आज धृति की खुशी का कोई ठिकाना न था. घर पहुंच कर वह जल्द से जल्द अपनी मां को यह खुशखबरी सुना देना चाहती थी. आखिर कितने लंबे इंतजार के बाद और उस के अथक परिश्रम के कारण वह इसे प्राप्त करने में सफल हुई थी.
अपनी मां के चेहरे की उस चमक, उस खुशी को देखने के लिए वह बेताब हुए जा रही थी. उस ने मन ही मन सोचा बस, अब बहुत हो गया. वह अब और अपनी मम्मी को यहां अकेली इस नर्क में नहीं रहने देगी. वह उन्हें इस बार अवश्य अपने साथ ले जाएगी.
धृति को अमेरिका से आए हुए 2 महीने बीत चुके थे. उस ने आते ही अपनी मम्मी के वीजा के लिए अप्लाई कर दिया था. काफी भागदौड़ के बाद आज उसे अपनी मम्मी के लिए अमेरिका का वीजा मिल गया था.
उसे याद आता है कि कैसे उस के डाक्टर बनने पर उस की मम्मी का चेहरा खुशी से खिल उठा था और आज फिर से उसे अपनी मम्मी के चेहरे पर आई उस खुशी की चमक को देखने का मौका मिलेगा… हां, इसी दिन के लिए तो उस ने इतनी मेहनत की थी.
ये सब सोचते हुए उस के कदम जैसे ही घर के दरवाजे पर पड़े उस के कानों में किसी अजनबी के स्वर सुनाई दिए. अजनबी. नहीं, यह तो कोई जानापहचाना स्वर है… उस ने कहां सुनी थी यह आवाज?
घर का दरवाजा खुला हुआ था. कमरे में दाखिल होते ही जिस अजनबी शख्स पर उस की नजर पड़ी उस शख्स के चेहरे की धुंधली सी तसवीर उस के मस्तिष्क में कहीं खिंची हुई थी.
उस की मम्मी ड्राइंगरूम के एक कोने में चुपचाप गरदन झकाए खड़ी थी. वहीं सोफे पर एक तरफ उस के मामा और नानी बैठे हुए थे और वह व्यक्ति सामने के सोफे पर बैठा हुआ था. चेहरे पर वही चिर परिचित अकड़ लिए हुए…
कमरे के अंदर दाखिल होते ही धृति के कानों में नानी के ये शब्द सुनाई पड़े. वे उस की मम्मी को समझते हुए बड़े ही उपदेशात्मक स्वर में बोले जा रही थी, ‘‘पति पत्नी का संबंध जन्मजन्मांतर का होता है रत्ना… उसे इतनी आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता. आखिर विपिन बाबू सबकुछ भुला कर तुम्हें एक बार फिर से अपनाना चाहते हैं तो तुम्हारा भी यह दायित्व है कि तुम सबकुछ भुला कर उन्हें माफ कर दो…’’
नानी की ये बातें धृति के कानों में तीर की भांति चुभीं और वह गुस्से में तमतमा उठी और फिर क्रोधपूर्ण नजरों से नानी की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्यों नानी… आखिर क्यों… आखिर मम्मी को क्यों सबकुछ भूल कर इन्हें माफ कर देना चाहिए?’’
धृति का इस तरह बीच में बोल पड़ना उस की नानी को जरा भी नहीं भाया और वे अपनी आंखों के इशारे से धृति को चुप रहने का संकेत देते हुए बोलीं, ‘‘तुम बीच में मत बोलो… तुम में अभी इतनी समझ नहीं है… अरे, पति है यह इस का… पति की गलतियों को भुला कर आगे बढ़ने में ही इस की भलाई है…’’
मगर धृति का गुस्सा शांत नहीं हुआ बल्कि वह और भी चिढ़ गई, फिर अपनी नानी की बातों पर खीजते हुए बोली, ‘‘अरे वाह नानी… बचपन से तुम मम्मी को पत्थर के देवता का पूजना सिखाती रहीं और फिर उन की शादी के बाद पति को ही देवता बना कर पूजने की सीख देने लगीं… तुम्हारी इन्हीं सब सीख की वजह से पिता नाम के इस प्राणी ने मेरी मम्मी पर वर्षों जुल्म ढाए हैं,’’ धृति का क्रोध शांत नहीं हो रहा था.
