सही पकड़े हैं

सही पकड़े हैं: भाग 3- कामवाली रत्ना पर क्यों सुशीला की आंखें लगी थीं

रत्ना उन की हालत देख कर हंसने लगी, ‘‘ठीक है, नहीं कहूंगी बाबूजी, पर एक शर्त है, अम्माजी को तो आप समझाओ कैसे भी कर के, हर वक्त वे मेरे पीछे पड़ी रहती हैं.’’ ‘‘तू चिंता मत कर उस का बंदोबस्त हो जाएगा.’’

उन के दिमाग में शरारती योजना घूम ही रही थी पर अब बच्चों को नहीं शामिल कर सकते, बच्चे तो सब को ही बता देंगे. फिर मैं सुशीला बहन को ब्लैकमेल कैसे कर पाऊंगा कि रत्ना को इन से बचा सकूं और रत्ना से अपने को. वरना तरुण, अदिति, तारा सब तक मेरी बात पहुंच गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा. सिर्फ परहेजी खाना, उफ्फ… क्यों बढि़याबढि़या मिठाईरबड़ी न खाऊं, मरे हुए सा सौ साल जियूं इसलिए… तो जीने का फायदा क्या?’ मनपसंद चीजों का दिमाग में खुला इंसायक्लोपीडिया देशी घी के बेसन के लड्डू, चमचम, रसमलाई… उन्हें बेचैन किए जा रहा था.

‘कुछ भी हो, सुशीला बहन को मुझे जल्दी, अकेले ही रंगेहाथ पकड़ना होगा. वरना रत्ना, बहनजी से तंग आ कर सब को मेरा सच बता देगी और मैं सूक्ष्म फलाहारी, परहेजी बाबा बन कर कहीं का नहीं रहूंगा.’ दिन में खाने के बाद एक घंटे बच्चों का सोने का टाइम और रात के खाने के बाद 9 बजे के बाद का समय, जब सुशीला बहन सब से नजरें बचा, अपना मिर्चखटाईर् का शौक पूरा करती होंगी क्योंकि नाश्ता भले ही साथ कर लेती हैं पर आदत का बहाना बता कर रात के खाने का अपना अलग ही टाइम बना रखा है, तभी पकड़ता हूं. अपने को बचाने का यही एक चारा है,’ तेजप्रकाश दिमाग की धार तेज किए जा रहे थे. आखिरकार दूसरे दिन ही सुशीला जैसे ही अपना खाना परोस कर कमरे में ले गईं, तेजप्रकाश दबेपांव उन के पीछे हो लिए. सुशीला ने पास पड़े स्टूल पर अपना खाना, पानी रखा, दरवाजा भेड़ा और परदा खींच कर तसल्ली से बैग का लौक खोल कर पसंदीदा लालमिर्च का अचार बड़े प्रेम से निकाला और साथ में चटपटी पकी इमली भी. प्लेट में नमक के ऊपर सजी बड़ीबड़ी 2 हरीमिर्चें देख परदे के पीछे खड़े तेजप्रकाश के मुंह से सीसी निकल रही थी, उस पर से यह और कि कैसे खा पाती हैं ये सब.’

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सुशीला के खाना शुरू करते ही तेजप्रकाश सामने आ गए, ‘‘सही पकड़े हैं बहनजी, इतना सारा मिर्चखटाई. अदिति सही कहती है इतना मना है आप को पर चुपकेचुपके… बहुत गलत बात है.’’ वे उन का तकियाकलाम बोल कर उन्हीं के अंदाज में आंखें नचा रहे थे. सुशीला उन्हें सामने पा घबरा कर कातर हो उठीं. लिहाजन, तेजप्रकाश उन के कमरे में कभी वैसे आते न थे.

‘‘अअआप भाईसाहब, यहां, कैसे, बब…बैठिए. प्लीज, अदिति को कुछ मत कहिएगा,’’ वे खिसियाई सी बोलीं. ‘‘सही तो नहीं, पर इस उम्र में मन का खाएगा नहीं, तो आदमी करे क्या?’’

