सफेद परदे के पीछे: जब मिताली की जिंदगी बनी नर्क

‘‘देखी तुम ने अपने गुरू घंटाल की काली करतूतें? बाबा कृष्ण करीम… अरे, मुझे तो यह हमेशा ही योगी कम और भोगी ज्यादा लगता था… और लो, आज साबित भी हो गया… हर टीवी चैनल पर इस की रासलीला के चर्चे हो रहे हैं…’’ घर में घुसते ही देवेश ने पत्नी मिताली की तरफ कटाक्ष का तीर छोड़ा.

‘तुम्हें आज पता चला है… मैं तो वर्षों से यह राज जानती हूं… सिर्फ जानती ही नहीं, बल्कि भुक्तभोगी भी हूं…’ मन ही मन सोच कर मिताली को मितली सी आ गई. घिनौनी यादों के इस वमन में कितना सुकून था, यह देवेश महसूस नहीं कर पाया. उस ने फटाफट जूतेमोजे उतारे और टीवी औन कर के सोफे पर पसर गया.

‘‘एक और बाबा पर गिरी गाज… नाबालिग ने लगाया धार्मिक गुरु पर यौन दुराचार का आरोप… आरोपी फरार… पुलिस ने किया बाबा कृष्ण करीम का आश्रम सीज…’’ लगभग हर चैनल पर यही ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी. रसोई में चाय बनाती मिताली के कान उधर ही लगे हुए थे. देवेश को चाय का प्याला थमा वह बिस्तर पर लेट गई.

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आज मिताली अपनेआप को बेहद हलका महसूस कर रही थी. एक बड़ा बोझ जिसे वह पिछले कई सालों से अपने दिलोदिमाग पर ढो रही थी वह अनायास उतर गया था. अब उसे यकीनन उस भयावह फोन कौल से आजादी मिल जाएगी जो उस की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ाए थी, जिस के चलते हर इनकमिंग फोन कौल पर उस का दिल उछल कर हलक में आ जाता था.

आंखें बंद होते ही मिताली की पलकों के पीछे एक दूसरी ही दुनिया सजीव हो उठी. चुपचाप से खड़े लमहे मिताली के इर्दगिर्द लिपट गए जैसे धुंध एकाएक आ कर पेड़ोंपहाड़ों से लिपट जाती है और वे वहां होते हुए भी अदृश्य हो जाते हैं. ठीक उसी तरह मिताली भी अपने आसपास की दुनिया से ओझल हो गई. परछाइयों की इस दुनिया में उस के साथ सुदीप है… बाबा का आश्रम… और सेवा के नाम पर जिस्म से होने वाला खिलवाड़ है…

सुदीप से उस की दोस्ती कालेज के समय से ही थी. इसे दोस्ती न कह कर प्यार कहें तो शायद ज्यादा उपयुक्त होगा. उन का कालेज शहर के बाहरी कोने पर था और कालेज से कुछ ही दूरी पर बाबा कृष्ण करीम का आश्रम था. हरेभरे पेड़ों से घिरा यह आश्रम देखने में बहुत ही रहस्यमय लगता था. दोनों अकसर एकांत की तलाश में उस तरफ निकल जाते थे. इस आश्रम का ऊंचा और भव्य मुख्यद्वार मिताली को सम्मोहित कर लेता था. वह इसे भीतर से देखना चाहती थी, लेकिन आश्रम में सिर्फ बाबा के भक्तों को ही प्रवेश की अनुमति थी.

मिताली अकसर सुदीप से अपने मन की बात कहती थी. एक दिन सुदीप ने उस से आश्रम के अंदर ले जाने का वादा किया जिसे बहुत जल्दी उस ने पूरा भी किया.

हुआ यों था कि रिश्ते में सुदीप की भाभी सुमन बाबा की भक्त थी और अकसर वहां आश्रम में सेवा के लिए जाती थी. उसी के साथ सुदीप मिताली को ले कर आश्रम गया.

