कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में ऐसे पैर पसारे कि हर किसी को जमीन पर ला पटका है. दो महीने की ताला बंदी में लाखों लोग बेरोजगार हो गए. कई आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं तो कुछ आत्महत्या के विचार आने जैसी मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
लॉकडाउन के बीच खुदखुशी करने वालों का आंकड़ा बढ़ने लगा है. इसमें युवा, अधेड़ उम्र के लोग, मजदूर से लेकर मनोरंजन इंडस्ट्री से जुड़े लोग भी शामिल हैं. लॉकडाउन के कारण टीवी और बॉलीवुड के कलाकारों और टेक्निशियन को भी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है.
कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन की वजह से टीवी एक्टर मनमीत ग्रेवाल की खुदखुशी ने तो पूरे टीवी इंडस्ट्री के लोगों को चौंका दिया है. तमाम एक्टर उनकी खुदखुशी से सकते में हैं. देश में लॉकडाउन के कारण सारे काम-काज बंद हो गए, टीवी सीरियल्स की शूटिंग बंद हो गई ऐसे में एक्टर्स पैसे की तंगी का समाना करने लगे हैं. पैसे की तंगी की वजह से ही मनमीत ने इतना बड़ा कदम उठाया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मनमीत पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे और जब हालात और बिगड़े तो वे खुद को संभाल नहीं सके और अपनी जान दे दी.
वैसे टीवी इंडस्ट्री के कई कलाकार आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. सुप्रिया बनर्जी नाम की एक टीवी एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर कहा कि कोरोना काल में हमें इतनी दिक्कत है कि लग रहा है हम कुछ कर ना लें, एक साल पहले एक सीरियल में काम किया था जिसके लिए चेक मिला वो बाउंस हो गया, सरकार से मैं अपील कर रही हूँ कि प्लीज हमारी सुनी जाए.
नागिन 4 की फेम एक्ट्रेस सायंतनी घोष का कहना है कि वह आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं. उन्हें घर चलाने में दिक्कत हो रही है.
देश भर में चल रहे लॉकडाउन की वजह से तमाम फिल्मों और टीवी सीरियल्स की शूटिंग बंद है, जिस वजह से सबके सामने आर्थिक संकट आ गया है. जो बड़े कलाकार हैं उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन छोटे कलाकारों के लिए ये लॉकडाउन बहुत मुश्किल है.
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हाल ही में बॉलीवुड बैकअप डांसर कुरनालिया लवेट्ट, जिन्होंने शारुख खान, टाइगर श्रोफ, करीना कपूर, और कियारा आडवाणी जैसे सितारों के साथ काम किया है, उन्होंने खुलासा किया कि वह लॉकडाउन मे आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं. उनके पास घर किराया भरने के भी पैसे नहीं हैं. कुरनालिया ने ‘स्टूडेंस ऑफ द ईयर, गुड न्यूज, बाजीराव मस्तानी और एबीसीडी 2’ जैसी फिल्मों में बैकअप डांसर के तौर पर काम किया है. कुरनालिया ने बताया कि मेरे माता-पिता को मुझसे कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि वह जानते हैं कि मेरे पास कोई काम नहीं है. लेकिन मैं उनके बुढ़ापे में उनकी मदद नहीं कर पाने के लिए बहुत भयानक महसूस कर रही हूँ. कुरनालिया का कहना है कि हम तीन महीने से बेरोजगार हैं. बॉलीवुड डांसर एसोसिएशन में करीब 800 मेंबर्स हैं लेकिन उनमें केवल 100 लोगों को ही राशन मिला. मुझे नहीं मिला. अमिताभ बच्चन ने हमें 1500 रुपये का राशन कूपन मुहैया करवाया था. सलमान खान ने भी अकाउंट में 3, 000 रुपये भेजे थे. हम उनके शुक्रगुजार हैं.