इस बात पर सुशीला थोड़ी हैरान हुईं, फिर सहज हो कर मुसकराती हुई बोलीं, ‘‘आप भी ऐसा ही मानते हैं. मैं तो घबरा ही गई थी. आप प्लीज, बताना नहीं किसी को.’’ ‘‘ठीक है, नहीं बोलूंगा, पर एक शर्त है. आप भी मेरे बारे में नहीं कहेंगी किसी से.’’

‘‘पर क्या?’’ वे सोच में पड़ गईं, ऐसा क्या है जो… ‘‘दरअसल, वह जो आप मलाई, मिठाई, चाय, चीनी सब के गायब होने के पीछे रत्ना को कारण समझती हैं, वह रत्ना नहीं, बल्कि मैं हूं.’’

‘‘क्या?’’ सुशीला का मुंह खुला रह गया. फिर वे मुंह दबा कर हंसने लगीं. ‘‘तारा, तरुण, अदिति सब मेरी जान खा जाएंगे, प्लीज.’’

‘‘फिर ठीक.’’ वे चटखारे ले कर अपना खाना खाने लगीं. ‘‘आप खाओगे?’’

‘‘नहीं बहनजी, आप मजे लो, मैं रसोई में जा कर अपनी तलब पूरी करता हूं, खौला कर स्ट्रौंग चाय बनाता हूं.’’ ‘‘इस समय?’’

‘‘आप पियोगी, बहुत बढि़या पकाने वाली मसालेदार मीठी कड़क?’’ उन के चेहरे पर राहत की मुसकान थी. ‘‘अरे नहीं, आप ही मजे लो,’’ कहती हुई उन्होंने लालमिर्च, अचार मुंह में भर लिया और हंसने लगीं.

‘‘यह भी खूब रही. और हां, बच्चों को जो चोर पकड़ने के लिए लगाया है, मना कर देना.’’ मुसकराते हुए तेजप्रकाश राहत से रसोई की ओर बढ़ गए. सोचते जा रहे थे कि ‘मैं भी कल बच्चों को कोई कहानी बना कर बहनजी को पकड़ने से मना कर दूंगा.’

इधर आंखें बंद किए बंटू और मिंकू दादू की स्टोरी से आज सो नहीं पाए थे. दादू उन्हें सोया जान कर अपने रूम में चले गए. काफी देर तक यों ही पड़े रहे. खट से हलकी सी आवाज क्या हुई, आंखें खोल कर दोनों ने एकदूसरे को कोहनी मारी. ‘‘उठ न, नींद नहीं आ रही. कोई है, लगता है.’’

‘‘हां, दादू की कहानी आज बहुत शौर्ट थी.’’ ‘‘दादू तो सोने गए, अब क्या करें?’’

‘‘सब सो गए हैं लगता है, रसोई में छोटी लाइट जल रही है. चल चोर को पकड़ते हैं.’’ दोनों पलंग से उतर कर अपनीअपनी टौयगन थाम लीं और सधे कदमों से कहतेफुसफुसाते हुए नन्हे जासूस मिशन पर चल पड़े. ‘‘तू इधर से जा बंटू, मैं उधर से, अकेला डरेगा तो नहीं?’’

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‘‘बिलकुल भी नहीं.’’ ‘‘अच्छा, तो यह मम्मी का स्टौल पकड़, अगर चोरी करते कोई दिखे, पीठ पर गन लगाना और झट से स्टौल में फंसा कर चिल्लाना. सही पकड़े हैं नानी के जैसे. खूब मजा आएगा.’’

‘‘रात के एक बज रहे थे. ताली मार कर दोनों अलगअलग दिशाओं में चल पड़े.

तेजप्रकाश और सुशीला स्वाद व खुशबू का पूरा मजा ले भी न पाए कि बच्चों ने अलगअलग पर लगभग एकसाथ उन्हें धर पकड़ा और खुशी से चिल्लाए, ‘‘सही पकड़े हैं दादू…, पापा…, मम्मी…सही पकड़े हैं नानी…, मम्मी… पापा…, सब जल्दी आओ.’’

