कोरोना के कारण 3 महीने बाद ही बंद हुआ ये सीरियल तो इन 4 TV सीरियल्स पर भी गिरी गाज?

कोरोना का कहर दिन प्रतिदिन बढता ही जा रहा है. इसका सबसे ज्यादा असर मुंबई में देखने को मिल रहा है. दरअसल, जहां मुंबई में ज्यादा मामलों के चलते लौकडाउन लगाया गया है. तो सीरियल और फिल्मों की शूटिंग पर भी इसका असर पड़ रहा है. बीते दिनों कुछ सीरियल्स की शूटिंग की जगहों को बदला गया था. तो वहीं अब खबर है कि पिछले साल की तरह कुछ सीरियल्स बंद हो रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

‘तेरी लाडली मैं’ होगा बंद

टीवी सीरियल ‘तेरी लाडली मैं’ (Teri Laadli Main) पर कोरोना का कहर देखने को मिला है. दरअसल, खबरे हैं कि सीरियल को बिना क्लाइमैक्स के ही बंद कर दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना के कारण शो को अचानक ही बंद करने का फैसला किया गया है. वहीं इसकी जानकारी एक्टर गौरव वाधवा (Gaurav Wadhwa) ने देते हुए एक इंटरव्यू में कहा है कि ‘शो के ऑफ एयर होने की खबर सही है. मुझे भी इसके बारे में हाल ही पता चला. दुख है कि कोरोना महामारी के कारण यह सब हो रहा है. हम शो का क्लाइमैक्स भी शूट नहीं कर रहे हैं और बीच में ही इसे बंद किया जा रहा है.’

 

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‘हमारी वाली गुड न्यूज’ के एक्टर ने कही ये बात

‘तेरी लाडली मैं’ सीरियल के अलावा खबरे हैं कि तीन और टीवी शोज जून में बंद हो सकते हैं, जिनमें ‘तुझसे है राब्ता’, ‘तेरी मेरी इक जिंदड़ी’ और ‘हमारी वाली गुड न्यूज’ के नाम शामिल हैं. खबरों के मुताबिक ‘हमारी वाली गुड न्यूज’ के एक्टर शक्ति आनंद ने जून में सीरियल बंद होने को लेकर एक इंटरव्यू में कहा है कि अगर ऐसा होता है तो उन्हें कोई हैरानी नहीं होगी क्योंकि शो की टीआरपी बहुत ही कम है. शो को बंद किए जाने से ज्यादा बड़े और ध्यान देने वाले और भी मुद्दे हैं, जिनमें कोरोना सबसे बड़ा मुद्दा है. हालांकि एक्टर ने शो बंद होने को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है.

इन शोज पर भी गिर सकती है गाज

 

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कोरोना के प्रकोप का असर टीवी ‘कुर्बान हुआ’ और  ‘तेरी मेरी इक जिंदड़ी’ पर भी देखने को मिल सकता है. दरअसल, शो की कास्ट और क्रू मेंबर्स ने भी जून में सीरियल बंद होने की खबरें सुनी हैं. हालांकि प्रोड्यूसर्स ने टीम को आश्वासन दिया है कि सब ठीक है. अब देखना है कि इस बार कोरोना का गाज किन सीरियल्स पर पड़ती है.

फिल्म व सीरियल की शूटिंग के लिए जारी हुई गाइडलाइन्स, पढ़ें खबर

टीवी सीरियल, वेब सीरीज और फिल्मों की शूटिंग के लिए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने रविवार, 23 अगस्त की सुबह गाइडलाइंस जारी कर दी.  सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने रवीवार, 23 अगस्त की दोपहर, करीब पौने बारह बजे ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.

वैसे तो महाराष्ट्र सरकार ने 31 मई और फिर 23 जून को संशोधित गाइड लाइन जारी का ‘‘मिशन बिगेन अगेन’’ के तहत फिल्म, सीरियल व वेब सीरीज की शूटिंग शुरू करने की इजाजत दी थी.  जिसके चलते 25 जून से टीवी सीरियलों की शूटिंग जरुर शुरू हुई, पर दो दर्जन से अधिक सीरियलों के सेट पर कलाकार अथवा वर्कर कोरोना संक्रमित हो चुके हैं. इतना ही नहीं इसी कोरोना संक्रमण के चलते पार्थ समाथान और इरिका फर्नाडिष ने सीरियल ‘‘कसौटी जिंदगी की 2’’को बाय बाय करने का फैसला ले लिया है, तो अब इस सीरियल के प्रसारण के बंद होने की नौबत आ गयी है. तो वहीं सीरियल ‘‘भाखरवाड़ी’’ के सेट पर एक वर्कर यानी कि टेलर का काम करने वाले षख्स की कोरोना से मौत हो गयी और आठ वर्कर अस्पताल में हैं. अब खबर यह है कि इस सीरियल का भी प्रसारण बंद होने जा रहा है, तो वही सीरियल ‘‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’’के कलाकार भी इसे छोड़ रहे हैं, परिणामतः इसके भी बंद हो जाने की अफवाहें गर्म हैं. इसके मायने यह हुए कि महाराष्ट्र सरकार की गाइडलाइन्स में कुछ कमी है.

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इतना ही नहीं महाराष्ट्र सरकार द्वारा गाइड लाइन्स जारी होने के बाद से विवाद चले आ रहे हैं.  महाराष्ट्र सरकार ने 65 वर्ष व उससे अधिक उम्र के कलाकारों,  वर्कर व तकनीशियन के काम करने पर रोक लगा दी थी.  मुंबई उच्च न्यायलाय ने इस पर महाराष्ट्र सरकार की जमकर खिंचाई की और हर किसी को काम करने की छूट देने का निर्णय सुनाया. इतना ही नही महाराष्ट्र सरकार की गाइड लाइंस के अनुसर कलाकारों को भी मास्क पहनकर शूटिंग करना था. कई अन्य मसले भी थे. जिसकी वजह से फिल्म उद्योग के अंदर ही मतभेद चल रहे थे.