लॉकडाउन की वजह से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री पर भी ताला लग गया है. आर्थिक परेशानी उनके लिए भी कम नहीं है जिनके पास पहले से ही काम नहीं था और जो डेली शो पर निर्भर थे. काफी समय से चल रहे इस लॉकडाउन ने कई टेलीविज़न सितारों को चिंचित कर दिया है. वे सोच रहे हैं कि यह लॉकडाउन खत्म हो और वे दोबारा से अपने काम पर लौट सकें.
टेलीविज़न शोज ‘भाभीजी घर पर हैं’ और ‘हैपू की उल्टन पल्टन’ के मशहूर प्रोड्यूशर बिनेफर कोहली का मानना है कि एक्टर्स और टेक्निशियन के जो पहले के पैसे हैं, जिसके लिए उन्होंने काम किया है वह पैसे उनको दे देना चाहिए. लेकिन साथ में यह भी कहते हैं कि प्रोड्यूशर पर भी काफी बोझ है, लॉकडाउन में शोज बंद चल रहे हैंजिसके वजह से प्रोड्यूसर्स को पैसे देने में परेशानी हो रही है. टेलीविज़न चैनल्स लॉकडाउन के चलते पुराने शोज को टेलिकास्ट कर रहे हैं. चैनल्स को एड्स नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में चैनल कैसे पैसे कमाएंगे और कहाँ से देंगे.
टेलीविज़न अभिनेता जान खान ने पीटीआई-भाषा से कहा,‘मैं हम सभी के लिए बहुत डरा हुआ हूँ. अपने और अपने साथियों के लिए उनका यह डर ग्लैमर इंडस्ट्री की कड़वी सच्चाई उजागर करता है. उनकी इस चिंता से कई अभिनेताओं ने सहमति जताई. टीवी सीरियलों को चलाने के लिए इन कलाकारों को दिन में 12-15 घंटे काम करना पड़ता है.
मुंबई जगत में 90 दिन में भुगतान का नियम हमेशा से कठिन रहा है लेकिन 25 मार्च से चले आ रहे इस लॉकडाउन के कारण बिना आमदनी के मुंबई जैसे महंगे शहर में किश्तें, किराया, भोजन आदि के खर्चे उठाना नामुमकिन सा हो गया है. इन कलाकारों की चिंता तब बढ़ गई टीवी कलाकार मनमीत ग्रेवाल ने पाने मुंबई स्थित घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.
‘Crime Patro’lअभिनेत्री प्रेक्षा मेहता ने भी इंदौर अपने घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उनके पिता रवीन्द्र चौधरी के अनुसार, वह काफी परेशान चल रही थी. उसे लगने लगा था कि कोरोना की वजह से अब मुंबई में काम मिलना मुश्किल हो जाएगा. वह अपने कैरियर को लेकर बहुत परेशान थी. प्रेक्षा मेहता 25 साल की थी. उसके पास से पुलिस को एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ. जिसमें लिखा था कि ‘मेरे टूटे हुए सपनों ने मेरे कोन्फ़िडेंस का दम तोड़ दिया है. मैं मरे हुए सपनों के साथ नहीं जी सकती. इन निगेटिविटी के साथ रहना मुश्किल है. पिछले एक साल से मैंने बहुत कोशिश की, अब थक गई हूँ’ प्रेक्षा पिछले तीन सालों से मुंबई में काम कर रही थी. उसे ऐसा लग रहा था कि लॉकडाउन खुलने के बाद काम नहीं मिल पाएगा. बताया जा रहा है कि इसी डिप्रेशन में आकर उसने यह कदम उठाया.
लॉकडाउन की वजह से सिर्फ मनोरंजन जगत पर ही मुसीबतों का पहाड़ नहीं टूट पड़ा है, बल्कि और लोगों को भी पैसे और अपने आने वाले कल की चिंता सता रही है. जो झेल पा रहे हैं झेल रहे हैं, जो नहीं झेल पा रहे हैं अपनी जान खत्म कर लेते हैं.
