Family Story In Hindi: उन्मुक्त- कैसा था प्रौफेसर सोहनलाल का बुढ़ापे का जीवन

लेखक- श्रीप्रकाश

फिर प्रोफैसर ने नाश्ता और चाय लिया. रीमा बगल में ही बैठी थी पहले की तरह और आदतन टेबल पर पोर्टेबल टूइनवन में गाना भी बज रहा था. रीमा बोली, ‘‘आजकल आप कुछ ज्यादा ही रोमांटिक गाने सुनने लगे हैं. कमला मैडम के समय ऐसे नहीं थे.’’

उन्होंने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘अभी तुम ने मेरा रोमांस देखा कहां है?’’

रीमा बोली, ‘‘वह भी देख लूंगी, समय आने पर. फिलहाल कुछ पैसे दीजिए राशन पानी वगैरह के लिए.’’

प्रोफैसर ने 500 के 2 नोट उसे देते हुए कहा, ‘‘इसे रखो. खत्म होने के पहले ही और मांग लेना. हां, कोई और भी जरूरत हो, तो निसंकोच बताना.’’

रीमा बोली, ‘‘जानकी बेटी के लिए कुछ किताबें और कपड़े चाहिए थे.’’ उन्होंने 2 हजार रुपए का नोट उस को देते हुए कहा, ‘‘जानकी की पढ़ाई का खर्चा मैं दूंगा. आगे उस की चिंता मत करना.’’

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कुछ देर बाद रीमा बोली, ‘‘मैं आप का खानापीना दोनों टाइम का रख कर जरा जल्दी जा रही हूं. बेटी के लिए खरीदारी करनी है.’’

प्रोफैसर ने कहा, ‘‘जाओ, पर एक बार गले तो मिल लो, और हां, मैडम की अलमारी से एकदो अपनी पसंद की साडि़यां ले लो. अब तो यहां इस को पहनने वाला कोई नहीं है.’’

रीमा ने अलमारी से 2 अच्छी साडि़यां और मैचिंग पेटीकोट निकाले. फिर उन से गले मिल कर चली गई.

अगले दिन रीमा कमला के कपड़े पहन कर आई थी. सुबह का नाश्तापानी हुआ. पहले की तरह फिर उस ने लंच भी बना कर रख दिया और अब फ्री थी. प्रोफैसर बैडरूम में लेटेलेटे अपने पसंदीदा गाने सुन रहे थे. उन्होंने रीमा से 2 कौफी ले कर बैडरूम में आने को कहा. दोनों ने साथ ही बैड पर बैठेबैठे कौफी पी थी. इस के बाद प्रोफैसर ने उसे बांहों में जकड़ कर पहली बार किस किया और कुछ देर दोनों आलिंगनबद्ध थे. उन के रेगिस्तान जैसे तपते होंठ एकदूसरे की प्यास बु झा रहे थे. दोनों के उन्माद चरमसीमा लांघने को तत्पर थे. रीमा ने भी कोई विरोध नहीं किया, उसे भी वर्षों बाद मर्द का इतना सामीप्य मिला था.

अब रीमा घर में गृहिणी की तरह रहने लगी थी. कमला के जो भी कपड़े चाहिए थे, उसे इस्तेमाल करने की छूट थी. डै्रसिंग टेबल से पाउडर क्रीम जो भी चाहिए वह लेने के लिए स्वतंत्र थी.

कुछ दिनों बाद नवल बेटे का स्काइप पर वीडियो कौल आया. रीमा घर में कमला की साड़ी पहने थी. प्रोफैसर की बहू रेखा ने भी एक ही  झलक में सास की साड़ी पहचान ली थी. औरतों की नजर इन सब चीजों में पैनी होती है. रीमा ने उसे नमस्ते भी किया था. रेखा ने देखा कि रीमा और उस के ससुर दोनों पहले की अपेक्षा ज्यादा खुश और तरोताजा लग रहे थे.

बात खत्म होने के बाद रेखा ने अपने पति नवल से कहा, ‘‘तुम ने गौर किया, रीमा ने मम्मी की साड़ी पहनी थी और पहले की तुलना में ज्यादा खुशमिजाज व सजीसंवरी लग रही थी. मु झे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा है.’’

नवल बोला, ‘‘तुम औरतों का स्वभाव ही शक करने का होता है. पापा ने मम्मी की पुरानी साड़ी उसे दे दी तो इस में क्या गलत है? और पापा खुश हैं तो हमारे लिए अच्छी बात है न?’’

