने अंजलि का पति विनीत तुरंत किचन में घुस जाता. अब अंजलि बिना काम के किचन में खड़ी हो कर क्या करे. अत: चुपचाप बाहर आ कर दूसरे काम निबटाती या फिर नहाने चली जाती और अगर किचन में खड़ी हो भी जाए तो लता और विनीत के भद्दे व अश्लील हंसीमजाक को देखसुन कर उस का सिर भन्ना जाता. उसे लता से कोफ्त होती. माना कि विनीत उस का देवर है, लेकिन अब तो अंजलि का पति है न, तो दूसरे के पति के साथ इस तरह का हंसीमजाक करना क्या किसी औरत को शोभा देता है?

लेकिन विनीत से जब भी बात करो इस मामले में वह उलटा अंजलि पर ही गुस्सा हो जाता कि अंजलि की सोच इतनी गंदी है. वह अपने ही पति के बारे में ऐसी गलत बातें सोचती है, शक करती है. 3 साल हो गए अंजलि और विनीत की शादी को हुए. इस 3 सालों में दसियों बार लता को ले कर उन दोनों के बीच झगड़ा हो चुका है. लेकिन हर बार नाराज हो कर उलटासीधा बोल कर विनीत अंजलि की सोच को ही बुरा और संकुचित साबित कर देता.

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पास ही के शहर में रहने के कारण लता जबतब अंजलि के घर चली आती. लता का पति यानी विनीत के बड़े भाई बैंगलुरु में नौकरी करते हैं. लता अपने दोनों बेटों के साथ अपने मातापिता के घर में रहती है, इसीलिए उसे बच्चों की भी चिंता नहीं रहती. हफ्ते या 10-15 दिनों में 2-4 दिन के लिए आ ही जाती है अंजलि के घर. और ये 2-4 दिन अंजलि के लिए बहुत बुरे बीतते. लता के जाने के बाद अंजलि अपनेआप को थोड़ा संयत करती, मन को संभालती, विनीत और अपने रिश्ते को ले कर सामान्य होती तब तक लता फिर आ धमकती और अंजलि का जैसेतैसे सुचारु हुआ जीवन और मन दोबारा अस्तव्यस्त हो जाता.

एक बार तो हद ही हो गई. लता नहाने गई हुई थी. अंजलि भी अपने कमरे में थी. थोड़ी देर बाद किसी काम से अंजलि कमरे से बाहर निकली, तो देखा विनीत लता के कमरे से बाहर आ रहा था.

‘‘क्या हुआ विनीत, भाभी नहा कर आ गईं क्या?’’ अंजलि ने पूछा.

‘‘नहीं, अभी नहीं आईं.’’

‘‘तो तुम उन के कमरे में क्या कर रहे थे?’’ अंजलि ने सीधे विनीत के चेहरे पर नजरें गढ़ा कर पूछा.

‘‘व…वह तौलिया ले जाना भूल गई थीं. वही देने गया था,’’ विनीत ने जवाब दिया.

‘‘अगर उन्हें तौलिया चाहिए था, तो मुझे बता देते तुम क्यों देने गए?’’ अंजलि को गुस्सा आया.

‘‘तुम फिर शुरू हो गईं? मैं उन्हें तौलिया देने गया था, उन के साथ नहा नहीं रहा था, जो तुम इतना भड़क रही हो. उफ, शक का कभी कोई इलाज नहीं होता. क्या संकुचित विचारों वाली बीवी गले पड़ी है. अपनी सोच को थोड़ा मौडर्न बनाओ, थोड़ा खुले दिमाग और विचारों वाली बनने की कोशिश करो,’’ विनीत ने कहा और फिर दूसरे कमरे में चला गया.

अंजलि की आंखों में आंसू छलक आए. दूसरे दिन सुबह विनीत ने बताया कि लता भाभी वापस जा रही हैं. वह औफिस जाते हुए उन्हें बस में बैठा देगा. अंजलि ने चैन की सांस ली. 4 दिन से तो विनीत लता के चक्कर में औफिस ही नहीं गया था. लता जा रही है तो अब 10-12 दिन तो कम से कम चैन से कटेंगे. यों तो विनीत अधिकतर समय फोन पर ही लता से बातें करता रहता है, लेकिन गनीमत है लता प्रत्यक्ष रूप से तो दोनों के बीच नहीं रहती.

लता और विनीत चले गए तो अंजलि ने चैन की सांस ली. उस ने अपने लिए 1 कप चाय बनाई और ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर पसर गई. जब भी लता आती है पूरे समय अंजलि का सिर भारी रहता है. वह लाख कोशिश करती है नजरअंदाज करने की, मगर क्याक्या छोड़े वह? लता और विनीत की नजदीकियां आंखों को खटकती हैं. सोफे पर एकदूसरे से सट कर बैठना, अंजलि अगर एक सोफे पर बैठी हो और लता दूसरे पर तो विनीत अंजलि के पास न बैठ कर लता के पास बैठता है. खाना खाते समय भी लता विनीत के पास वाली कुरसी पर ही बैठती है. जब तक लता रहती है अंजलि को न अपना पति अपना लगता है न घर. लता बुरी तरह विनीत के दिल पर कब्जा कर के बैठी है. रात में भी अंजलि थक कर सो जाती पर विनीत लता के पास बैठा रहता. अपने कमरे में पता नहीं कितनी रात बीतने के बाद आता.

विनीत की इन हरकतों से अंजलि बहुत परेशान हो गई थी. फिल्म देखने जाते हैं, तो विनीत अंजलि और लता के बीच बैठता और सारे समय लता से ही बातें और फिल्म पर कमैंट करता. ऐसे में अंजलि अपनेआप को बहुत उपेक्षित महसूस करती.

अंजलि के दिमाग में यही सब बातें उमड़घुमड़ रही थीं कि तभी उस के मोबाइल की रिंग बजी.

‘‘हैलो,’’ अंजलि ने फोन रिसीव करते हुए कहा.

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‘‘हैलो भाभी नमस्ते. मैं आनंद बोल रहा हूं. क्या बात है विनीत आज औफिस नहीं आया? आज बहुत जरूरी मीटिंग थी. उस के फोन पर बैल तो जा रही है, लेकिन वह फोन नहीं उठा रहा. सब ठीक तो है?’’ आनंद के स्वर में चिंता झलक रही थी. आनंद विनीत के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

‘‘क्या विनीत औफिस में नहीं हैं?’’ अंजलि बुरी तरह चौंक कर बोली,  ‘‘लेकिन वे तो सुबह 9 बजे ही औफिस निकल गए थे.’’

‘‘नहीं भाभी विनीत आज औफिस नहीं आया है और फोन भी नहीं उठा रहा है,’’ और आनंद ने फोन काट दिया.

अंजलि को चिंता होने लगी कि आखिर विनीत कहां जा सकते हैं. दोपहर के 2 बज रहे थे. अंजलि ने भी विनीत को फोन लगाया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. अंजलि परेशान हो गई कि कहीं कोई दुर्घटना तो…

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