लेखिका- अमृता पांडे
लौबी की दीवार में बड़े से फ्रेम में लगी मोहित की तसवीर को देख कर रीना उदास हो जाती है. आंसू की कुछ बूंदें उस की आंखों से लुढ़क जाते हैं. 15 अगस्त का दिन था और बाहर काफी धूमधाम थी. आजादी का सूरज धरा के कणकण पर अपनी स्वर्णिम रश्मियां बिखेरता हुआ जलथल से अठखेलियां कर रहा था. आज था रीना की बेटी का पहला जन्मदिन. मोहित की कमी तो हर दिन हर पल उसे खलती थी, फिर आज बिटिया के जन्मदिन पर तो खलनी ही थी.
मोहित के जाने के बाद से उस की हर सुबह स्याह थी, हर शाम उदास थी. रात अकसर आंसुओं का सैलाब ले कर आती, जिस में वह जीभर डूब जाती थी. अगली सुबह सूजन से भरी मोटीमोटी आंखें उस के गम की कहानी कहतीं.
पिछले डेढ़ साल से रीना घर से ही काम कर रही थी. वह मन ही मन कुदरत को धन्यवाद देती कि वर्क फ्रौम होम की वजह से उस की मुश्किल आसान हो गई वरना दुधमुंही बच्ची को किस के पास छोड़ कर औफिस जाती. यों भी और बच्चों की बात अलग होती है. पर वह किसकिस को क्या सफाई देती. आप कितने ही बहादुर क्यों न हों पर कभीकभी समाज की वर्जनाओं को तोड़ना मुश्किल हो जाता है.
कोरोना की वजह से रीना घर से बाहर कम ही निकल रही थी, क्योंकि तीसरी लहर का खतरा बना हुआ था और इसे बच्चों के लिए खतरनाक बताया गया था. वह अपनी बेटी को किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहती थी. आखिर यही तो एक निशानी थी उस के प्यार की. उस ने औनलाइन और्डर कर के ही सजावट की सारी चीजें गुब्बारे, बंटिंग्स आदि ऐडवांस में ही मंगा ली थी. शाम के लिए केक और खानेपीने की दूसरी चीजों का और्डर दे कर वह निश्चिंत हो गई थी.
वह डेढ़ वर्ष पुरानी यादों में खो गई. कितना पागल हो गया था मोहित, जब रीना ने बहुत ही घबराते हुए उसे अपने गर्भवती होने का शक जाहिर किया था. घर में ही टेस्ट कराने पर पता चला कि खबर पक्की है.
प्यार से उसे थामते हुए बोला था वह,”यह तो बहुत अच्छी खबर है. यों मुंह लटका कर क्यों खड़ी हो. कुदरत का शुक्रिया अदा करो और आने वाले मेहमान का स्वागत करो.”
“तुम पागल हो मोहित… बिना शादी के यह आफत… क्या हमारा समाज इसे स्वीकारता है?” वह रोते हुए बोली।
“प्रौब्लम इज ए क्वैश्चन प्रपोज्ड फौर सौल्यूशन. हम शादी कर लेंगे. बस, प्रौब्लम सौल्व,” कहते हुए मोहित ने उस के बालों में हाथ फेरा.
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और दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था. एक तो 3 महीने के बाद गर्भपात कराना गैर कानूनी काम और दूसरा, साथ में कोरोना की मार. सारे अस्पताल कोविड-19 के रोगियों से भरे थे. कोरोनाकाल में डाक्टर दूसरे गंभीर रोगियों को ही नहीं देख रहे थे. फिर गर्भवती महिला का वहां जाना खतरे से खाली भी नहीं था. कुछ एक अस्पतालों में डाक्टरों से मिन्नत भी की थी पर बेकार. कोई भी डाक्टर किसी पैशंट की जांच के लिए राजी ही नहीं था.
