सहारा: मोहित और अलका आखिर क्यों हैरान थे

मोहित को घर जाने के लिए सिर्फ 1 सप्ताह की छुट्टी मिली थी. समय बचाने के लिए उस ने अपनी पत्नी अलका व बेटे राहुल के साथ मुंबई से दिल्ली तक की यात्रा हवाईजहाज से करने का फैसला किया. अलका ने घर से निकलने से पहले ही साफसाफ कहा था, ‘‘देखो, मैं पूरे 5 महीने के बाद अपने मम्मीपापा से मिलूंगी. भैयाभाभी के घर से अलग होने के बाद वे दोनों बहुत अकेले हो गए हैं. इसलिए मुझे उन के साथ ज्यादा समय रहना है. अगर आप ने अपने घर पर 2 दिनों से ज्यादा रुकने के लिए मुझ पर दबाव बनाया तो झगड़ा हो जाएगा.’’

‘अपने मम्मीपापा के अकेलेपन से आज तुम इतनी दुखी और परेशान हो रही हो पर शादी होते ही तुम ने रातदिन कलह कर के क्या मुझे घर से अलग होने को मजबूर नहीं किया था? जब तुम ने कभी मेरे मनोभावों को समझने की कोशिश नहीं की तो मुझ से ऐसी उम्मीद क्यों रखती हो?’ मोहित उस से ऐसा सवाल पूछना चाहता था पर झगड़ा और कलह हो जाने के डर से चुप रहा. ‘‘तुम जितने दिन जहां रहना चाहो, वहां रहना पर राहुल अपने दादादादी के साथ ज्यादा समय बिताएगा. वे तड़प रहे हैं अपने पोते के साथ हंसनेखेलने के लिए,’’ मोहित ने रूखे से लहजे में अपनी बात कही और अलका के साथ किसी तरह की बहस में उलझने से बचने के लिए टैक्सी की खिड़की से बाहर देखने लगा था.

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मोहित को अपनी सास मीना कभी अच्छी नहीं लगी थी. उन की शह पर ही अलका ने शादी के कुछ महीने बाद से किराए के मकान में जाने की जिद पकड़ ली थी. उस का दिल बहुत दुखा था पर शादी के 6 महीने बाद ही अलका ने उसे किराए के घर में रहने को मजबूर कर दिया था. वह करीब 4 साल तक किराए के मकान में रहा था. फिर नई कंपनी में नौकरी मिलने से वह 5 महीने पहले मुंबई आ गया था. अब सप्ताह भर की छुट्टियां ले कर वह सपरिवार पहली बार दिल्ली जा रहा था.

करीब 2 महीने पहले मोहित का साला नीरज अपनी पत्नी अंजु और सासससुर के बहकावे में आ कर घर से अलग हो गया था. उस के ससुर ने उसे नया काम शुरू कराया था जिस में उस की अच्छी कमाई हो रही थी. ससुराल में ज्यादा मन लगने से उस का ज्यादा समय वहीं गुजरता था. उस के अलग होने के फैसले को सुन अलका बहुत तड़पी थी. खूब झगड़ी थी वह फोन पर अपने भैयाभाभी के साथ पर उन दोनों ने घर से अलग होने का फैसला नहीं बदला था.

‘‘इनसान को अपने किए की सजा जरूर मिलती है. दूसरे की राह में कांटे बोने वाले के अपने पैर कभी न कभी जरूर लहूलुहान होते हैं,’’ मोहित की इस कड़वी बात को सुन कर अलका कई दिनों तक उस के साथ सीधे मुंह नहीं बोली थी. मोहित अपने मातापिता को मुंबई में साथ रखना चाहता था पर अलका ने इस प्रस्ताव का जबरदस्त विरोध किया.

‘‘मां की कमर का दर्द और पिताजी का ब्लडप्रेशर बढ़ता जा रहा है. अगर अब हम ने उन दोनों की उचित देखभाल नहीं की तो उन दोनों के लिए औलाद को पालनेपोसने की इतनी झंझटें उठाने का फायदा ही क्या हुआ?’’

अलका के पास मोहित के इस सवाल का कोई माकूल जवाब तो नहीं था पर उस ने अपने सासससुर को साथ न रखने की अपनी जिद नहीं बदली थी. सुबह की फ्लाइट पकड़ कर वे सब 12 बजे के करीब अपने घर पहुंच गए. पूरे सफर के दौरान अलका नाराजगी भरे अंदाज में खामोश रही थी.

अपनी ससुराल के साथ अलका की बहुत सारी खराब यादें जुड़ी हुई थीं. सास के कमरदर्द के कारण उसे पहुंचते ही रसोई में किसी नौकरानी की तरह मजबूरन घुसना पड़ेगा, यह बात भी उसे बहुत अखर रही थी. उस का मन अपने मम्मीपापा के पास जल्दी से जल्दी पहुंचने को बहुत ज्यादा आतुर हो रहा था. घंटी बजाने पर दरवाजा मोहित के पिता महेशजी ने खोला. उन सब पर नजर पड़ते ही वे फूल से खिल उठे. अपने बेटे को गले लगाने के बाद उन्होंने राहुल को गोद में उठा कर खूब प्यार किया. अलका ने अपने ससुरजी के पैर छू कर उन का आशीर्वाद पाया.

