सोनिकाने सोने से पहले हाथों पर अच्छी तरह क्रीम लगाई, बीचबीच में कनखियों से फोन पर कुछ करते अपने एवरग्रीन रूठे सजन उमेश को देखा. मन ही मन हंसी सी आई पर जैसे ही लाइट बंद कर उमेश के बराबर सोने लेटी, उमेश की गंभीर आवाज से हंसी गायब हो गई. करंट सा लगा.
उमेश बोला, ‘‘कल सुबह 5 बजे नाश्ता बना देना, थोड़ा पैक भी कर देना, एक डिस्ट्रीब्यूटर से मिलने प्रतापगढ़ जा रहा हूं, रात तक आ जाऊंगा.’’
सोनिका जैसे अभी तक यकीन नहीं कर पा रही थी कि उसे सुबह 5 बजे उठना है. उस ने उमेश को याद दिलाने की कोशिश की, ‘‘पर तुम तो मुझ से नाराज हो न.’’
‘‘गुड नाइट,’’ चिढ़ कर कहते हुए उमेश ने उस की तरफ से करवट बदल ली.
उमेश तो कुछ ही देर में खर्राटे लेने लगा पर सोनिका की तो नींद ही उड़ गई. हाय, उमेश का गुस्सा फिर खत्म हो गया. हाय, कितना आराम मिलता है जब उमेश गुस्सा होता है, बेचैनी से करवटें बदलते हुए सोनिका पुराने समय में
पहुंच गई…
वह अपनी इस आदत से बहुत परेशान थी कि कोई उसे सोते हुए कह दे कि सुबह जल्दी उठना है तो वह इस प्रैशर में ठीक से सो ही नहीं पाती. अब पुराने समय में पहुंची तो शादी के दिन याद आ गए और याद आ गया वह दिन जब उमेश को गुस्से में देखा था. सोनिका दिल्ली से लखनऊ जब शादी हो कर आई तो घर में सासससुर और इकलौता बेटा उमेश बस यही
थे. उमेश को सोनिका पर किसी बात पर गुस्सा आया था तो उस ने उस के हाथ का खाना खाना छोड़ दिया.
वह बहुत परेशान हुई. रोई तो सास ने बेटे के बारे में लाड़ से बताते हुए कहा, ‘‘बहू, उमेश बचपन से ऐसा ही है, जब भी गुस्सा होता है, खाना नहीं खाता, अपने सारे काम गुस्से में खुद करने लगता है. चिंता मत कर, अपनेआप इस का गुस्सा उतर भी जाता है.’’
सोनिका का तो चैन खत्म हो गया. हाय, नयानवेला पति कुछ खाए न तो उस के सामने बैठ कर वह खुद कैसे खा ले. उस ने सास से पूछा, ‘‘तो बाहर जा कर खाते हैं?’’
‘‘और क्या, कोई कब तक भूखा रह
सकता है.’’
वह हैरान हुई कि अरे, यह कैसा नाटक है. मायके में तो कोई भी गुस्सा हो, खाना सब खाते रहते थे. कई बार उस ने देखा था कि उस के पेरैंट्स बुरी तरह लड़े, फिर मम्मी ने खाना
लगाया और सब ने बैठ कर आराम से खा
लिया. अब उमेश के ड्रामे देख कर तो वह हैरान थी. उसे जल्दी गुस्सा आता था. वह परेशान हो कर उस के आगेपीछे घूमती कि खाना खा लो, खाना खा लो, पर वह तनतनाया सा बाहर
निकल जाता.
फिर अगले 5 सालों में अथर्व और अनन्या भी हो गए तो सोनिका ने सोचा कि शायद अब उमेश का गुस्सा कम हो, पर उमेश वैसा ही रहा. पर पिछले कुछ महीनों से सोनिका ने अपने सोचने की दिशा बिलकुल बदल दी है. सासससुर अब रहे नहीं. बच्चे कालेज में हैं. ये लौकडाउन के दिन थे. सब औनलाइन अपना काम करते रहते. घरों में मेड आ नहीं रही थी. काम ज्यादा था. किसी बात पर उमेश को गुस्सा आ गया और वह चिल्लाया, ‘‘मेरा खाना मत बनाना.’’
सोनिका ने कहा, ‘‘कहां खाओगे?’’
‘‘मैं और्डर कर लूंगा.’’