सिर्फ मई माह के 25 दिनों में ही 12 लोगों ने खुदखुशी कर ली है. गौर करें, तो हर दूसरे दिन एक व्यक्ति जान दे रहा है. एक बीटेक स्टूडेंट ने इसलिए जान दे दी क्योंकि लॉकडाउन के कारण वह अपना पेपर नहीं दे पाया. दो बच्चे के पिता इसलिए पंखे से झूल गया,क्योंकि वह आर्थिक तंगी से परेशान था. एक क्लीनर ने इसलिए खुद को खत्म कर लिया, क्योंकि लॉकडाउन में उसका काम ठप हो गया. ऐसे कितने ही लोग है, जो लॉकडाउन में काम ठप हो जाने के कारण और आर्थिक परेशानी के कारण खुद को खत्म कर लिया.
राजधानी हैदराबाद के जेडिमेतला इलाके में एक माँ अपने 2 महीने के बच्चे को 22 हजार में बेचने का फैसला कर लिया. हालांकि, पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया, लेकिन आर्थिक तंगी ऐसी की एक माँ अपने ही बच्चे को बेचने को मजबूर हो गई. मनोचिकित्सक मानते हैं कि कर्फ़्यू के बीच आर्थिक मंदहाली और आने वाले समय में रोजगार के सीमित साधनों का डर इसका मुख्य कारण है.
कोरोना की पहेली भी अबूझ है. हार-थक कर चिकित्सा विज्ञानी रोग प्रतिरक्षा यानि इम्यूनिटी के नए रहस्य ढूँढने में लग गए. सारी दुनिया कोविद 19 का टीका खोजने में लगी है. आम आदमी को समझ में आने लगा कि ज्यादा चिंता की बात नहीं है क्योंकि मानव के पास प्रकृति के दी हुई एक प्रतिरक्षा प्रणाली है जो उसे कोरोना से बचा लेगी. हालांकि, यह पहले से ही पता था कि संक्रमन रोगों से बचाव के लिए मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होना जरूरी है. लेकिन फिर भी इस कोरोना से बचन के लिए लॉकडाउन पर लॉकडाउन बढ़ता चला गया और नतीजा आर्थिक मंदी, बेरोजगारी बढ़ती चली गई. इससे पता चलता है कि जीवन को बचाने के लिए जितनी जरूरत शारीरिक इम्यूनिटी की है उतनी ही आर्थिक इम्यूनिटी भी जरूरी है. पूरी दुनिया इस समय लॉकडाउन से उपजी प्राणघातक मंदी की चपेट में है. वे विकसित देश जो इतने अमीर हैं कि अपने नागरिकों को दो चार महीने बैठाकर भी खिला सकते हैं, वे तक भयावह अथिक मंदी और बेरोजगारी से भयभीत हैं और वे किसी तरह लॉकडाउन से पीछा छुड़ाने की जुगत में हैं.
जोखिम कहाँ नहीं होता. लेकिन कोरोना से बचाने के लिए लॉकडाउन भी जोखिमभरा ही साबित हुआ.
देश में विभिन्न समूहों-सामाजिक, आय, आयु, शिक्षा,धर्म और जेंडर के 62.5% लोगों ने कहा कि उनके पास राशन, दवा आदि या इन जरूरी चीजों के लिए धन तीन हफ्ते से कम समय के लिए ही है. ‘आईएएनएस सी-वोटर कोविड ट्रैकर्स ऑफ पैनिक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है.
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बस कुछ ही दिन में लॉकडाउन 4.0 की अवधि खत्म होने वाली है. लेकिन अगर आगे भी लॉकडाउन बढ़ा तो फिर क्या होगा, यह ज्यादा चिंता करने वाली बात है। क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि जिन देशों में कोरोना के मामले घट रहे हैं उन्हें ज्यादा निश्चिंत होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि डबल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि जिन देशों में संक्रमन के मामले में कमी आ रही है, वहाँ अचानक मामले बढ़ भी सकते हैं. और कोरोना की दूसरी लहर पहली से ज्यादा तेज और खतरनाक साबित होगी.