घबराए से तेजप्रकाश किचन में मलाई की चोरी बयान करती अपनी मूंछों के साथ खौलती मसालेदार कड़क चाय को देख रहे थे तो कभी सामने गुस्से में खड़े तरुण को और सुशीला अपने खुले हुए बैग से झांकती लालमिर्च, अचार और मसालेदार इमली की खुली शीशियों को, तो कभी आगबबूला हुई नजरों से उन्हें देखती अदिति को देख कर नजरें चुरा रही थीं. ‘‘अदिति, देखो अपने लाड़ले पापाजी क्या कर रहे हैं, बड़ा विश्वास है न तुम्हें इन पर?’’

‘‘शांत हो जाओ तरु, आगे से ऐसा नहीं होगा.’’ ‘‘और तुम अपनी चहेती मम्मीजी को देखो, डाक्टर ने सख्त मना किया है पर मानना ही नहीं, बच्ची बनी हुई हैं, मुझ से छिपा कर रखा था, छिपा कर, देखो ये…’’ वह एक हाथ में शीशी दूसरे से मम्मीजी को थामे रसोई में आ गई.

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‘‘अदिति, सुन तो, अब ऐसा नहीं होगा.’’ तेजप्रकाश और सुशीला के हाथ बरबस अपनेअपने कानों तक चले गए, ‘‘देखो, इस बार हम सही पकड़े हैं… पर अपनेअपने कान…’’ सुशीला ने गोलगोल आंखें नचा कर कुछ यों कहा कि तरुण, अदिति की हंसी छूट गई.

‘‘कोई हमें भी तो बताए क्या हुआ,’’ दादी तारा की आवाज सुन बंटू, मिंकू भागे कि उन्हें कौन पहले बताएगा कि आज वे कैसे दादू, नानी की चोरी सही पकड़े हैं.

सही पकड़े हैं: भाग 2- कामवाली रत्ना पर क्यों सुशीला की आंखें लगी थीं

सुशीला की तेज नजरें सप्ताह बाद ही तेजी से खत्म हो रहे सामनों का लेखाजोखा किए जा रही थीं. खास चीनी, मक्खनमलाई, देशी घी, चाय, कौफी, मिठाई, बिस्कुट्स, नमकीन की खपत पर उस का शक 15 दिनों के भीतर यकीन में बदलने लगा.

एक दिन रंगेहाथ पकड़ेंगे रत्ना महारानी को. अदिति तो उस के खिलाफ सुनने वाली नहीं, तरुण को झमेले में पड़ना नहीं, भाभीजी को तो धर्मकर्म से फुरसत नहीं और भाईसाहब के तो कहने ही क्या. वे कहते हैं, ‘रत्ना के सिवा कौन ऐसा करेगा, वह काम समझ चुकी है, उस के बिना घर कैसे चलेगा, इसलिए उसे बरदाश्त तो करना ही होगा, कोई चारा नहीं. नजरअंदाज करें, बस.’ यह भी कोई बात हुई भला? बच्चों को पकड़ती हूं अपने साथ इस चोर को धरपकड़ने के मिशन में. अगले हफ्ते से ही बच्चों की गरमी की छुट्टियां शुरू होने वाली हैं. वे चोरसिपाही के खेल में खुशीखुशी साथ देंगे. तब तक हम अकेले ही कोशिश करते हैं, सुशीला ने दिमाग दौड़ाया.

रत्ना दिन में 3 बार काम करने आती थी. सुबह सफाई करती, बरतन मांजती और फिर नाश्ता बनाती. फिर 12 बजे आ कर लंच बनाती. और फिर शाम को आ कर बरतन साफ करती. शाम का चायनाश्ता, डिनर बना जाती. रत्ना के आने से पहले सुशीला तैयार हो जाती और उस के आते ही दमसाधे उस पर निगाह रखने में जुट जाती. हूं, सही पकड़े हैं, जाते समय तो बड़ा पल्ला झाड़ कर दिखा जाती है कि देख लो, जा रहे हैं, कुछ भी नहीं ले जा रहे, पर असल में वह अपना डब्बाथैला बाहर ऊपर जंगले में छिपा जाती है. काम करते समय मौका मिलते ही इधर से उधर कुछ उसी में सरका जाती है. सुशीला ने जाते वक्त उसे थैलाडब्बा जंगले से उठाते देख लिया था. कल चैक करेंगे, थैले में क्या लाती है और क्या ले जाती है,’ वह स्फुट स्वरों में बुदबुदा रही थी.