इसी वजह से फिल्म उद्योग से जुड़े कुछ संगठनों ने केंद्र सरकार से गुहार लगायी थी. बहरहाल, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने रवीवार, 23 अगस्त की सुबह फिल्मों की शूटिंग के लिए गाइडलाइंस जारी कर दी. इस गाइडलाइंस में सभी जगहों पर फेस मास्क के प्रयोग और छह फीट की सामाजिक दूरी बनाए रखना अनिवार्य किया गया है, मगर कलाकारों को इसमें छूट दी गयी है. सेट बनाने वाले, कैटरिंग, क्रू पोजिशंस,  कैमरा लोकेशंस आदि में दूरी बनाकर रखनी होगी. रिकॉर्डिंग स्टूडियोज,  एडिटिंग रूम्स में भी छह फीट की दूरी का ख्याल रखना अनिवार्य है. फिलहाल सेट्स पर दर्शकों को आने की इजाजत नहीं दी गई है.

गाइड लाइन्स के कुछ अन्य बिंदु इस प्रकार हैंः

1-मेकअप आर्टिस्ट्स, हेयर स्टायलिस्ट्स को पीपीई का उपयोग करना अनिवार्य
2-विग, कॉस्ट्यूम और मेकअप के सामान की शेयरिंग पर रोक
3-माइक के डायफ्राम से सीधा संपर्क न रखा जाए
4-हर शूटिंग या डबिंग या एडीटिंग आदि में उपयोग में आने वाले सभी उपकरणों को बार बार सेनीटाइज किया जाए.
5-सेट पर कम से कम वर्कर हों.
6-आउटडोर शूटिंग के लिए स्थानीय प्रशासन की अनुमति जरुरी.
7-उच्च जोखिम वाले कर्मचारियों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी
8-स्वच्छता मानदंडों का पालन करना होगा
9-हर स्टूडियो /सेट के प्रवेश द्वार पर थर्मल स्क्रीनिंग अनिवार्य
10-सभी एयर कंडीशनिंग उपकरणों के तापमान सेटिंग 24-30 डिग्री सेल्सियस की सीमा में होनी चाहिए
11-क्रास वेंटिलेशन सुनिश्चित करना होगा.
12-सामान्य स्थान जैसे सेट,  कैफेटेरिया,  मेकअप रूम,  एडिट रूम,  वैनिटी वैन,  वॉशरूम आदि को नियमित रूप से साफ किया जाएगा
13-वेशभूषा,  हेयर विग,  मेकअप आइटम,  उपकरण और पीपीई के उपयोग को साझा न किया जाए.
14-आरोग्य सेतु ऐप के उपयोग की सलाह

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रविवार को ही सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट किया है-‘‘कम से कम संपर्क‘ एसओपी में मूलभूत है. यह कम से कम शारीरिक संपर्क और हेयर स्टाइलिस्टों द्वारा पीपीई,  प्रॉप्स शेयर करना और दूसरों के बीच मेकअप कलाकारों द्वारा सुनिश्चित किया जाएगा. ‘‘
मगर अहम सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या अब सारे विवाद खत्म हो जाएंगे और फिल्मों की शूटिंग शुरू हो पाएगी? क्योंकि फिल्मों की शूटिंग से जुड़े कई ऐसे मुद्दे अभी भी हैं,  जिन पर विचार करने की जरुरत है.

Suicide के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए CINTAA ने उठाया ये कदम, पढ़ें खबर

बॉलीवुड के कलाकारों के चेहरे पर लगे मेक-अप के पीछे छिपा असली चेहरा तब सामने आता है, जब किसी के खुदकुशी करने जैसी भयावह खबर और उनके स्वास्थ्य की असलियत सबके सामने आ जाती है. उल्लेखनीय है कि बॉलीवुड के ऐसे चेहरों को समाज के लिए आदर्श माना जाता है.

CINTAA के ज्वाइंट अमित बहल कहते हैं, “एक एक्टर के मेक-अप की परतों के मुक़ाबले दबाव की परतें अधिक होती है.” वे कहते हैं, “सोशल मीडिया अक्सर कलाकारों के मन में सबकी नज़रों में बने रहने से संबंधित तनाव पैदा करता है. इंडस्ट्री महज़  सतत शोहरत और सतत आय का ज़रिया नहीं है. लॉकडाउन ने यकीनन लोगों की ज़िंदगी में काफ़ी तनाव पैदा कर दिया था, जिसने लोगों में अनिश्चित भविष्य के मद्देनजर डिप्रेशन में जाने पर मजबूर कर दिया. मगर सिने और टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिशन (CINTAA) एक अमीर संस्था नहीं है.” वे कहते हैं, “हम अपने सदस्यों तक पहुंचने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं और सिर्फ़ महामारी के दौरान ही नहीं, बल्कि हमेशा एक-दूसरे के काम आते हैं. CINTAA ने अब ज़िंदगी हेल्पलाईन के साथ साझेदारी की है जो ऐसे जानकारों व हमदर्दों के केयर ग्रुप से बना है जो काउंसिंग कर लोगों की मदद करता है. CINTAA की कमिटी में साइकियाट्रिस्ट, साइकोथेरेपिस्ट, साइकोएनालिस्ट और साइकोलॉजिस्ट का शुमार है. हम इस मुद्दे को लेकर काफ़ी गंभीर हैं और इसे लेकर लोगों की सहायता करना चाहते हैं.”

CINTAA ने खुदकुशी जैसे मुद्दे को उस वक्त गंभीरता से लिया जब संस्था की सदस्य प्रत्युशा बैनर्जी ने 2015 को आत्महत्या कर ली थी. तब से लेकर अब तक संस्था की केयर कमिटी और आउटरीच कमिटी ने कई सेमिनारों और काउंसिंग सत्रों का आयोजन किया है, जिसके तहत मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य व योग के सत्रों व साथ ही तनाव, डिप्रेशन, आत्महत्या से बचाव जैसे उपायों पर अमल किया जाता रहा है.”

