अवनि को कालेज के लिए तैयार होते देख मां ने पूछा, “क्या बात है अवनि, आजकल कुछ उदास सी रहती हो? और यह क्या, आज फिर वही कुरता पहन लिया?” अवनि रोंआसी हो कर बोली, “अभी क्लासेज तो हो नहीं रहीं, सिर्फ गाइड ढूंढने की मशक्कत कर रही हूं.”
मम्मी ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “फिर भी सलीके से तैयार होना जरूरी है. मैं चेहरे पर मेकअप की परतें चढ़ाने को थोड़ी कह रही हूं.”
अवनि ने कहा, “ठीक है मम्मी, आगे से ध्यान रखूंगी.” मम्मी अवनि को जाते हुए देखती रही.डिपार्टमेंट में अवनि को उस की खास सहेली ईशा मिल गई जो पीएचडी की 2 साल की प्रोग्रैस रिपोर्ट सब्मिट कराने आई थी. ईशा ने अवनि से कहा, “हम दोनों ने एकसाथ गाइड ढूंढना शुरू किया था, देख मुझे 2 साल हो गए रजिस्ट्रेशन करवाए हुए, तेरी गाड़ी कहां अटक रही है?” अवनि का जवाब सुने बिना ही उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए ईशा आगे बोली, “यह क्या हाल बना रखा है…ढीला सा कुरता, तेल से चिपके बाल… यहां सारे लैक्चरर्स पुरुष हैं, मैडम. ऐसे ही नहीं मिल जाएंगे गाइड तुम्हें.” अवनि रोंआसी हो कर बोली, “सुबह मम्मी भी मुझे सलीके से रहने को कह रही थीं और अब तुम भी.”
ईशा ने उसे समझाते हुए कहा, “मैं तुम्हें 50 वर्ष की उम्र पार किए प्रोफैसर्स पर लाइन मारने को नहीं कह रही, लेकिन पुरुष चाहे 18 का हो या 80 का, सुंदरता उसे आकर्षित करती ही है.”
अवनि ईशा की बात समझने की कोशिश कर रही थी, फिर सोचने लगी, ‘सही ही तो कह रही है ईशा… मुझे अपने पहनावे और लुक्स पर ध्यान देना ही होगा. कल को जौब के लिए और शादी के लिए भी मेरे लुक्स को ही देखा जाएगा.’
उस दिन अवनि डिपार्टमैंट से सीधे पार्लर गई. वहीं हेयरवौश के बाद हेयरकट कराया और फिर थ्रेडिंग और फेशियल भी. बाल सैट कराने के बाद उस ने जब खुद को शीशे में देखा तो हैरान रह गई…वह सोच रही थी कि अगर स्टाइल से रहने लगूं तो किसी की नज़र मुझ पर से हटेगी ही नहीं.
घर पर मम्मी ने भी उस के हेयरकट की तारीफ की. धीरेधीरे अवनि अपनेआप को बदलती ही जा रही थी. इस ट्रांसफौर्मेशन में उसे मज़ा आ रहा था. एक दिन फिर से उस ने डिपार्टमैंट जा कर पीएचडी के लिए किसी गाइड से बात करने के बारे में सोचा. डिपार्टमैंट में सब से पहला औफिस अभिनव सर का था. अवनि ने कभी उन से बात नहीं की थी पीएचडी के बारे में. उन के बारे में अवनि ने सुना था कि वे एक बार में सिर्फ 4 स्टूडैंट्स को ही पीएचडी कराते हैं, वह भी जनरली बौयज को. आज अवनि न जाने क्यों उन के औफिस के सामने रुक गई थी और फिर झटके से दरवाजा खोल कर पूछ बैठी, “मे आई कम इन, सर?”
अभिनव सर डिपार्टमैंट के सब से वरिष्ठ प्रोफैसर थे, उम्र पचास के आसपास, लेकिन अवनि को वे किसी यंग, स्मार्ट युवक की तरह नज़र आ रहे थे. चमकता चेहरा, विशाल भुजाओं वाला कसरती शरीर. वे कोई सिनौप्सिस देखने में व्यस्त थे और अवनि उन्हें एकटक निहारे जा रही थी. पहले ऐसी नहीं थी अवनि. जब से खुद को बदला है, अब सब को ध्यान से देखने लगी थी. तभी अचानक सर का ध्यान अवनि की ओर गया. वे भूल ही गए थे कि कोई स्टूडैंट सामने बैठी है.
