उच्च शिक्षा प्राप्त करना हर किसी का सपना होता है. इसे प्राप्त करने के लिए युवा अच्छे से अच्छे विश्वविद्यालय में दाखिला लेने की ख्वाहिश रखते हैं. जो आर्थिक दृष्टि से सक्षम हैं, वे दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से चयन कर वहां शिक्षा प्राप्त करते हैं. शेष को अपने ही देश के विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने में संतुष्ट होना पड़ता है.
यदि शीर्ष 10 विश्वविद्यालयों की बात करें तो इन में पहले स्थान पर औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का नाम है. इस के बाद क्रमश: कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी, कैंब्रिज विश्वविद्यालय, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, येल यूनिवर्सिटी, शिकागो विश्वविद्यालय और इंपीरियल कालेज आते हैं.
यूनाइटेड किंगडम की राजधानी लंदन के विश्वविद्यालयों की चमक इस रैंकिंग में साफ दिखती है. शीर्ष 40 में इस के 4 विश्वविद्यालय शामिल हैं.
ग्लोबल रैंकिंग 2020 की टौप 300 की लिस्ट में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी शामिल नहीं है. 2012 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत की कोईर् भी यूनिवर्सिटी इस लिस्ट में जगह नहीं बना पाई है. हालांकि ओवरऔल रैंकिंग में पिछले साल के मुकाबले भारतीय विश्वविद्यालयों की संख्या इस बार ज्यादा है. 2018 में जहां 49 संस्थानों को इस सूची में स्थान मिला था, वहीं इस बार 56 संस्थान इस सूची में स्थान बनाने में सफल रहे हैं.
भारत के इंडियन इंस्टिट्यूट औफ साइंस, बेंगलुरु ने टौप 350 में जगह बनाई है. दूसरी ओर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रोपड़ भी इस बार टौप 350 रैंकिंग में पहुंच गया है.
ये भी पढ़ें- #coronavirus: अमेरिका की चौधराहट में कंपन
शीर्ष 500 में जरूर 6 भारतीय विश्वविद्यालय शामिल हैं. 92 देशों के 1,396 विश्वविद्यालय इस रैंकिंग में शामिल किए गए. देश के 7 विश्वविद्यालय सूची में नीचे शामिल हैं. ज्यादातर भारतीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग स्थिर है. हालांकि आईआईटी दिल्ली, आईआईटी खड़गपुर और जामिया मिलिया इस्लामिया दिल्ली की स्थिति सुधरी है. लेकिन जब अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में इन की तुलना की जाती है, तो इन का प्रदर्शन फिसड्डी साबित होता है.
रैंकिंग देते समय शिक्षण, रिसर्च, नौलेज ट्रांसफर और इंटरनैशनल आउटपुट शामिल किए गए थे. प्रदर्शन के 13 मानकों पर इस का आकलन किया गया, जबकि शैक्षणिक स्तर के आधार पर उन की रैंक तय की जाती है.
भारतीय विश्वविद्यालयों का स्तर किसी से छिपा नहीं है. देश में कितने विश्वविद्यालय ऐसे हैं जिन पर गर्र्व किया जा सके? ज्यादातर सामान्य स्तर के ही हैं और कुछ का स्तर तो अत्यंत घटिया है. यही नहीं, देश में अनेक फर्जी विश्वविद्यालय और संस्थान भी चल रहे हैं, जो युवकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने 23 फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी कर छात्रों को इन में दाखिला नहीं लेने के लिए आगाह किया है.
यूजीसी के अनुसार, छात्रों तथा आम लोगों को सूचित किया जाता है कि देश के विभिन्न हिस्सों में यूजीसी एक्ट का उल्लंघन कर इस समय 23 स्वयंभू तथा गैरमान्यताप्राप्त संस्थान चल रहे हैं. उन में से उत्तर प्रदेश में 8, दिल्ली में 7 तथा केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पुद्दुचेरी में एकएक फर्जी विश्वविद्यालय हैं.