वे कहते हैं, “हमने यौन उत्पीड़न और #MeToo मूवमेंट में भी अग्रणी भूमिका निभाई थी. हमने इसपर एक वेबिनार भी किया था. ऐसे ही एक वेबिनारों का आयोजन हमने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मनोचिकित्सक अंजलि छाबड़िया के साथ भी किया है. हमने सोशल मीडिया पर कई सुइसाइड हेल्पलाइन और नंबर भी साझा किये हैं.” अमित कहते हैं कि CINTAA ऐसे बड़े फ़िल्म स्टूडियोज़, हितधारकों, ब्रॉडकास्टरों और कॉर्पोरेट कंपनियों को भी संपर्क करने की कोशिश कर रही है जो अपने CSR के तहत पैसों का योगदान दे सकते ताक़ि कलाकारों और तकनीशियनों के लिए एक 24/7  हेल्पलाइन स्थापित की जा सके.”

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ज़िंदगी हेल्पलाइन की संस्थापक अनुषा श्रीनिवासन कहती हैं, “अपने देश मानसिक बीमारी को कलंक समझा जाता है. कलाकारों को अमर शख़्सियतों के तौर पर देखा जाता है और डिप्रेशन और उत्कंठा को कुछ यूं समझा जाता है जैसे ये शब्द शब्दकोश में हैं कि नहीं. लेकिन उनकी ज़िंदगी व शोहरत संक्षिप्त होती है. वो दूसरों से मदद मांगने में भी असमर्थ होते हैं. गौरतलब है कि हाल के दिनों में दीपिका पा्दुकोण मानसिक बीमारी को लेकर काफ़ी सक्रिय रही हैं और लोगों के सामने वो एक मिसाल के तौर पर उभरी हैं और उन्होंने दूसरों की राह को और आसान बना दिया है. ऐसे में ज़िंदगी हेल्पलाइन एक अहम बदलाव लाने में कारगर साबित होगा.”

वे कहती हैं, “इस ग्रुप में जानकार और हमदर्द होंगे और मानसिक परेशानी से जूझ रहे लोगों की अच्छी देखभाल की जाएगी और उन्हें समय पर सहूलियतें मुहैया कराई जाएंगी. एक-दूसरे की मदद करना ही हमारा उद्देश्य है.

मनोचिकित्सक व साइकोथेरेपिस्ट, अमेरिका में REBT की एसोसिएट फेलो व सुपरवाइजर और ज़िंदगी हेल्पलाइन की मुख्य संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव आते हैं. कोरोना महामारी के पहले भी यही स्थिति थी. अब मनोचिकित्सकों का दखल देना ज़रूरी हो गया है. एक बार जब आपकी फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप नाम, शोहरत, पैसा बटोरने में व्यस्त हो जाते हो, लोगों से घिरे रहते हो और प्रमोशन के लिए लगातार यात्राएं करनी पड़ती हैं. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले औए बाद में भी एक ख़ास किस्म की चिंता सताती रहती है. लोगों के आलोचनात्मक रवैये से जूझना भी एक अहम काम होता है. कोई भी शख्स ऐसी टिप्पणियों को निजी तौर पर ले सकता है. ऐसे में उसमें नकार दिये जाने की भावना घर कर जाती है और अगर प्रोजेक्ट सफ़ल साबित न हो, तो उन्हें ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक होने लगाता है.”

सिधवानी का कहना है कि हम में से  अधिकांश लोग अपने काम के आधार पर ख़ुद को परिभाषित करते हैं, लेकि‍न कलाकारों को दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कलाकार ख़ुद  भी असहाय और बेकार मानने लगते हैं.”

वो कहती हैं, “एक्टिंग की दुनिया सामाजिक स्वीकृति और प्रतिद्वंद्वीता के इर्द-गिर्द घूमती है. कामयाब बनने की दौड़ में अथवा एक किरदार निभाने के लिए एक कलाकार अक्सर ख़ुद को भुला बैठते हैं. आप क्या हो और पर्दे पर आप कौन सा रोल निभाते हो, उसके बीच एक संकरी सी रेखा होती है.

चूंकि इस इंडस्ट्री में काम‌ मिलने में एक प्रकार की अनिश्चितता है, ऐसे में लोग इसी अनिश्चितता और अपनी ज़िंदगी को असुरक्षित ढंग से जीने पर मजबूर हो जाते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कलाकारों को अपनी लाइफ़स्टाइल मेनटेन करने में काफी खर्च करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पीआर के द्वारा अपनी सामाजिक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी काफी खर्च करना पड़ता है. अक्सर इस सबका दबाव कलाकारों की बेचैनी का सबब सा बन जाता है.”

डिप्रेशन से जूझ रहे छात्र और लेखक वेदांत गिल कहते हैं कि खुदकुशी और मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की सोच अक्सर बहुत अटपटी सी होती है. वो कहते हैं, “लोगों को लगता है कि हम अपने काम से पलड़ा झाड़ रहे हैं और हमारा बर्ताव सही नहीं है. कई बार तो वो धर्म और भगवान को भी बीच में ले आते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कतई नहीं है कि डिप्रेशन का शिकार हर व्यक्ति खुदकुशी करना चाहता है और अगर कोई ऐसा करता भी है तो अपने दर्द के खात्मे के लिए करता है, न कि मौत को गले लगाने के लिए. ऐसे में सही समय पर कोई सहारा देनावाला, काउंसिलिंग करनेवाला और नियमित तौर पर ज़रूरी दवाइयां देनेवाला मिल जाये, तो यकीनन उसे इससे काफ़ी मदद मिलेगी. किसी व्यक्ति के लिए कमाना ना सिर्फ़ जीने का साधन होता है, बल्कि अपने होने का भी एहसास कराता है. थेरेपी में काफ़ी वक्त लगता है और ऐसे में धैर्य रखना काफ़ी अहम हो जाता है. इस नाज़ुक घड़ी में अभिभावकों, परिवार व समाज की सहायता किया जाना आवश्यक हो जाता है. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उसे जज किये बग़ैर उसकी बातों को सुने. मानसिक रूप से परेशान शख्स इससे अधिक कुछ नहीं चाहता है.”