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‘‘इतना ही नहीं, शायद तुम ने ध्यान नहीं दिया. घर में पापा लैपटौप ले कर जहांजहां जा रहे थे, रीमा उन के साथ थी. मैं ने मम्मी की ड्रैसिंग टेबल भी सजी हुई देखी है,’’ रेखा बोली.

नवल बोला, ‘‘पिछले 2-3 सालों से पापामम्मी की बीमारी से और फिर उन की मौत से परेशान थे, अब थोड़ा सुकून मिला है, तो उन्हें भी जिंदगी जीने दो.’’

प्रोफैसर और रीमा का रोमांस अब बेरोकटोक की दिनचर्या हो गई थी. अब बेटेबहू का फोन या स्काइप कौल

आता तो वे उन से बातचीत में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते थे और जल्दी ही कौल समाप्त कर देना चाहते थे. इस बात को नवल और रेखा दोनों ने महसूस किया था.

कुछ दिनों बाद बेटे ने पापा को फोन कर स्काइप पर वीडियो पर आने को कहा, और फिर बोला, ‘‘पापा, थोड़ा पूरा घर दिखाइए. देखें तो मम्मी के जाने के बाद अब घर ठीकठाक है कि नहीं?’’

प्रोफैसर ने पूरा घर घूम कर दिखाया और कहा, ‘‘देखो, घर बिलकुल ठीकठाक है. रीमा सब चीजों का खयाल ठीक से रखती है.’’

नवल बोला, ‘‘हां पापा, वह तो देख रहे हैं. अच्छी बात है. मम्मी के जाने के बाद अब आप का दिल लग गया घर में.’’

जब प्रोफैसर कैमरे से पूरा घर दिखा रहे थे तब बहू, बेटे दोनों ने रीमा को मम्मी की दूसरी साड़ी में देखा था. इतना ही नहीं, बैड पर भी मम्मी की एक साड़ी बिखरी पड़ी थी. तब रेखा ने नवल से पूछा, ‘‘तुम्हें सबकुछ ठीक लग रहा है, मु झे तो दाल में काला नजर आ रहा है.’’

नवल बोला, ‘‘हां, अब तो मु झे भी कुछ शक होने लगा है. खुद जा कर देखना होगा, तभी तसल्ली मिलेगी.’’

इधर कुछ दिनों के लिए रीमा की बेटी किसी रिश्तेदार के साथ अपने ननिहाल गई हुई थी. तब दोनों ने इस का भरपूर लाभ उठाया था. पहले तो रीमा डिनर टेबल पर सजा कर शाम के पहले ही घर चली जाती थी. प्रोफैसर ने कहा, ‘‘जानकी जब तक ननिहाल से लौट कर नहीं आती है, तुम रात को भी यहीं साथ में खाना खा कर चली जाना.’’

आज रात 8 बजे की गाड़ी से जानकी लौटने वाली थी. रीमा ने उसे प्रोफैसर साहब के घर ही आने को कहा था क्योंकि चाबी उसी के पास थी. इधर नवल ने भी अचानक घर आ कर सरप्राइज चैकिंग करने का प्रोग्राम बनाया था. उस की गाड़ी भी आज शाम को पहुंच रही थी.

अभी 8 बजने में कुछ देर थी. प्रोफैसर और रीमा दोनों घर में अपना रोमांस कर रहे थे. तभी दरवाजे की घंटी बजी तो उन्होंने कहा, ‘‘रुको, मैं देखता हूं. शायद जानकी होगी.’’ और उन्होंने लुंगी की गांठ बांधते हुए दरवाजा खोला तो सामने बेटे को खड़ा देखा. कुछ पलों के लिए दोनों आश्चर्य से एकदूसरे को देखते रहे थे, फिर उन्होंने नवल को अंदर आने को कहा. तब तक रीमा भी साड़ी ठीक करते हुए बैडरूम से निकली जिसे नवल ने देख लिया था.

रीमा बोली, ‘‘आज दिन में नहीं आ सकी थी तो शाम को खाना बनाने आई हूं. थोड़ी देर हो गई है, आप दोनों चल कर खाना खा लें.’’