उस की मम्मी इन सभी बातों से आहत सिर झकाए चुपचाप खड़ी थी. अपनी पीड़ा को छिपाने के लिए उस ने अपने होंठ दांत से काट लिए… उस की आंखों में आंसू थे.
धृति को यह बात बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रही थी कि इतने वर्षों बाद कोई उन की जिंदगी में अचानक आ धमकता है और अपना अधिकार मांग रहा है… उस के जेहन में बचपन की वह कड़वी यादें फिर से जीवंत होने लगी थीं…
उस के पिता द्वारा उस की मम्मी पर किए जाने वाले असंख्य जुल्म, उन पर होने वाले अत्याचारों को वह कैसे भुला सकती… उस का मन घृणा से भर उठा और फिर घृणा की दृष्टि से अपने पिता की ओर देखा.
तभी उस के कानों में उस के मामा के शब्द गूंज पड़े, ‘‘चुप करो… पिता है यह
तुम्हारा… थोड़ी तो तमीज के दायरे में रहो.’’
मगर प्रकाश की बातों ने धृति के मन में पिता के प्रति उस की नफरत को और भी भड़का दिया. वह गुस्से में बोली, ‘‘पिता… पिता होने की कौन सी जिम्मेदारी निभाई है इन्होंने जो आज अचानक पिता होने का अधिकार जताने आ गए? ये सिर्फ मेरे जन्म के कारण मात्र हैं इस से ज्यादा कुछ नहीं…’’
‘‘पढ़ाईलिखाई ने इस लड़की का दिमाग खराब कर दिया है… डाक्टर क्या बन गई बड़ों से बात करने की तमीज ही भूल गई…’’ प्रकाश ने अपनी भानजी धृति पर आंखें तरेरते हुए कहा.
‘‘बस यही सोच… इसी सोच की वजह से आप लोगों ने मम्मी की पढ़ाई छुड़वा कर इतनी कम उम्र में उन की शादी करा दी… अरे, आप लोगों ने यह तक नहीं देखा कि लड़का उम्र में इन से कितना बड़ा है… उस का स्वभाव कैसा है…’’
‘‘एक पढ़ेलिखे इंजीनियर लड़के से तेरी मां की शादी करवाई थी हम ने… समाज में इस से बड़ी पहचान और इस से बड़ा रुतबा भला क्या चाहिए था इसे… और इसे क्या किसी भी लड़की को और क्या चाहिए और फिर पढ़लिख कर क्या हासिल कर लेती… ज्यादा पढ़लिख कर कौन सी नौकरी करनी थी… आखिर घर ही तो संभालना था… लेकिन इस जिम्मेदारी को भी ठीक तरह से निभा न सकी यह,’’ प्रकाश ने गरजते हुए कहा.
भाई की बातें सुन कर रत्ना की आंखों से आंसू छलक पड़े. आखिर उस का क्या
कसूर था… किस बात के लिए उसे दोषी ठहराया जा रहा था? उस की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी, जिन में न जाने कितने वर्षों का दर्द… पीड़ा… अवहेलना, प्रताड़ना. जमा थी. जाने कैसीकैसी यातनाएं, कैसेकैसे नर्क का पानी जमा पड़ा था जो आज उस की आंखों से बहने लगा था. उस के मानसपटल पर अतीत की वे तमाम स्मृतियां 1-1 कर उभर आई थीं, जिन्हें वह भूले से भी याद नहीं करना चाहती थी… जिंदगी के जिस दुखद अध्याय को पीछे छोड़ वह किसी प्रकार आगे बढ़ पाई थी, उसे ही अब दोहराने की कोशिश की जा रही थी. जिस व्यक्ति ने इतने वर्षों से कभी उस का हाल तक जानना जरूरी नहीं समझ, उसे उस की बेटी पर अब अपना अधिकार चाहिए था…
आखिर ये सब अब किस लिए क्योंकि उस की बेटी अब योग्य बन गई है. तब यह व्यक्ति कहां था? इस व्यक्ति ने तो सालों पहले उसे और उस की बेटी को अकेली निसहाय छोड़ दिया था… दिल्ली से बनारस तक का सफर भूखीप्यासी ने अकेले ही तय… हाथ में 1 रुपए तक नहीं… सोचतेसोचते रत्ना का शरीर निशक्त हो गया. वह दीवार का सहारा ले कर वहीं जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई.