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दूसरे दिन रत्ना जैसे ही आई, सुशीला मौका पाते ही बाहर हो ली. जंगले पर हाथ डाला और सामान उतार कर चैक करने लगी. ‘यह तो पहले ही इतना भरा है. दूध, कुछ आलूबैगन, 2-4 केले, आटा, थोड़ी चीनी उस ने फटाफट सामान का थैला फिर से ऊपर रख दिया और अंदर हो ली. पिछले घर से लाई होगी, आज ले जाए तो सही,’ सुशीला सोच रही थीं. रत्ना झाड़ू ले कर बाहर निकल रही थी, उस से टकरातेटकराते बची.

‘‘क्या है, थोड़ा देख कर चला कर, कोई घर का बाहर भी आ सकता है,’’ कह कर सुशीला अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराई, जैसे अब तो जल्द ही उस की करनी पकड़ी जाने वाली है. ‘‘जी अम्माजी,’’ वह अचकचा गई, उस अर्थपूर्ण मुसकराहट का अर्थ न समझते हुए वह मन ही मन बुदबुदा उठी, ‘अजीब ही हैं अम्माजी.’

तेजप्रकाश आधा कटोरा मलाई खा कर प्रसन्न थे कि चलो, अच्छा है कि बहनजी का रत्ना पर शक यों ही बना रहे. जब सब सो रहे होते, वे अपनी जिह्वा और उदर वर्जित मनपसंद चीजों से तृप्त कर लिया करते. हालांकि, सुशीला की जासूसी से उन के इस क्रियाकलाप में थोड़ी खलल पैदा हो रही थी.

‘गनीमत यही हुई कि मैं ने सुशीला बहनजी और बच्चों की प्लानिंग सुन ली,’ तेजप्रकाश सतर्क हो मन ही मन मुसकरा रहे थे. ‘बच्चों की छुट्टियां क्या शुरू हुईं, जासूसी और तगड़ी हो गई. मक्खनमलाई, मीठा खाना दुश्वार हो गया. अभी तक तो एक ही से उन्हें सावधान रहना था, अब तीनतीन से,’ तेजप्रकाश के दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे. सोचा, क्यों न बच्चों को अपनी ओर कर लिया जाए. और जो सब से छिपा कर सुशीला बहनजी अपने बैग से लालमिर्च का अचार और हरीमिर्च, नमक, खटाई अलग से खाती हैं, उस तरफ लगा देता हूं. अभी तक तो मैं ने नजरअंदाज किया था पर ये तो रत्नारत्ना करतेकरते अब मुझ तक ही न पहुंच जाएं, इसलिए जरूरी है कि मैं बच्चा पार्टी को इन की ओर ही मोड़ दूं. यह ठीक है. यह सब सोचते हुए तेजप्रकाश के चेहरे पर मुसकान फैल गई. वे शरारती योजना बुनने में लग गए.

‘‘बंटू, मिंकू इधर आओ,’’ तेज प्रकाश ने उन्हें धीरे से बुलाया. सुशीला कमरे में बैठी थीं. तारा के पैरों की मालिश वाली मालिश कर रही थी. तरुण, अदिति और रत्ना जा चुके थे. ‘‘मामा वाली चौकलेट खानी है?’’ बच्चों ने उतावले हो कर हां में सिर हिलाया.

‘‘यह जो नानी का बैग देख रहे हो, जिस में नंबर वाला लौक पड़ा है. इस में से नानी रोज निकाल कर कुछकुछ खाती रहती हैं, मुझे तो लगता है बहुत सारी इंपौर्टेड चौकलेट अभी भी हैं, जो आते ही इन्होंने तुम्हें दी थीं. तुम्हारे मामा ने तुम लोगों के लिए दी थीं इन्हें. पहले खाते हुए पकड़ लेना, फिर मांगना.’’ वे जानते थे कि बहनजी को स्वयं कहना कतई श्रेयस्कर नहीं होगा, अतएव खुद नहीं कहा. ‘‘सही में दादू, पर उन्होंने तो कहा था खत्म हो गई हैं,’’ दोनों एकसाथ बोले.

