ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाली थी. साक्षी सामान संभाल रही थी. उस ने अपने बालों में कंघी की और अपने पति सौरभ से बोली, ‘‘आप भी अपने बाल सही कर लें. यह अपने कुरते पर क्या लगा लिया आप ने? जरा भी खयाल नहीं रखते खुद का.’’
‘‘अरे यार, रात को डिनर किया था न. लगता है कुछ गिर गया.’’
तीखे नैननक्श, सांवले रंग की साक्षी मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखती थी. पति सौरभ सरकारी विभाग में बाबू था. शादी को 15 साल होने जा रहे थे. दोनों का 1 बेटा करीब 13 साल का था. लेकिन इस वक्त उन के साथ नहीं था.
साक्षी जब पढ़ती थी तब कसबे में एक ही सरकारी गर्ल्स कालेज था. उस में ही मध्यवर्गीय और उच्चवर्ग के घरों की लड़कियां स्कूल से आगे की पढ़ाई पूरी करती थीं. कसबे के करोड़पति व्यापारी की बेटी कामिनी भी साक्षी की कक्षा में थी. वह चाहती तो यह थी कि शहर में जा कर किसी बड़े नामी कालेज में दाखिला ले, लेकिन उसे इस बात की इजाजत नहीं मिली.
साक्षी और कामिनी ने सरकारी कालेज में ही बीए किया. दोनों में इतनी गहरी मित्रता थी कि दोनों की सुबहशाम साथ ही गुजरती थीं. साथसाथ पलीबढ़ी हुई दोनों सहेलियां मित्रता की एक मिसाल थीं. बीए के बाद दोनों की शादी के रिश्ते आने लगे. कामिनी की शादी हो गई. शादी के बाद वह दिल्ली में अपनी ससुराल चली गई.
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इधर साक्षी के परिजनों के पास शादी में खर्च को ज्यादा कुछ नहीं था. उस की शादी में कुछ दिक्कतें आईं. 1 साल बाद साक्षी की शादी भी कामिनी की ससुराल के कसबे में ही हो गई. दोनों सहेलियां शादी के बाद बिछुड़ गईं. साक्षी को इतना तो पता था कि कामिनी दिल्ली में है, लेकिन पताठिकाना क्या है, यह उसे नहीं पता था. वह अपने सरकारी बाबू पति सौरभ के साथ जीवन व्यतीत कर रही थी. छोटा सा कसबा ऊपर से पति एक मामूली बाबू. सुबह से शाम, शाम से रात हो जाती. सब कुछ नीरस सा लगता साक्षी को. वह सोचती यह भी कोई जिंदगी है, कुछ भी नया नहीं. उसे रहरह कर कामिनी की याद आती. सोचती कामिनी दिल्ली में है, कितने मजे में रहती होगी.
दोनों की शादी को कई बरस गुजर गए. कामिनी का अतापता नहीं था, क्योंकि उस के पिता ने अपना कारोबार कसबे से समेट कर दिल्ली में शुरू कर लिया था. कसबे से आनाजाना छूटा तो कामिनी भी दिल्ली की हो कर रह गई.
शादी के 14 साल बाद शहर से एक दिन कामिनी के पिता किसी काम से कसबे में आए, तो साक्षी से भी मिले. वे साक्षी को भी अपनी बेटी की ही तरह मानते थे. साक्षी ने उन से कामिनी का मोबाइल नंबर लिया. साक्षी ने कामिनी से बातें कीं. जब भी टाइम मिलता दोनों मोबाइल पर बातें करतीं.
कामिनी ने साक्षी को दिल्ली आने का निमंत्रण दिया. साक्षी कई दिनों तक टालती रही. आखिर एक दिन उस ने अपने पति सौरभ को दिल्ली ले चलने को राजी कर लिया.
कामिनी के निमंत्रण पर ही साक्षी अपने पति के साथ दिल्ली जा रही थी. कामिनी ने कहा था कि वह उसे लेने रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाएगी. साक्षी पहली बार दिल्ली जा रही थी. वह बहुत खुश थी. उस की उम्मीदों को पंख लग रहे थे. दिल्ली जिस का अभी तक नाम सुना था, उसे देखेगी. सब से बड़ी बात कामिनी से 15 साल बाद मिलेगी. बहुत सारी बातें करेगी. उस ने सुना था खूब धनदौलत, ठाटबाट हैं कामिनी के ससुराल में. उस का पति वैभव भी काफी हैंडसम और तहजीब वाला इनसान है.