आश्रम के दरवाजे पर सुरक्षा व्यवस्था बहुत सख्त थी. कई चरणों में जांच से गुजरने के बाद वे अब एक बड़े से चौगान में थे. मिताली हर तरफ आंखें फाड़फाड़ कर देख रही थी. आश्रम के बहुत बड़े भाग में ताजा सब्जियां लगी थीं. एक हिस्से में फलदार पेड़ भी थे. बहुत से भक्त जिन्हें सेवादार कहा जाता है, वहां निष्काम सेवा में जुटे थे. कुछ लोग सब्जियां तोड़ कर ला रहे थे और कुछ उन्हें तोलतोल कर वजन के अनुसार अलगअलग पैक कर रहे थे. कुछ लोग फलों को भी इसी तरह से पैक कर रहे थे. सुमन ने बताया कि ये फल और सब्जियां बाबा के भक्त ही प्रसादस्वरूप खरीद कर ले जाते हैं. सुमन स्वयं भी अपने घर के लिए फलसब्जियां यहीं से खरीद कर ले जाती है.

एक बड़े से रसोईघर में कुछ महिलाएं आश्रम में मौजूद सभी लोगों के लिए खाना बनाने में जुटी थीं तो कुछ सेवादार जूठे बरतन मांज कर अपनेआप को धन्य महसूस कर रहे थे.

मिताली ने देखा कि वहां लोगों से किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं बरता जा रहा था. हर व्यक्ति को समान सुविधा उपलब्ध थी. शायद यही समभाव सब को जोड़े था और यही बाबा की लोकप्रियता का कारण था.

मिताली को दूर आश्रम के कोने में गुफा जैसा एक कमरा दिखाई दिया. सुमन ने बताया कि यह बाबा का विशेष कक्ष है. जब भी वे यहां आश्रम में आते हैं इसी कक्ष में ठहरते हैं… यहां किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है.

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सुमन के साथ होने के कारण उन दोनों को किसी ने नहीं टोका. मिताली और सुदीप ने पूरा आश्रम घूम कर देखा. घूमतेघूमते दोनों आश्रम के दूसरे कोने तक पहुंच गए. यहां घने पेड़ों के झुरमुट में घासफूस से बनी कलात्मक झोंपडि़यां बेहद आकर्षक लग रही थीं. जगह के एकांत का फायदा उठा कर सुदीप ने उसे चूम भी लिया था.

मिताली को आश्रम की व्यवस्था ने बहुत प्रभावित किया. उस ने आगे भी यहां आते रहने का मन बना लिया.

‘और कुछ न सही, सुदीप के साथ एकांत में कुछ लमहे साथ बिताने को मिल जाएंगे… शहर में तो लोगों के देखे जाने का भय हमेशा दिमाग पर हावी रहता है… आधा ध्यान तो इसी में बंट जाता है… प्यारमुहब्बत की बातें क्या खाक करते हैं…’ सोच मिताली का दिमाग आगे की योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की कवायद में जुट गया. उस ने सुदीप को अपनी योजना के बारे में बताया.

‘‘यह आश्रम है कोई पिकनिक स्पौट नहीं कि जब जी चाहा टहलते हुए आ गए… देखा नहीं सुरक्षा व्यवस्था कितनी कड़ी थी…’’ सुदीप ने उस के प्रस्ताव को नकार दिया.

‘‘तुम ऐसा करो… सुमन भाभी के साथ बाबा के शिष्य बन जाओ… रोज न सही, कभीकभार तो आया ही जा सकता है… मिलने का मौका मिला तो ठीक वरना ताजा फलसब्जियां तो मिल ही जाएंगी…’’ मिताली ने उसे उकसाया.

बात सुदीप को भी जम गई और फिर एक दिन सुदीप विधिवत बाबा कृष्ण करीम का शिष्य बन गया.

