एक बार बंगलुरु में जब सेलेब्रिटी क्रिकेट मैच चल रहा था, तो कुछ प्लेयर्स ने अभिनेता रितेश देश्मुख को जेनिलिया का पति कहकर संबोधन किया, इससे रितेश थोड़े झेंप गए और तुरंत जवाब दिया कि यहाँ वे जेनेलिया के पति के रूप में जाने जा रहे है, जबकि महाराष्ट्र में अभिनेत्री जेनेलिया उनकी पत्नी के रूप में जानी जाती है. इस पर उस व्यक्ति ने महाराष्ट्र के अलावा ऐसे कई राज्य गिनवाएं, जहां वे जेनेलिया के पति के रूप में ही जाने जाते है, जो रितेश को अच्छा नहीं लगा. ये सही है कि जेनेलिया और रितेश के बीच कभी कोई समस्या या झगड़े की बात सुनने में नहीं आया. वे दोनों अपनी शादीशुदा जिंदगी से बहुत खुश है. कई बार रितेश अपनी जिंदगी की सबसे अच्छी सिलेक्शन जेनिलिया को बता चुके है, जिसने उन्हें जिंदगी की हर ख़ुशी दी है. इस जोड़े को कई शादीशुदा जोड़े आदर्श भी मानते है,ऐसे में उन्हें जेनेलिया का पति कहना क्यों ख़राब लगा? क्या उनका मेल ईगो हर्ट हुआ? ऐसे कई प्रश्न सोचने पर मजबूर करते है, क्योंकि इस मेल इगो की वजह से सालों से न जाने कितने रिश्तों में दरार पड़ी होगी. कितने घर टूट गए होंगे.
असल में समाज पुरुषसत्तात्मक है, ऐसे में मेल ईगो किसी न किसी रूप में दिखाई पड़ता है, क्योंकि पहचान (रेकॉगनिशन), आदर-सत्कार (अटेंशन) और कर्म (एक्शन), ये सब इससे ही निकलकर आता है. पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक एक्टिव और बलशाली माना जाता है. इसलिए सैनिक, नेता, वैज्ञानिक आदि अधिकतर पुरुष ही होते रहे है, लेकिन आज के परिवेश ने इसे उलटकर रख दिया है. महिलाये आज हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे है. जो पुरुषों को कई बार पसंद नहीं होता. इससे अलग भी कई उदाहरण है, जिसमें इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर लेखक बने चेतन भगत ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनको हाउस हसबैंड कहा जाना कतई बुरा नहीं लगता, क्योंकि पत्नी के ऑफिस चले जाने के बाद वे आराम से खाना बना लेते है और फिर राइटिंग में लग जाते है. बच्चे स्कूल से आने के बाद वे उनकी देखभाल भी करते है. लिखना उनके जीवन में शामिल हो चुका है और इस स्थिति को वे एन्जॉय करते है.
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इस बारे में काउंसलर राशिदा कपाडिया का कहना है कि पुरुष प्रधान समाज होने की वजह से आज भी महिलाओं का आगे बढ़ना पुरुषों को सहन नहीं होता. वे खुद को असुरक्षित महसूस करते है, इसलिए पुरुष कई बार महिलाओं से अभद्र व्यवहार करते है, उन्हें आगे बढ़ने से रोकते है. मैंने कई बार देखा है कि अगर कोई महिला तरक्की करती है, तो कुछ पुरुष उसे संदिग्ध निगाह से देखते है. अगर पुरुष ऐसा न भी करें ,तो आसपास के लोग उन्हें एहसास करवाते रहते है. पुरुष किसी से प्यार करे, तो कोई समस्या नहीं, लेकिन महिला करे, तो उसे बदनाम किया जाता है. गाँवों में तो उन्हें मार तक दिया जाता है.
समाज में ऐसी मानसिकता पुरुष प्रधान समाज होने की वजह से ही परंपरा के तौर पर चली आ रही है. लडको को ये मानसिकता बचपन से ही होती है कि वे सुपीरियर है, परिवार को प्रोटेक्ट करने वाले और कमाने वाले भी वे है. अगर वे कुछ गलती भी करते है, उन्हे कुछ अधिक कहा नहीं जाता, जबकि लड़कियोँ पर कोई जिम्मेदारी शुरू से ही नहीं डाली जाती. उन्हें बार-बार कहा जाता है कि वे पराई धन है शादी कर ससुराल चली जाएगी. ये चीजे लड़के छोटी अवस्था से देखते है और उनके अंदर ईगो पनपने लगता है. घर का काम भी लड़कियों को ही करने के लिए कहा जाता है, लड़कों को नहीं. यही वजह है कि अगर कोई लड़की सफल होती है तो उसे रोकने की कोशिश लड़के करते है, जिसे आज कोई लड़की सहन नहीं करती, जिससे रिश्ते और रिलेशनशिप टूटते है. आज के परिवेश में कुछ बाते पुरुषों को ध्यान में रखने की जरुरत है, ताकि मेल ईगो उनके रिश्ते में दरार न पैदा करें,
- आपकी पत्नी आपकी कॉम्पिटीटर नहीं, वह आपकी साथी है, उसकी सफलता से आपको ख़ुशी मिलनी चाहिए,
- उसकी सफलता आपको नीचा दिखाना नहीं, बल्कि उसकी कैरियर को आगे बढ़ाने से होता है,
- अगर कभी अनबन भी हो जाय, तो अपने इमोशन को काबू में रखें, ताकि रिश्तों में दरार न आयें और बच्चों पर इसका असर न पड़े,
- किसी भी कहासुनी में कैरियर को बीच में न लायें, बच्चों के लालन-पालन में माता-पिता की बराबर की जिम्मेदारी होती है, इसका ख्याल रखें,
- आपस में ब्लेम गेम न करें, एक दूसरे को सम्मान दें और बेटे को भी महिलाओं का सम्मान करना बचपन से ही सिखाएं.