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पहुंच चुकी थी. साक्षी जैसे ही गेट पर पहुंची सामने कामिनी खड़ी नजर आई. दोनों की नजरें जैसे ही मिलीं होंठों पर मुसकान तैर गई. साक्षी को तो यों लगा जैसे जीवन में बाहर आ गई हो. कामिनी को देख कालियों की तरह उस का रोमरोम खिल उठा. कामिनी तो वैसे के वैसी थी, बल्कि उस का रंगरूप और निखर गया था. जींस और टौप पहने थी. उम्र पर तो जैसे ब्रेक ही लगा लिया था उस ने. वह आज भी कालेज बाला सी लग रही थी.
दिल्ली की सड़कों पर कामिनी की कार दौड़ रही थी, जिसे वह खुद ड्राइव कर रही थी. बराबर में साक्षी बैठी थी और पीछे वाली सीट पर साक्षी का पति सौरभ.
‘‘जीजू क्यों नहीं आए तेरे साथ? अकेली क्यों चली आई?’’ साक्षी ने कामिनी के कंधे पर हाथ मारते हुए पूछा.
‘‘अरे यार, यह दिल्ली है. यहां सब अपनेअपने हिस्से की लाइफ जीते हैं,’’ कामिनी ने आंखें तरेरते हुए जवाब दिया.
‘‘क्या जीजू से बनती नहीं तेरी?’’ साक्षी ने सवाल किया.
‘‘अरे, नहीं यार. ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, वैभव रात को देर से आते हैं. आने के बाद भी कंप्यूटर पर काम निबटाते हैं, तो सुबह जल्दी नहीं उठ पाते,’’ कामिनी ने कहा.
‘‘अच्छा… यह तो बड़ी दिक्कत है भई.’’
‘‘दिक्कत क्या है साक्षी? अब तो रूटीन लाइफ हो गई है,’’ कामिनी ने कहा.
दोनों की बातचीत में रेलवे स्टेशन और घर के बीच का रास्ता कब कट गया पता ही नहीं चला. कामिनी का घर, घर नहीं एक महल था. कई लग्जरी गाडि़यां खड़ी थीं. घर के बाहर गार्ड, माली अपने काम में लगे थे. जैसे ही गाड़ी रुकी, गार्ड ने बड़ा सा दरवाजा खोला. कामिनी कार को सीधा कोठी के अंदर ले गई. कार जैसे ही रुकी, 2 नौकर दौड़ कर पास आए. यह सब देख साक्षी को कामिनी से एक पल के लिए ईर्ष्या हुई कि क्या ठाट हैं यार इस के.
‘‘गाड़ी का सामान निकालो और गैस्ट हाउस में ले जाओ,’’ कामिनी ने नौकरों को आदेश दिया.
‘‘आओ साक्षी, जीजू प्लीज, आप भी आइए,’’ कामिनी ने कहा.
साक्षी और सौरभ देखते रह गए. उन्होंने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. सब कुछ व्यवस्थित नजर आया. सौरभ ने साक्षी को कुहनी मारी और इशारों में कहा कि देखा क्या ठाट हैं, उन्हें लगा वे किसी फिल्मी सैट पर आ गए हैं. अब तक इस तरह का बंगला, गाडि़यां फिल्मों में ही देखी थीं इन्होंने.
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‘‘पर कामिनी संयुक्त परिवारों में तो ये सब…’’
साक्षी की बात को बीच ही में काटते हुए कामिनी बोली, ‘‘हां साक्षी, मुझे पता है. पर संयुक्त परिवार में कुछ लोगों की मनमानियों से किसी का वजूद ही खतरे में पड़ जाए तो? क्या एक पत्नी को अपने पति के साथ जीने का हक नहीं मिलता? क्या एक पत्नी की सिर्फ इसलिए बली चढ़ा दी जाती है कि भाइयों को बुरा न लग जाए? उसे कुछ बोलने का हक नहीं? तुम जैसी भी हो अच्छी हो साक्षी. तुम्हें पता है तुम्हारे पति कितने बजे घर आएंगे. घर आने के बाद पता है एकसाथ सोएंगे, बातें करेंगे. और तुम्हें ये भी पता है कितने बजे औफिस जाएंगे. तुम्हें पता है पति की इनकम कितनी है. उतना तुम खर्च कर सकती हो. लेकिन मुझे कुछ नहीं पता. वैभव का न आने का टाइम है, न जाने का. आज आएंगे भी या नहीं, यह भी पता नहीं. कब खानापीना, सोना है कोई समय तय नहीं है साक्षी,’’ कामिनी ने कहा.