रीना को मोहित पर पूरा भरोसा था. पिछले दोढाई साल से उस के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी. उस के स्वभाव को काफी हद तक जान लिया था रीना ने. मगर कहते हैं न कि हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ और है. इस प्रेमी जोड़े के साथ भी यही हुआ. कोरोनारूपी दानव उन के घर तक पहुंच चुका था. मोहित को बहुत तेज बुखार आया और जब कुछ दिनों तक नहीं उतरा तो जांच कराई गई. वही हुआ जिस का डर था. वह कोरोना पौजिटिव निकला. आननफानन में अस्पताल में भरती कराया गया. संक्रमण का डर था इसलिए रीना को वहां जाने की मनाही थी. 1-2 बार डाक्टर से बहुत जिद कर के आईसीयू के बाहर से मोहित की एक झलक पा ली थी उस ने.
हालत बिगड़ती रही और मोहित ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. पीछे छोड़ गया रोतीबिलखती रीना को और अपने अजन्मे बच्चे को.
दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था रीना पर. बदहवास सी वह घंटों तक घर के फर्श पर ही पड़ी रही. कोरोना संक्रमित होने के कारण मोहित का संस्कार भी पुलिस ने ही करवाया था. खबर मिलने पर मोहित के कुछ दोस्तों ने रीना को संभाला और उस की सहेलियों को इत्तला दी.
मोहित के परिवार वालों को भी यह दुखद खबर दी गई। वे अपने बेटे के गम में इतने डूबे हुए थे कि उन्हें इस बात का भी ध्यान नहीं रहा कि रीना से भी उन के बेटे का कोई रिश्ता था। भला इस तरह के रिश्ते को कौन स्वीकार करता है? विवाह नाम की संस्था हमारे समाज में आज भी उतनी ही संगठित है जितनी वर्षों पहले थी. हम कितना ही कुछ कहना कह लें मगर बिना शादी का रिश्ता रिश्ता नहीं माना जाता. रीना को सामने देखते ही वे बरस पड़े. अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार उसी को ठहराने लगे. रीना को याद आया कि मोहित की मां ने उस पर न जाने क्याक्या लांछन लगा दिए थे. कितने गंदेगंदे शब्दों से उसे संबोधित किया था। उन्होंने तो रोहित की मौत का जिम्मेदार पूरी तरह से उसे ठहरा कर पुलिसिया काररवाई करने की भी ठान ली थी, वह तो कोरोना पौजिटिव रिपोर्ट ने उसे बचा लिया वरना कानूनी काररवाई भी झेल रही होती.
“छि: क्या मैं वास्तव में ऐसी ही हूं, जैसा मोहित की मां मुझे कहती हैं?
क्या मैं मोहित की मौत की जिम्मेदार हूं, जैसा उस की बहन रोरो कर कह रही थी?” परेशान होकर वह बारबार अपनेआप से यही सवाल करती.
दुनिया की नजरों में भले ही रीना का प्यार, उस का बच्चा अवैध था पर रीना की नजरों में तो यह एक पवित्र प्रेम की निशानी थी. वे दोनों एकदूसरे से बहुत अधिक प्यार करते थे. बस, फर्क इतना ही था कि बैंडबाजे के साथ दुनिया के सामने वह रीना के घर उसे ब्याहने नहीं गया था और उस की मांग में सिंदूर नहीं भरा था। वह रोरो कर यही बड़बड़ाती, फिर मूर्छित हो कर गिर जाती. उस की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी.