‘‘वही तो पकड़ना है. अब से जरा आतेजाते नजर रखना.’’ ‘‘ओए मिंकू, मजा आएगा. अब तो दोदो मिशन हो गए. अपनीअपनी टौयगन निकाल लेते हैं, चल…’’ दोनों उछलतेकूदते भाग जाते हैं. तेजप्रकाश मुसकराने लगे.

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सुबह से दोनों बच्चों की धमाचौकड़ी होने लगती. दोनों छिपछिप कर जासूस बने फिरते. सुशीला अलग छानबीन में हैरानपरेशान थीं. आखिर मक्खनमलाई डब्बे से, कनस्तर से चीनी, मिठाई फ्रिज से, सब कैसे गायब हुए जा रहे हैं. रत्ना है बड़ी चालाक चोरनी.

रत्ना पर बेमतलब शक किए जाने से, उस की खुंदस बढ़ती ही जा रही थी. वह चिढ़ीचिढ़ी सी रहती. लगता, बस, किसी दिन ही फट पड़ेगी कि काम छोड़ कर जा रही है. कई बार अम्माजी डब्बे खोलखोल कर दिखा चुकी हैं कि ताजी निकाली सुबह की कटोराभर मलाई आधी से ज्यादा साफ, मक्खन पिछले हफ्ते आया था, कहां गया? परसों ही 2 पैकेट मिठाई के रखे थे, कहां गए? महीनेभर की चीनी 15 दिनों में ही खत्म. कितनी जरा सी बची है? मैं तो नहीं खाती, ले जाती नहीं, पर सही में ये चीजें जाती कहां हैं? वह भी सोचने लगी. कैसे पकड़ूं असली चोर, और रोजरोज के शक से जान छूटे. वह भी संदिग्ध नजरों से हर सदस्य को टटोलने लगी.

उस दिन रत्ना घर की चाबी प्लेटफौर्म पर छोड़ आई, आधे रास्ते जा कर लौटी तो तेजप्रकाश को फ्रिज में मुंह डाले पाया. वे मजे से एक, फिर दो, फिर तीन गपागप मिठाइयां उड़ाए जा रहे थे. उस का मुंह खुला रह गया. वह एक ओट में छिप कर देखने लगी. जब वह मिठाइयों से तृप्त हुए तो मलाई के कटोरे को जल्दीजल्दी आधा साफ कर, बाकी पहले की इकट्ठी मलाई के डब्बे में उलट कर अगलबगल देखने लगे. मूंछों पर लगी मलाई को देख कर रत्ना को हंसी आने लगी. जिसे एक झटके में उन्होंने हाथों से साफ करना चाहा.

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‘‘सही पकड़े हैं…बाबूजी आप हैं और अम्माजी तो हमें…’’ वह हैरान हो कर मुसकराई. तेजप्रकाश दयनीय स्थिति में हो गए, चोरी पकड़ी गई. याचना करने लगे थे. ‘‘सुन, बताना मत री किसी को. सब की डांट मिलेगी सो अलग, चैन से कभी खाने को नहीं मिलेगा. यदि बीमार होऊं तो परहेज भी कर लूं, पहले से क्या, इतनी सी बात किसी के पल्ले नहीं पड़ती,’’ उन्होंने बड़ी आजिजी से कहा.