सिधवानी इसका बेहद आसान तरीका बताते हुए कहती हैं, “किसी तरह के नुकसान और अकेलापन‌ भी इस सफ़र‌ के अहम पड़ाव होते हैं. कई दफ़ा किसी शख्स पर नजरें गढ़ी होती हैं, तो कभी उसे अकेले छोड़ दिया जाता है और उनके पास कोई काम भी नहीं होता है. हर शख्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अकेले होने का मतलब अकेलापन नहीं है और ऐसे में अन्य तरह के शौक का विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने परिवार के सदस्यों और पुराने दोस्तों से बेहतर ढंग से जुड़ा होना बेहद ज़रूरी होता है. इस बात को भी अच्छी तरह से समझना जरूरी है कि शो बिज़नेस के अलावा भी एक असली दुनिया है.”

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CINTAA के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, “CINTAA इस तरह की पहल के लिए तैयार है,‌ लेकिन इस काम के लिए पूरी इंडस्ट्री को साथ आना चाहिए, इसका मिलकर मुक़ाबला करना चाहिए और सभी की भलाई के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण कर‌ना चाहिए. हम ठीक उसी तरह से काम करना चाहते हैं जैसे कि यूके और अमेरिका में हमारे सहयोगी काम कर रहे हैं. यूके में इक्विटी यूके और अमेरिका SAG-AFTRA US नाम से हेल्पलाइन मौजूद है, जो उनके सदस्यों के लिए काफ़ी लाभकारी है. उम्मीद है कि इस तरह की हेल्पलाइन की स्थापना में हम स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन और FWICE से जल्द गठजोड़ करेंगे. हम प्रोड्यूसर्स काउंसिल और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फ़ोरम के सदस्यों से भी लगातार इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं ताक़ि भविष्य में कोई भी इस तरह का भयावह कदम न उठाए.

मनोचिकित्सक व साइकोथेरेपिस्ट, अमेरिका में REBT की एसोसिएट फेलो व सुपरवाइजर और ज़िंदगी हेल्पलाइन की मुख्य संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव आते हैं. कोरोना महामारी के पहले भी यही स्थिति थी. अब मनोचिकित्सकों का दखल देना ज़रूरी हो गया है. एक बार जब आपकी फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप नाम, शोहरत, पैसा बटोरने में व्यस्त हो जाते हो, लोगों से घिरे रहते हो और प्रमोशन के लिए लगातार यात्राएं करनी पड़ती हैं. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले औए बाद में भी एक ख़ास किस्म की चिंता सताती रहती है. लोगों के आलोचनात्मक रवैये से जूझना भी एक अहम काम होता है. कोई भी शख्स ऐसी टिप्पणियों को निजी तौर पर ले सकता है. ऐसे में उसमें नकार दिये जाने की भावना घर कर जाती है और अगर प्रोजेक्ट सफ़ल साबित न हो, तो उन्हें ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक होने लगाता है.”

सिधवानी का कहना है कि हममें अधिकांश लोग अपने काम के आधार पर ख़ुद को परिभाषित करते हैं, लेकिन कलाकारों को दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कलाकार ख़ुद  भी असहाय और बेकार मानने लगते हैं.”

वो कहती हैं, “एक्टिंग की दुनिया सामाजिक स्वीकृति और प्रतिद्वंद्वी के इर्द-गिर्द घूमती है. कामयाब बनने की हदौड़ में अथवा एक किरदार निभाने के लिए एक कलाकार अक्सर ख़ुद को खो देते हैं. आप क्या हो और पर्दे पर आप कौन सा रोल निभाते हो, उसके बीच एक पतली सी रेखा होती है.

चूंकि काम‌ मिलने में एक प्रकार की अनिश्चितता है, ऐसे में लोग इसी अनिश्चितता और अपनी ज़िंदगी को असुरक्षित ढंग से जीने पर मजबूर हो जाते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कलाकारों को अपनी लाईफ़स्टाइल मेनटेन करने में काफी खर्च करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पीआर के द्वारा अपनी सामाजिक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी काफी खर्च करना पड़ता है. अक्सर इस सबका दबाव कलाकारों की बेचैनी का सबब सा बन जाता है.”

डिप्रेशन से जूझ रहे छात्र और लेखक वेदांत गिल कहते हैं कि खुदकुशी और मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की सोच अक्सर बहुत अटपेट से होते हैं. वो कहते हैं, “लोगों को लगता है कि हम अपने काम से पलड़ा झाड़ रहे हैं और हमारा बर्ताव सही नहीं है. क ई बार तो वो धर्म और भगवान को भी बीच में ले आते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कतई नहीं है कि डिप्रेशन का शिकार हर व्यक्ति खुदकुशी करना चाहता है और अगर कोई ऐसा करता भी है तो अपने दर्द के खात्मे के लिए करता है, न कि मौत को गले लगाने के लिए. ऐसे में सही समय पर कोई सहारा देनावाला, काउंसिलिंग करनेवाला और नियमित तौर पर ज़रूरी दवाइयां देनेवाला मिल जाये, तो यकीनन उसे इससे काफ़ी मदद मिलेगी. किसी व्यक्ति के लिए कमाना ना सिर्फ़ जीने का साधन होता है, बल्कि अपने होने का भी एहसास कराता है. थेरेपी में काफ़ी वक्त लगता है और ऐसे में धैर्य रखना काफ़ी अहम हो जाता है. इस नाज़ुक घड़ी में अभिभावकों, परिवार व समाज की सहायता किया जाना आवश्यक हो जाता है. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उसे जज किये बग़ैर उसकी बातों को सुने. मानसिक रूप से परेशान शख्स इससे अधिक कुछ नहीं चाहता है.”

सिधवानी इसका बेहद आसान तरीका बताते हुए कहती हैं, “किसी तरह के नुकसान और अकेलापन‌ भी इस सफ़र‌ के अहम पड़ाव होते हैं. क ई दफ़ा किसी शख्स पर नजरें गढ़ी होती हैं, तो कभी उसे अकेले छोड़ दिया जाता है और उनके पास कोई काम भी नहीं होता है. हर शख्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अकेले होने का मतलब अकेलापन नहीं है और ऐसे में अन्य तरह के शौक का विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने परिवार के सदस्यों और पुराने दोस्तों से बेहतर ढंग से जुड़ा होना बेहद ज़रूरी होता है. इस बात को भी अच्छी तरह से समझना जरूरी है कि शो बिज़नेस के अलावा भी एक असली दुनिया है.”