मिताली और सुदीप कभी सुमन के साथ तो कभी अकेले ही आश्रम में आने लगे. अकसर दोनों सब की नजरें बचा कर उन झोंपडि़यों की तरफ निकल जाया करते थे. कुछ देर एकांत में बिताने के बाद प्रफुल्लित से लौटते हुए फलसब्जियां खरीद ले जाते.

आश्रम में आनेजाने से उन्हें पता चला कि इस आश्रम की शाखाएं देश के हर बड़े शहर में फैली हैं. इतना ही नहीं, विदेशों में भी बाबा के अनुयायी हैं, जो उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं. इन आश्रमों से कई अन्य तरह की सामाजिक गतिविधियां भी संचालित होती हैं. कई हौस्पिटल और स्कूल हैं जो आश्रम की कमाई से चलते हैं.

मिताली ने महसूस किया कि जितना वे बाबा के बारे में जान रहे थे उतना ही सुदीप का झुकाव उन की तरफ होने लगा था. अब उन की बातों का केंद्र भी अकसर बाबा ही हुआ करते थे.

मुख्य सेवादार ने उस की निष्ठा देखते हुए उसे आश्रम से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंप दी थीं. इन सब का प्रभाव यह हुआ कि अब मिताली बेरोकटोक आश्रम के हर हिस्से में आनेजाने लगी थी.

देखते ही देखते उन का कालेज पूरा होने को आया. फाइनल ऐग्जाम का टाइमटेबल आ चुका था.

‘‘अब पढ़ाई में जुटना होगा… ऐग्जाम से पहले एक आखिरी बार आश्रम चलें?’’ मिताली ने अपनी बाईं आंख दबाते हुए इशारा किया.

‘‘हां कल चलते हैं… बाबा का आशीर्वाद भी तो लेना है,’’ सुदीप ने कहा.

‘‘हाउ अनरोमांटिक,’’ वह भुनभुनाई.

‘‘कल का दिन तुम्हारी जिंदगी का एक यादगार दिन होने वाला है,’’ सुदीप ने शरारत से मुसकराते हुए उस का गाल खींच दिया.

वह दिन सचमुच ही उस की जिंदगी का एक यादगार दिन था. उस दिन मौसम भी कुछ आशिकाना सा ही था. आसमान में काले बादल छा रहे थे. हवा में बारिश की बूंदें तैर रही थीं.

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हमेशा की तरह चलतेचलते दोनों झोंपडि़यों की तरफ निकल आए. तभी अचानक मौसम खराब हो गया. तेज हवा के साथ बिजली कड़की और मूसलाधार बारिश होने लगी. उन्हें वापस आश्रम लौटने तक का वक्त नहीं मिला और वे भाग कर एक झोंपड़ी में घुस गए.

कुछ मौसम की साजिश और कुछ कुंआरे से इंद्रधनुष… मिताली 7 रंगों में नहा उठी. सुदीप उस के कान में धीरे से गुनगुनाया, ‘‘रूप तेरा मस्ताना… प्यार मेरा दीवाना… भूल कोई हम से न हो जाए…’’

मिताली लाज से सिकुड़ गई. इंद्रधनुष के रंग कुछ और गहरा गए.

भीगे बदन ने आग में घी का काम किया और फिर वह सब हो गया जो उन्होंने पुरानी हिंदी फिल्म ‘आराधना’ में देखा था. बारिश खत्म होने पर दोनों घर लौट गए. इस रोमानी शाम के यादगार लमहों के बोझ से मिताली की पलकें झुकी जा रही थीं.

परीक्षा खत्म हो गई. 2 दिन नींद पूरी करने और परीक्षा की थकान उतारने के बाद मिताली ने सुदीप को फोन किया. लेकिन यह क्या? उस का फोन तो स्विचऔफ आ रहा था.