सोसायटी में रहने वाले लोग आज के समय में इतने संवेदनाहीन हो गए हैं कि सामने वाले घर में क्या हो रहा है, इस की खबर भी उन्हें नहीं रहती. पड़ोसी के दुखसुख में शरीक होने की जहमत भी नहीं उठाते. लेकिन यह खबर पूरी सोसाइटी में आग की तरह फैल गई. रीना के बारे में जब पता चला तो सब उस के खिलाफ हो गए. उस पर सोसाइटी का माहौल खराब करने तक का इल्जाम लग गया. ऐसे में ज्यादा दिनों तक वहां रह पाना उस के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था. वह अपने परिवार के पास भी नहीं जाना चाहती थी क्योंकि उसे पता था कि वहां से भी कोई सहारा नहीं मिलने वाला है. पर दोस्त लोग भी कब तक उस की देखभाल कर पाते, सब की अपनीअपनी गृहस्थी, अपनेअपने काम थे. भला एक अभागिन प्रेमिका का दर्द कौन समझ पाता है?
सदियों से जमाने में यह होता आया है कि प्रेमियों को जुदा करने में समाज को मजा आया है. रीना की जिन सहेलियों को इस बात का पता था उन्होंने भी उसे यही सलाह दी कि वह अपनी मां के पास घर चली जाए. कहीं कोई बात हो जाए तो कानून की पचङे में फंसने का डर तो हर किसी को रहता ही है. यह सच है कि जब विपदा आती है तो वह इंसान को हर तरफ से घेर लेती है.
मोहित के ही एक दोस्त ने रीना को अपनी कार से उस के शहर छोड़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी. और वह कर भी क्या सकता था.
घर में जब मां को पता चला तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. हमारे समाज में अनब्याही मां को न तो समाज स्वीकार करता है और न ही कोई परिवार. मां तो खुद ही असहाय थी. पिता की मौत हुए कई वर्ष हो चुके थे. फिर अविवाहित बेटी इस तरह घर में आ गई. समाज के तानों से कौन बचाएगा?
मां ने तो गुस्से में कह दिया था, “डूब कर मर जाती किसी कुएं में. यहां क्यों आई…. कहां भाग गया वह तेरा प्रेमी यह हाल कर के?”
“मां, मोहित कहीं भागा नहीं. वह कुदरत के पास चला गया है. कोरोना ने उसे अपना शिकार बना लिया वरना वह ऐसा नहीं था. उस के बारे में एक भी शब्द गलत मत कहना,” इतने दिनों में पहली बार मुंह से कुछ बोली थी रीना.
उस की एक बाल विधवा बुआ भी उसी घर में रहती थीं, जिन्होंने सामाजिक तानेबाने को बहुत अच्छे तरीके से पहचाना था.
रीना की ओर देखते हुए बोलीं, “सोचा भी नहीं तूने क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज को. लोग थूथू करेंगे.”
“छोटी 2 बहनें शादी के लिए तैयार बैठी हैं. कौन करेगा इन से शादी? लोग तो यही कहेंगे कि जैसी बड़ी बहन है, वैसी ही छोटी भी होंगी चरित्रहीन.”
इन लोगों ने यह सब कह तो दिया पर यह नहीं सोचा कि ऐसी हालत में रीना से यह सब बातें करने से उस की क्या मानसिक स्थिति होगी.
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इतना ही नहीं, इस बीच धोखे से रीना के पेट में पल रहे बच्चे को खत्म करने के भी कई घरेलू उपाय किए गए पर वे कारगर साबित नहीं हुए. उलटा रीना के स्वास्थ्य पर असर पड़ा. रक्तस्राव होने लगा और जान पर बन आई.
इस मुश्किल भरी परिस्थितियों में खुद को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था. एक रात्रि वह निकल पड़ी किसी अनजान डगर पर. उसे बारबार मां और बुआ के कड़वे शब्द याद आ रहे थे कि डूब कर मर जा किसी कुएं में या फंदे से लटक जा.
रात का समय था. वह रेलवे ट्रैक के किनारेकिनारे चली जा रही थी. विक्षिप्त सी हो गई थी वह. आसपास चल रहे लोग उसे देखते घूरते और आगे बढ़ जाते. यही तो समाज का दस्तूर है. किसी की मजबूरी के बारे में जाने बगैर हम उस के बारे में कितनी सारी धारणाएं बना लेते हैं. पूर्वाग्रह से ग्रसित यही समाज तो नासूर है हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए.
