रेटिंगः डेढ़ स्टार
निर्माताः रौनीस्क्रूवाला
निर्देषकः तेजस विजय देउस्कर
लेखकः संचित गुप्ता व प्रियदर्षी श्रीवास्तव
कलाकारः रकुलप्रीत सिंह,सुमित व्यास, राकेष बेदी,सतीष कौषिक,डौली अहलूवालिया, राजेष तेलंग,फिरोज चैधरी,
अवधिः एक घ्ंाटा 56 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5
बौलीवुड में भेड़चाल का भी दौर आता रहता है.जिसके चक्कर मंे फिल्मकार कभी कुछ नया नही सोचता.पर दावे जरुर करता है.अब ‘अजिंक्य’,‘प्रेमसूत्र’,‘बकेट लिस्ट’ जैसी मराठी फिल्मों के लेखक व निर्देषक तेजस देउस्कर पहली बार बतौर निर्देषक समाज में टैबू समझे जाने वाले कंडोम व स्कूली बच्चों को सेक्स षिक्षा देने की वकालत करने वाली फिल्म ‘‘छत्रीवाली’’ लेकर आए हैं,जो कि बीस जनवरी 23 से ओटीटी प्लेटफार्म, ‘जी 5 ’ पर स्ट्ीम हो रही है.उनका दावा है कि उन्होने एक नया सब्जेक्ट उठाने का साहस दिखाया है.जबकि हकीकत में वह कुछ भी नया नही परोस रहे हैं.
समाज में टैबू समझे जाने वाले कंडोम पर बनी 1977 में प्रदर्षित फिल्म ‘‘दूसरा आदमी’’ में नवविवाहित ऋषि कपूर को तथा 1986 में प्रदर्षित फिल्म ‘‘ अनुभव’’ में ने शेखर सुमन को दर्षक एक मेडिकल स्टोर के सामने खड़े और कंडोम खरीदने के लिए संघर्ष करते देख चुके हैं.इन दोनो फिल्मों में मेडिकल स्टोर वाला दोस्त नजर आया था,वह उनकी शर्मिंदगी में इजाफा नहीं करता था.लेकिन फिल्मकार तेजस देउस्कर नया परोसने के नाम पर अपनी फिल्म ‘छत्रीवाली’ मे मेडिकल स्टोर के मालिक मदन चाचा (राकेष बेदी ) कंडोम खरीदना बताते हुए कंडोम खरीदने आने वाले पुरूषों को अपनी पत्नियों के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए उकसाते हैं…क्या इसे जाजय कहा जाए? षायद फिल्मकार तेजस विजय देउस्कर को यह भी पता नही है कि आज हम 2023 मे जी रहे हैं,जहां स्कूली बच्चों के बैग में भी कंडोम मिल रहे हैं.
इतना ही नही कुछ दिन पहले ही अपारषक्ति खुराना की फिल्म ‘हेलमेट’,नुसरत भरूचा की फिल्म ‘जनहित में जारी’ के अलावा अविका गोर की फिल्म ‘‘कहानी रबर बैंड की’’ में कंडोम,सेक्स षिक्षा आदि की बातें की जा चुकी हैं,पर इन फिल्मों को दर्षकों ने नकार दिया था,क्योंकि यह फिल्में भी सही ढंग से नही बनी थी.
कहानीः
फिल्म ‘छत्रीवाली’ की कहानी के केंद्र मंे करनाल,हरियाणा की सान्या धींगरा (रकूल प्रीत सिंह ) हैं, जो कि अपनी मां धींगरा आंटी (डौली अहलूवालिया ) के साथ रह रही है.केमिस्ट्ी में महारत रखने वाली सान्या धींगरा,रतन लांबा (सतीष कौषिक) की कंडोम बनाने वाली कंपनी में नौकरी कर रही हैं.बस में सान्या की मुलाकात रिषि कालरा ( सुमित व्यास) से होती है.रिषि संस्कारी है.उसकी ‘कालरा पूजा भ्ंाडार’ नामक धार्मिक पूजा के सामनांे की विक्री करने वाली दुकान है.रिषि का बड़ा भाई राजन कालरा (राजेष तेलंग) एक कालेज में जीव विज्ञान के प्रोफेसर हैं,कड़क स्वभाव के चलते उनकी पत्नी निषि(प्राची शाह पंड्या) व बेटी मिनी(रीवा अरोड़ा) डरती है.रिषि के माता पिता भी है.पूरा धार्मिक व संस्कारी परिवार है.कंडोम का उपयोग करना गलत मानते हैं.करनाल षहर में मदन चाचा (राकेष बेदी ) की अपनी दवा की दुकान हैं,जो कि कंडोम को अष्लील मानते हैं.उनकी राय में कंडोम खरीदना अष्लील संस्कृति है.