आगे पढ़ें- रत्ना उन की हालत देख कर…

सही पकड़े हैं: भाग 1- कामवाली रत्ना पर क्यों सुशीला की आंखें लगी थीं

‘‘अदिति, हम कह रहे थे न, तेरी मेड ठीक नहीं लगती, थोड़ी नजर रखा कर उस पर, मगर तू है एकदम बेपरवाह. किसी दिन हाथ की बड़ी सफाई दिखा दी उस ने तो बड़ा पछताएगी तू. हम सही पकड़े हैं.’’ 4 दिनों से बेटी के घर आईं सुशीला उसे दस बार सचेत कर चुकी थीं. ‘‘अरे मां, रिलैक्स, आप फिर शुरू हो गईं, सही पकड़े हैं. कुछ नहीं कोई ले जाता, ले भी जाएगा तो ऐसा क्या है, खानेपीने का सामान ही तो है. हर वक्त उस पर नजर रखना अपना टाइम बरबाद करना है. आप भी न, अच्छा, मैं जाती हूं. 1 घंटा लग जाएगा मुझे. प्लीज, रत्ना (मेड) को अपना काम करने देना. वह चाय बना लाए तो मम्मीजीपापाजी के साथ बैठ कर आराम से पीना. आज छुट्टी है, बंटू, मिंकू और आप के दामाद तरुण की भी. वे देर तक सोते हैं, जगाना नहीं.’’

अदिति चली गई तो सुशीला ने गोलगोल आंखें नचाईं, ‘हमें क्या करना है जैसी भी आदत डालो, हम तो कुछ भी सब के भले के लिए ही कहते हैं.’ मेड थोड़ी देर बाद चाय टेबल पर रख गई. सुशीला भी अदिति के सासससुर तारा और तेजप्रकाश संग बैठ चाय की चुस्कियां लेने लगीं, पर शंकित आंखें मेड की गतिविधियों पर ही चिपकी थीं.

‘‘आजकल लड़कियां काम के लिए बाहर क्या जाने लगीं, घर के नौकरनौकरानी कब, क्या कर डालें, कुछ कहा नहीं जा सकता. हमें तो जरा भी विश्वास नहीं होता इन पर. निगाह न रखो तो चालू काम कर के चलते बनते हैं,’’ सुशीला बोल पड़ीं. ‘‘ठीक कह रही हैं समधनजी. लेकिन मैं पैरों से मजबूर हूं. क्या करूं, पीछेपीछे लग कर काम नहीं करा पाती और इन्हें तो अपने अखबार पढ़नेसुनने से ही फुरसत नहीं,’’ तारा ने पेपर में आंखें गड़ाए तेजप्रकाश की ओर मुसकराते हुए इशारा किया. तेजप्रकाश ने पेपर और चश्मा हटा कर एक ओर रख दिया और सुशीला की ओर रखे बिस्कुट अपनी चाय में डुबोडुबो कर खाने लगे.

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‘‘आप तो बस भाईसाहब. भाभीजी तो पांव से परेशान हैं पर आप को तो देखना चाहिए. मगर आप तो बैठे रहते हो जैसे कोई घर का बंदा अंदर काम कर रहा हो. हम आप को एकदम सही पकड़े हैं,’’ सुशीला कुछ उलाहना के अंदाज में बोलीं. उन की आंखें चकरपकर चारों ओर रत्ना को आतेजाते देख रही थीं. रत्ना कपप्लेट ले जा चुकी थी. ‘काफी देर हो चुकी, पता नहीं क्या कर रही होगी,’ उन्हें और बैठना बरदाश्त नहीं हुआ. वे उठ खड़ी हुईं और उसे किचन में पोंछा लगाते देख यहांवहां दिखादिखा कर साफ करवाने लगीं. ‘‘ढंग से किया कर न, कोई देखता नहीं तो क्या मतलब है, पैसे तो पूरे ही लेती हो न?’’ उन का बारबार इस तरह से बोलना रत्ना को कुछ अच्छा नहीं लगता.

‘‘और कोई तो ऐसे नहीं बोलता इस घर में, अम्माजी आप तो…’’ रत्ना हाथ जोड़ कर माथे से लगा लिया करती. कभी अकेले में अन्य सदस्यों से शिकायत भी करती. 10 बज गए, मिंकी और बंटू का दूध और सब का नाश्ता बना मेज पर रख कर रत्ना चली गई तो सुशीला ढक्कन खोलखोल कर सब चैक करने लगीं.