महेशजी तो राहुल से ढेर सारी बातें करने के मूड में आ गए. अपने दादा से रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कार का उपहार पा राहुल खुशी से फूला नहीं समा रहा था. अलका और मोहित घर में नजर आ रहे बदलाव को बड़ी हैरानी से देखने लगे.

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जिस ड्राइंगरूम में हमेशा चीजें इधरउधर फैली दिखती थीं वहां हर चीज करीने से रखी हुई थी. धूलमिट्टी का निशान कहीं नहीं दिख रहा था. खिड़कियों पर नए परदे लगे हुए थे. पूरा कमरा साफसुथरा और खिलाखिला सा नजर आ रहा था. ‘‘मां घर में नहीं हैं क्या?’’ मोहित ने अपने पिता से पूछा.

‘‘वे डाक्टर के यहां गई हुई हैं,’’ प्यार से राहुल का माथा चूमने के बाद महेशजी ने जवाब दिया. ‘‘अकेली?’’

‘‘नहीं, उन की एक सहेली साथ गई हैं.’’ ‘‘कौन? शारदा मौसी?’’

‘‘नहीं, उन्होंने एक नई सहेली बनाई है. दोनों लौटने वाली ही होंगी. तुम दोनों क्या पिओगे? चाय, कौफी या कोल्डडिं्रक? अरे, बाप रे,’’ महेशजी ने अचानक माथे पर हाथ मारा और राहुल को गोद से उतार झटके से सीधे खड़े हो गए. ‘‘क्या हुआ?’’ मोहित ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘गैस पर भिंडी की सब्जी रखी हुई है. इस शैतान से बतियाने के चक्कर में मैं उसे भूल ही गया था,’’ वह झेंपे से अंदाज में मुसकराए और फिर तेजी से रसोई की तरफ चल पड़े. राहुल कार के साथ खेलने में मग्न हो गया. अलका और मोहित महेशजी के पास रसोई में आ गए.

‘‘घर की साफसफाई के लिए कोई नई कामवाली रखी है क्या, पापा?’’ साफसुथरी रसोई को देख अलका यह सवाल पूछने से खुद को रोक नहीं पाई. ‘‘कामवाली तो हम ने लगा ही नहीं रखी है, बहू. घर के सारे कामों में तुम्हारी सास का हाथ अब मैं बंटाता हूं. तुम यह कह सकती हो कि उस ने नया कामवाला रख लिया है,’’ अपने मजाक पर महेशजी सब से ज्यादा खुल कर हंसे.

मोहित ने एक भगौने पर ढकी तश्तरी को हटाया और बोला, ‘‘वाह, मटरपनीर की सब्जी बनी है. लगता है मां सारा लंच तैयार कर के गई हैं.’’ ‘‘डाक्टर के यहां बहुत भीड़ होती है, इसलिए वे तो 3 घंटे पहले घर से चली गई थीं. आज लंच में तुम दोनों को मेरे हाथ की बनी सब्जियां खाने को मिलेंगी,’’ किसी छोटे बच्चे की तरह गर्व से छाती फुलाते हुए महेशजी ने उन दोनों को बताया.

‘‘आप ने खाना बनाना कब से सीख लिया, पापा?’’ मोहित हैरान हो उठा. ‘‘घर के सारे काम करने का हुनर हम आदमियों को भी आना चाहिए. तुम बहू से टे्रनिंग लिया करो. अब मैं तुम्हें इलायची वाली चाय बना कर पिलाता हूं.’’

‘‘चाय मुझे बनाने दीजिए, पापा,’’ अलका आगे बढ़ आई. ‘‘अगली बार तुम बनाना. तुम्हारे हाथ की बनी चाय पिए तो एक अरसा हो गया,’’ महेशजी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो अजीब सी भावुकता का शिकार हो उठी अलका को अपनी पलकें नम होती प्रतीत हुई थीं.

तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई तो मोहित दरवाजा खोलने के लिए चला गया. ‘‘अलका, तुम्हारे पापा आए हैं,’’ कुछ देर बाद मोहित की ऊंची आवाज अलका के कानों तक पहुंची तो वह भागती सी ड्राइंगरूम में पहुंच गई.

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‘‘आप, यहां कैसे?’’ अलका अपने पिता उमाकांत को देख खुशी से खिल उठी. ‘‘तुम लोगों के आने की खुशी में रसमलाई ले कर आया हूं,’’ राहुल को गोद से उतारने के बाद उमाकांत ने अपनी बेटी को छाती से लगा लिया.

‘‘उमाकांत, रसमलाई का मजा खाने के बाद लिया जाएगा. अभी चाय बन कर तैयार है,’’ महेशजी रसोई में से ही चिल्ला कर बोले. ‘‘ठीक है, भाईसाहब,’’ उन्हें ऊंची आवाज में जवाब देने के बाद उमाकांत ने हैरान नजर आ रहे अपने बेटीदामाद को बताया, ‘‘हम दोनों एकदूसरे के बहुत पक्के दोस्त बन गए हैं. रोज मिले बिना हमें चैन नहीं पड़ता है.’’

‘‘यह चमत्कार हुआ कैसे?’’ इस सवाल को पूछने से मोहित खुद को रोक नहीं सका. ‘‘यह सचमुच चमत्कार ही है कि इस घर में हमारा स्वागत अब दोस्तों की तरह होता है, मोहित,’’ सस्पेंस बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराते हुए उमाकांत उस के सवाल का जवाब देना टाल गए थे.