कामिनी ने साक्षी को अपनी लाइफ के हर पहलू की बातें बताईं.
‘‘चलो कामिनी अब सो जाओ, रात का 1 बज रहा है,’’ साक्षी ने कहा.
‘‘हां, साक्षी सोते हैं. तुम भी सफर के बाद आराम नहीं कर पाई,’’ कामिनी बोली.
‘‘मैं जरा सौरभ को संभाल कर आती हूं. अगर वे सोए नहीं होंगे, तो वहीं सो जाऊंगी.’’
‘‘ठीक है साक्षी, देख लेना,’’ कामिनी ने सोते हुए कहा.
साक्षी के मन में उथलपुथल चल रही थी कि आखिर कामिनी के प्रति वैभव की उदासीनता की वजह क्या है? इतनी खूबसूरत होते हुए भी कामिनी में उस की रुचि क्यों नहीं है? आज सुबह नाश्ते की टेबल पर वैभव ने जिस तरह से देखा, उस से तो लगता है उस के दिल में कुछ है. वैभव की नजरों में अजीब सा आकर्षण और निमंत्रण था. साक्षी सोचती हुई अपने पति सौरभ के कमरे में जा रही थी कि उसे एक कमरे में लाइट जलती दिखी.
‘इस वक्त कौन है इस रूम में?’ उस ने सोचा. फिर साक्षी ने जैसे ही कमरे में झांका तो देखा कि वैभव नाइट ड्रैस में एक अलमारीनुमा टेबल के आगे चेयर पर बैठा है.
‘‘जीजू आप? कब आए?’’ साक्षी ने चौंकते हुए पूछा और फिर कमरे में प्रवेश कर गई.
‘‘अरे, सालीजी… आइए न अंदर.’’ वैभव ने साक्षी को कमरे में प्रवेश करते देखा तो बोला.
‘‘आप कब आए? बताया क्यों नहीं? मैं और कामिनी कमरे में बातें कर रही थीं,’’ साक्षी ने चहकते हुए कहा.
‘‘अभी कुछ देर पहले ही आया था. आप दोनों बातों में व्यस्त थीं, तो मैं ने डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा,’’ वैभव बोला.
‘‘पर कामिनी तो सो चुकी है शायद,’’ साक्षी ने वैभव के साथ वाली चेयर पर बैठते हुए कहा.
साक्षी ने देखा वैभव शराब पी रहा था. उस के मिनी बार में कई विदेशी ब्रैंड सजे थे. उस की आंखों में नशे के डोरे साफ नजर आ रहे थे.
लेकिन साक्षी की रुचि वैभव से बातें करने में थी. अत: पूछा, ‘‘जीजू, आप शराब क्यों पीते हो?’’
‘‘कोई खुशी के लिए थोड़े पीता है साक्षी. इनसान के दिल में कोई न कोई ऐसा गम होता है, जिसे भुलाने के लिए जरूरी हो जाता है पीना,’’ वैभव ने भावुक होते हुए कहा. उस की आंखें भर आई थीं.
वैभव की डबडबाई आंखों को देख साक्षी भावुक हो गई. तुरंत उठ कर वैभव की आंखें पोंछते हुए बोली, ‘‘जीजू, प्लीज मत रोइए… मुझे बताइए क्या बात है?’’
साक्षी को नजदीक देख वैभव चेयर पर बैठेबैठे ही उस से लिपट गया.
उधर जब कामिनी सोच रही थी कि काफी देर हो चुकी है, लेकिन साक्षी नहीं आई. वह सो गई या आ रही है? इसी सोच में उसे नींद नहीं आ रही थी. वह अपने कमरे से बाहर निकली और साक्षी के कमरे की तरफ चल पड़ी. वैभव के बार वाले कमरे में लाइट जल रही थी और धीमेधीमे बातें करने की आवाजें आ रही थीं. वह चौंकी और सीधे उस कमरे में प्रवेश कर गई.