‘‘अरे, दूध तो बिलकुल छान कर रख दिया पगलेट ने, जरा भी मलाई नहीं डाली बच्चों के लिए. ऐसे भला बढ़ेंगे बच्चे.’’ वे दोनों गिलास उठा कर किचन में चली आईं. दूध के भगौने में तो बिलकुल भी मलाई नहीं थी. ‘जरूर अपने बच्चों के लिए चुरा कर ले जाती होगी, कोई देखने वाला भी तो नहीं, बच्चों का क्या, वैसे ही पी जाते होंगे,’ सुशीला मन ही मन बोलीं. तभी प्लेटफौर्म पर वाटर डिस्पोजर की आड़ में से झांक रहे मलाई के कटोरे पर उन की नजर पड़ी. वे भुनभुनाईं, ‘सही पकड़े हैं, महारानीजी हड़बड़ी में ले जाना भूल गई.’ उन्होंने गोलगोल आंखें घुमाईं और एक चम्मच मलाई मुंह में डाल कर बाकी मलाई दूध के गिलासों में बांटने जा रही थीं कि तेजप्रकाश आ पहुंचे, कटोरा हाथ में लेते हुए बोले, ‘‘अरे, क्या करने जा रही थीं बहनजी. बच्चे तो मलाई डला दूध मुंह भी नहीं लगाएंगे, थूथू करते रहेंगे. मौडर्न बच्चे हैं.’’

‘‘तभी तो रत्ना की ऐश है. मलाई का कटोरा छिपा कर अपने घर ले जा रही थी, पर भूल गई. हम सही पकड़े हैं.’’ ‘‘अरे, नहीं बहनजी, मैं ने ही उस से कह रखा है, हफ्तेभर बाद तारा सारी इकट्ठी मलाई का घी बनाती है. घर के घी का स्वाद ही और है. आप तारा के पास बैठिए, मैं इसे डब्बे में डाल कर आता हूं.’’

‘‘यह भी ठीक है,’’ वे बालकनी में तारा के पास आ बैठीं. ‘‘हम से तो यह खटराग कभी न हुआ.’’

‘‘कैसा खटराग?’’ ‘‘यह देशी घी बनाने का खटराग, भाईसाहब बता रहे हैं, हफ्ते में एक बार आप बना लेती हैं.’’

‘‘हां, इस बार ज्यादा दिन हो गए. दूध वाला अब सही दूध नहीं ला रहा, इतनी मलाई ही नहीं आती.’’ ‘‘अरे नहीं, आज भी मलाई से तो पूरा कटोरा भरा हुआ था. हमें तो लगता है आप की रत्ना ही पार कर देती होगी, कल से चौकसी रखते हैं, रंगेहाथ पकड़ेंगे.’’

बंटू, मिंकी और तरुण भी ब्रश कर के आ गए थे. ‘गुडमौर्निंग दादू, दादी, नानी, सही पकड़े हैं,’ कहते हुए बंटू, मिंकी उन से लिपट कर खिलखिला उठे.

‘‘गुडमौर्निंग टू औल औफ यू. आइए, चलिए सभी नाश्ता करते हैं, अदिति पहुंच ही रही होगी. चलोचलो बच्चो…’’ तरुण ने मां को सहारा दिया और डायनिंग टेबल तक ले आया. ‘‘भाईसाहब तो फीकी चाय पीते होंगे?’’ सुशीला ने केतली से टिकोजी हटाते हुए पूछा.

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‘‘बहनजी, बस 2 चम्मच चीनी,’’ स्फुट स्वरों में बोल कर कप में डालने का इशारा किया तेजप्रकाश ने. ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं मम्मीजी, पापा को शुगर बरसों से है, कंट्रोल कर के रखा है, तब भी बौर्डर पर ही है. एक बार इन्हें दिल में बहुत जोर का दर्द उठा, डाक्टर के पास गए नहीं, पर प्रौमिस किया कि अब से मक्खन, चीनी नहीं खाएंगे. बस, तब से मक्खन वगैरा भी बंद. मां को तो शुगर नहीं है पर वे एहतियात के तौर पर अपनेआप ही नहीं लेतीं. आप बैठिए मम्मीजी, मैं निकालता हूं,’’ तरुण ने कहा.