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CINTAA के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, “CINTAA इस तरह के बहल के लिए तैयार है,‌ लेकिन इस काम के लिए पूरी इंडस्ट्री को साथ आना चाहिए, इसका मुक़ाबला करना चाहिए और सभी की भलाई के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण कर‌ना चाहिए. हम ठीक उसी तरह से काम करना चाहते हैं यूके और अमेरिका में हमारे सहयोगी काम कर रहे हैं. यूके में इक्विटी यूके और अमेरिका SAG-AFTRA US नाम से हेल्पलाइन मौजूद है, जो उनके सदस्यों के लिए काफ़ी लाभकारी है. उम्मीद है कि इस तरह की हेल्पलाइन की स्थापना में हम स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन और FWICE से जल्द गठजोड़ करेंगे. हम प्रोड्यूसर्स काउंसिल और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फ़ोरम के सदस्यों से भी लगातार इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं ताक़ि भविष्य में कोई भी इस तरह का भयावह कदम न उठाए.

 

फिल्म निर्माण को कितना हौसला दे पायेगा कोरोना कवर

नुकसान को अगर अनुमानित कमायी के साथ जोड़ दें तो यह और भी बहुत ज्यादा हो जाता है. इसीलिए बीमा उद्योग कोरोना कवर को लेकर आया है. मगर सवाल है क्या कोरोना कवर से बौलीवुड की समस्या खत्म हो जायेगी? हालांकि अनुमान के किसी नुकसान को तकनीकी रूप से नुकसान कहना सही नहीं होगा. लेकिन इस साल जनवरी से लेकर 30 जून 2020 तक बौलीवुड की उन तमाम फिल्मों की लागत को अगर उनके द्वारा की गई कमायी के हिसाब से देखें जो फिल्में इस दौरान रिलीज हुई हैं तो पता चलता है कि 95 फीसदी फिल्में अपनी लागत नहीं निकाल पायीं.

इस तरह देखा जाए तो साल 2020 की पहली छमाही में बौलीवुड को करीब 2000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. चूंकि अब कोई भी दावे से यह नहीं कह सकता कि कोरोना का कहर फिल्म उद्योग पर कब तक टूटेगा, इसलिए अब फिल्में कोरोना के जोखिम को ध्यान में रखकर ही सोची, बनायी और रिलीज की जाएंगी. बीमा उद्योग ने भी इस जोखिम में हिस्सेदारी के लिए या कहें कारोबार के लिए कमर कस ली है और अतुल कस्बेकर की फिल्म ‘लूप लपेटा’ पहली वह फिल्म हो गई है, जिसे कोरोना कवर मिला है. सवाल है क्या बीमा उद्योग द्वारा लाये गये कोरोना कवर के बाद बौलीवुड फिल्म बनाने, बेचने और वितरित करने के मामले में बेफिक्र हो जायेगा?

तापसी पन्नु, ताहिर राज भसीन, के अभिनय से सजी जर्मन फिल्म ‘रन लोला रन’ की आधिकारिक हिंदी रीमेक ‘लूप लपेटा’ पहली वह फिल्म बन गई है, जिसे कोरोना के इस कहर के दौर में बीमा कवर मिला है. यूं तो बाजार में कोरोना महज एक तबाही का नाम ही नहीं है बल्कि तमाम लोगों ने इसमें अच्छा खासा बिजनेस भी तलाश लिया है और इस मामले में मेडिकल के बाद सबसे आगे बीमा क्षेत्र है. पिछले कुछ महीनों में जब से कोरोना का विश्वव्यापी कहर लगातार खतरनाक होता जा रहा है, बीमा उद्योग इसे एक बहुत बड़े अवसर के रूप में देख रहा है और पिछले कुछ महीनों में सैकड़ों किस्म के कोरोना कवर बाजार में आ गये हैं.

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देश में किसी भी मौके को सबसे पहले भुनाने में माहिर रिलायंस कंपनी ने इस साल अप्रैल के महीने में ही कोरोना की दहशत को एक कारोबार में बदल दिया था, जब रिलायंस जनरल इंश्योरेंस ने महज 149 रुपये में कोविड-19 सुरक्षा बीमा योजना लांच की थी. लेकिन एक अकेली रिलांयस ही नहीं बल्कि कई दूसरी इंश्योरेंस कंपनियों ने भी जल्द ही इस बाजार में धावा बोला. इन तमाम बीमा कंपनियों ने कोरोना पाॅजीटिव से लेकर क्वारंटाइन तक को अपने कवर में शामिल किया था. लेकिन सिनेमा की इसमें बात नहीं हुई थी. शायद शुरु में यह समझा गया हो कि कोरोना महज एक दो महीने का साथी है, इसलिए बड़े मामलों के लिए या बीमारी से इतर अन्य मामलों के लिए कोरोना कवर नहीं आया था. लेकिन अब बकायदा फिल्म जैसे रिस्की बिजनेस को भी कवर देने के लिए कोविड-19 बीमा योजना आ चुकी है.

फिल्म ‘लूप लपेटा’ को कितने में यह पाॅलिसी मिली है इसका खुलासा तो नहीं किया गया, लेकिन यह साफ तौरपर बताया गया है कि 29 जनवरी 2021 को रिलीज होने जा रही यह फिल्म पूरी तरह से कोविड इंश्योर्ड है, जिसका मतलब यह है कि अगर फिल्म क्रू का कोई सदस्य बीमार पड़ता है तो न सिर्फ उसका बल्कि उसके कारण क्वारंटीन हुए कलाकारों से फिल्म की शूटिंग को जो नुकसान होगा, उसकी भरपायी बीमा कंपनी द्वारा की जायेगी. कोविड-19 इंश्योरेंस के बाद फिल्म प्रोड्यूसर शूटिंग के दौरान हुए नुकसान को रिकवर कर सकेगा. गौरतलब है कि तापसी पन्नु की इस फिल्म की, इसी साल अप्रैल और मई के माह में मुंबई और गोवा में शूटिंग होनी थी. लेकिन पहले लाॅकडाउन और फिर महामारी के बढ़ने के कारण फिल्म की आउट डोर शूटिंग्स की डेट बरबाद हो गईं, फिल्म की शूटिंग नहीं हो सकी. अब फिल्म के प्रोडयूसर अतुल कस्बेकर को नये सिरे से शूटिंग के लिए प्लानिंग करनी होगी, जो कि वह अक्टूबर से करने जा रहे हैं.