सर ने उस से आने का कारण पूछा. अवनि ने बिना कुछ कहे सिनौप्सिस थमा दी उन्हें. सर ने जवाब दिया, “मेरे पास कल ही एक सीट खाली हुई है लेकिन तुम से पहले 15 स्टूडैंट्स सिनौप्सिस दे कर जा चुके हैं. इतने स्टूडैंट्स में से एक को चुनना मुश्किल है.” अवनि का चेहरा उतर गया था. वह उठ कर जाने लगी तो सर ने उसे रोकते हुए कहा, “तुम बैठो, मैं पहले आओ, पहले पाओ के सिद्धांत पर काम नहीं करता. यदि तुम्हारा विषय और सिनौप्सिस मुझे पसंद आया तो मैं तुम्हें भी पीएचडी करा सकता हूं. तुम अगले सोमवार को मुझ से मिल लेना.”
सर की नजरें अवनि के चेहरे पर थीं. सर को अपनी ओर देखता पा कर अवनि की नजरें झुक गई थीं. सर ही सही, पर पहली बार कोई उसे यों गौर से देख रहा था. अवनि ने लाइट पिंक कलर का टाइटफिटिंग वाला सूट पहन रखा था जिस में से झांकते उस के उभार सुबह से कइयों की नज़र का निशाना बन चुके थे. पारदर्शी दुपट्टा जो बारबार कांधे से सरक रहा था वह किसी को भी अपने मोहपाश में बांधने को काफी था. सुर्ख गुलाबी गालों पर लहराते काले बाल कोई जादूटोना सा कर रहे थे. कभी लड़कों की तरह लंबेलंबे कदम बढ़ाने वाली अवनि धीरे से उठ कर नजाकत के साथ दरवाज़े की ओर बढ़ रही थी. उसे पूरा भरोसा था कि 16 स्टूडैंट्स में सर पीएचडी के लिए उसे ही सेलैक्ट करेंगे.
अगले सोमवार वह पहुंच गई थी अभिनव सर के औफिस में. सर औफिस में नहीं थे. सर ने फोन भी पिक नहीं किया. अवनि को अब यही डर था कि सीट हाथ से फिसल न गई हो. करीब एक घंटे के इंतज़ार के बाद अवनि बुझेमन से बाहर आने को उठी ही थी कि सामने सर को देख कर ठिठक गई. लाइट ब्लू कलर की शर्ट और ब्लैक ट्राउज़र पहने हुए सर बहुत स्मार्ट और हैंडसम लग रहे थे. सर ने उसे बैठने को कहा और फिर अवनि की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए बोले, “तुम्हारा सिनौप्सिस मुझे पसंद आया. कुछ करैक्शन के बाद इसे फाइनल कर लेते हैं. तुम मेरे अंडर में पीएचडी कर रही हो.” अवनि की खुशी का ठिकाना न था. अवनि ने थैंक्स कहा तो सर मुसकराते हुए बोले, “तुम्हें पता चल ही गया होगा कि मैं लड़कियों को पीएचडी नहीं कराता, फिर तुम्हें क्यों करा रहा हूं…”
अवनि ने प्रश्नवाचक दृष्टि सर के चेहरे पर डाली. सर ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “…क्योंकि तुम मुझे बाकी लड़कियों से अलग लगीं.”
अवनि को सर की बातों का अर्थ कुछकुछ समझ आ रहा था. घर आ कर उस ने बहुत देर तक खुद को शीशे में निहारा और फिर नज़रें झुका ली थीं. अवनि जल्दी से जल्दी पीएचडी पूरी कर लेना चाहती थी. वह चाहती थी कि जल्दी से जल्दी जौब लग जाए. मम्मीपापा ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया था.