अंदर का दृश्य देख वह चौंकी. वैभव कुरसी पर बैठा था और साक्षी की कमर में हाथ डाले लिपटा था. वैभव की नजरें कमरे में प्रवेश कर रही कामिनी के रौद्ररूप पर पड़ी, तो वह साक्षी को छोड़ सीधा बैठ गया.
‘‘वैभव क्या कर रहे हो… शर्म नहीं आती तुम्हें मेरी सहेली के साथ भी ऐसा करते हुए?’’ कामिनी चिल्लाई.
अचानक कामिनी की आवाज सुन कर साक्षी चौंक पड़ी.
‘‘चिल्ला क्यों रही हो? इस में गलत क्या हो गया?’’ वैभव भी चिल्लाया.
‘‘एक यह रूप है वैभव का, देख ले साक्षी. रो धो कर ये नाटक करते हैं… इन्हें नई नई औरतें चाहिए… यही वजह है कि इन की रुचि मुझ में नहीं रही अब,’’ कामिनी ने साक्षी को झकझोरते हुए कहा.
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‘‘मुझे माफ कर दो कामिनी… अनजाने में…’’
इस से पहले कि साक्षी अपनी बात पूरी कर पाती कामिनी बीच में बोल पड़ी, ‘‘मुझे अफसोस यह है कि उन में से एक औरत तुम भी बनने जा रही थीं.’’
उधर शोरशराबा सुन अपने कमरे में जग रहा सौरभ बाहर आया. दूर एक कमरे में से आवाजें आ रही थीं तो सौरभ उस तरफ चल पड़ा.
कामिनी ने दूर से सौरभ को कमरे की तरफ आते देख लिया. एक पल को कांप गई वह कि अगर सौरभ को वैभव की हरकत के बारे में पता चल गया तो क्या होगा?
कामिनी का दिमाग तेजी से काम कर रहा था. वह साक्षी के साथ तो कम से कम ऐसा नहीं होने देगी.
‘‘क्या हुआ साक्षी… कामिनी जी?’’ सौरभ ने कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा, तो साक्षी में तो जैसे काटो तो खून नहीं. वह शांत खड़ी रही.
तभी कामिनी ने सामान्य होते हुए कहा, ‘‘अरे जीजू कुछ नहीं. वैभव अब आए थे और बिना खाना खाए सो रहे थे, तो इन्हें डांट रही थी.’’
‘‘ओह… तो यह बात है… मुझे लगा पता नहीं क्या हो गया है,’’ सौरभ ने कहा.
अचानक कामिनी का बदला रूप देख कर साक्षी की जान में जान आ गई. उस ने जरा भी नहीं सोचा कि यों शराब पीते अकेले पुरुष के कमरे में नहीं जाना चाहिए था. नशे की हालत में कुछ भी हो सकता था. यह बात उस ने सोची क्यों नहीं? क्यों वह वैभव के लिए इतनी लूजर हो गई?
‘‘साक्षी तुम जीजू के साथ कमरे में जा कर सो जाओ, काफी रात हो चुकी है,’’ कामिनी ने कहा तो साक्षी में हिम्मत आई कि वह वहां से जा सके. साक्षी और सौरभ अपने कमरे में चले गए.
कामिनी अपने बैडरूम में चली गई. बैडरूम में जाते ही कामिनी की रुलाई फूट गई. उस ने अपना दर्द भुलाने के लिए साक्षी को कुछ दिन दिल्ली बुलाया था, लेकिन उसी के साथ क्या करने चला था वैभव.
अगले दिन साक्षी और सौरभ अपने शहर लौट गए. साक्षी एक बुरा अनुभव ले कर जा रही थी. कामिनी का दर्द उस की समझ में आ रहा था. साक्षी को अपनी पैसे वाली सहेली और खुद का वजूद समझ आ चुका था.
साक्षी और सौरभ ने बड़े नर्म गद्दे वाले डबल बैड पर कुछ देर आराम किया. फिर कसबे में खुद के बैडरूम जितने चमचमाते बाथरूम में फुहारे के नीचे नहाए तो लगा जैसे तनमन खिल गया हो. खुशबू से मन प्रसन्न हो गया. कुछ देर बाद एक नौकर ने दरवाजा नौक कर के बताया कि मेम साहब ब्रेकफास्ट के लिए आप का इंतजार कर रही हैं.
