सारा ने कालेज जाने के लिए तैयार अपने बेटे राहुल को प्यारभरी नजरों से निहारते हुए कहा, ‘‘नर्वस क्यों हो बेटा. मेहनत तो की है न, एग्जाम अच्छा होगा, डोंट वरी.’’ राहुल ने मां से मायूसी से कहा, ‘‘पता नहीं मां, देखते हैं.’’
औफिस के लिए निकलते जय ने राहुल से कहा, ‘‘आओ बेटा, आज मैं तुम्हें कालेज छोड़ देता हूं.’’ ‘‘नहीं पापा, रहने दीजिए, मुझे अजय को भी उस के घर से लेना है, उस की स्कूटी खराब है, मैं अपनी स्कूटी ले जाऊंगा तो आने में भी हमें आसानी रहेगी.’’
‘‘ठीक है, औल द बैस्ट,’’ कह कर जय औफिस के लिए निकल गए. सारा ने भी स्नेहपूर्वक बेटे को विदा किया और उस के बाद वह घरेलू कामों में लग गई. वह घर के काम तो कर रही थी पर उस का मन राहुल में अटका था. सारा और जय के अंतर्जातीय प्रेमविवाह को 25 साल हो गए थे. दोनों के बीच न तो धर्म कभी मुद्दा बना, न ही दोनों ने कभी लोगों की परवा की. दोनों का मानना था कि प्रेम से अनजान लोग इंसान के दिलोदिमाग को धर्म के बंधन में बांधते रहते हैं. धर्म को एक किनारे रख दोनों ने कोर्टमैरिज कर वैवाहिक जीवन की मजबूत नींव रख ली थी. लेकिन 21 वर्षीय राहुल कुछ समय से धर्म के बारे में भ्रमित था, उस के सवाल कुछ ऐसे होते थे, ‘मां, कौन सी सुप्रीम पावर सच है? हर धर्म अपने को बड़ा मानता है, पर वास्तव में बड़ा कौन सा है?’
सारा और जय अभी तक तो हलकेफुलके ढंग उसे जवाब दे देते थे लेकिन अब सारा को बात कुछ गंभीर लग रही थी, राहुल इस विषय पर बहुत सोचने लगा था. धर्म से जुड़ी हर बात पर उस का एक तर्क होता था. न कभी सारा ने इसलाम धर्म की बात की थी और न ही जय ने कभी वेदपुराण व पंडितों की. दोनों, बस, जीवन की राह पर एकदूसरे के साथ प्यार से आगे बढ़ रहे थे. जय उच्च पद पर कार्यरत था जबकि सारा एक अच्छी हाउसवाइफ थी.
राहुल के बारे में यों ही सोचतेसोचते सारा का पूरा दिन निकल गया और राहुल शाम को परीक्षा दे कर घर भी आ गया. वह खुश था, उस का एग्जाम बहुत अच्छा हुआ था. दोनों मांबेटे ने साथ खाना खाया और राहुल फिर सारा के पास ही लेट गया. राहुल को गंभीर देख सारा ने पूछा, ‘‘क्या सोच रहे हो बेटे?’’ ‘‘वही सब मां.’’
सारा सचेत हुई, ‘‘क्या?’’ ‘‘बस, यही कि मैं जब अजय को लेने गया तो वह पूजा कर रहा था. उस की मम्मी ने उसे तिलक लगाया, उस का मीठा मुंह करवाया और उसे शुभकामनाएं दीं. लेकिन इतना कुछ करने के बाद भी अजय के अधिकांश सवाल तो छूट ही गए और काफी कुछ उसे आया भी नहीं. वह काफी उदास था, कह रहा था कि इतना पूजापाठ किया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. पर आप ने तो यह सब नहीं किया, फिर भी मेरा एग्जाम अच्छा हुआ. मां, आखिर उस का इतना पूजापाठ करने का क्या फायदा हुआ. क्यों नहीं सुनी गई उस की. वैसे, मैं मन ही मन काफी डरा हुआ था, हमेशा की तरह आप मुझे ऐसे ही भेज रही थीं पर मेरा एग्जाम बहुत अच्छा हुआ, मां.’’
सारा आज बेटे के मन की सारी दुविधा दूर करने के लिए तैयार थी, ‘‘वह इसलिए बेटा, तुम ने बहुत मेहनत की और सफलता हमेशा मेहनत से ही मिलती है, इन सब ढोंगों
से नहीं.’’ ‘‘पर मां, हम लोग तो कभी कोई पूजापाठ नहीं करते, मेरे अन्य दोस्तों के यहां तो अलग ही माहौल होता है. आरिफ तो रातरात भर जाग कर इबादत करता है और कैरेन हर संडे चर्च जरूर जाती है चाहे कुछ हो जाए. अजय का हाल तो मैं ने अभी आप को बता ही दिया है. मां, आप को डर नहीं लगता कि हम लोगों के साथ कुछ बुरा न हो जाए? कहीं जो एक सुप्रीम पावर है, वह हम से नाराज न हो जाए.’’