आज यहां तक पहुंचने में मांबेटी ने कौनकौन से दिन न देखे थे… कैसेकैसे कष्ट उन्होंने न सहे थे… उस की बेटी ने अपने परिश्रम, अपनी काबिलीयत के दम पर यह मुकाम हासिल किया था. उस के डाक्टर बनने के सपने को पूरा करने में उस ने भी तो जीतोड़ मेहनत की थी. छोटीमोटी नौकरी तक की.
जिंदगी के इन कठिन संघर्षों ने उस की बेटी को बहुत ही समझदार बना दिया था. वैसे तो धृति बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की थी, लेकिन जिस तरह आग में तपने के बाद ही सोने में निखार आता है वैसे ही जिंदगी के तमाम कष्टों ने, कठिनाइयों ने उसे बेहद समझदार और साहसी बना दिया था.
वर्षों पहले रत्ना और उस की बेटी को अकेली ट्रेन में बैठा कर, अभी आता हूं कह कर, विपिन वापस नहीं आया था. तब दिल्ली से किसी तरह अपनी 9 साल की बेटी के साथ भूखीप्यासी वह बनारस पहुंच तो गई थी, लेकिन आगे के सफर के लिए उस के पास पैसे तक नहीं थे. फिर भी वह किसी तरह अपनी ससुराल पहुंची थी, जहां उस के सासससुर ने भी उसे साथ रखने से मना कर दिया था और फौरन उसे उस की बेटी के साथ उस के मायके पहुंचा दिया गया.
रत्ना अपनी ससुराल वालों की आंखों में उसी वक्त से कांटों की तरह चुभ रही थी जिस वक्त उस ने बेटी को जन्म दिया था और अब उस के पति के द्वारा इस प्रकार से त्यागे जाने से उन लोगों ने भी अपना पल्ला झड़ लिया था.
रत्ना सहानुभूति और अपनापन की उम्मीद लगाए अपने मायके के दहलीज पर
खड़ी थी. अपनी कल्पनाओं में उस ने सोचा कि मां अभी आ कर उसे सीने से लगा लेगी. भाई प्यार से उस के सिर पर हाथ रखेगा, उस पर हुए जुल्म के लिए उस के पति और उस की ससुराल वालों से जवाब तलब करेगा, परंतु इस के ठीक विपरीत मां और भाई ने तब भी उसे ही दोषी करार दिया था. उस का कोई अपराध नहीं होते हुए भी वह उन के समक्ष एक अपराधी की भांति खड़ी थी और अपराध भी क्या… अपनी गृहस्थी ठीक से नहीं चला सकने का अपराध… अपने पति को खुश नहीं रख सकने का अपराध… और पति भी कैसा, जिसे रत्ना के बोलने, उठने, बैठने, हंसने तक पर आपत्ति थी… बेहद संकीर्ण मानसिकता का पति… रत्ना उस के सभी अत्याचार चुपचाप सहती रहती और फिर एक दिन उसे बेटी को जन्म देने का अपराधी घोषित कर उस का तिरस्कार कर दिया गया.
‘‘तुम्हें अपने पति एवं ससुराल वालों के साथ निभाना नहीं आया… जरूर तुम ने ही कुछ गलती की होगी… अरे, चार बातें सह ही लेती तो क्या हो जाता आखिर वह तुम्हारे ससुराल वाले हैं?’’ मां ने भी उसी की कमियां गिनाई थीं.
‘‘तुम्हारी शादी कर के हम ने अपने सिर का बोझ हलका कर लिया था अब वापस आ कर हमारे सिर का बोझ बढ़ा दिया… अरे, समाज और बिरादरी का कुछ तो खयाल रखा होता,’’ भाई ने धिक्कारते हुए कहा.