सुबह के 11 बज रहे थे. ब्रेकफास्ट टेबल पर कामिनी और वैभव बैठे थे कि साक्षी और सौरभ ने वहां प्रवेश किया. साक्षी ने एक नजर टेबल पर डाली. अनेक तरह का नाश्ता लगा हुआ था.
‘‘आओ साक्षी, जीजू. ये मेरे पति वैभव,’’ कामिनी ने खड़े होते हुए परिचय करवाया. वैभव की नजरें साक्षी की नजरों से टकराईं तो एक पल को साक्षी की सलोनी सी सूरत को देखता रह गया. कामिनी की खूबसूरती के आगे वैभव को साक्षी में बहुत कुछ नजर आ गया.
सौरभ ने देखा साक्षी की नजरें वैभव पर टिकी हुई हैं. सौरभ बेचैन हो उठा. उस ने वैभव से हैलो कर के हाथ मिलाया.
‘‘और वैभव ये साक्षी और सौरभ जीजू,’’ कामिनी ने उन दोनों का परिचय भी कराया.
‘‘तुम्हारा क्या प्रोग्राम रहेगा कामिनी?’’ वैभव ने नाश्ता करते हुए पूछा.
‘‘भई मेरा प्रोग्राम तो अब साक्षी और जीजू ही तय करेंगे. जब तक दिल्ली में हैं इन के ही साथ रहूंगी,’’ कामिनी ने साक्षी के हाथ में अपना हाथ रखते हुए कहा.
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‘‘ओके, तुम इन्हें खूब घुमाओफिराओ. मुझे तो अभी निकलना है. रात को घर आ गया तो ठीक वरना नाइट स्टे जहां भी रहूंगा, कर लूंगा,’’ वैभव ने कहा.
‘‘प्लीज वैभव, 1-2 दिन तो टाइम पर…’’ कामिनी ने कहना चाहा.
‘‘समझा करो भई, मेरी खास डील इस वीक में ही होनी है तो थोड़ा बिजी रहूंगा,’’ वैभव ने थोड़ा कड़क आवाज में कामिनी की बात काटते हुए कहा.
‘‘ओके,’’ कामिनी ने कहा. वह साक्षी से नजरें नहीं मिला पाई. आंखें नम थीं उस की.
साक्षी ने कुछकुछ भांप लिया कि कामिनी और वैभव का रिश्ता ठीक नहीं है. वह बोली कुछ नहीं. बस नजरें बचा कर वैभव को देख रही थी. वह भी लगातार बातोंबातों में साक्षी को देखे जा रहा था.
कामिनी ने साक्षी और सौरभ को दिन भर घुमाया. लालकिला, इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, लोधी गार्डन. सिर्फ घुमाया ही नहीं दोनों की सुखसुविधा का भी खयाल रखा. खानापीना, खूब सारी बातें. शाम को सब घर लौटे.
डिनर के बाद कामिनी ने साक्षी से कहा, ‘‘आज की रात तो जीजू को छोड़ देगी न अकेला? मेरे साथ सो जाओ. खबू बातें करेंगी.’’
‘‘अरे, यार तू रोज मेरे साथ सोए तो आज क्या, हमेशा के लिए छोड़ दूं तेरे जीजू को,’’ साक्षी ने मजाक में हंसते हुए कहा.
‘‘नहीं यार, कामिनी इतना जुल्म नहीं करेगी जीजू पर. बस तुम जब तक यहां हो तब तक सो लो,’’ कामिनी ने कहा.
कामिनी ने साक्षी से उस की गृहस्थी का हालचाल पूछा, ‘‘पति के साथ कैसी गुजर रही है? क्या दिनचर्या रहती है? कोई दिक्कत तो नहीं?’’
‘‘हमारा क्या है कामिनी. छोटी सी दुनिया है. मध्यवर्गीय लोग हैं. पति सुबह 9 बजे घर से औफिस जाते हैं. शाम को 6 बजे घर आ जाते हैं. कभीकभी लंच करने घर ही आ जाते हैं, क्योंकि औफिस पास ही है. रात को 8 बजे डिनर कर 10 बजे तक सो जाते हैं. सुबह 6 बजे उठ कर वाक पर चले जाते हैं हम दोनों. बस इस तरह से टाइम पास हो रहा है,’’ साक्षी ने संक्षेप में अपनी दिनचर्या बताई.