तभी करीब 2 महीने पहले घटी एक घटना की याद उन के मन में बिजली की तरह कौंध गई थी.

अपने बेटेबहू के अलग हो जाने से मीना बहुत ज्यादा दुखी और परेशान थीं. बेखयाली में घर की सीढि़यां उतरते हुए उन का पैर फिसला और दाएं टखने में मोच आ गई. डाक्टर की क्लिनिक में उन की मुलाकात महेश और आरती से हुई. आरती की कमर का इलाज वही डाक्टर कर रहा था.

तेज दर्द के कारण तड़प रही मीना का आरती ने बहुत हौसला बढ़ाया था. उस वक्त उन्होंने मीना के खिलाफ अपने मन में बसे सारे गिलेशिकवे भुला कर उन्हें सहारा दिया था. अपने बेटे से बहुत ज्यादा नाराज मीना ने उसे अपनी चोट की खबर नहीं दी थी. डाक्टर को दिखाने के बाद कुछ देर आराम करवाने के लिए महेशजी व आरती उन दोनों को अपने घर ले आए थे.

मीना का सिर भी दीवार के साथ जोर से टकराया था. वहां कोई जख्म तो नहीं हुआ पर सिर को हिलाते ही उन्हें जोर से चक्कर आ रहे थे.

इस स्थिति के चलते मीना को आरती के घर में उस रात मजबूरन रुकना पड़ा. उन की किसी भी जरूरत को पूरा करने के लिए आरती रात को मीना के साथ ही सोई थीं. नींद आने से पहले बहुत दिनों से परेशान चल रहीं मीना के मन में कोई अवरोध टूटा और वह आरती से लिपट कर खूब रोई थीं.

‘अपने बेटेबहू के घर छोड़ कर अलग हो जाने के बाद मुझे यह एहसास बहुत सता रहा है कि मैं ने आप दोनों के साथ बहुत गलत व्यवहार किया है. अपनी बेटी को समझाने के बजाय मैं उसे भड़का कर हमेशा ससुराल से अलग होने की राय देती रही. अब मुझे अपने किए की सजा मिल गई है, बहनजी…आप मुझे आज माफ कर दोगी तो मेरे मन को कुछ शांति मिलेगी.’ पश्चात्ताप की आग में जल रही मीना ने जिस वक्त आरती से आंसू बहाते हुए क्षमा मांगी थी उस वक्त उमाकांत और महेश भी उस कमरे में ही उपस्थित थे. जब आरती ने मीना को गले से लगा कर अतीत की सारी शिकायतों व गलतफहमियों को भुलाने की इच्छा जाहिर की तो भावविभोर हो उमाकांत और महेश भी एकदूसरे के गले लग गए थे.

आरती और महेश ने मीना और उमाकांत को अपने घर से 3 दिन बाद ही विदा किया था. ‘तुम ऐसा समझो कि अपनी बेटी की ससुराल में नहीं, बल्कि अपनी सहेली के घर में रह रही हो. तुम से बातें कर के मेरा मन बहुत हलका हुआ है. मुझे न कमर का दर्द सता रहा है न बहूबेटे के गलत व्यवहार से मिले जख्म पीड़ा दे रहे हैं. तुम कुछ ठीक होने के बाद ही अपने घर जाना,’ आरती की अपनेपन से भरी ऐसी इच्छा ने मीना को बेटी की ससुराल में रुकने के लिए मजबूर कर दिया था.

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आने वाले दिनों में दोनों दंपतियों के बीच दोस्ती की जड़ें और ज्यादा मजबूत होती गई थीं. पहले एकदूसरे के प्रति नाराजगी, नफरत और शिकायतों में खर्च होने वाली ऊर्जा फिर आपसी प्रेम को बढ़ाती चली गई थी. ‘‘मां, आप के साथ क्यों नहीं आई हैं?’’ अलका के इस सवाल को सुन उमाकांत अतीत की यादों से झटके के साथ उबर आए थे.

‘‘कुछ देर में वे आती ही होंगीं. इसे फ्रिज में रख आ,’’ उमाकांत ने रसमलाई का डिब्बा अलका को पकड़ा दिया. वे सब लोग जब कुछ देर बाद गरमागरम चाय का लुत्फ उठा रहे थे तब एक बार फिर घंटी की आवाज घर में गूंज गई.

दरवाजा खुलने के बाद अलका और मोहित ने जो दृश्य देखा वह उन के लिए अकल्पनीय था. मोहित की मां आरती ने अलका की मां मीना का सहारा ले कर ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. बहुत ज्यादा थकी सी नजर आने के बावजूद वे दोनों घर आए मेहमानों को देख कर खिल उठी थीं.

मोहित ने तेजी से उठ कर पहले दोनों के पैर छुए और फिर मां की बांह थाम ली. मीना के हाथ खाली हुए तो उन्होंने अपनी बेटी को गले लगा लिया.

अलका उन से अलग हुई तो राहुल अपनी दादी की गोद से उतर कर भागता हुआ नानी की गोद में चढ़ गया. सब के लाड़प्यार का केंद्र बन वह बेहद प्रसन्न और बहुत ज्यादा उत्साह से भरा हुआ नजर आ रहा था. ‘‘इस बार 2 कप चाय मैं बना कर लाता हूं,’’ उमाकांत ने अपना कप उठाया और चाय का घूंट भरने के बाद रसोई की तरफ चल पड़े.

