फिल्म ‘बिट्टू बॉस’,‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनियां, बैंक चोर, बद्रीनाथ की दुल्हनियां आदि कई फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता साहिल वैद को बचपन से अभिनय का शौक था, जिसमें साथ दिया उनके माता-पिता ने. साहिल तमिलनाडु में पले-बड़े हुए है. साहिल ने फिल्म कुली नं 1 में एक दोस्त की भूमिका निभाई है, जो अमेजन प्राइम विडियो पर रिलीज हो चुकी है,जिसे सभी पसंद कर रहे है. उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.
सवाल-ये फिल्म पुरानी फिल्म से कितनी अलग है और इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?
ये नए जमाने की कुली नं 1 है, जिसमें आज के परिवेश को ध्यान में रखते हुए काम किया गया है. पुरानी फिल्म काफी सफल रही थी, जिसमें गोविंदा और करिश्मा कपूर ने काम किया था. उसे सभी आज भी पसंद करते है. निर्देशक डेविड धवन का ही है, कहानी वही है,केवल कलाकारों में थोडा परिवर्तन मनोरंजन को ध्यान में रखते हुए किया गया है,लेकिन कुछ नयी ट्विस्ट इसमें है, जो इसे पुरानी फिल्म से अलग और नयी बनाती है.
इस फिल्म को ना कहने का तो सवाल ही नहीं था. जब मुझे निर्देशक डेविड धवन का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे इस फिल्म में काम करने के लिए कहा तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई, क्योंकि इस फिल्म को मैंने पहले कई बार देखा था. तब पता नहीं था कि एक दिन इस फिल्म में काम करने का मौका भी मिलेगा.
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सवाल-इस फिल्म को करते वक़्त कितनी तैयारिया करनी पड़ी? कितना कठिन था?
इस फिल्म में सभी बड़े-बड़े कलाकार काम कर रहे है, ऐसे में मुझे भी अच्छा काम करना था. मेरी वजह से कोई सीन ख़राब हो जाए, ये मैं नहीं चाहता था, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि अभिनय करना आसान हुआ. डर जो था, वह पहले ही दिन निकल गया था. कठिन कुछ भी नहीं था, नार्मल तैयारी की थी. इसकी शूटिंग बैंकाक, गोवा और मुंबई में हुई है.
सवाल-फिल्म थिएटर में रिलीज न होकर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?
थिएटर में फिल्म को देखना अच्छी बात होती है, लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण की वजह से फिल्में ओटीटी पर रिलीज हो रही है और निर्माता निर्देशकों को एक नया प्लेटफॉर्म मिल गया है. ओटीटी पर रिलीज होने पर अधिक लोग फिल्म को देख पाते है. थिएटर में जाने से पहले लोग कई बातों पर विचार करने लगते है. ऐसे में निर्माता, निर्देशकों और कलाकारों को ओटीटी का फायदा अधिक हुआ है.
सवाल-अभिनय में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
मैं जीवन में अलग-अलग लोगों से इंस्पायर्ड रहा. मैं जब 3 साल का था, तो एक फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन जीता था, उसमें बहुत सारी तालियाँ बजी थी. मुझे बहुत अच्छा लगा था. इसके बाद तमिलनाडू में मेरे क्लास मेट मुझे गोरा कहकर बुलाते थे और जब दिल्ली आया, तो मुझे लोग मद्रासी कहने लगे, क्योंकि मेरी बोली में तमिल एक्सेंट बहुत था. इसके अलावा स्कूल में एक नाटककार अजय मनचंदा आते थे, वर्कशॉप लेते थे और वहां कोई मुझे कुछ भी नहीं कहता था, इससे मुझे वह स्थान अच्छा लगने लगा. नाटकों में काम करना मुझे पसंद था. थिएटर को मैं अपनी कामयाबी में प्रमुख स्थान देता हूं, क्योंकि उसकी वजह से ही मैं काम सीख पाया. पिता ने जब मेरी इच्छा को देखा तो उन्होंने व्हीस्लिंग वुड्स इंटरनेशनल में मेरा एडमिशन करवा दिया. वह मेरी मुलाकात अभिनेता नसीरुद्दीन शाह से हुई. वे वहां पर मुझे एक अच्छा कलाकार बनने के लिए सारी बारीकियां सिखाते थे, क्योंकि वे एक्टिंग डिपार्टमेंट के हेड थे. दो साल पढाई करने के बाद मैं नसीरुद्दीन शाह के थिएटर ग्रुप से जुड़ गया.