‘‘अरे गैस थी, खाली पेट में वही चढ़ गई थी. खामखां लोगों ने एनजाइना समझ लिया और जबरदस्ती प्रौमिस ले लिया,’’ तेजप्रकाश ने सफाई दी. ‘‘ऐसे कैसे? शुक्र मनाइए कि खयाल रखने वाला परिवार मिला है, भाईसाहब. इतना लालच ठीक नहीं. जबान पर तो कंट्रोल होना ही चाहिए एक उम्र के बाद. वैसे भी, हमें इस उम्र में खुद भी अपना ध्यान रखना चाहिए,’’ सुशीला ने शुगरपौट तरुण की ओर बढ़ा दिया. तेजप्रकाश ने चीनी की ओर बढ़ता

हुआ अपना हाथ मन मसोस कर पीछे खींच लिया. ‘‘तब तो चीनी का बहुत कम ही खर्चा आता होगा यहां. मिंकू, बंटू को देख रही हूं दूध में चीनी नहीं लेते पर सुबह से कई सारी चौकलेट खाने से उन का शुगर का कोटा पूरा हो जाता होगा, दामादजी भी बस आधा चम्मच, अदिति तो पहले ही वेट लौस की ऐक्सरसाइज व डाइट पर रहती है,’’ सुशीला सस्मित हो उठीं.

जिम से लौटी अदिति ने भी हाथ धो कर टेबल जौइन कर लिया, ‘‘अरे मम्मी, कहां हिसाबकिताब ले कर बैठ गईं. चीनी हो या चावल, अपनी रत्ना बड़ी परफैक्ट है, सब हिसाब से ही लाती, खर्च करती है. हम तो कभीकभी ही दुकान जा पाते हैं, उसी ने सब संभाला हुआ है.’’ वह चेयर खींच कर आराम से बैठ गई और कप में अपने लिए चाय डाल कर चीनी मिलाने लगी. तभी तेजप्रकाश ने उस से इशारे से रिक्वैस्ट की तो उस ने चुपके से आधा चम्मच चीनी तेजप्रकाश के कप में मिला दी.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, सिर पर बिठा कर रखो महारानीजी को. एक दिन वही ऐसा गच्चा देगी तब समझ में आएगा. और भाईसाहब ने 2 शुगरफ्री डाले हैं. तू ने उन के कप में चीनी क्यों मिलाई अदिति?’’ सुशीला बोली थीं. ‘‘अरे मम्मी, अभी पापाजी का सबकुछ नियंत्रण में है, बिलकुल फिट हैं. काफी वक्त से कोई दर्द भी उन्हें दोबारा नहीं हुआ. बैलेंस के लिए सबकुछ थोड़ाथोड़ा खाना सही है. लाल और हरीमिर्च भी तो आप मानती नहीं, बहुत सारी खाती रही हैं खाने में ऐक्स्ट्रा नमक के साथ, वह क्या है? खाने के बाद एक चम्मच मलाईचीनी, रबड़ीचीनी या मक्खनचीनी के बिना आप का पेट साफ नहीं होता, वह क्या है? जबकि डाक्टर की रिपोर्ट है आप के पास. आप को सब मना है. बीपी भी है और आप को हार्ट प्रौब्लम भी. अच्छा है कि आप मेरे पास हैं, सब बंद है.’’

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‘‘अरे तू हमारी कहां ले बैठी, वह तो 4-5 साल पहले की बात है. मुंह बंद कर, चुपचाप अपना नाश्ता कर,’’ सुशीला ने आंखें नचाते हुए अदिति को कुछ ऐसे डांटा कि सभी मुसकरा उठे. ब्रेकफास्ट के बाद, तरुण और अदिति स्टोर जा कर महीनेभर का कुछ राशन और हफ्तेभर की सब्जी व फल ले आए. सुशीला डायनिंग टेबल पर फैले विविध सामानों को किचन में ले जा कर सहेजती रत्ना को बड़े गौर से देख रही थीं. रत्ना दोबारा लंच बनाने आ चुकी थी.

आगे पढ़ें- सुशीला की तेज नजरें सप्ताह बाद ही…

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