उन की जगह चाय बनाने के लिए अलका रसोई में जाना चाहती थी पर आरती ने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया. ‘‘बहू, तुम्हारे पापा के हाथ की बनी स्पेशल चाय पीने की मुझे तो लत पड़ गई है. बना लेने दो उन्हीं को चाय,’’ आरती के मुंह से निकले इन शब्दों ने अलका और मोहित के मनों की उलझन को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था.

‘‘मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा है,’’ उन चारों बुजुर्गों को कुछ देर बाद बच्चा बन कर राहुल के साथ हंसतेबोलते देख अलका ने धीमी आवाज में मोहित के सामने अपने मन की हैरानी प्रकट की. ‘‘कितने खुश हैं चारों,’’ मोहित भावुक हो उठा, ‘‘इस सुखद बदलाव का कारण कुछ भी हो पर यह दृश्य देख कर मेरे मन की चिंता गायब हो गई है. ये सब एकदूसरे का कितना मजबूत सहारा बन गए हैं.’’

‘‘पर ये चमत्कार हुआ कैसे?’’ अपनी मां के टखने में आई मोच वाली घटना से अनजान अलका एक बार फिर आश्चर्य से भर उठी. इस बार अलका की आवाज उस के पिता के कानों तक पहुंच गई. उन्होंने तालियां बजा कर सब का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया और फिर बड़े स्टाइल से गला साफ करने के बाद स्पीच देने को तैयार हो गए.

‘‘हमारे रिश्तों में आए बदलाव को समझने के लिए अलका और मोहित के दिलों में बनी उत्सुकता को शांत करने के लिए मैं उन दोनों से कुछ कहने जा रहा हूं. मेरी प्रार्थना है कि आप सब भी मेरी बात ध्यान से सुनें. ‘‘अपनी अतीत की गलतियों को ले कर अगर कोई दिल से पश्चात्ताप करे तो उस के अंदर बदलाव अवश्य आता है. जब नीरज अपनी पत्नी व बेटी को ले कर अलग हुआ तब मीना और मुझे समझ में आया कि हम ने अलका को किराए के मकान में जाने की शह दे कर बहुत ज्यादा गलत काम किया था.

‘‘बढ़ती उम्र की बीमारियों के शिकार बने हम चारों मायूस व दुखी इनसानों के दिलों में एकदूसरे के लिए बहुत सारा मैल जमा था. इस मैल को दूर कराने का मौका संयोग से हमें मिल गया. ‘‘मनों का मैल मिटा तो वक्त ने यह सिखाया और दिखाया कि हम चारों एकदूसरे का मजबूत सहारा बन सकते हैं. आपस में अच्छे दोस्तों की तरह सहयोग शुरू करने के बाद आज हम सब अपने को ज्यादा सुखी, खुश और सुरक्षित महसूस करते हैं.

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‘‘बेटी अपने घर चली जाए और बेटाबहू किसी भी कारण से इस बड़ी उम्र में मातापिता को सहारा देने को…उन की देखभाल करने को उपलब्ध न हों तो पड़ोसी, मित्र व रिश्तेदार ही उन के काम आते हैं. हम रिश्तेदार तो पहले ही थे, अब पड़ोसी व अच्छे मित्र भी बन गए हैं,’’ भावुक नजर आ रहे उमाकांत ने आगे बढ़ कर महेशजी को उठाया और फिर दोनों दोस्त हाथ पकड़ कर साथसाथ खड़े हो गए. ‘‘पड़ोसी कैसे?’’ मोहित ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम दोनों को सरप्राइज देने के लिए हम ने यह खबर अभी तक छिपाए रखी थी कि इस के ठीक ऊपर वाले फ्लैट में हम ने पिछले हफ्ते शिफ्ट कर लिया है,’’ उमाकांत ने बताया. ‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है,’’ मोहित ने इस खबर की पुष्टि कराने को अपने पिता की तरफ देखा.

‘‘यह बात सच है, बेटे. पुराना फ्लैट बेच कर ऊपर वाला फ्लैट खरीदने का इन का फैसला समझदारी भरा है. पड़ोसी होने से हम एकदूसरे के सुखदुख में फौरन शामिल हो जाते हैं. ‘‘इस के अलावा हमारी उचित देखभाल न कर पाने के कारण अब तुम बच्चों को किसी तरह के अपराधबोध का शिकार बनने की कोई जरूरत नहीं है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अब हमारा अकेलापन दूर भाग गया है. आपसी सहयोग के कारण हमारा जीवन ज्यादा खुशहाल और रसपूर्ण हो गया है,’’ महेशजी का चेहरा जोश व उत्साह से चमक उठा था.

‘‘आप सब को इतना खुश देख कर मेरा मन बहुत ज्यादा हलकापन महसूस कर रहा है लेकिन…’’ ‘‘लेकिन क्या?’’ अपने बेटे को यों झटके से चुप होता देख आरती चिंतित नजर आने लगीं.