‘लगता है जनाब की थकान अभी उतरी नहीं है,’ मिताली सोच कर मुसकराई. लेकिन यह सिर्फ उस का वहम ही था. अगले कई दिनों तक भी जब सुदीप का फोन बंद मिला तो उसे फिक्र हुई. उस ने सुदीप के 1-2 दोस्तों से उस के बारे में पता किया, लेकिन किसी ने भी उसे ऐग्जाम के बाद से नहीं देखा था. मिताली ने आश्रम जा कर सुमन से बात की, लेकिन उसे भी कुछ मालूम नहीं था.

सप्ताहभर बाद उसे सुमन से पता चला कि सुदीप अचानक कहीं गायब हो गया. उस के घर वालों ने भी उस की बहुत तलाश की, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. हार कर उन्होंने पुलिस को खबर कर दी और अब पुलिस उस की तलाश में जुटी है.

मिताली के सारे प्रयास विफल हो गए तो उस ने भी सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई की तैयारी करने लगी. तभी एक दिन दोपहर को उस के मोबाइल पर एक प्राइवेट नंबर से कौल आई, ‘‘मिताली, मैं बाबा का खास सहयोगी विद्यानंद बोल रहा हूं. बाबा तुम से भेंट करना चाहते हैं. कल दोपहर 3 बजे आश्रम आ जाना.’’

मिताली भीतर तक सिहर गई. बोली, ‘‘माफ कीजिएगा, मेरी आप के बाबा और आश्रम में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘तुम्हें न सही बाबा को तो है… और हां, जरा बाहर आओ, बाबा ने एक खास तोहफा तुम्हारे लिए भिजवाया है…’’ और फिर फोन कट गया.

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मिताली दौड़ कर बाहर गई. मुख्य दरवाजे पर एक छोटा सा लिफाफा रखा था. मिताली ने खोल कर देखा. उस में एक पैन ड्राइव था. उस ने कांपते हाथों से उसे अपने फोन से कनैक्ट किया. उस में एक वीडियो क्लिप थी, जिसे देखते ही मिताली भय से पीली पड़ गई. यह उस के और सुदीप के उन अंतरंग पलों का वीडियो था जो उन्होंने आश्रम वाली झोंपड़ी में बिताए थे.

मरता क्या नहीं करता. मिताली अगले दिन दोपहर 3 बजे बाबा के आश्रम में थी. आज उसे उस विशेषरूप से बनी गुफा में ले जाया गया. भीतर ले जाने से पहले निर्वस्त्र कर के उस की तलाशी ली गई और उस के कपड़े भी बदल दिए गए. मोबाइल स्विचऔफ कर के अलग रखवा दिया गया. इतना ही नहीं उस की घड़ी और कानों में पहने टौप्स तक खुलवा लिए गए.

बाहर से साधारण सी दिखने वाली यह गुफा भीतर से किसी महल से कम नहीं थी. नीम अंधेरे में मिताली ने देखा कि उस के अंदर विलासिता का हर सामान मौजूद था. आज पहली बार वह बाबा से प्रत्यक्ष मिल रही थी. बाबा का व्यक्तित्व इतना रोबीला था कि वह आंख उठा कर उस की तरफ देख तक नहीं सकी. सम्मोहित सी मिताली 2 घंटे तक बाबा के हाथों की कठपुतली बनी उस के इशारों पर नाचती रही. शाम को जब घर लौटी तो लग रहा था जैसे पूरा शरीर वाशिंगमशीन में धोया गया हो.

2 साल तक यह सिलसिला चलता रहा. बाबा जब भी इस आश्रम में विश्राम के लिए आते, मिताली को उन की सेवा में हाजिर होना पड़ता. अपने प्रेम के राज को राज रखने की कीमत मिताली किश्तों में चुका रही थी.