हालांकि फिल्म उद्योग हमेशा से बेहद संवेदनशील बीमा सब्जेक्ट रहा है. तमाम बड़ी बीमा कंपनियां फिल्म इंडस्ट्री को बीमा करने से हिचकिचाती रही हैं. जबकि भारत में फिल्मों की शूटिंग आमतौर पर बहुत सामान्य दिशा-निर्देशों के चलते सम्पन्न होती है. ज्यादातर भारतीय फिल्मों में ऐसे खतरनाक स्टंट भी हीरो हीरोइनों द्वारा नहीं किये जाते, जिससे उनके घायल होने की कोई बड़ी समस्या सामने आये. बावजूद इसके फिल्में हमेशा से जोखिम का विषय रही हैं और चाहकर भी बीमा कंपनियां इनकी तरफ ज्यादा आकर्षित नहीं रहीं. लेकिन कोविड-19 के बाद दुनिया काफी हद तक बदल गई है और नये सिरे से सोचा जाने लगा है. इस नयी सोच के चलते अब फिल्मों की शूटिंग से लेकर उसकी रिलीज तक के भी बीमा कवर होने लगे हैं.

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एक तरह से ये अच्छा चलन है. क्योंकि इससे फिल्म इंडस्ट्री में थोड़ा स्थायित्व का भाव आयेगा. अभी तमाम सफलता और कमायी भी भगवान भरोसे होती है. ठीक इसी तरह शूटिंग के दौरान के तमाम जोखिम और शूटिंग से होने वाली देरी भी भगवान भरोसे होती है. हालांकि कुछ फिल्में अभी भी शूटिंग पर जाते समय कवर लेती हैं, लेकिन अभी यह चलन का विषय नहीं बना था. लेकिन कोरोना के कहर ने जिस तरीके से शूटिंग के चक्के को पूरी तरह से जाम कर दिया है, उसके कारण अब फिल्मों के लिए बीमा कवर जरूरी सा हो गया है. गौरतलब है कि भारत में फिल्म एक बड़ा उद्योग है. इसलिए इसे धीरे धीरे व्यवस्थित होना ही चाहिए. अगर कोविड-19 के बहाने फिल्मों को कवर देने का यह सिलसिला अच्छी तरह से आगे बढ़ता है तो वो दिन दूर नहीं जब फिल्म बनाने का कोई भी साहस बहुत किस्म के बीमा कवर से सुरक्षित होगा.

इससे एक तरफ जहां निर्माता निर्देशक का तनाव कम होगा, वहीं दूसरी तरफ इस गतिविधि के आम होने यानी फिल्मों के बीमा कवर के आम होने के बाद यह कारपोरेट एक्टीविटी में बदल जायेगा, तब फिल्म निर्माण बिजनेस के नजरिये से कहीं ज्यादा सुरक्षित और ज्यादा लाॅजिकल रहेगा. जब एक बार फिल्म किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित हो जायेगी तो जाहिर है, उसमें काम करने वाले भी पहली प्राथमिकता से काम करेंगे. क्योंकि उन्हें पता होगा कि फिल्म पूरी तरह से नहीं डूबेगी. इस चलन के बाद बहुत बड़े बजट की फिल्में हतोत्साहित होंगी. अगर छोटे बजट की फिल्मों ने धड़ल्ले से इंश्योरेंस कवर हासिल किया तो उनके बनने और चलने में काफी हद तक स्थायित्व आ जायेगा. नतीजतन फिल्म के बाजार में नयी तरह का कंपीटिशन सामने आयेगा. अभी बड़े फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों के लिए व्यक्तिगत रूप से डिस्ट्रीब्यूटर को विश्वास देकर रिलीज करा लेते हैं. बाद में ऐस संभव नहीं रहेगा.

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लॉकडाउन में आर्थिक तंगी ले रही जान

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में ऐसे पैर पसारे कि हर किसी को जमीन पर ला पटका है.  दो महीने की ताला बंदी में लाखों लोग बेरोजगार हो गए.  कई आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं तो कुछ आत्महत्या के विचार आने जैसी मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं.

लॉकडाउन के बीच खुदखुशी करने वालों का आंकड़ा बढ़ने लगा है.  इसमें युवा, अधेड़ उम्र के लोग, मजदूर से लेकर मनोरंजन इंडस्ट्री से जुड़े लोग भी शामिल हैं. लॉकडाउन के कारण टीवी और बॉलीवुड के कलाकारों और टेक्निशियन को भी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है.

कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन की वजह से टीवी एक्टर मनमीत ग्रेवाल की खुदखुशी ने तो पूरे टीवी इंडस्ट्री के लोगों को चौंका दिया है.  तमाम एक्टर उनकी खुदखुशी से सकते में हैं.  देश में लॉकडाउन के कारण सारे काम-काज बंद हो गए, टीवी सीरियल्स की शूटिंग बंद हो गई ऐसे में एक्टर्स  पैसे की तंगी का समाना करने लगे हैं.  पैसे की तंगी की वजह से ही मनमीत ने इतना बड़ा कदम उठाया.  मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मनमीत पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे और जब हालात और बिगड़े तो वे खुद को संभाल नहीं सके और अपनी जान दे दी.

वैसे टीवी इंडस्ट्री के कई कलाकार आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं.  सुप्रिया बनर्जी नाम की एक टीवी एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर कहा कि कोरोना काल में हमें इतनी दिक्कत है कि लग रहा है हम कुछ कर ना लें, एक साल पहले एक सीरियल में काम किया था जिसके लिए चेक मिला वो बाउंस हो गया, सरकार से मैं अपील कर रही हूँ कि प्लीज हमारी सुनी जाए.

नागिन 4 की फेम एक्ट्रेस सायंतनी घोष का कहना है कि वह आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं.  उन्हें घर चलाने में दिक्कत हो रही है.