‘‘कौन सी सुप्रीम पावर की बात कर रहे हो बेटा? यह सब, बस, धर्म का डर है जो पीढि़यों से हमारे परिवार वाले हमारे अंदर बिठाते चले गए. राहुल, यह हमारे अंदर बैठा धर्म का बस एक डर है जो हमें इन अंधविश्वासों को मानने के लिए मजबूर करता है. तुम कभी डरना मत. बस, सचाई और मेहनत से आगे बढ़ते चलो.’’ ‘‘पर मां, धर्म भी तो सच बोलने के लिए कहता है.’’
‘‘सचाई धर्म की नहीं, समाज की मांग है कि हम सच बोलें, अच्छे रास्ते पर चलें. बस, हमारा यही कर्तव्य है. धर्म के नाम पर नहीं, बल्कि समाज की बेहतरी के लिए सचाई, मेहनत और ईमानदारी के रास्ते पर चलना है?’’ ‘‘पर मां, डर नहीं लगता कि हमारे साथ कुछ बुरा न हो जाए, हमारे सामने कोई परेशानी आएगी तो फिर हम किस से मदद मांगेंगे, कौन सुनेगा हमारी?’’
‘‘कोई परेशानी आएगी तो हिम्मत रख कर उस का सामना कर लेना. जो लोग धार्मिक अंधविश्वासों में अपना समय बरबाद कर रहे हैं, क्या उन के साथ कुछ बुरा नहीं होता? उन्हें कभी कोई दुख नहीं होता? धर्म इंसान को कायर, डरपोक बना रहा है, उसे आगे बढ़ने के बजाय पीछे ढकेलता है. ‘‘तुम्हें याद है न, 5 साल पहले तुम्हारे पापा की तबीयत बहुत खराब हो गई थी. उन्हें हमें अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ा था. मैं तो कहीं पूजा करने नहीं भागी. यही सोचा था कि जय शहर के एक अच्छे अस्पताल में भरती हैं और अच्छे डाक्टर्स उन का इलाज कर रहे हैं, वे जल्दी ठीक हो जाएंगे. और ठीक हुए भी. उस समय उन को अच्छे इलाज की ही जरूरत थी और वह उन्हें मिला तो जय कितनी जल्दी ठीक हो गए थे, याद है न तुम्हें राहुल?’’
‘‘हां मां, आप की फ्रैंड्स घर आ कर कहती थीं कि आप के ग्रह खराब हैं, आप को कुछ पूजा वगैरह करवानी चाहिए, लेकिन तब आप कितने आराम से कहती थीं, सब ठीक हो जाएगा, तुम लोग परेशान न हो.’’ और राहुल हंस पड़ा तो सारा भी मुसकरा दी. राहुल आगे बोला, ‘‘पता है मां, मेरे सारे दोस्त मुझ से पूछते रहते हैं कि तुम लोग किस धर्म को मानते हो, लेकिन मैं उन्हें हंस कर टाल देता हूं, बता ही नहीं पाता किसी धर्म के बारे में.’’
‘‘बेटा, बता देना अपने दोस्तों को कि हम लोग आधुनिक विचारधारा वाले हैं. हमारा एक ही धर्म है इंसानियत का. कर्म करते रहने का. मेरे मातापिता व्यावहारिक हैं और बिना किसी धर्म को माने भी हमें जीवन में सबकुछ मिल रहा है. हमारे जीवन में भी वही सुखदुख लगे रहते हैं जो आप लोगों के जीवन में आते हैं. उन्हें बता देना कि हम ने ऐसा कुछ नहीं खोया है जोकि किसी धर्म के अंधविश्वासों के बंधन में बंध कर उन्हें मिल गया या हमारा कोई भारी नुकसान हो गया.’’ सारा ने अब हंसते हुए राहुल से कहा, ‘‘उन के बच्चे धर्म के विश्वास का सहारा ले कर भी फेल होते हैं और तुम ने इन बेकार बातों पर आंख मूंद कर विश्वास किए बिना पिछले साल कालेज में टौप किया है. तुम्हें पता ही है, हमारे सारे रिश्तेदार भी हमें नास्तिक, बेकार कह कर ताने मारते हैं, पर हमारे किसी भी सवाल का जवाब उन के पास नहीं होता.’’
राहुल ने हंसते हुए मां के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘पर मेरी मां के पास हर सवाल का जवाब है. आई प्रौमिस, मां, मेरे मन में अब कोई डर नहीं रहेगा.’’
‘‘वैरी गुड, दैट्स लाइक आवर सन.’’ राहुल का मन हलका हो गया था. वह अगले एग्जाम की तैयारी के बारे में सोचने लगा था. सारा खुश थी कि उस ने अपने बेटे को वही सीधा, उचित रास्ता दिखाया है जिस पर वह और जय 25 सालोें से चल रहे हैं. अब उन का बेटा भी बिना किसी दुविधा के, बिना किसी शंका के उस रास्ते पर उन के साथ था, यह उन के लिए काफी खुशी की बात थी.