‘‘इस अलका बेचारी का मायका और ससुराल तो अब ऊपरनीचे के घर में हो गए. ये ससुराल वालों से रूठ कर अब कहां जाया करेगी?’’ मोहित के उस मजाक पर सब ने जोर से ठहाका लगाया तो अलका ने शरमा कर अपनी मां व सास के पीछे खुद को छिपा लिया था.

सहारा: उमाकांत के मन से बेटी के लिए कैसे मिटा संशय?

लेखक- सिद्धार्थ जैन

अपनी सहेली के विवाह समारोह में भाग लेने के बाद दीप्ति आलोकजी के साथ रात को 11 बजे वापस लौटी. जिस घर में वह पेइंग गेस्ट की तरह रहती थी उस के गेट के सामने अपने मातापिता को खड़े देख वह जोर से चौंक पड़ी क्योंकि वे दोनों बिना किसी पूर्व सूचना के कानपुर से दिल्ली आए थे.

‘‘मम्मी, पापा, आप दोनों ने आने की खबर क्यों नहीं दी?’’ कार से उतर कर बहुत खुश नजर आ रही दीप्ति अपनी मां गायत्री के गले लग गई.

‘‘हम ने सोचा इस बार अचानक पहुंच कर देखा जाए कि यहां तुम अकेली किस हाल में रह रही हो,’’ अपने पिता उमाकांत की आवाज में नाराजगी और रूखेपन के भावों को पढ़ दीप्ति मन ही मन बेचैन हो उठी.

‘‘मैं बहुत मजे में हूं, पापा,’’ उन की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए दीप्ति उमाकांत के भी गले लग गई.

आलोकजी इन दोनों से पहली बार मिल रहे थे. उन्होंने कार से बाहर आ कर अपना परिचय खुद ही दिया.

‘‘रात के 11 बजे कहां से आ रहे हैं आप दोनों?’’ उन से इस सवाल को पूछते हुए उमाकांत ने अपने होंठों पर नकली मुसकराहट सजा ली.

‘‘दीप्ति की पक्की सहेली अंजु की आज शादी थी. वह इस के औफिस में काम करती है. यह परेशान थी कि शादी से घर अकेली कैसे लौटेगी. मैं ने इस की परेशानी देख कर साथ चलने की जिम्मेदारी ले ली. अकेले लौटने का डर मन से दूर होते ही शादी में शामिल होने की इस की खुशी बढ़ गई. मुझे अच्छा लगा,’’ आलोकजी ने सहज भाव से मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अकेली लड़की के लिए रात को इतनी ज्यादा देर तक घर से बाहर रहना ठीक नहीं होता है, बेटी,’’ दीप्ति को सलाह देते हुए उमाकांत की आवाज में कुछ सख्ती के भाव उभरे.

दीप्ति के कुछ बोलने से पहले आलोकजी ने कहा, ‘‘उमाकांतजी, देर रात के समय दीप्ति को मैं कहीं अकेले आनेजाने नहीं देता हूं. इस मामले में आप दोनों को फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘मांबाप को जवान बेटी की चिंता होती ही है. आजकल किसी पर भी भरोसा करना ठीक नहीं है जनाब. अब मुझे इजाजत दीजिए. गुड नाइट,’’ कुछ रूखे से अंदाज में अपने मन की चिंता व्यक्त करने के बाद उमाकांत मुड़े और गेट की तरफ चलने को तैयार हो गए.

‘‘उमाकांतजी, कल इतवार को आप डिनर हमारे घर कर रहे हैं. मैं ‘न’ बिलकुल नहीं सुनूंगा,’’ आलोकजी ने दोस्ताना अंदाज में उन के कंधे पर हाथ रख कर उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दिया.

‘‘ओके,’’ बिना मुसकराए उन्होंने आलोकजी का निमंत्रण स्वीकार किया.

दीप्ति ने असहज भाव से मुसकराते हुए उन से विदा ली, ‘‘गुड नाइट, सर. मैं सुबह ठीक 9 बजे पहुंच जाऊंगी.’’

‘‘थैंक यू ऐंड गुड नाइट,’’ आलोकजी ने उस से हाथ मिलाने के बाद गायत्री को हाथ जोड़ कर नमस्ते किया और कार में बैठ गए.

उन्हें अपने घर पहुंचने में 5 मिनट लगे. अपनी पत्नी उषा की नजरों से वे अपने मन की बेचैनी छिपा नहीं पाए थे.

उषा की सवालिया नजरों के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘दीप्ति के मातापिता कानपुर से आए हैं. उन्हें दीप्ति का मेरे साथ इतनी देर से वापस लौटना अच्छा नहीं लगा. मुझे लग रहा है कि वे दोनों इस कारण तरहतरह के सवाल पूछ कर उसे जरूर परेशान करेंगे.’’

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‘‘उन्हें अपनी बेटी पर विश्वास करना चाहिए,’’ उषा ने अपनी राय जाहिर की.

‘‘उस के पिता मुझे तेज गुस्से वाले इंसान लगे हैं. मुझे उन का विश्वास जीतने के लिए कुछ और देर उन के साथ रुकना चाहिए था.’’

‘‘हम कल उन्हें घर बुला लेते हैं.’’

‘‘मैं ने दोनों को कल रात डिनर के लिए बुला लिया है.’’

‘‘गुड.’’

‘‘तुम सुबह अनिता और राकेश को भी कल डिनर यहीं करने के लिए फोन कर देना.’’

‘‘ओके.’’