सुदीप का अब तक भी कुछ पता नहीं चला था. आश्रम में कुछ दबे स्वरों से उसे सुनाई दिया था कि बाबा ने उसे अपने विदेश स्थित आश्रम में भेज दिया है. इसी बीच उस के लिए देवेश का रिश्ता आया. पहले तो मिताली ने इनकार करना चाहा, क्योंकि वह अपनी अपवित्र देह देवेश को नहीं सौंपना चाहती थी, पर फिर मन के किसी कोने से आवाज आई कि हो सकता है यह रिश्ता तुम्हें इस त्रासदी से आजादी दिला दे… हो सकता है कि तुम्हें आश्रम के नर्क से छुटकारा मिल जाए… और इस उम्मीद पर वह देवेश का हाथ थाम कर वह शहर छोड़ आई. शादी के बाद सरनेम के साथ उस ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया.

मगर कहते हैं कि दुख से पहले उस की परछाईं पहुंच जाती है… मिताली के साथ भी यही हुआ. शादी के बाद लगभग 6 महीने तो उस ने डर के साए में बिताए, लेकिन आश्रम से फोन नहीं आया तो धीरेधीरे पुराने दिनों को भूलने लगी थी कि इसी बीच एक दिन अचानक एक फोन आ गया, ‘‘हनीमून पीरियड खत्म हो गया होगा… कल दोपहर आश्रम आ जाना… बाबा ने याद किया है…’’

यह सुन कर मिताली डर के मारे सूखे पत्ते सी कांपने लगी. उस के मुंह से बोल नहीं फूटे.

‘‘तुम ने क्या सोचा था, शहर और फोन नंबर बदलने से तुम छिप जाओगी? अरे बाबा तो समुद्र में सूई खोजने की ताकत रखते हैं… तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम अपनी औकात न भूलो… समझी?’’ एक धमकी भरी चेतावनी के साथ फोन कट गया.

फिर से वही पुराना सिलसिला शुरू हो गया. मिताली अब बुरी तरह से कसमसाने लगी थी. वह इस दोहरी जिंदगी से आजादी चाहने लगी थी. पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो उस ने आरपार की लड़ाई की ठान ली.

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‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? देवेश मुझे छोड़ देगा? ठीक ही करेगा… मैं भी कहां न्याय कर पा रही हूं उस के साथ… हर रात जैसे एक जूठी थाली परोसती हूं उसे… नहीं… अब और नहीं… अब मेरा चाहे जो भी हो… मैं अब आश्रम नहीं जाऊंगी… बाबा मेरे खिलाफ कोई कदम उठाए, उस से पहले ही मैं उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दूंगी,’ मिताली ने मन ही मन निश्चय कर लिया.

‘क्या तुम ऐसा कर पाओगी? है इतनी हिम्मत?’ उस के मन ने उसे ललकारा.

‘क्यों नहीं, बहुत सी महिलाएं ‘मीटू’ अभियान में शामिल हो कर ऐसे सफेदपोशों के नकाब उतार रही हैं… मैं भी यह हिम्मत जुटाऊंगी,’ मिताली ने अपनेआप से वादा किया.

अभी वह आगे की रणनीति तैयार करने की सोच ही रही थी कि किसी लड़की ने यह हिम्मत दिखा दी. बाबा और उस के आश्रम का काला सच समाज के सामने लाने का हौसला दिखा ही दिया.

‘‘अरे भई, आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’ देवेश ने कमरे में आ कर कहा तो मिताली पलकों के पीछे की दुनिया से वर्तमान में लौटी.

‘‘सिर्फ खाना नहीं जनाब. आज तो आप को विशेष ट्रीट दी जाएगी… एक ग्रैंड पार्टी… आखिर समाज को एक काले धब्बे से मुक्ति जो मिली है,’’ कह मिताली रहस्यमय ढंग से मुसकराई.

देवेश इस रहस्य को भेद नहीं पाया, लेकिन वह मिताली की खुशी में खुश था. मिताली मन ही मन उस अनजान लड़की को धन्यवाद देते हुए तैयार होने चल दी जिस ने उस में फिर से जीने की ललक जगा दी थी.

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