अवनि रोज़ डिपार्टमैंट जाती थी और लाइब्रेरी से बुक्स इशू करवाने के बाद अभिनव सर के औफिस में ही बैठती थी. थोड़ी देर के लिए ही सही, सर औफिस जरूर आते थे. मुसकरा कर अवनि के अभिवादन का जवाब भी देते थे. किसी दिन सर डिपार्टमैंट आने में लेट हो जाते थे, तो अवनि बेचैन हो उठती थी. अवनि खुद इस बेचैनी का कारण नहीं समझ पा रही थी. कहीं इसी को प्यार तो नहीं कहते…अब तक अवनि ने अपनी जो छवि बना रखी थी, लड़के उस के आसपास भी न फटकते थे लेकिन अब तो वह हर नज़र की गरमाहट और गहराई को महसूस कर रही थी.
रोज़ की तरह अवनि अभिनव सर के औफिस आ गई थी. सर के औफिस में एक वौशरूम था जिसे अवनि अकसर यूज़ करती थी. अवनि को यही लगता था कि सर ने इस औफिस में सिर्फ उसे एंट्री दी है और वौशरूम तो उस के अलावा कोई रेयर ही यूज़ करता होगा. यही सोच कर कई बार वह डोर क्लोज़ करने में लापरवाही कर जाती थी. उस दिन भी उस ने ऐसी ही लापरवाही की.
हैंडवौश करते समय उस ने महसूस किया कि उस की ब्रा के हुक खुल गए हैं और स्टैप्स कुरते की स्लीव से बाहर की ओर आ रही हैं. उस ने ब्रा के हुक बंद करने के लिए कुरता उतारा और हुक बंद करने की कोशिश करने लगी. तभी सामने शीशे पर नज़र पड़ी तो उस ने देखा अभिनव सर खड़े हैं. वह सकपका गई. न जाने क्या सोच कर उस ने कुरता पहनने की कोशिश ही नहीं की. उसे लगा कि सर पास आ कर अवनि की ब्रा के हुक बंद कर रहे हैं, वह उन के कांपते हाथों के स्पर्श को महसूस कर रही थी और उस पर मदहोशी सी छा रही थी. तभी तेजी से दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ से उस की तंद्रा टूटी. सर वहां नहीं थे…तो क्या सर बाहर से ही चले गए थे…अवनि समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या हो रहा था. अवनि ने बड़ी मुश्किल से कुरता पहना और बाहर आ गई. सर अपनी चेयर पर बैठे थे.
अवनि ने नज़रें झुकाए हुए सर से कहा, “सिनौप्सिस और लिटरेचर रिव्यू आप के बताए अनुसार तैयार कर लिए हैं.” अवनि के सुर्ख चेहरे पर पसीने की बूंदें गुलाब पर ओस का एहसास करा रही थीं.
सर ने उस की ओर बिना देखे ही कहा, “अगले सप्ताह डिपार्टमैंटल रिसर्च कमेटी की मीटिंग है लेकिन यह मीटिंग डिपार्टमैंट में न हो पाएगी. पास ही के कसबे के एक कालेज में मीटिंग रखी गई है क्योंकि मीटिंग के तुरंत बाद वहां एक सैमिनार होगा. यहां से 2 घंटे का रास्ता है. तुम मंडे को 11 बजे वहां पहुंच जाना. मैं भी वहीं मिलूंगा.”
अवनि के दिलोदिमाग में हलचल मची हुई थी. वह सर की ओर खिंची चली जा रही थी, जबकि सर ने ऐसा कोई इंडिकेशन उसे नहीं दिया था. उस ने सोच लिया था कि वह सर को अपनी फीलिंग्स के बारे में ज़रूर बताएगी…कहने की हिम्मत न हो तो लिख कर अपने प्यार का इज़हार करेगी. उस ने एक लैटर भी लिख लिया था.
अब डीआरसी की मीटिंग वाला सोमवार भी आ गया था. अवनि अपनी एक्टिवा से सर के बताए हुए टाउन के लिए रवाना हो गई थी. शहर से बाहर निकली ही थी कि तेज बारिश शुरू हो गई. अवनि ने एक पेड़ के नीचे खड़े हो कर खुद को भीगने से बचाने की कोशिश की लेकिन पानी ने उस के कौटन सूट को भिगो ही दिया था. आसपास खड़े लोग उसे कनखियों से देख रहे थे. अवनि बिलकुल असहज हो गई थी. तभी एक चमचमाती हुई सफेद गाड़ी अवनि के सामने आ कर रुकी.