कुछ देर बाद अमेरिका में रह रहे अपने बेटे अमित और बहू वंदना से बात कर के उन का मूड कुछ सही हुआ. वे दोनों अगले महीने घर आ रहे हैं, यह खबर सुन वे खुशी से झूम उठे थे.

कमरदर्द से परेशान उषा नींद की गोली लेने के बाद जल्दी सो गई थी. आलोकजी दीप्ति की फिक्र करते हुए कुछ देर तक करवटें बदलते रहे थे.

सुबह 9 बजे से कुछ मिनट पहले दीप्ति अपनी मां गायत्री के साथ उन के घर पहुंच गई. आलोकजी को इस कारण उस के साथ अकेले में बातें करने का मौका नहीं मिला.

वैसे उन्हें मांबेटी सहज नजर नहीं आ रही थीं. इस बात से उन्होंने अंदाजा लगाया कि बीती रात दीप्ति के साथ उस के मातापिता ने उसे डांटनेसमझाने का काम जरूर किया होगा.

उन तीनों को फिजियोथेरैपिस्ट के यहां से वापस लौटने में डेढ़ घंटा लगा. तब तक आलोकजी ने सब के लिए नाश्ता तैयार कर दिया था. लेकिन गायत्री ने सिर्फ चाय पी और अपने पति के पास जल्दी वापस लौटने के लिए दीप्ति से बारबार आग्रह करने लगी. वह अपनी मां के साथ जाने को उठ कर खड़ी तो जरूर हो गई पर उस के हावभाव साफ बता रहे थे कि उसे गायत्री का यों शोर मचाना अच्छा नहीं लगा था.

पिछली रात वह 2 बजे सो सकी थी. उस के मातापिता ने कल उसे डांटते हुए कहा था :

‘अपनी दौलत और मीठे व्यवहार के बल पर यह आलोक तुम्हें गुमराह कर रहा है. बड़ी उम्र के ऐसे चालाक पुरुषों के जवान लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाने के किस्से किस ने नहीं सुने हैं.

‘तुम्हें इस इंसान से फौरन सारे संबंध तोड़ने होंगे, नहीं तो हम बोरियाबिस्तर बंधवा कर तुम्हें वापस कानपुर ले जाएंगे,’ उमाकांत ने उसे साफसाफ धमकी दे दी थी.

 

दीप्ति ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे दोनों कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे. तब धीरेधीरे उस का गुस्सा भी बढ़ता गया था.

‘बिना सुबूत और बिना मुझ से कुछ पूछे आप दोनों मुझे कैसे चरित्रहीन समझ सकते हैं?’ दीप्ति जब अचानक गुस्से से फट पड़ी तब कहीं जा कर उस के मातापिता ने अपना सुर बदला था.

‘चल, मान लिया कि तू भी ठीक है और यह आलोकजी भी अच्छे इंसान हैं, पर दुनिया वालों की जबान तो कोई नहीं पकड़ सकता है, बेटी. हमारा समाज ऐसे बेमेल रिश्तों को न समझता है, न स्वीकार करता है. तुझे अपनी बेकार की बदनामी से बचना चाहिए,’ उसे यों समझाते हुए जब गायत्री एकाएक रो पड़ीं तो दीप्ति ने उन दोनों को किसी तरह की सफाई देना बंद कर दिया था.

‘कल आप दोनों आलोक सर और उन की पत्नी से मिल कर उन्हें समझने की कोशिश तो करो. अगर बाद में भी आप दोनों के दिलों में उन के प्रति भरोसा नहीं बना तो आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी,’ यह आखिरी बात कह कर दीप्ति ने उन्हें गेस्ट रूम में सोने भेज दिया था.

सुबह जागने के बाद दीप्ति की अपने मातापिता से ज्यादा बातें नहीं हुईं. बस, दोनों पार्टियों के बीच तनाव भरी खामोशी लंबी खिंची थी.

वे तीनों रात को 8 बजे के करीब आलोकजी के घर पहुंचे. उन्होंने अपनी पत्नी के साथसाथ उन का परिचय रितु और शिखा नाम की 2 लड़कियों से भी कराया.

‘‘ये दोनों पहली मंजिल पर रहने वाली हमारी किराएदार हैं. आज इन के हाथ का बना स्वादिष्ठ खाना ही आप दोनों को खाने को मिलेगा,’’ उषा ने रितु और शिखा के हाथ प्यार से थाम कर उन की तारीफ की.

‘‘रितु को नई जौब मिल गई है. वह अगले महीने मुंबई जा रही है. तब दीप्ति ने यहीं मेरे साथ शिफ्ट होने का प्लान बनाया है,’’ यह सूचना दे कर शिखा ने दीप्ति को गले से लगा लिया था.

इस खबर को सुनने के बाद उमाकांत की आंखों में पैदा हुई चिढ़ और नाराजगी के भावों को आलोकजी ने साफ पढ़ा. उमाकांत के मन की टैंशन कम करने के लिए उन्होंने सहज भाव से कहा, ‘‘यह शिखा सोते हुए खर्राटे लेती है. शायद दीप्ति इस के साथ रूम शेयर न करना चाहे.’’

‘‘आलोक सर, मेरा सीक्रेट आप सब को क्यों बता रहे हैं?’’ शिखा ने नाराज होने का अभिनय करते हुए जब किसी छोटे बच्चे की तरह जमीन पर पांव पटके तो उमाकांत को छोड़ सभी जोर से हंस पड़े थे.