आंसुओं में डूबी रत्ना के पास अपने ही मां और भाई के द्वारा तिरस्कार
का दुख झेलने के अलावा और कोई चारा न था. उस की 9 साल की बेटी सहमी हुई सी अपनी मां के पल्लू को थामे हुए अपनी ही नानी और मामा के द्वारा अपनी ही मां को तिरस्कृत होते देख रही थी.
लाचार और बेबस रत्ना ने तब बस इतना कहा था, ‘‘मैं आप सभी पर बोझ नहीं बनूंगी… मैं कुछ भी कर के कोई भी काम अपने लिए ढूंढ़ लूंगी,’’ इतना कहतेकहते उस का गला भर्रा गया था.
चूंकि रत्ना को यह बात उस वक्त अच्छे से पता थी कि उस के जैसी साधारण पढ़ीलिखी लड़की के लिए नौकरी या कोई ढंग का काम ढूंढ़ पाना आसान नहीं, लेकिन फिर भी उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. शुरुआत में तो उस ने सिलाईकढ़ाई से ले कर छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने तक का हर काम किया और आज अपनी बेटी को इस योग्य बना पाई थी.
रत्ना के मन के किसी कोने से टीस सी उठने लगी थी. उस के मन में रहरह कर एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर उस के साथ जो कुछ हुआ उस सब में उस का क्या कुसूर था? पति की मार खा कर भी वह उस अनचाहे बेमेल रिश्ते को निभाने की कोशिश करती रही थी, लेकिन इस सब के बावजूद जब उस के पति ने उसे धोखे से छोड़ दिया तब भी उस के अपनों ने उसे ही दोषी ठहरा दिया. जिंदगी में उसे रिश्तों के खोखलेपन के सिवा और कुछ भी तो नहीं मिला था. झठे रिश्तों के बंधन में बंधी वह अपनी अस्मिता की तलाश करती भी तो कैसे निरंतर तिरस्कार और उपेक्षा के डंक ने तो उस के पूरे वजूद को ही छलनी कर दिया था.
अपनी मां को रोता देख धृति का गुस्सा फूट पड़ा. अपने नेत्रों में अंगारे भर कर उस ने अपने पिता और मामा की ओर बड़ी ही घृणा से देखा.
धृति को अपनी ओर नफरत भरी नजरों से देखता हुआ देख विपिन सकपका सा गया और फिर अनुनय के स्वर में बोला, ‘‘बीती बातों को याद करने से क्या फायदा… मैं तुम दोनों को वापस ले जाने आया हूं… आखिर पिता होने के कारण मेरा भी तुम पर उतना ही अधिकार है जितना तुम्हारी मां का तुम पर है. तुम्हारे प्रति मेरा प्यार… तुम्हारी मां की अपेक्षा किसी कदर कम नहीं है…’’
‘‘झठ… बिलकुल झठ,’’ धृति के चेहरे पर घृणा, हिकारत… हैरानी ये सारे भाव एकसाथ उमड़ पड़े.
‘‘मैं झठ क्यों बोलूंगा… झठ बोल कर मुझे क्या मिलेगा?’’ विपिन ने हकलाते हुए कहा.
‘‘सहानुभूति, आप खुद को लाचार दिखा कर सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं… और फिर इस सब के पीछे आप का कोई न कोई निजी स्वार्थ छिपा हुआ है. आप व्यर्थ का दिखावा न करें. इस से कुछ भी हासिल नहीं होगा. आप ने मम्मी पर जो भी अत्याचार किए हैं… आप के गुनाहों की कोई माफी नहीं है… हम दोनों की जिंदगी में आप की कोई आवश्यकता नहीं है… आप मेरे लिए सिर्फ एक अजनबी हैं मिस्टर विपिन.’’
‘‘एक पिता की जरूरत तुम्हें जिंदगी के हर मोड़ पर पड़ेगी. मैं तुम्हें वह सुरक्षा और संरक्षण देना चाहता हूं जिस की तुम हकदार हो और जो एक बेटी के रूप में तुम्हें अपने पिता से मिलना चाहिए. एक पिता होने के नाते मैं तुम्हारा दायित्व उठाना चाहता हूं,’’ विपिन ने लगभग गिड़गिड़ाने के अंदाज में कहा.