गैरमान्यताप्राप्त विश्वविद्यालयों के नाम हैं – वाराणस्य संस्कृत विश्वविद्यालय (वाराणसी), महिला ग्राम विद्यापीठ विश्वविद्यालय (प्रयागराज), गांधी हिंदी विद्यापीठ (वाराणसी), नैशनल यूनिवर्सिटी औफ इलैक्ट्रो कौम्प्लैक्स होमियोपैथी (कानपुर), नेताजी सुभाषचंद्र बोस ओपन यूनिवर्सिटी (अलीगढ़), उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय (मथुरा), महाराणा प्रताप शिक्षा निकेतन विश्वविद्यालय (प्रतापगढ़) तथा इंद्रप्रस्थ शिक्षा परिषद (नोएडा). दिल्ली के कौर्मिशियल यूनिवर्सिटी लि., यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी, वोकेशनल यूनिवर्सिटी, एडीआर सैंटिक जूरिडिकल यूनिवर्सिटी, इंडियन इंस्टिट्यूशन औफ साइंस ऐंड इंजीनियरिंग, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय तथा विश्वकर्मा ओपन यूनिवर्सिटी फौर सेल्फएम्प्लायमैंट शामिल हैं.
यूजीसी की इस सूची में बडागान्वी सरकार वर्ल्ड ओपन यूनिवर्सिटी एजुकेशन सोसायटी (कर्नाटक), सेंट जौंस यूनिवर्सिटी (केरल), राजा अरैबिक यूनिवर्सिटी (महाराष्ट्र) तथा श्री बोधि एकेडमी औफ हायर एजुकेशन (पुद्दुचेरी) के भी नाम हैं.
इन के अलावा पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में भी 2-2 फर्जी विश्वविद्यालय- इंडियन इंस्टिट्यूट औफ आल्टरनेटिव मैडिसिन, इंस्टिट्यूट औफ आल्टरनेटिव मैडिसिन ऐंड रिसर्च, नवभारत शिक्षा परिषद तथा नौर्थ ओडिशा यूनिवर्सिटी औफ एग्रीकल्चर ऐंड टैक्नोलौजी को भी फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल किया गया है. भारतीय शिक्षा परिषद, लखनऊ का मामला अभी न्यायाधीन है.
एक विश्वविद्यालय के अंतर्गत सैकड़ों कालेजों की मान्यता देने की मौजूदा व्यवस्था पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को अनियमितताओं की रिपोर्ट मिली है.
लिहाजा, मंत्रालय इस व्यवस्था को बदलने पर विचार कर रहा है. मंत्रालय एक विश्वविद्यालय के तहत 100 कालेजों को मान्यता देने की संख्या तक सीमित करना चाहता है. इस के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम में बदलाव करने की बात चल रही है. मंत्रालय ने इस के लिए राज्यों और सभी विश्वविद्यालयों को चिट्ठी लिखी है.
ये भी पढ़ें- आत्मनिर्भरता की निर्भरता
अधिकारियों का कहना है कि कालेजों की संख्या घटाने के पीछे का मकसद यही है कि हर कालेज पर निगरानी रखी जाए और उन की शिक्षा का गुणवत्ता स्तर सुधरे. दरअसल, एक अध्यापक का कई कालेजों में पढ़ाने या कुछ कालेजों में तो फर्जी तरीके से अध्यापकों की नियुक्ति दिखाने के मामले सामने आए हैं. मंत्रालय को मिली आंतरिक रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में आगरा और कानपुर के विश्वविद्यालयों में हजार से ऊपर कालेजों को मान्यता दी गई है, जिस से कालेजों के कामकाज पर निगरानी रखना कठिन हो रहा है और इस से छात्रों का काफी नुकसान हो रहा है.
केंद्र सरकार देश में नई शिक्षा नीति लाने जा रही है. इस का ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी कर सुझाव व आपत्तियां मंगाई गई हैं. नई नीति के तहत कालेजों को डिग्री देने का अधिकार मिल जाएगा. हालांकि, इस के लिए उन्हें कई मानकों का कड़ाई से पालन करना होगा. वहीं, विश्वविद्यालय भी 2 प्रकार के हो जाएंगे. अनुसंधान (रिसर्च) के लिए अलग विश्वविद्यालय होंगे, जबकि शिक्षा के अलग विश्वविद्यालय होंगे. इन के पास स्नातकोत्तर कराने के अधिकार होंगे.
ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के मुताबिक, वर्तमान व्यवस्था में कालेजों को विश्वविद्यालय से संबद्धता लेनी होती है. विश्वविद्यालय ही उन के यहां परीक्षा करवाता है और रिजल्ट व डिग्री जारी करता है. नई नीति के बाद कालेज स्वायत्त हो जाएंगे. उन्हें खुद ही परीक्षा करवाने, मार्कशीट और डिग्री जारी करने के अधिकार मिल जाएंगे. लेकिन कालेज केवल स्नातक कोर्स ही करवा सकेंगे.