उमाकांत ने शुष्क स्वर में शिखा को बताया, ‘‘तुम्हें नई रूममेट ढूंढ़नी पड़ेगी क्योंकि दीप्ति तो बहुत जल्दी वापस कानपुर जा रही है.’’

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‘‘अरे, कानपुर जाने का फैसला तुम ने कब किया, दीप्ति?’’ शिखा ने हैरान हो कर दीप्ति से सवाल किया.

‘‘पापा के इस फैसले की मुझे भी कोई जानकारी नहीं है,’’ दीप्ति ने थके से स्वर में उसे बताया और उषाजी का हाथ पकड़ कर रसोई की तरफ चल पड़ी.

‘‘अंकल, आप दीप्ति को कानपुर क्यों ले जा रहे हैं? क्या वहां उसे यहां जैसी अच्छी जौब मिलेगी?’’ उमाकांत के बगल में सोफे पर बैठती हुई शिखा ने सवाल पूछा.

‘‘वह?घर से दूर रहती है, इसलिए उस का कहीं रिश्ता पक्का करने में हमें दिक्कत आ रही है. वह जौब करेगी या नहीं, यह फैसला अब उस की भावी ससुराल वाले करेंगे,’’ उमाकांत अभी भी नाराज नजर आ रहे थे.

‘‘यह क्या बात हुई, अंकल? दीप्ति को तो बड़ी जल्दी प्रोमोशन मिलने वाला है. शादी करने के लिए उस की इतनी अच्छी जौब छुड़ाना गलत होगा,’’ शिखा को उन की बात पसंद नहीं आई थी.

‘‘अंकल, दीप्ति ने बहुत मेहनत कर के खुद को काबिल बनाया है. वह शादी होने के बाद जौब करे या न करे, यह फैसला उसी का होना चाहिए. आप को उस का रिश्ता उस घर में पक्का करना ही नहीं चाहिए जो जबरदस्ती उसे घर बिठाने की बात करें,’’ उमाकांत के सामने बैठती हुई रितु ने जोशीले अंदाज में अपनी राय व्यक्त की.

बहुत जल्दी ही उमाकांत ने खुद को इन दोनों लड़कियों के साथ बहस में उलझा हुआ पाया. दुनिया की ऊंचनीच समझाते हुए वे लड़कियों के लिए कैरियर से ज्यादा शादी को महत्त्वपूर्ण बता रहे थे.

उन्हें रितु और शिखा से यों बहस करने में मजा आ रहा है, यह इस बात से जाहिर था कि घंटे भर का वक्त गुजर जाने का उन्हें बिलकुल पता नहीं चला.

उन दोनों के साथ बातों में उलझे रहने का एक कारण यह भी था कि उन का मन एक तरफ चुपचाप बैठे आलोकजी से बात करने का बिलकुल नहीं कर रहा था.

गायत्री बहुत देर पहले रसोई में चली गई थी. वहां अपनी बेटी दीप्ति को उषा का कुशलता से काम में हाथ बटाते देख उन्हें यह समझ आ गया कि वह अकसर ऐसा करती रहती थी. दीप्ति को अच्छी तरह मालूम था कि वहां कौन सी चीज कहां रखी हुई थी.

उन्हें अपनी बेटी का उषा के साथ हंसनाबोलना अच्छा नहीं लग रहा था. दीप्ति, रितु और शिखा को इन लोगों ने अपने मीठे व्यवहार और दौलत की चमकदमक से फंसा लिया है, यह विचार बारबार उन के मन में उठ कर उन की चिंता बढ़ाए जा रहा था. किसी अनहोनी की आशंका से उन का मन बारबार कांप उठता था.

जब उषाजी ने उन के साथ हंसनेबोलने की कोशिश शुरू की तो और ज्यादा चिढ़ कर गायत्री ड्राइंगरूम में वापस लौट आईं. वे अपने पति की बगल में बैठी ही थीं कि किसी के द्वारा बाहर से बजाई गई घंटी की आवाज घर में गूंज उठी.

कुछ देर बाद आलोकजी एक युवती के साथ वापस लौटे और उमाकांत व गायत्री से उस का परिचय कराया, ‘‘यह मेरी बेटी अनिता है. आप दोनों से मिलाने के लिए मैं ने इसे खास तौर पर बुलाया है.’’

‘‘क्या अकेली आई हो?’’ अनिता के माथे पर लगे सिंदूर को देख कर गायत्री ने उस के नमस्ते का जवाब देने के बाद सवाल पूछा.

‘‘नहीं, राकेश साथ आए हैं. वे कार पार्क कर रहे हैं. दीप्ति तो बिलकुल आप की शक्लसूरत पर गई है, आंटी. इस उम्र में भी आप बड़ी अच्छी लग रही हैं,’’ अनिता के मुंह से अपनी तारीफ सुन गायत्री तो खुश हुईं पर उमाकांत को उस का अपनी पत्नी के साथ यों खुल जाना पसंद नहीं आया था.

‘‘उमाकांतजी, आप मेरे साथ पास की मार्किट तक चलिए. खाने के बाद मुंह मीठा करने के लिए रसमलाई ले आएं. दीप्ति ने बताया था कि आप को रसमलाई बहुत पसंद है,’’ बड़े अपनेपन से आलोकजी ने उमाकांत का हाथ पकड़ा और दरवाजे की तरफ चल पड़े.