तभी कहीं दूर से रेल की सीटी बजी. धड़धड़ाती हुई ट्रेन आ रही थी और उस की आहट से पूरी धरती में कंपन हो रहा था. रीना का दिल भी एक बारगी कांप उठा. सच कितना मुश्किल होता है मरने के लिए साहस जुटाना . खासकर ऐसे में जब जीने की कोई वजह हो. ट्रेन अब पास आ चुकी थी. इंजन की लाइट दूर से दिखने लगी थी.
उस ने अपने पेट पर हाथ फेरा और आसमान की ओर देख कर जोर से चिल्लाई,”मोहित, मैं आ रही हूं तुम्हारे पास. तुम्हारी परी को भी ला रही हूं. तीनों मिल कर वहीं रहेंगे सुकून से.”
वहीं पर तैनात रेलवे का एक गार्ड जो काफी देर से उस की गतिविधियों को देख रहा था, अब उसे बात समझ में आ गई थी. वह उस के करीब हो लिया. जैसे ही ट्रेन करीब आती, रीना तेजी से ट्रैक के साथसाथ दौड़ने लगी. सिपाही ने तत्परता दिखाते हुए एक झटके से उसे पकड़ लिया.
जब अपने साथ न दें तो कई बार पराए भी अपने लगने लगते हैं. वह पुलिस वाले का हाथ पकड़ कर रोने लगी,”भैया, क्यों बचा लिया आप ने मुझे? क्या करूंगी मैं इस दुनिया में जी कर. यहां मेरा कोई अपना नहीं. जो था वह तो छोड़ कर चला गया.
अब, समाचारपत्र को भी खबर चाहिए होती है और अगले दिन यही बात स्थानीय समाचारपत्र का हिस्सा बन गई कि एक अविवाहित गर्भवती महिला ट्रेन से कटने जा रही थी और रेलवे के गार्ड ने उसे बचा लिया. बात उस की बड़ी विवाहित दीदी तक जा पहुंची थी. वे उसे अपने साथ घर ले आईं पर यहां भी विडंबना देखिए कि रीना तक तो ठीक था पर बच्चे को रखने की सलाह वे भी नहीं दे रही थीं।
दीदी बोलीं,”देख रीना, मोहित तेरा बौयफ्रैंड था. पति तो था नहीं.
जो हुआ वह बुरा हुआ लेकिन मोहित की याद में कहां तक पूरी जिंदगी बिताएगी. यह खयाल अपने मन से निकाल दे. कभी न कभी तुझे जिंदगी में किसी साथी की जरूरत तो महसूस होगी ही और उस वक्त यही बच्चा तेरी जिंदगी में आड़े आएगा. आगे क्या बताऊं तू खुद समझदार है.”
एक बार फिर दुनियादारी ने रीना को निराश किया. जिस दीदी से कुछ उम्मीद की आस लिए यहां आई थी, वह भी बेरहम निकली. रीना अपनेआप में शारीरिक बदलाव महसूस करने लगी थी और यह दूसरों को भी नजर आने लगे थे. लोगों में कानाफूसी होने लगी थी. उस ने दीदी का घर भी छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझी. दीदी को डर था कि कहीं दोबारा कोई घातक कदम न उठा ले. उस ने उसे समझा कर कुछ समय के लिए रोक लिया.
“रीना, तू फिक्र मत कर. हम तेरे साथ हैं. लेकिन इस बच्चे के बारे में दुविधा बनी हुई है।”
“दीदी, मां कहती हैं कि मैं ने पाप किया है.”
दीदी कुछ दृढ़ता से बोलीं,” देख रीना, यह पापपुण्य की परिभाषा तो न सब हमारे समाज की बनाई हुई है. इस से बाहर निकलना हमारे लिए मुश्किल है. मेरे आसपास के लोग भी जब तुझे देखेंगे तो यही पूछेंगे न कि इस का पति कहां है? यह समाज है. किसकिस का मुंह बंद करेगी?”