सान्या धींगरा पहली मुलाकात मे ही रिषि कालरा को दिल दे बैठती है.सान्या,रिषि के परिवार से झूठ बोलती है कि वह मेहता छत्री कंपनी में नौकरी करती है.षादी के बाद सुहागरात में रिषि कंडोम का उपयोग करने से इंकार कर देता है.पर सान्या उसके मन से कंडोम के प्रति विष्वास जगाकर धीरे धीरे कंडोम का उपयोग करवाना षुरू कर देती है.फिर वह आस पड़ोस की महिलाओं को चोरी छिपे कंडोम का उपयेाग करने के बारे में बताती है.जब ढेर सारे मर्द मदन की दुकान पर कंडोम खरीदने जाते हैं,तो मदन चाचा सभी को हड़काते हंै कि वह लोग औरतो की बातांे में आकर अष्लीलता फैलाने वाला काम कर रहे हैं.इसी बीच एक अखबार में रतन लांबा की कंपनी का ही एक मुलाजिम सान्या की तस्वीर छपवा देता है कि वहह कंडोम कंपनी में काम करती है.उस अखबार की प्रति व कई पुरूषों के साथ मदन चाचा ,कालरा के घर पहुॅचकर खरी खोटी सुनाते हैं.तब राजन कालरा आदेष देते हैे कि सान्या नौकरी छोड़ दे.वह उसे षिक्षक की नौकरी दिलो देंगें.पर सान्या नौकरी छोड़ने की बजाय पति का घर छोड़ देती है.उसके बाद कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.अंततः सान्या नौकरी के साथ ही अपने परिवार का भी साथ पा ही जाती है.
लेखन व निर्देषनः
फिल्म की कहानी व पटकथा काफी कमजोर व सतही है,जिसके चलते कइ्र दृष्य जबरन ठॅंूसे हुए लगते हैं.फिल्म की गति भी काफी धीमी है.कमजोर पटकथा के चलते रकुल की सतही क्रांति का कोई असर नही पड़ता.तेजस देउस्कर ने फिल्म में कंडोम की फैक्टरी का दौरा तो करा दिया,पर ऐसा कुछ नहीं दिखाया,जिससे उपभोक्ताओं में घृणा पैदा न हो.सुस्त यौवन जिज्ञासा के बीच स्कूल में यौन शिक्षा का प्रचार करने के जो दृष्य रखे गए हैं,वह अज्ञानी इंसान द्वारा लिखे गए नजर आते हैं.सान्या और स्कूल के प्रिंसिपल के बीच यौन षिक्षा को लेकर पूरी बातचीत लेखक व निर्देषक की अज्ञानता को उजागर करती है.फिल्म इस बात पर कोई रोषनी नही डालती कि मेडिकल की दुकान का मालिक कंडोम बेचने व खरीदने के खिलाफ क्यो है? योनि स्वास्थ्य के बारे में जानना महत्वपूर्ण है और बच्चों को योनि स्वच्छता के बारे में जीवन की शुरुआत में ही सिखाया जाना बेहतर है.इस संदेष को भी यह फिल्म दर्षकों तक पहुॅचाने में असफल रहती है.जबकि फिल्म में रकूल प्रीत सिंह को एक दृष्य में स्कूली बच्चों को लड़के व लड़िकयों के अंगो,ओवरी व प्रजनन की जानकारी देते हुए दिखाया गया है.पर यह पूरा दृष्य बहुत ही बचकाना है.फिल्म में गर्भपात गोलियों और गर्भपात के दुः परिणामों के बारे में संवेदनषील तरीके से बात की गयी है.फिल्म के कुछ संवाद काफी घटिया है.बतौर निर्देषक तेजस देउस्कर प्रभावित नही कर पाते.फिल्म का गीत संगीत प्रभावहीन है.
अभिनयः
कंडोम कंपनी में नौकरी करने वाली सान्या के किरदार में रकुल प्रीत सिंह फिल्में खूबसूरत नजर आयी हैं.वह काॅमेडी दृष्यों में जमी हैं,मगर गंभीर दृष्यो में असफल रही है.संवाद अदायगी में कई जगह वह मात खा जाती हैं.उनकी बौडीलैगवेजभी संवादों से मात नही खाती.रिषि के किरदार में सुमित व्यास प्रभावित नहीं करते.उनके अभिनय में अब दोहराव ही नजर आता है. राजन उर्फ भाईजी के किरदार में राजेष तेलंग के किरदार को लेखक ने ठीक से गढ़ा ही नहीं,इसलिए वह कई जगह कन्फ्यूज नजर आते हैं.डौली अहलूवालिया की प्रतिभा को जाया किया गया है.