सर ही थे, हलके गुलाबी रंग की शर्ट में, बोले, “आओ, जल्दी बैठो. मीटिंग का टाइम हो रहा है.” सर ने आगे की सीट की ओर इशारा किया. अवनि झिझकती हुई गाड़ी में बैठ गई थी. उस का कुरता गीला हो गया था, उसे ठंड लग रही थी. सर ने हीटर औन कर दिया था. उस दिन की बाथरूम वाली घटना याद कर के अवनि सकुचा गई थी. फिर भी वह चाह रही थी कि सर उसे देखें. एक अलग ही तरह का रोमांच वह महसूस कर रही थी.
अभिनव सर ने उसे नौर्मल करने की कोशिश करते हुए कहा, “आराम से बैठो, रिलैक्स रहो. डीआरसी के लिए खुद को तैयार कर लो.” तभी एक झटके के साथ गाड़ी रुकी थी. गाड़ी में कोई खराबी आ गई थी. दूरदूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था. फोन का नैटवर्क भी गायब था. अवनि को परेशान देख सर ने कहा, “अभी 10 बजे हैं, कोई साधन मिल जाए तो 15 मिनट में पहुंच जाएंगे.” तभी एक लड़की एक्टिवा से आती दिखी जो उसी टाउन की ओर जा रही थी.
सर ने अवनि को उस लड़की के साथ भेज दिया और उस से यही कहा, “तुम पहुंचो, मैं मैनेज कर के आता हूं.”अवनि समय पर पहुंच गई थी. सर 15 मिनट बाद पहुंचे थे. उन की शर्ट पसीने में पूरी तरह भीगी हुई थी जिस से अवनि को यह अंदाजा हो गया था कि सर ने यह दूरी पैदल या दौड़ कर पूरी की है. डीआरसी की मीटिंग बढ़िया हो गई थी और अवनि का पीएचडी में रजिस्ट्रेशन भी हो गया था. सर को फाइनल डीआरसी रिपोर्ट वाली फ़ाइल देते समय उस ने वह लव-लैटर भी उसी में रख दिया था.
अवनि पीएचडी में रजिस्ट्रेशन के बाद बहुत खुश थी और सर के जवाब का भी इंतज़ार कर रही थी. अगले दिन अवनि मिठाई का डब्बा ले कर डिपार्टमैंट पहुंची तो पियून ने बताया कि सर की तबीयत खराब है. अवनि इस के लिए खुद को जिम्मेदार समझ रही थी. वह तुरंत सर के घर पहुंच गई थी. वह सर के घर पहली बार आई थी. दोतीन बार डोरबैल बजाने के बाद दरवाजा खुला. अवनि ने देखा कि दरवाजा खोलने वाले सर ही थे. सर ने उसे अंदर आने को कहा.
अवनि ने पूछा, “आप अकेले रहते हैं यहां?” सर ने जवाब दिया, “नहीं, मेरी पत्नी भी है. अभी वह कुछ दिन के लिए बेटे के पास यूएस गई हुई है.” अवनि को जैसे बिच्छु ने डंक मारा हो. वह सर को ले कर जाने क्याक्या सोचने लगी थी.
मिठाई का डब्बा वहीं टेबल पर रख कर अवनि ने पूछा था, “आप के लिए कुछ बना दूं सर?” सर ने कहा, “नहीं, मैं ठीक हूं. थोड़ी थकान है, जो आराम करने से ठीक हो जाएगी.” अवनि वापस लौटने के लिए पीछे मुड़ी तो सर ने कहा, “रुको अवनि.” अवनि चौंक गई थी. सर ने कुछ सोचते हुए कहा, “तुम बहुत अच्छी लड़की हो, तुम अपनी पीएचडी पूरी कर के अपने कैरियर पर ध्यान दो. मैं एक गाइड के रूप में हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा. तुम अपने वर्तमान और भविष्य को खुद ही आकार दे सकती हो. याद रखना, बहक कर पछताने से बेहतर है हम अपनेआप को मर्यादित रखें.”
अवनि सर का इशारा समझ रही थी. उस की आंखों पर पड़ा प्यार का चश्मा उतर गया था. सर के घर से लौटते हुए अवनि यही सोच रही थी कि अब वह किसी भी तरह के भटकाव से बच कर पूरे मनोयोग से पीएचडी पूरी करेगी. सर ने उसे मंजिल को पाने की सही राह दिखा दी थी.