सवाल-पहली बार जब पेरेंट्स से अभिनय की बात कही तो उनके रिएक्शन क्या रही?
मेरे पेरेंट्स हमेशा खुले विचारों के रहे है. मेरे पिता अब नहीं रहे, लेकिन उनका कहना था कि मैं जो भी बनूँ, उसमें सफलता प्राप्त करूँ. इसलिए मुझे अधिक कुछ कहना नहीं पड़ा. मैंने पहले एक बार पत्रकार बनने की भी कोशिश की थी, पर थिएटर नहीं छूटा और मैं अभिनय में आ गया. फिर उन्होंने मुझे मुंबई आने की सलाह दी. मैं एक्टर बन गया, पर मेरे परिवार वाले सभी दूसरे क्षेत्र से जुड़े है. इसलिए अभी भी मेरे काम को कोई समझ नहीं सका है. कई लोगों ने पेरेंट्स को मुझे अभिनय के क्षेत्र में न भेजने की सलाह दी थी, पर मेरे पेरेंट्स अडिग थे और उन्होंने मेरी इच्छा का ध्यान डटकर दिया.
सवाल-पहला ब्रेक मिलने में कितना समय लगा?
जब मैं व्हीस्लिंग वुड्स इंटरनेशनल में पढ़ रहा था, तब एक साल के अंदर मुझे पहली फिल्म ‘हैपी’मिल गयी थी. मैंने उसमें पढाई के साथ-साथ काम किया. इतनी जल्दी इस फिल्म के मिलने से मुझे लगा कि ये क्षेत्र बहुत आसान है. उसके बाद मैंने एक धारावाहिक फौजी में काम किया जो टीवी पर नहीं आई. तब मुझे लगा कि अभिनय का क्षेत्र आसान नहीं है. इसके दो साल बाद बिट्टू बॉस मिली, फिर धीरे-धीरे काम मिलता गया.
सवाल-रिजेक्शन से आपके मानसिक स्तर पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है ?
असल में एक एक्टर का रिजेक्ट होने में उसके रंगरूप, शक्ल, हाइट आदि के लिए होता है, जो बड़ा पर्सनल होता है. इसका असर मानसिक स्तर पर बहुत पड़ता है, क्योंकि वह इंसान आपको कुरूप कह रहा है. मैं काफी दिनों तक रिजेक्शन को सहा है, इसलिए दिल पर नहीं लेता, क्योंकि मेरी बॉडी टाइप शायद उस भूमिका के लिए ठीक नहीं है. निर्देशक कबीर खान ने मुझे फिल्म 1983 में सैयद किरमानी की भूमिका के लिए वजन कम करने को कहा था. 3 से 4 महीने का समय भी दिया. मैंने बहुत मेहनत की वजन कम किया और जब उनसे मिलने गया, तो उनके पास एक सैयद किरमानी के शक्ल का कलाकार खड़ा था. तब मुझे समझ में आया कि निर्देशक के दिमाग में चरित्र का खाका पहले से तैयार रहता है. कबीर खान मुझे देखकर थोड़े मायूस भी हुए, क्योंकि उन्हें लगा नहीं था कि मैं वाकई वजन कम कर लूंगा.
सवाल-आपके हिसाब से इंडस्ट्री में एक अच्छे काम का मिलना और उसका सफल होना कितना मुश्किल होता है?
काम अच्छा होने से कोई रोक नहीं सकता. अचानक सोचकर अगर आप अभिनय के लिए निकल पड़ते है, तो कभी सफल नहीं हो पायेंगे. सही ट्रेनिंग के साथ अच्छा अभिनय ही किसी निर्माता, निर्देशक को आकर्षित कर सकता है. चेहरा अच्छा होने से अभिनय इंडस्ट्री में काम नहीं मिलता. हार मानने वालों को भी इंडस्ट्री में नहीं आना चाहिए.
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सवाल-नए साल में आपकी रेजोल्यूशन क्या है?
एक लीड एक्टर बनने की कोशिश करूंगा, जो प्यार आयुष्मान खुराना, पंकज त्रिपाठी आदि को मिल रहा है. मुझे भी वही मुकाम मिले. इसके अलावा मेरी इच्छा है कि हर निर्माता, निर्देशक के लिए सेलेबल एक्टर बन सकूं.