बच्चे वैसे तो किसी काम से आवाज देने पर इग्नोर कर देते हैं पर बाहर से खाना और्डर करने की बात पर दोनों के कान खड़े हो गए, दोनों अपनेअपने लैपटौप से उठ कर आ गए. पिता के गुस्से पर बिलकुल ध्यान न देते हुए पूछा, ‘‘पापा, क्या मंगवा रहे हो?’’
‘‘क्यों?’’
‘‘हमारे लिए भी मंगवा देना, आजकल बस घर का ही खाए जा रहे. बोर हो गए.’’
सोनिका को बहुत तेज गुस्सा आया. उमेश को और गुस्सा आ चुका था. बोले, ‘‘तुम्हारी मां ने जो बनाया है उसे कौन खाएगा?’’
‘‘अरे पापा, बाद में खा लेंगे. वैसे मम्मी क्या बनाया है आप ने?’’
सोनिका ने जवाब दिया, ‘‘दाल और आलूबैगन.’’
‘‘हां, तो बस पापा, फिर तो हमारे लिए भी मंगवा लेना,’’ कह कर हंसते हुए बच्चे अपने रूम में चले गए. उमेश ने एक अकड़ वाली नजर सोनिका पर डाली और और्डर देने लगा. उस दिन तीनों ने मजे से बिरयानी खाई और सोनिका मन मार कर अपना बनाया खाना खाती रही. बच्चों ने उसे बहुत कहा कि मम्मी बिरयानी टेस्ट कर के देखो तो सही, कितनी बढि़या है.
मगर ऐसा कभी होता नहीं था कि वह
उमेश के गुस्से में मंगवाया खाना खा ले. सैल्फ रिस्पैक्ट भी तो कोई चीज है. फिर अब अकसर यह होने लगा था कि उमेश गुस्से में खाना छोड़ता तो बच्चे भी उस के पीछे लग लेते. तीनों कभी कुछ मंगवा कर खाते, तो कभी कुछ. सोनिका ने अचानक महसूस किया कि इस में तो बड़ा आराम हो जाता है, जितने दिन उमेश गुस्सा रहता, काम काफी कम हो जाता जैसे ही यह बात दिमाग में आई उस का मन खिल उठा. बरतन भी कम होते, अपने लिए कभी मैगी बना लेती, कभी सैंडविच. बच्चों को जिस तरफ का खाने का मन होता आराम से खाते.
सोनिका ने टाइम देखा, 12 बज रहे थे. वह सोना तो चाहती थी पर बहुत कुछ दिमाग में चलने लगा था. उमेश गुस्से में खाना खाना तो छोड़ देता पर कोई बहुत जरूरी काम होने पर मार्केट साथ चला जाता क्योंकि लखनऊ में
मौल उन की सोसाइटी से कुछ दूरी पर था. इस बीच गुस्से में बात करने से भी बचता. उतना ही बोलता जितने के बिना काम न चलता. ऐसे ही उसे याद आया कुछ जरूरी सामान खत्म होने
पर वह उस के साथ फूड स्टोर गई थी. सोनिका को फू्रट्स खाने का बहुत शौक था. उमेश जंक फूड पसंद करता और फलों को देख कर मुंह बनाता. वह फल उठा कर ट्रौली में रखने लगी
तो उस ने देखा उमेश ने गुस्से में मुंह दूसरी तरफ कर लिया.
मजेदार बात यह थी कि अब सोनिका
को उस के गुस्से का जरा भी
फर्क न पड़ता. उस ने देखा कि उमेश मुंह से
तो कुछ कहेगा नहीं. उस दिन उस ने सब महंगे फल आराम से लिए. वह मन ही मन बहुत खुश हुई. सोचा कि रहो गुस्सा, अपना तो आराम हो जाता है.
अब तो सोनिका को उमेश के नाराज होने का इंतजार रहने लगा है. गुस्से में उमेश अपनी शान बनाए रखने के लिए उस से बोलता भी नहीं है तो वह वे सब काम आराम से कर लेती है जिन्हें उमेश अच्छे मूड में करने नहीं देता. अब तो सोनिका उमेश के नाराज रहने का पीरियड आराम से वैब सीरीज देख कर बिताती है और बहुत ऐंजौय करती है.
उमेश जब अच्छे मूड में होता है तो कई चीजें खाने की फरमाइश करता है, कोई हैल्प है नहीं, बस अपनी फरमाइश बता कर लैपटौप और फोन पर व्यस्त हो जाता है. वह फिर किचन में बदहाल हो कर मन ही मन यही कहती है कि प्रिय, काफी दिन हो गए तुम्हें नाराज हुए, थोड़ा नाराज हो जाओ तो काम कम हो, प्रिय.