देश भर में चल रहे लॉकडाउन की वजह से तमाम फिल्मों और टीवी सीरियल्स की शूटिंग बंद है, जिस वजह से सबके सामने आर्थिक संकट आ गया है.  जो बड़े कलाकार हैं उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन छोटे कलाकारों के लिए ये लॉकडाउन बहुत मुश्किल है.

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हाल ही में बॉलीवुड बैकअप डांसर कुरनालिया लवेट्ट, जिन्होंने शारुख खान, टाइगर श्रोफ, करीना कपूर, और कियारा आडवाणी जैसे सितारों के साथ काम किया है, उन्होंने खुलासा किया कि वह लॉकडाउन मे आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं.  उनके पास घर किराया भरने के भी पैसे नहीं हैं.  कुरनालिया ने ‘स्टूडेंस ऑफ द ईयर, गुड न्यूज, बाजीराव मस्तानी और एबीसीडी 2’ जैसी फिल्मों में बैकअप डांसर के तौर पर काम किया है.  कुरनालिया ने बताया कि मेरे माता-पिता को मुझसे कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि वह जानते हैं कि मेरे पास कोई काम नहीं है.  लेकिन मैं उनके बुढ़ापे में उनकी मदद नहीं कर पाने के लिए बहुत भयानक महसूस कर रही हूँ. कुरनालिया का कहना है कि हम तीन महीने से बेरोजगार हैं.  बॉलीवुड डांसर एसोसिएशन में करीब 800 मेंबर्स हैं लेकिन उनमें केवल 100 लोगों को ही राशन मिला.  मुझे नहीं मिला.  अमिताभ बच्चन ने हमें 1500 रुपये का राशन कूपन मुहैया करवाया था.  सलमान खान ने भी अकाउंट में 3, 000 रुपये भेजे थे.  हम उनके शुक्रगुजार हैं.

लॉकडाउन की वजह से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री पर भी ताला लग गया है.  आर्थिक परेशानी उनके लिए भी कम नहीं है जिनके पास पहले से ही काम नहीं था और जो डेली शो पर निर्भर थे.  काफी समय से चल रहे इस लॉकडाउन ने कई टेलीविज़न सितारों को चिंचित कर दिया है.  वे सोच रहे हैं कि यह लॉकडाउन खत्म हो और वे दोबारा से अपने काम पर लौट सकें.

टेलीविज़न शोज ‘भाभीजी घर पर हैं’ और ‘हैपू की उल्टन पल्टन’ के मशहूर प्रोड्यूशर बिनेफर कोहली का मानना है कि एक्टर्स और टेक्निशियन के जो पहले के पैसे हैं, जिसके लिए उन्होंने काम किया है वह पैसे उनको दे देना चाहिए.  लेकिन साथ में यह भी कहते हैं कि प्रोड्यूशर पर भी काफी बोझ है, लॉकडाउन में शोज बंद चल रहे हैंजिसके वजह से प्रोड्यूसर्स को पैसे देने में परेशानी हो रही है.  टेलीविज़न चैनल्स लॉकडाउन के चलते पुराने शोज को टेलिकास्ट कर रहे हैं.  चैनल्स को एड्स नहीं मिल रहे हैं.  ऐसे में चैनल कैसे पैसे कमाएंगे और कहाँ से देंगे.

टेलीविज़न अभिनेता जान खान ने पीटीआई-भाषा से कहा,‘मैं हम सभी के लिए बहुत डरा हुआ हूँ.  अपने और अपने साथियों के लिए उनका यह डर ग्लैमर इंडस्ट्री की कड़वी सच्चाई उजागर करता है.  उनकी इस चिंता से कई अभिनेताओं ने सहमति जताई.  टीवी सीरियलों को चलाने के लिए इन कलाकारों को दिन में 12-15 घंटे काम करना पड़ता है.

मुंबई जगत में 90 दिन में भुगतान का नियम हमेशा से कठिन रहा है लेकिन 25 मार्च से चले आ रहे इस लॉकडाउन के कारण बिना आमदनी के मुंबई जैसे महंगे शहर में किश्तें, किराया, भोजन आदि के खर्चे उठाना नामुमकिन सा हो गया है.  इन कलाकारों की चिंता तब बढ़ गई टीवी कलाकार मनमीत ग्रेवाल ने पाने मुंबई स्थित घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.

‘Crime Patro’lअभिनेत्री प्रेक्षा मेहता ने भी इंदौर अपने घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.  उनके पिता रवीन्द्र चौधरी के अनुसार, वह काफी परेशान चल रही थी.  उसे लगने लगा था कि कोरोना की वजह से अब मुंबई में काम मिलना मुश्किल हो जाएगा.  वह अपने कैरियर को लेकर बहुत परेशान थी.  प्रेक्षा मेहता 25 साल की थी.  उसके पास से पुलिस को एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ.  जिसमें लिखा था कि ‘मेरे टूटे हुए सपनों ने मेरे कोन्फ़िडेंस का दम तोड़ दिया है.  मैं मरे हुए सपनों के साथ नहीं जी सकती.  इन निगेटिविटी के साथ रहना मुश्किल है.  पिछले एक साल से मैंने बहुत कोशिश की, अब थक गई हूँ’ प्रेक्षा पिछले तीन सालों से मुंबई में काम कर रही थी.  उसे ऐसा लग रहा था कि लॉकडाउन खुलने के बाद काम नहीं मिल पाएगा.  बताया जा रहा है कि इसी डिप्रेशन में आकर उसने यह कदम उठाया.

लॉकडाउन की वजह से सिर्फ मनोरंजन जगत पर ही मुसीबतों का पहाड़ नहीं टूट पड़ा है, बल्कि और लोगों को भी पैसे और अपने आने वाले कल की चिंता सता रही है. जो झेल पा रहे हैं झेल रहे हैं, जो नहीं झेल पा रहे हैं अपनी जान खत्म कर लेते हैं.