‘‘संरक्षण, सुरक्षा, दायित्व, क्या आप इन भारीभरकम शब्दों का मतलब भी समझते हैं? मिस्टर विपिन संरक्षण और सुरक्षा की बात वह इंसान कर रहा है जिस के साए में मेरी मम्मी की जिंदगी सब से ज्यादा असुरक्षित थी… आप दायित्वों का बोझ नहीं उठा सकेंगे. पिछले 15 वर्षों में जो कार्य आप ने नहीं किया अब वह क्यों करेंगे? दरअसल, आप हमें सहारा देने नहीं हम से सहारा मांगने आए हैं, लेकिन उसे सीधेसीधे कहने की आप में हिम्मत नहीं है,’’ और फिर धृति ने घृणा भरी नजरों से विपिन की ओर देखा.
‘‘पढ़ाई ने सच में इस लड़की का दिमाग खराब कर दिया है… मैं तो कहता हूं यह सारी गलती रत्ना की है, जो अपनी बेटी को इतनी छूट दे रखी है… शुरू से ही यदि इस ने इसे नियंत्रण में रखा होता तो आज यह नौबत ही नहीं आती,’’ प्रकाश ने अपनी भानजी पर आंखें तरेरते हुए कहा.
‘‘नियंत्रण, किस नियंत्रण की बात करते हैं आप? वही जो आप ने मम्मी पर कर रखा था, जिस के कारण वह कभी खुल कर सांस तक नहीं ले सकी? खुले आसमान में उड़ान भरना तो बहुत दूर की बात थी उन्हें तो अपने हिस्से के सपने तक देखने की आजादी नहीं दी आप लोगों ने.’’
धृति क्रोधपूर्ण नजरों से अपने मामा और पिता की ओर देखती हुई बोले जा रही
थी, ‘‘अरे आप जैसे पुरुष तो महिलाओं को देवी भी तभी तक मानते हैं जब तक कि वह आप के बनाए गए दायरों के अंदर होती है, आप के द्वारा बनाई गई सीमाओं और मान्यताओं का पालन करती है परंतु जैसे ही वह आप के बनाए गए रूढि़वादी बंधनों को तोड़ कर मुक्त और स्वतंत्र होने की कोशिश करती है, आप के द्वारा वह कुलटा करार दी जाती है क्योंकि उस के इस
कृत्य से आप जैसे पुरुषों को अपना साम्राज्य खतरे में दिखता है. आप को अपना सिंहासन डोलता नजर आता है, लेकिन मैं ऐसी किसी भी रूढि़वादी बंधन की परवाह नहीं करती जिंदगी में ऊंचाइयों को छूने के लिए, उड़ान भरने के लिए, मुझे किसी सहारे, किसी संरक्षण की जरूरत नहीं है. ऐसे नीच और स्वार्थी पिता की जरूरत तो हरगिज नहीं है.
‘‘मैं ने अकेले अपने दम पर अपने मुकाम को हासिल किया है. ऐसे किसी भी रूढि़वादी बंधन की परवाह नहीं की है… इन तमाम सामाजिक पाबंदियों, बंधनों को तोड़ कर ही अपने सपनों को साकार किया है… हां, उन्हीं बंधनों को जिन बंधनों ने मेरी मम्मी को सदा से कैद कर रखा है, लेकिन अब और नहीं. इस बार मैं अपनी मम्मी को भी साथ ले जाने के लिए आई हूं.’’
फिर धृति ने अपनी मम्मी की आंसुओं के अपने हाथों से पोंछते हुए कहा, ‘‘मम्मी, अब आप को इन लोगों के लिए और आंसू बहाने की कोई आवश्यकता नहीं है. मैं आप को यहां और नहीं रहने दे सकती. मम्मी आज ही आप का वीजा मिला है. मैं तभी आप को बताना चाहती थी. खैर, इस बार आप मेरे साथ अमेरिका चल रही हैं. जिन बंधनों ने आप को दुख के सिवा कुछ नहीं दिया उन से मुक्त होने का समय अब आ गया है,’’ धृति का इशारा अपने पिता और मामा की ओर था, ‘‘आप अगले हफ्ते ही मेरे साथ अमेरिका के लिए उड़ान भरेंगी.’’
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