खैर, बापबेटे दोनों ने खाना खाया. तब तक जानकी भी आ गई थी. रीमा अपनी बेटी के साथ लौट गई थी. रातभर नवल को चिंता के कारण नींद नहीं आ रही थी. अब उस को भी पत्नी की बातों पर विश्वास हो गया था. अगले दिन सुबह जब प्रोफैसर साहब मौर्निंग वौक पर गए थे, नवल ने उन के बैडरूम का मुआयना किया. उन के बाथरूम में गया तो देखा कि बाथटब में एक ब्रा पड़ी थी और मम्मी की एक साड़ी भी वहां हैंगर पर लटक रही थी. उस का खून गुस्से से खौलने लगा था. उस ने सोचा, यह तो घोर अनैतिकता हुई और मम्मी की आत्मा से छल हुआ. उस ने निश्चय किया कि वह अब चुप नहीं रहेगा, पापा से खरीखरी बात करेगा.

रीमा तो सुबह बेटी को स्कूल भेज कर 8 बजे के बाद ही आती थी. उस के पहले जब प्रोफैसर साहब वौक से लौट कर आए तो नवल ने कहा, ‘‘पापा, आप मेरे साथ इधर बैठिए. आप से जरूरी बात करनी है.’’

वे बैठ गए और बोले, ‘‘हां, बोलो बेटा.’’

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नवल बोला, ‘‘रीमा इस घर में किस हैसियत से रह रही है? आप के बाथरूम में ब्रा कहां से आई और मम्मी की साड़ी वहां क्यों है? मम्मी की साडि़यों में मैं ने और रेखा दोनों ने रीमा को बारबार स्काइप पर देखा है. मम्मी की डै्रसिंग टेबल पर मेकअप के सामान क्यों पड़े हैं? इन सब का क्या मतलब है?’’

प्रोफैसर साहब को बेटे से इतने सारे सवालों की उम्मीद न थी. वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे. तब नवल ने गरजते हुए कहा, ‘‘पापा बोलिए, मैं आप से ही पूछ रहा हूं. मु झे तो लग रहा है कि रीमा सिर्फ कामवाली ही नहीं है, वह मेरी मम्मी की जगह लेने जा रही है.’’

प्रोफैसर साहब तैश में आ चुके थे. उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा, ‘‘तुम्हारी मम्मी की जगह कोई नहीं ले सकता है. पर क्या मु झे खुश रहने का अधिकार नहीं है?’’

नवल बोला, ‘‘यह तो हम भी चाहते हैं कि आप खुश रहें. आप हमारे यहां आ कर मन लगाएं. पोतापोती और बहू हम सब आप को खुश रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे.’’

‘‘भूखा रह कर कोईर् खुश नहीं रह सकता है,’’ वे बोले.

नवल बोला, ‘‘आप को भूखा रहने का सवाल कहां है?’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘खुश रहने के लिए पेट की भूख मिटाना ही काफी नहीं है. मैं कोई संन्यासी नहीं हूं. मैं भी मर्द हूं. तुम्हारी मां लगभग पिछले 3 सालों से बीमार चल रही थीं. मैं अपनी इच्छाओं का दमन करता रहा हूं. अब उन्हें मुक्त करना चाहता हूं. मु झे व्यक्तिगत मामलों में दखलअंदाजी नहीं चाहिए. और मैं ने किसी से जोरजबरदस्ती नहीं की है. जो हुआ, दोनों की सहमति से हुआ.’’ एक ही सांस में इतना कुछ बोल गए वे.

नवल बोला, ‘‘इस का मतलब मैं जो सम झ रहा था वह सही है. पर 70 साल की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘तुम्हें जो भी लगे. जहां तक बुढ़ापे का सवाल है, मैं अभी अपने को बूढ़ा नहीं महसूस करता हूं. मैं अभी भी बाकी जीवन उन्मुक्त हो कर जीना चाहता हूं.’’

नवल बोला, ‘‘ठीक है, आप हम लोगों की तरफ से मुक्त हैं. आज के बाद हम से आप का कोई रिश्ता नहीं रहेगा.’’ और नवल ने अपना बैग उठाया, वापस चल पड़ा. तभी दरवाजे की घंटी बजी थी. नवल दरवाजा खोल कर घर से बाहर निकल पड़ा था. रीमा आई थी. वह कुछ पलों तक बाहर खड़ेखड़े नवल को जाते देखते रही थी.

तब प्रोफैसर साहब ने हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया था. फिर उसे बांहों में कस कर जकड़ लिया और कहा, ‘‘आज मैं आजाद हूं.”

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