सिर्फ मई माह के 25 दिनों में ही 12 लोगों ने खुदखुशी कर ली है.  गौर करें, तो हर दूसरे दिन एक व्यक्ति जान दे रहा है.  एक बीटेक स्टूडेंट ने इसलिए जान दे दी क्योंकि लॉकडाउन के कारण वह अपना पेपर नहीं दे पाया.  दो बच्चे के पिता इसलिए पंखे से झूल गया,क्योंकि वह आर्थिक तंगी से परेशान था.  एक क्लीनर ने इसलिए खुद को खत्म कर लिया, क्योंकि लॉकडाउन में उसका काम ठप हो गया. ऐसे कितने ही लोग है, जो लॉकडाउन में काम ठप हो जाने के कारण और आर्थिक परेशानी के कारण खुद को खत्म कर लिया.

राजधानी हैदराबाद के जेडिमेतला इलाके में एक माँ अपने 2 महीने के बच्चे को 22 हजार में बेचने का फैसला कर लिया.  हालांकि, पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया, लेकिन आर्थिक तंगी ऐसी की एक माँ अपने ही बच्चे को बेचने को मजबूर हो गई. मनोचिकित्सक मानते हैं कि कर्फ़्यू के बीच आर्थिक मंदहाली और आने वाले समय में रोजगार के सीमित साधनों का डर इसका मुख्य कारण है.

कोरोना की पहेली भी अबूझ है.  हार-थक कर चिकित्सा विज्ञानी रोग प्रतिरक्षा यानि इम्यूनिटी के नए रहस्य ढूँढने में लग गए.  सारी दुनिया कोविद 19 का टीका खोजने में लगी है.  आम आदमी को समझ में आने लगा कि ज्यादा चिंता की बात नहीं है क्योंकि मानव के पास प्रकृति के दी हुई एक प्रतिरक्षा प्रणाली है जो उसे कोरोना से बचा लेगी. हालांकि, यह पहले से ही पता था कि संक्रमन रोगों से बचाव के लिए मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होना जरूरी है.  लेकिन फिर भी इस कोरोना से बचन के लिए लॉकडाउन पर लॉकडाउन बढ़ता चला गया और नतीजा आर्थिक मंदी, बेरोजगारी बढ़ती चली गई.  इससे पता चलता है कि जीवन को बचाने के लिए जितनी जरूरत शारीरिक इम्यूनिटी की है उतनी ही आर्थिक इम्यूनिटी भी जरूरी है.  पूरी दुनिया इस समय लॉकडाउन से उपजी प्राणघातक मंदी की चपेट में है. वे विकसित देश जो इतने अमीर हैं कि अपने नागरिकों को दो चार महीने बैठाकर भी खिला सकते हैं, वे तक भयावह अथिक मंदी और बेरोजगारी से भयभीत हैं और वे किसी तरह लॉकडाउन से पीछा छुड़ाने की जुगत में हैं.

जोखिम कहाँ नहीं होता. लेकिन कोरोना से बचाने के लिए लॉकडाउन भी जोखिमभरा ही साबित हुआ.

देश में विभिन्न समूहों-सामाजिक, आय, आयु, शिक्षा,धर्म और जेंडर के 62.5% लोगों ने कहा कि उनके पास राशन, दवा आदि या इन जरूरी चीजों के लिए धन तीन हफ्ते से कम समय के लिए ही है. ‘आईएएनएस सी-वोटर कोविड ट्रैकर्स ऑफ पैनिक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है.

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बस कुछ ही दिन में लॉकडाउन 4.0 की अवधि खत्म होने वाली है. लेकिन अगर आगे भी लॉकडाउन बढ़ा तो फिर क्या होगा, यह ज्यादा चिंता करने वाली बात है। क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि जिन देशों में कोरोना के मामले घट रहे हैं उन्हें ज्यादा निश्चिंत होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि डबल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि जिन देशों में संक्रमन के मामले में कमी आ रही है, वहाँ अचानक मामले बढ़ भी सकते हैं. और कोरोना की दूसरी लहर पहली से ज्यादा तेज और खतरनाक साबित होगी.

झील में मिली ‘इंडियाज गौट टैलेंट 7’ के पोस्ट प्रौड्यूसर की डेड बौडी

कलर्स के फेमस शो ‘इंडियाज गौट टैलेंट 7’ के सीनियर पोस्ट प्रोड्यूसर रह चुके सोहन चौहान की डेड बौडी रविवार को मुंबई के आरे कौलोनी में रौयल पाम्स सोसाइटी के एक तालाब में मिली. जिसके बाद टीवी इंडस्ट्री में सनसनी फैल गई.

झील में मिली बौडी

खबर के अनुसार, मुंबई के आरे कौलोनी में जब रविवार सुबह करीब 7.30 बजे उनका शव झील में तैरते हुआ दिखा तो स्थानीय लोगों ने पुलिस को संपर्क किया. इसके बाद शव को बाहर निकला गया और शव की पहचान सोहन चौहान के रूप में हुई.

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सबूत न मिलने पर पुलिस ने बताया सुसाइड

मिली जानकारी के अनुसार, सोहन चौहान की बौडी रविवार को बरामद हुई थी. पुलिस ने छानबीन के बाद आगे की करवाई करते हुए शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. वहीं कोई सबूत न मिलने के कारण पुलिस ने सोहन की मौत को फिलहाल आत्महत्या बताया है.

आखिरी बार सोहन को मेड ने देखा था…

सोहन चौहान मुंबई में अपने घर पर अकेले रह रहे थे. जबकि उनकी पत्नी इस समय दिल्ली में थीं. वहीं कहा जा रहा है कि सोहन चौहान को आखिरी बार उनकी मेड ने देखा था. वो शनिवार शाम सोहन चौहान के घर काम करने आई थी.

सोशल मीडिया पर 13 जून तक एक्टिव थे सोहन

बता दें, सोशल मीडिया पर सोहन चौहान 13 जून तक एक्‍टिव थे. अगर आप उनका सोशल मीडिया पेज देखें तो सोहन चौहान ने 9 जून को सा रे गा मा पा लिटिल चैंप्स के फिनाले के बारे पोस्ट किया था. इसके बाद जब सोहन चौहान के भाई ने उस दौरान उनको संपर्क करना चाहा तो वह बात नही कर पाए.

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