‘‘कोई दिक्कत तो नहीं न साक्षी? जीजू से ठीक पटती है न?’’ कामिनी ने पूछा.
‘‘हांहां, कोई दिक्कत नहीं है. मेरी पूरी इज्जत करते हैं. घर के काम में भी हाथ बंटा देते हैं. सब ठीक चल रहा है. पर तेरे जैसे ठाटबाट तो नहीं हैं यार हमारे,’’ साक्षी ने नि:श्वास छोड़ते हुए कहा.
‘‘अच्छा है साक्षी, मेरे जैसे नहीं हैं. जो तेरे पास है वह मेरे से भी अच्छा है,’’ कामिनी ने कहा.
‘‘क्यों मजाक कर रही हो यार? कहां तुम ने खुद को इतना मैंटेन कर के रखा है, कहां हम. तेरे पास तो बहुत कुछ है कामिनी,’’ साक्षी ने कहा तो कामिनी की आंखें डबडबा आईं. झरझर आंसू बह निकले.
हतप्रभ रह गई साक्षी, ‘‘क्या हुआ कामिनी? रो क्यों रही हो?’’ उस ने पूछा.
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‘‘कुछ नहीं साक्षी… बस यों ही कसबे वाली लाइफ याद आ गई,’’ कामिनी ने रुंधे गले से कहा.
‘‘सच बताओ, क्या बात है कामिनी? तुम तो बहुत इमोशनल हो गई हो?’’ साक्षी ने कामिनी के आंसू पोंछते हुए कहा.
और फिर कामिनी बोलती चली गई…
‘‘साक्षी, तुम यह जो ऐशोआराम देख रही हो न, यह सब झूठ है… यह सब कहने को है. इस में मानसिक शांति नहीं है. इस में रहने के लिए कितना बनावटी जीवन जीना पड़ता है, यह तुम्हें नहीं मालूम. सिर्फ धनदौलत को ऐशोआराम नहीं कहते. यह सिर्फ ऊपरी चमकदमक है. इस में न सुख है न चैन. पति रात को कब आते हैं, यह मुझे नहीं पता होता. आ जाएं तो कब मेरे साथ सोते हैं, यह भी पता नहीं होता. कईकई दिनों तक अच्छे से हमारी बात भी नहीं हो पाती. कहने को तो तुम कह सकती हो कि मैं मौडर्न हूं, जवान हूं अभी भी, लेकिन किस के लिए? मेरी रातें तनहाइयों में गुजरती हैं और दिन किट्टी पार्टियों में फ्रैंड्स के साथ बीतते हैं. मुझे यों लगता है कुछ भी नहीं है मेरा अपना. मैं अपनी मरजी से जी नहीं सकती, खा नहीं सकती, कपड़े नहीं पहन सकती… साक्षी मेरा मानना है कि औरत चाहे कितनी भी पढ़ीलिखी हो, किसी भी पद पर हो, बिजनैस करती हो, लेकिन जैसे ही वह घर में घुसती है वह पति के शिकंजे में होती है. औरत कम खा ले, कम पहन ले. शारीरिक रूप से विकलांग पति को भी शायद सहन कर ले, लेकिन जो पुरुष मानसिक रूप से विकलांग हो, जिस की संकीर्ण सोच हो उस के साथ कैसे जीए, यह सब से बड़ी दिक्कत होती है,’’ कामिनी बोले जा रही थी.
साक्षी तो आश्चर्यचकित थी, पर कामिनी अपनी पीड़ा बताए जा रही थी…
‘‘साक्षी, जिस पुरुष का अपना ही वजूद न हो उस की औरत का क्या वजूद होगा? यह मुझ से ज्यादा कोई नहीं जान सकता. वैभव 3 भाइयों में सब से बड़े हैं. लेकिन कामकाज दोनों छोटे भाइयों के हाथ में है. वे जो फैसला करते हैं, जो आदेश देते हैं वैभव करते हैं. उन के आदेश के आगे न मेरा वजूद है न मेरे बच्चों का. छोटे भाई जो काम कहें, वे वैभव करते हैं. जहां भेजते हैं, चले जाते हैं. वे अपने भाइयों को कुछ नहीं कह पाते. वे उन की नजरों में अच्छे बने रहने के लिए हमें झोंक देते हैं. घर में अगर 100 भी चाहिए हों तो भाइयों से मांगने पड़ते हैं,’’ कामिनी ने कहा.
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