रीना उदास बैठी सोच रही थी कि आएदिन हत्या, लूटपाट की घटनाएं समाचारपत्र पत्रिकाओं में छपती हैं. उन लोगों पर कोई काररवाई नहीं होती. भ्रूण हत्या आज भी चोरीछिपे होती है. किसी की जान लेना यहां पाप नहीं पर किसी को जन्म देना पाप है. वाह रे, कैसा समाज है?
खैर, तय समय पर परी का जन्म हुआ. प्रसव वेदना के साथसाथ और भी कई तरह की वेदनाएं सहीं. दीदी ने भी एक तरह से इशारा सा कर दिया था कि अब वह अपना इंतजाम कहीं देख ले. बेटी को ले कर रीना दीदी का घर छोड़ कर दूसरे शहर में आ गई थी और तब से यहीं रह रही थी.
अचानक दरवाजे की घंटी बजती है और परी उस ओर जाने की कोशिश करती है. रीना ने देखा तो दूध और ग्रौसरी वाला था.
यों तो घर में कोई भीड़भाड़ नहीं फिर भी रौनक थी. 15 अगस्त का पावन दिन था. साथ में बेटी का जन्मदिन भी. रीना कभी देशप्रेम के गाने बजाती और कभी जन्मदिन के. रीना अकेले ही मातापिता दोनों का कर्तव्य निभाते हुए अपनी बेटी के जन्मदिन के अवसर पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। अब तो उस की नन्ही परी थोड़ाथोड़ा चलने लगी थी. 2-4 कदम चलती, फिर गिर जाती. फिर खुद ही संभल जाती. जब से कुछ समझने लगी थी तो उस ने सिर्फ मां को ही तो देखा था. पापा नाम का भी कोई प्राणी होता है, यह बात तो उसे पता भी नहीं थी.
अपने छोटे से घर को रीना ने बहुत ही कलात्मक ढंग से सजाया था और अपने स्टाफ के कुछ खास लोगों को पार्टी में बुलाया था. परी बिटिया को भी मेहरून रंग का सुंदर सा फ्रौक पहनाया था. बड़ी ही सुंदर लग रही थी उस की परी फ्रौक में. यह फ्रौक पिछले डेढ़ साल से रीना ने अपने बौक्स में छिपा कर रखा था जैसे चोरी का कोई सामान हो.
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उस की आंखें फिर सजल हो उठीं. उस की आंखें के सामने सुनहरे दिनों की तसवीर घूमने लगी, जब मोहित को उस के गर्भवती होने का पता चला था तो उसी ने यह फ्रौक औनलाइन और्डर करवाया था. इसे देख कर रीना तो लजा ही गई थी. आज उस फ्रौक में उन की बेटी परी बहुत सुंदर लग रही थी. रीना उस के नन्हेनन्हे हाथों को देखती तो सोचती, ‘मोहित होता तो कितना खुश होता. पर आज उसे देखने के लिए वह रहा ही नहीं.’
कहता था, ‘बेटी होगी हमारी. देख लेना. बिलकुल तुम्हारी जैसी चंचल प्यारी सी.’
ये यादें उसे कमजोर करने के लिए काफी थीं पर रीना ने भी ठान लिया था कि वह अकेली अपनी बेटी को पालपोस कर बड़ा बनाएगी. आंखों के कोर में छिपे आंसुओं को पोंछते हुए उस ने परी को गोद में उठाया. एक नजर मोहित की तसवीर पर डाली और मेहमानों का इंतजार करने लगी. सूरज कुछ निस्तेज सा हो कर पश्चिम की ओर लौट रहा था पर रीना की गोद में परी एक नई सुबह का एहसास दे रही थी.