उमाकांत को मजबूरन उन के साथ चलना पड़ा. वैसे सचाई तो यह थी कि उन का मन इस घर में बिलकुल नहीं लग रहा था.

घर से बाहर आते ही आलोकजी ने उन का परिचय अंदर प्रवेश कर रहे अपने दामाद से कराया, ‘‘ये मेरे दामाद राकेशजी हैं. शहर के नामी चार्टर्ड अकाउंटैंटों में इन की गिनती होती है. राकेशजी, ये दीप्ति के पिता उमाकांतजी हैं.’’

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राकेश का परिचय जान कर उमाकांत को तेज झटका लगा था. उस ने अपने ससुर और उमाकांत दोनों के पैर छुए थे. उम्र में अपने से 8-10 साल छोटे राकेश से अपने पांव छुआना उन को बहुत अजीब लगा. उन्होंने बुदबुदा कर राकेश को आशीर्वाद सा दिया और बहुत बेचैनी महसूस करते हुए आगे बढ़ गए.

घर से कुछ दूर आ कर आलोकजी ने पहले एक गहरी सांस छोड़ी और फिर अशांत लहजे में उमाकांत को बताना शुरू किया, ‘‘अपने दिल पर लगे सब से गहरे जख्म को मैं आप को दिखाने जा रहा हूं. चार्टर्ड अकाउंटैंट बनने का सपना देखने वाली मेरी बेटी अनिता राकेश की फर्म में जौब करने गई थी. उन के बीच दिन पर दिन बढ़ते जा रहे दोस्ताना संबंध तब हमारे लिए भी गहरी चिंता का कारण बने थे, उमाकांतजी.

‘‘जब मेरी बेटी ने अपने से उम्र में 17 साल बड़े विधुर राकेश से शादी करने का फैसला हमें सुनाया तो हमारे पैरों तले से जमीन खिसक गई थी. जिस आक्रोश, डर और चिंता को आप दोनों पतिपत्नी दीप्ति और मेरे बीच बने अच्छे संबंध को देख कर आज महसूस कर रहे हैं, उन्हें उषा और मैं भली प्रकार समझ सकते हैं क्योंकि हम इस राह पर से गुजर चुके हैं.

‘‘जिस पीड़ा को अनिता का बाप होने के कारण मैं झेल चुका हूं, वैसी पीड़ा आप को कभी नहीं भोगनी पड़ेगी, ऐसा वचन मैं आप को इस वक्त दे रहा हूं, उमाकांतजी. आप की बेटी का कैसा भी अहित मेरे हाथों कभी नहीं होगा.

‘‘इस महानगर में अनगिनत युवा पढ़ने और जौब करने आए हुए हैं. उन सब को अपने घर व घर वालों की बहुत याद आना स्वाभाविक ही है. घर से दूर अकेली रह रही लड़कियों के लिए बड़ी उम्र वाले किसी प्रभावशाली पुरुष के बहुत निकट हो जाने को समझना भी आसान है क्योंकि वह लड़की अपने पिता के साथ को परदेस में बहुत ‘मिस’ करती हैं.

‘‘जिन दिनों राकेश ने मेरी बेटी को अपने प्रेमजाल में फंसाया, उन दिनों उषा और मैं भी अपने बेटेबहू के पास रहने अमेरिका गए हुए थे. राकेश आज मेरा दामाद जरूर है लेकिन मेरे मन के एक हिस्से ने उसे भावनात्मक दृष्टि से अपरिपक्व अनिता को गुमराह करने के लिए आज भी पूरी तरह से माफ नहीं किया है.

‘‘मेरी पत्नी कमरदर्द के कारण अपाहिज सी हो गई है. बेटाबहू विदेश में हैं. हम दोनों को दीप्ति, रितु व शिखा का बहुत सहारा है. सुखदुख में ये बहुत काम आती हैं हमारे.

‘‘बदले में हम इन्हें घर के जैसा सुरक्षित व प्यार भरा परिवेश देने का प्रयास दिल से करते हैं. हम सब ने एकदूसरे को परिवार के सदस्यों की तरह से अपना लिया है. सगे रिश्तेदारों और पड़ोसियों से ज्यादा बड़ा सहारा बन गए हैं हम एकदूसरे के.

‘‘दीप्ति मुझ से बहुत प्रभावित है… मुझे अपना मार्गदर्शक मानती है…वह मेरे बहुत करीब है पर इस निकटता का मैं गलत फायदा कभी नहीं उठाऊंगा. दीप्ति की जिंदगी में आप मुझे अपनी जगह समझिए, उमाकांतजी.’’

आलोकजी का बोलतेबोलते गला भर आया था. उमाकांत ने रुक कर उन के दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और बहुत भावुक हो कर बोले, ‘‘आलोकजी, मैं ने आप को बहुत गलत समझा है. अपनी नजरों में गिर कर मैं इस वक्त खुद को बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं…मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज.’’

वे दोनों एकदूसरे के गले लग गए. उन की आंखों से बह रहे आंसुओं ने सारी गलतफहमी दूर करते हुए आपसी विश्वास की जड़ों को सींच मजबूत कर दिया था.

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